शनिवार, 27 मई 2017

कारण ! Copy

कारण !
      भारत के प्राचीन वैदिक विज्ञान में प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित अनेकों ग्रहयोग ग्रहयुति  नक्षत्र संयोग आकाशीय लक्षण दिए गए हैं जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान आदिकाल से लगाया जाता रहा है लोग उसी के बल घर गृहस्थी से लेकर खेती किसानी आदि के सभी कार्यों को योजनाबद्ध ढंग से किया करते थे !उत्तर भारत में 'घाघ की कहावतें ' करके बड़ी सटीक सूक्तियाँ जन जन की जबान से सुनी जा सकती हैं जिनके अनुभव के आधार पर किसानलोग प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान स्वयं कर लिया करते थे !आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग उन्हें भूलते जा रहे हैं और नया कुछ सीखना संभव नहीं हो पा रहा है | 
    आधुनिक मौसमविज्ञान की भविष्यवाणियों के सहारे खेती नहीं की जा सकती इससे बताए जाने वाले पूर्वानुमान यदि सच हो सकते होते तो वर्ष भर की या 6 -6 महीने की पत्रिकाएँ बना दी जाएँ अखवारों में प्रकाशित किया जाए 6 महीने पहले का मौसम भविष्य जिस आम जनता या विशेष कर कृषिकार्य से जुड़े लोग भी उससे लाभ उठा सकेंगे !
      प्रायः देखा जाता है कि भिन्न भिन्न प्रचार प्रसार माध्यमों से मौसम विज्ञान से जुड़े विशेषज्ञ लोग जब तब जो सो मन आता है बोल जाते हैं कई बार तो वो परस्पर एक दूसरे के बयानों के विरुद्ध होता है कई बार तो पूर्व में कहे गए अपने ही बयानों के विपरीत बोलते देखा जाता है !इसलिए मौसम विभागके द्वारा किए जाने वाले वर्षा से संबंधित पूर्वानुमानों को कम से कम 6 महीने पहले प्रकाशित कर दिया जाना चाहिए !
     कृषि कार्य के लिए तो किसान वर्षों पहले अपनी फसलों का पूर्वानुमान लगाकर चलते हैं गन्ना जैसी कई फसलें तो होती ही वर्ष भर में हैं सामान्य तौर पर तीन महीने से 6 महीने तक तो हर फसल को चाहिए ही ऐसी परिस्थिति में 6 महीने पहले प्रकाशित किया गया मौसम (वर्षा )संबंधी पूर्वानुमान ही कृषि के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है !
       प्रायः किसान लोग रवि की फसल मार्च अप्रैल के समय ही यह योजना बना लेते हैं कि खरीफ अर्थात जुलाई अगस्त में कौन फसल किस खेत में बोई जाएगी !ऐसा उन्हें वर्षा की संभावनाओं के आधार पर करना पड़ता है |दूसरी बात इसी समय वर्षा के पूर्वानुमान के आधार पार ही उन्हें वर्ष भर के लिए आनाज दलहन एवं पशुओं के लिए भूषा आदि सहेज कर रखना पड़ता है इसलिए इसी समय उन्हें वर्षभर  नहीं तो कम से कम 6 महीने का तो वर्षा संबंधी पूर्वानुमान उपलब्ध करा ही दिया जाना चाहिए !यदि उन्हें मई जून में पता लगता है तब तो देर हो जाती है |दूसरी बात वर्षा संबंधी पूर्वानुमान जितने प्रतिशत गलत होगा उतने प्रतिशत इसका नुक्सान किसानों को ही उठाना पड़ता है यही कारण है कि किसानों कोवर्तमान समय में जितना नफा नुकसान उठाना पड़ता है उतना पहले नहीं होता था पहले कहाँ इतनी आत्महत्या करते देखे जाते थे किसान जितनी आत्महत्याएँ करते वर्तमान समय में करते देखे जा रहे हैं !
     मुझे नहीं पता है कि इतने पहले वर्षा संबंधी पूर्वानुमान दे पाना आधुनिक मौसम विभाग के बश का है भी या नहीं किन्तु यदि है तो  बहुत अच्छा है !क्योंकि न केवल कृषि के लिए अपितु मुनष्य जीवन से सम्बंधित विवाह आदि बहुत सारे काम काज हैं जिनमें वर्षा सम्बन्धी मौसम बनने बिगड़ने का सीधा असर पड़ता है और इनका निश्चय वर्षों नहीं तो महीनों पहले तो करना ही होता है !
   इसी प्रकार से सामाजिक अथवा राजनैतिक या सरकारी कई कार्यक्रम लाखों करोड़ों रूपए लगाकर आयोजित किए जाते हैं और अचानक वर्षा होने लगनेउसके आयोजन एवं प्रचार प्रसार में लगा सारा धन और प्रयास ब्यर्थ चले जाते हैं !
    28 जून 2015 एवं 16 -7-2015 को प्रधानमंत्री जी का वाराणसी दौरा केवल भारी वर्षा के कारण रद्द करना पडा था ! मौसम विभाग ने 6 - 6 महीने के मौसम संबंधी पूर्वानुमान यदि पहले से ही प्रकाशित कर दिए होते तो ऐसी घटनाओं को घटने से रोका जा सकता था इससे भारत के मौसम विज्ञानविभाग का भी सम्मान का भी गौरव बचाया जा सकता था ऐसे तो सारे विश्व में एक ही संदेशा गया कि भारत के जिस मौसम विज्ञान विभाग के वर्षा संबंधी पूर्वानुमान प्रक्रिया का लाभ प्रधानमंत्री जी के कार्यक्रमों के लिए नहीं लिया जा सका उस वर्षा संबंधी पूर्वानुमान प्रक्रिया का लाभ किसान कैसे और कितना ले सकते हैं किसानों की निरंतर असफलता का एक कारण वर्षा संबंधी पूर्वानुमानों की समय से पहले सटीक जानकारी न होना भी है | 28 जून 2015 की घटना को यदि आकस्मिक या लापरवाही जनित मान भी लिया जाए तो भी 16 -7-2015 को तो मौसम विज्ञान विभाग का पूरा सहयोग लिया जाना चाहिए था !




उचित होता कि 28 जून 2015 को ही के बाद ।
   

तो फिर उसका प्रचार अधिक से अधिक 



  9.0 से लेकर 9.9 तक तीव्रता का भूकंप हजारों किलो मीटर के क्षेत्र में तबाही मचा सकता है। अब तक दर्ज मानव इतिहास में 10.0 या इससे अधिक का भूकंप आज तक नहीं आया है !
       भूकंप को मुख्यतः दो प्रकारों में विभाजित किया जा सकता है :- 
मानवीय गतिविधियों से आने वाले भूकंप।
  1. प्राकृतिक कारणों से आने वाले भूकंप 

     मानवीय गतिविधियों से आने वाले भूकंप-

 - मानवीय गतिविधियाँ भी भूकंप को प्रेरित कर सकती हैं। गहरे कुओं से तेल निकालना, गहरे कुओं में अपशिष्ट पदार्थ या कोई तरल भरना अथवा निकालना, जल की विशाल मात्रा को रखने वाले विशाल बांधों का निर्माण करना और नाभिकीय विस्फोट जैसी विनाशकारी घटना के समान गतिविधियाँ मानव प्रेरित भूकंप का कारण हो सकती हैं। कृत्रिम जलाशयों के कारण भी आते हैं भूकंप !
     भूकंप के अध्ययनों से संबंधित जुटाई गई अपनी निजी जानकारियों के आधार पर मुझे लगने लगा है कि भूकंपों के पूर्वानुमान से संबंधित अभी तक के अध्ययन दिग्भ्रमित हैं !विश्व वैज्ञानिकों के प्रयास इस दिशा में अभी तक इतने भी फलित नहीं हो पाए हैं कि रिसर्चरों को बढ़ना किधर है लक्ष्य क्या है और यात्रा कितनी लंबी है और पड़ाव कहाँ कहाँ हैं आदि भी अनिश्चित हैं इसीलिए तो अभी तक कोई विश्वसनीय उत्तर नहीं दिया जा सका है |भूकंपों को समझ पाने में अभी तक असफल है मनुष्य !विश्ववैज्ञानिकों के लिए अभी तक चुनौती बना हुआ है भूकंपों का पूर्वानुमान !
    इसीलिए तो भूकंप आने के बाद भूकंप की तीव्रता भूकंप की गहराई भूकंप का केंद्र बताने के लिए तो संभवतः हर देश ने अपने अपने निजी वैज्ञानिक रखे हुए होंगे !प्रायः वे सभी यही कह रहे हैं कि भूकंपों का कारण पृथ्वी के अंदर की प्लेटों का हिलना है उनके हिलने का कारण धरती के अंदर की संचित गैसों का दबाव है !इसी धारणा को पाले बैठे लोग भूकंप की दृष्टि से कुछ डेंजर जोन गिना जाते हैं और हिमालय में बहुत बड़ा भूकंप आएगा जैसी डरावनी बातें भी बता जाते हैं !किंतु सबसे बड़ी बात यह है कि भूकंप से संबंधित ऐसी सभी बातों पर तब तक भरोसा कैसे कर लिया जाए जब तक इन काल्पनिक कथा कहानियों के आधार पर किए जाने वाले भूकंप संबंधी पूर्वानुमान सटीक न बैठ जाएँ !
     हर देश की सरकारों में भूकंप से संबंधित मंत्रालय होते हैं जिनके संचालन पर भारी भरकम धनराशि भी खर्च होती ही होगी किंतु अभी तक भूकंप सम्बन्धी रहस्य अनुद्घाटित रहना न केवल चुनौती बना हुआ है अपितु चिंतनीय भी है !
     लगभग  पिछले बीस वर्षों से भारत के प्राचीन वैदिक विज्ञान के आधार पर मैं भी भूकंपों के पूर्वानुमान से सम्बंधित विषयों पर काम कर रहा हूँ इस पर मैं एक पुस्तक भी लिख रहा हूँ !ऐसे अध्ययनों से प्राप्त अभी तक के अनुभवों के आधार पर मुझे इस बात की संभावनाएँ अधिक दिखती हैं कि भूकंप के रहस्यों से जिस दिन पर्दा उठेगा उस दिन भूकंपों के आने की सच्चाई वर्तमान भूकम्पीय अध्ययनों से बहुत अलग निकलेगी !वास्तविक रहस्य उद्घाटित होकर जिस दिन सामने आ जाएगा उस दिन ऐसी भी बलवती सम्भावनाएँ हैं कि भूकंप के पूर्वानुमान के सन्दर्भ में रिसर्चरों की अभी तक की गई यात्रा की सार्थकता सिद्ध करना भी कठिन हो और भूकंपों से संबंधित सच्चाई की दिशा अभी तक के अध्ययनों से बिल्कुल विपरीत ही हो !
      पृथ्वी के अंदर की प्लेटों के हिलने के कारण आता है भूकंप ?
   भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करते समय भी हमें समय और स्वभाव दोनों का ध्यान रखना ही चाहिए इस दृष्टि से जब हम भूकंपों का चिंतन करते हैं तो सामान्य मानवीय के विचार से सोचना होता है कि धूल के छोटे छोटे कण आपस में जुड़ कर पिंड बन जाते हैं तो ढेला कहा जाता है  यही प्रक्रिया जब कभी बहुत बड़े स्तर पर हुई होगी उसी से तो बनी है यह विशाल धरती | अर्थात अतिविशाल पृथ्वी का ही छोटा सा स्वरूप तो मिट्टी का ढेला होता है किंतु वह ढेला भूकंप के समय पृथ्वी की तरह काँप सकता है क्या ?

  पृथ्वी की आतंरिक गैसों के दबाव से भूकंप आता है ?
    सच्चाई यदि यही है तो ऊर्जा जनित बड़े विस्फोट के साथ भी तो वे गैसें बाहर आ सकती थीं उन गैसों के वेग के साथ पृथ्वी के गर्भ में स्थित अन्य वस्तुएँ भी तो बाहर आ सकती थीं कूपों नलकूपों में के पानी में उछाल आ जाता !बोरिंगें जाम हो सकती थीं गैसों के साथ गीली मिट्टी ऊपर आ सकती थी !अधिक नहीं तो पृथ्वी में जहाँ जहाँ दरारें आ जाती हैं कम से कम वहाँ तो गैसों के वेग का अनुभव किया ही जा सकता है वहाँ धूल का गुबार निकलते दिखाई पड़ता !इतनी बलवती गैस जो पृथ्वी को हिला सकती हो धरती में बड़ी बड़ी दरारें पैदा कर सकती हो !वो जब पृथ्वी से बाहर निकलेगी तो उसका वेग बहुत अधिक होना चाहिए जिसमें वे कुछ चीजें उड़ा भी ले जा सकती हैं और बहुत कुछ नहीं तो धूल का बहुत बड़ा गुबार तो निकलते दिखता ही किंतु दूर दूर तक ऐसा कुछ होते तो कहीं नहीं दिखता है |भूकंप आते समय भी आकाश तो साफ ही दिखता है |ऐसी परिस्थिति में पृथ्वी के अंदर की गैसों के दबाव से भूकंप आने संबंधी बातों पर भरोसा कैसे किया जाए !
     परमाणु परीक्षण के समय   "18 मई 1974, बुद्धपूर्णिमा, सुबह 8 बजकर 5 मिनट। पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में लोहारकी गांव के पास थार रेगिस्तान में कर्णभेदी धमाके की गूंज।वृक्ष और मकान टूट गए थे कुएं से भीमकाय पत्थर बाहर गिर रहे थे, रेत का गुबार आसमान छू रहा था। काफी देर तक जमीन हिलती रही।"किंतु भूकंप आने के समय ऐसा कुछ तो नहीं होता है केवल जमीन ही हिलते देखी जाती है !
    भूकंप के वास्तविक कारण पृथ्वी के अंदर ही होंगे ऐसा पूर्वाग्रह क्यों ?
   'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे'  के  सिद्धांत से जैसी शरीर की संरचना है वैसी ही ब्रह्मांड की भी होगी ऐसा स्वाभाविक है !ऐसी परिस्थिति में शरीर काँपता है तब उसके काँपने का कारण यदि पेट के अंदर की गैसों को नहीं माना जाता है और पेट में छेद करके खोजे  बिना ही उसके काँपने के कारणों का अनुमान लगा लिया जाता है इसके लिए शरीरों के अंदर की प्लेटों को खिसकने पर भी किसी को शंका नहीं होती है ऐसी परिस्थिति में धरती के कंपन के लिए धरती के अंदर की गैसों को ही जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है |

 भूकंपों के विषय में क्या कहता है वैदिक विज्ञान ?
  मैं भूकंप वैज्ञानिक तो हूँ नहीं और न ही आधुनिकविज्ञान का कभी छात्र ही रहा हूँ किंतु भूकंप संबंधी   ऐसी सभी परिस्थितियों से निरंतर चिंतित रहने के कारण वैदिकविज्ञान से सम्बंधित विभिन्न विषयों का अध्ययन मैंने अवश्य किया है काशी के बड़े बड़े विद्वानों के चरणों की शरण में रहकर शास्त्रीय स्वाध्याय का हमें सौभाग्य जरूर प्राप्त होता रहा है !उसी विराट शास्त्रीय संपदा का सदुपयोग मैं भूकंप संबंधी शोधकार्यों के लिए करता चला आ रहा हूँ | इसके लिए मैंने ज्योतिष आयुर्वेद ,सिद्धांतज्योतिष एवं पंचतत्वों के अध्ययन को मुख्य आधार बनाया है इसी आधार पर मैं भूकंप संबंधी अनुसंधान यात्रा को आगे बढ़ाने में तत्पर हूँ |
वैदिक शोध प्रक्रिया -
     जिस भी वस्तु के विषय में शोध करना होता है उसके समय और स्वभाव की समझ विकसित करने के लिए वैदिक विज्ञान बहुमूल्य धरोहर है ! उसी के आधार पर ये प्रश्न किया जा सकता है कि मिट्टी का छोटा से ढेले में यदि कम्पन होते नहीं देखा जाता है तो उसी मिट्टी के  बहुत बड़े पिंड (पृथ्वी) में कंपन कैसे हो सकता है !कंपन संबंधी गति पृथ्वी के स्वभाव में ही नहीं है पृथ्वी तो अचला अर्थात न चलने वाली है फिर उसका चलायमान होना कैसे संभव है !पृथ्वी के अंदर की गैसें भी तो पृथ्वी का ही स्वरूप हैं |वो गैसें वो कैमिकल्स आदि ऊपर से तो नहीं डाले गए हैं!जैसे पंचतत्वों से शरीर बना है वैसे ही तो पंचतत्वों से ही पृथ्वी भी बनी है इसलिए वे तत्व पृथ्वी से अलग नहीं माने जा सकते !उन्हीं पंचतत्वों के आधार पर जैसे वात  पित्त  और कफ की पद्धति से रोगों का निदान और चिकित्सा की जाती है उसी पद्धति के द्वारा पंचतत्वों के प्रवाह संबंधी शोध से भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान का मार्ग भी प्रशस्त हो सकता है !
वैदिक पद्धति से भूकंप संबंधी शोध के क्षेत्र में प्राप्त सफलताएँ -
      प्रकृति में या जीवन में घटित होने वाली अच्छी बुरी सभी प्रकार की घटनाएँ समय से प्रेरित होती हैं इसलिए समय के अध्ययन से उनके घटित होने का न केवल पूर्वानुमान लगाया जा सकता है अपितु उनसे बचने के लिए प्रिवेंटिव प्रयास भी किए जा सकते हैं !
      किसी भी क्षेत्र में  भूकंपों के घटित होने के बाद उसके समय और स्थान के आधार पर उस स्थान से संबंधित निकट भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिकआपदाओं, अचानक फैलने वाली सामूहिक बीमारियों, सामाजिक उन्मादों उपद्रवों एवं पड़ोसी देशों के साथ अपने देश के निकट भविष्य में बनने बिगड़ने वाले संबंधों  का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है !अपने देश के प्रमुख प्रशासकों के जीवन से संबंधित शुभाशुभ का पूर्वानुमान किया जा सकता है |



  भूकम्पों के विषय में सबसे बड़ी शंका एक और होती है कि विश्व वैज्ञानिकों के द्वारा एक ओर तो ये कहा जाता है कि भूकंपों के आने के कारणों के विषय में अभी तक निश्चित तौर पर कुछ भी कह पाना संभव नहीं है तो वहीँ दूसरी ओर भूकंपों के आने के कारणों के विषय में धरती के अंदर की संचित ऊर्जा  के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटों का हिलना उससे भूकम्पों के आने के संबंध में डेंजरजोन के बारे में इतनी निर्भीकता से न केवल बता देना अपितु यही सब कुछ स्कूलों में पढ़ाया जाना है !क्योंकि सामान्य तौर पर  देखा जाता है कि जिस वस्तु के विषय में अपने को ही ठीक ठीक पता न हो फिर उसी विषय का स्कूलों में पाठ्यक्रम पूर्वक पढ़ाया जाना परीक्षाएँ होना डिग्री आदि मिलना आदि कितना न्यायसंगत अर्थात विश्वास करने योग्य है ?

    
  

जाती है जब थोड़े कही

  समुद्र में ज्वार भाटा आता है वो किस तिथि में आता है क्यों आता है आज इसकी सच्चाई  समाज समाज को पता है किंतु जो सच्चाई है उसका समुद्र के अंदर से कोई संबंध नहीं है ये बात सबको पता है इसके लिए मेरी जानकारी के अनुशार ज्वार भाटा के कारणों का पता लगाने समुद्र जल की ऐसी कभी कोई जाँच नहीं हुई समुद्र की तलहटी का कोई अध्ययन नहीं हुआ यदि हुआ भी हो तो भी इतना तो कहा  ही जा सकता है कि  समुद्र में ज्वार भाटा होने का कारण समुद्र के जल में नहीं है वो तो सूर्य और चंद्र का समुद्र पर पड़ने वाला प्रभाव है उस प्रभाव का अध्ययन करने के लिए तिथियों का सहारा लिया गया सिद्धांत ज्योतिष के अनुशार तिथियाँ स्पष्ट सूर्य और चंद्र के अंतर से निर्मित होती हैं सूर्य और चंद्र आकाश में स्थित हैं  समुद्र से सीधा कोई सम्बन्ध नहीं है फिर भी उनसे निर्मित तिथियों के आधार पर ये निश्चय कर लिया गया कि ज्वार भाटा किस किस तिथि को किस समय आता है !मेरे कहने का आशय है कि समुद्र के जल में होने वाली हलचल का सारा हिसाब किताब जिस प्रकार से समुद्र और समुद्र जल का स्पर्श किए बिना उस क्षेत्र में जाए बिना पता लगा लिया जा सकता है वैसे प्रयास भूकंपों से संबंधित रिसर्च में क्यों नहीं किए जाने चाहिए |
    सूर्य या चंद्र ग्रहण पड़ता है उसका पता लगाने के लिए सूर्य और चंद्र पर जाना तो नहीं पड़ता यहीं बैठे बैठे  पहले अनुमान लगा लिया जाता है कि कौन ग्रहण किस सन के किस महीने की किस तिथि को कितने बजे पड़ेगा और कितने बजे तक पड़ेगा !उस तकनीक या पद्धति का उपयोग भूकंपों के पूर्वानुमान संबंधी रिसर्च के लिए क्यों नहीं किया जाना चाहिए !


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