रविवार, 11 जून 2017

योग आत्मविज्ञान है उद्योग नहीं ! आराधना है आडंबर नहीं ! धर्म है धोखा नहीं !जरूर पढ़िए -

  योग की सच्चाई तो सामने लाने के प्रयास किए जाएँ !योग के नाम पर केवल हुल्ल्ड़ ठीक नहीं है!योग और योगियों की पहचान पता लगना चाहिए ! 
     आपराधिक मानसिकता को मिटा सकता है योग समाज को संस्कारों से सजा सकता है योग !टूटते समाज एवं बिखरते परिवारों को जोड़ सकता है योग !,आत्म - परमात्म के मिलन की सुखद अनुभूति का आनंद दे सकता है योग ! योग तो मृत्यु  पर विजय प्राप्त करनेका सक्षम साधन है!मृत्यु तक जीत लेने वाले योग से रोग न ठीक हों फिर योगी दवा बेचने लगे !ये योग की बेइज्जती नहीं तो क्या है ? उससे भी न ठीक हो तो राशन !अरे !योग  बेइज्जती कैसे सही जाए !
     योगबल सबसे बड़ा बल है !योगियों  का  शासन  तो समाज के मन पर होता है योगी लोगसांसारिक प्रपंचों में नहीं फँसते! योगी कभी उद्योगीअर्थात व्यापारी नहीं हो सकता !योगी चाह ले तो भ्रष्टाचारमुक्त बना सकता है समाज !मिलावटी सामान बेचने वाले झूठों लप्फाजों की कसरतों को योग नहीं कहा सकता !जिस सरकार की संस्थाएँ जिसे बार बहार मिलावट खोर सिद्ध कर चुकी हों वही सरकार ऐसे ही लोगों को प्रमोट करे मतलब क्या है ?जो ज्योतिष जैसे शास्त्र की निंदा खुले मंच से करता रहा हो ऐसे शास्त्रद्रोहियों से योग की आशा नहीं की जा सकती !समाज सुधार के लिए असली योगी चाहिए नकली नहीं !नकलियों के बश  होता  तक समाज में बढ़ रहे अपराधों में कुछ तो अंकुश लगा होता !दिनों दिन बढ़ रहे हैं बलात्कार हत्याएँ आत्महत्याएँ अदि सबकुछ !जबकि योग व्यापार हजारों करोड़ में फैलता जा रहा है अरे समाज पर भी कुछ तो संस्कार दिखें किंतु योग तो तो दिखे ढोंग है तो ढोंग  दिख रहा है !योगी सरकारें नहीं बदलता अपितु समाज का स्वभाव बदल देता है !ऐसे असली योगी जंगलों कन्दराओं में या जहाँ तहाँ एकांत में रहकर कर  योग साधना !योगी तो विश्व का अघोषित सम्राट होता है !योग से प्राप्त होती हैं ये आठ सिद्धियाँ और अनेकों दिव्य शक्तियाँ ! 
 योग से प्राप्त होती हैं ये आठ सिद्धियाँ और अनेकों दिव्य शक्तियाँ ! जानिए कौन कौन सी -
     असली  योगियों  को प्राप्त होती हैं ये आठ सिद्धियाँ और नकलीयोगी  तो कसरतें करवाते हैं और कह देते हैं यही योग है  कोई पूछे तो घेरण्ड संहिता गाने लगते हैं पतंजलि क्यों नहीं !योग है या मजाक !प्राचीन काल में जंगलों में योगाभ्यास करते करते ऋषियों को पचासों वर्ष बीत जाया करते थे तब भी कौन कहाँ तक पहुँच पाता था कहना कठिन था किंतु आज तो जिन्हें योग का ABC भी नहीं पता है उन्हें भी मीडिया योगगुरु क्या जगद्गुरु बना दे रहा है !ये पैसे का जवाना है !
    योग साधना है तपस्या है ! सदाचरण  है ऋषियों मुनियों की दिव्य विद्या है !लोक परलोक सुधारने का पावन पथ है योग !!
बंधुओ ! और व्यायाम में अंतर है योग का मतलब कसरत और व्यायाम कतई नहीं हैयोग का संबंध मन से और व्यायाम का संबंध तन से होता है ।
      ये हैं योग की आठ  दिव्य सिद्धियाँ -  
      जो वास्तव में योगी होते हैं उनके पास होती हैं ये आठ सिद्धियाँ !योगसिद्ध लोग अपने को छिपाते हैं अपितु प्रकट नहीं करते हैं !ऐसे योग सिद्ध महापुरुषों के पास असीम शक्तियाँ होती हैं !
 अणिमा महिमा, चैव  गरिमा लघिमा तथा । 
प्राप्ति: प्राकाम्य ईशित्वं, वशित्वं चाष्टसिद्धिय: ।।
अर्थात् अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व तथा वशित्व । ये योग की अष्ट सिद्धियाँ हैं ।       अष्ट सिद्धियाँ इस प्रकार होती हैं- 
  • अणिमा- इस सिद्धि से योगी बहुत ही छोटा रूप बना सकता है।(मच्छर के जैसा रूप बनाकर सीता जी को लंका में खोजते रहे थे हनुमान जी )ये इसी योग सिद्धि का  प्रभाव था ।
  • महिमा- इस सिद्धि से योगी इतना बड़ा रूप धारण कर सकता है कि सारे जगत को ढक ले।(सुरसा के सामने हनुमान जी बड़े होते गए थे )इसी प्रकार से  "कनक भूधराकार शरीरा "आदि आदि ! 
  • गरिमा- इस सिद्धि के प्रभाव से योगी अपने शरीर का वजन बढ़ा जा सकता है। हनुमान जी द्वापर युग में बलगर्वित भीमसेन से बोले - `कृपया आप मेरी इस पूंछ को हटाकर आगे बढ़ जाइये किंतु ' महाबली भीमसेन हिला नहीं सके थे पूंछ ।यह है गरिमा-सिद्धि !इसी योग सिद्धि के बलपर अंगद का पैर रावण नहीं हिला सका था ! 
  • लघिमा- इस योग सिद्धि से योगी लघु, बहुत छोटा या हल्का बन सकता है। हनुमानजी ने इसका प्रयोग नागमाता सुरसा के समक्ष किया था। 
  • प्राप्ति- इसयोग सिद्धि से योगसाधक को वांछित फल प्राप्त होता है। सीताजी की खोज में अनेकानेक वानर-भालू चारों दिशाओं में गये, लेकिन उनमें श्री मारुति ही सीता जी की खोज ला पाए ! 
  • प्राकाम्य- कामनाओं की पूर्ति और लक्ष्य तक पहुँचने की दक्षता। पृथ्वी में समा जाना या  आकाश में उड़ लेना ,पानी में बना रहना इच्छानुरूप देह धारण कर सकना तथा किसी दूसरे के शरीर में प्रविष्ट होने की क्षमता (शंकराचार्य जी का परकाय प्रवेश) वा चिरयुवा रहने की सिद्धि प्राप्त कर लेना आदि आदि । 
  • ईशित्व- इष्ट और ऐश्वर्य सिद्धि हेतु इससे योगी को दैवीय शक्ति की प्राप्ति हो जाती है। वह सब पर शासन कर सकता है। अपने आशीर्वाद से ऐसे योगी सारे रोग दूर भगा सकते हैं मरे हुए को भी फिर जिलाने की क्षमता पा लेते हैं ! सच्चे योगी किसी का रोग भगाने के लिए दवा नहीं देते दवा देना तो वैद्यों का काम है योगियों के तो देख लेने मात्र से दूर भाग जाते हैं सारे रोग ! 
  • वशित्व- वश में करने की सिद्धि। इससे योगी किसी को भी अपने बश में करने की क्षमता प्राप्त कर लेता है । भयानक जंगली पशू-पक्षियों, इंसानों किसी को भी अपने वश में कर लेता है इसी के बलपर योगी सबको अपने बश में कर लेता है  अन्यथा जंगलों में हिंसक जीव जंतुओं के बीच कैसे रह लेते थे वे लोग !असली योगी डरपोक नहीं हो सकते राजलोग उनसे अपनी सुरक्षा की भीख माँगते थे वो क्या किसी राजा से माँगते अपनी सुरक्षा !
    संस्कृत शब्दकोशों में योग और व्यायाम दोनों शब्दों के अर्थों में पर्याप्त अंतर बताया गया है यथा -
व्यायाम - का अर्थ शारीरिक व्यायाम ,कसरत,थकान श्रम आदि है ।
योग-का अर्थ जोड़ है भावार्थ आत्मा को परमात्मा से जोड़ने का है अभिप्रायार्थ यह है कि जीवात्मा और परमात्मा के बीच में सबसे बड़ा बाधक मन होता है क्योंकि संसार के विकारों में मन ही फँसा होता है संकल्प विकल्पात्मकं मनः मन कोई ही सुख दुःख का अनुभव होता है मन में भी बासना का प्रवेश होता है परमात्मा को भूलकर हर अच्छी या सुन्दर वस्तु को पाने की ओर मन भागता है मन ही मनुष्य को संसार में भटकाता रहता है मन एक जगह टिकता नहीं है जैसे समुद्र में तरंगें उठा ही करती हैं उन्हें रोका  नहीं जा सकता उसी प्रकार से मन रूपी समुद्र में विचार रूपी तरंगें उठा ही करती हैं  उन्हें रोकने का प्रयास योग के द्वारा किया जा सकता  है गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है -
 चञ्चलं हि मन: कृष्ण प्रमाथि बलवदृढ़म्। 
तस्याह निग्रह मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्॥३४।॥
किंतु योग का अभ्यास कैसे करे -
समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।
सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन्‌ ॥ (१३)
    भावार्थ : योग के अभ्यास के लिये मनुष्य को अपने शरीर, गर्दन तथा सिर को अचल और स्थिर रखकर, नासिका के आगे के सिरे पर दृष्टि स्थित करके, इधर-उधर अन्य दिशाओं को न देखता हुआ, बिना किसी भय से, इन्द्रिय विषयों से मुक्त ब्रह्मचर्य व्रत में स्थित, मन को भली-भाँति शांत करके, मुझे अपना लक्ष्य बनाकर और मेरे ही आश्रय होकर, अपने मन को मुझमें स्थिर करके, मनुष्य को अपने हृदय में मेरा ही चिन्तन करना चाहिये। (१३,१४) 
    महर्षि पतंजलि भी  कहते हैं कि 'योगश्चित्त वृत्ति निरोधः '  अर्थात चित्त वृत्तियों को संयमित करने या रोकने को योग कहते हैं!
 महर्षि पतंजलि ने कहा -इस कथन के अभिप्राय को समझना होगा !
चित्त (चित् +क्त) चित् का अर्थ चेतन अर्थात जीवित है जीवित तो मन है और मन शरीर के अन्दर तो है किन्तु शरीर नहीं है | 
वृत्ति :-(वृत्+क्तिन्) का अर्थ है अस्तित्व सत्ता या गति ,व्यवहार आदि अर्थ होता  है |     योग का उद्देश्य है मन का विकेंद्रीकरण परमात्म चिंतन आदि !इसीलिए कहा गया कि 'योगेनान्ते तनुत्यजाम् 'अर्थात योग के द्वारा अंत में शरीर छोड़ने वाले !इसका मतलब ये कतई नहीं है कि कसरत करते हुए शरीर छोड़ने वाले !अपितु योग का मतलब परमात्मा में आत्मा को समर्पित करके शरीर छोड़ने वाले !इसलिए योग का उद्देश्य केवल व्यायाम ही नहीं है !
 निरोधः - कैद करना ,घेरना ,ढक देना ,रोकना ।
    योग का उपदेश भगवान शिव के द्वारा किया गया है शिव स्वरोदय शिव संहिता आदि पावन ग्रन्थ हैं योग संस्कृत भाषा में  है हिंदू धर्मी ऋषिमुनियों की खोज है 
 आजकल तो लोग व्यायाम को भी योग कहने लगे हैं !
    योग कोई हँसी खेल नहीं है मजाक नहीं है योग  निरंतर अभ्यास से खानपान के संयम एवं आचार व्यवहार की शुद्धता पूर्वक की जाने वाली अत्यंत कठोर साधना है !जिसमें सफल होने वाले योगियों को असीम शक्तियाँ प्राप्त होती हैं योग सिद्ध पुरुष देवत्व संपन्न हो जाता है ।इसीलिए भगवान श्री कृष्ण को योगेश्वर कहा जाता है भगवान शिव महायोगी हैं योग के बल पर ही भगवान शंकराचार्य ने एक शव में प्रवेश करके उसे जिंदा कर दिया था !ये बात किसे नहीं पता है !
    इतने नियम संयम साधना पूर्वक सिद्ध किए गए योग संपन्न में योगी के पास योग की दिव्य सिद्धियाँ हुआ करती हैं ! 
       योग या उद्योग ? 
   जैसे भुने हुए बीज में कितना भी खाद पानी क्यों न डाल दिया जाए किन्तु उन्हें अंकुरित नहीं किया जा सकता है उसी प्रकार से योग संपन्न व्यक्ति के मन में व्यापार करने की भावना ही नहीं हो सकती यदि है तो वो योगी नहीं !
 योग धर्म है या धोखा ? 
आत्मा और परमात्मा के मिलन का नाम है योग ! इसमें स्वार्थ या सांसारिक प्रपंचों की कल्पना भी नहीं की जा सकती !इसलिए योग के नाम पर धंधा व्यापार करने वाले धर्म नहीं धोखाधड़ी कर रहे हैं समाज के साथ !
योगी की परीक्षा कैसे की जाए कि योगी सच्चा या झूठा ?
    रोग समाप्त करने की शक्ति योग में है चरित्रवान  साधक योगी लोग योग के द्वारा केवल रोगों पर ही नहीं अपितु मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर लेते हैं | वहीँ योग को बदनाम करने वाले लोग रोगों की मुक्ति के लिए 'योग' 'के नाम पर कसरतें कराते कराते जब रोग नहीं ठीक कर पाते हैं तब दवाएँ बनाने बेचने का नाटक करते हैं उससे भी जब रोग नहीं ठीक कर पाते हैं तब खाने पीने की चीजें बेचते हैं कहते हैं ये शुद्ध मेडिकेटेड हैं !तब तक पोल खुल चुकी होती है ऐसे लोगों के योग की सच्चाई समाज समझ चुका होता है समाज इस धोखाधड़ी के विरुद्ध क्रोध में कहीं नस नाड़ियाँ न तोड़ दे इस डर में भयभीत ऐसे कलियुगी लोग राजनैतिक दलों की चमचागिरी करने लगते हैं !उनके साथ उठते बैठते हँसते मुस्कुराते दिखते हैं किंतु कोई चरित्रवान सच्चा योगी ऐसा क्यों करेगा ?बड़े बड़े राजा लोग जिन योगियों के चरणों में नतमस्तक होते हैं वे चरित्रवान तपस्वी लोग राजनैतिक दलों की चमचागिरी कैसे कर सकते हैं | 
इसी विषय में पढ़ें ये लेख -
  •  योग में अड़ंगा लगाने वाला समाज नमाज करते समय जिस धरती पर सिर झुकाता है वो धरती खुदा होती है क्या ?see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/06/blog-post_53.html 
  •   मुस्लिम नेताओं को योग पर एतराज आखिर क्यों ?यदि 'योग' शब्द से आपत्ति है तो योग को 'निरोग' कह लें कुछ और कह लें जिसमें संतोष हो वो कह लें किंतु see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/06/blog-post_77.html 
  •  नमाज करते समय 'धरती' की ओर शिर झुका सकते हैं तो 'योग' करते समय सूर्य की ओर क्यों नहीं झुका सकते ?'धरती' भी तो 'खुदा' नहीं होती !see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/06/blog-post_68.htm
  •  'योग : जिनके लिए योग की सर्जरी कर दी जाए ?सूर्य नमस्कार छोड़ दिया जाए किंतु वे अपनी हठ नहीं छोड़ सकते !ये कैसा भाईचारा !    see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/06/blog-post_14.html
  • योग से प्राप्त होती हैं ये आठ सिद्धियाँ और अनेकों  दिव्य शक्तियाँ ! जानिए कौन कौन सी --  -see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2015/06/blog-post_29.html

कोई टिप्पणी नहीं: