मंगलवार, 31 जुलाई 2018

varn samuuuuh


                                                   वर्णों की वैज्ञानिकता
               वर्ण संस्कृत भाषा से ही हिंदी भाषा में लिए गए हैं इसलिए उन वर्णों का स्वभाव प्रभाव आदि उसी प्रकार से हिंदी भाषा में भी दिखाई पड़ता है! माना जाता है कि भगवान् शिव की डमरू से जो 14 सूत्र निकले थे उन्हीं सूत्रों में पिरोए हुए वर्ण भगवान् शिव जी से प्रसाद स्वरूप में संस्कृत भाषा को प्राप्त हुए थे संस्कृत भाषा की ही पुत्री हिंदी भाषा है इसलिए देव भाषा संस्कृत के संस्कार और हिंदी के आधार स्वरूप ये वर्ण हिंदी भाषा को अपनी माता संस्कृत भाषा से ही प्राप्त हुए हैं जिनसे ये भाषा  पल्लवित पुष्पित और पली बढ़ी है!
      ये वर्ण कल्पित न होकर अपितु वास्तविक हैं आरंभिक काल में लिपिबद्ध करने के लिए वर्णों की आकृति खोजनी अपरिहार्य हो गई थी उस समय अत्यंत प्राचीन वर्ण वैज्ञानिकों ने वर्णों को लिखने का प्रयास किया! जिस वर्ण का उच्चारण करने पर मुख से जितनी वायु निकलकर समीपस्थ आकाश में ठहर कर जो आकार बना लेती थी उस अक्षर को उसी आकार में लिख दिया जाता था ! इसीप्रकार से ऋषियों ने मंत्रों को देखा और लिख दिया ! " ऋषयः मंत्र दृष्टारः "अर्थात ऋषियों ने मंत्रों को देखा था !उच्चारण करते समय जो मंत्र जैसे दिखाई पड़े वैसे लिख दिए गए !तब से लेकर आज तक अक्षर अर्थात वर्ण लिखने पढ़ने बोलने बताने आदि विचारों के आदान प्रदान के काम तो आते ही हैं किंतु ये इतने तक ही सीमित नहीं हैं अपितु इनकी शक्तियाँ अपार हैं! ये लोगों के आपसी बात व्यवहार को अनेकों प्रकार से प्रभावित करते हैं! कुल मिलाकर मानव व्यवहार में इन वर्णों की बहुत बड़ी उपयोगिता है!
      संस्कृत और हिंदी जैसी भाषाओँ में वर्णों एवं शब्दों को जैसा लिखा जाता है वैसा ही पढ़ा जाता है ऐसे वर्ण एवं शब्द सजीव होते हैं इसीलिए ऐसे सजीव और सिद्ध वर्णों के बोलने का असर विशेष अधिक होता है !सजीव वर्णों में आत्मा होती है इसीलिए अक्षरों के विषय में 'अक्षरब्रह्म' और 'शब्दब्रह्म' जैसे शब्द कहे गए हैं !
      ऐसे सजीव वर्णों को बार बार बोलने से इनका असर अपने ऊपर भी पड़ता है और सुनने वाले पर भी पड़ता है मंत्र भी तो वर्णों के विशिष्ट समूह ही होते हैं उनका पूजा पाठ में प्रयोग किया जाता है! मंत्रों को बार बार बोलने से उनका असर होता है और उनसे शक्ति का सृजन होता है! उनसे साधक लोग असीम शक्तियों का संचय कर लेते हैं! बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान सिद्ध साधक लोग अनंतकाल से वर्णों में समाहित विराट शक्ति का अनुभव भी करते रहे हैं और उससे लोक परलोक दोनों सुधारते रहे हैं!ऐसी मान्यता  है !
वर्णों का प्रभाव पड़ता है जीवन और  समाज पर -   
       प्रत्येक वर्ण का वर्ण विज्ञान की  दृष्टि से भी अपना अपना अलग अलग अर्थ और स्वभाव होता है जब उन्हीं वर्णों के सार्थक समूह से किसी शब्द का निर्माण होता है तब उस संपूर्ण शब्द का अर्थ होने लगता है इसी प्रकार से कुछ शब्दों के सार्थक समूह के द्वारा वाक्य का निर्माण होता है वाक्यों के सार्थक एवं क्रमबद्ध प्रयोग से पृष्ठ पाठ पुस्तक आदि के रूप तक पहुँच जाता है! देखा जाए तो पुस्तक भी तो उन्हीं वर्णों का सार्थक एवं विशाल समूह होता है! बड़ी से बड़ी पुस्तक की भी सबसे छोटी इकाई एक वर्ण ही तो होती है!
     यही स्थिति किसी व्यक्ति और कुछ व्यक्तियों की होती है अंतर इतना है कि वर्णों के विषय में हम जिसे सार्थक समूह कहते हैं व्यक्तियों के विषय में उसे आत्मीय एवं विश्वसनीय माना जाता है! एक व्यक्ति एक वर्ण की तरह होता है और कुछ व्यक्तियों का सार्थक अर्थात अपनेपन से युक्त समूह ही तो परिवार होता है और कुछ व्यक्तिसमूहों का आत्मीय संबंध ही तो समाज होता है और कुछ समाजों समुदायों सम्प्रदायों का आत्मीय एवं विश्वसनीय संबंध या संगठन ही तो राष्ट्र होता है!
    जिस प्रकार से निरर्थक वर्ण समूहों को हम शब्द नहीं मान सकते और निरर्थक शब्द समूहों को हम वाक्य नहीं मान सकते और निरर्थक वाक्य समूहों को लेख पुस्तक आदि नहीं माना जा सकता है उसी प्रकार से पारस्परिक आत्मीयता और विश्वासविहीन संबंधों को संबंध नहीं माना जा सकता है! परस्पर विश्वास विहीन किसी असंगठित भीड़ बाजार मेला रैली आदि को हम परिवार समाज या राष्ट्र नहीं कह सकते अपितु उसमें सम्मिलित लोगों में जब आपसी आत्मीयता और एक दूसरे के प्रति दृढ विश्वास हो ऐसे सजीव समूह को ही समाज अथवा राष्ट्र का अंग माना जा सकता है! इसी प्रकार से सजीव एवं सार्थक वर्ण तथा शब्द समूहों को का सफल प्रयोग ही प्रसिद्धि प्राप्त कर पाता है!
     किसी प्रसिद्ध कविता गद्य या फ़िल्म की कहानी में वर्ण और शब्द तो वही होते हैं केवल उनका प्रयोग  जाने अनजाने  ही सही वर्णविज्ञान की उचितरीति से किया गया होता है! जो वर्ण विज्ञान को नहीं जानते हैं फिर भी यदि कोई अच्छी कविता कहानी आदि लिख लेते हैं और उसी से उन्हें बहुत प्रसिद्धि मिल जाती है! इसका मतलब ये होता है कि उसमें वर्णविज्ञान की उचित रीति का पालन हुआ है ! जैसे आग के स्वभाव से अनजान व्यक्ति भी यदि आग का स्पर्श करले तो आग उसे भी गर्म  ही लगती है! इसीप्रकार से जानकर या अनजाने में वर्णों का प्रयोग वर्णविज्ञान की उचित रीति से किया गया अथवा हो गया है  तब भी उसका असर होता है ! इसका मतलब ऐसा घटित हुआ है तभी तो प्रसिद्धि प्राप्त हुई है!
वर्णों का विशेष प्रभाव-
      किसी गद्य पद्य कविता कहानी फ़िल्म आदि में जितना महत्त्व उसके माध्यम से दिए जा रहे विचारों का होता है उतना ही महत्त्व उसके वर्णन के लिए चुने गए वर्णों और शब्दों के पारस्परिक संबंधों का होता है! यदि वाक्यगत शब्दों एवं शब्दगत वर्णों का प्रयोग अच्छा नहीं हुआ है तो अत्यंत अच्छे विचारों का संग्रह होने के बाद भी ऐसा लेखन लोगों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पाता है! इसीलिए तो बहुत लोगों के पास बहुत अच्छे अच्छे बिचार होते हैं विद्वान होने के कारण वो बहुत अच्छा एवं विद्वत्तापूर्ण लिख भी सकते हैं बहुत लोग लिखते भी हैं! बहुत सुंदर सुंदर किताबें बनवाते लेते हैं बड़े बड़े प्रसिद्ध लोगों से उनका लोकार्पण करवा दिया जाता है पैसे एवं पहुँच के प्रभाव से उनका वैश्विक स्तर पर प्रचार प्रसार किया जाता है! किंतु उन्हें वो लोकप्रियता नहीं मिल पाती है जिस स्तर की वो पुस्तक होती है यही स्थिति नाटक या फिल्मों के निर्माण में भी होती है!
     इसीप्रकार से ही कई लोग भाषण कथा प्रवचन आदि बोलते हैं और उसी के बल पर उन्हें प्रसिद्धि मिल जाती है ऐसे प्रकरणों में उनके द्वारा प्रयोग की जाने वाली भाषा में वर्णों का प्रयोग वर्णविज्ञान की उचित रीति से किया गया होता है!ऐसे ही जो लोग किसी की प्रशंसा करते या गाली देते हैं इन दोनों का प्रभाव सामने वाले पर अलग अलग पड़ता है ऐसी दोनों प्रकार की भाषा में भी उन्हीं वर्णों और शब्दों का प्रयोग हुआ होता है वर्ण तो उतने ही होते हैं!
    कई भविष्यवक्ता लोग प्रश्न करने वाले से किसी फल फूल नदी पर्वत आदि के नाम का उच्चारण करवाकर प्रश्न विज्ञान के माध्यम से उस संबंधित व्यक्ति के मन की बात जान लेते हैं वो कैसी परिस्थितियों में घिरा है वो अच्छा बुरा आदि कैसा समय बिता चुका है और उसका कैसा समय आने वाला है आने वाले समय में उसका कौन काम बनेगा और कौन बिगड़ेगा इसका भी पूर्वानुमान लगा लेते हैं कुछ लोग तो इन्हीं प्रश्नाक्षरों को सुनकर निकट भविष्य में पानी बरसने या न बरसने का पूर्वानुमान लगा लेते हैं !हमारे कहने का अभिप्राय अक्षरों का विस्तार बहुत बड़ा है इसके विषय में अत्यंत बड़े स्तर पर अनुसंधान की आवश्यकता है !
      स्वर वैज्ञानिक योगी लोगों के पास जब कोई व्यक्ति पहुँचता है तो वो जिस अक्षर का पहले प्रयोग करता है या जिस अक्षर का बार बार प्रयोग करता है उन अक्षरों के आधार पर उसके मन की बात और उसके भविष्य का योगी लोग पूर्वानुमान लगा लिया करते  हैं!
     संसार में कोई वस्तु न अच्छी है और न ही बुरी इसलिए जो जिसे पसंद आ जाए वो उसके लिए अच्छी और जो जिसे पसंद न आवे वो उसके लिए अच्छी नहीं होती है! ये सिद्धांत वर्णों पर भी लागू होता है ऐसे ही हर व्यक्ति को कुछ वर्णों से अरुचि होती है और कुछ वर्णों में रूचि होती है! ऐसे लोगों के पास यदि कोई व्यक्ति किसी काम के लिए जाता है तो उस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर एवं उसके द्वारा बातचीत शुरू किए जाने पर पहले शब्द का पहला अक्षर एवं जिन वर्णों का प्रयोग अधिक बार किया जा रहा होता है ये तीनों वर्ण यदि उस व्यक्ति की पसंद के होते हैं तो वो उसकी बात सुनता है उसमें रूचि लेता है और उसका काम करने का प्रयास करता है यदि ये तीनों ही उसकी रूचि के अनुकूल नहीं हुए तो वो रूचि नहीं लेता है काम नहीं करता है! इस प्रकार से संसार का सारा व्यवहार वर्णों के उचित अनुचित प्रयोग पर आश्रित है! 
वर्णविज्ञान से पता लगता है मनुष्य का स्वभाव !-
वस्तुतः वर्णविज्ञान लोगों के स्वभावों को समझने का विज्ञान है! कौन क्या पसंद करता है क्या नहीं! किसे किसकी कौन सी बात या व्यवहार कितना अच्छा या बुरा लग सकता है!ये वर्ण विज्ञान के द्वारा जाना जा सकता है ! अपने विरुद्ध किस नाम के व्यक्ति के द्वारा कही गई बात कौन कितनी सुन और सह सकता है! किस प्रकार के वातावरण में कौन खुश रह सकता है! किसी परिवार, संगठन, संस्था, राजनैतिक दल , सरकार या प्रशासनिक सेवा में कौन किस प्रकार के दायित्व को कितने अच्छे ढंग से निभा सकता है! किस नाम के लड़के और किस नाम की लड़की को यदि एक साथ पति पत्नी के रूप में रहना हो तो उन्हें एक दूसरे के साथ सुख पूर्वक रहने के किए किस किस प्रकार से समझौता करना होगा! एक दूसरे के किस किस प्रकार के बात व्यवहार को नजरंदाज करना होगा! ऐसा ही सब कुछ परिवार की तरह ही व्यापार सरकार अदि में प्रमुख भूमिका निर्वाह करने वाले लोगों के बीच देखा जाता है!
        इसी प्रकार से कोई अवसाद ग्रस्त मनोरोगी काउंसलिंग के रूप में किस प्रकार की बातें पसंद करेगा! वर्णविज्ञान के द्वारा उसके स्वभाव को समझकर वर्ताव किया जा सकता है! किसी परिवार सरकार या संगठन के सदस्यों में आपसी कलह यदि बढ़ता जा रहा हो तो वर्ण विज्ञान के द्वारा उनके स्वभावों का अध्ययन करके उस कलह का कारण और निवारण दोनों खोजा जा सकता है! ऐसे परिवारों सरकारों या संगठनों में जिस सदस्य को जिस प्रकार की भूमिका का निर्वाह करने की भूमिका सौंपी गई है वो भूमिका उसके स्वभाव के अनुरूप नहीं है इसलिए उस भूमिका का निर्वाह करते समय उसके मन में घुटन हो रही होती है जिसके लिए वो किसी न किसी को जिम्मेदार मानकर उससे द्वेष करने लगता है!
वर्णविज्ञान का दुरूपयोग –  
   कई बार वर्णविज्ञान का दुरूपयोग भी होते देखा जाता है गलत मानसिकता वाले लोग वर्णविज्ञान के द्वारा किसी के स्वभाव पसंद नापसंद आदि का पता करके उसी के अनुशार उससे बात व्यवहार करने का नाटक करने लग जाते हैं वो इसे सच्चाई मानकर उन पर भरोसा करने लगता या लगती है! ऐसे नाटकीय आचरण से कई मायावी , स्वार्थी या चालाक लोग बड़े बड़े लोगों को अपने प्रभाव में लेकर अपने स्वार्थ की पूर्ति कर लिया करते हैं! कई लड़के या लड़कियाँ एक दूसरे पर भरोसा कर बैठते हैं बाद में सच्चाई सामने आने पर वे एक दूसरे को छोड़ने पार विवश होते हैं! श्रद्धेय धार्मिक साधूसंतों ज्योतिषियों शास्त्रीयकथाबाचकों जैसा स्वरूप बना बनाकर भिन्न भिन्न स्वरूपों में घूमने वाले फर्जीज्योतिषीतांत्रिककथावाचक आदि ऐसे अनेकों प्रकार के पाखंडी लोग अपनी दुकानदारी चलाने के लिए प्रारंभ में वर्ण वैज्ञानिकों का सहारा ले लिया करते हैं और किसी प्रकार से बड़े बड़े परिवारों के स्त्री पुरुषों के नाम पता कर लेते हैं फिर किसी वर्ण वैज्ञानिक के द्वारा उन्हीं नामाक्षरों के आधार पर उनके स्वभावों आदतों उनकी पसंद नापसंद आदि का पता लगाकर किसी बहाने से उन घरों में पहले तो प्रवेश करते हैं! इसके बाद वर्ण वैज्ञानिक से प्राप्त सलाहों के आधार पर उसी के अनुरूप उस परिवार के उन सदस्यों के साथ उनकी पसंद को ध्यान रखते हुए उनके साथ कपटपूर्ण बात व्यवहार आदि के द्वारा परिवार के उन उन सदस्यों को अपने प्रभाव में ले लिया करते हैं फिर उनके घर में फूट डालकर उनकी संपत्तियों संसाधनों शरीरों आदि का आजीवन सुखभोग किया करते हैं!
     ऐसी परिस्थिति में कई तो चालाक फर्जीज्योतिषी तांत्रिक कथावाचक आदि पाखंडी बाबा लोग उनके शिथिल क्षणों के वीडियो आदि बना कर रख लिया करते हैं जिनके बल पर उन बड़े बड़े परिवारों के लोगों को डरा धमका कर हमेंशा रखा करते हैं उनसे कहते हैं कि यदि मेरी बात नहीं मानी या यदि मेरे सत्संग शिविर आदि में भीड़ बढ़ाने नहीं आए या अपनी बहन बेटी आदि को मेरे सत्संग शिविर प्रवचनों आदि में नहीं भेजा या अपने व्यापार की आमदनी में से मेरे नाम का दसबंद नहीं निकाला तो हम तुम्हारा वीडियो सार्वजनिक कर देंगे!वे बेचारे हैरान परेशान लोग उनके अनुसार चलने को विवश होते हैं !
      ऐसे भयभीत लोग बेचारे अपनी पीड़ा किसी से कह भी नहीं पाते हैं और सह भी नहीं पाते हैं उन्हें न पसंद करते हुए भी उनके यहाँ मजबूरी में चक्कर लगाया करते हैं! अपनी इज्जत बचाए रखने के लिए ऐसे पाखंडियों के दुष्कर्मों को सहते हुए भी उनके यहाँ भीड़ें बढ़ाया करते हैं और उनके गुण गाया करते हैं उनकी सुख सुविधा के लिए साजो सामान भेजा करते हैं उन्हें अपने व्यापार की कमाई का दसबंद निकाल कर हर महीने उन्हीं चालाक फर्जीज्योतिषीतांत्रिककथावाचक आदि पाखंडी बाबा लोगों के पास पहुँचाया करते हैं!ऐसे बाबा लोग उसी धन से सुख सुविधाएँ भोग किया करते हैं !
      कई मामलों में तो परिस्थिति यहाँ तक पहुँच जाती है कि उन घरों के अच्छे खासे पढ़े लिखे शिक्षित समझदार अनुभवी आदि लोग भी ऐसे पाखंडियों की झूठ साँच हर बात का न केवल समर्थन करते अपितु हर बात को मानते देखे जाते हैं! यहाँ तक कि ऐसे पाखंडी बाबा लोग यदि किसी आरोप में जेल तक में बंद हो जाएँ तो भी वे उन पाखंडियों का पीछा नहीं छोड़ पाते हैं उन जेलों की आरती उतारा करते हैं उनकी दण्डवत किया करते हैं! ऐसा करने के लिए उन बाबाओं के गुर्गे उन्हें फोन कर कर के वीडियो सार्वजनिक कर देने का भय देकर डराया धमकाया करते हैं! इसलिए लोग तो बेचारे वीडियो सार्वजनिक होने के भय से वहाँ लाइनें लगा रहे होते हैं दुर्भाग्य से समाज उन्हें श्रद्धालु समझने लगता है!
       कुल मिलाकर ऐसे लोग केवल धर्म के क्षेत्र में ही सक्रिय नहीं हैं अपितु हर एक क्षेत्र में अपनी इसी प्रकार की ऊट पटाँग भूमिकाओं का निर्वाह कर रहे हैं! ऐसे षडयंत्र करने वाले लोग वर्ण वैज्ञानिकों से पहले पता कर लिया करते हैं कि किसे किससे किस प्रकार से भड़काया या अलग किया जा सकता है या किन दो विरोधियों को मिलाकर उनकी आपस में कैसे मित्रता कराई जा सकती है!
       ऐसे लोग ये भी पता लगा लिया करते हैं कि किन दो या दो से अधिक लोगों में आपसी फूट पड़ने की संभावना है और किनमें नहीं है आदि बातों का भी वर्ण विज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं! उसके भविष्यवाणी करने लगते हैं !अनुशार इसप्रकार से वर्ण विज्ञान का दुरुपयोग भी संभव है!
      किसी परिवार , व्यापार, संस्था, संगठन , गठबंधन या राजनैतिक दल आदि को तोड़ने के लिए भी लोग वर्ण विज्ञान का दुरुपयोग कर सकते हैं इससे सतर्कता वरती जानी चाहिए! इसीलिए अपनी जिम्मेदारी समझते हुए ही मैं यहाँ आवश्यक कुछ वर्णों के उदाहरण ही प्रस्तुत कर पाऊँगा अन्यथा सभी वर्णों के विषय में बता देने से वर्णविज्ञान के दुरूपयोग की संभावना अधिक बढ़ जाएगी!
मानसिक समस्याएँ और आधुनिक मनोविज्ञान की सीमाएँ
       वर्तमान समय में अत्याधुनिकतावादी सोच के कारण पुण्य पाप नैतिकता धार्मिकता सदाचार परोपकार आदि का प्रभाव दिनों दिन घटता जा रहा है इसी कारण समाज में अनेकों प्रकार के अपराध बढ़ते देखे जा रहे हैं! लोग जिस प्रकार से किसी की छोटी छोटी बातों से प्रभावित होकर एक दूसरे को दोस्त या प्रेमी प्रेमिका आदि मानने लगते हैं उसी प्रकार से छोटी छोटी बातों से रुष्ट होकर उन्हें दुश्मन भी मानने लगते हैं और वो शत्रुता किसी भी स्तर तक बढ़ती जाती है! किसी के द्वारा कही गई कोई बात या किया गया कोई व्यवहार किसी को कितना बुरा लग सकता है इस बात का अंदाजा कैसे लगाया जा सकता है और उस बात पर संबंधित व्यक्ति किस स्तर से कैसी प्रतिक्रिया देगा इसे कैसे जाना समझा जाए!आधुनिक मनोवैज्ञानिक ऐसे प्रकरणों में दुर्घटनाएँ घटित होने पर कुछ बताने समझाने लगते हैं जबकि ये बात उनके स्तर से बहुत ऊपर की है जिसे समझ पाना उनके बश की बात ही नहीं होती है फिर भी वे जो कुछ समझते हैं उससे सरकारों का ध्यान इधर उधर भटक जाता है और मनोरोग की समस्याएँ बढ़त चली जाती हैं धीरे धीरे सब भूल जाते हैं बातें समाप्त हो जाती हैं जबकि जरूरत ऐसे विषयों पर गहन अनुसन्धान की है जिससे मुख चुराए जाने या केवल खानापूर्ति करने के कारण समाज का वातावरण दिनोंदिन विषैला होता जा रहा है! इससे बचाव की भूमिका में सरकारों के द्वारा बड़े बड़े पदों पर सुस्थापित किए गए बड़े बड़े जिम्मेदार लोग इन जरूरी विषयों में कुछ कर नहीं रहें हैं या कर नहीं पा रहे हैं या मानसिक परिवर्तनों की उन्हें समझ ही नहीं है!जिस अत्याधुनिक चिकित्सा पद्धति में अक्सर देखा जाता है कि सामान्य सर्दी जुकाम तक के विषय में भी चिकित्सा प्रारंभ करने से पहले रोगी की जाँच करवाई जाती है उसके बाद औषधि दी जाती है उस पद्धति में बिना किसी मशीनी जाँच के मानसिक परिवर्तनों को कैसे परखा जा सकता है कुछ लोगों पर  घटित अनुभवों को दूसरे लोगों पर थोपकर उनकी मानसिक समस्याओं को कैसे कम किया जा सकता है! यद्यपि शरीर के हार्डवेयर पर अत्याधुनिक चिकित्सकों के प्रयासों और सफलताओं की जितनी अधिक प्रशंसा की जाए उतनी कम है किंतु शरीर के सॉफ्टवेयर पर उनकी समझ बिल्कुल नहीं होती है !आत्मा मन इन्द्रियों आदि की समझ विकसित किए बिना मानसिक समस्याओं से जूझते समाज को आधुनिक चिकित्सा के नाम पर झूठ मूठ में आखिर कब तक भटकाया जा सकता है !
      वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधानों की पद्धति में शरीर के सॉफ्टवेयर से जुड़ा अध्ययन उपेक्षित होने का दुष्परिणाम है सभी प्रकार के अपराधों का बढ़ना! जो अत्याधुनिक सोच रखने वाले लोग आत्मा मन इन्द्रियों आदि के विज्ञान को विज्ञान नहीं मानते मेरा सम्मानपूर्वक उनसे केवल इतना निवेदन है कि वर्तमान समय बढ़ती हत्या आत्महत्या आदि सभी प्रकार के अपराध अवसाद असहनशीलता आदि मनोविकारों के इतना अधिक बढ़ने का कारण क्या है और इसका निवारण कैसे हो अर्थात इससे बचा कैसे जाए!इसपर भी विचार किया जाना चाहिए !
         छोटी छोटी बातों पर हत्या आत्महत्या , अत्यंत छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार , तनाव, असहनशीलता आदि मानसिक विकारों से समाज को बचाना मनोवैज्ञानिकों की नैतिक एवं कर्तव्य संबंधी जिम्मेदारी है जिसका उचित निर्वाह होना ही चाहिए! जिसके अभाव में घटित हो रही हैं अनेकों प्रकार की आपराधिक दुर्घटनाएँ! ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए आधुनिक मनोचिकित्सकों की सीमाएँ क्या हैं मुझे पता नहीं किंतु मुझे इतना अवश्य पता है कि वर्णविज्ञान और समयविज्ञान जैसे महान वैज्ञानिक अनुसंधान ऐसी परिस्थितियों से निपटने में काफी अधिक सहायक हो सकते हैं!
स्वभावों की समझ होने से टाली जा सकती हैं कई प्रकार की दुर्घटनाएँ
        वर्तमान समय में बढ़ती आपराधिक घटनाएँ दिनोंदिन चुनौती का विषय बनती जा रही हैं छोटी छोटी बातों पर कोई मित्र अपने मित्र की हत्या कर देता है आत्म हत्या कर लेता है! प्रेमी अपनी प्रेमिका की या प्रेमिका अपने प्रेमी की हत्या करवा देती है! इसी प्रकार से पति पत्नी दोनों को एक दूसरे की हत्या करवा देने के अनेकों उदाहरण दिखाई सुनाई पड़ते हैं! कोई स्त्री या पुरुष अपने भाई भाभी पति या पत्नी पिता माता पुत्र पुत्री आदि किसी भी सगे संबंधी की हत्या कर देता है! स्कूल में किसी बच्चे की कोई दूसरा बच्चा हत्या कर देता है! किसी व्यापारी की हत्या उसका ही साझीदार कर देता है किसी नेता की हत्या कोई दूसरा नेता कर देता है ऐसी परिस्थितियों में किसी पर विश्वास कैसे किया जाए और बिना विश्वास किए किसी के साथ संबंध कैसे बनाए जाएँ और बिना संबंधों के अकेला जीवन जीना कहाँ तक कितना संभव और सार्थक है! 'वसुधैवकुटुंबकं' अर्थात सारी पृथ्वी को अपना परिवार मानने की अवधारणा लेकर जीने वाला समाज इतने छोटे छोटे स्वरूपों में समिट गया कि आज बहुत से पति पत्नी आदि आवश्यक परिवार के लोग भी एक दूसरे के साथ रहना बोझ समझने लगे हैं! मनुष्य इतना अकेला पड़ चुका है इससे अधिक अकेलापन आखिर और क्या होगा! इसलिए ऐसी प्रवृत्तियों को रोकने के लिए प्रयास किया जाना अभी से आवश्यक है खोजा जाना चाहिए कि ऐसी सोच के वास्तविक कारण आखिर क्या हैं! इस विषय को वर्ण विज्ञान की दृष्टि से भी समझा जाना अत्यंत आवश्यक है!
       वस्तुतः संसार में विभन्न प्रकार के स्वभाव वाले लोग रहते हैं उन सबके विचार अलग अलग होते हैं पसंद नापसंद अलग अलग होती है।ऐसे भिन्न भिन्न स्वभाव वाले लोगों के समूह में ही हम और आप लोग भी हैं! हमारे और आपके भी विचार व्यवहार , पसंद नापसंद आदि भी वैसे ही हैं!
       इसके लिए सबसे पहले आवश्यक है कि कोई भी संबंध बनाते समय उतावलापन नहीं होना चाहिए तथा जो संबंध बनावे उसे बनाने से पहले उसे निभाने के विषय में जरूर सोचा जाना चाहिए! इसके लिए सर्व प्रथम हमें हमारे स्वभाव की पक्की समझ होनी चाहिए उसके बाद जिससे संबंध बनना है उसके स्वभाव की पूर्ण समझ होनी चाहिए!
       वैसे भी हमें जिनके साथ रहना खाना खेलना पढ़ना लिखना काम काज करना या जीवनयापन करना होता है! प्रेम संबंध , प्रेम-विवाह या विवाह मित्रता आदि करनी होती है उनके स्वभाव सोच आदि के विषय में भी अपने को जानकारी रखनी चाहिए कि उसकी पसंद नापसंद क्या है उनके विचार व्यवहार कैसे हैं आदि बातों का अध्ययन करके उसके अनुशार ही उसके साथ संबंधों का निर्वाह किया जा सकता है। उसी के अनुशार ही हमें ऐसे लोगों के साथ बात व्यवहार रखना चाहिए!
       कुल मिलाकर जिनका स्वभाव विचार पसंद नापसंद आदि जिससे मिल रहे होते हैं उन लोगों के साथ हमारे संबंधों का निर्वाह अच्छा हो जाता है इसके अतिरिक्त जिनके साथ ऐसा नहीं होता है उनके साथ यह पता होते हुए भी कि हमारे संबंधों का निर्वाह नहीं होना है किन्तु किसी मजबूरी मेंउनके साथ संबंध रखने ही होते हैं ऐसे लोगों के विषय में भी हमें पता होना चाहिए किनके साथ कैसे और किस सीमा तक निभाए जा सकते हैं संबंध और उनके लिए किस किस व्यक्ति से किस किस प्रकार का वर्ताव करना होगा और कितना सहना होगा आदि उसी हिसाब की तैयारी कर के निभाए जा सकते हैं संबंध।
      यदि ऐसी तैयारी न करके चला जाए तो इस बात का पता कैसे लगाया जा सकता है कि हमारे किस प्रकार के वर्ताव से कौन व्यक्ति प्रसन्न रह सकता है! इसके अलावा जो व्यक्ति जिससे कोई लालच रखता है , जिससे कोई काम लेना चाहता है , जिसे प्रेमी या प्रेमी के रूप में पसंद करने लगता है आदि ऐसे सभी प्रकार के स्वार्थ साधन के लिए वो अपने वास्तविक स्वभाव से अलग हटकर कुछ समय के लिए बनावटी स्वभाव  धारण करके उसके साथ अच्छा वर्ताव करने लग जाता है अपना काम निकलते ही वो फिर अपनी वास्तविक प्रकृति में आ जाता है और उसके साथ अपने विचारों के आधार पर वर्ताव करने लग जाता है! जिससे सामने वाले को लगता है कि इसने हमें धोखा दिया है जबकि वो अपने वास्तविक स्वभाव के अनुशार ही वर्ताव कर रहा होता है! जीवन में कभी भी किसी के भी सामने जब ऐसी परिस्थिति आवे तो उसे आगे बढ़ने से पहले वर्ण विज्ञान का सहारा अवश्य ले लेना चाहिए इससे उसके साथ धोखाधड़ी करने या होने की गुंजाइस ही नहीं रह जाती है!
संबंधों के विषय में आवश्यक सावधानियाँ
      संबंधों के बनने या बिगड़ने में अन्य कारणों के साथ साथ वर्ण विज्ञान की भी महत्वपूर्ण भूमिका है इसलिए सभी वर्णों अर्थात व्यक्तियों के लिए आवश्यक होता है कि वे जिस भी क्षेत्र में जिस भी प्रकार का जो भी नया संबंध बनाने जा रहे हैं उस व्यक्ति के वर्ण के साथ अपने वर्ण को मिलाकर पहले इस बात का पूर्वानुमान लगा लें कि मेरे साथ उससे निभेगा कितना और यदि बिगड़ेगा तो कहाँ तक तथा किस विषय में हमें उससे कितना समझौता करना पड़ सकता है एवं यदि बात बिगड़ी तो उससे कितनी चोट मिल सकती है! इससे अपना काम बनाने के लिए मुझे किस किस प्रकार से बात करनी होगी !
      जिसके साथ संबंध न चलने लायक हों उसके साथ भी संबंध चलाना यदि बहुत ही आवश्यक हो तो यह भी जान लेना चाहिए कि उस व्यक्ति के साथ संबंध चलाने के लिए हमें उसकी कौन कौन सी आदतें न चाहते हुए भी सहनी पड़ेंगी! किस किस विषय में उसके साथ वाद विवाद करने से बचना होगा और किस सीमा तक उसका विश्वास किया जा सकता है! वह अपने मन की कोई गंभीर बात बताने लायक है अथवा नहीं आदि विषयों पर वर्णविज्ञान एवं समयविज्ञान के द्वारा पूर्वानुमान अवश्य लगा लेना चाहिए !
      ऐसे ही किसी भी प्रकार के प्रेम या मित्रता के संबंध बनावे नाते रिश्तेदारी करे या उसके साथ व्यापारिक साझेदारी करनी हो या किसी संगठन राजनैतिक दल आदि में साथ साथ काम करना हो या उस व्यक्ति पर किसी भी रूप में विश्वास करना हो या उसे कोई ऐसी जिम्मेदारी सौंपनी हो जिससे अपना कोई लाभ हानि होना संभव हो या उसके साथ जीवनयापन करने जैसा कोई निर्णय लेना हो तो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से अपने नाम के साथ एक बार विचार अवश्य करे! कुल मिलाकर संसार में वर्णों और व्यक्तियों की भूमिका बिल्कुल एक जैसी होती है!उसे भी समझा जाना चाहिए !
     वस्तुतः सुख और संपन्नता के समय बहुत लोगों से संबंध बन जाते हैं जो अपने से लगने लगते हैं किंतु मुसीबत के समय वे सभी संबंधी छोड़ छोड़कर भाग जाते हैं क्योंकि वे संबंध स्वभाव से नहीं अपितु प्रभाव से बने होते हैं! इसलिए प्रभाव घटते ही ऐसे संबंध टूट जाया करते हैं जबकि ऐसे समय उनकी आवश्यकता अधिक होती है अन्यथा एक ओर परेशानियाँ तो दूसरी ओर स्वजनों का असहयोग और उनका साथ छोड़कर चला जाना इससे दोगुना तनाव हो जाता है इसलिए संबंध स्थायी होने चाहिए उनकी आवश्यकता ही विपरीत समय में अधिक होती है इसलिए संबंध अधिक लोगों से भले ही न बनें किंतु जिनसे बनें उनसे निर्वाह होना ही चाहिए! इसलिए कुशल जीवन जीने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए वर्णविज्ञान के विषय में ज्ञान रखना बहुत आवश्यक होता है!
संबंधों के बनने बिगड़ने का प्रमुख कारण है वर्णविज्ञान-
    अक्षरब्रह्म और शब्दब्रह्म जैसी बातों से ये स्पष्ट हो ही जाता है कि वर्णों को सजीव माना गया है इसका मतलब अक्षरों में आत्मा होती है जिसका अनुभव उनके स्वभाव के अनुशार किया जा सकता है सजीव वर्णों का अपना अपना स्वभाव होता है और स्वभाव के अनुशार ही सजीवों में परस्पर संबंधों की परम्परा होती है इसीलिए वर्णों और वर्णसमूहों में भी परस्पर मित्र शत्रु सम आदि संबंध होते हैं! सजीवों में प्रजातियाँ होती हैं इसीप्रकार से वर्णों में भी प्रजातियाँ होती हैं! प्रत्येक वर्ण एवं वर्णों की प्रजातियों के हिसाब से एक दूसरे वर्ण के साथ अपना कोई न कोई व्यक्तिगत संबंध अवश्य होता है! वो आपसी संबंध मित्रता का हो या शत्रुता का हो या समानता का हो या स्वार्थ का हो किंतु सभी वर्णों व्यक्तियों में कोई न कोई निजी संबंध अवश्य होता है!
      जिस व्यक्ति के नाम का जो पहला अक्षर होता है वर्ण विज्ञान की दृष्टि से वही उसका वर्ण माना जाता है! उस अक्षर के स्वभाव का असर उस व्यक्ति के स्वभाव आचार व्यवहार आदि पर पड़ता है! उस अक्षर का उस व्यक्ति पर इतना बड़ा प्रभाव पड़ता है कि उसका स्वभाव उस अक्षर की तरह बनता चला जाता है और जैसा स्वभाव होता है वैसी सोच बनती चली जाती है! जिन दो वर्णों के आपस में एक दूसरे के साथ जैसे संबंध होते हैं उन वर्णों से प्रारंभ नाम वाले लोगों के भी आपस में एक दूसरे के प्रति वैसे ही विचार बनने लग जाते हैं वैसे ही संबंध बनते बिगड़ते देखे जाते हैं! नाम के प्रथम वर्ण का इतना बड़ा असर होता है!
       जिस अक्षर के व्यक्ति को जिस अक्षर के व्यक्ति के साथ काम करने के लिए रखना होता है या किसी आफिस विभाग व्यापार संगठन संस्था पार्टी या सरकार में किसी को किसी से सीनियर या जूनियर बनाकर रखना होता है उन दोनों के मध्य संबंध मधुर बने रहें एवं जिस लक्ष्य के लिए उन्हें रखा जा रहा होता है उस लक्ष्य की पूर्ति मधुरता पूर्वक होती रहे इसके लिए उन दोनों को इतना तो  पहले से ही पता होना चाहिए कि उन्हें प्रेम पूर्वक एक साथ काम करने के लिए उनमें से किसे आपस में किस प्रकार से एक दूसरे के साथ कितना समझौता करना होगा! कौन अक्षर किस अक्षर से ऊपर रह सकता है और कौन अक्षर किस अक्षर से नीचे रहना पसंद करेगा! यदि इसके अनुशार वर्णों का स्वभाव समझते हुए आपस में एक दूसरे के साथ व्यवस्थित किया गया तो उन दोनों वर्णों से संबंधित लोग एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक रह पाते हैं!
वर्णविज्ञान बनाए रखता है संबंधों की मिठास-
     सभी लोग बराबर नहीं हो सकते हैं इसलिए बराबरी की भावना  नहीं चाहिए क्योंकि संबंध छोटे बड़े बनकर ही चलाए और निभाए जा सकते हैं ! पहले संयुक्त परिवारों में कई कई लोग एक साथ रहा करते थे जहाँ आपस में एक दूसरे से कुछ लोग बड़े होते थे और कुछ छोटे होते थे ! बड़ों के साथ छोटा और छोटों के साथ बड़ा बनकर बहुत सारे लोग एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक रह लिया करते थे! क्योंकि छोटा बड़ा बने बिना एक दूसरे के साथ निर्वाह कर पाना अत्यंत कठिन होता है! मिलनसारिता के इस सिद्धांत को नकारते हुए वर्तमान समय में हर कोई बराबरी का पक्षधर है! वस्तुतः आपसी बराबरी ही सभी संबंधों की मधुरता को समाप्त कर देती है!धीरे धीरे संबंध भी समाप्त हो जाते हैं !
         माँ और पत्नी दोनों स्त्री जाति से हैं किंतु दोनों की भूमिका में बहुत बड़ा अंतर है एक संबंधों को बनाती तो दूसरी संबंधों को समाप्त करती है! दोनों भाई आपस में जब जब लड़ते हैं तो माँ छोटा बड़ा करके उनके विवाद को समाप्त कर देती है! बड़े लड़के को यह कहकर समझा देती है कि होगा वो तुमसे छोटा है उसे क्षमा कर दो! वहीँ छोटे से कह देती है वो तुमसे बड़े भाई हैं उनके ऊपर गुस्सा नहीं किया जाता है! वो दोनों भाई समझ जाते हैं और दोनों प्रेम पूर्वक रहने लगते हैं! वहीँ जब वो दोनों लड़कर अपनी अपनी पत्नियों के पास जाते हैं तो दोनों उन्हें समझाती हैं कि तुम डरते क्यों हो अधिकार तो दोनों का बराबर है इस बराबरी में दोनों भाई झगड़ जाते हैं! दिनोंदिन दूरियाँ बढ़ती चली जाती हैं इसलिए ये मित्रता के सिद्धांत के ही विरुद्ध है!
      उदाहरण स्वरूप यदि बाल्टी और लोटे को मिलाना हो तो लोटे को उठाकर बाल्टी में डाल देने से दोनों को एक कर दिया जाता है किंतु दो बराबर लोटों को एक दूसरे के अंदर नहीं डाला जा सकता है! इसीप्रकार से सम्बन्ध छोटा बड़ा बनकर ही निभाए जा सकते हैं!
      वर्तमान समय में इस भावना का दिनोंदिन ह्रास होता चला जा रहा है कोई छोटा बनने को तैयार ही नहीं है हर किसी को लगता है कि सामने वाला केवल हमारी बात माने! इसलिए हर कोई अपनी अपनी बात मनवाने के लिए संबंध बिगाड़ता घूम रहा है! जब तक जिसका जिससे स्वार्थ रहता है तब तक तो वो अच्छी बुरी सभी बातें मान भी लेता है किंतु स्वार्थ समाप्त होते ही वो संबंध समाप्त कर लेता है! ऐसी ही तमाम प्रकार से परिस्थितियाँ बिगड़ने के कारण बड़े बड़े परिवार छोटे होते चले गए! फिर धीरे धीरे पति पत्नी में बड़े छोटे पर विवाद होने लगा तो वहाँ भी और विवाद बढ़ते और संबंध टूटते ही चले जा रहे हैं !
      जातियों में बराबरी करके उन्हें आपस में लड़ाया जा रहा है धर्मों में बराबरी करके धर्मावलंबियों को लड़ाया जा रहा है स्त्री पुरुषों लड़के लड़कियों में बराबरी करके सबके बीच में विवाद के बीज बोए जा रहे  हैं ! इस कारण से सबको एक दूसरे का दुश्मन बनाया जा रहा है! यही कारण है कि जगह जगह हत्याएँ मारकाट आदि अपराध बढ़ते जा रहे हैं! क्योंकि सबको एक बराबर नहीं किया जा सकता है हाथों की पाँचों अँगुलियाँ एक बराबर नहीं होती हैं !इसीलिए तो संबंधों के नाम पर जगह जगह धोखाधड़ी एवं छलावा बढ़ता जा रहा है! ऐसी परिस्थिति में लोगों के आपसी संबंधों को बनाए एवं बचाए रखने के लिए वर्णविज्ञान की बहुत बड़ी भूमिका है !
       वर्णों का असर बातों विचारों और व्यवहारों पर भी पड़ता है! किसी के साथ बात करते समय हमारे विचारों और व्यवहारों का असर तो पड़ता ही है साथ ही हमारे द्वारा प्रयोग किए जाने वाले वर्णों का भी असर होता है! हम किसी के लिए जैसे बिचार प्रकट करते हैं उसके ऊपर वैसा असर पड़ता है!
       जब हम किसी से बात कर रहे होते हैं तब यदि वो हमारा मित्र है तो हम उसकी बात मित्र भावना से सुनते हैं उसके द्वारा हमारे लिए प्रयोग की गई कई हल्की बातों का भी हम बुरा नहीं मानते हैं इसी प्रकार से जिससे हमारी शत्रुता होती है उसकी कही हुई अच्छी बातों को भी हम शंका की दृष्टि से देखते हैं! ठीक इसीप्रकार से वर्णों का भी अपना स्वभाव और अपने शत्रु मित्र आदि वर्ण होते हैं उसी हिसाब से वर्णों के प्रयोग का भी सामने वाले पर प्रभाव पड़ता है! इसलिए विचार व्यक्त करने वाले के नाम का पहला अक्षर एवं विचारों की शुरुआत करते समय का पहला अक्षर एवं विचारों का शुभारंभ करते समय के पहले अक्षर में हम जैसे वर्णों अर्थात शब्दों का प्रथम प्रयोग करते हैं क्योंकि परिणाम पर उसका भी असर पड़ता है!
      जिस व्यक्ति से हमें बात करनी है उस व्यक्ति के अपने नाम के पहले अक्षर की जिन वर्णों से शत्रुता हो बात प्रारंभ करते समय उन वर्णों के प्रथम प्रयोग से बचा जाना चाहिए क्योंकि बात के परिणाम पर उसका भी असर होता है! इसके अलावा जिस व्यक्ति से बात करने जाना है उस व्यक्ति के नाम के पहले अक्षर के साथ अपने नाम के पहले अक्षर का संबंध कैसा है इस बात का भी विचार किया जाना चाहिए!
     यद्यपि किसी के साथ सभी बातों को करने के लिए ऐसी कठिन प्रक्रिया का पालन करना संभव नहीं है फिर भी विशेष बातों विचारों संबंधों विशेष व्यावसायिक विषयों एवं राजनैतिक प्रकरणों पर बात व्यवहार करते समय या किसी से नए नए मित्रता संबंध स्थापित करते समय वर्ण विज्ञान का उपयोग करके अच्छा लाभ लिया जा सकता है और संबंधित विवादों से बचा जा सकता है!
      वर्णों के प्रभाव को स्वीकार करते हुए ही पुराने लोग किसी के पास जब मिलने जाया करते थे तो वार्ता की शुरुआत ही मंगल सूचक शुभ शब्दों के प्रयोग से किया करते थे! 'नमस्ते' 'राम' 'राम' या अन्य अभिवादन सूचक शुभ शब्दों से अपने विचार प्रकट करना प्रारंभ किया करते थे!
       वस्तुतः वर्ण अपने अपने स्वभाव के अनुशार ही फल देते हैं विशेष बात ये भी है कि अपने विचार प्रकट करने के लिए जिन वर्णों का प्रथम प्रयोग किया जाता है उन वर्णों के उचित और अनुचित प्रयोगों से लोगों के आपसी संबंध बनते बिगड़ते देखे जाते हैं! वर्ण लोगों के बात व्यवहार तथा जीवन की दशा और दिशा ही बदल दिया करते हैं!
     अपने जिन दो लोगों के नाम के पहले अक्षरों की आपस में मित्रता होती है! ऐसे नाम वाले यदि अपरिचित लोग भी हों जिनसे पहली बार मिल रहे होते हैं वो भी उन्हें अपने से लगने लगते हैं और कुछ ही देर में  उसके साथ घुल मिल जाते हैं उसे अपना मित्र या शुभ चिंतक समझने लगते हैं!यहाँ तक कि यात्रा करते समय ट्रेन आदि में कई लोग एक साथ एक दूसरे के आसपास  बैठे होते हैं उनमें से किसी एक या दो के साथ हमारी बातचीत मधुरता पूर्वक होने लगती है बाकी के साथ ऐसा नहीं हो पाता है !इस प्रकार से नाम के प्रथम अक्षरों में बहुत अधिक शक्ति होती है! ऐसे लोग शत्रु अक्षरों से संबंधित देशों प्रदेशों शहरों गाँवों से अरुचि रखने लगते हैं! यही कारण है कि कोई कलकत्ते में रहने वाला व्यक्ति यह जानते हुए कि जूस कलकत्ते में भी बिकता है फिर भी कलकत्ते को छोड़कर वो दिल्ली आकर यहाँ  जूस बेचने का काम करते देखा जाता है! इसीप्रकार दिल्ली का व्यक्ति कलकत्ते में जूस बेचने गया होता है! क्योंकि दोनों के नाम के पहले अक्षर उन उन शहरों के नाम के पहले अक्षरों के मित्र नहीं होते हैं! ये वर्ण विज्ञान का चमत्कार है!इसलिए दोनों को अपने अपने शहर नहीं फल रहे होते हैं !
     इसीप्रकार से उदाहरण के लिए पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमानअटल विहारी वाजपेयी जी ने पाकिस्तान के साथ जो शांति पहल की थी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से अटल जी का वह प्रयास केवल नवाज शरीफ को तो अपनी ओर प्रभावित कर सकता था किंतु पाकिस्तान और परवेज मुशर्रफ का स्वाभाविक चिंतन अटल जी के प्रयासों के प्रति सकारात्मक नहीं हो सकता था! इसके साथ ही चूँकि वर्ण विज्ञान की दृष्टि से पाकिस्तान और परवेज मुशर्रफ में आपस में एकाक्षरी दोष है इसलिए परवेज मुशर्रफ पाकिस्तान के विषय में कभी कुछ अच्छा सोच ही नहीं सकते हैं इसलिए वो प्रयास सफल नहीं हो पाया! ऐसा ही अन्य प्रकरणों में भी वर्णविज्ञान की दृष्टि से विचार किया जाना चाहिए!
       वैसे तो मनुष्य की सोच पर तीन बातों का बड़ा असर पड़ता है पहला उसके नाम के पहले अक्षर का जैसा पहला अक्षर होता है वैसा स्वभाव बनता है!, दूसरा समय का असर पड़ता है जिसकी विशद चर्चा अपनी समय विज्ञान पुस्तक में मैंने कर रखी है उसके अनुशार किसी व्यक्ति के ऊपर उस समय पड़ रहे समय के प्रभाव स्वभाव में जैसा समय होता है  तीसरा उसके आस पास चल रहीं वर्तमान परिस्थितियों का असर भी पड़ता है !, किंतु इसमें विशेष बात ये है कि किसी भी व्यक्ति के ऊपर पड़ रहा समय का प्रभाव बदलता रहता है इसी प्रकार से किसी व्यक्ति के आस पास की परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं! इसलिए किसी भी व्यक्ति के जीवन पर पड़ने वाला समय और परिस्थितियों का प्रभाव हमेंशा एक जैसा नहीं रहता है उसमें बदलाव होते ही रहते हैं! किंतु नाम का पहला अक्षर तो स्थायी रहता है इसलिए उस अक्षर का मनुष्य पर पड़ने वाला प्रभाव भी स्थायी ही होता है !अक्षर विज्ञान के अनुसार किसी व्यक्ति के स्वभाव और सोच को समझना विशेष आवश्यक है! इससे उस व्यक्ति के विचारों के विषय में अनुमान लगाया जा सकता है!
संबंधों के बिना जीवन अधूरा है!
      मनुष्य स्वभाव से ही समूह में रहता रहा है इसलिए अपना अपना समूह बनाने के लिए संबंध तो हर किसी को बनाने पड़ते हैं सबसे मिले जुले बिना अकेला जीवन किसी का नहीं चलता है! आवश्यकता इस बात की होती है जो संबंध बनें वो फिर बिगड़ें न बने ही रहें! क्योंकि इस छोटे से जीवन में किसी संबंध को बनाने में फिर उसके प्रति एक दूसरे का विश्वास जीतने में बहुत समय लग जाता है! ऐसा करने में एक दूसरे के पास एक दूसरे की कच्ची पक्की बातें ब्यवहार आदि पहुँच चुके होते हैं जब संबंध बिगड़ते हैं तब वो बातें व्यवहार आदि बाहर आने लगते हैं जिससे दोनों पक्षों को तनाव भय चिंता होना स्वाभाविक है कई बार तो उनसे शत्रुता पनपनी प्रारंभ हो जाती है! जो किसी बड़ी समस्या को जन्म दे जाती है!
     इसलिए कोई भी व्यक्ति जब किसी व्यक्ति से कोई संबंध बनाता है उसी समय यदि वो चाह ले तो उस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर पता करके उसके आधार पर वर्ण विज्ञान की मदद से इस बात का पूर्वानुमान लगाया सकता है! उस व्यक्ति का इस व्यक्ति के साथ जो संबंध बन रहा है या मित्रता हो रही है वो टिकाऊ होगी या नहीं! उसे टिकाऊ बनाए रखने के लिए किस किस प्रकार की सहनशीलता सावधानी आदि दोनों ओर से बरती जानी चाहिए! यदि दोनों पक्ष उस प्रकार से सहनशीलता पूर्वक एक दूसरे का साथ देते हुए एक दूसरे के साथ निर्वाह करना चाहते हैं तो ठीक अन्यथा पहले ही संयम पूर्वक संबंधों को बहुत आगे तक नहीं बढ़ने देते हैं!या फिर मर्यादा की कोई सीमा रेखा खींच लेते हैं !
     संबंधों की आवश्यकता हर किसी को हर समय पड़ती है! घर में पारिवारिक संबंध होते हैं व्यापार में व्यापारिक सम्बन्ध होते हैं किसी संगठन में संगठनात्मक संबंध होते हैं! राजनैतिक दल में उस हिसाब के सम्बन्ध होते हैं निजी कार्यक्षेत्रों में कंपनियों में या सरकारी विभागों में अथवा सरकारों में उस प्रकार के सम्बन्ध होते हैं! संबंधों का प्रकार कोई भी हो किंतु संबंधों के बिना किसी का किसी के साथ निर्वाह नहीं हो सकता है! संबंध जिसका भी जिसके साथ हो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से उन दोनों को पता होना चाहिए कि जिसका जिसके साथ जो भी संबंध है उस संबंध का विश्वास किस क्षेत्र में कितना किया जा सकता है! उनकी एक दूसरे के प्रति आस्था कितनी है और किस स्थिति तक वे दोनों एक दूसरे को धोखा नहीं दे सकते हैं! इसकी जाँच एक मात्र वर्णविज्ञान से ही की जा सकती है!
      संबंध महत्वपूर्ण हैं वो मालिक नौकर के हों या अधिकारी और चपरासी के हों! आपसी संबंध तो होते हैं जिनके बिना उनका आपसी अविश्वास बना रहता है! कई बार सुना जाता है कि नौकर या चपरासी बड़े बड़े मालिकों या अफसरों को अपना जूठा खाना छिपकर खिला देता है या उनकी चाय आदि में थूक कर उन्हें पीने को दे देता है! ऐसी सभी हरकतों के द्वारा वो अपने छोटे माने जाने का बदला इसी प्रकार से ले लिया करता है! क्योंकि वर्णविज्ञान की दृष्टि से वो छोटा नहीं होता है ये उसी बराबरी की भावना का परिणाम है और वो अपना अपमान सह नहीं पा रहा होता है !
       प्रत्यक्ष रूप से जो चपरासी या नौकर है नौकरी की मज़बूरी या पैसे की मजबूरी से न चाहते हुए भी उसे नौकरी करनी पड़ती है किंतु वर्ण विज्ञान के विपरीत होने से उनकी आस्था एक दूसरे के प्रति नहीं बन पाती है! इसलिए उस व्यक्ति के मन में अपने उस अधिकारी या मालिक के प्रति आस्था प्रेम आदि बिल्कुल नहीं हो पाता है अपितु एक दूसरे के प्रति भयंकर अविश्वास होता है फिर भी उसकी नौकरी करना मजबूरी होता है ऐसी ही परिस्थिति में सबक सिखाने के लिए नौकर लोग मालिकों के साथ या चपरासी आदि लोग अपने अधिकारियों के साथ या उनके परिवारों के साथ भी विश्वासघात करते देखे जाते हैं!
     इसीप्रकार से प्रेम संबंधों या प्रेम विवाहों में दुर्दशा भोगनी पड़ती है! आजकल बच्चों का विवाह विलम्ब से होता है किंतु उन्हें शारीरिक सुखों की भूख तो समय से लगनी शुरू हो जाती है वैसे भी वे कोई ब्रह्मचारी तो होते नहीं हैं! ऐसी परिस्थितियों में विवाह होने तक का समय पास करने के लिए उन्हें शारीरिक सुख प्रदान करने वाला कोई विपरीत लिंगी जीवन साथी चाहिए होता है! जिसे पाने के लिए उन्हें चाहें जितना झूठ बोलने पड़े चाहे जितनी झूठी कसमें खानी पड़ें या चाहें जितने झूठे आश्वासन देने पड़ें शारीरिक सुख की चाहत में वो सबकुछ करते हैं फिर दूसरा तीसरा आदि पकड़ते छोड़ते रहते हैं! उनकी बातों का भरोसा करके संबंधित स्त्री पुरुष उस मूत्रता को मित्रता समझने की भूल किया करते हैं और बासनात्मक शरीर दान किया करते हैं बाद में जब उसका वास्तविक स्वभाव सामने आता है तब संबंध बिगड़ जाते हैं! ऐसे लोग यदि चाहें तो सम्बन्ध प्रारंभ होने से पूर्व ही दोनों के नाम के पहले अक्षर के आधार पर वर्ण विज्ञान की मदद से इस बात का पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि ये सम्बन्ध चलेगा कब तक! उसके अनुशार अपना शरीर सौंपने या न सौंपने का निर्णय आप स्वयं ले सकते हैं!
     कुलमिलाकर वर्तमान जीवन शैली में सबसे बड़ा संकट संबंधों पर अविश्वास का है अत्यंत घनिष्ठ संबंधों या नाते रिश्तेदारियों में भी लोग एक दूसरे के साथ धोखा धड़ी घात प्रतिघात आदि करने लगे हैं इसलिए किसी पर भरोसा करना दिनोंदिन कठिन होता जा रहा है! संबंध बिगड़ते जा रहे हैं लोग छोटी छोटी बातों पर अत्यंत नजदीकी संबंधों को भी बिना बिचार किए तोड़ दिया करते हैं इसलिए हर कोई मानसिक दृष्टि से अकेला होता चला जा रहा है! पति पत्नी तलाक लेने लगे हैं! ऐसी परिस्थिति में वर्ण विज्ञान बहुत मददगार सिद्ध हो सकता है!
वर्ण विज्ञान में वर्णों अर्थात अक्षरों का स्वभाव
     प्रत्येक अक्षर का अपना अपना स्वभाव होता है जिस व्यक्ति के नाम का जो पहला अक्षर होता है उस अक्षर के स्वभाव के अनुशार ही उस व्यक्ति का स्वभाव बनता चला जाता है! वो उसी के अनुरूप अपना प्रभाव दिखाता है! ऐसे वर्णों से संबंधित लोगों का जिस किसी से किसी भी प्रकार का संबंध बनता है उस संबंध में एक या उससे अधिक जितने भी सदस्य होते हैं! उनमें से उस संबंध कार्य या दायित्व निर्वाह में जो भी सदस्य महत्त्व पूर्ण भूमिका निभा रहे होते हैं! उन सबके नाम के पहले अक्षर के स्वभाव के अनुशार ही उनके साथ संबंध निर्वाह करने की भावना बन पाती है!
       व्यवहारिक जगत के हिसाब से जो व्यक्ति किसी भूमिका में है जबकि उसका दूसरा सहयोगी उससे बड़ी भूमिका में है किंतु उसका प्रथमाक्षर वर्ण विज्ञान की दृष्टि से पहले वाले से छोटा है! ऐसी परिस्थिति में वो कितने भी बड़े पद पर क्यों न हो उसे सम्मान देने की भावना पहले वाले के मन में होगी ही नहीं! इसके साथ ही वो हमेंशा ऐसा ही प्रयास करता रहेगा जिससे उसके उस बड़े अधिकारी मालिक मंत्री मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री  आदि का अपयश हो उसकी छवि ख़राब हो उसका नुकसान अपमान आदि वो सब कुछ हो जिससे उसके दिमाग को दबाया जा सके! ऐसे प्रतिशोध की कीमत अक्सर सरकारों को चुकानी पड़ती है !वर्ण विज्ञान जनित ऐसे दुर्भावनापूर्ण वर्तावों के कारण कई बड़े बड़े स्थापित परिवार प्रतिष्ठान उद्योग व्यापार कंपनियाँ संगठन राजनैतिक दल सरकारें समुदाय आदि धीरे धीरे बर्बाद होते चले गए किसी को पता भी नहीं लग सका कि इसका कारण क्या था ! इसलिए अक्षरों का स्वभाव समझना बहुत आवश्यक है!
वर्णविज्ञान से जाँचा जा सकता है कि किसका भाव किसके प्रति कैसा रहेगा?
       किसी परिवार के सदस्यों के बीच या पति पत्नी आदि के आपसी संबंधों में यदि अकारण एक दूसरे के प्रति अविश्वास या शंका बनी रहती हो इसलिए परिवार के सदस्य एक दूसरे के प्रति भरोसा न कर पाते हों! ऐसी भावना एक दूसरे के प्रति काफी लम्बे समय से देखी जा रही हो तो ऐसे परिवारों के सदस्यों को वर्ण बिषैलेपन का शिकार समझा जाना चाहिए!
       इसके लिए उस घर के किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों के नाम के पहले अक्षरों की जाँच करनी होती है! यदि ये वर्ण आपस में शत्रु होते हैं तो ऐसे लोगों का चिंतन हमेंशा एक दूसरे का विरोधी रहता है! इस कारण किसी की गलती न होने पर भी ऐसे लोग कभी भी एक दूसरे के प्रति भरोसा नहीं कर पाते हैं! यही वो सबसे बड़ा कारण है कि जिसके आधार पर बिना किसी कारण या बिना किसी हानि लाभ के भी लोग एक दूसरे के प्रति विद्वेष पूर्ण चिंतन में लगे रहते हैं निंदा आलोचना आदि किया करते हैं! इसी कारण से ऐसे लोग अपने पिता पुत्र भाई बहन पति पत्नी या किसी अन्य सगे संबंधी नाते रिस्तेदार के प्रति भी दुर्भावना रखने लगते हैं! उनके द्वारा अपने प्रति किए जाने वाले अच्छे से अच्छे बात व्यवहार या सहयोगात्मक प्रयास में भी कमियाँ खोज लिया करते हैं और अकारण ही उनसे घृणा अलगाव ईर्ष्या द्वेष आदि मानने लगते हैं!
       परिवारों की तरह ही सरकारों राजनैतिक दलों संगठनों सरकारी कार्यालयों प्राइवेट संस्थानों जैसे सामूहिक कार्यक्षेत्रों में एक साथ काम करने वाले बहुत लोग होते हैं उनके नाम के पहले अक्षरों के साथ यदि अपने सीनियर या जूनियर सहयोगी का उचित तालमेल नहीं बनता तो वहाँ भी एक दूसरे के प्रति अविश्वास का वातावरण बना रहता है! ऐसे लोग कोई ऐसा काम नहीं करेंगे जिससे उनके विरोधी नाम अक्षर वाले व्यक्ति का यश बढे , उसे सुख पहुँचे या उसे इसका श्रेय अर्थात क्रेडिट मिल सके!

कोई टिप्पणी नहीं: