शुक्रवार, 3 अगस्त 2018

ekakshar

एकाक्षरदोष
       किसी से मित्रता या शत्रुता बढ़ने का कारण है उनके नाम का पहला अक्षर! इस पहले अक्षर के कारण कितने मित्र छूट गए कितने परिवार फूट गए कितने विवाह टूट गए! कितने संगठन और राजनैतिक दल विखर गए कितनी सरकारें बदनाम हुईं बर्बाद हुईं कितने राजपरिवार ध्वस्त हुए कितने नेताओं की जिंदगी बर्बाद हुई कितने अफसर साजिश का शिकार हुए कितने देश एक दूसरे के दुश्मन बन बैठे! न जाने कितनी दुर्घटनाएँ घटित होती रही हैं नाम के पहले अक्षर के कारण!
एक अक्षर दोष के कारण उत्पन्न होती हैं अनेकों समस्याएँ
       कोई भी दो नाम यदि एक अक्षर से प्रारंभ होते हों तो उनका स्वभाव सोच शौक शान आदि एक जैसे होते हैं इसीलिए ऐसे लोगों के विचार एक दूसरे से बहुत मिलने के कारण ही ये दोनों बहुत अच्छे मित्र होते हैं! इनकी पसंद प्रायः एक जैसी होती है! किंतु जब ऐसे कोई दो लोग किसी एक चीज को एक साथ पसंद कर बैठते हैं तब इनके बीच शुरू होता है संघर्ष और उससे कितना भी बड़ा बैर विरोध तैयार हो सकता है! ऐसे प्रकरणों में शांति तभी मिलती है जब एक नष्ट होता है या बर्बाद होता है या असमर्थ हो जाता है या दोनों अलग हो जाते हैं!
      इसलिए उचित यही होगा कि जीवन के सभी क्षेत्रों में एक अक्षर से प्रारंभ नाम वाले किन्हीं दो लोगों को आमने सामने खड़े होने से , आपसी विवादों से , लेन देन, साझेदारी, नातेरिस्तेदारी, प्रेमसंबंध या विवाह आदि प्रकरणों में बचना चाहिए! परिवार में ही किन्हीं दो लोगों का नाम अक्षर यदि एक हो जाए तो उन्हें आपस में प्रेम पूर्वक निभाने के लिए आपसी विवादित विषयों को टालते रहना चाहिए अन्यथा उन दोनों के बीच कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है! किसी सरकारी या प्राइवेट कार्यालय विभाग सरकार संगठन या राजनैतिक दल आदि में भी ऐसे कोई दो या दो से अधिक एक समान प्रभावी लोगों का नाम यदि एक अक्षर से प्रारंभ होता हो तो उन दोनों के बीच कोई विवाद बढ़े उससे पहले ही उनका कार्यक्षेत्र बदल दिया जाना चाहिए अर्थात उन दोनों को एक साथ अधिक समय नहीं रहने देना चाहिए !
     एक अक्षर से प्रारंभ नाम वाले किन्हीं दोनों लोगों को आपसी विवाद न बढ़ने देने के लिए अपनी पसंद अपने स्वार्थ पीछे करने का अभ्यास करना चाहिए! कई बार किसी एक प्रेमी या प्रेमिका पर एक अक्षर वाले कोई दो लोग आकृष्ट हो जाते हैं! दोनों ओर से यदि समय रहते संयम नहीं वरता गया तो ऐसे प्रकरणों में परिणाम बहुत दुखद होते देखे जाते हैं! 
महाभारत क्यों हुआ ?
    अक्षरी शक्तियों के विपरीत होने से हुआ महाभारत !द्रोपदी की साड़ी दुर्योधन के कहने पर दुःशासन ने खींची थी !इन्हीं तीनों द अक्षरों के आमने सामने  आ जाने से हुआ था महाभारत युद्ध !कौरव पांडवों के क और प अक्षर बाल भावना से ग्रसित थे इसलिए बालहठ से हुआ था महाभारत !
  राम रावण युद्ध क्यों हुआ ?
        र अक्षर राम रावण दोनों नामों के आदि में है सीता जी श्री राम जी की पत्नी थीं रावण भी उन्हें ही चाहने लगा इसलिए हुआ था श्री राम रावण युद्ध !राम और रावण दोनों के नाम का पहला अक्षर 'र' होने के कारण विवाद बहुत अधिक बढ़ गया और दोनों लोग मरने मार डालने पर उतारू हो गए अंततः इस एक अक्षर जन्य दोष की कीमत रावण को प्राण देकर चुकानी पड़ी!
    ऐसी परिस्थितियाँ प्रेम प्रसंग वाले प्रकरणों में भी विशेष चिंतनीय होती हैं! क्योंकि दोनों का स्वभाव सोच और पसंद एक जैसी होने के कारण दोनों एक दूसरे को बहुत शीघ्र पसंद कर लेते हैं लेकिन ऐसे लोग जितने ज्यादा दिन एक साथ रह लेते हैं उतने ही एक दूसरे के लिए अधिक घातक होते चले जाते हैं!क्योंकि तब तक एक दूसरे की गुप्त बातें एक दूसरे के पास पहुँच चुकी होती हैं !
      ऐसे वर्णविषैलेपन के शिकार बहुत लोग अपनों को खोते जा रहे हैं परिवार टूटते जा रहे हैं विवाह विघटित होते जा रहे हैं! नाते रिस्तेदारियाँ बिगड़ती जा रही हैं नेताओं अफसरों राजनैतिक दलों के संबंध एक दूसरे से बिगड़ते जा रहे हैं! अफसरों के अपने आधीन होने वाले कर्मचारियों या अपने सीनियर लोगों से संबंध बिगड़ते जा रहे हैं ऐसे लोग एक दूसरे से बदला लेने की ताक में हमेंशा बने रहा करते हैं! यही स्थिति प्राइवेट संस्थानों में होती है इससे कई बड़े संस्थान व्यापार आदि नाम के विषैलेपन के कारण छिन्न भिन्न जाते हैं! इसी कारण से कई बड़े बड़े राजघराने तहस नहस होते देखे जाते हैं -कौशल्या - कैकेयी! इसीप्रकार से राजनैतिक दलों में नेता लोग एक दूसरे से बैर विरोध बाँध कर बैठ जाते हैं! ऐसे लोग एक दूसरे की छोटी छोटी कमियाँ पकड़ कर एक दूसरे के दुश्मन बन बैठते हैं जबकि इसका मुख्यकारण एक दूसरे की कमियाँ न होकर अपितु वर्ण विषैलापन होता है!
     एकाक्षर दोष तो बहुत बड़ा दोष है इसके कारण बहुत लोग आपस में एक दूसरे के शत्रु हो गए! बहुत परिवार टूट गए बहुतों का विवाह विच्छेद अर्थात तलाक हो गया! बहुत प्रेमी प्रेमिका एक दूसरे के दुश्मन हो गए बहुतों ने एक दूसरे को छोड़ दिया जिन्होंने नहीं छोड़ा वो किसी दुर्घटना के शिकार हुए या शत्रुता हो गई तब एक दूसरे से छूट गए! इसी एकाक्षरीदोष से कई संगठनों या राजनैतिकदलों में बिघटन हो गया! कई सरकारें बन बिगड़ गईं! कई अफसर और मंत्रियों मुख्यमंत्रियों प्रधानमंत्रियों में आपस में जब एक अक्षर दोष आ जाता है तो वो अंदर ही अंदर एक दूसरे का सम्मान घटाने या प्रतिष्ठा बर्बाद करने में लग जाते हैं! परिणाम स्वरूप सरकारें बिखर जाती हैं अच्छे अच्छे नेता लोग धूल चाट जाते हैं!
     नाम का असर संगठन , पार्टी , परिवार, समाज आदि सब पर पड़ता है! किन्हीं दो या दो से अधिक व्यक्तियों का नाम एक अक्षर से प्रारंभ होता है तो वो दोनों आपस में एक दूसरे के कब कितने बड़े शत्रु बन जाएँ इसका अनुमान लगा पाना भी कठिन होता है जबकि पहले इनके आपसी संबंध बहुत मधुर एवं सोच एक जैसी तथा विचार बहुत मिलते जुलते होते हैं किंतु जब दोनों का लगाव किसी एक ही पद प्रतिष्ठा वस्तु सत्ता आदि से हो जाता है या जब दोनों किसी एक प्रेमी या प्रेमिका को पाना चाहते हैं तब फिर ऐसा विरोध बढ़ता है कि प्रायः उन दोनों में से कोई एक ही जीवित रह पाता है!
                                        एकाक्षर दोष के कारण घटित हुई कुछ महत्त्वपूर्ण घटनाएँ
     आशाराम पर इतना अधिक शिकंजा इसीसमय क्यों कसा?
   जब इनका केस प्रारंभ हुआ तब ये स्थिति थी इसीलिए इन्हें मदद और रियायत कहीं से मिल नहीं पाई तीनों लोग अ अक्षर वाले ही थे यथा –
 आशाराम और अशोक गहलोत (मुख्यमंत्री राजस्थान)
 आशाराम और आनंदपुरोहित (सरकारीवकील)
 आशाराम और अजय पाल लांबा (इंवेस्टीगेटिंगऑफीसर)
                                                                                सभी परिवारों आदि में भी यही होते देखा जाता है!
तेजस्वी यादव - तेज प्रताप यादव 
   लालू प्रसाद यादव के दोनों पुत्रों के नाम एक अक्षर ते से शुरू होते हैं इनका आपसी स्नेह कितने दिन निभ पाएगा कहना कठिन है किंतु निभा पाना बहुत मुश्किल है फिर भी अत्यंत संयम और सहन शीलता से निभाने का प्रयास करना चाहिए!
‘प्र’मोदमहाजन - ‘प्र’वीणमहाजन - ‘प्र’काशमहाजन – 
अपने छोटे भाइयों के लिए अभिभावक की भूमिका निभाते रहने वाले प्रमोद जी के साथ या उस परिवार में ऐसा होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी फिर भी हुआ क्योंकि तीनों के नाम का पहला अक्षर एक हो गया! एकाक्षरी दोष होने के कारण सबकुछ बिगड़ गया!
राजनीति में एकाक्षर दोष के दुष्प्रभाव!
‘ओ’बामा  -  ‘ओ’सामा
‘ओ’बामा के राष्ट्रपति बनते ही ‘ओ’सामा, का अंत निश्चित हो गया था!
‘प’रवेजमुशर्रफ - ‘पा’किस्तान
    पाकिस्तान का भला परवेज मुशर्रफ कभी चाह ही नहीं सकते थे उनका चिंतन और गतिविधियाँ भारत से अधिक पाकिस्तान के लिए खतरनाक थीं! इसीलिए पाकिस्तान की छवि सबसे अधिक खराब करने वालों में उनकी बड़ी भूमिका रही है!
 ‘क’लराजमिश्र - ‘क’ल्याणसिंह, 
     उत्तर प्रदेश भाजपा में जब ये दोनों वरिष्ठ और सक्षम नेता एक साथ बड़े पदों पर आसीन हुए तो इन दोनों के नाम के पहले अक्षर क ने इन दोनों का चिंतन एक दूसरे का विरोधी बना दिया जिसका नुकसान  कालांतर में भाजपा को उठाना पड़ा!
‘न’रसिंहराव - ‘ना’रायणदत्ततिवारी
ऐसे ही ये दोनों लोग एक साथ नहीं चल पाए तभी तो नर्सिंग राव के कार्यकाल में ही तिवारी जी ने काँग्रेस 'ति' का गठन किया था!
 ‘ला’लूप्रसाद, -  ‘ला’लकृष्णअडवानी
आडवानी जी को रथयात्रा लेकर उत्तर प्रदेश स्थित अयोध्या आना था बिहार में रथ यात्रा के कारण कोई उत्तेजना का वातावरण भी नहीं बना था! लालू प्रसाद यदि चाहते तो अडवाणीजी की रथयात्रा रोकने की अपेक्षा टकराव को टाल भी सकते थे! किंतु लालू प्रसाद के नाम के पहले अक्षर ल के सामने लालकृष्ण आडवानी के नाम के पहले अक्षर ल के आते ही यह सारा प्रकरण एकाक्षरदोष का शिकार हो गया!
    महानजातिवैज्ञानिक दूरदृष्टा महर्षिमनु-
     पृथ्वीलोक कर्मभूमि है यहाँ गुण और कर्मों के आधार पर हमेंशा से ही सभी जीवों द्रव्यों खनिज पदार्थों आदि को चार श्रेणियों में बाँटा जाता रहा है हर किसी वर्ग में उन श्रेणियों का नाम ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि ही रखे जाते रहे हैं !अभ्रक हीरा पारा आदि खनिज पदार्थ एवं सर्पों आदि जीव जंतु यहाँ तक कि स्वयं पृथ्वी भी अपने विभिन्न गुणों रंगों योग्यता आदि के आधार पर ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि चार जातियों (श्रेणियों) के रूप में आदि काल से ही विभाजित है और इसी रूप में ही पहचानी जाती रही है!प्राचीनकाल में वर्गीकरण की पद्धति ही यही थी !उसी आधार पर महर्षि मनु ने गुणों और कर्मों के आधार पर मनुष्यों को भी उन्हीं श्रेणियों में बाँट दिया !
     समृद्ध समाज की परिकल्पना के लिए आवश्यक समझकर योग्यता शिक्षा सद्गुण सदाचार परोपकार सेवाभावना आदि के आधार पर मनुष्य समाज को भी चार भागों में बाँट दिया इसमें योग्यता परिश्रम विद्यावीरता व्यापार पशुपालन कृषिकार्य आदि में योग्यता गुण बहुलता को ही मुख्यआधार माना गया !इसमें भी मानवता की रक्षा करना सबका सहयोग करते हुए परमार्थी जीवन जीना,हिंसा न करना,सत्यबोलना,चोरी न करना,पवित्र रहना,ब्रह्मचर्य आदि संयम पूर्वक इंद्रियनिग्रह करना,बुद्धिमत्ता,विद्याअध्ययन,क्रोध न करने जैसे सद्गुणों को बरीयता दी गई !इसी  के आधार पर ही मानव समाज का ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि चार श्रेणियों के रूप में वर्गीकरण कर दिया गया !
     इसका उद्देश्य जातियों के आधार पर किसी को ऊँच नीच बनाना नहीं था अपितु समृद्ध समाज की परिकल्पना के लिए आवश्यक मानकर गुणों की दृष्टि से गधों और घोड़ों के अंतर को समझाने के लिए ऐसा किया गया है !घोड़ों के काम में यदि गधों को लगा दिया जाए तो वे दौड़ नहीं सकते जबकि वे बोझ ढो सकते हैं इसलिए जो जैसा है उससे उस प्रकार का काम लिया जाए !तभी तो सृष्टि का उद्देश्य पूरा हो सकेगा !क्योंकि ये तो कर्म भूमि है यहाँ तो जो जैसे कर्म करेगा उसकी वैसी पहचान बनती है !इस धराधाम पर हमेंशा से कर्म की ही प्रधानता देखी जाती रही है और उसी के हिसाब से सम्मान पद प्रतिष्ठा आदि मिलती रही है !
    आदिकाल से बनी उसी जातीय धारणा को आज भी उसी प्रकार से विभाजित किया जा रहा है  कि तब जिनका  ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि चार श्रेणियों के रूप में वर्गीकरण किया जाता था उन्हें आज ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य शूद्र आदि न कहकर प्रथम श्रेणी के कर्मचारी द्वितीय श्रेणी के कर्मचारी तृतीय श्रेणी के कर्मचारी चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी बताया जाता है !पहले सारी पृथ्वी को ही कर्मभूमि मानकर सबको ही कर्मचारी माना  जाता था अब जो नौकरी करते हैं उन्हीं को चार श्रेणियों में विभाजित किया जाता है किंतु यदि देखा जाए तो जो नौकरी नहीं भी करते हैं गुण और योग्यता आदि के हिसाब से बौद्धिक स्तर तो उनका भी इसी प्रकार की श्रेणियों में विभाजित होगा !
     वर्तमान समय कुछ अजीब से तर्क देकर जातियों के निर्माण के लिए महर्षि मनु को दोषी ठहराया जा रहा है !जबकि सरकारें आज भी उन्हीं जातीय पद्धतियों के आधार पर चल रही हैं राजनैतिक पद प्रतिष्ठा ,चुनावी टिकट शिक्षा सरकारी नौकरियों में आरक्षण प्रमोशन में आरक्षण सरकारी अनुदान आदि सब महर्षि मनुकी बनाई हुई जातियों पर ही आश्रित हैं !जातियाँ न होतीं तो जातीय सुख सुविधाएँ किसी को कैसे दी जातीं !राजनेताओं  के द्वारा चलाए जाने वाले जातीय उद्योग धंधे कैसे चलाए जाते !
       योग्यता और गुणों के आधार पर समाज का जो वर्ग अपना विकास करता चला जा रहा है उसके दिए हुए टैक्स से सरकारें चल  रही हैं !उसी से सरकारी कर्मचारियों को सैलरी आदि दी जा रही है सरकारी विभागों में  सारी सुख सुविधाएँ उसी से मिल रही हैं !सभी विकास कार्य उसी धन से किए जा रहे हैं !सरकारों की कमाई का स्रोत ही उस योग्य और गुणी समाज के खून पसीने की कमाई है!इसके बाद भी उसी की निंदा कर करके बहुत लोग सम्मानित हो गए चुनाव जीत गए बड़े बड़े पदों पर पहुँच गए फिर भी निंदा उसी योग्य कर्मठ और गुणी वर्ग की करते हैं !वो वर्ग आज भी अपनई विकास यात्रा निरंतर चलाए जा रहा है !यदि ये योग्य और गुणी समाज भी अपना काम काज बंद करके निकम्मेपन को ओढ़कर निर्लज्जता पूर्वक सरकारों के सामने ही कटोरा लेकर बैठ जाए तो  सरकारों की आय का स्रोत आखिर क्या होगा और कैसे चलेंगे सारे काम काज ! 
      इसलिए जो लोग गुणी कर्मठ और योग्य लोगों पर निर्गुणी ,अयोग्य और आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के शोषण का आरोप लगाते हैं और कहते हैं कि इसलिए वे पिछड़ गए उन्हें समझना चाहिए कि यदि किसी के घर में बच्चा न पैदा हो रहा हो तो इसके लिए उसके पड़ोसी को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है !सबको शिक्षा व्यापार आदि करने की स्वतंत्रता मिली हुई है देश का सक्षम कानून सबको सुरक्षा की गारंटी देता है इसके बाद कोई रोगी लँगड़ा लूला अंधा आदि व्यक्ति कहे कि मैं काम नहीं कर सकता मुझे सरकार बैठाकर खिलाए तब तो बात समझ में आती है जबकि ऐसे दिव्यांग लोगों में भी बहुत स्वाभिमानी और सम्मानप्रिय लोग होते हैं जो अपने पेट को सरकारों या किसी और पर बोझ नहीं बनने देते जिस लायक हैं उस लायक काम करके अपना और अपने परिवारों का भरण पोषण करते देखे जाते हैं न केवल इतना अपितु तरक्की करते देखे जाते हैं तो जातियों के आधार पर पिछड़ा हुआ कोई व्यक्ति या वर्ग अपने पिछड़ेपन के लिए किसी दूसरे व्यक्ति या वर्ग को दोषी कैसे ठहरा सकता है !इसलिए जातियों के निर्माण के लिए महर्षि मनु को दोषी ठहराना अयोग्य और गन विहीन लोगों का दिमागी दिवालियापन ही है ! 
    ‘मा’यावती -  ‘म’नुवाद
     मायावती महर्षि मनु की निंदा किया करती हैं! इसका कारण महर्षि मनु के नाम का पहला अक्षर और मायावती के नाम का पहला अक्षर का एक होना है! इससे एकाक्षरी दोष पनप गया! इसीकारण महर्षि मनु की बनाई हुई जिन जातियों के आधार पर मायावती मुख्यमंत्री बनने में सफल हुईं उन्हीं जातियों के कारण आज भी राजनीति में वे प्रासंगिक बनी हुई हैं! इतने सबके बाद भी वे महर्षि मनु की निंदा किया करती हैं! इसी म अक्षर ने मा’यावती और ‘मु’लायम सिंह को एक दूसरे का विरोधी बना दिया था !
‘न’जीब जंग -  ‘न’जीब अहमद (J.N.U.छात्र )-
      दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग बड़े बड़े विवादों निंदा आलोचनाओं को झेलते वहाँ तक पहुँचे किंतु ‘न’जीब अहमद (J.N.U.छात्र ) के अपहरण का विवाद बढ़ते ही उनका पद त्याग हो गया! एकाक्षरी दोष होने के कारण ऐसा हुआ होगा !
  नरेंद्रमोदी-‘न’जीबजंग - नवजोत सिंह सिद्धू - नितीशकुमार -
       न अक्षर का ही कमाल है कि नरेंद्र मोदी जी के सामने इन तीन में से कोई लंबे समय तक नहीं टिक पाए !नितीश कुमार का क्या भरोसा कि कब तक टिकेंगे !  
जीतन राममाँझी जेडीयू में मुख्यमंत्री बनकर क्यों नहीं टिक पाए –
      जेडीयू में सामान्य भूमिकाओं का निर्वाह करते रहने वाले जीतन राममाँझी जैसे ही मुख्यमंत्री जैसे पार्टी के प्रमुख पद पर पहुँचे तो उनकी पार्टी का पहला अक्षर और उनके नाम का पहला अक्षर ज हो गया जिससे एकाक्षरी दोष तैयार हो गया! जो कलह का कारण बना!
समाजवादी पार्टी में इतना कलह क्यों बढ़ा?
     सपा में जब तक मुलायम सिंह जी का बर्चस्व रहा तब तक एकाक्षरी दोष होने के बाद भी वो 'अ'मरसिंह और आजम खान दोनों को मिलाजुला कर चलते रहे किंतु अखिलेश स्वयं इसी दोष के शिकार हो गए! अखिलेश को न आजमखान पसंद हैं और न आजम खान को अखिलेश फिर भी आजमखान अल्प संख्यक चेहरा हैं इसलिए उनसे समझौता किया गया और 'अ'मर सिंह जी को बाहर कर दिया गया! उनकी तो बात समाप्त हुई! अब बात आजम खान के परिवार की 'आ'जमखान और उनके बच्चे 'अ'दीब और 'अ'ब्दुल्लाह ये सभी 'अ' अक्षर वाले होने के कारण इनकी पटरी आपस में खाए न खाए किंतु 'अ'खिलेश और 'अ'मरसिंह का विरोध करने के लिए ये तीनों एक रहेंगे क्योंकि एकाक्षरी दोष है जिसका असर आजम खान की वाणी से व्यक्त होता रहता है!     इस प्रकार से शिवपाल सिंह , राम गोपाल और आजम खान राजनैतिक दृष्टि से अखिलेश यादव के लिए लगभग एक जैसे ही हैं! अंतर इतना है कि रामगोपाल अपना लक्ष्य अपनेपन से साध रहे हैं और लोग इतने विनम्र विरोधी नहीं बन पाए!
 अखिलेश यादव के लिए सपा को सँभालना आसान है क्या?
    'आ'जम खान - 'अ'फजलअंसारी , डा. 'अ'शोक वाजपेयी, 'अ'म्बिका चौधरी, 'अ'बुआजमी रहे बचे 'आ'शु मलिक जैसे 'अ' अक्षर वाले सभी लोगों का अखिलेश के साथ एकाक्षरी दोष लगा हुआ है इसलिए मुलायम सिंह तो इन सबके साथ मित्र भावना से आसानी पूर्वक निर्वाह करते रहे किंतु 'अ'खिलेश को इन लोगों के साथ अत्यंत सहनशीलता पूर्वक यथा संभव विनम्रवर्ताव करते हुए ही निर्वाह करना होगा!
     समाजवादी परिवार में इतना अधिक कलह होने का कारण भी है वर्णविज्ञान -
  कलह का मुख्य कारण मुलायम सिंह का पीछे  होना है ! उनके नेतृत्व में शिवपाल रामगोपाल आदि सभी सम्मिलित थे समर्पित थे! भाइयों भाइयों में कहीं किसी का चिंतन एक दूसरे का विरोधी नहीं था सब में मुलायम सिंह के प्रति समर्पण था!किंतु इन्हीं लोगों के बच्चों का रुख अखिलेश के प्रति उस प्रकार से समर्पित नहीं है ! ये अगली पीढ़ी एक दूसरे को पचा नहीं पा रही है !
     सर्व प्रथम शिवपाल यादव के दो बच्चे हैं 'आ'दित्य' यादव उर्फ 'अंकुर' यादव और 'अनुभा' यादव उनकी बेटी है! इनका नाम अ अक्षर से शुरू होता है! यदि ये राजनीति में न भी सक्रिय होते तो भी इनकी मानसिकता तो 'अ'खिलेश विरोधी रहेगी ही उसका असर पिता शिवपाल सिंह पर पड़ना स्वाभाविक ही है! मुलायम सिंह के साथ ये समस्या नहीं थी इसलिए मुलायम सिंह से तो संबंध चल गए लेकिन अखिलेश के साथ नहीं निभ सकी! शिवपाल जी अपने बच्चों की भावना को नजर अंदाज कैसे कर देते!
     यही हाल 'रामगोपाल का है उनके बेटे 'अ'क्षय' यादव और भांजे 'अ'रविंद' यादव के नाम भी तो 'अ' अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं इसलिए 'अ'क्षय' यादव और 'अ'रविंद' यादव का चिंतन भी अखिलेश विरोधी रहेगा ही! जिससे राम गोपाल का प्रभावित होना स्वाभाविक था! अखिलेश के लिए वे भी शिवपाल की ही भूमिका निभा रहे हैं किंतु मीठे बनकर क्योंकि वे सुशिक्षित हैं विवेक से काम ले रहे हैं शिवपाल जल्दबाजी कर गए इतना धैर्य नहीं रख पाए!
    इसी प्रकार से''अ'भिषेक' उर्फ ''अं'शुल'यादव राजपाल यादव जी के बेटे हैं ''अ'नुराग यादव' जी धर्मेंद्र यादव के छोटे भाई हैं! ''अ'पर्णा'यादव हैं अखिलेश के भाई की पत्नी हैं और इन सबके नाम भी तो 'अ' अक्षर से ही प्रारंभ होते हैं इसलिए इन सबके साथ अखिलेश यादव का एकाक्षरी दोष चलता ही रहेगा! जहाँ जब जिसको जैसा समय मिलेगा तो ये 'अ' अक्षर वाले प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक दूसरे की प्रेम पूर्वक जड़ें हिलाते रहेंगे! इस प्रकार से पूरा परिवार ही एकाक्षरी दोष का शिकार हो गया!कलह का मूल कारण ये हो  सकता है !
अ अक्षर इतना अधिक विवादित क्यों?
      सभी अक्षरों का अपना अपना क्षेत्र होता है सबमें अपना अपना कुछ विशेष गुण होता है! ऐसे ही अ अक्षर वाले लोग जिस किसी भी परिस्थिति में जहाँ कहीं भी हों वो दबंगई में अपनी एक अलग पहचान बनाकर रखते देखे जाते हैं! उनमें प्रशासकीय भावना रहती ही है इसलिए ये केवल अपने को राजा और बाक़ी सबको प्रजा समझते हैं! इसी भावना के कारण बड़े पदों पर अ अक्षर वाले लोग या अ अक्षर की प्रजाति से संबंधित अन्य वर्णों वाले लोगों की संख्या अन्य वर्णों की अपेक्षा विशेष अधिक होती है! एक क्षेत्र में जैसे दो राजा नहीं सकते इसी प्रकार से अ अक्षर वाले लोग या अ अक्षर की प्रजाति से संबंधित अन्य वर्णों वाले लोगों में एक दूसरे के निकट आते ही टकराहट होनी स्वाभाविक है! यद्यपि हर अक्षर अपने जैसे वर्ण का शत्रु है किंतु ये भावना अ अक्षर में बहुत अधिक होती है!
अमरसिंह को लेकर इतने अधिक विवाद क्यों?
एकाक्षरी दोष अमरसिंह के पीछे ऐसा पड़ा कि जहाँ गए वहीँ से संबंध निभ न पाने के कारण वापस लौटना पड़ा
‘अ’मरसिंह -‘अ’निलअंबानी, ‘अ’मिताभबच्चन के आपसी संबंध बिगड़े क्यों?
ये तीनों लोग भी एक दूसरे से बिचार मिलने के कारण जुड़े हुए थे किंतु इन तीनों का पहला अक्षर अ होने के कारण एकाक्षरी दोष के विषैलेपन से ये तीनों अलग अलग हो गए!
‘अ’मरसिंह ‘अ’जीतसिंह की पार्टी में गए और फिर ....?
दोनों के नाम का पहला एक अक्षर होने के कारण ये दोनों एकाक्षरी दोष से प्रभावित हो गए और मिलते देर नहीं लगी कि अलग अलग हो गए!
3.'अ'मरसिंह -अरविंद सिंह दोनों के संबंध?
'अ' अक्षर वाले दोनों भाई एकाक्षरी दोष से पीड़ित होने के कारण अपने आपसी संबंधों का निर्वाह कितना कर पाए होंगे कहना कठिन है किंतु निर्वाह करने के लिए बहुत अधिक सहन शीलता की आवश्यकता है!
अमरसिंह और समाजवादी पार्टी
      अमर सिंह की मित्रता मुलायम सिंह से थी और मुलायम सिंह जब तक पार्टी को प्रमुख रूप से सँभालते रहे तब तक अमर सिंह उनके साथ ही साथ सपा में प्रायः प्रमुख भूमिका निभाते रहे किंतु सपा में जैसे जैसेअखिलेश का बर्चस्व बढ़ता गया वैसे वैसे अखिलेश को ‘अ’मरसिंह और आजम खान दोनों खटकने लगे क्योंकि अखिलेश अमर सिंह और ‘आ’जमखान, तीनों का ही पहला अक्षर अ है इसलिए तीनों एकाक्षरीदोष के शिकार हो गए और तीनों ही एक दूसरे के विरुद्ध चिंतन करने लगे! अमर सिंह तो सपा से चले गए किंतु आजम खान जो आज भी सपा में हैं !अखिलेश को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय जब हुआ था तब आजम खान का भी खूब मान मनौव्वल किया गया था वे भी रूठे रूठे घूम रहे थे! पुराने कार्यकर्ता और अल्पसंख्यक प्रभावी चेहरा होने के कारण उन्हें साथ रखना अखिलेश की मजबूरी बन गई!
'अ'रविंद केजरीवाल को लेकर इतने अधिक विवाद क्यों?
       अरविंद केजरीवाल की पहचान विवाद करने वाले व्यक्ति के रूप में बन गई है मीडिया से लेकर राजनैतिक दल हों या कोई और यहाँ तक कि जनता भी उन्हें इसी रूप में जानने लगी है! वर्णविज्ञान की दृष्टि से ऐसा होने का कारण वे अभीतक विवादों को साथ लेकर चलते रहे हैं या यूँ कह लें कि भाग्यवश उन्हें ऐसी परिस्थिति ही मिलती रही है!
    अरविंद केजरीवाल जिन अन्ना हजारे के साथ जुड़कर चर्चा में आए तो अन्ना हजारे के नाम का पहला अक्षर और अरविंद केजरीवाल के नाम का पहला अक्षर एक था अर्थात अ है इसकारण से  इन  दोनों के बीच एकाक्षरी दोष बन गया! इसीलिए अरविंद केजरीवाल को अन्ना हजारे से अलग रास्ता चुनना पड़ा!
अरविंद केजरीवाल के साथ अन्ना आंदोलन में विवाद क्यों?
     अरविंद केजरीवाल जब अन्ना आंदोलन से जुड़े थे तभी उन्हें जनता ने जाना पहचाना और वे चर्चा में आए किंतु जिस अन्ना आंदोलन के सहारे वो आगे बढ़े उस अन्ना आंदोलन के नाम का पहला अक्षर और अरविंद केजरीवाल के नाम का पहला अक्षर एक अर्थात अ है इससे एकाक्षरी दोष हो जाने से अरविंद केजरीवाल को अन्ना आंदोलन छोड़ना पड़ा!
      अरविंद केजरीवाल के साथ आम आदमी पार्टी में विवाद क्यों? 
    अन्ना आंदोलन छोड़कर अरविंद केजरीवाल ने आमआदमीपार्टी उसका नाम भी अ अक्षर पर ही रख लिया! इसलिए यहाँ भी एकाक्षरी दोष घटित हुआ और यहाँ भी अन्ना आंदोलन वाली उठापटक प्रारंभ हो गई!
     अरविंद केजरीवाल से अरुचि रखने वाले अन्ना आंदोलन में कुछ लोग थे जिनमें स्वयं अन्नाहजारे, अग्निवेश, अमितत्रिवेदी जैसे अ अक्षर वाले लोग तो वहाँ अरविंद के विरुद्ध उठापटक चलती रही तो आमआदमीपार्टी में अ अक्षर वाले तमाम इकट्ठे होगए उसमें कई लोग प्रभावी भूमिका में भी हैं –
     आशुतोष , अजीत झा, अलकालांबा, आतिसी आशीष खेतान, अंजलीदमानियाँ , प्रो.आनंद जी, आदर्शशास्त्री, असीम अहमद इसी प्रकार से अजेश, अवतार , अजय, अखिलेश, अनिल, अमान उल्लाह खान आदि हैं! इसीलिए अरविंदकेजरीवाल की आम आदमी पार्टी में अंदर से उठापटक चलती रहती है जिस कारण आम आदमी पार्टी के विवाद शांत होने का नाम ही नहीं लेते हैं!
अरविंद केजरीवाल के साथ ही दिल्ली विधान सभा चुनावों में विवाद क्यों?
अरविंद केजरीवाल जब दिल्ली विधान सभा का चुनाव लड़ने गए तो विपक्ष में काँग्रेस पार्टी के तीन प्रमुख नेता हैं अजय माकन , अरविंदर सिंह लवली और अशोक वालिया तीनों ही अ अक्षर वाले हैं! भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व इन चुनावों में मुख्यभूमिका निभा रहा था! जिसके अध्यक्ष अमितशाह अ अक्षर वाले हैं! इसलिए बाहर भी केजरीवाल अ अक्षर वाले लोगों से घिर गए वहाँ भी एकाक्षरी दोष तैयार हो गया और विपक्ष के साथ अधिक खटफट रहने लगी!
अरविंद केजरीवाल के साथ अफसरों का विवाद क्यों?
      अब बात सरकार की तो उप राज्यपाल अनिल बैजल हैं और मुख्यसचिव अंशु प्रकाश हैं! इन दोनों के नाम का पहला अक्षर अ है! इसलिए यहाँ भी एकाक्षरी दोष तैयार हो गया और इसी एकाक्षरी दोष के कारण अधिकारियों के साथ उठापटक चालू हो गई! इनका समर्थन कौन करे और इनकी सरकार का समर्थन कौन करे! किसके सहयोग का सहारा करे दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार! पूरी स्थिति इस प्रकार है –

उपराज्यपाल - अनिल बैजल
मुख्य सचिव - अंशु प्रकाश
दिल्‍ली पुलिस कमिश्‍नर - ‘आ’लोक वर्मा (मार्च 2016 से जनवरी 2017)
‘अ’मूल्य पटनायक - 30 जनवरी 2017 से
सीबीआई के नए प्रमुख - ‘अ’निल सिन्हा , ‘आ’लोक वर्मा
चुनाव आयुक्त - ‘अ’चल कुमार ज्योति (6 जून 2017 )
वित्त सलाहकार - ‘अ’रविंद सुब्रमण्यम( उस समय के )
वित्त मंत्री -  ‘अ’रुण जेटली
     इन सबके साथ एकाक्षरी दोष होने के कारण सबसे अधिक विवाद आम आदमी पार्टी , अरविन्द केजरीवाल एवं केजरीवाल सरकार के साथ होते  रहे हैं! इनका प्रमुख कारण एकाक्षरी दोष ही है!
     पहले तो अरविन्द केजरीवाल किसी पर भी कभी भी कोई भी आरोप लगा दिया करते थे किंतु अनिलबैजाल के आने के बाद काफी दिनों के लिए अचानक मौन हो गए! उपराज्यपाल अनिल बैजल आए वैसे ही केजरीवाल शांत हो गए! अरविंद - अनिल बैजल दोनों का पहला अक्षर अ होने के कारण एकाक्षरी दोष हो गया जिस कारण यदि वे चुप न होते तो परिस्थितियाँ और अधिक भी बिगड़ सकती थीं और आगे भी ऐसा हुआ तो परिणाम अच्छे नहीं होंगे!

वैसे भी इन सभी जिम्मेदार अधिकारी वर्ग के साथ केजरीवाल घिर चुके थे केजरीवाल के नाम का पहला अक्षर अ है और इन अधिकारियों के नाम का भी पहला अक्षर अ है इसलिए इनका उनके साथ एकाक्षरी दोष हो गया! ऐसी परिस्थिति में ये आपस में भी एक दूसरे के लिए हितकर नहीं थे! रही बात अरविन्द केजरीवाल की तो उन्हें तो एकाक्षरी दोष होने के कारण इनसे सहयोग की उम्मींद बिल्कुल करनी ही नहीं चाहिए !
अरविंद केजरीवाल और अंशु प्रकाश का विवाद क्यों हुआ?
      अरविंद और अंशु प्रकाश का पहला अक्षर एक होते ही दोनों एकाक्षर दोष के शिकार हो गए! इतना सब होने के बाद जो कसर बाकी बची भी थी वो मुख्यमंत्री 'अ'रविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के लिए अक्सर समस्या तैयार करते रहने वाले विधायक 'अ'मानुल्ला खान का चीफ सेक्रटरी 'अं'शु प्रकाश के साथ विवाद हुआ! आपस में कोई समाधान निकलता कैसे तीनों ‘अ’ वर्ण वाले थे! इसी एकाक्षरी दोष के कारण ही अरविंद केजरीवाल अक्सर विवादित बने रहते हैं!
अरविंद केजरीवाल और आमआदमीपार्टी -
     आमआदमी पार्टी एकाक्षरीदोष से बुरी तरह पीड़ित है! इसमें अ अक्षर वाले लोग सक्षम पदों पर शुरू से ही रहे हैं उनके साथ भी आम आदमी पार्टी एवं अरविंद केजरीवाल अर्थात दोनों का ही एकाक्षरी दोष चल ही रहा है! इसलिए पार्टी के बाहर और भीतर या सरकार में आमआदमी पार्टी एवं अरविंद केजरीवाल से अपने अपने एकाक्षरी दोष के अनुशार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से सब अपना अपना बदला लेते ही रहते हैं! सब अपने अपने मौके की ताक में लगे रहते हैं! कुछ तो अपना अपना बदला लेकर चले गए और कुछ आगे भी लेते रहेंगे! जब तक उनका इस पार्टी में दाना पानी है तब तक उन्हें कौन रोक सकता है!
     'अ' से प्रारम्भ नाम वाले लोग इस पार्टी के लिए कब किस बात को कितनी बड़ी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर पार्टी के लिए कितनी बड़ी समस्या पैदा कर दें या बन जाएँ और पार्टी के कितने बड़े भाग को प्रभावित कर लें कहना कठिन होगा! फिर भी ‘अ’रविंदकेजरीवाल और मनीष सिसोदिया के संयुक्त प्रयास इस पार्टी के लिए फलीभूत होते रहेंगे!आम आदमी पार्टी के नेता लोग भी यदि निर्वाह करना चाहें तो  उन्हें किसी विषय को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाने से बचना होगा !
आम आदमी पार्टी को दिल्ली में क्यों मिली इतनी बड़ी विजय?
    वस्तुतः दिल्ली के चुनावों में आम आदमी पार्टी के जीतने में आम आदमी पार्टी का कोई विशेष योगदान था ही नहीं क्योंकि उसने दिल्ली वालों के लिए कभी कुछ किया ही नहीं था किंतु दो बड़े विपक्षी दल और दोनों चुनाव लड़े बिना ही अपनी अपनी अघोषित पराजय स्वीकार कर चुके थे! दिल्ली वाले समझ चुके थे कि पिछले 15 वर्षों से विपक्ष में बैठी भाजपा ने इतने वर्ष बाद भी चुनाव लड़ने लायक कोई सशक्त तैयारियाँ की ही नहीं थीं ! वो चुनाव हारते जीतते ये तो बाद की बात थी किंतु इतने वर्षों में भी वे मुख्यमंत्री बनने लायक अपना एक प्रत्याशी भी नहीं तैयार कर सके थे ऐसी चुनावों के प्रति उदासीन , उत्साह विहीन, नेताविहीन पार्टी पर प्रबुद्ध दिल्ली वाले किसका भरोसा करके भाजपा को वोट दे देते!
     रही बात काँग्रेस जैसी इतनी बड़ी पार्टी की तो जिसकी अपनी मुख्यमंत्री पिछले 15 वर्षों तक दिल्ली में रहीं उन्होंने दिल्ली के लिए जो भी विकास कार्य किए वे जनता को याद दिलाकर वोट माँगने की हकदार थीं और जनता उनकी बात मानने को विवश होती! न जाने क्यों सभा सम्मेलनों में उन्हें उस तरह से नेता बनाकर प्रस्तुत नहीं किया गया! उनके नेतृत्व में चुनाव नहीं लड़ा गया! उनके द्वारा किए गए विकास कार्यों की चर्चा भी करना ठीक नहीं समझा गया! उन्हें घर बिठाकर अचानक जिनके हाथों में पार्टी को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई उनका जनता भरोसा नहीं कर पाई! क्योंकि 15 वर्षों से स्थापित मुख्यमंत्री को बिना कारण बताए घर बैठा दिया गया था !  इस प्रकार से उन दोनों पार्टियों के हारते ही अकेले बची आम आदमी पार्टी उसे जीतना ही था! इसीकारण से जीतने के लिए बचे ही अकेले अरविन्द केजरीवाल थे! विपक्ष के द्वारा उपलब्ध कराई गई अनुकूल परिस्थितियों के कारण अरविंद केजरीवाल की पार्टी विजयी हो गई!
काँग्रेस की दिल्ली के विधान सभा चुनावों में इतनी बड़ी पराजय क्यों हुई ?
    वस्तुतः 2015 में काँग्रेस दो बड़ी बीमारियों से जूझ रही थी पहली तो सत्ता विरोधी लहर और दूसरा दिल्ली काँग्रेस के नेताओं में एकाक्षरी दोष के कारण पनपती चली जा रही थी आपसी कलह!‘अ’जय माकन, अशोकवालिया और ‘अ’रविंदर सिंह लवली ये तीनों दिल्ली काँग्रेस के बड़े नाम हैं किंतु इन तीनों के नाम का पहला अक्षर अ है इसलिए इन तीन में से किसी एक को पार्टी प्रमुखता देने का मतलब ही पार्टी में कलह होना था! इन तीन में से किसी एक को आगे बढ़ाया जाना शेष दो लोगों के लिए असह्य था! जबकि यही तीनों लोग इन चुनावों में दिल्ली प्रदेश में पार्टी के लिए सर्वे सर्वा हैं!शीला जी के नेपथ्य  चले  जाने एवं इन तीनों शीर्ष नेताओं के आपस में एक दूसरे से उलझ जाने के कारण काँग्रेस को ऐसी पराजय का सामना करना पड़ा! सामने से भी अ अक्षरवाले अरविन्द केजरीवाल थे जिन्होंने अपने अ अक्षर वालों को पीछे धकेल रखा था इसलिए उन्होंने पूरे मनोयोग से चुनाव लड़ा उसकी कीमत काँग्रेस को चुकानी पड़ी! इन तीनों लोगों के इसी परिस्थिति में रहते हुए भी यदि ये चुनाव शीला जी की प्रमुखता में लड़े जाते तो वर्णविज्ञान की दृष्टि से कहा जा सकता है कि काँग्रेस की इतनी बुरी पराजय न होती !ये परिस्थिति काँग्रेस के लिए भविष्य  में भी ठीक नहीं होगी !  
भाजपा को 'राजग' क्यों बनाना पड़ा?
     भाजपा को अटल अडवाणी जोशी जैसे सक्षम योग्य ईमानदार और बेदाग़ छवि के नेताओं का नेतृत्व मिलने के बाद भी सरकार प्रांतों में तो बड़ी आसानी से बन जाती थी किंतु केंद्र में पिछड़ जाते थे यहाँ तक कि एक वोट से सरकार गिर गई! क्योंकि भाजपा और भारत दोनों का पहला अक्षर एक होते ही भाजपा का यह प्रयास एकाक्षर दोष का शिकार हो जाता था! इसीलिए भाजपा केंद्र की सत्ता चूम कर लौट आती थी! इसीलिए राजग का गठन होते ही भाजपा केंद्र की सत्ता को प्राप्त करने में सफल हुई! स्थिति यह है कि भाजपा को यदि पूर्ण बहुमत भी मिल जाए और वो अपने बलबूते पर सरकार भी बना ले तो भी वह टिकाऊ बिल्कुल नहीं होगी!
     कुलमिलाकर ‘भा’जपा और ‘भा’रत है! दोनों एक अक्षर हो गए इसीलिए अटल जी जैसे सुयोग्य नेता के होते हुए भी भाजपा तब तक सत्ता में नहीं आ सकी जब तक 'राजग' बनाकर चुनाव मैदान में नहीं उतरी! इसीलिए तो उसे राजगावतार लेना पड़ा! यदि राजग न बनता तो केंद्र की सत्ता भाजपा के हाथ नहीं लगती थी! 'राजग' बनने के बाद ही ये काम संभव हो पाया!
भाजपा लगातार हारती क्यों जा रही है दिल्ली विधानसभा का चुनाव-
      दिल्ली की जनता का अविश्वास दिल्लीभाजपा के प्रति था न कि भाजपा के प्रति! लोकसभा चुनावों में इसी दिल्ली की जनता ने भाजपा का पूरा साथ दिया था! ये बात विचारणीय है! इसके अलावा एक दूसरी बात पर भी मंथन होना चाहिए था कि 15 वर्षों से विपक्ष की राजनीति करती रही पार्टी इतने समय बाद भी अपने पक्ष में वातावरण तैयार नहीं कर सकी क्यों? इसका कारण है एकाक्षरी दोष ! जो दिल्ली भाजपा में भी लंबे समय से चलता चला आ रहा है!
      साहबसिंह वर्मा जी के बाद पार्टी एकाक्षरी दोष की भँवर में उलझ कर रह गई है! दिल्ली भाजपा के शीर्ष में जो शीर्ष पंक्ति के सक्षम पाँच नेता हैं वो आपस में एक दूसरे के साथ एकाक्षरी दोष से पीड़ित हैं वो पाँचों नाम वि अक्षर से शुरू होते हैं! विजयेंद्रगुप्त, विजयगोयल, विजयमल्होत्रा विजयकिशनशर्मा विजयजौली आदि! साहब सिंह जी के बाद इन्हीं लोगों की मुख्यभूमिका रही है !इसलिए  इनमें किसी एक के आगे बढ़ते ही शेष चार लोग उनकी अकेली पद प्रतिष्ठा को कैसे सह सकते हैं! इनके अलावा जो नाम समय समय पर उछाले जाते रहे वे वर्णविज्ञान की दृष्टि से राजनैतिक क्षेत्र के लिए अत्यंत कमजोर प्रजाति के थे! इसी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से किरण जी का भी अरविंद केजरीवाल से कोई मुकाबला नहीं था!
     क और ह जैसे अक्षरों वाले लोग किसी के तत्वावधान में तो काम कर सकते हैं किंतु स्वयं में अपने को अपने कार्यों से प्रशासक सिद्ध कर पाना उनके लिए बहुत कठिन होता है इसीलिए राजनैतिक दलों में वर्ण विज्ञान की दृष्टि से दुर्बलवर्णों वाले लोग पहली बात तो इतनी बड़ी जिम्मेदारी सँभालने को तैयार नहीं होते यदि तैयार हो भी जाएँ तो जनता उनके बचनों पर इतना बड़ा विश्वास नहीं करती है!
      यही कारण है कि इस प्रजाति के अक्षरों वाले नेतालोग यदि मुख्यमंत्री आदि बन भी जाएँ तो पाँच वर्ष पूरे बहुत कम कर पाते हैं!पार्टी या शीर्ष  नेतृत्व यदि बहुत अधिक सक्षम हो तो बात दूसरी है !
योगी आदित्यनाथ और अमितशाह-
     इन दोनों के नाम का पहला अक्षर 'अ' है जो एकाक्षरी दोष की सीमा में आता है! उनकी सरकार में जिम्मेदार पदों पर मुख्यभूमिका निभाने वाले कुछ अधिकारियों का नाम भी अ अक्षर से ही प्रारंभ होता है! ऊपर नीचे दोनों तरफ ही अ अक्षर प्रभावी हैं इसलिए विशेष सतर्कता और सावधानी से चलना ही उनके लिए श्रेयस्कर रहेगा! अ अक्षर वाले सहयोगी बड़े अफसरों के प्रयासों से हुए कार्यों या बनी योजनाओं से योगी आदित्यनाथ को कोई यश नहीं मिलेगा अपितु वे कितना भी अच्छा काम करें फिर भी उनके कारण अपयश ही मिलता रहेगा योगी सरकार को!
उमाभारती के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश का चुनाव भाजपा हारी क्यों?
     योग्य और सक्षम नेत्री उमाभारती जिन्होंने मध्यप्रदेश में अपने बलपर सरकार बनाई थी ! संपूर्ण देश में जिनका अद्भुत प्रभाव है उनका भाषण सुनने के लिए बड़े बड़े लोग लालायित रहते हैं किंतु जब उनके नेतृत्व में उत्तर प्रदेश में भाजपा ने चुनाव लड़ा तब पार्टी को हार का मुख देखना पड़ा! क्योंकि उमाभारती और उत्तरप्रदेश दोनों का पहला अक्षर एक होते ही भाजपा का यह चुनावी अभियान एकाक्षर दोष का शिकार हो गया और भाजपा को उत्तर प्रदेश के चुनावों में पराजय का मुख देखना पड़ा!
नितिनगडकरी जी और नरेन्द्रमोदी जी के कैसे चलेंगे संबंध?
    नितिन गडकरी जी जब भाजपा के अध्यक्ष थे तब उनके और नरेन्द्रमोदी जी के आपसी संबंधों पर तमाम किंतु परंतु सुने जाते थे! किंतु इन दोनों लोगों के स्तरों में अंतर होने के कारण इनके बीच किसी पद प्रतिष्ठा को लेकर जब तक कोई टकराव या प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बनेगा तब तक संबंध सामान्य ही रहेंगे ! दोनों ओर से सहनशीलता और संयम पूर्वक कार्य करना होगा !यदि कोई तीसरा मजबूत व्यक्ति अच्छी भूमिका निभाते रहता है और ऐसे लोगों को आमने सामने अड़ने से बचा ले जाता है तो ऐसे लोग एक सरकार में रहकर भी प्रेम पूर्वक कार्य करते देखे जा सकते हैं!
‘नि’तीशकुमार को 'राजग' क्यों छोड़ना पड़ा ?-
      राजग में ‘न’रेंद्र मोदी को प्रमुखता मिलते ही ‘न’रेंद्र मोदी जी और ‘नि’तीशकुमार में एकाक्षर दोष प्रारंभ हो गया था इसीलिए ‘नि’तीशकुमार छोड़ गए थे 'राजग'! अब दोनों का फिर एक साथ जो तालमेल बैठा है उसमें नरेंद्र मोदी जी के अलावा किसी तीसरे की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही होगी और ये चलेगी भी तभी तक जब तक कोई तीसरा पक्ष इन दोनों को मिलाने के लिए अत्यंत सावधानी और सतर्कता पूर्वक अपनी गंभीर भूमिका का निर्वाह करता रहेगा! अन्यथा इन दोनों लोगों के किसी मुद्दे को लेकर सीधे तौर पर आमने सामने आते ही फिर राजग टूटेगा!
'मा'यावती और 'मु'लायम सिंह पहले मित्र और बाद में शत्रु क्यों बन गए ?-
        इन दोनों के नाम का पहला अक्षर एक होने के कारण पहले स्वभाव मिला सोच मिली बिचार मिले तब तो एक दूसरे का समर्थन करते रहे किंतु एक ही पद पर दोनों की आशक्ति एक साथ हो गई! इससे एकाक्षरी दोष प्रभावी हो गया और दोनों के मन में उस पद को लेकर एक दूसरे के प्रति दुर्भावनाएँ पैदा हो गईं! दोनों का पहला अक्षर 'म' होने के कारण दोनों का अहंकार टकरा गया!
 अन्ना आंदोलन नष्ट क्यों हुआ?-
        इसमें एकाक्षरी दोष के चार जोड़ पड़ गए थे! अन्ना ने इस आंदोलन का अगुआ जिन तीन लोगों को बनाया उनका परस्पर तो एकाक्षर दोष था ही इसके साथ ही साथ स्वयं अन्ना हजारे के साथ भी उनका एकाक्षर दोष बन गया! एक तो स्वयं अन्ना हजारे दूसरे अग्निवेष तीसरे अरविंद केजरीवाल और चौथे अमित त्रिवेदी! इन चारों का पहला अक्षर एक होते ही ये चारों एकाक्षरी दोष के शिकार हो गए और सारे परिश्रम पर पानी फिर गया! अन्ना आंदोलन में ‘अ’ग्निवेष, ‘अ’रविंद केजरीवाल और ‘अ’मित त्रिवेदी एक साथ रहकर किसी लक्ष्य को कैसे प्राप्त कर सकते थे!
अन्ना का लोकपाल बिल पास क्यों नहीं हुआ?
     अन्ना हजारे का भ्रष्टाचार विरोधी बिल भी लोक सभा में पास हुआ किंतु राज्य सभा में लटक गया क्योंकि वहाँ ‘अ’भिषेक मनुसिंघवी और ‘अ’रुण जेटली आमने सामने थे जहाँ दोनों लोग एक अक्षर वाले आमने सामने हों वहाँ आपस में कोई सहमति बन ही नहीं सकती है! इसके अलावा तीसरे अ वाले अन्ना हजारे थे! इसलिए अभिषेक मनुसिंघवी और अरुण जेटली की किसी बहस से अन्ना को यशलाभ हो पाना संभव ही नहीं था तीनों ही परस्पर एक दूसरे के लिए एकाक्षरी दोष से पीड़ित थे ।
रामदेव का रामलीला मैदान में अपमान क्यों हुआ?
      जिस रामलीला मैदान में आंदोलन करने रामदेव और अन्ना हजारे दोनों गए और जाते समय तत्कालीन सरकार ने अपने मंत्री नेता आदि भेजकर बहुत मान मनौव्वल की किंतु दोनों नहीं माने! दोनों ने रामलीला मैदान में ही आंदोलन किया जहाँ अन्ना हजारे 13 दिन तक बैठे रहे उनको तो बार बार मनाया गया और सम्मान पूर्वक उनकी बात मानी गई!
       इसी प्रकार से आंदोलन के लिए जब रामदेव दिल्ली आए तो तत्कालीन सरकार के चार चार मंत्री उन्हें भी मनाने के लिए हवाई अड्डे पर गए रामदेव भी नहीं माने ‘रा’मदेव का कार्यक्रम ‘रा’मलीला मैदान में शुरू हो गया था!  इस विषय पर ‘रा’हुलगाँधी से भी विचार विमर्श हुआ होगा तो ‘रा’हुलगाँधी रामदेव और रामलीला मैदान ये तीन र आमने सामने आते ही जो हुआ वो सबको पता है!इसके बाद यही रामदेव दूसरी बार भी रामलीला मैदान आए किंतु तब तक उन्हें पहले जैसा ही मौसम बनने की भनक लगी तो सरकार अपने हाथ साफ करती उसके पहले ही रामदेव रामलीला मैदान छोड़कर ‘रा’जीवगाँधी स्टेडियम के लिए निकले पड़े किंतु ‘र’ ने वहाँ भी पीछा नहीं छोड़ा !वो तो भाग्य अच्छा था इसलिए ये वहाँ तक पहुँच नहीं सके और ‘अ’म्बेडकर स्टेडियम में रुक गए इससे बचाव हो गया!
    राजनैतिक दलों की दुर्दशा वर्णविज्ञान के कारण भी होती है !
      किसी देश या प्रदेश के नाम का पहला अक्षर और राजनैतिक दल के नाम का पहला अक्षर यदि एक हो जाए तो उस देश या प्रदेश में ऐसे राजनैतिक दल का कोई भविष्य नहीं होता है! ऐसे राजनैतिक दलों का विकसित हो पाना बहुत कठिन होता है! बहुत परिश्रम करने से यदि पल्ल्वित हो भी जाए तो भी उस नाम से लक्ष्य प्राप्त करना बहुत कठिन होता है! जैसे - भारत में सत्ता पाने के लिए भारतीय जनता पार्टी को 'राजग' का गठन करना पड़ा जबकि प्रदेशों में ऐसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा वहाँ सरकारें आराम से बन जाती थीं !
   महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का विकास क्यों नहीं हुआ?
      राज ठाकरे अत्यंत सक्षम व्यक्तित्व के धनी हैं उनकी जुझारू शैली जनता को पसंद भी आती है लोग उनके अंदाज में बाला साहब ठाकरे की छवि देखा करते हैं किंतु जैसे ही उन्होंने महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का गठन किया जिसमें महाराष्ट्र और महाराष्ट्र नव निर्माण सेना का पहला अक्षर एक होते राजनैतिक दृष्टि से उनका प्रभाव उस प्रकार से नहीं बढ़ पाया जैसी आशा समाज के मन में थी!
      माधवराव सिंधिया जी की मध्यप्रदेश विकास काँग्रेस और मध्यप्रदेश –
      माधव राव सिंधिया जी की मध्यप्रदेश विकास काँग्रेस मध्यप्रदेश में इन तीनों का पहला अक्षर एक होते ही यह प्रयास एकाक्षर दोष का शिकार हो गया इसीलिए वह पार्टी चुनावों में प्रगति नहीं कर पाई !
 गुजरात परिवर्तन पार्टी और गुजरात –
       केशुभाई पटेल का अत्यंत प्रभावी नेतृत्व होने के बाद भी गुजरात परिवर्तन पार्टी गुजरात में कोई चमत्कार नहीं कर पाई!
 हरियाणा और हरियाणा विकास पार्टी –
     हरियाणा की हविपा भी इसीलिए पल्लवित नहीं हो पाई !
       ऐसा जिन जिन प्रदेशों में हुआ उनका यही हाल हुआ! पहला अक्षर एक होते ही यह प्रयास एकाक्षर दोष का शिकार हो गया और वे पार्टियाँ चुनावों में प्रगति नहीं कर पाईं !
      इसी प्रकार से किसी भी संगठन या राजनैतिक दल में या किन्हीं दो व्यक्तियों में पहला अक्षर एक होते ही वे एकाक्षर दोष के शिकार होकर स्वयं नष्ट हो जाते हैं!
मुख्यमंत्री प्रधानमंत्री आदि ऐसे नेता क्यों नहीं बन सकते?
      किसी देश या प्रदेश के नाम का पहला अक्षर और जिस व्यक्ति के नाम का पहला अक्षर यदि एक था तो उस प्रदेश में या तो मुख्य मंत्री बना नहीं और बना तो अधिक दिन टिक नहीं सका उसके कुछ उदाहरण-
                                                       बिहार के मुख्यमंत्री-
बिनोदानंद झा - फरवरी 1961अक्टूबर 1963

बी पी मंडल-1 फरवरी 1968 से 22 फरवरी 1968 तक

बिंदेश्वरी दुबे- - मार्च 1985 से फरवरी 1988 तक
                                                   उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री- 
    उ अक्षर से मुख्यमंत्री नहीं बना , उमाभारती जी को भी इसीलिए वहाँ से खाली हाथ ही लौटना पड़ा!
                                                   उत्तराखंड के मुख्यमंत्री- 
उ अक्षर से उत्तराखंड में कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री-
म अक्षर  मध्यप्रदेश में कोई मुख्यमंत्री नहीं बना (मात्रा भेद से मोतीलाल बोरा को नहीं माना जाएगा )
                                                छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री-
छत्तीसगढ़ में छ अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                 तमिलनाडु के मुख्यमंत्री
तमिलनाडु  में त अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                 झारखंड के मुख्यमंत्री
झारखंड में झ अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                तेलंगाना के मुख्यमंत्री
तेलंगाना में ते अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                कर्नाटक के मुख्यमंत्री
कर्नाटक में क अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                 त्रिपुरा के मुख्यमंत्री
त्रिपुरा में त्रि अक्षर से कोई  मुख्यमंत्री नहीं बना
                                               आन्ध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री -
आन्ध्रप्रदेश में आ अक्षर से कोई  मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                हरियाणा के मुख्यमंत्री -
हरियाणा में ह अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना (मात्रा भेद से हुकुम देव को नहीं माना जाएगा )
                                                 गुजरात के मुख्यमंत्री -
गुजरात में गु अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                हिमाचल के मुख्यमंत्री -
हिमाचल में हि अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                 असम के मुख्यमंत्री -
असं में अ अक्षर से कोई  मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                  दिल्ली के मुख्यमंत्री -
दिल्ली में दि अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                 राजस्थान के मुख्यमंत्री -
राजस्थान में रा अक्षर से कोई  मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                 मणिपुर के मुख्यमंत्री -
मणिपुर में म अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना (मात्रा भेद से मो को नहीं माना जाएगा )
                                                  मिज़ोरम के मुख्यमंत्री -
मिज़ोरम में मि अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                    गोवा के मुख्यमंत्री -
गोवा में गो अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                    उड़ीसा के मुख्यमंत्री- 
उड़ीसा में उ अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                   जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री-
जम्मू कश्मीर में ज क अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                   नागालैंड के मुख्यमंत्री-
नागालैंड में ना अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                                   अरुणाचल के मुख्यमंत्री -
अरुणाचल में अ अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !

                                                     मेघालय के मुख्यमंत्री -
मेघालय मे अक्षर से कोई मुख्यमंत्री नहीं बना !
                                             पश्चिमबंगाल  के मुख्यमंत्री
पश्चिमबंगाल  में प अक्षर से मुख्यमंत्री नहीं बना (संयुक्ताक्षर के कारण प्रफुल्ल को नहीं माना जाएगा )
                                                      पंजाब के मुख्यमंत्री -
पंजाब में प अक्षर से मुख्यमंत्री नहीं बना (संयुक्ताक्षर के कारण प्रकाश सिंह बादल को नहीं माना जाएगा )
                                                          केरल के मुख्यमंत्री -
केरल में के करुणाकरन को अधिक दिन रहने नहीं दिया गया !
                                                   महाराष्ट्र  के मुख्यमंत्री -
मनोहर जोशी मुख्यमंत्री बने ( अपने प्रभाव से नहीं अपितु ठाकरे जी ने बनाया इसलिए नहीं माना जाएगा) मोरार जी देसाई ('मो' नहीं माना जाएगा), मारोतराव कन्नमवार (अधिक दिन रहने नहीं दिया गया )

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                                                अ अक्षर का विशेष महत्त्व –
      भारत का नाम जब अ अक्षर से शुरू होता था तब इसी आर्यावर्त अर्थात भारत का दबदबा सारे विश्व में चलता था आज अमरीका का नाम अ अक्षर से प्रारंभ होता है तो अमेरिका को सबसे अधिक शक्तिशाली माना जाता है! ये अ अक्षर का ही कमाल है! इसीप्रकार से देवराज इंद्र की नगरी का नाम अमरावती भी अ अक्षर से ही है! सम्राट अशोक का नाम भी अ अक्षर से ही है! आल्हा ऊदल आदि की कहानियों में 'आ'ल्हा ही प्रमुख थे! पांडवों में बड़े भाई युधिष्ठिर का सम्मान तो बहुत था फिर भी प्रमुखता 'अर्जुन' को मिली ! इसीप्रकार से सम्राट अशोक , अकबर आदि अनेकों अ अक्षरवाले प्रभावी प्रशासक हुए हैं!
     बाबाओं में आशाराम , राजनैतिक क्षेत्र में अटलबिहारी वाजपेयी जी यद्यपि ल , इ, और न भी अ प्रजाति के ही वर्ण हैं किंतु अ सबसे आगे है! फ़िल्म के क्षेत्र में हैं तो बहुत लोग किंतु अमिताभ बच्चन ही अ अक्षर वाले हैं! ऐसा ही कई अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिलता है!
                                अ अक्षर को वर्ण माला में पहला स्थान क्यों मिला?
     वस्तुतः अ अक्षर केवल वर्णमाला में ही नहीं अपितु हर जगह सबसे आगे होता है! अ अक्षर स्वयं में सम्राट होता है! अक्षर वाले लोगों में प्रशासकीय भावना कूट कूट कर भरी होती है! ये जिस भी क्षेत्र में होते हैं वहाँ पहले स्थान पर ही रहना पसंद करते हैं उसके लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार बने रहते हैं!
    भारत वर्ष को जब 'आर्यावर्त' कहा जाता था तब भारत विश्व में प्रथम स्थान पर था इसीलिए विश्वगुरु माना जाता था! न जाने किसने उस आर्यावर्त को धीरे धीरे हिंदुस्तान बनाकर उसके आस्तित्व को हल्का कर दिया है!
                        'अ' की जगह 'ह' कर देने से होता है नुक्सान!-
    हस्तिनापुर को पहले 'आसन्दीवत' कहा जाता था जैसे  हिंदुस्तान को पहले आर्यावर्त  कहा जाता था !'आ'र्यावर्त को 'हिन्दुस्तान' बना देने से जैसे आर्यावर्त टुकड़ों टुकड़ों में विभाजित हो गया वही दशा वैदिक युग में 'आसन्दीवत' नामक देश का नाम बदलकर हस्तिनापुर कर देने से हस्तिनापुर की हुई थी! 'आसन्दीवत' अ अक्षर से संबंधित नाम है इसलिए उस समय विश्व में इस देश का गौरवपूर्ण स्थान था इसे बहुत बड़ा सम्मान प्राप्त था किंतु महाभारतकाल में उसी 'आसन्दीवत' देश को हस्तिनापुर कहा जाने लगा!
     हस्तिनापुर नाम रखने के बाद धीरे धीरे उसके दुष्प्रभाव होने ही थे एक बार तो बलराम जी ने कौरवों पर क्रोध करके उनके नगर हस्तिनापुर को अपने हल की नोंक से खींच कर गंगा में गिराना चाहा था! किंतु पीछे उन्हें क्षमा कर दिया था! इसीलिए उसके पश्चात् हस्तिनापुर गंगा की ओर कुछ झुका हुआ-सा प्रतीत होने लगा था! कई बार तो इस नगर को गंगा जी बहा ले गईं! जब गंगा की बाढ़ के कारण यह पुर विनष्ट हो गया था उस समय पाण्डव हस्तिनापुर को छोड़कर कौशाम्बी चले आये थे।
      धृतराष्ट्र से आधा राज्य प्राप्त करने के पश्वात पांडवों ने इन्द्रप्रस्थ में अपनी राजधानी बनाई थी।इन्द्रप्रस्थ को खांडवप्रस्थ के स्थान पर पांडवों ने बसाया गया था। जबकि दुर्योधन की राजधानी हस्तिनापुर में ही बनी रही! हस्तिनापुर वाले कौरव पराजित होते चले गए! यही स्थिति 'आ'र्यावर्त को 'हिन्दुस्तान' बना देने से हुई है!
‘आ’र्यावर्त, ‘भा’रत ‘हिं’दुस्तान और ‘इं’डिया ये नाम वर्णविज्ञान की दृष्टि में-
      भारतवर्ष को यदि ‘आ’र्यावर्त के नाम से प्रचारित किया जाए तो अपनादेश आज भी अमेरिका की तरह अपनी विशेष पहचान बना सकता है! यदि इस देश को भारत वर्ष के नाम से प्रचारित किया जाए तो ये आज भी विश्वमंच पर सम्मान पाने वालों में से पहला स्थान प्राप्त कर सकता है! चीन नेपाल भूटान आदि देशों के साथ स्वाभाविक मित्रता बढ़ती चली जाएगी! अमेरिका आदि देशों में भारत को विशिष्ट स्थान आसानी से उपलब्ध हो सकता है! यदि इंडिया के नाम से इस देश को प्रचारित किया जाए तो अपना मान सम्मान पद प्रतिष्ठा आदि प्राप्त करने के लिए इस देश को दूसरों के ही आधीन रहना होगा और उनका पिठलग्गू बनकर ही कुछ प्राप्त कर पाना संभव हो पाएगा!
      हिंदुस्तान के नाम से यदि इस देश को प्रचारित किया जाए तो हिंदुस्तान का 'ह' भी 'प' की प्रजाति का शब्द है! तब तो पाकिस्तान की तरह ही हिंदुस्तान की पहचान भी बच्चों जैसी बन कर रह जाएगी कोई कभी पुचकार लेगा तो कभी दुद्कार देगा! जब कोई काम लेना होगा तब कुछ लोभ लालच देकर अपना काम निकाल लेगा और फिर दुद्कार देगा! आज हिंदुस्तान और पाकिस्तान के प्रति यही भावना विश्व के देश बनाए बैठे हैं! यही कारण है बच्चों की तरह जब हिंदुस्तान और पकिस्तान लड़ते हैं तब अपने को शासक समझने वाले देश कभी इन्हें डाँट कर चुप करा देते हैं कभी उन्हें!
      हिंदुस्तान कहने से विश्व मंच पर भारत की छवि भी पाकिस्तान की तरह ही दब्बू देश की बनती चली जा रही है स्थिति यदि यही रही तो हिंदुस्तान को भी पाकिस्तान की तरह ही अन्य देशों के इशारे पर ही नाचना होगा! ऐसे तो अन्य देश भी अपनी सुविधा के अनुशार हिंदुस्तान का भी उपयोग करना प्रारंभ कर देंगे! ऐसी परिस्थिति में हिन्दुस्तानी कहलाकर पाकिस्तान से अधिक सम्मान सहयोग और अहमियत पाने की आशा हमें भी नहीं करनी चाहिए!
भारत यदि पहले विश्वगुरु था तो आज क्यों नहीं ?
      भा अक्षर प्रकाश अर्थात ज्ञान का प्रतीक होता है इसीलिए जब अपने देश को लोग भारत के नाम से जानते मानते थे और भारत नाम ही व्यवहार में प्रयोग किया करते थे तब अपने भारत की पहचान और गणना ज्ञानियों में हुआ करती थी! विश्व के किसी दूसरे प्रभावी देश का नाम भ अक्षर से नहीं प्रारंभ होता था इसलिए ज्ञान के प्रतीक भारत को ही विश्वगुरू माना जाता था!जो लोग हमारे देश  के ज्ञानविज्ञान के संस्कृत ग्रंथों का अनुवाद करके ले गए उसी  हमारे ज्ञान विज्ञान के द्वारा ही जान समझकर हमारे देश का नाम हिन्दुस्तान रखकर वही लोग चले गए !
भारत'आर्यावर्त' यदि पहले सोने की चिड़िया था तो आज क्यों नहीं?
हिन्दुस्तान को पहले 'आर्यावर्त कहा जाता था तब भारत का नाम अ अक्षर से प्रारंभ होता था अ अक्षर से संबंधित देश स्वयं में स्वभाव से ही प्रशासक अर्थात सम्राट होता है! इसलिए उस समय सभी प्रकार के संसाधनों सम्पत्तियों से युक्त भारत न केवल सोने की चिड़िया अपितु विश्व सम्राट भी था! किंतु इसकी पहचान हिन्दुस्तान बनते ही ये चौथे पावदान पर पहुँच गया!वही लोग हमारा ज्ञान विज्ञान की समृद्ध संपत्ति ले गए और हमारे देश का नाम इण्डिया रखकर चले गए !
अक्षरों की शक्तियाँ विपरीत होने से परतंत्र हुए थे हम!
      वस्तुतः अ ल न य थ भ द ध स ग ज आदि वर्ण वर्णविज्ञान की दृष्टि से उच्च एवं सक्षम प्रजाति के हैं ये वर्ण अपना विकास करने में स्वयं सक्षम होते हैं और क ह घ छ ड प फ आदि वर्ण सबसे सामान्य या बाल्य बुद्धि से संबंधित कमजोर एवं ढुलमुल प्रजाति के वर्ण हैं ऐसे वर्णों का अपना आस्तित्व भी औरों के आसरे पर टिका होता है!
      इस दृष्टि से पहले हम और हमारा देश हमारा धर्म एवं हमारी भाषा के नाम सक्षम प्रजाति के वर्णों से शुरू होते थे!तब हमारा देश विश्व गुरु एवं सोने की चिड़िया के रूप में प्रतिष्ठित भी था !
  • हमारा देश तब था आर्यावर्त या भारत अब है हिन्दुस्तान !
  • हमारा धर्म तब था सनातन धर्म और अब है हिंदू धर्म ! 
  • हमारी भाषा तब थी संस्कृत और अब है हिंदी !
   अंग्रेजी की तुलना में हिंदी कमजोर क्यों ?
     जो लोग हिंदुस्तान में पैदा हुए पले बढ़े हिंदी बोलते हुए ही इतने बड़े हुए और आज भी हिंदी भाषियों में ही रहते हैं वे हिंदी भाषियों के बीच रहकर भी अँग्रेजी बोलते हैं जबकि वे हिंदी बोलने में सक्षम लोग हैं और जिनसे वे बात करते हैं वे हिंदी समझने में सक्षम हैं !फिर भी ऐसा है इसका क्या कारण हो सकता है ?
  वस्तुतः ये है ह अक्षर का प्रभाव !इसीलिए जिन्हें हिंदी बोलने में शर्म लगती है ! हिंदी में बात करेंगे तो ह अक्षर के कारण मनोबल गिरना स्वाभाविक है !हमें झुककर बात करनी ही होगी ये ह अक्षर का प्रभाव है और जिन्हें झुककर बात करने में शर्म लगती है वे हिंदी बोलते ही नहीं हैं अपितु अंग्रेजी बोलने लगते हैं !वो नहीं चाहते कि वे हिंदुस्तानी हिंदू बनकर वहाँ जाएँ !
    अ अक्षरवर्ण सम्राट  है अ अक्षर वाले अंग्रेज उनकी भाषा अ अक्षर वाली अंग्रेजी है या अरबी है !इसलिए वो लोग भारतीय भाषाओँ की परवाह ही नहीं करते हैं !
        मतलब साफ है वो हमसे बात करना चाहें तो अपनी भाषा में करें और हम भी उनसे बात करते समय उनकी भाषाई सुविधा का ध्यान रखें! ऐसे खोखले सम्मान की चाहत में हम अंग्रेजी बोलने लगे! ये हमारी कमजोरी एवं उनका भाषाई सामंतवाद नहीं तो क्या है! इसका मतलब तो यही है कि हमारी हजार बार गरज हो तो हम उनसे उनकी भाषा में बात करें अन्यथा उन्हें हमसे बात करने की आवश्यकता ही नहीं है तो मुझे उनकी आवश्यकता क्यों! आखिर हम उनकी जरूरत क्यों नहीं बन सके!ये हमारे ह अक्षर और उनके अ  अक्षर का ही महत्त्व है !
     इसी प्रकार से हिंदू धर्म की बात आई तो ह अक्षर के कारण हमें महत्त्व नहीं दिया जाता था आज भी हमारी धार्मिक ज्ञान विज्ञान की बातें कपोल कल्पित सिद्ध करके हवा में उड़ा दी जाती हैं हमारे प्राचीन अत्यंत समृद्ध वैदिक ज्ञान विज्ञान को अंधविश्वास बता दिया जाता था! तो उन बातों से जूझने के बजाए इस बेइज्जती से बचने के लिए हम धर्मनिरपेक्ष हो गए और उन्हीं के साथ मिलकर हमारे लोग भी भारत के समृद्ध वैदिक ज्ञान विज्ञान को अंधविश्वास कहकर उन्हीं के समर्थन में हम भी दुम हिलाने लगे! जबकि कल्पनाप्रसूत मनगढंत अंधविश्वासों के उन पुलिदों ने अपनी दकियानूसी बातों को धर्म सिद्ध कर लिया! वर्णविज्ञान की दृष्टि से ये हमारे हिंदू शब्द के ह अक्षर की कमजोरी का ही फल है!
     ऐसे ही हिंदुस्तान शब्द का ह हमेंशा मनोबल गिराए रहता था और हम निरंतर पराजित होते जा रहे थे तो हमें किसी ने इण्डिया नाम दे दिया और हम भी बिना किसी किंतु परंतु के अपने को इंडियन मानने लगे क्यों? हमारा अपना कोई आस्तित्व ही नहीं होना चाहिए क्या?
    हिंदी हिंदू हिंदुस्तान के प्रारंभ में ह अक्षर के आने से हम इन शब्दों को शाब्दिक दृष्टि से अपना बताते रहे किंतु इनके विकल्पों से काम चलाते रहे क्यों? हमने जिसे राष्ट्रभाषा माना उसकी जगह सारा काम काज अंग्रेजी में हो रहा है क्यों? यदि अपनी भाषा का सम्मान नहीं है तो ऐसा मानना न मानना एक बराबर ही है!
    इसलिए वर्ण वैज्ञानिक सच्चाई ये है कि कहीं भी हम भारतीय बनकर जाएँगे तो हमारा भी सम्मान होगा और हमारी बात भी सम्मान पूर्वक सुनी जाएगी! विश्व में हमारा भी प्रभाव बढ़ेगा! यहाँ तक कि यदि हम संस्कृत में बात करें जो कि कठिन है किंतु असंभव नहीं तो अंग्रेजी और अरबी दोनों पर हमारी भाषा भारी पड़ सकती है! इसके अलावा यदि हम सनातनधर्मी के रूप में अपनी बात रखते हैं तो हमारी धार्मिक बातें भी स्वीकार्य होंगी!    
      हिंदू हिंदी हिंदुस्तान जैसे शब्दों का रहस्य आखिर है क्या?
      क्या हैं हिंदू हिंदी हिंदुस्तान जैसे शब्द और हमें मिले कहाँ से कब मिले क्यों मिले आखिर इनका जन्मदाता कौन है इसके पीछे उसकी सोच क्या हो सकती है! ये नए नाम भारतीयों ने रखे क्या या भारतीयों की सहमति लेकर रखे गए क्या इनकी आवश्यकता क्यों पड़ी और ऐसे शब्द कब आस्तित्व में आए इन प्रश्नों का उत्तर जिज्ञासा वश मैंने खोजना प्रारंभ किया इस विषय में अपनी अध्ययनादि बौद्धिक सीमाओं के हिसाब से लंबे समय तक अनुसंधान किया तो कुछ बातें सामने आईं और कुछ प्रश्न उठे जो अभी तक अनुत्तरित हैं! अनुसंधान से प्राप्त अनुभवों को न मैं सह पा रहा हूँ और न कह पा रहा हूँ किंतु वर्ण विज्ञान के बहाने ही सही अब मैं अपनी बात अपनों से कहना चाहता हूँ!
    बात शुरू करने से पहले मैं निवेदन करूँ कि हिंदू हिंदी हिंदुस्तान जैसे शब्द कैसे भी हमें मिले हों किंतु ये आज हमारी पहचान बन चुके हैं और अपने हैं इसमें कोई संशय नहीं है! हम उन पर गर्व इसलिए करते हैं कि ये हमारे हैं! अपनेपन में सबकुछ अपना होता है!
भारतवर्ष का नाम बदला क्यों गया?
     इस विषय में विशेष बात यह है कि जंबूद्वीप , भारत , अजनाभ देश, आर्यावर्त आदि नाम होते हुए भी हिन्दुस्तान नाम क्यों बदला गया? प्रश्न उठता है कि जंबूद्वीप , भारत , अजनाभ देश, आर्यावर्त आदि अत्यंत सम्माननीय एवं भारतीयों के इतिहास से जुड़े नाम खटके किसे और क्यों खटके? जब किसी का या किसी देश का नाम नहीं बदला जाता तो हमारे देश का नाम बदलने की जरूरत क्यों समझी गई! इसका आजतक कोई प्रमाणित उत्तर मुझे मिला नहीं!
क्या हिंदुस्तान शब्द का आधार है हिंदूकुशपर्वत?
     हिंदुस्तान जैसा नाम ही क्यों चुना गया? बताया जाता है कि हिंदूकुशपर्वत के कारण ऐसा नाम रखा गया किंतु इस पर्वत का नाम पहले हिंदुकुश पर्वत तो था ही नहीं तब तो ये पारियात्रपर्वत के नाम से प्रसिद्ध था हिंदूकुश नाम तो हिन्दुओं के साथ हुए अत्याचारों की याद दिलाने के लिए बाद में रख दिया गया था! इसलिए हिंदुस्तान नाम रखने के पीछे हिंदूकुश पर्वत की आड़ लेना ठीक नहीं होगा!
सिंधु शब्द से हिन्दुस्तान ही क्यों बना सिंधुस्तान क्यों नहीं?
      हिंदूशब्द यदि सिंधुशब्द से बना है तो सिंधु नदी के नाम पर ही भारत का नाम क्यों बदला गया होगा! यदि मान भी लिया जाए कि इसके पीछे सिंधु शब्द ही है तो उसे बदलना क्यों पड़ा फिर तो सीधा सीधा सिंधुस्तान नाम भी रखा जा सकता था जिसका मतलब समझाने की जरूरत ही नहीं पड़ती! सिंधी सिंधू सिंधुस्तान जैसे तीनों शब्दों में ह की जगह स हो जाती तो वर्णविज्ञान की दृष्टि से भी स वर्ण सक्षम प्रजाति का है ह वर्ण कमजोर प्रजाति का है! इसलिए सक्षमप्रजाति का उत्तमवर्ण बना रहता! इसमें तो कोई आपत्ति भी नहीं थी!किंतु किसी को आपत्ति तो रही होगी तब तो सुनियोजितढंग से स को ह कर दिया गया !
सिंधु शब्द के स को बदलकर ह करना क्यों जरूरी था?
    इस सिंधु शब्द से स को हटाकर ह करने की किसी की क्या मजबूरी हो सकती है? ऐसा करने के पीछे उसका उद्देश्य क्या रहा होगा! कुछ लोगों का तर्क है कि ईरानी लोग स को ह बोलते हैं और उन्होंने ही अपनी सुविधानुसार सिंधु को हिंदु कर लिया किंतु हमारे देश के विषय में इतना बड़ा फैसला ईरानी लोग लेने वाले होते कौन हैं और हम उसे मानने के लिए बाध्य क्यों है ?
    संस्कृत पढ़े लिखे लोग इसमें पाणिनीय व्याकरण के स को ह करने वाले सूत्र का हवाला देते हैं! किंतु व्याकरण तो 'सिद्धसाधुशब्दानामन्वाख्यानमं व्याकरणम्' आदि! अर्थात नए शब्द गढ़ता नहीं है व्याकरण! ये तो अन्वाख्यान पद्धति है! वैसे भी स को ह करने के लिए यहाँ व्याकरण की आवश्यकता ही क्या थी! स को स ही बना रहने दिया जाता!
हिंदुस्तान नाम रखने के पीछे आखिर किसका क्या उद्देश्य रहा होगा?
     बिना उचित कारण बताए किसी देश का नाम बदल दिया जाए ऐसा भी कहीं होता है क्या? दूसरी बात ऐसा करने के पीछे किसी दूसरे का क्या स्वार्थ हो सकता है अन्यथा भारतीय लोग तो स अक्षर बोल पाते थे ईरानी न बोल पाते हों तो न सही ये उनकी समस्या थी वो जानें! उन ईरानियों ने अपनी समस्या का समाधान करने के लिए हमारे देश का नाम अपनी सुविधानुसार बदल लिया सिंधु को हिंदू कर लिया और हमने मान लिया ये उचित और तर्कसंगत नहीं लगता है!
स अक्षर से समस्या होती तो ले सकते थे भारत समेत दूसरे नाम!
    यदि ईरानी लोग स को बोलने में समस्या थी तो हमारे देश के इतने प्राचीन नाम थे उनमें से वे अपनी सुविधानुसार कोई नाम चुन लेते और उसी से भारत को सम्बोधित करने लगते जंबूद्वीपवर्ष , भारतवर्ष , अजनाभवर्ष , आर्यावर्त आदि में तो स अक्षर नहीं है भारत नाम तो व्यवहार में भी था इसलिए इसी से वे अपना काम चला सकते थे! किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया! इसका मतलब उनका उद्देश्य हमारे देश का नाम बदलना नहीं अपितु नाम का पहला अक्षर बदलना लगता है उनकी समस्या स अक्षर से नहीं अपितु उनका उद्देश्य भारतवर्ष का कोई ऐसा नाम रखना हो सकता है जिसका पहला अक्षर ह हो! किंतु पुराने स्थापित नामों का पहला अक्षर इन्हें कोई क्यों बदल लेने देता! इसलिए पहला अक्षर ह करने के लिए उन्होंने भारत का नाम ही बदल डाला! इसके अलावा उनके पास और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था!
भारतवर्ष का नाम परिवर्तन वर्णविज्ञान की दृष्टि में
      जंबूद्वीप, भारत , अजनाभदेश, आर्यावर्त आदि प्रचलित नामों का पहला अक्षर यदि वे बदलकर ह करना चाहते तो कोई क्यों स्वीकार कर लेता! यहाँ तक कि सिंधु समेत इन सभी नामों के पहले वाले अक्षर वर्णविज्ञान की दृष्टि से अत्यंत सक्षम प्रजाति के हैं इन नामों के प्रचलन में प्रभावी रहने से भारत को पराजित कर पाना आसान नहीं था! इसीलिए ये किसी एक विशेषवर्ग को पच नहीं रहे थे!
      वस्तुतः यदि केवल ये सक्षम प्रजाति के नाम ही प्रचलन में बने रहते तो उन्हीं नामों के बलपर हम विश्वगुरू और सोने की चिड़िया आदि उस समय कहे जाते थे आज भी हमारी वही धाक होती! इसीलिए इस देश का नाम बदलना किसी के लिए विशेष आवश्यक हो गया था और कमजोर प्रजाति के वर्णों से शुरू होने वाला हमारे देश का एक नाम रखा जाना किसी के लिए आवश्यक हो गया था! इसमें किसी बहुत बड़े विद्वान एवं समझदार वर्णवैज्ञानिक व्यक्ति की भूमिका लगती है!
हिंदू हिन्दुस्तान जैसे शब्द गढ़ने के पीछे सबसे बड़ा कारण हो सकता है वर्णविज्ञान!
    विदेशियों द्वारा हिंदू हिंदुस्तान जैसे शब्द हमें दिए गए हैं! वस्तुतः हिंदू एक फ़ारसी शब्द है। ईरानियों ने सिन्धु नदी के पूर्व में रहने वालों को हिन्दु नाम दिया। जब अरब से मुस्लिम हमलावर भारत में आए, तो उन्होंने भारत के मूल धर्मावलम्बियों को हिंदू कहना शुरू कर दिया । ये सब कुछ अचानक और अविचारित नहीं था! प्रकट तौर पर जो भी तर्क दिए गए हैं वो तथ्यविहीन एवं अप्रमाणित हैं! इसलिए इसविषय में तर्कयुक्त प्रमाण खोजा जाना बहुत आवश्यक है! मेरा निश्चित मानना है कि भारत को हिन्दुस्तान कहने के पीछे वर्णविज्ञान एक बड़ा कारण था!अन्यथा चारों वेदों में, पुराणों में, महाभारत में, स्मृतियों में इस धर्म को हिंदूधर्म या हिंदुस्तान शब्द कहीं नहीं मिलता है और न ही किसी भारतीय को इतना बड़ा बदलाव करने की कोई आवश्यकता ही थी!
      भारत को जीतने की दृष्टि से जिन आक्रांताओं ने अनेकों बड़े प्रयास किए किंतु भारत को जीत नहीं पाए! इसके बाद हैरान परेशान होकर उन लोगों ने भारत के शक्तिस्रोत धर्म एवं धर्मशास्त्रों में खोजने शुरू किए! इसके लिए उन्होंने बहुत परिश्रम किया! खगोल ज्योतिष चिकित्सा आदि के अनेकों संस्कृत के ग्रंथों का अनुवाद उन आक्रांताओं ने अपनी भाषा में करवाए और भारत के प्राचीन विज्ञान का गंभीर अध्ययन किया और करवाया!
    इसीक्रम में ज्योतिष आयुर्वेद आदि के कई महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रंथों का अरबी में अनुवाद किया गया! उन्हें पढ़ा गया समझा गया उसके विद्वान तैयार किए गए ऐसे सभी कामों में सैकड़ों वर्षों का समय लगा किंतु इससे उनके यहाँ भारतीय प्राचीन विद्याओं के कई बड़े विद्वान तैयार हो गए! अब उन पर भारत को पराजित करने के लिए रास्ता खोजने का काम सौंपा गया! उन्होंने ज्योतिष आदि विद्याओं पर गंभीर अनुसंधान किया और भारत का नाम बदल कर हिंदुस्तान कर दिया! इससे उनके लिए हिंदुस्तान पर विजय प्राप्त करना आसान हो गया!
     उन्हीं विद्वानों के क्रम में ही तो दशवीं शदी में अल-बिरूनी हुआ वो भी तो ईरानी मूल का ही मुसलमान था। वो आक्रांता महमूद गजनवी के साथ आया था! वो 1017 ईस्वी से 1020 ईस्वी तक भारत में रहा और भारत के ज्ञान विज्ञान का विशाल अध्ययन किया! इन्हीं कारणों से वो भारत के ज्योतिष और चिकित्साशास्त्र का महान विद्वान बना और संस्कृत आदि भारतीय भाषाओं तथा ज्योतिष चिकित्सा आदि पर अच्छा अधिकार रखता था।वो मशहूर गणितज्ञ, भूगोलवेत्ता, कवि, रसायन वैज्ञानिक और दार्शनिक भी था।उसने खगोलशास्त्र , ज्योतिषशास्त्र आदि पर अनेकों किताबें लिखीं ईस्वी 1030 में"तारीख उल हिन्द" नामक एक पुस्तक अरबी भाषा में लिखी!जिसमें ज्योतिष चिकित्सा आदि शास्त्रों की गंभीर विवेचना की !
    ऐसे ही वैदिक वर्ण विज्ञान के सुयोग्य विदेशी विद्वानों ने हिंद हिंदू हिंदी हिंदुस्तान आदि शब्दयोजनाबद्ध ढंग से भारतीय उपमहाद्वीप के विषय में गढ़े! जिनका प्रयोग अक्सर अरबी एवं ईरानी (पार्शियन) किया करते थे।ये नाम विशेषकर अरब/ईरान में ही प्रचलित हुए
हिंदमहासागर नाम रत्नाकर समुद्र का रख दिया गया क्यों ?
   आज से लगभग एक हज़ार साल पहले ईरानी व्यापारी भारत से व्यापार करते थे। उस समय भारत के बंदरगाह बड़े, उन्नत और विकसित थे। ईरानी व्यापारी पश्चिम के मध्य पूर्व देश और पूर्व में चीन तक व्यापार किया करते थे ।इन्हीं अरब व्यापारियों ने रत्नाकर समुद्र का नाम हिंदमहासागर रख दिया! इससे हिमालय और हिंदमहासागर दोनों नामों में एकाक्षर दोष हो गया! भारत के लिए हिमालय और रत्नाकर समुद्र दोनों ही महत्वपूर्ण हैं दोनों की सहयोगी भूमिका है! विश्व की दो बड़ी नदियाँ, ब्रह्मपुत्र और गंगा हिंद महासागर में मिलती हैं।ये नदियाँ 2, 000 किलोमीटर दूर हिमालय पर्वतमाला से रेत व मिट्टी ला कर समुद्र में ड़ालती हैं जिनसे नदियों के मुहाने मजबूत होते हैं टापू बनते हैं जो भारत की सुरक्षा के लिए सहायक होते हैं! भारत का  मॉनसून रत्नाकर अर्थात हिन्द महासागर की ओर से हिमालय की ओर आने वाली हवाओं पर निर्भर करता है।
      'हि'मालय और 'हिं'दमहासागर दोनों के बीच में फँस गया 'हिं'दुस्तान और उसमें रहने वाले 'हिं'दू इन चारों में योजनाबद्ध ढंग से एकाक्षरदोष पैदा किया गया इसीलिए ये चारों एक दूसरे के लिए हितकर नहीं रहे! इसीलिए हिंदू धर्मावलंबी यहाँ भी दबाए जा रहे हैं! हिन्दुओं के साधन सीमित होते जा रहे हैं हिंदुओं की संख्या घटती जा रही है! मानसून का संतुलन बिगड़ा हुआ रहता है कभी बादल फटते हैं कभी सूखा कभी अधिक वर्षा बाढ़ कभी आँधी की अधिकता भूकंप सुनामी आदि सबकुछ!
    हिमालय और हिन्द महासागर के तनाव में दबा जा रहा है हिन्दुस्तान! इस प्रकार से सुनियोजित ढंग से रचा गया है नाम बदल बदलकर ये संयोग!
इंडिया , इंडियन और इंडियनओशिन
    अल बिरूनी ने किताबुलहिंद नाम से जो किताब लिखी उस किताब में उसने भारतीयों के ज्योतिष चिकित्सा आदि सारे ज्ञान-विज्ञान की अरबी में व्याख्या की है।उसमें भारतीयों के अंक विज्ञान की जानकारी और उनकी खगोलीय जानकारी तथा वैद्यक समझ उसने  भूरि-भूरि प्रशंसा की है! 'वर्णविद्या' भी इन्हीं भारतीय ज्योतिषादि विद्याओं की अंग है इसी वर्ण विज्ञान से प्रभावित होकर वर्ण विज्ञान की दृष्टि से भारत को हमेंशा दबाकर रखने के लिए ईरानियों ने भारत का नाम बदल दिया धर्म भाषा समुद्र आदि सबका नाम लगभग 1000 वर्ष पहले बदल दिया गया!
    इसी वर्ण विज्ञान आदि से प्रभावित जर्मन विद्वान डॉक्टर एडवर्ड सी सखाउ ने सबसे पहले अल बिरूनी की इस किताब का अंग्रेजी अनुवाद किया जिससे इस वर्णविज्ञान का रहस्य अंग्रेजी वालों को भी समझ में आ गया! और इसके बाद उन्होंने भी वही किया जो ईरानियों ने किया था उन्होंने भी उसी नियत से भारत आदि के नाम बदलने शुरू कर दिए! भारत का नाम इण्डिया रखा भारतीय सनातन धर्मी हिन्दुओं को इंडियन कहा रत्नाकर समुद्र (हिन्द महासागर) को इंडियन ओशियन कहा यहाँ तक कि ये ईरानियों से भी दो कदम आगे निकल गए और इन्होंने सिंधु नदी का भी नाम बदल कर इंडस कर दिया ईरानी यहाँ चूक गए थे 16 वीं शताब्दी तक इंडियन शब्द ने उपमहाद्वीप के उन निवासियों का उल्लेख करना शुरू कर दिया, जो कि सनातनधर्मी थे!
   वस्तुतः भारत में ईरानियों का हस्तक्षेप अधिक पसंद न होने के कारण ही हो सकता है भारत का नाम बदलने के लिए ही अंग्रेजों ने इ अक्षर चुना हो!
    ईरान का ई और इंडिया का इ एक होते ही वर्ण विज्ञान की दृष्टि से एकाक्षर दोष हो गया और ईरानियों का भारत से सफाया होना शुरू हो गया था ! अंग्रेजों का दब दबा बढ़ना शुरू हो गया! धीरे धीरे अंग्रेजों ने देश को अपने आधीन कर लिया! ये है वर्ण विज्ञान का महत्त्व!
'हिं'दुस्तान नाम से इसीलिए होता है नुक्सान!
    विश्वगुरु भारत और विश्वसम्राट 'आ'र्यावर्त का प्रतिनिधित्व करने वाला हिन्दुस्तान और इण्डिया नाम से बस एक टुकड़ा भर बचा है जिसे ईरानी लोग अरबी भाषा में हिन्दुस्तान नाम से पुकारा करते थे!
'हिं'दुस्तान नाम पड़ने के बाद देश में तरक्की की तलाश!
    अक्षरों की प्रजाति में अ अक्षर को तो प्रशासक समझा जाता है जबकि ह क प ड आदि अक्षर तो बच्चे प्रजाति के हैं इनमें हमेंशा बचपना बना रहता है! जैसे बच्चों को कोई टॉफी खिलाकर अपने अनुशार चला लेता है वही स्थिति इन अक्षरों की है इनमें स्वाभिमान कहाँ होता है ये तो दूसरों की सेवा सुश्रूषा या दूसरों का सहयोग लेकर काम करने के लिए बने होते हैं! ऐसे लोगों से जो कोई हँस कर बोल दे या स्वार्थ का लालच दे दे ये उसी के हो जाते हैं!
    प अक्षर वाला पाकिस्तान तो इस श्रेणी में था ही ये प आदि अक्षर वर्णप्रजाति की  कमजोर सीढ़ियाँ हैं और भा अक्षर का स्थान सबसे ऊपर है किंतु जब से भारत की पहचान हिंदुस्तान के रूप में होने लगी तब से हिन्दुस्तान भी पाकिस्तान की बराबरी का देश बन गया धीरे धीरे विश्व बिरादरी में हिंदुस्तान और पाकिस्तान को एक तराजू पर तौला जाने लगा है! यदि ये देश आज भी आर्यावर्त होता तो मेरा विश्वास है कि 'आ'र्यावर्त के कभी टुकड़े नहीं किए जा सकते थे!
     इस देश को हिन्दुस्तान और इण्डिया कहने वाले शासक जहाँ जाकर इस देश की बेइज्जती करा आया करते थे वहीँ जिन प्रधानमंत्रियों ने इस देश को हिन्दुस्तान और इण्डिया न कहकर अपितु 'भारत' नाम से सम्बोधित किया उनके कार्यकाल में विश्व फलक पर भारत का सम्मान हमेंशा ही बढ़ता रहा है क्योंकि अक्षरों की प्रजाति में भ अक्षर को बहुत सम्मानित माना जाता है! जबकि'ह' अक्षर अत्यंत दब्बू प्रवृत्ति का माना जाता है!
कोई इण्डिया कहता है कोई हिंदुस्तान क्यों?
    भाषा का सिद्धांत है आप कोई भी भाषा क्यों न बोलते हों किंतु जो जिस भाषा का नाम है हमें वो नाम उसी भाषा में लेना पड़ेगा! हम उसका नाम अपनी मनमर्जी से बदल कर नहीं रख सकते! किसी का नाम कमल कान्त हो तो उसे लोटस हसबैंड कहा जाने लगेगा क्या ?फिर किसी अन्यदेश के लोग हमें इंडिया कहने लगे तो किसी अन्य देश के लोग हमें हिन्दुस्तान कहने लगे क्यों? हमारा अपना कोई आस्तित्व ही नहीं है क्या? कल कोई अन्य भाषा भाषी देश हमें कुछ और कहने लगेगा! हमारे भारत या आर्यावर्त नामों में कमी क्या थी आखिर नाम बदलने की साजिश की क्यों गई? ये पवित्र नाम हमें हमारे इतिहास से जोड़ते हैं जबकि वर्ण विज्ञान की दृष्टि से ह अक्षर से प्रारंभ होने वाला हिंदुस्तान नाम हमें कमजोर बनाता है!
     भारत और आर्यावर्त जैसे विराट वैभवशाली नामों को बदलकर इसे इण्डिया अथवा हिंदुस्तान करने का षड्यंत्र रचा क्यों गया भारत और आर्यावर्त जैसे नामों का तो अपना प्राचीन पवित्र इतिहास है किंतु इण्डिया जैसे नाम का संबंध हमारे भारत के प्राचीन इतिहास से किस प्रकार बैठता है! हमारे देश का अपना स्वाभिमान है उसे तो बना रहने दिया जाता! सारी दुनियाँ का नामकरण करने वाले भारत का नामकरण करके वो लोग चले गए जिनका कोई आस्तित्व ही नहीं था! आखिर ऐसा करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी! कहीं ऐसा भी होता है क्या कि किसी के बच्चों का नाम कोई दूसरा रखकर चला जाए! सामंतवादी लोग गाँवों में गरीबों के बच्चों का वास्तविक नाम न लेकर अपने मन से कुछ कुछ उपेक्षित सा नाम रख लिया करते हैं और उसी नाम से उसे पुकारा या चिढ़ाया करते हैं!
    वर्तमान समय में भारत के ये तीन नाम प्रचलन में हैं हिन्दी में भारत और अंग्रेज़ी में इण्डिया और अरबी में हिंदुस्तान कहते हैं !किंतु कोई भी किसी भी भाषा का नाम क्यों न हो वो जिस किसी भाषा भाषियों के द्वारा रखा गया होता है बुलाया जाता है !ये व्यवहार में सब जगह देखा जाता है ऐसी परिस्थिति में भारत का नाम बदलने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी?
     अपने देश का नाम इंडिया क्यों पड़ा मैंने इसके विषय में अनुसंधान किया तो वहाँ भी वही भ्रामक कहानी मिली पता लगा कि इण्डिया नाम की उत्पत्ति सिन्धु नदी के अंग्रेजी नाम "इण्डस" से हुई है! अरे सिंधु नदी का नाम अँगेजी भाषा भाषियों को पुकारने के लिए बदला क्यों गया जो इसका प्राचीन नाम था उसी को पुकारने में क्या आपत्ति थी! हमारे देश की नदी का नाम हम रखेंगे कि अंग्रेज! फिर हमारे देश का नाम किसी एक नदी के नाम पर रखने की ही हठ क्यों? यदि नदियों के नाम पर ही रखना था तो हमारे यहाँ और भी पुण्यसलिला नदियाँ हैं उनके नाम पर देश का नाम रख लेते! सिंधु नदी कई देशों से होकर गुजरती है जबकि इसका बड़ा भाग पकिस्तान को प्रभावित करता है! सबसे बड़ी बात है कि नाम तो तब रखा जाता है जब बच्चा पैदा होता है भारत का इतिहास तो अत्यंत प्राचीन है अब नाम रखने की आवश्यकता ही क्यों समझी गई!
    भारतवर्ष को वैदिककाल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है।इसे देखकर ऐसा लगता है कि हमें हमारे इतिहास से काटने का ये एक प्रयास लगता  है भारत का नाम बदलने की आवश्यकता आखिर पड़ी क्यों और किसने क्यों बदला भारत का नाम !
हिंदू और मुस्लिम में विवाद क्यों?
     'ह' अक्षर अत्यंत दब्बू प्रजाति और कमजोर प्रवृत्ति का माना जाता है! उधर 'म'अक्षर अत्यंत उग्र एवं गर्म प्रवृत्ति का है एवं अपने को राजा मानने वाला है जबकि ह अक्षर अपने को बच्चा समझता है!
    'स' अक्षर जुझारू प्रवृत्ति का ग्यानी गुणवान और खोजी प्रजाति का होता है स अक्षर वालों को संघर्ष क्यों न करना पड़े किन्तु ये अपने को हमेंशा सबसे ऊपर रखने के प्रयास में लगा रहता है! ये योग्य तो होता ही है इस दृष्टि से सनातनधर्म को हिंदूधर्म कहने की भूल भारी पड़ी है! जबकि हिंदू शब्द मूलतः सिंधु शब्द से बना है! पाणिनि व्याकरण में एक सूत्र है जो 'स' अक्षर को 'ह' बना देता है इसलिए सिंधु से हिंदू हो तो गया किंतु इसका दब्बूपन भी आ गया! इस परिवर्तन के ऐसे दुष्प्रभाव तो होने ही थे!
हिंदूधर्म और सनातनधर्म में अंतर क्या है?
     हिंदू' शब्द का ह वर्ण दब्बूपन का प्रतीक है इसलिए अपने को हिंदू रूप में प्रचारित करने की अपेक्षा सनातन धर्मी या सनातन हिंदू धर्मी बनकर रहने में ही हमारी भलाई है!
अमेरिका और अँग्रेजी का इतना अधिक महत्त्व क्यों?
     आज अमेरिका अ अक्षर से अ अक्षर स्वयं में सम्राट होता ही है जब भारत को आर्यावर्त कहा जाता था तब इसी आर्यावर्त का लोहा भी सारा विश्व माना करता था तब यही आर्यावर्त विश्वप्रशासक था! वही गौरव अब अ अक्षर वाले अमेरिका को प्राप्त है! हर देश जैसे आज अमेरिका अंग्रेजों और अँग्रेजी की ओर देखता है ऐसे ही पहले 'आर्यावर्त' अर्थात 'भारत' की ओर देखा करता था!
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                                                             वर्णविज्ञान के उपयोग से लाभ
    हमारे सभी प्रकार के संबंध किसी से भी क्यों न हों कुछ दिन तो वो प्रयास पूर्वक बहुत अच्छे ढंग से चला लिए जाते हैं किंतु सच्चाई यही है कि अंततः वो सभी सम्बन्धियों के संबंध हमारे साथ चल उसी प्रकार से पाते हैं जैसा हमारे नाम के पहले अक्षर का संबंध उसके नाम के पहले अक्षर के साथ होता है! अपने अनुशार ही संबंधों को समझने के लिए प्रत्येक अक्षर के स्वभाव को समझना होता है इसके बाद देखना होता है कि वर्णमाला के किस अक्षर के साथ उस अक्षर का संबंध कैसा है! उसी प्रकार का संबंध उस व्यक्ति से होगा जिसका नाम वर्णमाला के उस अक्षर से प्रारंभ होता है! संसार के सभी लोगों का नाम वर्णमाला के इतने ही अक्षरों में से होता है इसलिए इन्हीं अक्षरों के आपसी मित्र शत्रु सम आदि संबंधों के हिसाब से ही सभी लोगों के एक दूसरे के साथ आपसी संबंध होते हैं!
विदेश संबंधी रणनीति को बनाते समय बहुत आवश्यक है वर्णविज्ञान का सहयोग
      ऐसी कोई रणनीति जिससे विश्व के किसी देश से हमें सहयोग लेना हो या उसे अपने विश्वास में लेकर अपनी बात मनवानी हो या ये जानना हो कि उस देश के लोग हमारे देश के विषय में किस प्रकार की भावना रखते हैं एवं उस देश का प्रधानमंत्री आदि शासन प्रमुख हमारे देश के प्रधान मंत्री को किस दृष्टि से देखता है तथा उस देश के विदेश मंत्री की भारत के विदेश मंत्री के प्रति कैसी भावना है इस बात का पूर्वानुमान हमारे देश की सरकार के जिम्मेदार एवं निर्णायक भूमिका निभाने वाले नेताओं एवं अफसरों को होना चाहिए! इसके साथ ही हमारे देश के प्रतिनिधियों के साथ बात करने के लिए उस देश के लोग अपने वार्ताकार मंडल में किन किन नामों के लोगों को नियुक्त करते हैं उसी के अनुशार हमें भी अपने वार्ताकार मंडल की संरचना करनी चाहिए ताकि हमारे देश का प्रभाव उस देश पर अच्छा पड़ सके! साथ ही हमारे देश के प्रतिनिधि उस वार्ता से देश का प्रयोजन सिद्ध करने में सफल हों! एवं उस देश के वार्ताकारों को अपनी बात समझाने में सफल हों!
      ऐसे सभी विषयों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में एवं रणनीति बनाने में तथा वार्ताकार मंडल में सम्मिलित किए जाने वाले लोगों का चयन करने में वर्णविज्ञान बहुत अच्छी एवं प्रभावी भूमिका निभा सकता है!
विशेष बात-
     हमें जिस देश के जिस भी प्रतिनिधि से बात करनी है उसमें गंभीरता कितनी है वो अपनी कही हुई बात को स्थाई रखेगा या उससे पलट सकता है! इसका भी पूर्वानुमान वर्ण विज्ञान की दृष्टि से किया जाना चाहिए!
     अपने देश के संबंध किन किन देशों और उनके किन किन शासकों के साथ कितने अच्छे या बुरे रह सकते हैं उनके नाम के पहले अक्षरों के आधार पर वर्ण विज्ञान की दृष्टि से इस बात का पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए यहाँ इस बात का भी ध्यान रखा जा सकता है कि विश्व के किस देश में विशेष वार्ता के प्रयोजन को सिद्ध करने के लिए अपने देश के किस नाम के नेता को भेजा जाना चाहिए जो उस देश के नामाक्षर पर भारी पड़ सके एवं उस देश के जिस भी व्यक्ति से वार्ता संभावित हो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से वो उसे अपने प्रभाव में लेकर अपने देश के लिए अनुकूल एवं लाभप्रद वातावरण का निर्माण कर सके!
सरकारी काम काज के लिए अफसरों की नियुक्ति करते समय वर्णविज्ञान की भूमिका
    प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों आदि के कार्यालयों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी सँभालने वाले प्रमुख अफसरों के नाम का पहला अक्षर यदि प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्रियों आदि के नाम के पहले अक्षर का शत्रु हुआ या एकाक्षर हुआ तो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से वो अफसर कभी ऐसा कोई प्रयास नहीं करना चाहेगा जिससे उस प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री आदि का सम्मान बढ़ सके तथा उन्हें उस सफलता का श्रेय मिल सके! इसलिए ऐसे अफसर अक्सर टाल मटोल किया करते हैं! या काम नहीं करते हैं या दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने का प्रयास किया करते हैं! ऐसे ही दोषों के कारण कई सरकारों में सरकार के अपने अफसर ही अपनी सरकारों की प्रेम पूर्वक भद्द पिटवाते चले जा रहे हैं! इसी प्रकार से इस बात का भी विचार किया जाना चाहिए कि अत्यंत गोपनीय जगहों पर नियुक्ति उन्हीं की करनी चाहिए जो वर्ण विज्ञान की दृष्टि से विश्वसनीय एवं गंभीर हों!
राजनैतिकदलों में पदाधिकारियों की नियुक्ति करते समय वर्णविज्ञान की भूमिका !
      राजनैतिक दलों में पदाधिकारियों के चयन में भी वर्ण विज्ञान की दृष्टि से विचार करके इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि पार्टीनेतृत्व के प्रति और पार्टी के प्रति किसकी निष्ठा कैसी और कितनी रहेगी! एवं कौन व्यक्ति पार्टी शीर्ष नेतृत्व में किस नेता के प्रति कितना अधिक समर्पित होगा!पार्टी प्रमुख को भी अपने विषय में ऐसा विचार करते रहना चाहिए !
चुनावी प्रत्याशियों के चयन में भी वर्णविज्ञान की भूमिका
     चुनावी प्रत्याशियों के चयन में वर्ण विज्ञान की दृष्टि से पार्टी पदाधिकारियों में गुण तो होने ही चाहिए! इसके अलावा प्रत्याशी बनने के लिए पार्टी के जितने भी दावेदार लोग हों उनमें सबसे अच्छा कौन होगा! साथ ही यह भी बिचार किया जाना चाहिए कि चुनावों में उसे जिताने के लिए सहयोगी सक्षम कार्यकर्ताओं का विश्वास जीतने के लिए उसे किस नाम के कार्यकर्ता के साथ कैसा वर्ताव करना चाहिए जिससे वो रूठे न! इसके साथ ही उसकी ईमानदारी चरित्रवत्ता गंभीरता आदि गुणों का भी परीक्षण वर्णविज्ञान के आधार पर किया जाना चाहिए! जिससे ये पता लगाया जा सके कि चुनाव जीतने के बाद वो धोखा तो नहीं देगा या भ्रष्टाचार आदि में फँसकर पार्टी की बेइज्जती तो नहीं करवाएगा!
     इन सभी बातों के अलावा विशेष रूप से वर्ण विज्ञान की दृष्टि से इस बात का भी पूर्वानुमान किया जाना चाहिए कि उसे जिन जिन पार्टियों के जिन जिन प्रत्याशियों के सामने चुनाव लड़ाया जाएगा उनकी तुलना में अपना प्रत्याशी कैसा रहेगा!
     कुलमिलाकर किसी क्षेत्र विशेष के चुनावों में प्रत्याशी बनाते समय तीन बातों का विचार करना बहुत आवश्यक होता है पहला अपने प्रत्याशी और उसके सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों का समय कैसा है दूसरा अपने प्रत्याशी और सामने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों के नाम के पहले अक्षरों की दृष्टि से अक्षरबल में किस पार्टी का कौन प्रत्याशी कितना अधिक मजबूत दिखाई दे रहा है! तीसरी बात जिस लोकसभा या विधान सभा सीट से जो प्रत्याशी चुनाव लड़ने जा रहा है उस शहर के नाम के पहले अक्षर का उस प्रत्याशी के नाम के पहले अक्षर के साथ कैसा संबंध है क्या उस सीट पर चुनाव लड़ने से इस प्रत्याशी का सम्मान बढ़ सकता है इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है!
नगरों में अधिकारी नियुक्त करते समय वर्ण विज्ञान की भूमिका
       किस नाम वाले शहर के लिए किस नाम वाले अधिकारी कितना अधिक लाभप्रद हो सकते हैं अधिकारियों की नियुक्ति करते समय इस बात का विचार किया जा सकता है! किस मंत्री मुख्यमंत्री आदि के साथ किस किस नाम वाले अधिकारी कितनी अच्छी भूमिका का निर्वाह कर सकेंगे वर्ण विज्ञान के आधार पर इस बात का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है!
विश्व विद्यालय या संस्था में नियुक्ति के समय
      किसी विश्व विद्यालय या अन्य संस्था का कुलपति या प्रमुख पद देते समय उनके और उस विश्व विद्यालय या संस्था के नाम के पहले अक्षरों के साथ वर्ण विज्ञान की दृष्टि से संबंधों के विषय में विचार कर लिया जाना चाहिए! इसके द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन सी संस्था किस व्यक्ति के लिए कितनी लाभकारी है एवं कौन सा व्यक्ति किस संस्था के लिए कितना लाभकारी होगा! इस दृष्टिकोण से जितने अधिक कर्मचारी रखे जा सकेंगे उस संस्था के उद्देश्य की पूर्ति करने के लिए उतने लोग अधिक समर्पित भावना से कार्य कर सकेंगे!
ग्रंथ लेखन या काव्यसृजन में वर्णविज्ञान
    जब कोई ग्रंथ या काव्य लिखा जाता है उसके नायक के नाम के साथ लेखक या कवि के नामाक्षरों का जैसा संबंध होता है! लेखक और कविको उस ग्रन्थ के लेखन से उतना ही लाभ और प्रसिद्धि आदि मिल पाती है!
ग्रंथ या काव्य में सजीवता कैसे भरी जाती है?
     लेखक जिन काल्पनिक पात्रों का चयन करता है कहानी के अनुशार उनमें से जिन्हें जिनका मित्र या शत्रु दिखाना होता है उनके नाम वर्ण विज्ञान की दृष्टि से उसी प्रकार से रखे जाएँ जिससे वो वास्तव में एक दूसरे के शत्रु अथवा मित्र लगें उनके नाम इस प्रकार से रखने से उस ग्रंथ अथवा काव्य में सजीवता आ जाती है!
रामचरितमानस को इतनी प्रसिद्धि कैसे मिली?
      जिन ग्रंथों अथवा काव्यों में पात्र काल्पनिक नहीं अपितु वास्तविक होते हैं वहाँ उनके नाम भी वास्तविक होते हैं रचना करते समय उन्हें बदला नहीं जा सकता है जैसा कि रामचरित मानस में ही है! ऐसे ग्रंथों अथवा काव्यों में पात्रों के उन्हीं नामों को रखना होता है किंतु उस कथा के अनुशार वर्ण विज्ञान की दृष्टि से मित्र और शत्रु आदि दिखाने के लिए उन्हीं पात्रों के उन्हीं नामों के पर्यायवाची शब्दों का प्रयोग करके उस काव्य अथवा गद्यग्रंथ को सजीव बना लिया जाता है! इस विधा का प्रयोग रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसी दास जी ने खूब किया है!
फ़िल्मनिर्माण में वर्णविज्ञान का योगदान
      किसी भी फ़िल्म का निर्माण करते समय कहानी के पात्रों का चयन 'वर्णविज्ञान' की दृष्टि से किया जाए! पात्रों के आकृति विज्ञान का भी विशेष ध्यान रखा जाए! अर्थात जो पात्र जिस प्रकार की भूमिका के लिए नियुक्त किया जा रहा हो उसके शारीरिक अंग वैसे होने चाहिए! इसके लिए 'आकृतिविज्ञान' का उपयोग किया जाना चाहिए! ऐसे ही जिस जिस प्रकार की जो घटनाएँ घटनी होती हैं उसके लिए उस उस प्रकार का समय चयन करने के लिए 'समयविज्ञान' का उपयोग किया जाना चाहिए! इसके अलावा फ़िल्मनिर्माण में 'स्थानविज्ञान' की बहुत बड़ी भूमिका है! कौन सी घटना किस प्रकार के स्थान पर घटाई जाए तो वो देखने वालों को सजीव लगेगी इसका भी ध्यान विशेष रखा जाना चाहिए! 'वर्णविज्ञान' समेत ऐसी सभी बातों का ध्यान रखने से वो फ़िल्म अथवा नाटक सजीव हो उठता है!
प्राइवेट संस्थाओं में भी वर्णविज्ञान का सहयोग लिया जानना चाहिए
      किसी भी संस्था या संगठन में वर्ण विज्ञान के अनुशार यदि पदाधिकारियों को पद नहीं दिए जाते हैं तो ऐसे असंतुष्ट पदाधिकारी लोग उस संगठन के अंदर रहकर भी उसे खोखला करने में प्रेम पूर्वक लग जाते हैं! इस प्रकार से ऐसे संगठन कंपनी व्यापार फैक्ट्री स्कूल आफिस उद्योग आदि को उससे संबंधित लोग ही नष्ट कर देते हैं! कई कंपनी फैक्ट्री आदि में कुछ कर्मचारी लोग यदि एक मत के हो गए तो फैक्ट्री मालिक के विरुद्ध व्यवहार करने लग जाते हैं!
साझेदारी के व्यापार में बहुत जरूरी है वर्ण विज्ञान !
      कुछ मित्र लोग या कुछ भाई बंधु मिलकर सामूहिक रूप से व्यापार करते हैं वो व्यापार चलने लगता है तो कुछ समय बाद सम्मिलित लोगों का वर्ताव एक दूसरे के प्रति बदलने लगता है या उनमें से कुछ लोग अपनी पत्नी या बच्चों को भी उसी व्यापार में सम्मिलित कर लेना चाहते हैं ऐसी परिस्थिति में उसके भी दुष्प्रभाव काफी बड़े हो सकते हैं और सम्पूर्ण व्यापार ही समाप्त हो सकता है! ऐसी संभावित परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगाने में वर्णविज्ञान बहुत अच्छी एवं प्रभावी भूमिका निभा सकता है!
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                                                    राजनैतिकदलों में गठबंधन

किस राजनैतिकदल या राजनेता की मित्रता अर्थात गठबंधन किस राजनेता के साथ कितने दिन निभ पाएगा !
सपा बसपा का गठबंधन!-
     इस गठबंधन को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि इस गठबंधन के प्रति दोनों तरफ से यदि थोड़ी सावधानी और उदारता बरती गई तो ये गठबंधन लंबे समय तक चलने वाला स्वाभाविक रूप भी ले सकता है!  अखिलेश और मायावती के बीच स्वाभाविक मित्रता बनी रहेगी! 'मा'यावती और 'मु'लायमसिंह जी के नाम के पहले अक्षर 'म' होने के कारण दोनों एकाक्षरी दोष के शिकार थे! इसीलिए इनका अहंकार टकरा जाता था किंतु 'मा'यावती और 'अ'खिलेश के साथ अब परिस्थितियाँ बिल्कुल बदल गई हैं और दोनों एक दूसरे के साथ निर्वाह करके लंबे समय तक गठबंधन पूर्वक राजनीति कर सकते हैं!
महागठबंधन 2019 की संभावनाएँ और वर्णविज्ञान संबंधी समस्याएँ
     महागठबंधन की सबसे बड़ी कठिनाई है कि प्रधानमंत्री पद के योग्य स्वाभाविक प्रत्याशी कौन होगा! वैसे तो बहुत लोग हैं हर कोई अपने को सक्षम समझता है! वर्तमान सत्ता पक्ष में प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी अगले चुनावों के लिए भी निश्चित है जबकि वर्तमान विपक्षी पार्टियों में सर्व सहमति से प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी तय किया जाना बाकी है! किंतु वर्णविज्ञान की दृष्टि से महागठबंधन 2019 चुनावों के लिए नेता चुना जाना इतना आसान भी नहीं है!
    विपक्ष की अधिकाँश पार्टियों का मालिक कोई न कोई एक परिवार है उनका अपना अपना नेता उसी परिवार से होता है और वे हमेंशा निश्चित ही रहते हैं उसी के अनुसार देखा जा सकता है!
      वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार अनुमान है कि चुनावों के बाद भी महागठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी काँग्रेस ही होगी उसके नेता राहुल गाँधी ही हैं उन्हें अपनी पार्टी का विश्वास भी प्राप्त है गठबंधन के अन्य सहयोगी भी संभवतः इस बात के लिए तैयार हो ही जाएँगे कि सबसे बड़ी पार्टी के प्रमुख नेता होने के नाते राहुल गाँधी ही महागठबंधन के प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी हों वैसे भी यदि वे नहीं तो और दूसरा कौन? उनके अलावा कोई और दूसरा नाम सामने है भी नहीं! इसलिए परिस्थितियों को देखकर उन्हीं का पलड़ा सबसे भारी लगता है!
महागठबंधन के लिए वर्णवैज्ञानिक सावधानियाँ
     इस दृष्टि से 'म'मता , 'मा'या , महबूबामुफ़्ती आदि का 'म' अक्षर है इसलिए ये आपस में एक दूसरे से कभी भी टकरा सकती हैं! अजीत सिंह अरविंद केजरीवाल और अखिलेश ये तीनों अ अक्षर वाले हैं ये एक दूसरे से कभी भी टकरा सकते हैं !शरदपवार और शरदयादव कैसे रह पाएँगे एक साथ !ऐसे लोग आपस में एक दूसरे की मदद करने के बजाए अपने को ही हर जगह आगे रखना चाहेंगे उसके लिए किसी दूसरे की खिंचाई कितनी भी  क्यों न करनी पड़े ! ऐसी परिस्थिति में र अक्षर से प्रारंभ नाम वाले किसी नेता का समर्थन करना इनके स्वभाव के विरुद्ध होगा !
     चंद्रबाबूनायडू चंद्रशेषर राव उमरअब्दुल्ला, तेजस्वीयादव इन्हें र अक्षर का समर्थन करने में कोई कठिनाई नहीं होगी इसीप्रकार से के पलानीस्वामी र अक्षर का सम्मान पूर्वक समर्थन कर सकते हैं! किंतु 'म'मता , 'मा'या , महबूबामुफ़्ती, अजीतसिंह अरविंद केजरीवाल , अखिलेश, नितीशकुमार और शरदपवार आदि लोग र अक्षर वाले किसी व्यक्ति को समर्थन नहीं देना चाहेंगे यदि दे भी दें तो निर्वाह नहीं कर पाएँगे !
 महागठबंधन के वर्तमान परिदृश्य में नितीशकुमार की स्वीकार्यता अधिक हो सकती है ! 
    वर्तमानसमय में नितीशकुमार भले राजग में हैं फिर भी वर्ण वैज्ञानिक दृष्टि से नरेंद्रमोदी और नितीशकुमार वर्तमान राष्ट्रीयराजनीति के परस्पर विरोधी ये दो ध्रुव हैं!  इस दृष्टि से नितीशकुमार की स्वीकार्यता विपक्षी नेताओं और दलों में सबसे अधिक है !विपक्षी नेताओं के समूह में नितीश कुमार को सबसे अधिक स्वीकृति और समर्थन मिल सकता है !किंतु उनकी सबसे बड़ी समस्या उनका अपने दल छोटा होना है एवं उनकी सदस्य संख्या बहुत कम होना है! यद्यपि 'म'मता , 'मा'या , महबूबामुफ़्ती आदि को साथ लेकर चलने के लिए नितीश को कठिन परिश्रम करना होगा किंतु ये इसमें सफल हो सकते हैं!फिर भी यदि नरेंद्र मोदी के सामने खड़ा करने लायक कोई व्यक्ति सामने लाना ही है तो विपक्षी समूह नितीशकुमार का उपयोग कर सकता है !काँग्रेस इस गठबंधन को बाहर से समर्थन दे सकती है अन्यथा साथ मिलकर भी चुनाव लड़ सकती है ! किसी अन्य व्यक्ति के प्रधानमंत्री पद का प्रत्याशी बनने की अपेक्षा नीतीश कुमार को अधिक दलों का समर्थन मिल सकता है !
       वर्णविज्ञान की दृष्टि से नीतीश कुमार यद्यपि नरेंद्र मोदी का महत्त्व कभी नहीं सह सकेंगे किंतु उनके लिए जब तक कोई नहीं तब तक NDA! नि और न अक्षर भी अ अक्षर की प्रजाति के ही शब्द हैं!ये र अक्षर  का महिमामंडन  नहीं सह सकते हैं !
     अब बात चंद्र बाबू नायडू की! इन्हें पद जो मिले सो मिले किंतु सम्मान सबसे अधिक चाहिए !उनकी बात जब तक मानी जाएगी किसी गठबंधन का हिस्सा बनकर वे तभी तक रह सकेंगे! शिवसेना के उद्धव जी महागठबंधन के हिस्सा बन ही नहीं सकते हैं! वो र अक्षर को कभी अपने से बड़ा मानेंगे नहीं तो उनका निर्वाह महा गठबंधन में कैसे हो सकता है कितना अपने को दबा पाएँगे !
र अक्षर का महत्त्व वर्णविज्ञान की दृष्टि में -
      ऐसी परिस्थिति में वर्णों के स्वभाव के अनुशार र अक्षर  'म' 'अ' और 'श' अक्षर वाले प्रशासकीय मानसिकता वाले नेतालोग खुद को महिमामंडित करने से संबंधित कोई सलाह तो र अक्षर की मान लेंगे किंतु हर प्रकार से प्रयास यही रहेगा कि र अक्षर को उन्हें महिमामंडित न करना पड़े ! र अक्षर खुद को महिमान्वित करने के लिए उन्हें अपने व्यक्तिगत प्रभाव से प्रभावित नहीं कर सकता है!ऐसा जरूर हो सकता है कि अन्य पार्टियों के सक्षम वर्ण वाले नेता लोग अपनी मजबूरी को साधने के लिए र अक्षर को विकल्प के रूप में कुछ समय के लिए अपना नेता भले मान लें और कुछ समय के लिए सरकार का गठन कर लें फिर बाद में सरकार को गिरा दें ! किंतु र अक्षर अपने बल पर उनका नेता बनने की वार्णिक क्षमता नहीं रखता है! वैसे भी र अक्षर का स्वभाव राजनीति करना नहीं अपितु करवाना होता है !
     सांगठनिक या राजनैतिक क्षेत्र में अपने बलपर कोई पद लेना या राजनैतिक धोखाधड़ी कूटनीति आदि करके कोई पद छीन झपट लेना र अक्षर वालों के स्वभाव में ही नहीं होता है !यदि इनके स्वभाव में ऐसा गुण होता तो श्री राम बन क्यों जाते! हाँ शिक्षा के क्षेत्र में या शिक्षा के संबंध में किसी पद प्रतिष्ठा की बात हो तब तो ऐसे लोग अड़ जाते हैं! अन्यथा इन्हें अपने को उदार ईमानदार नैतिक एवं औरों का हितैषी आदि बनाकर प्रस्तुत करना होता है ये राजनैतिक पदों के लिए अपनी अपेक्षा दूसरों को ही तैयार किया करते हैं और ऐसे आसनों पर दूसरों को ही बैठाया करते हैं! अपनी पद भावना को हमेंशा छिपाकर ही रखते हैं! रणनीति बनाने में इन्हें अच्छी प्रसिद्धि मिलती है! इसलिए स्वजनों में सबका सम्मान इन्हें हासिल होता है पद नहीं! हाँ जब कोई ऐसी परिस्थिति पैदा हो जाए कि ऐसे लोगों के बिना काम चलता ही न दिखाई दे और कोई ऐसी मजबूरी ही आ जाए कि जहाँ आपस में एक दूसरे के मत सत्ता को लेकर टकराने लगते हैं ऐसे समय सत्ता जाती दिख रही हो तब र अक्षर वाले लोग मजबूरी में खोज लिर जाते हैं और उन्हें तब तक के लिए सत्ता सौंप दी जाती है जब तक वातावरण उन लोगों के अपने लिए अनुकूल न हो और अपने अनुकूल वातावरण बनते ही ऐसे र वाले लोगों को फिर से इनके प्रति बहुत सारा सम्मान दिखाकर और प्रेम पूर्वक हटा दिया जाता है! वैसे भी इन्हें पद से अधिक सम्मान प्रिय होता है इसलिए इन्हें सम्मान अधिक और पद कम मिल पाता है!
     उदाहरणस्वरूप - र अक्षर वाली राधा जी को लौकिक दृष्टि से पत्नी का पद तो नहीं मिला किंतु सम्मान बहुत मिला! श्री राम का सम्मान बहुत है किंतु राजपद उन्हें भरत का दिया हुआ ही मिला!
    र अक्षर की यही नियति है कुल मिलाकर राजनैतिक दाँवपेंच र अक्षर वाले लोग किसी को सिखा तो सकते हैं किंतु खुद करके दिखा नहीं सकते हैं इस दृष्टि से र अक्षर कमजोर कड़ी है ऐसी स्थिति में महा गठबंधन के सभी दल अपनी अपनी महत्त्वाक्षाएँ छोड़कर अपनी मजबूरी समझते हुए सहनशीलता पूर्वक र अक्षर के प्रति कोई समझौता कर सकते हैं! वैसे भी अभी तो सभी गठबंधनों में बड़े बदलाव होने हैं मिलना बिछुड़ना तो लगा ही रहेगा इसलिए अभी उस विषय में कोई अंतिम बात कह पाना संभव नहीं है! इसके अलावा और जो भी नेता लोग इस गठबंधन के साथ जुड़ेंगे तब उन पर भी विचार करना होगा सबके विषय में सामूहिक रूप से ही विचार किया जा सकता है!
    स्वतः सत्ता हथियाना या हासिल करना ये र अक्षर के स्वभाव में ही नहीं है 'र' अक्षर वाले लोगों में सीधे तौर पर स्वाभाविक रूप से अपने बल पर कोई पद प्राप्त करके उस पर आसीन हो जाना ऐसी उनकी प्रवृत्ति नहीं होती है! र अक्षर वाले लोग परदे के पीछे रहकर दूसरों को पद प्रतिष्ठा दिलाकर स्वयं उसका श्रेय लेने के शौकीन होते हैं! ऐसे 'र' अक्षर वाले लोग नैतिकता के कारण , शिक्षा आदि योग्यता के कारण,संगठनात्मिका कुशलता के कारण, धनबल से , बंशानुगत क्रम से , सहानुभूति से, अचानक प्राप्त समस्याओं के समाधान के रूप में दूसरे लोगों के द्वारा किसी पद पर बैठा दिए जाते हैं ये बात दूसरी है! जब और जब तक अपने लोग सहानुभूति पूर्वक सहयोग करते रहते हैं तभी तक वे उस पद पर आसीन रह पाते हैं अन्यथा इन्हें सत्ता छोड़नी पड़ती ही है ! प्रायः र अक्षर वाले लोग अपने पुरुषार्थ से सत्ता को प्राप्त नहीं कर पाते हैं इसीलिए ऐसे लोग अधिकार के साथ सत्ता में रह भी नहीं पाते हैं! उनकी प्रतिभा काम आ जाए ये और बात है !सीधे शब्दों में कहा जाए तो र अक्षर वाले लोग कुशल रणनीतिकार होकर ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते हैं या ऐसी परिस्थिति स्वयं पैदा हो जाती है कि लोग उन्हें ही सत्ता सौंपने के लिए विवश हो जाते हैं!
                                                                            र अक्षर का स्वभाव
    वैसे तो र अक्षर वाले लोग परदे के पीछे रहकर किसी दूसरे को उच्च पदों तक पहुँचाने की रणनीति बहुत अच्छी बना लेते हैं इन्हें उस क्षेत्र में महारथ हासिल होता है !
                                                        र अक्षर का प्रभाव और उदाहरण –
राम जी ने सुग्रीव और विभीषण को राजा बनाया था!
राष्ट्रीय स्वयं संघ -सत्ता में स्वयं सीधे नहीं आया!
रामलाल जी - कुशल संगठक
राम गोपाल यादव - कुशल रणनीतिकार!
और भी-
      र अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग अभी तक जिन जिन राजनैतिक पदों पर पहुँचे हैं उनके इतिहास और अनुभव को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए !
 ये हैं र अक्षर वाले कुछ उदाहरण –
रावण - जिस लंका का राजा बना ये उसके द्वारा बनाई नहीं गई थी! 
रघु - सूर्य बंश के प्रतापी राजा को बंशानुक्रम से राज्य मिला था!
राम -भरत को राज्य मिला था उन्होंने श्री राम को दे दिया!
                                  अभी निकट भविष्य के राजनेता लोग
राजीव गाँधी –
      अपने देश में यही एकमात्र र अक्षर वाले व्यक्ति हैं जो परिस्थितिवशात प्रधानमन्त्री बने हैं! उस समय परिस्थिति ही ऐसी थी! इसके अलावा और कोई दूसरा विकल्प ही नहीं था उसके बाद जो चुनाव भी हुए वे भी उन्हीं परिस्थितियों से भावित थे !
कुछ और उदाहरण :
      ये लोग कैसे कैसे और किसके सहयोग सहानुभूति किस परिस्थिति आदि में उन पदों पर पहुँचे या पहुँचाए गए और कौन कौन कितने कितने दिन अपने अपने पदों पर टिक पाए –
                                                       मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री
रविशंकर शुक्ल - 1- 11-1956 से 31 -12 -1956 तक कुल
                                                        उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री
राम नरेश यादव - 23 -6 -1977 से 27 -2 -2079 तक कुल 1 वर्ष 249 दिन
रामप्रकाश गुप्त-12 -11-1999 से 28 -12 -2000
राजनाथ सिंह -28 -10 -2000 से 8 -3 -2002 तक कुल 1 वर्ष 131 दिन
                                                           बिहार के मुख्यमंत्री
राम सुंदर दास - 21 - 4 -1979 से 17 -2-1980 तक कुल 0 वर्ष 303 दि
रावड़ी देवी -9 मार्च 1999 से 2 -3 - 2000 तक कुल 0 वर्ष 359 दिन
रावड़ी देवी - 11 मार्च 2000 से 6 -3 - 2005 तक कुल 0 वर्ष 1821 दिन
       इसमें विशेष बात ये है कि रावड़ीदेवी लालूप्रसाद यादव के प्रभाव से मुख्यमंत्री बनीं अपने प्रभाव से नहीं !
                                                           झारखंड के मुख्यमंत्री
रघुबर दास -28 -12-2014 से अभी भी (मोदी लहर में बने मुख्यमंत्री हैं )
                                                           छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री
डॉ.रमन सिंह - 7 -12 -2003 से अभी भी हैं (पार्टी और संगठन के विशेष प्रभाव से मुख्यमंत्री बने  तथा नाम के पहले लगे डॉक्टर शब्द का लाभ मिलता रहा है !उनकी अपनी राजनैतिक कुशलता शैक्षणिक योग्यता कार्यनिष्ठा आदि उन्हें राजनीति में सफलता दिलाए हुए है ! )
                                                               पंजाब के मुख्यमंत्री-
रामकिशन -7 जुलाई, 1964 से 5 जुलाई, 1966 तक
रजिंदर कौर भट्टल- 21 जनवरी, 1996 से 11 फरवरी, 1997
                                                             उड़ीसा के मुख्यमंत्री-
राजेंद्र नारायण सिंह देव - 8 मार्च 1 9 67 से 9 जनवरी 1 9 71 तक
                                                             केरल के मुख्यमंत्री-
आर. शंकर - सितंबर 1 9 62 से 10 सितंबर 1 9 64
                                                          उत्तराखंड के मुख्यमंत्री
रमेश पोखरियाल निशंक 24 जून 2009 10 सितम्बर 2011
                                                           गोवा के मुख्यमंत्री
रविनाइक - 25 जनवरी 1991 से 18 मई 1993 कुल 2 वर्ष, 113
 2 -4 -1994 से 8 -4 -1994 तक
                                                          कर्णाटक के मुख्यमंत्री-
रामकृष्णहेगड़े -8 -3 - 1985 से 13 -2 -1986 तक कुल 342 दिन , 16 -2 -1986 से 10 अगस्त 1988 तक, 10 अगस्त 1988 से
                                                         मणिपुर के मुख्यमंत्री-
रणवीरसिंह -23-2-1990 से 6 -1-1992 तक
राधाविनोदकोईझाम -15 -2 -2001 से 1 -6-2001 तक
                                                            त्रिपुरा के मुख्यमंत्री-
राधिकारंजनगुप्ता -26 -7 -1977 से 4 -11 -1977 तक
        इसके अलावा दिल्ली , जम्मूकश्मीर , सिक्किम, तेलंगाना , तमिलनाडु , राजस्थान , नागालैंड, मेघालय , मिजोरम , गुजरात , असम, अरुणाचल, पश्चिम बंगाल, हिमाचल , हरियाणा , महाराष्ट्र और आंध्रप्रदेश आदि में र अक्षर का कोई व्यक्ति मुख्यमंत्री नहीं बना!
     ऐसी परिस्थिति में र अक्षर से सम्बंधित नाम वाला कोई भी व्यक्ति प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री जैसे पदों पर पहुँच कर स्वतंत्र रूप से कोई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा पाएगा और सबको समेटकर चल पाएगा !मुझे इसमें कुछ कठिनाइयाँ  अवश्य लगती हैं !

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