बुधवार, 19 सितंबर 2018

बॉडी क्लॉक



 

प्रकृति की अनूठी घड़ी

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       आपने कभी सोचा है कि हमें रात को ही अच्छी नींद क्यों आती है, सूर्योदय और सूर्यास्त के समय पंछी क्यों चहचहाते हैं, कुछ फूल हमेशा सुबह या शाम को ही क्यों खिलते हैं, स्त्रियों के मासिक चक्र में समय का निश्चित अंतराल कैसे कायम रहता है। ऐसे सभी सवालों का जवाब सिर्फ इसी बात में छिपा है कि मनुष्य और पशु-पक्षियों सहित पृथ्वी पर मौज़ूद सभी सजीव वस्तुओं का अपना बॉडी क्लॉक होता है, जो प्राकृतिक घड़ी यानी सूरज के उगने और ढलने की गति के अनुसार संचालित होता है। प्रकृति के साथ शरीर के इसी तालमेल को मेडिकल साइंस की भाषा में सर्केडियन रिदम कहा जाता है, जो व्यक्ति में कई तरह के शारीरिक  और मानसिक बदलाव के लिए जि़म्मेदार होता है।
   

समझें बॉडी क्लॉक की भाषा   

बॉडी क्लॉक की कार्यप्रणाली को कुछ इस ढंग से समझा जा सकता है कि सभी जीवों की संरचना में एक ऐसी सहज व्यवस्था होती है, जो उसकी सोने-जागने जैसी विभिन्न शारीरिक क्रियाओं का समय निर्धारित करती है। मानव मस्तिष्क के हाइपोथेलेमस नामक हिस्से में लगभग 20,000 न्यूरॉन्स मौज़ूद होते हैं, जिन्हें एससीएन (सुप्रेचियास्मेटिक न्यूसेल्स) के नाम से जाना जाता है। ऑप्टिक नर्व से इन न्यूरॉन्स का सीधा संपर्क होता है और वहीं से इन्हें काम करने का निर्देश मिलता है। सूरज की रोशनी से एससीएन की सक्रियता बढ़ जाती है। इससे सुबह होते ही नींद खुल जाती है।

लय हो सही

हमारी बॉडी क्लॉक आसपास के वातावरण से संदेश ग्रहण करके खुद उसकी ज़रूरतों के अनुसार एडजस्ट हो जाती है। शरीर की इस स्वाभाविक लयबद्ध प्रक्रिया को सर्केडियन रिदम कहा जाता है। यह सोने-जागने के समय, खानपान की आदतों, पाचन-क्रिया और हॉर्मोंस के सिक्रीशन को भी प्रभावित करती है। बॉडी क्लाक की ज़्यादा तेज़ या धीमी गति की वजह से शरीर की इस लय में गड़बड़ी हो जाती है। इसकी वजह से अनिद्रा, ओबेसिटी, डायबिटीज़, डिप्रेशन, बायपोलर डिसॉर्डर और सीज़नल इफेक्टिव डिसॉर्डर जैसी शारीरिक और मनोवैज्ञानिक समस्याएं हो सकती हैं।
यह रिदम शरीर के स्लीपिंग पैटर्न को निर्धारित करती है। दिन होने पर ऑप्टिक नर्व के ज़रिये ब्रेन तक यह मेसेज जाता है कि अब उसे ऐक्टिव हो जाना चाहिए। इसी तरह सूरज ढलने के बाद ब्रेन से अधिक मात्रा में मेलाटोनिन नामक हॉर्मोन का सिक्रीशन होने लगता है, इसकी वजह से ही व्यक्ति को नींद आती है। 'शरीर को स्वस्थ और सक्रिय बनाने के लिए सर्केडियन रिदम का सही होना बहुत ज़रूरी है।

कब बिगड़ता है संतुलन

नींद संबंधी अनियमितता से बॉडी क्लाक की लय बिगड़ जाती है और शारीरिक-मानसिक सेहत पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। एयरलाइंस में जॉब करने वाले वैसे लोग जो हमेशा एयरक्राफ्ट के साथ देश-विदेश की यात्रा कर रहे होते हैं, उनकी बॉडी क्लॉक लगातार बदलते टाइम ज़ोन के साथ एडजस्ट नहीं कर पाती, इससे उन्हें नींद संबंधी कई तरह की समस्याएं होती हैं। मसलन, दिन के वक्त ऊंघना और सिरदर्द जैसे लक्षण नज़र आते हैं। ऐसी समस्या को जेटलैग कहा जाता है। आमतौर पर आराम करने के बाद दो-चार दिनों में बॉड़ी क्लॉक नए माहौल के अनुसार एडजस्ट हो जाती है, जिससे यह समस्या अपने आप दूर हो जाती है।
इसके अलावा शिफ्ट डयूटी करने वाले लोगों के सर्केडियन रिदम में भी कई तरह की समस्याएं होती हैं, जिससे उनके सोने-जागने का कोई निश्चित समय नहीं रह जाता और नाइट शिफ्ट में रात भर जागने की वजह से उन्हें बीच में कुछ न कुछ खाने की भी ज़रूरत महसूस होती है। नींद दूर करने के लिए वे कॉफी या सिगरेट जैसी चीज़ों का सहारा लेते हैं। इससे उन्हें ओबेसिटी, डायबिटीज़, हाइपरटेंशन और पाचन-तंत्र संबंधी कई तरह की समस्याएं हो सकती हैं।
  

कैसे प्रभावित होती है सेहत

अगर व्यक्ति की दिनचर्या बॉडी क्लॉक के विपरीत हो तो पाचन-तंत्र पर इसका बुरा असर पड़ता है। मिसाल के तौर पर शरीर की घड़ी के अनुसार डिनर का समय शाम सात से आठ के बीच होता है लेकिन अगर कोई व्यक्ति रात दस बजे के बाद कुछ खाता है तो इससे ब्रेन भ्रमित हो जाता है और वह पैनक्रियाज़ को एंजाइम्स के स्राव का निर्देश नहीं देता। इससे पाचन क्रिया सही ढंग से काम नहीं कर पाती और शरीर में फैट का संग्रह होने लगता है। अंतत: इसी वजह से शरीर में शुगर लेवल भी बढऩे लगता है। रिसर्च से यह तथ्य सामने आया है कि लंबे समय तक अनियमित दिनचर्या अपनाने की वजह से कोशिकाओं में मौज़ूद जींस की संरचना में बदलाव आने लगता है, जिसे कैंसर के लिए जि़म्मेदार माना जाता है। अंत में ज़रूरी बात, स्वस्थ रहने के लिए शरीर के सर्केडियन रिदम का ठीक होना ज़रूरी है। इसके लिए ऐसी दिनचर्या अपनाएं, जिसमें  आपके सोने-जागने, खाने और एक्सरसाइज़  का समय निश्चित हो। 

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कुछ ज़रूरी बातें
  • जहां तक संभव हो, सूरज की रोशनी में ज्य़ादा वक्त बिताने की कोशिश करें, इससे आपका शरीर पूरे दिन ऐक्टिव बना रहेगा।
  • सुबह के 5 से 6 बजे के बीच तनाव पैदा करने वाला हॉर्मोन कार्टिसोल सक्रिय हो जाता है,  इसकी वजह से व्यक्ति की नींद खुल जाती है। इसीलिए प्रतिदिन सुबह के वक्त जॉगिंग, ब्रिस्क वॉक और एक्सरसाइज़ करना फायदेमंद साबित होता है।
  • सुबह 7 से 8 बजे के करीब ब्लडप्रेशर में तेज़ी से बदलाव आता है, हार्ट अटैक या स्ट्रोक की आशंका इसी अवधि में सबसे अधिक होती है। इसलिए हाई ब्लडप्रेशर के मरीज़ों को इस वक्त ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए, जिससे उनका ब्लडप्रेशर बढ़ जाए। शाम को भी लगभग इसी वक्त शरीर का रक्तचाप अनियमित हो जाता है, इसलिए ऐसी समस्या से ग्रस्त लोगों को इस दौरान अधिक शारीरिक थकान या मानसिक तनाव बढ़ाने वाला कोई भी कार्य नहीं करना चाहिए।
  • दिन में हम जो कुछ भी सीखते हैं, नींद के दौरान वही बातें ब्रेन के हिप्पोकैंप्स नामक हिस्से में संरक्षित होती हैं। अत: अच्छी स्मरण-शक्ति के लिए रोज़ाना 7 से 8 घंटे की नींद ज़रूरी है।     
  • बॉडी क्लॉक के अनुसार शरीर को दोपहर के वक्त भी हलकी झपकी की ज़रूरत महसूस होती है। संभव हो तो आप भी दस मिनट का पावर नैप लें। स्कूल से लौटने के बाद बच्चों को थोड़ी देर के लिए ज़रूर सुलाएं, इससे वे शाम को ऐक्टिव रहते हैं और पढ़ाई के दौरान उन्हें नींद नहीं आती। 
  • सूरज ढलने के बाद इम्यून सिस्टम धीमी गति से काम करता है। इसी वजह से सर्दी-ज़ुकाम होने पर रात में तकलीफ बढ़ जाती है। ऐसी समस्या से बचने के लिए शाम चार बजे से पहले ही दवाएं खा लेनी चाहिए ताकि शाम होने से पहले वे अपना असर दिखाना शुरू कर दें।
  • रात के समय एलर्जी फैलाने वाले वायरस सक्रिय होते हैं और वातावरण में ऑक्सीजन का स्तर भी थोड़ा कम हो जाता है। इससे अस्थमा के मरीज़ों की तकलीफ बढ़ जाती है, इसलिए रात में उन्हें ऊंचे तकिये पर सिर रखकर सोना चाहिए, ताकि उनके फेफड़ों को पर्याप्त ऑक्सीजन मिले।

कॉर्टिसोल को स्ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं क्योंकि ये हार्मोन तनाव के कारण पैदा होता है। कॉर्टिसोल हमारे शरीर में कई तरह की क्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है मगर इसकी ज्यादा मात्रा शरीर को कई तरह से नुकसान भी पहुंचाती है। जब कभी आप डरते हैं या तनाव लेते हैं, तो आपका एड्रिनल ग्लैंड कॉर्टिसोल का निर्माण शुरू कर देता है। सामान्य से ज्यादा स्ट्रेस हार्मोन यानी कॉर्टिसोल आपको मोटापा और ब्लड प्रेशर जैसी बीमारियां दे सकता है। इसके कारण आपकी याददाश्त प्रभावित हो सकती है और डायबिटीज भी हो सकता है। आइए आपको बताते हैं कि आप बढ़े हुए कॉर्टिसोल को किस तरह कम कर सकते हैं।

पर्याप्त नींद लें

हमारे शरीर में कॉर्टिसोल का स्तर इस बात पर भी निर्भर करता है कि आप कितनी देर सोते हैं, कितनी गहरी नींद सोते हैं और कब सोते हैं। अगर आपके शरीर में कॉर्टिसोल की मात्रा बढ़ गई है, तो इसका कारण ये है कि आप ठीक से सो नहीं पा रहे हैं। इसलिए 24 घंटे में कम से कम 6-7 घंटे की नींद जरूर लें। इससे आपका मू़ड फ्रेश रहेगा। नींद लेते समय यह भी ध्यान रखें कि दिन की नींद शरीर के लिए अच्छी नहीं होती है इसलिए रात में सही समय पर सोएं। इसके अलावा अच्छी नींद के लिए नींद का गहरी होना जरूरी है।


नोबल पुरस्कार विजेता -
स्टॉकहोम में विजेता की घोषणा करते हुए, पुरस्कार समिति ने कहा कि इन लोगों ने ने स्पष्ट किया कि कैसे एक जीवन-रूप की 'आंतरिक घड़ी' हमारे व्यवहार और शरीर विज्ञान को अनुकूलित करने के लिए उतार चढ़ाव कर सकता है। "उनकी खोजों से पता चलता है कि पौधों, जानवरों और मनुष्यों ने अपने जैविक ताल को अनुकूल करते हुए इसे पृथ्वी के क्रांतियों के साथ संयोजित किया है।' 
  •         'द लैंसेट साइकेट्री' नामक पत्रिका में प्रकाशित एक शोध में कहा गया है कि शरीर की आंतरिक घड़ी की लय में गड़बड़ी खुशी की कमी व स्वास्थ्य संतुष्टि व खराब संज्ञानात्मक कार्य से जुड़ी हुई है।
  • यूसीएलए और जापान साइंस एंड टेक्नोलॉजी एजेंसी भी साबित कर चुकी है कि आर्टिफिशियल लाइट के कारण महिलाओं में मासिक चक्र प्रभावित होती है. 
  •  हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के शोध के मुताबिक नीली रोशनी कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग और मोटापा को भी बढ़ावा देती है.

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