वेदों
पर वैज्ञानिक अनुसंधान करना ही है तो जिम्मेदारी से हो योग्य लोग करें
जिन्होंने पहले कभी कोई इस प्रकार के वेद वैज्ञानिक अनुसन्धान किए भी हों
ऐसे योग्य लोगों से करवाया जाए तो वेदों पर विश्वास बढ़ेगा किंतु अयोग्य
लोगों से करवाकर केवल दिखावा करना ठीक नहीं है !
आधुनिक वेद विद्वानों का दिमाग बंद केवल जबान चलती है जबकि अनुसन्धान के लिए थो बहुत दिमाग तो चाहिए ही !
महर्षि चाणक्य ने इसीलिए तो वेद विद्वानों की तुलना कड़ाही में में बनते पाक में डूबी उस कलछुल से की है जो पाक में डूबी तो रहती है किंतु उसमें जो कुछ पक रहा होता है उसका स्वाद उस बेचारी कलछुल को पता नहीं होता है !'दर्वीपाकरसंयथा'उसी प्रकार से आधुनिक शैली में वेद पढ़ने वाले ऐसे लोग बुद्धि के इतने ब्रह्मचारी होते हैं ये वेदमंत्र बोल तो लेते हैं किन्तु उन बेचारों को ये नहीं पता होता है कि इस मन्त्र का अर्थ क्या है अभिप्राय क्या है इसमें विज्ञान क्या है और ये सिद्ध कैसे किया जाएगा !यदि ऐसा न होता तो वेद विज्ञान की इतनी दुर्दशा होती ही क्यों ?हर जगह वेद केवल रटवाया जाता है वर्तमान वेद पठन पाठन पद्धति में वैदिकों और टेपरिकार्डर में बहुत बड़ा अंतर तो नहीं दिखाई देता है !
इसीलिए तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने वैदिकों की तुलना मेढकों से कर दी -
दादुरधुनि चहुँदिशा सुहाई !वेदपढ़हिं जनु बटु समुदाई !!
आधुनिक वेद विद्वानों का दिमाग बंद केवल जबान चलती है जबकि अनुसन्धान के लिए थो बहुत दिमाग तो चाहिए ही !
महर्षि चाणक्य ने इसीलिए तो वेद विद्वानों की तुलना कड़ाही में में बनते पाक में डूबी उस कलछुल से की है जो पाक में डूबी तो रहती है किंतु उसमें जो कुछ पक रहा होता है उसका स्वाद उस बेचारी कलछुल को पता नहीं होता है !'दर्वीपाकरसंयथा'उसी प्रकार से आधुनिक शैली में वेद पढ़ने वाले ऐसे लोग बुद्धि के इतने ब्रह्मचारी होते हैं ये वेदमंत्र बोल तो लेते हैं किन्तु उन बेचारों को ये नहीं पता होता है कि इस मन्त्र का अर्थ क्या है अभिप्राय क्या है इसमें विज्ञान क्या है और ये सिद्ध कैसे किया जाएगा !यदि ऐसा न होता तो वेद विज्ञान की इतनी दुर्दशा होती ही क्यों ?हर जगह वेद केवल रटवाया जाता है वर्तमान वेद पठन पाठन पद्धति में वैदिकों और टेपरिकार्डर में बहुत बड़ा अंतर तो नहीं दिखाई देता है !
इसीलिए तो गोस्वामी तुलसीदास जी ने वैदिकों की तुलना मेढकों से कर दी -
दादुरधुनि चहुँदिशा सुहाई !वेदपढ़हिं जनु बटु समुदाई !!
आवश्यकता है वेद के अभिप्राय को समझने वाले वेद वैज्ञानिकों की !जिनके पास अपना खुद का दिमाग भी हो !किंतु दिमाग वाले लोग तो वेद विषयों पर वैज्ञानिक अनुसन्धान कर ही रहे होंगे उनकी अमोघ विद्या सरकारी हाथों की मोहताज नहीं होगी !कोई वेद वैज्ञानिक अपनी कीमत सरकारों को कभी नहीं लगाने देगा और न ही सरकार का पालतू दिहाड़ी मजदूर ही होगा !आखिर जो वेद वैज्ञानिक होगा उसका कुछ अपना भी तो स्वाभिमान होगा !सरकारों के इशारों पर दुम हिलाने वाले क्या कर सकेंगें वेदों पर अनुसन्धान !आधुनिक वैज्ञानिक भी स्वतन्त्र मन से शोध करते हैं सरकारी कृपा के भरोसे शोध कोई क्या कर लेगा !
सरकार पहले इसका पता तो लगावे कि ऐसे विषयों पर काम करने वाले विद्वान् हैं कितने जिन्होंने पहले भी ऐसे विषयों पर काम हो और उसे पारदर्शिता पूर्वक प्रमाणित माना जा चुका हो !
मैं सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्या सरकार ने इस विषय पर कोई सर्वे करवाया है कि विज्ञान की दृष्टि से वेदों पर अनुसंधान कर लेने में कितने लोग सक्षम हैं उन्होंने इस दिशा में पहले कोई अनुसंधान किया है क्या जिसके सफल परिणामों को हाथ में पकड़कर आज आधुनिक वैज्ञानिकों को मानने पर विवश किया जा सके !यदि ऐसा नहीं है तो सरकार ये कैसे मानती है कि इतने बड़े काम का दायित्व जिन विद्वानों पर डाला गया है वे कल अपनी और वेदविज्ञान की बेइज्जती नहीं करवाएँगे !
सरकार पहले इसका पता तो लगावे कि ऐसे विषयों पर काम करने वाले विद्वान् हैं कितने जिन्होंने पहले भी ऐसे विषयों पर काम हो और उसे पारदर्शिता पूर्वक प्रमाणित माना जा चुका हो !
मैं सरकार से जानना चाहता हूँ कि क्या सरकार ने इस विषय पर कोई सर्वे करवाया है कि विज्ञान की दृष्टि से वेदों पर अनुसंधान कर लेने में कितने लोग सक्षम हैं उन्होंने इस दिशा में पहले कोई अनुसंधान किया है क्या जिसके सफल परिणामों को हाथ में पकड़कर आज आधुनिक वैज्ञानिकों को मानने पर विवश किया जा सके !यदि ऐसा नहीं है तो सरकार ये कैसे मानती है कि इतने बड़े काम का दायित्व जिन विद्वानों पर डाला गया है वे कल अपनी और वेदविज्ञान की बेइज्जती नहीं करवाएँगे !
वेद वैज्ञानिक विषयों पर अनुसन्धान करके उसे आधुनिक विज्ञान के सामने
प्रमाणित करना कोई हँसी खेल नहीं है !वैज्ञानिक लोग अपने अनुसंधानों के लिए
दिन रात लगातार परिश्रम करते हैं तब कोई एक चीज खोज पाते हैं इस प्रक्रिया
में दशकों या शतकों बीत जाते हैं !वैसे भी वैज्ञानिक अनुसंधान करना भी एक
नशा होता है जो जन्म से होता है ये स्वाभाविक होता है ये किसी के अंदर भरा
नहीं जा सकता है !
संस्कृत विश्व विद्यालयों में संस्कृत शिक्षा की प्रक्रिया अभी तक
जितनी उपेक्षित रही है उस परिस्थिति में जिन लोगों ने जैसे संस्कृत पढ़ी है
और जैसे संस्कृत डिग्रियाँ हासिल की हैं और फिर जैसे भाड़े पर शोध प्रबंध
लिखवाए हैं और फिर जैसे सोर्स लगाकर घूस देकर नौकरी पाई है पदोन्नति हासिल
की है इसकी सच्चाई सरकार यदि वास्तव में समझना चाहती है तो उन शिक्षकों को
भी आचार्य की परीक्षा में बैठाकर देख ले यदि नक़ल न हुई और कापियाँ ईमानदारी
से जाँच दी गईं तो उन शिक्षकों में से 5 प्रतिशत लोगों का पास हो पाना
मुश्किल हो जाएगा !ये सच्चाई है अन्यथा सरकार ऐसा करके देख ले !संस्कृत को
संस्कृत वालों ने जितना अधिक बर्बाद किया है उतना संस्कृत से द्रोह रखने
वाले लोग हजारों वर्षों में भी नहीं कर सकते थे !ये सच्चाई है !
संस्कृत महाविद्यालयों या विश्वविद्यालयों के अध्यापक अपने अपने विषयों
में यदि वास्तव में योग्य थे तो सरकार उन्हें सैलरी दे ही रही थी वेद उनके
पास थे ही लाइब्रेरी की सुविधा है ही आखर उन्होंने वेद विज्ञान पर आजतक
कोई अनुसंधान किए क्यों नहीं !उन्हें रोका किसने था !यदि उन विद्वानों में
विज्ञान भावना होती और योग्यता होती तो वो अपने मन से आज तक जाने कितने
अनुसन्धान कर चुके होते !वैज्ञानिक अनुसन्धान सरकारों की कृपा के मोहताज
नहीं हुआ करते जिन ऋषियों ने पहले ऐसे अनुसंधान किए भी थे उन्होंने क्या
राजाओं से कोई अतिरिक्त अनुदान लिया था !उन्होंने तो जंगलों में बैठे बैठे
इतने बड़े बड़े अनुसन्धान कर डाले थे !यदि वे भी निर्वीर्य होते तो वो भी न
करते आखिर उनकी ड्यूटी किसने लगाई थी अनुसंधान करने की !इसलिए सरकार इतने
बड़े काम को यदि ईमानदारी और जिम्मेदारी से करना चाहती है तो ऐसे पवित्र
कार्यक्रमों से उन लोगों को दूर ही रखे जो नकल करके पास हुए हैं और घूस
देकर नौकरी या पदोन्नति पाई है !
जिस अयोग्यता के कारण जो लोग आजतक कुछ नहीं कर पाए आज सरकार उन्हें
चार पैसे और अधिक दे देगी एक वेद विज्ञान केंद्र बनाकर दे देगी तो क्या वे
वैज्ञानिक अनुसंधान करने लगेंगे !गाँवों में किसान लोग अकर्मण्य दुर्बल
बैल को जब बेचने जाते हैं !तो दलालों की भूमिका पर ही ऐसे बैल बिक पाते हैं
!दलाल लोग कील चुभा हुआ एक डंडा रखते हैं कोई ग्राहक जैसे ही बैल को देखने
आता है तो दलाल बड़ी चतुराई से बैल के डंडा मारता है जिससे वो कील चुभ जाती
है और बैल उछल पड़ता है सब कहने लगते हैं बैल में स्फूर्ति तो है और ग्राहक
खरीदकर ले जाता है !फिर जैसे वो ग्राहक किसान अपने कर्मों पर हाथ रखकर
रोता है !वेदों के अध्ययन और अनुसन्धान से संबंधित इस महान कार्य में सरकार
ने यदि जिम्मेदारी नहीं दिखाई तो सरकार को तो अपयश मिलेगा ही साथ साथ
वेदों का भी मजाक उड़ेगा कि इसमें यदि विज्ञान होता ही आधुनिक वैज्ञानिकों
का सामना न करने लायक कोई अनुसंधान क्यों न कर पाता !
वेदविज्ञान को बढ़ावा देना
बहुत उत्तम कार्य है किंतु सरकार ने वेदों पर या वेद वर्णित विषयों पर
अनुसंधान करने के लिए किन किन लोगों को नियुक्त किया गया है या किया जा रहा
है उनके परीक्षण का आधार क्या है क्योंकि ये विषय बहुत बड़ा और गंभीर है
किंतु मेरा निवेदन ये है कि इसमें अनुसंधान करने के लिए उन लोगों को लगाया
जाना चाहिए जो इस योग्य हों !
विगत कुछ वर्षों में सरकारी नौकरियों के क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार रहा
है इसलिए सरकारी विभागों में सुयोग्य लोगों को योग्य पदों तक नहीं पहुँचाया
जा सका है सभी क्षेत्रों की तरह ही संस्कृत विश्व विद्यालयों के
वेदादिविभागों में भी योग्य लोगों के साथ अन्याय हुआ है !
यही कारण है कि वैदिक ज्ञान विज्ञान के विषय में विद्वान कहे जाने
वाले वर्ग में अधिकाँश संख्या उस वर्ग की है जो ऋषियों के ज्ञान विज्ञान
के विषय में बड़ी
बड़ी बातें कर सकता है वैदिक विज्ञान के विषय में इधर उधर से नक़ल मार कर बड़े
बड़े लेख लिख सकता है भाषण दे सकता है नक़ल करके बड़े बड़े शोध प्रबंध
लिखकर कुछ क्विंटल रद्दी तैयार कर सकता है!जो काम करता रहा है वही तो कर
सकता है नक़ल करता रहा है
केवल नक़ल करने का ही अभ्यास है इसलिए नकल ही कर सकता है किंतु वैदिक विज्ञान के क्षेत्र में वैज्ञानिक दृष्टि से कुछ करके दिखा
पाना उसे प्रमाणित कर पाना न उसके बश की बात है और न ही उससे आशा ही की जानी चाहिए !
यदि वो लोग कुछ करने लायक होते ही तो दशकों से सरकारी सेवाओं में इसीकाम के
लिए नियुक्त हुए लोग हैं सरकार से सैलरी भी इसीकाम के लिए लेते रहे हैं
किंतु वे आज तक कोई ऐसा अनुसंधान कर क्यों नहीं सके जिसके बलपर वो
आधुनिक वैज्ञानिकों को चुनौती दे सकें !
मेरा उद्देश्य निर्वीर्य वर्ग की आलोचना करके अपनी जबान ख़राब करना
नहीं है अपितु मुझे भय है कि 'वेदविज्ञानकेंद्र' के बहाने ही ही सही ये लोग
कहीं वेदों की बेइज्जती न करवा दें सरकार इस सच्चाई को समझती नहीं है !ऐसे
सरकारी धन की
बर्बादी तो होगी ही साथ ही वेदों की बेइज्जती भी इस बात के लिए होगी कि जब
ये वेदविज्ञान पर अनुसन्धान के नाम पर मात्र कुछ शोध प्रबंध हाथ में
पकड़कर आधुनिक वैज्ञानिकों के सामने सर झुकाकर खड़े हो जाएँगे तब कितना बुरा
लगेगा !
इसलिए सरकार से मेरा निवेदन मात्र इतना है कि वेदविज्ञान में अनुसंधान करवाने
का दायित्व केवल उन्हें ही दिया जाए जिन्होंने भारत के प्राचीन विज्ञान के
विषय में पहले कभी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान कार्य करके अपने को इस योग्य प्रमाणित किया हो !जिसे आधुनिक
वैज्ञानिकों के सामने रखकर उन्हें मानने के लिए विवश किया जा सके !
वैसे कुछ लोग
ऐसे भी हैं जो योग्य हैं किंतु भ्रष्टाचार के कारण वे सरकारी पदों पर नहीं
पहुँच पाए फिर भी उन्होंने वैदिक विज्ञान के क्षेत्र में प्रमाणित
अनुसन्धान किए हैं तो उनकी भी योग्यता का लाभ लिया जाना चाहिए वे सरकारी
सेवा में भले ही न हों !
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