शनिवार, 22 दिसंबर 2018

अथ श्री परशुराम चालीसा

     


   अथ श्री परशुराम चालीसा
हे भृगुनंदन जगतपति हे रेणुका कुमार
 तुम्हरे चरण सरोज महुँ बंदन बारंबार   
आगे चारों वेद हैं पीछे धनु सुखधाम
 काँधे पर उपवीत शुभ स्वामी तुम्हें प्रणाम

भाल विशाल तेज तिहुँ लोका सुमिरि नाम जन होहिं विशोका
काँधे सोह जनेऊ सुहावा वक्ष विशाल अमित छवि छावा
परसत तन तव सुरभि समीरा कुमुद किरन तप तेज शरीरा
नाथ श्रींदुशेषर  उरधारी गयउ जहाँ तहँ विजय तुम्हारी
बार बार बिनवहुँ धरि शीशा तुम समान को कहहु दिगीशा
जय जय जय कृपाल भृगुनंदन प्रणतपाल निज जन दुःख भंजन
यामदग्नि धरि मनुज शरीरा  हु विप्र सुर गाइन्ह पीरा इसमें लाइन बराबर करनी है 
भक्तन्ह हेतु मनुज तनु धाराविलसै चहुँ दिशि तेज तुम्हारा
 सीय स्वयंबर महुँ ललकारा भाग भूप सुनि  नाम तुम्हारा इसमें लाइन बराबर करनी है
 अस राउर प्रताप तिहुँ लोका तुम्हहिं भजत जन होहिं विशोका
 तुम्ह कृपालु  भक्तन्ह हित  लागी धारेहु मनुज देह सुख त्यागी
 कठिन भूमि बिचरहु भगवंता गुण गावत तुम्हार सब संता
    जे उन्मत्त असुर दुःख दाई पीड़त विप्र संत सुर गाई
 करत विविध विधि अत्याचारा बधे भूप अस असुर संहारा इसमें लाइन बराबर करनी है
मातुकंठ छेदन की लीला विस्मित जगत देखि बलशीला
 पितु आज्ञा पालन अस कीन्हा जननिहिं जिवन दान पुनि दीन्हा
 सहसबाहु सन कीन्हि लराई काटे कर कठोर दुःख दाई
बधेउ ताहि सँग सकल सहायक जय जय जय हे भृगुकुल नायक
तुम्हरी कृपा सकल सुख पावत सब कुछ लहहिं तुम्हहिं जन ध्यावत
भगतन्ह हित कुठार कर लीन्हें असुरन्ह बधेउ सुखी सुर कीन्हें
म्लेच्छन केर घोर संहारा खोजि  खोजि पापिन्ह कहँ मारा
जे नृपाल आवत शरणाई तिन्हहिं सकल सुख दीन्ह गोसाईं
भक्तन्ह कर संकट भगवंता करत कृपा हरि  लेत  तुरंता
आधि  व्याधि नहिं कवनिउँ पीरा सुमिरि लहहिं जन निरुज शरीरा
बिष प्रभाव नहिं जन पर काऊ अस उत्तम भृगुवीर प्रभाऊ
भूत प्रेत भय कबहुँ न लागत सुमिरत तुम्हहिं सकल भय भागत
जय जय जय कृपालु जगबंदन कीजै कृपा रेणुका नंदन
स्वामी सकल मनोरथ मोरे पुरवहु कृपासिंधु जन तोरे 
हरहु शत्रु संकट भृगु नंदन जय जय जयति रेणुका नंदन
भगत विपति कहँ सहहु न काऊ अस कृपालु  भृगुनाथ सुभाऊ
रिद्धि सिद्धि सब होहिं  सहाई सुमिरत तुम्हहिं सदा भृगुराई
स्वामी तुम्हहिं सकल सुखदाता करहु कृपा अब वेगि विधाता
जो शतवार पढ़हि मन लाई तेहि पर कृपा करहिं भृगुराई
विद्या लहहिं  सकल सुख पावहिं  जे धरि ध्यान परशुधर ध्यावहिं
हरहु शत्रु संकट भृगु नंदन जय जय जयति रेणुका नंदन !!-दो.  यह चालीसा पढ़हिं जे सुमिरहिं  आठहु याम
      सकल मनोरथ पूर्णकरि पहुँचत पावन धाम
  दो.  कर कुठार लीन्हें कठिन काँधे महुँ धनुबान
       हरत भगत भय परं प्रभु अस को कृपा निधान
 दो. सकल शोक संकट हरत फिरत रहत संसार
    बार बार बिनवहुँ तुम्हहिं प्रभु रेणुका कुमार
दो.    जे नृपाल पूजहिं तुम्हहिं श्रद्धा सहित अपार
 तिन्हहिं न सपनेहुँ शोक कहुँ अभय फिरत संसार
         
निवेदन - इस चालीसा के विषय में किसी को कोई सुझाव देना है तो- Email-vajpayeesn @gmail.com  
 
दो. महामारियों से जब मचता हाहाकार |
परशुराम जी को भजत मुक्त होत संसार ||
महामारियों के फैलने से संसार में जब जब हाहाकार मचने लगता है तब तब ऐसे कठिन समय में भी जो भक्त लोग भगवान् परशुराम जी का भजन करते हैं उन्हें महामारियों में होने वाले संक्रमण से शीघ्रमुक्ति मिल जाती है |
दो. औरहु जे संकट कठिन तथा सकल गृहक्लेश |
ध्यावत तुम्हहिं न व्यापत अस भरोस कवि'शेष'||
हे परशुराम जी !आपके चरण सेवक 'कविशेष' को आपकी भक्तवत्सलता पर इतना भरोसा है कि कितने भी बड़े संकटों से जूझ रहे लोग तथा पारिवारिक क्लेश से दुखी लोग यदि भक्ति भावना से आपके चरणों का ध्यान करते हैं तो उन्हें सभी प्रकार के संकटों एवं गृहक्लेश से मुक्ति मिल जाती है |

आचार्य : डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
व्याकरणाचार्य,ज्योतिषाचार्य ,एम.ए.हिंदी,  
 पी.जी.डी.पत्रकारिता , पीएच.डी. हिंदी (ज्योतिष )
काशी हिंदू विश्व विद्यालय
 

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