रविवार, 2 दिसंबर 2018

हनुमान जी दलित थे या देवता ?या फिर मुसलमान !

    हनुमान जी दलित हो ही नहीं सकते थे क्योंकि हनुमान जी आरक्षण के लिए कभी गिड़गिड़ाए नहीं !वो डरपोक या हिम्मत हरने वाले नहीं थे !डरपोक होते और मुसलमान होते तो तो अयोध्या में श्री राम का मंदिर अब तक बन गया गया होता !क्योंकि हनुमान जी के बंशज राम मंदिर बनने में रोड़ा क्यों लगाते !
    मुसलमानों की पूँछ किसने उखाड़ डाली
    हनुमान जी यदि दलित होते भी तो इतने पराक्रम कर भी नहीं सकते थे !तब तो हनुमान जी सोने की लंका देखकर ही उस पर मर मिटते !जब भारत में आजादी से आजतक फ्री का आटा दाल चावल देने का आश्वासन दे देकर नेता लोग सरकारें बना ले रहे हैं फिर वहाँ तो लंका ही साक्षात् सोने की थी उसे छोड़कर क्यों आते हनुमान जी !फिर तो वहीँ रहने का ठिकाना खोज लेते और लंका के राक्षसों पर बोझ बनकर वहीँ रह जाते !
    वैसे तो दलितों से श्री राम जी को इतनी उमींद ही नहीं होती कि वे लंका पहुँचेंगे भी और वहाँ से लौट कर आएँगे भी और आएँगे भी तो सीता जी का संदेसा लेकर ही लौटेंगे !क्योंकि इन्हें तो लंका में ही आरक्षण मिलने लग जाता तब तो ये वहीँ टिक जाते और श्री राम को भूलकर रावण के आगे ही दुम हिलाने लग जाते !जो आटा दाल चावल देने लगता उसी को वोट देते उसी की हाँ हुजूरी करने में लग जाते !
       महान जातिवैज्ञानिक  महर्षि मनु की विशेषता थी कि वे पूर्वजों का चेहरा देखकर पहचान लिया करते थे कि किसकी संतानें कमा कर खा सकती हैं और किसकी संतानें आरक्षण एवं सरकारी अनुदान के भरोसे जीवित रह पाएँगी  इस बात का पूर्वानुमान उन्होंने उस युग में लगाकर उसी हिसाब से जातियों का निर्माण कर दिया था !किंतु महर्षि मनु ने भी दलितजाति का वर्णन उन्होंने कहीं नहीं किया है !दलित नाम की कोई जाति उस समय भारत में होती ही नहीं थी ! संभवतः दलित लोग  भारत के मूल निवासी नहीं थे लगभग 100-200  वर्ष पहले से दलितों के भारत में आगमन के प्रमाण मिलते हैं इससे पहले दलितों का किसी भी रूप में भारत के इतिहास में कहीं कोई उल्लेख नहीं मिलता है !इसलिए उस युग में पैदा हुए हनुमान जी दलित कैसे हो सकते हैं !
       दलित कहते किसे हैं ?  चने अरहर आदि किसी दाने के बहुत टुकड़े कर दिए जाएँ तो उसे 'दलिया' या 'दलित' कहा जाता है और उसके यदि बराबर बराबर दो टुकड़े कर दिए जाएँ तो उन दोनों टुकड़ों को 'दाल' कहा जाता है !ऐसी परिस्थिति में गेहूं के दाने की तरह ही  किसी मनुष्य को कुचल कुचल कर यदि उसका दलिया बना दिया जाए तो उसे दलित कहा जा सकता है किंतु ऐसा संभव नहीं है क्योंकि फिर वह जीवित कैसे रह पाएगा !ऐसी परिस्थिति में हनुमान जी तो जीवित हैं फिर उन्हें दलित कैसे कहा जा सकता है !
        अपने को दलित कहने वाले लोग पढ़ने लिखने में तरक्की करने में तो अपने को कमजोर बताते हैं कहते हैं सवर्णों ने हमारा मनोबल गिरा दिया है जबकि जनसंख्या बढ़ाने में इनकी बहुत बड़ी भूमिका है यदि मनोबल गिरा ही होता और कमजोर ही होते तो ऐसा कैसे हो पाता !जबकि हनुमान जी महाराज तो बाल ब्रह्मचारी थे इसलिए उन्हें दलित कैसे कहा जा सकता है !
    अपने को दलित कहने वाले लोग कहते हैं  कि सवर्णों ने हमारा शोषण किया था इसीलिए हम लोग आगे नहीं बढ़ पाए और तरक्की नहीं कर पाए !किंतु वे यदि तरक्की नहीं कर पाए तो इसमें सवर्णों का क्या दोष ! वैसे भी किसी के यहाँ कोई बच्चा न हो रहा हो तो यह कमजोरी उसकी अपनी है न कि उसके पडोसी की !फिर दलितों के तरक्की न कर पाने  का दोष सवर्णों के मत्थे कैसे मढ़ा जा सकता है !हनुमान जी तो ऐसा झूठ नहीं बोला करते थे फिर उन्हें दलित कैसे कहा जा सकता है !
       प्राचीनकाल में ब्राह्मणों क्षत्रियों को युद्ध अक्सर लड़ने पड़ा करते थे दलित लोग युद्ध लड़ने से बहुत डरा करते थे !ऐसी परिस्थिति में जो जो जातियाँ युद्धों में सम्मिलित होती रहीं उनके लोग मरते रहे और उनकी संख्या घटती रही जिनकी संख्या घटती रही उनकी संपत्तियाँ बढ़ती रहीं !तथा जिन जातियों ने युद्धों में भाग नहीं लिया उनकी जन संख्या बढ़ती रही और संपत्तियाँ घटती रहीं !ऐसी परिस्थिति में दलितों की संपत्तियाँ घटने के लिए सवर्णों को दोषी कैसे ठहराया जा सकता है !       
      हनुमान जी दलित होते यदि तो उन पर इतना विश्वास करके उन पर इतनी बड़ी जिम्मेदारी डालना लोग उचित ही नहीं समझते !और यदि भेज भी दिए जाते तो समुद्र पार ही नहीं करते वहीँ से वापस लौट जाते और सवर्णों के द्वारा शोषण किए जाने जैसी कोई झूठी कहानी गढ़ कर रामदल में आकर  सुना देते !कदाचित यदि लंका में पहुँच भी जाते तो इतनी सारी धन संपदा देखकर तो पागल हो जाते और सीता को खोजना तो भूल ही जाते !वहीँ धन दौलत समेटने में लग जाते !यदि पकड़ जाते तो कहते कि ये तो हमारे पुरखों की कमाई हुई संपत्ति है लंका के ब्राह्मणों ने उनका शोषण करके उनसे छीन ली थी ! 
      हनुमान जी यदि दलित होते तो वो सीता जी को क्यों खोजते फिर तो वोआटा दाल चावल आदि लंका में फ्री कहाँ मिलता है उसे खोजने के लिए  उसका पता पूछते लंका में हाथ जोड़े घूम रहे होते !
      हनुमान जी यदि दलित होते तो लंका में जाकर इतना पराक्रम क्यों दिखाते अपितु आरक्षण माँगने की तरह ही सीता जी को माँगने के लिए रावण से गिड़गिड़ा लौट आते !
     हनुमान जी यदि दलित होते तो भूख लगने पर सीता माता से पूछ कर फल नहीं खाते और न ही पेड़ पौधे तोड़ते न राक्षसों को चुनौती देते !फिर तो माली को खोजकर उससे माँगकर खा आते फल !
    हनुमान जी यदि दलित होते तो श्री राम जी की ही सेवा नहीं करते उन्हें तो भारतीय राजनैतिक दलों की तरह जो भी एक कटोरा भर चावल ज्यादा देने की बात करता उसी की सेवा करने लग जाते !
    हनुमान जी यदि दलित होते तोश्री राम जी के भक्त नहीं होते क्योंकि श्री राम सवर्ण जाति से थे दलितों के द्वारा सवर्णों की सेवा करने में तो दलित अपनी बेइज्जती समझते हैं !
     हनुमान जी यदि दलित होते तो रावण सरकार के यहाँ  जातिगत आरक्षण के आधार पर नौकरी खोज रहे होते !वे सीता जी की खबर देने रामादल क्यों लौटकर आते !
      हनुमान जी दलित होते तो रावण के सामने जाकर श्री राम का गुणगान नहीं कर रहे होते फिर तो रावण के सामने पहुँचकर श्री राम को भूल जाते और रावण की ही चरण बन्दना करने लग जाते !
      हनुमान जी दलित होते तो विभीषण से मिलकर सीता की खबर पूँछते ही नहीं फिर तो हनुमान जी वहीँ आटा दाल चावल फ्री में माँगने खाने का जुगाड़ खोजने लग जाते !
      हनुमान जी दलित होते तो लंका में कुछ दिन रहने के बाद कहने लगते कि लंका के मूल निवासी तो दलित ही हैं यहाँ रहने वाले राक्षस तो बाहर से आए थे !     
        हनुमान जी यदि दलित होते तो श्री राम का पक्ष लेकर राक्षसों से लड़ते नहीं अपितु पकड़े जाने पर राक्षसबालकों से माफी माँग कर हाथ पर जोड़ रहे होते और पर कान पकड़कर उठक बैठक लगा रहे होते !
    हनुमान जी यदि दलित होते तो पूँछ में जब आग लगाई गई थी तब लंका में आग नहीं लगाते अपितु अपनी पूँछ की आग बुझाने के लिए लोगों के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रहे होते !






कोई टिप्पणी नहीं: