गुरुवार, 20 जून 2019

आधुनिक

आधुनिक मौसम विज्ञान - 
     कई विधाओं को समेटे हुए विज्ञान है जो वायुमण्डल का अध्ययन करता है। मौसम विज्ञान में मौसम की प्रक्रिया एवं मौसम का पूर्वानुमान अध्ययन के केन्द्रबिन्दु होते हैं।
मौसम विज्ञान के अध्ययन में पृथ्वी के वायुमण्डल के कुछ चरों (variables) का प्रेक्षण बहुत महत्व रखता है; ये चर हैं - ताप, हवा का दाब, जल वाष्प या आर्द्रता आदि। इन चरों का मान व इनके परिवर्तन समय और दूरी के सापेक्ष बहुत हद तक मौसम का निर्धारण करते हैं। 
    ऋतुवैज्ञानिक तत्व (एलिमेंट्स)
ऋतु संबंधी प्रेक्षणों में, जिनसे वायुमंडल की दशा का ज्ञान मिलता है, निम्नलिखित बातें देखी जाती हैं :
ताप-
वायु का ताप तापमापी (थरमामीटर) द्वारा नापा जाता है। इस थरमामीटर को सौर विकिरणों से अप्रभावित रखा जाता है। वायु की आर्द्रता ज्ञात करने के लिए गीले तापमापी (वेट बल्ब थरमामीटर) का उपयोग किया जाता है।
वायुदाब-
यह वायुदाबमापी (बैरोमीटर) द्वारा मापा जाता है और इससे पृथ्वी पर वायु का भार (प्रति इकाई क्षेत्रफल) विदित होता है।
पवन-
पवन की दिशा तथा वेग का प्रेक्षण किया जाता है। दिशा वह ली जाती है जिस ओर से पवन आता है पवन-वेगमापी (ऐनिमोमीटर) द्वारा मापा जाता है और मील प्रति घंटा या किलोमीटर प्रति घंटा या मीटर प्रति सेकंड में व्यक्त किया जाता है।
आर्द्रता
आर्द्रता से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा का ज्ञान होता है और, जैसा पहले कहा जा चुका है, यह सूखे तथा गीले थरमामीटरों द्वारा नापी जाती है।
संघनन के रूप -
इसमें वायुमंडलीय संघनन के सब प्रकार के द्रव एवं ठोस उत्पादन संमिलित हैं। बादलों की मात्रा तथा उनके प्रकार, कुहरा तथा वर्षा, हिम (बर्फ), ओला आदि, का प्रेक्षण किया जाता है।
दृश्यता (विज़िबिलिटी)
उस क्षैतिज दूरी को कहते हैं जहाँ तक की बड़ी और स्पष्ट वस्तुएँ दिखाई दे सकती हों।
छादन (सीलिंग)
ऊर्ध्वाधर दृश्यता (वर्टिकल विज़िबिलिटी) से संबंध रखती है और मेघतल की ऊँचाई से मापी जाती है। 
        इसके अलावा भी जलवायुपरिवर्तन  ग्लोबलवार्मिंग  अलनीनों और लानीना जैसी अनेकों कहानियाँ गढ़ लेने के बाद भी उससे लाभ क्या हुआ !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कहा जाता है ऐसी सभी घटनाओं का असर मौसम पर पड़ता है इसलिए इनका भी अध्ययन साथ साथ किया जाता है  !हो सकता है कि ऐसी काल्पनिक कहानियों का मौसम पर कुछ असर पड़ता भी हो तो उसमें आपत्ति किस बात की है मौसमसंबंधी अनुसंधान करते समय ऐसी सभी कथा कहानियों को सम्मिलित किया जाना चाहिए और मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की घोषणा करने से पूर्व  इनसे प्राप्त अनुभव भी इसी में सम्मिलित किए जाने चाहिए !किंतु यह सब होना तभी तक चाहिए जब तक कि भविष्यवाणी न की गई हो !एकबार भविष्यवाणी कर देने के बाद लीपा पोती करने के लिए उछाल कूद नहीं करनी चाहिए यदि बहुत आवश्यक न हो ! यह कतई नहीं स्वीकार्य है कि मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की गई भविष्यवाणी गलत होने के बाद जलवायुपरिवर्तन  ग्लोबलवार्मिंग  अलनीनों और लानीना जैसी कहानियों का ढाल की तरह उपयोग किया जाए !इससे समाज का विश्वास टूटने लगता है ! 
      इसमें विशेष बात  यह है कि इतने सारे प्रकारों से परीक्षण करने के बाद भी मौसम संबंधी जो पूर्वानुमान लगाया जाता है वह सही ही होगा इसकी कोई विश्वसनीयता नहीं  होती है मौसमविज्ञान के द्वारा लगाया जाने वाला दीर्घावधि पूर्वानुमान तो अक्सर गलत निकलता  है ही उसके अलावा भी जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं !उनमें से भी सही होने का अनुपात बहुत कम ही होता है !दूसरी बात वो अनुमान अत्यंत कम दिनों पहले के होते हैं इसलिए कृषि कार्यों आदि में इनका उपयोग उस प्रकार से नहीं हो पाता है जितनी कि आवश्यकता है !   
     मौसम विज्ञान के विषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान लगाने की पद्धति भले न विकसित की जा सकी हो जिससे इस बात का पता लगाना आज भी कठिन हो रहा है कि वर्षा होने का समय कब होगा या कौन सा आँधी तूफ़ान अथवा चक्रवात कब आएगा किंतु रडारों और उपग्रहों से प्राप्त चित्रों से मौसम संबंधी वे घटनाएँ जो बन चुकी हैं जैसे आँधी तूफ़ान बादलों आदि को देखकर उनकी निगरानी करना आसान होता है कि वे कब किस दिशा में जा रहे हैं उनकी गति क्या है वे कितने समय में किस देश प्रदेश या शहर में पहुँच सकते हैं ! उसके आधार पर उन उन जगहों के लोगों को सावधान कर दिया जाता है !उससे कृषि कार्यों में लाभ भले ही न मिल पाता हो और प्राकृतिक आपदाओं से बहुत अधिक बचाव भले ही न हो पाता हो तथा कुछ बचाव तो हो ही जाता है !इसलिए आधुनिक विज्ञान के द्वारा जितना जो कुछ हो पा  रहा है वो ठीक है इसके अतिरिक्त दीर्घावधि पूर्वानुमानों का लाभ कैसे होगा उसे भी याद रखा जाना चाहिए !

    सूर्यचंद्र ग्रहण का विज्ञान यदि उस युग में खोजा न गया होता तो आज उसके भी मौसम विज्ञान जैसे ही हालात होते  -  

      ग्रहणविज्ञान पूर्वानुमान का सबसे सटीक उदाहरण है!इससे संबंधित पूर्वानुमान किसी ग्रहण के घटित होने से हजारों वर्ष पहले गणित के द्वारा लगा लिया जाता है !पूर्वजों ने यदि ग्रहण का पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान उसी युग में न खोज लिया होता तब तो इस युग में ग्रहण संबंधी अनुसंधान की भी मौसमविज्ञान और भूकंप विज्ञान की तरह ही बड़ी छीछालेदर हो जाती !
      ग्रहणसंबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए सरकार को एक अलग से ग्रहणमंत्रालय बनाना पड़ता उसके बाद किसी को ग्रहणमंत्री भी बनाया जाता !इसके भी सचिव निदेशक आदि नियुक्त किए जाते !अलनीनों लानीना की थ्योरी अंतरिक्ष में भी फिट की जाती वहाँ का भी तापमान नापने की व्यवस्था की जाती और उस वर्ष ग्रहण पड़ने की संभावना पर उसका भी असर बताया जाता !इसके लिए भी सुपरकंप्यूटर  रडार और उपग्रह आदि का ताना बाना  बुना जाता उनसे आकाशीय चित्र देखे जाते जिनके आधार पर ग्रहण संबंधी बुलेटिन जारी किए जाते कि अमुक तारीख़ को ग्रहण पड़ने की ग्रहण वैज्ञानिकों को शंका हो रही है !इसलिए ग्रहण पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है और ग्रहण न पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है ग्रहण थोड़ा पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है और अधिक पड़ने की संभावना इतने प्रतिशत है !बाद में जितने प्रतिशत पड़ जाता उसी को अपनी भविष्यवाणी बता दिया जाता ! 
        इसी प्रकार से मानसून के समय की तरह ही ग्रहणों का भी कोई तारीख समय आदि निश्चित कर दिया जाता जो ग्रहण उस  समय के पहले पड़ जाते उन्हें प्रिमानसून ग्रहण बताया जाता और जो उन लोगों के द्वारा निश्चित किए गए समय के बाद पड़ते उन्हें उतनी  देर से पहुँचा बता दिया जाता !सूर्य और चंद्र मंडलों  में जिस ओर से बार बार ग्रहण पड़ता वहाँ टैक्टॉनिक प्लेटों की कल्पना कर जाती और ग्रहण पड़ने का कारण टैक्टॉनिक प्लेटों का आपस में टकराना या सूर्य चंद्र मंडलों में भरी गैसों का दबाव घट बढ़ जाना बता दिया जाता !पृथ्वी की तरह ही सूर्य चंद्र मंडलों को भी खतरों की संभावना के हिसाब से पाँच सात जोनों में बाँट दिया जाता !कहने का मतलब बाकी सारे नाटक नौटंकी होते रहते किंतु ग्रहणों का पूर्वानुमान लगपना उनके लिए हमेंशा असंभव ही बना रहता ! इसी प्रकार की निरर्थक गुणा गणित में बहुत सारा समय एवं सरकार का धन बर्बाद कर दिया जाता जिसका ग्रहण विज्ञान से कोई लेना देना ही नहीं होता !
       जिस अमावस्या या पूर्णिमा में सूर्य चंद्र पृथ्वी आदि तीनों एक सीध में आते दिखाई पड़ते और लगता कि अब दो तीन दिन में ग्रहण पड़ने वाला है तो ग्रहण संबंधी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी जाती कि अबकी अमावस्या या पूर्णिमा को ग्रहण पड़ने की ग्रहणविभाग के वैज्ञानिकों को आशंका है या संभावना है !इसका मतलब ये होता कि ग्रहण पड़ भी सकता है और नहीं भी पड़ सकता है !जिस अमावस्या या पूर्णिमा में ग्रहण पड़ने की भविष्यवाणी ग्रहण वैज्ञानिक करते किंतु उस बार ग्रहण न पड़ पाता जिससे उनकी भविष्यवाणी गलत हो जाती तो वो भी अपनी भविष्यवाणी को गलत नहीं मानते और न ही अपनी गलती मानते अपितु ग्रहण संबंधी भविष्यवाणी गलत होने का कारण  बताने के लिए जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी कोई कहानियाँ गढ़ दी जातीं और सारी जिम्मेदारी उसी के मत्थे मढ़ दिया करते !
        जिस अमावस्या या पूर्णिमा में ग्रहण पड़ता तो उसके पड़ने के बाद बताया जाता कि अबकी बार इतना ग्रहण पड़ा है साथ ही यह भी बताया जाता कि इस ग्रहण ने कितने वर्ष के ग्रहणों का रिकार्ड तोड़ा है !जो ग्रहण कुछ जगहों पर दिखता और कुछ जगहों पर नहीं दिखाई देता उसके लिए ग्रहण वैज्ञानिकों के द्वारा बताया जाता कि ग्रहण का वितरण ठीक नहीं हुआ !जिस वर्ष में अधिक ग्रहण पड़ जाते तो उसके लिए बढ़ते प्रदूषण और कार्वन उत्सर्जन को  जिम्मेदार ठहरा दिया जाता उसी के साथ ही लगे हाथ यह भी भविष्यवाणी कर दी जाती कि बढ़ते प्रदूषण को यदि रोका न गया तो भविष्य में सौ दो सौ वर्ष बाद प्रतिदिन ग्रहण पड़ने लगेंगे !उसके कुछ सौ वर्ष बाद इस पृथ्वी पर स्थाई रूप से ग्रहण पड़ जाएगा जिससे सूर्य चंद्र निस्तेज हो जाएँगे अंधकार उनको ढक लेगा और सारा ब्रह्मांड भयंकर अंधकार में विलीन हो जाएगा !इसलिए जलवायु परिवर्तन जैसी घटनाओं को रोके जाने की आवश्यकता है !इस प्रकार से ग्रहण वैज्ञानिकों का सारे विश्व में एकाधिकार होता  ! ग्रहण वैज्ञानिकों की ऐसी धमकियाँ सुन सुन कर हैरान परेशान वैश्विक सरकारें ऐसे लोगों के सामने नतमस्तक होकर इनकी आज्ञा का पालन करती दिखतीं !ये जैसा जैसा कहते जाते सरकारें वैसा वैसा करती जातीं !ग्रहण रोकने के लिए बड़े बड़े सभा सम्मेलन आयोजित किए जाते भारी भरकम फंड पास किया जाता वो उन लोगों के कथनानुसार खर्च किया जाता !
      ऐसे ग्रहण वैज्ञानिक ग्रहणसंबंधी  सटीक भविष्यवाणियाँ  करने के लिए कभी चंद्रमा पर टावर लगाने की बातें की जातीं और  कभी सूरज पर !इस प्रकार से सरकारों के सामने ऐसी ऐसी शर्तें रखते जिन्हें सरकारें न कभी पूरी कर पातीं और न ही ग्रहण संबंधी सटीक भविष्यवाणियाँ कर पाने की ग्रहण वैज्ञानिकों की  कभी कोई जिम्मेदारी होती !
        इसके बाद भी ग्रहणसंबंधी पूर्वानुमानों हेतु रिसर्च करने वाले ग्रहण वैज्ञानिकों की सैलरी आदि समस्त सुख सुविधाओं पर भारी भरकम जो धन खर्च किया जा रहा होता एवं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों के लिए संसाधनों पर जो धन खर्च किया जा रहा होता वो उस टैक्स का अंश होता जो  देश वासियों के खून पसीने की कठोर कमाई से देश के विकास के लिए लिया जाता है !इसके बदले में जनता को जो कुछ मिलने का आश्वासन दिया जाता वो सब कुछ हवा में ही होता !क्योंकि ऐसे अनुसंधानों के लिए कोई समय सीमा होती नहीं है कि इतने समय तक करना ही है ये तो अंत हीन  यात्रा ऐसे ही निरर्थक बातें बना बना कर सैकड़ों वर्षों तक चलाई जा सकती थी !
     इसी पद्धति को ग्रहण विज्ञान कहा जाता इसी को ग्रहण विज्ञान के रूप में स्कूलों कालेजों में पढ़ाया जा रहा होता जिसे पढ़कर छात्र परीक्षाएँ देते पास होते वैज्ञानिक बनते सैलरी पाते रिटायर हो जाते फिर नई नियुक्तियाँ होतीं !ये ऐसा ही गर्मी वर्षा सर्दी बसंत जैसा क्रम चला करता ! इसप्रकार से ग्रहण विज्ञान भी मौसमविज्ञान  और  भूकंपविज्ञान की तरह ही जंजाल में हमेंशा फँसा रहता !
     ये तो भारत के निवासियों का भाग्य ही है कि उनके पूर्वजों ने इतने विशाल ग्रहणविज्ञान को न केवल खोज निकाला अपितु उसका  गणित भी खोज निकाला उसके रहस्यों को समझने के लिए सूत्र बना डाले जिसके आधार पर गणित के द्वारा इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि कौन ग्रहण कब पड़ेगा !
          >>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>
आँकड़ा हो या अंदाजा किंतु ये पूर्वानुमान नहीं है !  
        पूर्वानुमान का आधार कोई न कोई वैज्ञानिक पद्धति होनी चाहिए जिसके द्वारा ग्रहण संबंधी भविष्यवाणियों की तरह ही कोई भी घटना घटित होने से काफी पहले पूर्वानुमान लगाया जा सके ! मौसम विज्ञान कहने से कई बार लगता है कि संभवतः यही वो विज्ञान है जिसके द्वारा मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है किंतु इस सच्चाई का ज्ञान बहुत कम लोगों को होगा कि हम जिस  विषय को मौसमविज्ञान के रूप में जानते हैं उसमें विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं !वह तो मौसम संबंधी  गतिविधियों को अत्यंत नजदीक आ जाने पर देखने में सहायक हो सकता है किंतु इसका मौसम संबंधी विज्ञान से कोई संबंध नहीं है!
     यदि कहीं धुआँ उठता दिखाई पड़ता है तो उससे ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि वहाँ आग जल रही होगी !किंतु धुआँ उठता हुआ देखकर आग जलने का अंदाजा लगाने की प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है !
      इसीप्रकार से किसी नहर में जब पानी छोड़ा जाता है या गंगा आदि नदियों में जब अचानक बाढ़ का पानी आ जाता है तो ऐसे दोनों प्रकार के पानी की दिशा और उसकी गति देख कर ये अनुमान कर लिया जाता है कि यह जल बहकर किस दिन कहाँ पहुँच सकता है !इसी प्रकार से कोई ट्रेन दिल्ली से हाबड़ा जा रही हो तो उसकी गति और दिशा देख कर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बीच में पड़ने वाले किन किन  स्टेशनों  पर  किस किस समय पहुँच सकती है !ऐसे ही अबकी बार भारत में चुनाव हो रहे थे इसी बिषय में कुछ लोग बैठकर किसी चाय की  दूकान में चुनावी चर्चा कर रहे थे तभी उनमें से एक बोला कि 23 मई के बाद डीजल पेट्रोल के दाम बढ़ जाएँगे लोग उसके मुख की ओर देखने लगे किसी ने उससे पूछा ऐसा क्यों कह रहे हो तो उसने बताया कि तब तक चुनाव हो चुके होंगे !इसलिए कीमतें तो बढ़ेंगी ही अन्यथा चुनावों का खर्च कहाँ से निकलेगा आदि आदि !इस प्रकार के अंदाजे तो बहुत सारे क्षेत्रों में लगभग सभी लोग लगा ही लेते हैं किंतु जीवन के किसी भी क्षेत्र में अंदाजा लगाने वाली इस प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही कोई मानता है !ऐसी परिस्थिति में मौसम संबंधी अंदाजों को विज्ञान कैसे माना जा सकता है !
      मौसम से संबंधित भविष्यवाणी करने वाले लोग अपने इस प्रकार के अंदाजों को भी विज्ञान कहते देखे सुने जाते हैं जो विज्ञानभावना के साथ अन्याय है !यदि मौसम पूर्वानुमान से संबंधित कोई तीर तुक्का सही बैठ भी जाता है तो भी वो रहता तुक्का ही है !क्योंकि वो तुक्का वैज्ञानिक नहीं है केवल अंदाजा है !अंदाजे को यदि विज्ञान माना जाने लगेगा तो जीवन में या प्रकृति में अंदाजा तो हर पल लगाना पड़ता है हर काम के विषय में लगाना पड़ता है जीवन और प्रकृति के विषय में लगाना पड़ता है संबंधों व्यापारों पद प्रतिष्ठाओं के मिलने और छूटने के विषय में लगाया जा सकता है !चुनावों के समय में प्रत्याशियों पार्टियों के चुनाव हारने और जीतने के विषय में लगाया जाने वाला पूर्वानुमान  या किए जाने वाले एक्जिटपोल को क्या चुनावविज्ञान मान लिया जाएगा !एक्जिटपोल तो एक्जिटपोल ही होते हैं इनके सही होने की गारंटी नहीं होती फिर भी इनमें  से बहुतों को सही होते भी देखा जाता है किंतु कई बार ये बिलकुल उलटे भी निकल जाते हैं सारे आँकड़े अंदाजे झूठे होते देखे जाते हैं ! हमें याद रखना चाहिए कि ये विज्ञान नहीं अपितु अंदाजा है इसके सच होने की उम्मींद भी हमें बहुत ज्यादा नहीं रखनी चाहिए !चुनावी आँकड़ों और मौसम संबंधी आँकड़ों में अंतर क्या है चुनावी आँकड़ों में समाज से सैंपल उठाए जाते हैं जबकि मौसमी आंकड़ों में प्राकृतिक वातावरण से सैंपल उठाए जाते हैं इन्हीं के आधार पर आँकड़े लगाए जाते हैं !इसलिए यदि चुनाव विज्ञान नहीं तो मौसम विज्ञान कैसे हो सकता है !
       अंदाजा तो गाँवों और जंगलों में रहने वाले लोग किसान आदि भी लगा लेते हैं कुछ प्रतिशत तो उनका भी सही हो जाता है !कहा तो यहाँ तक जाता है कि जंगल में रहने वाले आदिवासियों आदि को भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाओं का भी पूर्वाभाष  हो जाता है !इसीलिए भूकंप  आने से पहले वे वह क्षेत्र छोड़ जाते हैं जहाँ भूकंप आना होता है !ऐसा पूर्वाभाष कई पशु पक्षियों आदि जीव जंतुओं को भी हो जाता है इसलिए भूकंप  आने से पहले वे अपनी अपनी गतिविधियाँ बदलने लगते हैं उनके स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव आने लगता है !कुछ पक्षियों की बोली भाषा समझने वाले लोग उनकी अलग अलग प्रकार की बोलियों को सुन कर वर्षा से लेकर प्रकृति और जीवन से संबंधित तथा कई अन्य प्रकार के भी पूर्वानुमान लगा लेते हैं !यदि उनकी बोली भाषा व्यवहार आदि को समझना किसी को आता है तो उन पूर्वानुमानों में से भी बहुत सही निकलते देखे जाते हैं ! किंतु हम उन आदि वासियों किसानों ग्रामीणों आदि को जिस प्रकार से मौसम वैज्ञानिक नहीं कह सकते तो किसी और दूसरे को मौसम संबंधी किस योग्यता के कारण मौसम वैज्ञानिक मान लिया जाए !हमें याद रखना चाहिए कि ये विज्ञान नहीं अपितु अंदाजा मात्र है जो विज्ञान का मुख्यस्वरूप  भले ही न हों किंतु ऐसे विषयों के अनुसंधान में सहायक हो सकते हैं !
        कुलमिलाकर अंदाजा तो अंदाजा ही रहता है जबकि विज्ञान  में पारदर्शिता होती है दृढ़ता होती है निर्भयता होती है हर बात तर्क की कसौटी पर कसी जा सकती है !इसीलिए तो अंदाजे की अपेक्षा विजान पर अधिक विश्वास किया जाता है !
       किसी विषय का विज्ञान क्या है ये केवल उस शब्द के साथ विज्ञान जोड़ लेने मात्र से थोड़ा विज्ञान हो जाएगा अपितु उसकी वैज्ञानिकता सिद्ध करनी पड़ेगी  तब वो विज्ञान होगा !सिद्धांततः तो जिस बिषय का स्वभाव समझने में तथा उसका रहस्य उद्घाटित करने में एवं उससे संबंधित पूर्वानुमान देने में जो पद्धति जितनी अधिक सफल होती दिखाई दे वही उस विषय का विज्ञान माना जाना चाहिए !इस दृष्टि से यदि देखा जाए तो मौसम एवं भूकंपों से संबंधित अभी तक ऐसा कोई विज्ञान खोजा ही नहीं जा सका है जो अपने बल पर मौसम या भूकंपों से संबंधित घटनाओं का सटीक पूर्वानुमान लगा सके !  
बादलों हवाओं की जासूसी को क्यों मान लिया जाए मौसम विज्ञान ?
     वर्षा आँधी तूफानों आदि को  रखा कर बैठना पड़ता है !प्रारंभिक अवस्था में ही देख लेने के लिए सरकारों ने राडार उपग्रह आदि की व्यवस्था कर रखी है जिसके द्वारा आँधी तूफ़ान या बरसने वाले बादलों की निगरानी की जाती है !इनसे मिले चित्रों के माध्यम से इस बात की जासूसी की जाती है आँधी तूफ़ान या बरसने वाले बादल किस दिशा में कितनी गति से भागे जा रहे हैं उसी के आधार पर इस बात का अंदाजा लगाने का प्रयास किया जाता है कि ये उस दिशा में पड़ने वाले किन किन देशों प्रदेशों शहरों आदि में किस किस समय में पहुँच सकते हैं !ये अंदाजा कभी कभी ठीक बैठ जाता है और कभी कभी कुछ आगे पीछे भी होता है तथा कभी कभी तो बिल्कुल विपरीत निकल जाता है !बरसने को कहा जाए और बादल भी न आवें या आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की जाए और तेज हवा का एक झोंका भी न आवे !क्योंकि जासूसी तो केवल जासूसी होती है कोई भी जासूस संबंधित व्यक्ति से ये पूँछ तो नहीं सकता कि अगला कदम तुम्हारा क्या होगा उसे तो केवल पीछे चलकर ही जितनी संभव हो उतनी जानकारी जुटानी होती है! इस आधी अधूरी जानकारी के आधार पर ही कड़ियाँ जोड़कर संबंधित विषय में अगले कदम का अंदाजा लगाना होता है !
   इसी प्रकार की जासूसी करके अपना आस्तित्व  बचाने के प्रयास में लगी हुई हैं देश विदेश की मौसम संबंधी जासूसी संस्थाएँ !आश्चर्य तो तब होता है कि जब कोई उसे मौसम विज्ञान कहता है क्योंकि मौसमविज्ञान कहे जाने वाले विषय में विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं !
        किसी  जंगल के पास के किसी गाँव में हाथियों के  झुंड जंगल से निकल कर अचानक गाँव में घुस आते थे और उत्पात मचाकर काफी नुकसान कर दिया करते थे इसके बाद जंगल में वापस फिर लौट जाया करते थे !ग़ाँव वालों को बचाव के लिए समय ही नहीं मिल पाता था !इससे तंग होकर गाँववालों ने गाँव के बाहर चारों ओर कैमरे लगवा लिए जिनसे हाथियों के गाँव में घुसने की जासूसी कर ली जाती थी !जब जब हाथियों के झुण्ड जंगलों से निकलकर गाँव की ओर बढ़ने लगते तब तब गाँव के लोग कैमरों से देख लिया करते थे और संगठित होकर हाथियों को खदेड़ दिया करते थे !
       कुल मिलाकर कैमरों की मदद से हाथियों के आने की सूचना प्राप्त कर लेने वाले ग्रामीणों का इससे कुछ मात्रा में बचाव तो हो जाया करता था किंतु ये एक तुक्का था अंदाजा था जुगाड़ था इसे विज्ञान विज्ञान शब्द का मजाक होगा ! इसीलिए यह कभी सफल हो जाता था कभी नहीं भी होता था किंतु इस प्रक्रिया के द्वारा हाथियों से अपना बहुत बचाव कर लेने वाले ग्रामीणों को हाथीवैज्ञानिक तो नहीं कहा जा सकता है ! ऐसी परिस्थिति में रडारों और उपग्रहों के माध्यम से  बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी जासूसी करके मौसम संबंधी अंदाजा लगा लेने वाले मौसमभविष्य वक्ताओं को  मौसम वैज्ञानिक किस योग्यता के आधार पर माना जा सकता है ! 
        मौसम संबंधी अधिकाँश प्राकृतिक घटनाओं की जन्मस्थली समुद्र ही है!इसलिए अधिकाँश वर्षा या आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित शुरुआती घटनाएँ समुद्र में ही बनती हुई दिखाई पड़ती हैं इसके बाद वहीँ से चारों ओर जाती हैं !कई बार जिस दिशा में ये घटनाएँ मुड़ जाती हैं उधर कोई देश प्रदेश आदि काफी अधिक  दूरी पर होता है तो वहाँ ऐसी घटनाओं को पहुँचने में कुछ दिन लग जाते हैं !ऐसे समय में तो आधुनिक अनुमानों के द्वारा  सँभलने के लिए कुछ दिनों का समय मिल जाता है किंतु  कई बार गंतव्य स्थान नजदीक होता है है तब तो पता लगते लगते ही घटनाएँ घटित होने लगती हैं! वे तुरंत उड़कर किसी भी दिशा या देश में चली जाती हैं वहाँ उनसे लाभ या हानि दोनों प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !आवश्यकतानुशार वर्षा होने से लाभ होता है वह तो ठीक है किंतु अधिक वर्षा होने से बाढ़ आदि के कारण हानि भी  होते देखी जाती है!इसी प्रकार से आँधी तूफान आदि घटनाएँ  घटित होती हैं !ऐसी घटनाओं से भारी जन धन की हानि होते देखी जाती है !मौसम संबंधी विज्ञान न होने  के कारण ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना अभी तक संभव हो नहीं पाया है !
       इसलिए मौसमपूर्वानुमान से संबंधित विज्ञान  के अभाव में ऐसी घटनाओं से होने वाली जन धन की हानि को कम करने के लिए कुछ काम चलाऊ वैकल्पिक व्यवस्थाएँ कर रखी हैं !जिनसे प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना भले न संभव हो पाया हो किंतु प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन की हानि में कभी कभी कुछ कमी अवश्य लाई जा सकती है !यद्यपि कभी कभी इस प्रक्रिया से नुक्सान भी होता है इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है फिर भी लाभ के लोभ में ही ऐसी प्रक्रिया को अपनाया जा रहा है ! 
 प्राकृतिक घटनाओं का विज्ञान क्या है ? 
     वर्तमान समय में मौसम संबंधी प्राकृतिक अनुसंधानों के नाम पर केवल तापमान के बढ़ने घटने का डेटा संग्रह किया जाता है उसी तापमान के आधार पर अलनीनों लानीना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी कुछ कल्पनाएँ की गई हैं जिनके अपने अनुशार  अलग अलग नाम रख लिए गए हैं उनके कुछ कुछ लक्षण भी बता दिए गए हैं उन लक्षणों का मौसम पर पड़ने वाला असर भी बता दिया गया है !उसी असर के आधार पर वर्षा आँधी तूफ़ान आदि के विषय में मौसम वाले लोग कुछ तीर तुक्के लगाते भी हैं जिन्हें वे लोग मौसम संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ बताते हैं यदि वो सच निकलतीं तब तो इस गुणागणित को आधार बनाकर इसे वैज्ञानिक अनुसंधान का स्वरूप दिया भी जा सकता था किंतु मौसम वालों की मौसम संबंधी  दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ हमेंशा गलत ही निकलती हैं यदि सौ में दस  बीस बार सही हो भी जाए तो वो केवल तुक्का बैठ गया होता है जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसमें सब कुछ केवल काल्पनिक है विज्ञान का कहीं कोई अंश नहीं होता है !
       तापमान के बढ़ने घटने के आधार पर की जाने वाली मौसमी भविष्यवाणियाँ आधार रहित एवं अवैज्ञानिक हैं !ऐसे लोगों को यदि पूर्ण विश्वास है कि मौसम में आनेवाले  बदलावों का कारण तापमान का बढ़ना घटना ही है तब तो प्रशांत महासागर में भूमध्य रेखा के आसपास अलनीनों और लानीना की खोज में टकटकी लगाए बैठे रहने से अच्छा है कि अनुसंधान सूर्य और उसके प्रभाव पर होना चाहिए जिससे इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सके कि पृथ्वी पर या समुद्रों में सूर्य का प्रभाव कब कैसा पड़ेगा !इससे इस बात का भी पता लग जाएगा कि भूमध्य रेखा के आसपास प्रशांत महासागर में सूर्य का प्रभाव कब कैसा पड़ेगा !पृथ्वी का तापमान बढ़ने का आधार भी तो सूर्य ही है यदि मुख्य कारण सूर्य ही है तब तो अलनीनों लानीनों या ग्लोबल वार्मिंग का शोर शराबा करने से अच्छा है कि सूर्य के पृथ्वी पर पड़ने वाले प्रभाव पर ही वैज्ञानिक अनुसंधान करने की ही कोई वैज्ञानिक विधि खोज ली  जाए उससे तो अलनीनों लानीना जैसी परिस्थितियाँ पैदा होने की भी भविष्यवाणी की जा सकती है यदि वो सही निकल जाए तो उसके आधार पर मौसमसंबंधी पूर्वानुमान भी लगाया जा सकता है इस प्रक्रिया के अनुशार भविष्यवाणी करने का कोई वैज्ञानिक आधार तो बनेगा !
      वर्तमान समय में मौसम वालों की मौसम संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ तो सच होती नहीं हैं और जो अल्पावधि की मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ  दो चार दिन पहले की जाती हैं उनमें विज्ञान होता कहाँ है !वो तो एक संगति है मौसम की संपूर्ण गतिविधि वायुसंचार पर आश्रित होती है !वायु ही बादलों को एक जगह से दूसरी जगह उड़ाकर ले जाती है और आँधी तूफ़ान तो स्वयं में ही वायु है ! ऐसी परिस्थिति में किसी क्षेत्र में घिरे बादल उड़कर किधर जाएँगे और कहाँ कब पहुँचेगें इसी प्रकार से एक जगह पर उठा आँधी तूफ़ान किस देश या प्रदेश में कब कब पहुँचेगा इसका अंदाजा वायु के रुख के आधार पर लगा लिया जाता है ! वायु जिस दिशा की ओर जितनी गति से बह रही है यदि उसी दिशा की ओर उतनी ही गति से चलती रहेगी तो यह वायु किस देश या प्रदेश में किस दिन किस समय पहुँच सकती है उसी हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि एक स्थान पर  उठे बादल या आँधी तूफ़ान आदि कब कहाँ पहुँच सकते हैं !चूँकि वायु की दिशा और गति निश्चित तो होती नहीं है वो तो कभी भी अपनी दिशा और गति बदल सकती है ऐसी परिस्थिति में उसके आधार पर लगाया जाने वाला वर्षा बाढ़ और आँधी तूफ़ान आदि से संबंधित अंदाजा गलत होने की पूरी संभावना हमेंशा बनी रहती है ! इसलिए ऐसे लगाए जाने वाले मौसम संबंधी अंदाजों को विज्ञान कैसे माना जा सकता है !आखिर विज्ञान इसमें है क्या ? यदि किसी नदी में अचानक बाढ़ आ जाए तो वो बाढ़ संबंधी जल आगे कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँचेगा इसका अंदाजा  उस नदी में आए हुए बाढ़ के जल की  गति के आधार पर लगा लिया जाता है !किंतु इसमें विज्ञान तो कुछ भी नकोई भविष्यवाणी करना वो भी तो इसी प्रकार का अंदाजा ही है !
       मनुष्य का स्वभाव है कि वो प्रकृति और जीवन संबंधी सभी विषयों में सभी प्रकार का अंदाजा लगाकर ही आगे बढ़ता है !कोई चिकित्सक किसी रोगी की चिकित्सा करता है तो उस रोगी के स्वस्थ होने का अंदाजा लगाकर ही चलता है !किसान फसल योजना बनाते समय या व्यापारी व्यापार योजना बनाते समय उस विषय से संबंधित अंदाजा लगाकर तो चलते ही हैं !
      सीमित विषय वस्तु का अंदाजा लगाना हो तो आँकड़े भी सीमित जुटाने पड़ते हैं किंतु यदि विषय वस्तु का क्षेत्र विस्तारित है तो आँकड़े जुटाने में भी उस विस्तार को ध्यान में रखकर चलना होगा !अब समुद्र में यदि आँधी तूफ़ान उठता है या बादलों का समूह इकठ्ठा होता है तो इनसे संबंधित भावी अंदाजा लगाने के लिए समुद्र की सीमा में आए बादलों और आँधी तूफानों के आँकड़े तो जुटाने ही होंगे !किंतु उस आँकड़े जुटाने की उस प्रक्रिया को या उनके आधार पर वर्षा और आँधी तूफ़ान संबंधी लगाए जाने वाले अंदाजे को विज्ञान कैसे   माना जा सकता है !
     समुद्र के विस्तारित क्षेत्र में घटने वाली मौसम संबंधी घटनाओं को देखने के लिए कोई साधन तो बनाना ही पड़ेगा वो भले कोई उपग्रह या राडार ही क्यों न हो !उससे देखने का मतलब भी तो देखना ही होता है इसलिए उसे विज्ञान कैसे माना जा सकता है उसमें दूरस्थ घटनाओं को देखने का साधन कोई भी हो किंतु जो मौसम संबंधी अंदाजा लगाया जाता है उसमें विज्ञान तो कहीं नहीं है !
      कल्पना कीजिए कि यदि  वर्षा और आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कोई  लक्षण दूर दूर तक किसी भी रूप में कहीं प्रकट ही न हुए हों तो ऐसी परिस्थिति में यदि सूखा वर्षा ,आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं से संबंधित किसी पूर्वानुमान का पता लगाना हो तो किस आधार पर लगाया जा सकता है !इसका यदि कोई आधार खोज लिया जाए तो  उसे विज्ञान सम्मत  माना जा सकता है !  
   
जब जैसा मौसम तब तैसी भविष्यवाणियाँ -
      मौसम भविष्यवाणियाँ जितनी हिचकिचाहट के साथ की जाती हैं उससे सुनने वालों को विश्वास ही नहीं होता है कि इनमें कुछ सच भी होगा !लोगों को लगता है कि मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर कुछ तीर तुक्के बैठाए जा रहे हैं जो सही हो भी सकते हैं और नहीं भी हो सकते हैं !यही कारण है कि कुछ तो भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं इसीलिए कुछ पर जनता का भरोसा नहीं बन पाता है !कई बार पूर्वानुमान के नाम पर वर्षा होने की तारीखें दो दो दिन आगे बढ़ाते जाते हैं तब तक वह प्रदेश बाढ़ में फँस जाता है लोगों को अपने बचाव के लिए वह स्थान छोड़ने लायक भी नहीं रह पाता है !
      ऐसे में मौसम भविष्यवक्ता लोग  कहते हैं कि मैंने तो भविष्यवाणी की थी !किंतु सच्चाई तो ये है कि आपने दो दिन तक वर्षा होने की भविष्यवाणी की थी जनता ने सोचा दो दिन बाद वर्षा रुक जाएगी भविष्यवाणी का मतलब ही यही था किंतु तब तक कह दिया गया कि दो दिन और बरसेगा !जनता ने दो दिन की और  हिम्मत बाँध ली उसके बाद तीन दिन तक  वर्षा होने की भविष्यवाणी  कर दी गई !तब तक जनता का भरोसा ऐसी भविष्यवाणियों से उठ चुका  होता है किंतु अब यदि वो आत्म रक्षा के लिए कहीं जाना भी चाहें तो घर से लेकर रोड तक पानी इतना अधिक भर चुका होता है कि उन्हें मज़बूरी में छतों पर समय पास करना होता है !ऐसी परिस्थिति में ये भविष्यवाणियाँ समाज को कितना लाभ पहुँचा पाती हैं इनका चिंतन भी तो किया जाना चाहिए !
     ऐसी भविष्यवाणियों में प्रायः विज्ञान कम अपितु तीर तुक्के ज्यादा काम किया करते हैं !जिनमें एक जगह आँधी तूफ़ान उठा देखकर किसी दूसरे स्थान पर आँधी तूफ़ान आने की घोषणा कर दी जाती है !इसी प्रकार से कहीं एक जगह बादल उठे देखकर किसी दूसरे स्थान पर वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है !इस प्रकार की घटनाएँ  कहीं एक जगह घटित होती देखने के लिए रडार आदि यंत्रों की आवश्यकता होती है  जिनसे देखकर जैसा एक जगह हो रहा होता है उसकी गति और दिशा देखकर दूसरी जगह वैसा होने का अनुमान लगा लिया जाता है किंतु इसमें विज्ञान कहाँ है ये तो तीर तुक्का है इसीलिए ऐसे में पहली बात तो पूर्वानुमान गलत होने की संभावना बहुत अधिक बनी रहती है और दूसरी बात ऐसे पूर्वानुमान लगाने में अधिक से अधिक तीन चार दिन पहले पूर्वानुमान लगाया जा सकता है इसमें भी यदि घटना की गति और दिशा वही बनी रही तब पूर्वानुमान सही घटित होने की संभावना बन पाती है अन्यथा नहीं !
       इसी प्रकार से कहीं भूकंप आया देखकर पृथ्वी के अंदर की प्लेटों के टकराने की या धरती के अंदर बढ़े गैसों के दबाव की कहानियाँ सुनाने में विज्ञान कहाँ है !जब तक ऐसी किसी भी परिकल्पना के आधार पर लगाए जाने वाली घटनाओं से संबंधित पूर्वानुमान सही नहीं होने लगते हैं तब तक तो वे सब केवल  कोरी कल्पनाएँ ही हैं जिन्हें कोई कैसे भी कर सकता है!
     कई बार देखा जाता है कि जब  किसी क्षेत्र में कोई भूकंप आता है तब जो लोग अपने काल्पनिक विज्ञान के आधार पर भूकंप आने के विषय में किसी भी प्रकार का कोई पूर्वानुमान करके नहीं बता पाए थे! वही लोग भूकंप आने के बाद अचानक इतना अधिक सक्रिय हो उठते हैं मानों उनका तीसरा नेत्र ही खुल गया है !वो तरह तरह से और अधिक बड़े बड़े भूकंपों  के आने का अंधविश्वास फ़ैलाते देखे जाते हैं!अक्सर कहते सुने जाते हैं कि अभी और झटके लगेंगे! आप लोग घरों के बाहर निकलकर खुले स्थान में आ जाएँ !किंतु बेचार यह नहीं बता पाते हैं  कि कब तक के लिए लोग घरों से बाहर आ जाएँ  !इसीलिए ये विज्ञान नहीं अपितु विज्ञान की काल्पना है !
    ऐसे प्रकरणों में देखा जाए तो भूकंपों के विषय में कोई वैज्ञानिक दृष्टि कहाँ झलकती है इसमें खोज क्या है अनुसंधान किस बात का किया गया है और खोजने से मिला क्या है कुछ भी तो पारदर्शी नहीं है सारा कुछ गोलमाल है !आखिर भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों का उद्देश्य केवल ऐसी सलाहें देना ही तो नहीं था !
       वर्षा होने लगे तो पीछे पीछे कहने लगना अभी और वर्षा होगी अभी दो दिन बरसेगा, चार दिन और बरसेगा, इसी बीच धूप निकल आवे तो कहने लगना अब गर्मी पड़ेगी तापमान बढ़ जाएगा आदि !आँधी तूफ़ान आवे तो अभी और आँधी तूफ़ान आने जैसी रट लगाने लगना !वायु प्रदूषण बढ़ने लगे तो अभी और बढ़ने की भविष्यवाणियाँ करने लगना और घटने लगे तो घटने की भविष्यवाणियाँ करने लगना !ऐसी काल्पनिक बातों में विज्ञान के तो दर्शन भी नहीं होते और न ही ऐसा कहने के पीछे कोई वैज्ञानिक सिद्धांत ही होता है इसीलिए ऐसी बातों का सच्चाई से कोई संबंध भी नहीं होता है !
    वस्तुतः ऐसी बातों को विज्ञान तो तब माना जा सकता है जब वर्षा आँधी तूफ़ान आदि बिषयों पर एक बार भविष्यवाणी करके शांत हो जाए इसके बाद बिना किसी पूर्वाग्रह के उन भविष्यवाणियों के सही या गलत होने का निरीक्षण परीक्षण किया जाए उनमें अंतर आने पर उनके विषय में अनुसंधान किया जाए कि ऐसा क्यों हुआ! भविष्यवाणियों और घटनाओं में तारतम्य बनाया जाए तब तो विज्ञान अन्यथा कहीं भविष्यवाणियाँ जा रही हैं तो कहीं घटनाएँ घट रही हैं बीच बीच में भविष्यवक्ता लोग उछल कूद करके गैप को रफू करने में लगे रहते हैं ऐसी परिस्थिति में इस बात का अंदाजा ही नहीं लग पाता है कि भविष्यवाणी की आखिर क्या गई थी और वो सही कितनी हुई है तथा जो गलत हुई है उसमें गलत होने का कारण क्या है!विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा घालमेल नहीं चलता है !
     कई बार ऐसी भविष्यवाणियाँ गलत होती हैं उसमें आवश्यकता इस बात के अनुसंधान की होती है कि आखिर ये भविष्यवाणियाँ गलत क्यों हुईं उनका कारण क्या था !उसे खोजकर दोबारा उनका ध्यान रखा जाए ताकि वैसी गलतियाँ दोबारा न हों !किंतु ऐसे प्रकरणों में गलतियाँ खोजने के बजाए उसमें अचानक पश्चिमी विक्षोभ के सक्रिय होने की कहानी गढ़ लेना, जलवायुपरिवर्तन या ग्लोबलवार्मिंग जैसी बातों को घुसा लाने से उस समय बेशक अपने को वह गलत भविष्यवाणी करने के बाद भी निर्दोष सिद्ध कर लिया जाता है किंतु उस प्रकार की गलती दूसरी बार भी होने की संभावना बनी रहती है !इसप्रकार से आवश्यक अनुसंधान में ताला लगा लिया जाता है !
    इस विषय में यदि वास्तव में जिम्मेदारी निभाई जाए तो आवश्यकता इस बात की होती है कि भविष्यवाणी करने से पूर्व उन सभी बातों के विषय में पहले अनुसंधान कर लिया जाए जिन जिनका असर मौसम संबंधी घटनाओं के बनने बिगड़ने पर पड़ता है यही तो रिसर्च है अन्यथा रिसर्च किस बात का !
     पश्चिमी विक्षोभ ,जलवायुपरिवर्तन या ग्लोबलवार्मिंग या इसके अलावा भी जो ऐसे प्रभाव हों जिनसे मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के प्रभावित होने की संभावना हो उन्हें भविष्यवाणियाँ गलत होने पर आगे कर देने के बजाए इनके संभावित प्रभाव को भविष्यवाणियाँ करने से पहले ही उस अनुसंधान में सम्मिलित किया जाना चाहिए !ताकि बाद में इनके विषय में बताने की नौबत न आवे क्योंकि समाज तो ऐसी बातों को जानने के बिषय में रूचि नहीं रखता  है और न ही उसे इन पर अनुसंधान ही करना होता है उसे तो केवल सही सटीक एवं दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है जिससे समाज के जीवन में हानि लाभ संभव होता है !
     मौसम पूर्वानुमान जनता की आवश्यक आवश्यकता है क्योंकि मौसमीघटनाओं पर उनका जीवन निर्भर है किसानों का तो सब कुछ मौसम के  ऊपर ही आश्रित होता है किसानों को कुछ महीने पहले फसल योजना बनानी पड़ती है कुछ फसलें कम वर्षा में भी की जाती हैं जबकि कुछ फसलों को  अधिक वर्षा  की आवश्यकता होती है !मक्का जैसी फसलों को कम पानी की आवश्यकता होती है जबकि धान जैसी फसलों को अधिक पानी की आवश्यकता होती है !इसलिए जिस वर्ष जैसी वर्षा होने की संभावना होती है उस वर्ष उस प्रकार की फसलें बोने की योजना बनानी पड़ती है !
       इसी प्रकार से मार्च अप्रैल के महीने में जब गेहूँ चना मटर सरसों अलसी आदि की फ़सल तैयार होती है !उसी समय पशुओं के लिए भूसा आदि तैयार होता है जिसके ऊपर किसानों को पूरे वर्ष तक निर्भर रहना होता है !किसानों की आर्थिक परिस्थिति अक्सर कमजोर  रहती है इसलिए फसल तैयार होते ही उसे बेचने उनकी मज़बूरी होती है ऐसी आवश्यकताएँ होती हैं फसलों की लागत लगाने के लिए लिया हुआ ऋण फसल तैयार होने पर चुकाना होता है !जुलाई अगस्त में मका धान आदि की फसलें की जाती हैं जिस वर्ष जैसी वर्षा होगी उस वर्ष वैसी वे फसलें होंगी !जिस प्रकार की फसलें होने की संभावना होती है किसान उस प्रकार की उपज की आशा लगाते हैं !यदि फसलें अच्छी होने की संभावना होती हैं !तो किसान अप्रैल मई में तैयार आनाज भूसा आदि बेचकर कुछ पैसे तैयार कर लेते हैं जिससे उनकी उस समय की उस प्रकार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है !यदि जुलाई अगस्त में मका धान आदि की फसलें अच्छी होने की संभावना कमजोर होती है तो अप्रैल मई के महीने में ही पूरे वर्ष के लिए आनाज एवं भूसा आदि संरक्षित कर के रखना पड़ता है इसलिए अप्रैल मई के महीने में ही अगस्त सितंबर में कैसी वर्षा होगी किसानों को  इसके विषय में सटीक पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है !यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो किसानों के द्वारा इस समय लिए गए निर्णय यदि गलत हो जाते हैं तो उसके परिणाम उन्हें पूरे वर्ष भुगतने पड़ते हैं !
     इसलिए किसानों की ऐसी आवश्यकताओं की आपूर्ति की अपेक्षा मौसम संबंधी भविष्यवाणी करने वालों से होती है !इसके लिए मौसम संबंधी दीर्घावधि की भविष्यवाणियाँ सच होनी आवश्यक हैं किंतु वर्तमान परिस्थितियों में ऐसे पूर्वानुमान सच प्राप्त होने बहुत कठिन हैं !
 परिस्थितियाँ ये हैं कि पिछले तेरह वर्षों में जो वर्षा संबंधी दीर्घावधि भविष्यवाणियाँ की गईं उनमें केवल पाँच वर्षों की भविष्यवाणियाँ ही सही निकल सकी हैं !इससे अधिक तो किसानों के अपने द्वारा लगाए गए वे तीर तुक्के भी सही हो जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में जहाँ इतना अधिक घालमेल हो ऐसे पूर्वानुमानों को विज्ञान सम्मत कैसे कहा जा सकता है ! 

मौसम संबंधी चिंता  -
         17 अप्रैल 2019 को भीषण बारिश आँधी तूफ़ान बिजली गिरने आदि की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी तैयार गेहूँ भीग गया !लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हुई !
       इस विषय में जो भी पूर्वानुमान बताए गए वो इतने ढुलमुल थे कि लोगों का उन पर विश्वास नहीं हो सका !दूसरा पूर्वानुमान में और घटना घटित होने में अंतराल इतना कम था कि चाहकर भी बचाव कार्य कर पाना संभव न था !संभवतः यही कारण रहा है लोग चाहकर भी अपनी उपज का संरक्षण नहीं कर सके !जबकि वो ऐसा करना चाह रहे थे !ऐसी परिस्थिति में जो नुक्सान होना था जब वो हो ही गया तो ऐसे पूर्वानुमान किसानों के लिए किस काम के !
    ऐसी परिस्थिति में एक प्रश्न तो उठता है कि मौसम संबंधी ऐसी भविष्यवाणी करने का क्या लाभ जिनका जनता लाभ ही न उठा सके !यदि जनता के लिए भविष्यवाणियाँ की जाती हैं तो जनता के काम भी तो आनी चाहिए !जनता की जरूरतों पर यदि खरी न उतरें तो ऐसी भविष्यवाणियाँ किस काम की !जो समाज के लिए उपयोगी नहीं हो पाती हैं !ऐसा अधिकतर होता रहता है !
      सही और सटीक मौसम भविष्यवाणियों के नाम पर एक ओर तो समाज मौसम संबंधी इस प्रकार की परेशानियाँ सह रहा होता है दूसरी ओर मौसम भविष्यवाणियाँ करने वाले लोग बता रहे होते हैं इस वर्ष गर्मी ने इतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा, सर्दी ने उतने वर्ष का रिकार्ड तोड़ा,वर्षा इतने सेंटीमीटर हुई ! वो लोग ऐसी बातें अक्सर बताया करते हैं जिनसे किसानों को या समाज को क्या लाभ !समय पास करने के लिए की जाने वाली ऐसी निरर्थक बातों में जनता का समय नहीं बर्बाद किया जाना चाहिए !
         अभी अप्रैल 2019 में जून से सितंबर के बीच सामान्य वर्षा होने का पूर्वानुमान बताया गया !ये भविष्यवाणी सच होने की संभावना 39 प्रतिशत बताई गई है ! इसके साथ ही सामान्य से कम वर्षा होने की संभावना 32 प्रतिशत बताई गई है सामान्य से अधिक होने की संभावना 10 प्रतिशत बताई गई है !अत्यंत कम होने की संभावना 17 प्रतिशत और अत्यधिक वर्षा होने की संभावना 2 प्रतिशत बताई गई है !इसमें 5 प्रतिशत कम या अधिक होने की बात भी कही गई है !इसके बाद इसी समय के विषय में जून में एक और भविष्यवाणी की जाएगी !इसके बाद तीसरी भविष्यवाणी अगस्त के पहले सप्ताह में की जाएगी !
       भविष्यवाणी करने का सिद्धांत है कि जो भविष्यवाणी 50 प्रतिशत से अधिक सही सिद्ध होगी वही भविष्यवाणी मानी जा सकती है इससे कम सही होने तीर तुक्के  लगा सकता है कई बार वो भी 50 प्रतिशत या उससे भी अधिक सही सिद्ध होते देखे जाते हैं !दूसरा सामान्य और सामान्य से कम वर्षा होने का प्रतिशत लगभग एक है किंतु इनकार सूखा के लिए भी नहीं किया गया है उसे भी 17 प्रतिशत के साथ तीसरे स्थान पर रखा गया है !सामान्य से अधिक वर्षा होगी इसे 10 प्रतिशत के साथ इसे चौथे स्थान पर रखा गया है !ऐसी ढुलमुल भविष्यवाणियों का अर्थ किसान क्या निकालें !उसमें भी अभी जून में एक और भविष्यवाणी का पेंच फँसा हुआ है !ऐसी परिस्थिति में इस दीर्घावधि भविष्यवाणी के आधार  पर किसान अग्रिम फसल योजना किस प्रकार से बनावें  और कैसे उसका लाभ लें  जहाँ कुछ निश्चित ही नहीं है ! 
मौसम संबंधी ऐसी कुछ घटनाएँ जिनकी भविष्यवाणी नहीं की जा सकी -
     मौसम संबंधी कुछ  घटनाएँ ऐसी भी घटीं जो मौसम भविष्यवक्ताओं को या तो समझ में नहीं आईं या उन्होंने उधर ध्यान ही नहीं दिया या फिर ऐसे विषयों पर विज्ञान की कोई गति ही नहीं है !
       ऐसी परिस्थिति  में अपने द्वारा पूर्व में बोली गई परस्पर विरोधी बातों में से तत्कालीन घटित परिस्थिति के अनुकूल कोई एक बात पकड़ कर बैठ जाना और कहना कि मैंने तो इसकी भविष्यवाणी पहले ही कर दी थी ये ठीक नहीं है ! 3 अगस्त 2018 को भारतसरकार के द्वारा अगस्त सितंबर के लिए सामान्य वर्षा होने की भविष्य वाणी की गई थी किंतु 7   अगस्त 2018 को केरल में भीषण वर्षात शुरू हुई जो 14 अगस्त तक चली जिसमें केरल  डूबने उतराने लगा !यहाँ तक कि बाढ़पीड़ित केरल के मुख्यमंत्री को कहना पड़ा कि मुझे इस  विषय में सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई सूचना नहीं दी गई थी और ही ऐसी कोई भविष्यवाणी ही की गई थी !
         इसी प्रकार से सन 2018 में  11 अप्रैल और 2 मई को आए तूफान की वजह से जन धन का भारी नुकसान हुआ था। तूफान में हजारों पेड़ टूट गए थे।मई जून में आँधी तूफ़ान की कई बड़ी घटनाएँ घटित हुईं जिनके विषय में मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई अग्रिम अनुमान नहीं बताया गया था !उधर जब घटनाएँ घटित होने लगीं जनधन की हानि भी काफी मात्रा में होने लगी तो मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा भी बहते पानीमें हाथ धोने की कोशिश की गई उनके द्वारा भी  आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणियाँ भी की जाने लगीं जो गलत निकलत चली गईं !7-8 मई के विषय में सरकारी मौसम भविष्य वक्ताओं ने भीषण तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की गई कुछ प्रदेशों में सरकारों के द्वारा सतर्कता बरतते हुए स्कूल कालेज बंद कर दिए गए ! जबकि उस दिन हवा का एक झोंका भी नहीं आया !ऐसी घटनाएँ पूरे समय में घटित होती रहीं और इनका पूर्वानुमान देने में भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती चली गईं !छोटी मोटी घटनाएँ तो अक्सर घटित होती रहती हैं उनकी भविष्यवाणियाँ तो लीपापोती करके सही सिद्ध कर ली जाती हैं किंतु भविष्यवाणियां करने की योग्यता अयोग्यता तो बड़ी प्राकृतिक घटनाओं में ही सामने आती है !बड़ी घटनाओं के विषय में तो सभी चिंतित होते हैं इसलिए उधर सबका ध्यान जाता है !ऐसे समय झूठ को सच नहीं सिद्ध किया जा सकता है इसीलिए ऐसे समय में मौसम भविष्यवक्ताओं  की सच्चाई सामने आ  ही जाती है ! 
        इसी प्रकार से 16 जून 2013 को  केदारनाथ जी में आए सैलाव के विषय में भी यही हुआ था ! उस आपदा में 4,400 से अधिक लोग मारे गए या लापता हो गए। 4,200 से ज्यादा गांवों का संपर्क टूट गया। इनमें 991 स्थानीय लोग अलग-अलग जगहों पर मारे गए। 11,091 से ज्यादा मवेशी बाढ़ में बह गए या मलबे में दबकर मर गए। ग्रामीणों की 1,309 हेक्टेयर भूमि बाढ़ में बह गई। 2,141 भवनों का नामों-निशान मिट गया। 100 से ज्यादा बड़े व छोटे होटल ध्वस्त हो गए। यात्रा मार्ग में फंसे 90 हजार यात्रियों को सेना ने और 30 हजार लोगों को पुलिस ने बाहर निकाला। आपदा में नौ नेशनल हाई-वे, 35 स्टेट हाई-वे और 2385 सड़कें 86 मोटर पुल, 172 बड़े और छोटे पुल बह गए या क्षतिग्रस्त हो गए।मौसम विभाग के द्वारा इस विषय में भी कोई स्पष्ट पूर्वानुमान  नहीं  बताया गया था ! ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ता देश के किस काम आ सके !
    ऐसे ही सन 2016 में 10 अप्रैल के बाद से शुरू होकर मई जून तक आधे भारत में भीषण गर्मी होती रही इसी समय में आग लगने की हजारों घटनाएँ घटित हुईं यहाँ तक कि बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाएँ और हवन  न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ इसी कारण से ट्रेन से पानी की सप्लाई करनी पड़ी थी ! ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !इस वर्ष ऐसा होगा इस विषय में सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था देश आग लगने संबंधी भीषण दुर्घटनाओं से जूझता रहा !मौसम भविष्यवक्ता न इसकी भविष्यवाणी कर सके थे और इसी वर्ष ऐसा क्यों हुआ इसका कोई समुचित उत्तर भी नहीं दे सके थे ! 
     इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !
   इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !
      प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि मौसमविभाग ने अपनी भूमिका का निर्वाह किस प्रकार से किया !
   प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाइ गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम विभाग के द्वारा इस विषय में भी कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
 ऐसी परिस्थिति में मौसम भविष्यवक्ताओं की भविष्यवाणियों से देश किस प्रकार से लाभान्वित हो पा  रहा है !        

 भूकंप-                                                                                                        भूकंप के विषय में भविष्यवाणी का  क्या मतलब ?
      जो लोग भूकंपों के विषय में अक्सर कहते सुने जाते हैं कि हमें भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने में सफलता नहीं मिली है उनके द्वारा धरती के अंदर के गैसों के दबाव की बात हो या फिर धरती के नीचे बारह  टैक्टॉनिक  के आपस में टकराकर भूकंप आने की बात हो ऐसी बातें अभी तो केवल कोरी कल्पनाएँ हैं ये सच हैं या नहीं इस बात का प्रमाणित अभी बाकी है !जिन कल्पनाओं के आधार पर भविष्य में भूकंप आने के विषय में पूर्वानुमान किए जाएँ और वे सही घटित भी हों तब तो धरती के अंदर की गैसों के दबाव की बात या धरती के नीचे बारह  टैक्टॉनिक  प्लेटों के आपस में टकराकर भूकंप आने की बात पर भरोसा करना पड़ेगा !इसके अलावा केवल काल्पनिक कहानियों को विज्ञान मानकर उन पर इतना विश्वास नहीं किया जा सकता है !
     वैसे भी जब ऐसे भविष्यवक्ताओं को पता है कि उन्हें भूकंपों के पूर्वानुमान के विषय में कोई जानकारी नहीं है ऐसा वे स्वीकार भी करते हैं तो उन्हें भूकंपों के विषय में आधार विहीन झूठी भविष्यवाणियाँ करके समाज में अफवाहें नहीं फैलानी चाहिए !यदि उन्हें रिसर्च ही करनी है तो करें किंतु उस रिसर्च को भविष्यवाणी बनाकर तब तक प्रस्तुत करने की गलती न करें जब तक वो सही होंगी ऐसा विश्वास न हो !
       मौसम भविष्यवाणी करने वाले लोग जब जैसा मौसम देखते हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ करते हैं बादल उठे देखते हैं तो पानी बरसाने की भविष्यवाणी कर देते हैं आँधी तूफ़ान उठा देखते हैं तो आँधी उफान आने की भविष्यवाणी कर देते हैं वही  भूकंपों से संबंधित भविष्यवाणियाँ करने में भी अपनाई जाने लगी है !
    25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भूकंप आया ही था उसमें जनधन की भारी हानि हुई थी जनता भयभीत थी ही ऐसे समय जनता का मनोबल  बढ़ाने की आवश्यकता थी ताकि भूकंपों के बिषय में समाज का डर कुछ कम हो वो तो किया नहीं गया अपितु उसके दो महीने के बाद ही भविष्यवाणी करने वालों के द्वारा इतने बड़े महा भूकंप के आने की भविष्यवाणी कर दी गई कि जो न मरता हो वो भी ऐसी भविष्यवाणी सुनते ही डर कर मर जाए वो झूठी भविष्यवाणी !ऐसा विज्ञान किस काम का जिसका उपयोग लोगों में अफवाह फैलाने के लिए किया जाता हो !  आप स्वयं देखिए -

भूकंप की भविष्यवाणी से संबंधित हिंदुस्तान हिंदी दैनिक में एक भविष्यवाणी प्रकाशित की गई -
    नई दिल्ली, एजेंसी Last updated: Sun, 15 Jul 2018 02:59 PM IST
       "चेतावनी: भारत में आ सकता है बड़ा भूकंप, तहस-नहस हो जाएगा सब कुछ
     भूगर्भीय हलचल और इसके प्रभावों का विश्लेषण करने वाले देश के चार बड़े संस्थानों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर आठ से भी ज्यादा हो सकती है और तब जान माल की भीषण तबाही होगी। यह अध्ययन देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट, हैदराबाद, नेशनल सेंटर फॉर अर्थ सीस्मिक स्टडीज, केरल और आईआईटी खड़गपुर ने किया है।
     वाडिया संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक और जियोफिजिक्स के प्रमुख डॉ. सुशील कुमार ने बताया कि इस अध्ययन को पूरा करने के लिए वैज्ञानिकों ने साल 2004 से 2013 के बीच कुल 423 भूकंपों का अध्ययन किया। उन्होंने कहा, 'हमारा मानना है कि 1905 से अब तक इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने पर घर्षण से पैदा हुई कुल ऊर्जा में से भूकंपों के जरिए केवल तीन से पांच प्रतिशत ऊर्जा ही निकली है। इसका मतलब यह है कि आने वाले समय में आठ से ज्यादा तीव्रता का भूकंप आने की पूरी आशंका है।'
     डॉ. कुमार बताते हैं कि उत्तर पश्चिम हिमालय क्षेत्र में इंडियन प्लेट उत्तर दिशा की तरफ खिसक रही है और यूरेशियन प्लेट के नीचे दबाव पैदा कर रही है, जिससे इस क्षेत्र में बहुत ज्यादा फॉल्ट सिस्टम बन गये हैं। जिसमें मेन सेंट्रल थ्रस्ट (एमसीटी), मेन बांउड्री थ्रस्ट (एमबीटी) और हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट (एचएफटी) प्रमुख हैं। अपने अध्ययन को पुख्ता करने के लिए वाडिया इंस्टीट्यूट ने हिमालय में विभिन्न जगहों पर 12 ब्रांडबैंड सीस्मिक स्टेशन लगाये और कई सालों के अंतराल में इन स्टेशनों पर रिकार्ड भिन्न-भिन्न प्रकार के भूकंपों का विश्लेषण किया।
    हालांकि, इन सभी अध्ययनों के बावजूद डॉ. सुशील कुमार ने कहा कि यह नहीं बताया जा सकता कि भविष्य में बड़ा भूकंप कब और कहां आयेगा। उन्होंने कहा, 'हम चाहते हैं कि हिमालय में लोग भूकंप के बारे में जागरूक रहें और मकान निर्माण में भूकंप रोधी तकनीक का इस्तेमाल करें।' डॉ. सुशील ने बताया कि राज्य सरकार के साथ भूकंप की तैयारियों को लेकर हाल में हुई एक बैठक के दौरान उन्होंने सुझाव दिया है कि हर गांव में एक भूकंप रोधी इमारत बनवा दी जाये जहां भूकंप की चेतावनी मिलने या भूकंप आने के बाद लोग रह सकें। उन्होंने कहा, 'भूकंप आने के बाद सबसे बड़ी समस्या घरों और उन तक पहुंचने वाले रास्तों के क्षतिग्रस्त होने की होती है। हिमालय की संवेदनशीलता को देखते हुए इन इमारतों में हर समय खाद्य सामग्री, पानी और कंबल उपलब्ध रहना चाहिए ताकि लोग राहत दल के आने तक आसानी से अपना गुजारा कर सकें।'  "
     भविष्यवाणी के विषय में विशेष बात-
     इस भविष्यवाणी को ठीक से पढ़ने से ज्ञात होता है कि इस भविष्यवाणी के माध्यम से अफवाह फैलाने का काम अधिक किया जा रहा है इसके अलावा दूसरी बात जो है वो ये की सरकार  के सलाहकार की भूमिका अदा की जा रही है किंतु इन दोनों कामों में विज्ञान की तो कोई भूमिका ही नहीं है !इतने संस्थानों की सहमति से जो अनुसंधान हुआ उसमें यह भी नहीं बताया जा सका कि इतना बड़ा भूकंप कब आएगा कहाँ आएगा ?यदि स्थान और समय बताया गया होता तो उस स्थान से सौ दो सौ किलोमीटर आगे पीछे आ जाता और समय बताया गया होता तो उससे चार छै महीने आगे पीछे आ जाता तब भी ऐसे वक्तव्यों की कुछ प्रासंगिकता होती यहाँ तो निराधार ऐसी अफवाहें फैलाई जा रही हैं आखिर क्यों ?
25 अप्रैल 2015 को नेपाल में भयानक भूकंप आया था जिससे सभी लोग डरे हुए थे ऐसी परिस्थिति में उसी के दो महीने बाद इस प्रकार की निराधार अफवाहें फैलाने से देश और समाज का शिवाय नुक्सान के और लाभ क्या हो सकता है !वस्तुतः देश और समाज हिट में ऐसी अफवाहों पर रोक लगाई जानी चाहिए !
         इसी प्रकार से इसीप्रकार से इंडिया टीवी ने भी एक भविष्यवाणी प्रकाशित की थी जिसका संक्षिप्त रूप यहाँ उद्दृत करते हैं -
"वैज्ञानिकों की सबसे डरावनी चेतावनी, 2018 में भूकंप से मचेगी तबाही !"
Updated on: January 31, 2018 13:10 IST
महीना बदलेगा और भूकंप आएगा। ये बात हम किसी को डराने के लिए नहीं कह रहे हैं बल्कि ये दावा उस रिसर्च में किया गया है जिसे अमेरिका की दो बड़ी यूनिवर्सिटीज के 2 प्रोफेसर्स ने किया है। उन वैज्ञानिकों के मुताबिक 2018 में कई बड़े भूकंप के झटके आ सकते हैं। वो जलजला इतना तेज़ होगा कि बड़ी तबाही मच सकती है। रिसर्च के मुताबिक आने वाले महाभूकंप का अलर्ट धरती ने भेजना शुरु भी कर दिया है। बताया जा रहा है कि पिछले 4 साल से हर दिन पृथ्वी की रफ्तार कम हो रही है और यही आने वाले साल में दुनिया के कई देशों में बड़े भूकंप की वजह बन सकती है जिसमें हिंदुस्तान भी शामिल है।          
महाभूकंप को लेकर जो दावा किया जा रहा है उसके मुताबिक -   "2018 में अब तक के सबसे बड़े भूकंप आ सकते हैं भूकंप की तीव्रता 7.5 मैग्नीट्यूड से ज्यादा हो सकती है महाभूकंप दुनिया के किसी भी हिस्से में आ सकता हैहिंदुस्तान के कई इलाकों पर भी बड़े भूकंप का खतरा पृथ्वी के घूमने की रफ्तार कम होने से भूकंप का खतरा "
मोंटाना यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी के घूमने की स्पीड हर रोज़ कुछ मिलीसेकेंड्स में घट रही है और यही सेकेंड्स धरती के अंदर पैदा हो रही एनर्जी को बाहर आने में बहुत बड़ी मदद कर सकते हैं और नतीजा एक विनाशकारी भूकंप के तौर पर सामने आ सकता है। क्योंकि अगर 2018 में भूकंप आया और उसकी तीव्रता 7.5 मैग्नूीट्यूड से ज्यादा हुई तो ऐसी तबाही मचेगी जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।अगर कहीं भूकंप का एपीसेंटर समंदर के अंदर हुआ तो सुनामी भी आ सकती है। यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के रोजर बिल्हम और यूनिवर्सिटी ऑफ मोंटाना की रेबेका बेंडिक ने भूकंप के बारे में रिसर्च किया हालांकि इस रिसर्च में ये नहीं बताया गया कि वो कौन से इलाके हैं जहां भूकंप का सबसे ज्यादा खतरा है लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है कि जब पृथ्वी की रफ्तार में फर्क आता है तो दिन छोटे या बड़े होने लगते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर भूमध्य रेखा यानी इक्वेटर के आसपास वाले इलाकों में देखा जाता है।भूमध्य जैसा की नाम से पता चलता है ये रेखा पृथ्वी को दो बराबर हिस्सों में बांटती है। भूमध्य रेखा दुनिया के 13 देशों से गुजरती है जिसमें इक्वाडोर, कोलंबिया, ब्राजील, रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो, केन्या, मालद्वीव्स और इंडोनेशिया जैसे देश शामिल हैं। यानी अगर वैज्ञानिकों की बात सच निकलती है तो भूकंप का खतरा सबसे ज्यादा इन्हीं देशों पर मंडरा रहा है। हालांकि भारतीय भू-वैज्ञानिक ये भी दावा कर रहे हैं कि खतरा हिंदुस्तान के इलाकों को भी है। महाभूकंप को लेकर अमेरिकी वैज्ञानिकों ने अपने इस दावे का एक और आधार बताया है। उनके मुताबिक साल 1900 के बाद आए ऐसे भूकंप की स्टडी की गई जो 7 मैग्नीट्यूड से ज्यादा थे तो हैरान करने वाला सच सामने आया। 
         "पिछली सदी में पांच बार 7 मैग्नीट्यूड से ज्यादा के भूकंप आएहर बार भूकंप का संबंध पृथ्वी घूमने की रफ्तार से जुड़ा मिलापृथ्वी के किनारों पर छोटे बदलाव भी भूकंप से जुड़े हो सकते हैंइसी रिसर्च पर वैज्ञानिक 2018 में बड़े भूकंप की बात कर रहे हैं "
      दुनिया के किन देशों पर खतरा ज्यादा है, इसका सिर्फ अनुमान लगाया जा सकता है लेकिन वैज्ञानिकों का दावा है कि हिमालय के नीचे हलचल तेज़ है जो किसी भी दिन बड़े भूकंप की वजह बन सकती है।
  विशेष बात - इस प्रकार से भूकंपों के आने का प्रमाणित कारण क्या है ये अभी तक किसी को नहीं पता है तथा भूकंपों का पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है ये किसी को नहीं पता है !भूकंपों के विषय में अनुसंधान शुरू कहाँ से किया जाए ये किसी को नहीं पता !भूकंपों के आने के लिए जिम्मेदार आकाश है या पाताल या पृथ्वी का ऊपरी तल या फिर वायु मंडल में व्याप्त कोई परिस्थिति !
     वस्तुतः भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाने में जब तक सफलता नहीं मिलती है तब तक भूकंपों के विषय में किसी की कल्पनाओं को गलत नहीं कहा जा सकता है !जो लोग ऐसा मानते हैं कि हम तो भूकंप वैज्ञानिक हैं इसलिए हम जो कहते हैं उसे ही प्रमाण माना जाना चाहिए किंतु ये बात गलत है !यदि अभी तक ज्ञान की किसी धारा के द्वारा भूकंपों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में सफलता मिल पाती तो वो उस ज्ञान धारा को भूकंपों का विज्ञान माना जा सकता था और उस ज्ञान धरा को खोजने वालों को वैज्ञानिक माना जा सकता था !किंतु जब तक ऐसी किसी भी ज्ञानधारा का खोजना ही संभव नहीं हो पाया तो किस बात का भूकंपविज्ञान और किस बात के भूकंप वैज्ञानिक !निरर्थक ऐसी उपाधियों से किसी को अलंकृत करना स्वयं विज्ञान का भी अपमान है !    
   विज्ञान में पारदर्शिता बहुत आवश्यक है-
        वस्तुतः जिस किसी भी विषय के द्वारा किसी भी व्यक्ति वस्तु स्थान द्रव्य भाव आदि के स्वभाव को समझ कर उस विषयी से संबंधित रहस्यों को खोल सकने में जो विषय सक्षम हो वही उस विषय का विज्ञान माना जाना चाहिए !इसके अलावा और किसी अन्य प्रकार का पूर्वाग्रह इसमें स्वीकार्य नहीं होना चाहिए !
     चिकित्सा के क्षेत्र में ही लें तो किसी रोगी के शरीर की स्थिति का अध्ययन ,रोक के स्वभाव का अध्ययन उसके घटने बढ़ने का पूर्वानुमान एवं उस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए दी जाने वाली औषधियों के प्रभाव का अनुमान लगा लेने की संपूर्ण ज्ञान धारा के संयुक्त स्वरूप को चिकित्सा विज्ञान कहा जाता है !
     इसके अलावा रोग को जानने का दावा करने वाले एवं रोग से मुक्ति दिलाने का दावा करने वाले लोगों को तब तक चिकित्सा वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता जब तक वे इन विषयों को संपूर्ण रूप से समझ न पाते हों और ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने में पारदर्शिता पूर्वक सक्षम न हों !
     किसी रोगी को स्वस्थ करने का दावा करने वाले तो बहुत लोग हैं जादू टोना करने वाले बाबा लोग,झाड़ फूँक करने वाले मुल्ला मौलवी लोग एवं और बहुत सारे टोने टोटके करने वाले लोग बड़े बड़े रोगों से मुक्ति दिलाने का दावा करते देखे जाते हैं किंतु उनके पास रोगों को समझने की न कोई प्रक्रिया होती हैं और न ही कोई चिकित्सकीय प्रक्रिया ही होती है !भूकंप वैज्ञानिकों की तरह वे भी केवल अपनी काल्पनिक बातों को ही सबके मत्थे मढ़ना चाहते हैं !इसलिए उनकी तुलना चिकित्सावैज्ञानिकों से नहीं की जा सकती है !चूँकि चिकित्सावैज्ञानिकों  के काम में पारदर्शिता है उनकी औषधियों एवं आपरेशन आदि प्रक्रियाओं के परिणाम विश्वसनीय हैं !इसीलिए इसे चिकत्सा की इस प्रक्रिया को विज्ञान मानने में कहीं किसी को कोई आपत्ति नहीं होती है !चिकित्सा पर सबका भरोसा है !इसके अलावा जादू टोना आदि जो अन्य प्रक्रियाएँ हैं उनमें पारदर्शिता और प्रमाणिकता का अभाव है हो सकता है कुछ हद तक वो चीजें भी सच हों किंतु उन सच बातों को पारदर्शिता पूर्वक प्रस्तुत करने से पहले उन्हें विज्ञान नहीं माना जा सकता अपितु उसे अंधविश्वास बताया जाता है !
      यदि इसी प्रकार की कठोर कसौटी पर मौसम विज्ञान और  भूकंप विज्ञान को भी यदि कसा जाए तो ये विषय भी अभी तक विज्ञान की श्रेणी में आने योग्य नहीं हैं अपितु ये भी अंधविश्वास ही हैं !
    इसलिए सच यही है कि जो ज्ञान सिद्धांत  सूत्र  या प्रक्रिया आदि जिस विषय को समझने में सफलता दिला सके वही उस विषय का विज्ञान होता है !इसके अतिरिक्त किसी विषय को विज्ञान कह देने या मान लेने मात्र से वो विज्ञान नहीं हो जाता है वो तो अंधविश्वास है !यदि उस माने हुए काल्पनिक विज्ञान से संबंधित विषय को समझने में उसका रहस्य खोलने में सफलता मिल जाती है तब वो विषय विज्ञान की श्रेणी में स्थापित हो जाता है और उस विषय को जानने  वाले लोग उस विषय के वैज्ञानिक मान लिए जाते हैं !
    इसके अतिरिक्त भूकंप जैसे जो ऐसे प्राकृतिक विषय हैं जिनके रहस्य खोलने के लिए विद्वानों ने अनेकों प्रकार की प्रक्रियाएँ अपना रखी हैं तमाम प्रकार के तीर तुक्के लगाए जा चुके हैं तरह तरह की काल्पनिक विधियाँ अपनाई जा रही हैं तरह तरह की संभावनाएँ आशंकाएँ व्यक्त की जा रही हैं !एक ओर तो धरती के अंदर की गैसों के दबाव की बात कही जा रही है तो दूसरी ओर पृथ्वी के अंदर लावा पर तैरती  बारह टैक्टॉनिक प्लेटों के आपस में टकराने की काल्पनिक कहानियों की बात है ऐसी बातों को तब तक विज्ञान कैसे माना जा सकता है जबतक ऐसी कल्पनाएँ भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का निश्चित कारण खोजने में सहायक न हों ! इससे भी बड़ी बात यह है कि उसके आधार पर  भावी भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने में सफलता न मिल सके !यदि ऐसी शर्त नहीं होगी तब तो भूकंप आने के कारण बताने वाले लोग तरह तरह की अनगिनत कहानियाँ गढ़ते सुनाते रहेंगे और सभी लोग  अपनी अपनी काल्पनिक कहानियों को विज्ञान बताते रहेंगे !इसलिए शर्त यही है कि भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्रक्रिया कोई भी क्यों न हो किंतु उसके द्वारा लगाया गया भूकंपों का पूर्वानुमान यदि सही सिद्ध होता है तो उसे ही भूकंपविज्ञान की श्रेणी में स्थापित किया जाना चाहिए !ऐसी प्रक्रिया से सफलता प्राप्त करने वाले भूकंपवैज्ञानिक कहलाने के अधिकारी हो सकेंगे तब तक न तो भूकंप विज्ञान है और न ही कोई भूकंप वैज्ञानिक !!
        इसी प्रकार से सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में जब जैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं तब तैसी भविष्यवाणियाँ की जाने लगती हैं !जिस प्रकार से किसी सूखी पड़ी हुई  नदी में अचानक बाढ़ आ गई हो तो उस बाढ़ के पानी की गति  के आधार पर यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह बाढ़ का पानी किस दिन कहाँ पहुँच पाएगा और प्रायः यह अंदाजा लगभग सही बैठ जाता है !किंतु इसका अंदाजा लगाने वाली काल्पनिक प्रक्रिया को बाढ़विज्ञान या नदीविज्ञान तो नहीं ही माना जा सकता है और न ही ऐसा अंदाजा लगाने वाले लोगों को नदीवैज्ञानिक या बाढ़वैज्ञानिक ही माना जा  सकता है !क्योंकि जिस विषय का विज्ञान सिद्ध होना ही अभी बाकी है उस विषय से संबंधित कल्पनाएँ करने वाले लोगों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है !
      इसी नदी बाढ़ प्रक्रिया की तरह ही रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से मौसम संबंधी घटनाएँ आगे से आगे देख ली जाती हैं इसके बाद वो जिस दिशा की ओर जाती हुई दिखाई पड़ती हैं और उनकी जो गति होती है उसी दिशा में बादलों हवाओं आदि की सघनता, उपस्थिति, गति आदि देखकर इस बात का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये बादल या आँधी तूफान आदि किस दिन किस दिशा के किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकते हैं !इसी आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं की कल्पना कर ली जाती है जिसके गलत और सही दोनों होने की संभावनाएँ अंत तक बनी रहती हैं !इसलिए इसे विज्ञान रूप में स्वीकार करने में कठिनाई होना स्वाभाविक ही है !
     मौसम भविष्यवक्ताओं की ओर देखा जाए तो अक्सर ऐसा होता है जब जो घटनाएँ  पृथ्वी या समुद्र के किसी भाग में घटित होना प्रारंभ हो चुकी होती हैं उसके बाद उनके विषय में किसी दूसरी जगह उन घटनाओं के घटित होने की कल्पनाएँ उसी हिसाब से कर ली जाती हैं !उन्हें वो लोग उनकी भाषा में भविष्यवाणियां मानते हैं जबकि ये तो साधारण से कल्पनाएँ हैं जो एक ओर घटनाएँ घटित होती जा रही होती हैं तो दूसरी ओर साथ साथ उनके विषय में उसी हिसाब से बताया जा रहा होता है कि ये अब किन किन  देशों या प्रदेशों की ओर बढ़ सकती हैं !जिन्हें वो लोग भले ही भविष्यवाणियाँ कहते हों किंतु ऐसी बातों में भविष्यवाणियों की तरह का कुछ होता नहीं है !यह तो उस विषय का अत्यंत सामान्य अनुमान होता है जो घटना के आरंभ हो जाने के बाद ही लगाया जा सकता है ! घटना घटित होना  जब तक प्रारंभ नहीं हुआ होगा तब तक ऐसे अनुमान लगा लिए जाएँ तो उन्हें पूर्वानुमान कहा जा सकता है !मौसम संबंधी ऐसे अनुमानों का चूँकि कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है इसीलिए इस प्रक्रिया को विज्ञान नहीं माना जा सकता है और न ही इनका अंदाजा लगाने वालों को वैज्ञानिक माना  जा सकता है !
       इसी प्रकार से वायु प्रदूषण की स्थिति है जब जहाँ वायु प्रदूषण बढ़ने लगता है तब वहाँ वायुप्रदूषण और अधिक बढ़ने की कल्पना कर ली जाती है इसी प्रकार  से जब घटते दिखाई पड़ता है तब वायु प्रदूषण घटने की कल्पना कर ली जाती है !इसके अतिरिक्त जिस भी क्रिया से धूल धुआँ आदि उड़ता हुआ दिखाई देता है उस सबको वायु प्रदूषण फ़ैलाने वाला मान लिया जाता है !ऐसी परिस्थिति में इसमें विज्ञान  कहाँ है और इसका अनुमान कैसे लगाया जा सकता है तथा इसका अनुमान लगाने वालों को वैज्ञानिक कैसे माना जा सकता है जब इसमें कोई विज्ञान है ही नहीं ! ऐसे लोगों को तब तक वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता है जब तक कि वे वायु प्रदूषण से संबंधित पूर्वानुमान लगाने में अपनी क्षमता सिद्ध न कर सकें !                    
   भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर  वायु प्रदूषण तक के विषय में कभी किसी विज्ञान का प्रवेश ही नहीं हुआ है जिस दिन इसमें कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण उचित बैठ जाएगा उस दिन इन विषयों से संबंधित सभी संशय समाप्त हो जाएँगे !सभी प्रश्नों के वैज्ञानिक और विश्वसनीय उत्तर मिल जाएँगे !सभी को भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर  वायु प्रदूषण आदि के घटित होने का न केवल कारण पता लग जाएगा अपितु महीनों वर्षों पहले ऐसी घटनाएँ घटित होने का पूर्वानुमान लगाने में भी सफलता प्राप्त होगी !विशेष बात यह है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का कारण पता लगते ही उनके निवारण के विषय में भी सोचा जा सकेगा !
        वस्तुतः विज्ञान का उद्देश्य भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाओं के केवल कारण या पूर्वानुमान खोजना ही नहीं है क्योंकि कारण और पूर्वानुमान खोज लेने मात्र से जनधन की हानि को रोकने में मात्र आंशिक सफलता ही मिल पाएगी पूर्ण सफलता मिलना तो तभी संभव है जब प्राकृतिक आपदाओं के वेग को घटाया या रोका जा सके ! इस क्षेत्र में विज्ञान की सफलता तभी मानी जा सकती है !
     चिकित्सा के क्षेत्र में विद्वानों ने केवल रोगों का पता ही नहीं लगाया है अपितु गंभीर से गंभीर रोगों की सशक्त ,पारदर्शी एवं प्रभावी प्रक्रियाएँ भी खोजी हैं !केवल इतना ही नहीं प्रिवेंटिव चिकित्सा के द्वारा टीकाकरण आदि करके पोलियो जैसे कई बड़े बड़े रोगों को जड़ से उखाड़ फेंका है !चिकित्सा व्यवस्था को सफलता के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचाने के कारण ही आज उन्हें समाज केवल वैज्ञानिक ही नहीं अपितु श्रद्धा से भगवान का दूसरा स्वरूप भी मानते हैं !ये है वैज्ञानिकों का सम्मान !किंतु ऐसा तब हो पाया है जब उन्होंने अपने ज्ञान विज्ञान से रोगों से मुक्ति दिलाने में बड़ी भूमिका निभाई है !जबकि प्राकृतिक आपदाओं के विषय में ऐसा कुछ भी नहीं हो पा रहा है घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जनधन की हानि भी हुआ करती है भविष्यवाणी करने वाले भविष्यवाणियाँ किया करते हैं !ऐसी भविष्यवाणियों का क्या ?जो जनता के लिए की जाती हैं किंतु जनता उन पर भरोसा ही नहीं करती है ! 
       कुल मिलाकर  चिकित्सा के क्षेत्र में विज्ञान के प्रत्यक्ष दर्शन होते हैं जबकि भूकंप वर्षा आँधी तूफान से लेकर  वायु प्रदूषण आदि सभी क्षेत्रों में अभी तक अनुसंधान के नाम पर विज्ञान विज्ञान करके शोर बहुत मचाया गया है 'भूकंपविज्ञान' 'मौसमविज्ञान'जैसे शब्द गढ़ लिए गए हैं किंतु इस बात का किसी के पास कोई उत्तर नहीं है कि इन विषयों में अभी तक विज्ञान है कहाँ !कुछ तीर तुक्कों को छोड़कर इस क्षेत्र में ऐसी कौन सी उपलब्धि हासिल की गई है जिसको देखकर कहा जा सके कि यह सफलता विज्ञान के बिना मिल पाना संभव न था !
     इसलिए इस क्षेत्र से संबंधित विज्ञान का खोजा जाना अभी अवशेष है जो चिकित्सा विज्ञान की तरह ही मौसम और भूकंप आदि क्षेत्रों में भी अत्यंत उन्नत कीर्तिमान स्थापित कर सके !

              
    


कोई टिप्पणी नहीं: