मंगलवार, 13 अगस्त 2019

वैदिक मौसम पूर्वानुमान पद्धति

 
   डरहम विश्वविद्यालय इंग्लैंड के गणितज्ञ एवं भौतिकीविद् डॉ. गेरहार्ट डीटरीख वांसरमैन का कथन है,  "मनुष्य को भविष्य का आभास इसलिए होता रहता है कि विभिन्न घटनाक्रम टाइमलेस (समय-सीमा से परे) मेंटल पैटर्न (चिंतन क्षेत्र) के निर्धारणों के रूप में विद्यमान रहते हैं। ब्रह्मांड का हर घटक इन घटनाक्रमों से जुड़ा होता है, चाहे वह जड़ हो अथवा चेतन।"इसलिए मनुष्य इनमें से किसी एक घटक को समझ ले तो दूसरे घटक का पूर्वानुमान उसी के आधार पर लगाया जा सकता है !
  इसी विषय में उन्होंने आगे कहा -"करीब एक-तिहाई लोगों की छठी इंद्रिय काफी सक्रिय होती है। उन्हें घटनाओं का पूर्वाभास हो जाता है। यदि लगातार ध्यान किया जाए और अपनी भावनाओं या आभासों और संकेतों की ओर ध्यान दिया जाए तो भविष्य में होने वाली घटनाओं को जानकर उन्हें टाला जा सकता है। अत: खुद के व्यवहार, शरीर और मन के संकेतों को समझे। पूर्वाभास के लिए चित्त का शान्त होना अति आवश्यक है। इसके लिए अपनी अंतर आत्मा कि आवाज सुनना जरूरी है।"
      ये बातें भारतवर्ष की प्राचीनवैदिक विज्ञानविधा  के मत का समर्थन करती हैं जिससे जीवन और प्रकृति दोनों से ही संबंधित पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |इसमें शकुन अपशकुन आदि समस्त जीवन एवं प्रकृति से संबंधित लक्षणों का अप्रत्यक्ष रूप से समर्थन सिद्ध होता है | 
      ऐसे ही जीवन और प्रकृति से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितसंबंधी व्यवस्था भी है जिसमें गणित के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है कि जीवन और प्रकृति में कब किस प्रकार की घटनाएँ घटित होंगी | ऐसा अन्यदेशों के बिचारक भी करते रहे हैं | 
      पहले विश्‍वयुद्ध के कुछ ही समय बाद ब्रिटेन के मौसम-विज्ञानी लूइस रिचर्डसन ने सोचा चूँकि वायुमंडल भौतिक नियमों पर आधारित है, तो क्यों न वह मौसम का अनुमान लगाने में गणित का इस्तेमाल करें । लेकिन गणित के फार्मूले इतने पेचीदा थे और हिसाब करने में इतना समय ज़ाया होता था कि जब तक वैज्ञानिक अपना हिसाब खत्म करते इतने में तो मौसम आकर चला भी जाता था।
       ऐसी परिस्थिति में इस बात को तो वे भी स्वीकार करते हैं कि  गणित के द्वारा मौसम से संबंधित पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ! 
   

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