भूकंप और प्राचीन विज्ञान -
इसप्रकार से विश्व का भूकंपविज्ञान अपने बुने हुए अंधविश्वास के जाल में बुरी तरह उलझा हुआ है जिसके विषय में वो न तो कुछ कहने की स्थिति में है और न कुछ नकारने की ही स्थिति में है |केवल आधुनिकभूकंप विज्ञान के सहारे बैठे रहने से अच्छा है कि भूकंप संबंधी घटनाओं के घटित होने में कारण के रूप में बताए गए अनेकों धर्मों प्रचलित परंपराओं शकुनों अपशकुनों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए इसके साथ ही वैदिकविज्ञान की प्रक्रिया में भूकंप के विषय में सुझाई गई पद्धतियों पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिए क्योंकि भारत का प्राचीनविज्ञान अत्यंत विकसित था ऐसा बताया जाता है |संभव है उन वैज्ञानिक पूर्वजों के द्वारा भी उस युग में भूकंप जैसी घटनाओं के विषय में कुछ अनुसंधान अवश्य किए गए होंगे | उन को भी अनुसंधान का विषय बनाया जाना चाहिए|उन महापुरुषों ने सुदूर आकाश में स्थिति सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं को न केवल सुलझा लिया था अपितु उनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाने में भी वे सफल हुए थे | जिस पद्धति से हजारों वर्ष पहले ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं जो कभी गलत नहीं हुए किंतु क्या कारण है मौसम संबंधी घटनाएँ हों या भूकंप संबंधी घटनाएँ ग्रहणविज्ञान की तरह सही एवं सटीक पूर्वानुमान देने में अभी तक दोनों ही असफल रहे हैं|
ऐसा विचार करके ही मैंने सदाशयता पूर्वक वैदिकविज्ञान से संबंधित सांख्य ,योग, खगोल,ज्योतिष, आयुर्वेद आदि पद्धतियों के आधार पर भूकंप समेत समस्त प्राकृतिक घटनाओं पर आज के लगभग 25 वर्ष पूर्व अनुसंधान प्रारंभ किया था |जिससे अभी तक भूकंप संबंधी पूर्वानुमान निकाल पाना संभव भले ही न हुआ हो किंतु उसके अतिरिक्त और जो भी जानकारी हो सकी है वह भी देश एवं समाज के लिए सहयोग करने वाली होने के साथ ही साथ देश की प्रतिष्ठा को बढ़ने वाली है | प्रकृति भी एक प्रकार का संगीत है !
इसप्रकार से विश्व का भूकंपविज्ञान अपने बुने हुए अंधविश्वास के जाल में बुरी तरह उलझा हुआ है जिसके विषय में वो न तो कुछ कहने की स्थिति में है और न कुछ नकारने की ही स्थिति में है |केवल आधुनिकभूकंप विज्ञान के सहारे बैठे रहने से अच्छा है कि भूकंप संबंधी घटनाओं के घटित होने में कारण के रूप में बताए गए अनेकों धर्मों प्रचलित परंपराओं शकुनों अपशकुनों पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए इसके साथ ही वैदिकविज्ञान की प्रक्रिया में भूकंप के विषय में सुझाई गई पद्धतियों पर भी अनुसंधान किया जाना चाहिए क्योंकि भारत का प्राचीनविज्ञान अत्यंत विकसित था ऐसा बताया जाता है |संभव है उन वैज्ञानिक पूर्वजों के द्वारा भी उस युग में भूकंप जैसी घटनाओं के विषय में कुछ अनुसंधान अवश्य किए गए होंगे | उन को भी अनुसंधान का विषय बनाया जाना चाहिए|उन महापुरुषों ने सुदूर आकाश में स्थिति सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं को न केवल सुलझा लिया था अपितु उनसे संबंधित पूर्वानुमान लगाने में भी वे सफल हुए थे | जिस पद्धति से हजारों वर्ष पहले ग्रहण संबंधी पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं जो कभी गलत नहीं हुए किंतु क्या कारण है मौसम संबंधी घटनाएँ हों या भूकंप संबंधी घटनाएँ ग्रहणविज्ञान की तरह सही एवं सटीक पूर्वानुमान देने में अभी तक दोनों ही असफल रहे हैं|
ऐसा विचार करके ही मैंने सदाशयता पूर्वक वैदिकविज्ञान से संबंधित सांख्य ,योग, खगोल,ज्योतिष, आयुर्वेद आदि पद्धतियों के आधार पर भूकंप समेत समस्त प्राकृतिक घटनाओं पर आज के लगभग 25 वर्ष पूर्व अनुसंधान प्रारंभ किया था |जिससे अभी तक भूकंप संबंधी पूर्वानुमान निकाल पाना संभव भले ही न हुआ हो किंतु उसके अतिरिक्त और जो भी जानकारी हो सकी है वह भी देश एवं समाज के लिए सहयोग करने वाली होने के साथ ही साथ देश की प्रतिष्ठा को बढ़ने वाली है | प्रकृति भी एक प्रकार का संगीत है !
जिस प्रकार से संगीत में कई वाद्य यंत्रों की भूमिका होती है और एक एक वाद्य यंत्र को प्रत्येक संगीतज्ञ कई कई प्रकार से बजा रहा होता है !उस वाद्ययंत्र को बजाते समय उस संगीतज्ञ को अँगुलियों का भिन्न भिन्न प्रकार से प्रयोग करके अलग अलग स्वर निकालना होता है !
तबले पर थाप देते समय अलग अलग अँगुलियाँ हथेली आदि अलग अलग प्रकार से एक
एक करके अपनी अपनी भूमिका अदा कर रहे होते हैं जिसमें प्रत्येक थाप पर सभी
अँगुलियों की भूमिका एक एक करके बदलती रहती है |इसके बाद भी उन दोनों हाथों
में एवं दोनों हाथों की अँगुलियों में परस्पर इतना अच्छा तालमेल होता है
कि सब अपनी अपनी बारी पर ही आवश्यकतानुसार अपनी अपनी भूमिका अदा कर रहे होते
हैं | इसमें कभी ऐसा भी नहीं देखा जाता है कि जब एक अँगुली अपनी थाप दे रही होती
है उस समय दूसरी अँगुलियाँ शांत या तटस्थ बनी रहें अपितु वे भी अपनी
अपनी भूमिका किसी न किसी रूप में अवश्य अदा कर रही होती हैं |
जिस प्रकार से किसी सामूहिक संगीत में इतने प्रकार की भिन्नता होने पर भी एक मधुरिम स्वर निकलता है जो सभी को आनंद देता है | उसी प्रकार से प्राकृतिक घटनाएँ भी आपस में एक दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं | इनमें भी आपस में अद्भुत तालमेल होता है
|इसी क्रम में वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान वायु प्रदूषण भूकंप आदि जितने भी
प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हो सकती हैं या होती हैं उनमें से अधिकाँश
घटनाएँ एक दूसरे से संबंधित होती हैं या यूँ कह लें कि एक दूसरे के बारे
में कुछ न कुछ संकेत अवश्य दे रही होती हैं जो भविष्य में घटित होने वाली
घटनाओं से संबंध रखती हैं | प्रकृति में आज घटित हो रही कोई घटना भविष्य
में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना की सूचना दे रही होती है| जबकि आज घटित
होते दिख रही घटना के विषय में भी इसकी पूर्वसूचना किसी न किसी घटना के
द्वारा आज से कुछ सप्ताह महीने वर्ष आदि पहले पूर्व में घटित किसी न किसी प्रकार की प्राकृतिक घटना के द्वारा अवश्य दी जा चुकी होगी |
प्रकृति में जो भी घटना जब कभी भी घटित होते दिख रही होती है तो उस
घटना को बहुत ध्यान से देखे जाने की आवश्यकता होती है !उसके छै महीने पहले
से उस क्षेत्र में घटित हो रही छोटी बड़ी सभी घटनाओं पर दृष्टिपात करना होता
है उन घटनाओं के स्वभाव का ध्यान रखना होता है उनसे प्राप्त संकेतों को
समझकर वर्तमान घटना के स्वभाव के साथ उन्हें जोड़कर उसका संयुक्त अध्ययन
करना होता है !जिससे यह पता लगाना आसान होता है कि भूकंप आदि जो घटना घटित
होते आज दिख रही होती है इसका निर्माण कितने पहले से होना प्रारंभ हो चुका
था और इससे पहले कौन कौन सी प्राकृतिक घटनाएँ किस किस समय घटित हुई थीं
जिनके द्वारा भूकंप जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाना संभव हो सकता था |
संगीत में कई प्रकार के वाद्ययंत्र एक साथ बज रहे होते हैं तब सुंदर स्वर सुनाई पड़ता है ऐसा संगीत अधिक आनंददायी होता है | इसी प्रकार से प्रकृति में कोई घटना अकेली कभी नहीं घटित होती है अपितु प्रत्येक
घटना के पीछे घटनाओं का एक समूह होता है जिसमें मुख्य घटना तो एक ही होती
है किंतु उसके लक्षणों को व्यक्त करने वाली उससे जुड़ी छोटी छोटी घटनाएँ अनेकों होती
हैं |कुलमिलाकर सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ भी सामूहिक रूप से ही घटित होती हैं |
जिस प्रकार से किसी एक चार पहिए वाली गाड़ी का कोई एक पहिया किसी गड्ढे
में गिर जाता है तो उसका असर उन बाकी पहियों पर भी पड़ता है और गाड़ी की गति पर भी
पड़ता है उसकी गति रूक जाती है !इसीप्रकार से प्रकृति में स्थान स्थान पर
अलग अलग समयों में घटित होने वाली घटनाओं के अन्य प्राकृतिक घटनाओं के साथ
अंतर्संबंध अवश्य होते हैं |सभी प्राकृतिक घटनाएँ किसी माला के मोतियों की
तरह एक दूसरे के साथ गुथी हुई होती हैं |
प्रकृति में अचानक कभी कोई घटना घटित नहीं होती है वे घटनाएँ समय के क्रम में हजारों लाखों वर्ष पहले से सुनिश्चित होती हैं और अपना अपना समय आने पर घटित होती चली जाती हैं समय रूपी धागे में माला के मनकों की तरह सभी प्रकार की घटनाएँ पिरोई होती हैं जैसे जैसे माला घूमती जाती है वैसे वैसे मनके भी उसी क्रम में अपनी अपनी बारी पर आते जाते रहते हैं |बिल्कुल उसीप्रकार से बहुत पहले से सुनिश्चित घटनाएँ अपनी अपनी बारी पर समय के साथ साथ घटित होती जा रही होती हैं |
प्रकृति में अचानक कभी कोई घटना घटित नहीं होती है वे घटनाएँ समय के क्रम में हजारों लाखों वर्ष पहले से सुनिश्चित होती हैं और अपना अपना समय आने पर घटित होती चली जाती हैं समय रूपी धागे में माला के मनकों की तरह सभी प्रकार की घटनाएँ पिरोई होती हैं जैसे जैसे माला घूमती जाती है वैसे वैसे मनके भी उसी क्रम में अपनी अपनी बारी पर आते जाते रहते हैं |बिल्कुल उसीप्रकार से बहुत पहले से सुनिश्चित घटनाएँ अपनी अपनी बारी पर समय के साथ साथ घटित होती जा रही होती हैं |
आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी ये ही वे पाँच तत्व हैं जिनसे मानव शरीर का निर्माण होता है समस्त प्राणियों के शरीर इन्हीं से निर्मित होते हैं वृक्ष बनस्पतियाँ आदि भी इन्हीं पाँच तत्वों से निर्मित हैं | प्रकृति के प्रत्येक द्रव्य में पाँचों तत्वों का न्यूनाधिक संमिश्रण होता ही है इसके बिना उसका आस्तित्व में आना संभव ही नहीं था |
उदाहरण स्वरूप जलतत्व और अग्नितत्व दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत है एक ठंडा तो दूसरा गर्म है जब गर्मी बढ़ती है तब ठंडक कमजोर पड़ती है और जब ठंडक बढ़ती है तब गर्मी कमजोर पड़ती है | इसीलिए अग्नितत्व के प्रबल होने से तापमान बढ़ता है और तापमान तभी बढ़ सकता है जब जलतत्व कमजोर पड़ता है |इसलिए तो तापमान बढ़ते समय शीतमान घटता भी तो है |वायु तत्व इन दोनों का प्रभाव बढ़ाने में एवं उसका विस्तार करने में सक्षम होता है सर्दी के समय हिमालय की ओर से आने वाली हवाएँ यदि सर्दी पहुँचाती हैं तो गर्मी की ऋतु पश्चिम की ओर से आने वाली गर्म हवाएँ गर्मी का प्रभाव बढ़ाने में सहायक होती हैं |अवकाश ही आकाश है | अर्थात जो जगह खाली है वह आकाश है और जो आधार है वह पृथ्वी है | इस प्रकार से इन पाँचों तत्वों की भूमिका प्रत्येक घटना के घटित होने में होती है |
उदाहरण स्वरूप जलतत्व और अग्नितत्व दोनों का स्वभाव एक दूसरे के विपरीत है एक ठंडा तो दूसरा गर्म है जब गर्मी बढ़ती है तब ठंडक कमजोर पड़ती है और जब ठंडक बढ़ती है तब गर्मी कमजोर पड़ती है | इसीलिए अग्नितत्व के प्रबल होने से तापमान बढ़ता है और तापमान तभी बढ़ सकता है जब जलतत्व कमजोर पड़ता है |इसलिए तो तापमान बढ़ते समय शीतमान घटता भी तो है |वायु तत्व इन दोनों का प्रभाव बढ़ाने में एवं उसका विस्तार करने में सक्षम होता है सर्दी के समय हिमालय की ओर से आने वाली हवाएँ यदि सर्दी पहुँचाती हैं तो गर्मी की ऋतु पश्चिम की ओर से आने वाली गर्म हवाएँ गर्मी का प्रभाव बढ़ाने में सहायक होती हैं |अवकाश ही आकाश है | अर्थात जो जगह खाली है वह आकाश है और जो आधार है वह पृथ्वी है | इस प्रकार से इन पाँचों तत्वों की भूमिका प्रत्येक घटना के घटित होने में होती है |
जिस क्षेत्र में जिस प्रकार की घटना घटित होनी होती है वह पंचतत्वों
में से जिस तत्व की अधिकता के कारण घटित होनी होती है उस तत्व का अतिरिक्त
संग्रह उस क्षेत्र में लगभग 200 दिन पहले से प्रारंभ होने लगता है यही उस
घटना का गर्भप्रवेश काल होता है जो अत्यंत सूक्ष्म होने के कारण प्रारंभ
में तो नहीं दिखाई पड़ता है किंतु धीरे धीरे घटनाओं का स्वरूप बढ़ने लगता है
और उन घटनाओं के गर्भ लक्षण प्रकट होने लगते हैं |
जिस प्रकार से आकाश में पक्षियों का उड़ना या विमान का उड़ाया जाना या धूल रुई पत्तियों आदि के उड़ने की क्रिया जिस आकाश में संपन्न होती है उस आकाश के अवकाश का केवल उपयोग मात्र हो रहा होता है बाकी इन सभी प्रकार की संचार क्रियाओं से आकाश का कोई लेना देना नहीं होता है| ये संपूर्ण संचार क्रियाएँ वायु के साहचर्य से घटित हो रही होती हैं |
इसी प्रकार से भूकंपों के घटित होने का कारण स्वयं पृथ्वी न होकर अपितु पृथ्वीगत वायु है पृथ्वी न किसी वस्तु को खींचती है और न ही छोड़ती है और न ही वह अपने बल पर हिलती डुलती आदि है अपितु इसमें पृथ्वी का केवल उपयोग मात्र हो रहा होता है बाक़ी भूकंप आदि संपूर्ण संचार क्रियाएँ वायु के साहचर्य से ही घटित हो रही होती हैं |
कुल मिलाकर वायु अग्नि और जल आदि तीनों तत्व कभी भी स्थिर रह ही नहीं सकते हैं अग्नि और जल का प्रभाव बढ़ते घटते रहने के कारण ही तापमान का घटना और बढ़ना संभव हो पाता है | इसी तापमान के घटने बढ़ने से तरह तरह की प्राकृतिक घटनाओं तथा आपदाओं का निर्माण होता है |इसीलिए प्रकृति वैज्ञानिक लोग प्रकृति के पाँचों तत्वों में से इन तीनों तत्वों की न्यूनाधिकता पर बहुत सूक्ष्म दृष्टि लगाए रहते हैं |
प्रकृति में घटित होने वाली अन्य घटनाओं की तरह ही भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के घटित होने के 200 दिन पूर्व से उस क्षेत्र की प्रकृति में भी उस प्रकार के बदलाव होने प्रारंभ हो जाते हैं |वहाँ के वायुमंडल में उसी प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं यहाँ तक कि पहाड़ों के स्वरूप रंग आदि में सूक्ष्म परिवर्तन होने लगते हैं | उस क्षेत्र के पेड़ पौधों की बनावट एवं उनकी पत्तियों के आकार प्रकार रंगरूप एवं उनके फूलने फलने के ढंग में उसप्रकार का बदलाव आने लगता है | फूलों फलों के सुगंध स्वाद आदि में उस प्रकार का अंतर आने लगता है |कुलमिलाकर उस क्षेत्र की प्रकृति का क्रम हिलने सा लगता है |
इसीप्रकार से उसका असर सभी प्राणियों पर पड़ने लगता है इसलिए उनके स्वास्थ्य स्वभाव आदि में उस प्रकार के परिवर्तन आने लगते हैं !जिसके कारण उनके स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव होने लगते हैं | जिसे पहचान कर कई बार लोगों ने भूकंप आदि घटनाओं से जोड़कर देखने का प्रयास भी किया है किंतु वे सभी प्रकार के भूकंपों में एक जैसी मानसिकता रखते हैं और प्रकृति तथा जीवों के स्वभाव में उसी एक प्रकार के बदलाव खोजने लगते हैं जबकि भूकंप अलग अलग प्रकार के होते हैं उनका स्वभाव अलग अलग होता है उसका असर अलग अलग होता है | जो जैसा भूकंप होता है वैसे जीवों पर ही उस प्रकार का उसका असर जीवन पर पड़ता है !सूर्य के प्रभाव से निर्मित भूकंप के आने के कुछ महीने पहले से उस क्षेत्र के वाता वरण में गर्मी बढ़ने लग जाती है गर्मी से होने वाले रोग होने लगते हैं इसीलिए अधिक गर्मी न सहपाने वाले जीव जंतुओं में ऐसे समय बेचैनी बढ़ने लगती है |
'सूर्यज' भूकंपों में अपेक्षाकृत तापमान बढ़ने लग जाता है आग लगने की घटनाएँ बार बार घटित होने लग जाती हैं लोगों में क्रोध की भावना बढ़ने लग जाती है लड़ाई झगड़ा आंदोलन उन्माद की घटनाएँ दिखाई पड़ने लग जाती हैं |अधिक गरमी न सह पाने वाले जीव जंतुओं के स्वभावों में उस प्रकार के बदलाव आने लगते हैं बेचैनी बढ़ने लग जाती है | गर्मी से होने वाले रोग बढ़ने लग जाते हैं |ऐसे भूकंप यदि ग्रीष्मऋतु अर्थात गरमी के समय में आते हैं तब गर्मी के कारण दिक्कत काफी अधिक बढ़ने लग जाती है |नदियाँ कुएँ तालाब आदि अतिशीघ्र सूखने लग जाते हैं |
इसी प्रकार से कुछ भूकंप चंद्र के प्रभाव से निर्मित होते हैं ऐसे भूकंपों के घटित होने से पूर्व अपेक्षाकृत तापमान कम हो जाता है कई बार बर्फबारी या वर्षा होने लगती है ऐसे भूकंप जहाँ भी आते हैं | उसमें प्राकृतिक वातावरण तो बहुत हरा भरा बना रहता है वहाँ शांति एवं सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बन जाता है !अधिक सर्दी न सह पाने वाले जीव जंतुओं के स्वभावों में उस प्रकार के बदलाव आने लगते हैं बेचैनी बढ़ने लग जाती है |सर्दी की अधिकता से होने वाले रोग बढ़ने लग जाते हैं जल जनित विकारों से परेशानियाँ बढ़ने लग जाती हैं |ऐसे भूकंपों से विशेष दिक्कतें तब बढ़ जाती हैं जब इस प्रकार के भूकंप हेमंत शिशिर आदि सर्दी वाली ऋतुओं में घटित होने लगते हैं |
विशेषबात :
प्रत्येक भूकंप के विषय में मैं अपने ब्लॉग पर अवश्य प्रकाशित करता हूँ उसमें किसी भूकंप के द्वारा जो संकेत किए जा रहे होते हैं उन्हें लिखता हूँ एवं उस भूकंप के प्रभाव से जिस प्रकार की घटनाएँ घटित होने की संभावना होती है उन्हें प्रकाशित करता हूँ इसके बाद उसकी कभी एडिटिंग नहीं करता हूँ ताकि भविष्य के लिए इस बात का प्रमाण बना रहे कि भूकंप के आते ही इसे तुरंत प्रकाशित कर दिया गया था | इसी क्रम में सूर्य और चंद्र संबंधी भूकंपों के विषय में उदाहरण स्वरूप मैं उद्धृत कर रहा हूँ |
'सूर्यज' भूकंप का उदाहरण -
भूकंपों के समय ऋतुओं का अपना स्वभाव और प्रभाव बदलने लग जाता है जिसे वैदिक भाषा में ऋतुध्वंस एवं आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जलवायु परिवर्तन कहा जाता है |
कुलमिलाकर सूर्यज भूकंप के आने से गर्मी की मात्रा बढ़ जाती है यदि ऐसा गर्मी की ऋतु में होता है तब तो गर्मी की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है जबकि सर्दी की ऋतु में सूर्यज भूकंप के आने से तापमान बढ़ जाता है और सर्दी की मात्रा अपेक्षाकृत कम हो जाती है | इसी प्रकार से चंद्रज भूकंप यदि गर्मी की ऋतु में आता है तो तापमान अपेक्षाकृत कम रहना स्वाभाविक ही है इससे गर्मी का वेग कम हो जाता है जबकि यही चंद्रज भूकंप यदि सर्दी की ऋतु में आ जाता है तो वर्षा बर्फवारी कोहरा पाला आदि के साथ साथ तापमान गिर जाने से सर्दी की मात्रा अधिक बढ़ जाती है !यही भूकंप यदि वर्षा के समय आता है तो वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है और यदि सूर्यज भूकंप वर्षाऋतु में आ जाता है तो वर्षा का वेग बहुत कम हो जाता है | सन्निपातज भूकंप आ जाने से बादल फटने बाढ़ आने जैसी जनधन हानि करने वाली घटनाएँ घटित होने लग जाती हैं | शनि के प्रभाव से आने वाले भूकंपों में वायु का प्रकोप बहुत अधिक बढ़ जाता है इसलिए भीषण आँधी तूफ़ान जैसी हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होने लग जाती हैं गर्मी की ऋतु में ऐसा होने से आँधी तूफ़ानों के वेग कुछ अधिक बढ़ जाया करते हैं और सर्दी की ऋतु में ऐसा होने से वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है दिन में भी सूर्य के दर्शन मुश्किल हो जाते हैं आकाश में धूल धुआँ आदि की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है |
कई बार कोई दो प्राकृतिक घटनाएँ कुछ समय दिनों के अंतराल में घटित होती है |उसके द्वारा दो प्रकार की सूचनाएँ मिलने लगती हैं जिससे उस क्षेत्र में और अधिक एवं लंबे समय तक वर्षा होनी होती है या फिर प्रभाव से तत्काल वर्षा बंद होने की सूचना दे रहा होता है ऐसे समय में घटित हुआ भूकंप |
किसी वर्ष चंद्रज भूकंपों की अधिकता होने से बर्फवारी की घटनाएँ बहुत अधिक बढ़ जाती हैं ऐसे समय अपने को मौसम वैज्ञानिक मानने वाले लोग कहने लगते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण हम लोग हिमयुग में प्रवेश कर रहे हैं | इसी प्रकार से कई बार सूर्यज भूकंपों की अधिकता हो जाती है तब पृथ्वी से लेकर समुद्र तक तापमान अस्वाभाविक रूप से बढ़ने लग जाता है उससे ग्लेशियर पिघलने लगते हैं नदियाँ तालाब आदि अस्वाभाविक रूप से सूखने लग जाते हैं आग लगने की घटनाएँ काफी अधिक बढ़ जाती हैं | ऐसी परिस्थिति में मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोग भ्रमित होने लगते हैं इसलिए वे ऐसी सम सामयिक घटनाओं को ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन से जोड़ने लग जाते हैं और अलनीनों लानीना जैसी आधार विहीन शंकाएँ करने लगते हैं उसे भविष्य में वर्षा होने या न होने तथा कम या अधिक होने के संबंध में जोड़कर देखने लग जाते हैं जबकि ऐसी बातों का वर्षा ऋतु में होने वाली वर्षा से कोई सीधा संबंध होता नहीं है |
कुल मिलाकर जिसका समाज पर यदि कुछ ऐसा प्रभाव प्रकृति अपने अंदर जब कोई नया बदलाव कर रही होती है उसी समय यदि अचानक कोई भूकंप आ जाता है तो वो उस बदलाव से संबंधित कोई बड़ी सूचना दे रहा होता है वो बदलाव अच्छा हो रहा है या बुरा इसकी सूचना दे रहा होता है है तो क्या और किस प्रकार से उसका अधिक से अधिक उपयोग समाज हित में किया जा सकता है और यदि बुरा है तो किस किस प्रकार से क्या हानि होने की संभावना है इससे संबंधित कोई सूचना भूकंप दे रहा होता है| कुछ भूकंप तो समाज के लिए बहुत सहायक होते हैं कई बार तो इतनी अधिक आवश्यक सूचनाएँ दे रहे होते हैं कि उसके विषय में सरकार समाज या लोगों को पहले से पता लग जाए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं या फिर प्रयास पूर्वक उन दुर्घटनाओं के दुष्प्रभाव को घटा कर जन धन की हानि को कम किया जा सकता है |
कई बड़े दंगे टाले जा सकते हैं !कई आतंकवादी घटनाओं एवं बम विस्फोट से होने वाले दुष्प्रभावों को घटाया जा सकता है !
किसी क्षेत्र में कोई हिंसक आंदोलन छिड़ना होता है तो भूकंप आता है कहीं यदि आतंकवादी हमला या बमविस्फोट आदि होना होता है तो वहाँ भूकंप आते हैं !किसी बड़े नेता की रैली या कोई बड़ा आंदोलन यदि हिंसक होने की संभावना होती है तो भूकंप आता है !किसी राज्य या देश का कोई चुनाव हो रहा होता है उसमें यदि हिंसा भड़कने की संभावना होती है तो भूकंप आता है !चुनाव हो रहा होता है कोई सरकार बन या बिगड़ रही होती है तो भूकंप आता है |
कई बार किसी क्षेत्र विशेष में किसी एक ही प्रजाति के भूकंप बार बार आने लग जाते हैं वहाँ कोई विशेष प्रकार की घटना घटित होने जा रही होती है | अभी हाल में ही सन 2015 में पाकिस्तान से गीता भारत आयी तो उसी दिन भूकंप आया इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी 25 दिसंबर 2015 को पकिस्तान गए तो भूकंप आया उसके बाद 2 जनवरी 2016 को पठानकोट हमला हुआ तो भूकंप आया !11 अप्रैल 2016 को भारत पाकिस्तान में संयुक्त भूकंप आया था इसी के बाद पाकिस्तान के लाहौर स्थित कोटलखपत जेल में 11 अप्रैल को भारतीय किरपाल सिंह की संदिग्ध हालात में मृत्यु हो गई थी जिससे पाकिस्तान के प्रति भारत में आक्रोश प्रकट होना स्वाभाविक था | |ये घटनाएँ भारत पकिस्तान के आपसी संबंधों से संबंधित थीं और तीनों में जो भूकंप आए उनके झटके दोनों ही देशों में लगे थे | इनके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में कोई सूचना दी जा रही थी | ऐसे ही समय समय पर प्रकृति से लेकर जीवन तक अनेकों प्रकार घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जिनकी चर्चा आगे विस्तार पूर्वक की गई है |
जिस प्रकार से आकाश में पक्षियों का उड़ना या विमान का उड़ाया जाना या धूल रुई पत्तियों आदि के उड़ने की क्रिया जिस आकाश में संपन्न होती है उस आकाश के अवकाश का केवल उपयोग मात्र हो रहा होता है बाकी इन सभी प्रकार की संचार क्रियाओं से आकाश का कोई लेना देना नहीं होता है| ये संपूर्ण संचार क्रियाएँ वायु के साहचर्य से घटित हो रही होती हैं |
इसी प्रकार से भूकंपों के घटित होने का कारण स्वयं पृथ्वी न होकर अपितु पृथ्वीगत वायु है पृथ्वी न किसी वस्तु को खींचती है और न ही छोड़ती है और न ही वह अपने बल पर हिलती डुलती आदि है अपितु इसमें पृथ्वी का केवल उपयोग मात्र हो रहा होता है बाक़ी भूकंप आदि संपूर्ण संचार क्रियाएँ वायु के साहचर्य से ही घटित हो रही होती हैं |
कुल मिलाकर वायु अग्नि और जल आदि तीनों तत्व कभी भी स्थिर रह ही नहीं सकते हैं अग्नि और जल का प्रभाव बढ़ते घटते रहने के कारण ही तापमान का घटना और बढ़ना संभव हो पाता है | इसी तापमान के घटने बढ़ने से तरह तरह की प्राकृतिक घटनाओं तथा आपदाओं का निर्माण होता है |इसीलिए प्रकृति वैज्ञानिक लोग प्रकृति के पाँचों तत्वों में से इन तीनों तत्वों की न्यूनाधिकता पर बहुत सूक्ष्म दृष्टि लगाए रहते हैं |
प्रकृति में घटित होने वाली अन्य घटनाओं की तरह ही भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के घटित होने के 200 दिन पूर्व से उस क्षेत्र की प्रकृति में भी उस प्रकार के बदलाव होने प्रारंभ हो जाते हैं |वहाँ के वायुमंडल में उसी प्रकार के परिवर्तन होने लगते हैं यहाँ तक कि पहाड़ों के स्वरूप रंग आदि में सूक्ष्म परिवर्तन होने लगते हैं | उस क्षेत्र के पेड़ पौधों की बनावट एवं उनकी पत्तियों के आकार प्रकार रंगरूप एवं उनके फूलने फलने के ढंग में उसप्रकार का बदलाव आने लगता है | फूलों फलों के सुगंध स्वाद आदि में उस प्रकार का अंतर आने लगता है |कुलमिलाकर उस क्षेत्र की प्रकृति का क्रम हिलने सा लगता है |
इसीप्रकार से उसका असर सभी प्राणियों पर पड़ने लगता है इसलिए उनके स्वास्थ्य स्वभाव आदि में उस प्रकार के परिवर्तन आने लगते हैं !जिसके कारण उनके स्वभाव व्यवहार आदि में बदलाव होने लगते हैं | जिसे पहचान कर कई बार लोगों ने भूकंप आदि घटनाओं से जोड़कर देखने का प्रयास भी किया है किंतु वे सभी प्रकार के भूकंपों में एक जैसी मानसिकता रखते हैं और प्रकृति तथा जीवों के स्वभाव में उसी एक प्रकार के बदलाव खोजने लगते हैं जबकि भूकंप अलग अलग प्रकार के होते हैं उनका स्वभाव अलग अलग होता है उसका असर अलग अलग होता है | जो जैसा भूकंप होता है वैसे जीवों पर ही उस प्रकार का उसका असर जीवन पर पड़ता है !सूर्य के प्रभाव से निर्मित भूकंप के आने के कुछ महीने पहले से उस क्षेत्र के वाता वरण में गर्मी बढ़ने लग जाती है गर्मी से होने वाले रोग होने लगते हैं इसीलिए अधिक गर्मी न सहपाने वाले जीव जंतुओं में ऐसे समय बेचैनी बढ़ने लगती है |
'सूर्यज' भूकंपों में अपेक्षाकृत तापमान बढ़ने लग जाता है आग लगने की घटनाएँ बार बार घटित होने लग जाती हैं लोगों में क्रोध की भावना बढ़ने लग जाती है लड़ाई झगड़ा आंदोलन उन्माद की घटनाएँ दिखाई पड़ने लग जाती हैं |अधिक गरमी न सह पाने वाले जीव जंतुओं के स्वभावों में उस प्रकार के बदलाव आने लगते हैं बेचैनी बढ़ने लग जाती है | गर्मी से होने वाले रोग बढ़ने लग जाते हैं |ऐसे भूकंप यदि ग्रीष्मऋतु अर्थात गरमी के समय में आते हैं तब गर्मी के कारण दिक्कत काफी अधिक बढ़ने लग जाती है |नदियाँ कुएँ तालाब आदि अतिशीघ्र सूखने लग जाते हैं |
इसी प्रकार से कुछ भूकंप चंद्र के प्रभाव से निर्मित होते हैं ऐसे भूकंपों के घटित होने से पूर्व अपेक्षाकृत तापमान कम हो जाता है कई बार बर्फबारी या वर्षा होने लगती है ऐसे भूकंप जहाँ भी आते हैं | उसमें प्राकृतिक वातावरण तो बहुत हरा भरा बना रहता है वहाँ शांति एवं सौहार्द्रपूर्ण वातावरण बन जाता है !अधिक सर्दी न सह पाने वाले जीव जंतुओं के स्वभावों में उस प्रकार के बदलाव आने लगते हैं बेचैनी बढ़ने लग जाती है |सर्दी की अधिकता से होने वाले रोग बढ़ने लग जाते हैं जल जनित विकारों से परेशानियाँ बढ़ने लग जाती हैं |ऐसे भूकंपों से विशेष दिक्कतें तब बढ़ जाती हैं जब इस प्रकार के भूकंप हेमंत शिशिर आदि सर्दी वाली ऋतुओं में घटित होने लगते हैं |
विशेषबात :
प्रत्येक भूकंप के विषय में मैं अपने ब्लॉग पर अवश्य प्रकाशित करता हूँ उसमें किसी भूकंप के द्वारा जो संकेत किए जा रहे होते हैं उन्हें लिखता हूँ एवं उस भूकंप के प्रभाव से जिस प्रकार की घटनाएँ घटित होने की संभावना होती है उन्हें प्रकाशित करता हूँ इसके बाद उसकी कभी एडिटिंग नहीं करता हूँ ताकि भविष्य के लिए इस बात का प्रमाण बना रहे कि भूकंप के आते ही इसे तुरंत प्रकाशित कर दिया गया था | इसी क्रम में सूर्य और चंद्र संबंधी भूकंपों के विषय में उदाहरण स्वरूप मैं उद्धृत कर रहा हूँ |
'सूर्यज' भूकंप का उदाहरण -
सूर्यज :भूकंप: 10-4-2016 को भारत के पश्चिमी क्षेत्र में आया था जिसके झटके दक्षिण पश्चिमी भाग में बहुत दूर तक महसूस किए गए थे |इस भूकंप के घटित होने का प्रभाव मैंने उसी दिन इन शब्दों में प्रकाशित किया था | आप स्वयं देखिए -
" भूकंप (10-4-2016) के कारण पड़ेगा भीषण सूखा, बढ़ेंगे अग्निकांड और बिगड़ेंगे पाकिस्तान के साथ संबंध ! 3-4-2016 से 10-4-2016 तक हवा में मिली हुई थी आग जो भूकंप की अग्रिम सूचना दे रही थी ।अग्नि सम्बन्धी समस्याएँ और अधिक भी बढ़ सकती हैं इस समय वायुमण्डल में व्याप्त है अग्नि !इसलिए अग्नि से सामान्य वायु भी इस समय ज्वलन शील गैस जैसे गुणों से युक्त होकर विचरण कर रही है । इसके अलावा इस समय दिशाओं में जलन, तारे टूटना ,उल्कापात होने जैसी घटनाएँ भी देखने सुनने को मिल सकती हैं ।
इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि अबकी बार बहुत जल्दी ही सूखते चले जाएँगे !यहीं से शुरू होकर भारत और पकिस्तान के मध्य आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन अत्यंत तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में भारत पाक के बीच आपसी सम्बन्धों में कटुता इतनी अधिक बढ़ती चली जाएगी कि अभी से सतर्कता बरती जानी बहुत आवश्यक है ।इसलिए उचित होगा कि भारत पड़ोसी देश पर कम से कम अक्टूबर 2016 तक विश्वास करना बिल्कुल बंद कर दे पड़ोसी के द्वारा कभी भी कैसा भी कोई भी विश्वास घात संभव है !इसी प्रकार से स्वास्थ्य के विषय में भी प्रकाशित किया गया था | "
इस भूकंप के कारण ही नदियाँ कुएँ तालाब आदि अबकी बार बहुत जल्दी ही सूखते चले जाएँगे !यहीं से शुरू होकर भारत और पकिस्तान के मध्य आपसी सम्बन्ध दिनोंदिन अत्यंत तनाव पूर्ण होते चले जाएँगे निकट भविष्य में भारत पाक के बीच आपसी सम्बन्धों में कटुता इतनी अधिक बढ़ती चली जाएगी कि अभी से सतर्कता बरती जानी बहुत आवश्यक है ।इसलिए उचित होगा कि भारत पड़ोसी देश पर कम से कम अक्टूबर 2016 तक विश्वास करना बिल्कुल बंद कर दे पड़ोसी के द्वारा कभी भी कैसा भी कोई भी विश्वास घात संभव है !इसी प्रकार से स्वास्थ्य के विषय में भी प्रकाशित किया गया था | "
ये सब कुछ प्रायः सही घटित हुआ था इसके तुरंत बाद से भारत पकिस्तान आदि के संबंधों में बहुत अधिक तनाव बढ़ गया था |
10 अप्रैल 2016 की रात 3 बजे केरल के मंदिर में लगी आग, 110 से अधिक की मौत हुई और 350 से भी अधिक लोग घायल हो गए थे इसके अतिरिक्त भी हजारों जगहों पर अकारण आग लगी थी जिसे रोकने के लिए किए जाने वाले अधिकतम प्रयत्न भी निष्फल सिद्ध होते जा रहे थे | बिहार सरकार ने समाज से अपील की थी कि दिन में हवन करने एवं चूल्हा जलाने से बचने के प्रयास किए जाएँ !ऐसा अन्य किन्हीं वर्षों में होते नहीं देखा गया था इसलिए परेशानी होनी स्वाभाविक थी किंतु ऐसा इसी वर्ष क्यों हो रहा है इसके कारण क्या हैं किसी को पता नहीं था वैज्ञानिकों ने इसके लिए रिसर्च किए जाने की आवश्यकता स्वीकार की थी |
नदी कुएँ तालाब आदि सूखने की स्थिति यह थी कि पहली बार लातूर पानी भेजने के लिए ट्रेन का उपयोग किया गया था |
'चंद्रज ' भूकंप का उदाहरण -
ऊपर कहे गए सूर्यज भूकंप के तीसरे दिन अर्थात 13-4-2016 को 'चंद्रज' भूकंप देश के पूर्वोत्तर में आया था !जिसके विषय में मैंने प्रकाशित किया था -
" भूकंप (13 -04-2016) के प्रभाव से भारत और चीन के आपसी संबंध होंगे मधुर ! 10-4-2016 को आए भूकंप से बिलकुल बिपरीत अर्थात उलटे लक्षणों वाला है 13 -04-2016को आया भूकंप !इन दोनों भूकंपों के फलों में भी आकाश पाताल का अंतर होगा ! दोनों ही भूकंप अपने अपने क्षेत्रों में दिखाएँगे अपना अपना दम ख़म ! 13 -04-2016 को 19. 28 बजे देश के पूर्वोत्तर में आया था भूकंप ! इस भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में अति शीघ्र अधिक वर्षा बाढ़ से हो सकती भारी क्षति !जबकि समाज में व्याप्त असंतोष एवं आपसी बैर विरोध की भावना घटेगी और भाईचारे का वातावरण बनेगा !विशेष बात यह है कि इस भूकंप में आफ्टर शॉक्स नहीं आतेहैं ! 10-4-2016 को आए भूकंप से जो जो हानियाँ होती दिख रहीं थीं13-04-2016को आए भूकंप से वो सबकुछ सामान्य होते दिख रहा है इस भूकंप के द्वारा प्रकृति ने अपने को संतुलित किया है इस भूकंप का ये सबसे बड़ा लाभ है!भारत वर्ष के दक्षिणी पश्चिमी क्षेत्रों में जहाँ (10-4-2016) के भूकंप प्रभाव से भीषण सूखा पड़ेगा , अग्निकांड बढ़ेंगे और पाकिस्तान के साथ संबंध बिगड़ेंगे!गरमी संबंधी बीमारियाँ बढेंगी, वहीँ दूसरी ओर देश के पूर्वोत्तर क्षेत्रों में13-04-2016 को आए भूकंप के प्रभाव से अधिक वर्षा की संभावना है और भारत के पूर्वोत्तर के पड़ोसी देशों के साथ संबंध मधुर होंगे और उन्हीं क्षेत्रों में अधिक वर्षा की भी सम्भावना बनती है ।ऐसे भूकंपों से समुद्रों और नदियों के किनारे बसने वाले लोगों की बड़ी क्षति होती है जल जनित बीमारियाँअतिवृष्टि या सुनामी जैसी बाधाएँ निकट भविष्य में संभव हैं । "
इसके लक्षण भी प्रायः सही एवं सटीक घटित हुए थे !
"पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर पर
संयुक्त राष्ट्र से पाबंदी लगवाने की भारत की कोशिश में चीन के अडंगा लगाने
से दोनों देशों के रिश्तों में आई खटास के बीच रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर
16 अप्रैल 2016 शनिवार को रक्षा संबंध को मजबूत करने के लिए अपनी पहली चीन यात्रा पर
शंघाई पहुंचे।वह पिछले तीन सालों में चीन की यात्रा करने वाले पहले भारतीय रक्षा मंत्री थे ।"
दूसरी बात इस भूकंप के प्रभाव से असम आदि सातों प्रदेशों में इसी दिन भीषण बारिश प्रारंभ हुई थी जो कुछ सप्ताहों तक चली थी जिससे न केवल लाखों लोग प्रभावित हुए थे अपितु भारी जन धन की हानि भी हुई थी | जिसकी सूची यहाँ उद्धृत कर पाना संभव नहीं है |
ऐसे ही मंगल आदि अन्य ग्रहों के प्रभाव से भी भूकंप आते हैं उन सबका अलग अलग फल और समय की अवधि होती है| चंद्रज भूकंप कुछ सप्ताहों तक अपना प्रभाव करते हैं | बुध शुक्र सूर्य और मंगलके प्रभाव से प्रकट भूकंपों का प्रभाव तीस दिनों से लेकर पच्चासी दिनों तक रहता है | बृहस्पतिकृत भूकंपों का फल एक से दो वर्षों तक रहता है !शनैश्चर कृत भूंकपों का असर 30 से 37 वर्षों के बीच में कभी भी हो सकता है |
भूकंप दो प्रकार के होते हैं एक मुख्य भूकंप तो दूसरे सहायक भूकंप !मुख्य भूकंपों की तीव्रता सबसे अधिक होती है ऐसे भूकंप कोई सूचना देने नहीं आते अपितु ऐसे भूकंपों के आने से पहले इनके विषय में सूचना देने के लिए ऐसी कोई दूसरी प्राकृतिक घटना घटित होती है जो ऐसे बड़े भूकंपों की सूचना दे रही होती है ये बड़े भूभाग को प्रभावित करते देखे जाते हैं |ऐसे भूकंपों के आने के पचपन दिन बाद तक उसी जगह पर झटके लगते रहते हैं | इनमें भारी जनसंहार होता है | ऐसे भूकंपों के आने के महीनों पहले से इनका निर्माण प्रारंभ हो चुका होता है जिसके लक्षण उस क्षेत्र के समुद्रों पहाड़ों नदियों झीलों तालाबों पेड़ों पत्तियों फसलों जीवजंतुओं पशु पक्षियों मनुष्यों उनके स्वभावों आकारों प्रकारों स्वाद रूचि अरुचि स्वभाव परिवर्तनों उस समय होने वाले सामूहिक रोगों आदि के माध्यम से प्रकट हुआ करते हैं | ऐसे भूकंप अक्षर उस क्षेत्र वासियों को उनके आचार व्यवहार संस्कार सदाचरण आदि बिगड़ने के कारण उस क्षेत्र की जनता को दण्डित करने के लिए आया करते हैं |
25 अप्रैल 2015 को दोपहर 11:56 पर नेपाल में जो भूकंप आया था वो इसी श्रेणी का था इस भूकंप के तीन दिन पहले अर्थात 22 अप्रैल 2015 को इसी भूकंप केंद्र से एक तूफान उठा था जिसने भूकंप की तरह ही नेपाल के साथ साथ भारत के सीतामढ़ी आदि जिलों में भी काफी जनधन हानि की थी | इसी क्षेत्र में बाद में भूकंप ने भी भयंकर उपद्रव किया था | इस भूकंप के आने के बाद सैंतालीसवें दिन दिन बाद तक अंतिम झटका लगा था |इस भूकंप के प्रभाव से उस क्षेत्र में उलटी चक्कर दस्त घबड़ाहट सूखी खाँसी आदि की समस्या सामूहिक रूप से काफी बढ़ गई थी |
इससे पहले 15 जनवरी 1934 को दोपहर 2.13 पर नेपाल और बिहार में संयुक्त भूकंप आया था |उस समय भी अधिक नरसंहार हुआ था |
25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप का केंद्र गण्डकी नदी के अंचल में बसा 'लमजुंग' जिला बताया जाता है तथा 15 जनवरी 1934 को भूकंप का केंद्र भी लगभग यही क्षेत्र था | इन दोनों भूकंपों के कुछ महीने पहले ही गढ़ी माई मंदिर में लगने वाला मेला पूर्ण हुआ था जिसमें भारी संख्या में पशु संहार किया गया था | संभव है ऐसे पशु संहार का भी संबंध ऐसे भूकंपों से कुछ रहता हो क्योंकि गढी माई मेला पाँच-पाँच वर्षमें अगहन शुक्लपक्ष में लगा करता है |
ऐसे मुख्य भूकंपों के अतिरिक्त सहायक भूकंप भी घटित होते देखे जाते हैं ये तीन प्रकार के होते हैं इनमें जनसंहार नहीं या या फिर बहुत कम होता है | ऐसे भूकंप उस क्षेत्र से संबंधित केवल कुछ सूचनाएँ देने मात्र के लिए आते हैं | संयोगवश कभी कोई छोटी मोटी घटना घटित हो जाए तो वो और बात है किंतु इनका उद्देश्य जन हानि नहीं होता है |ऐसे भूकंपों की कम मध्यम और अधिक तीन प्रकार की तीव्रता होती है | जिस भूकंप की जितनी तीव्रता का जो भूकंप होता है उसके फल में भी वैसा ही वेग दिखाई पड़ता है |
भूकंपों के प्रभाव का स्वरूप !भूकंप दो प्रकार के होते हैं एक मुख्य भूकंप तो दूसरे सहायक भूकंप !मुख्य भूकंपों की तीव्रता सबसे अधिक होती है ऐसे भूकंप कोई सूचना देने नहीं आते अपितु ऐसे भूकंपों के आने से पहले इनके विषय में सूचना देने के लिए ऐसी कोई दूसरी प्राकृतिक घटना घटित होती है जो ऐसे बड़े भूकंपों की सूचना दे रही होती है ये बड़े भूभाग को प्रभावित करते देखे जाते हैं |ऐसे भूकंपों के आने के पचपन दिन बाद तक उसी जगह पर झटके लगते रहते हैं | इनमें भारी जनसंहार होता है | ऐसे भूकंपों के आने के महीनों पहले से इनका निर्माण प्रारंभ हो चुका होता है जिसके लक्षण उस क्षेत्र के समुद्रों पहाड़ों नदियों झीलों तालाबों पेड़ों पत्तियों फसलों जीवजंतुओं पशु पक्षियों मनुष्यों उनके स्वभावों आकारों प्रकारों स्वाद रूचि अरुचि स्वभाव परिवर्तनों उस समय होने वाले सामूहिक रोगों आदि के माध्यम से प्रकट हुआ करते हैं | ऐसे भूकंप अक्षर उस क्षेत्र वासियों को उनके आचार व्यवहार संस्कार सदाचरण आदि बिगड़ने के कारण उस क्षेत्र की जनता को दण्डित करने के लिए आया करते हैं |
25 अप्रैल 2015 को दोपहर 11:56 पर नेपाल में जो भूकंप आया था वो इसी श्रेणी का था इस भूकंप के तीन दिन पहले अर्थात 22 अप्रैल 2015 को इसी भूकंप केंद्र से एक तूफान उठा था जिसने भूकंप की तरह ही नेपाल के साथ साथ भारत के सीतामढ़ी आदि जिलों में भी काफी जनधन हानि की थी | इसी क्षेत्र में बाद में भूकंप ने भी भयंकर उपद्रव किया था | इस भूकंप के आने के बाद सैंतालीसवें दिन दिन बाद तक अंतिम झटका लगा था |इस भूकंप के प्रभाव से उस क्षेत्र में उलटी चक्कर दस्त घबड़ाहट सूखी खाँसी आदि की समस्या सामूहिक रूप से काफी बढ़ गई थी |
इससे पहले 15 जनवरी 1934 को दोपहर 2.13 पर नेपाल और बिहार में संयुक्त भूकंप आया था |उस समय भी अधिक नरसंहार हुआ था |
25 अप्रैल 2015 को आए भूकंप का केंद्र गण्डकी नदी के अंचल में बसा 'लमजुंग' जिला बताया जाता है तथा 15 जनवरी 1934 को भूकंप का केंद्र भी लगभग यही क्षेत्र था | इन दोनों भूकंपों के कुछ महीने पहले ही गढ़ी माई मंदिर में लगने वाला मेला पूर्ण हुआ था जिसमें भारी संख्या में पशु संहार किया गया था | संभव है ऐसे पशु संहार का भी संबंध ऐसे भूकंपों से कुछ रहता हो क्योंकि गढी माई मेला पाँच-पाँच वर्षमें अगहन शुक्लपक्ष में लगा करता है |
ऐसे मुख्य भूकंपों के अतिरिक्त सहायक भूकंप भी घटित होते देखे जाते हैं ये तीन प्रकार के होते हैं इनमें जनसंहार नहीं या या फिर बहुत कम होता है | ऐसे भूकंप उस क्षेत्र से संबंधित केवल कुछ सूचनाएँ देने मात्र के लिए आते हैं | संयोगवश कभी कोई छोटी मोटी घटना घटित हो जाए तो वो और बात है किंतु इनका उद्देश्य जन हानि नहीं होता है |ऐसे भूकंपों की कम मध्यम और अधिक तीन प्रकार की तीव्रता होती है | जिस भूकंप की जितनी तीव्रता का जो भूकंप होता है उसके फल में भी वैसा ही वेग दिखाई पड़ता है |
भूकंपों के समय ऋतुओं का अपना स्वभाव और प्रभाव बदलने लग जाता है जिसे वैदिक भाषा में ऋतुध्वंस एवं आधुनिक वैज्ञानिक भाषा में जलवायु परिवर्तन कहा जाता है |
कुलमिलाकर सूर्यज भूकंप के आने से गर्मी की मात्रा बढ़ जाती है यदि ऐसा गर्मी की ऋतु में होता है तब तो गर्मी की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है जबकि सर्दी की ऋतु में सूर्यज भूकंप के आने से तापमान बढ़ जाता है और सर्दी की मात्रा अपेक्षाकृत कम हो जाती है | इसी प्रकार से चंद्रज भूकंप यदि गर्मी की ऋतु में आता है तो तापमान अपेक्षाकृत कम रहना स्वाभाविक ही है इससे गर्मी का वेग कम हो जाता है जबकि यही चंद्रज भूकंप यदि सर्दी की ऋतु में आ जाता है तो वर्षा बर्फवारी कोहरा पाला आदि के साथ साथ तापमान गिर जाने से सर्दी की मात्रा अधिक बढ़ जाती है !यही भूकंप यदि वर्षा के समय आता है तो वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है और यदि सूर्यज भूकंप वर्षाऋतु में आ जाता है तो वर्षा का वेग बहुत कम हो जाता है | सन्निपातज भूकंप आ जाने से बादल फटने बाढ़ आने जैसी जनधन हानि करने वाली घटनाएँ घटित होने लग जाती हैं | शनि के प्रभाव से आने वाले भूकंपों में वायु का प्रकोप बहुत अधिक बढ़ जाता है इसलिए भीषण आँधी तूफ़ान जैसी हिंसक घटनाएँ बार बार घटित होने लग जाती हैं गर्मी की ऋतु में ऐसा होने से आँधी तूफ़ानों के वेग कुछ अधिक बढ़ जाया करते हैं और सर्दी की ऋतु में ऐसा होने से वायुमंडल प्रदूषित हो जाता है दिन में भी सूर्य के दर्शन मुश्किल हो जाते हैं आकाश में धूल धुआँ आदि की मात्रा इतनी अधिक बढ़ जाती है |
कई बार कोई दो प्राकृतिक घटनाएँ कुछ समय दिनों के अंतराल में घटित होती है |उसके द्वारा दो प्रकार की सूचनाएँ मिलने लगती हैं जिससे उस क्षेत्र में और अधिक एवं लंबे समय तक वर्षा होनी होती है या फिर प्रभाव से तत्काल वर्षा बंद होने की सूचना दे रहा होता है ऐसे समय में घटित हुआ भूकंप |
किसी वर्ष चंद्रज भूकंपों की अधिकता होने से बर्फवारी की घटनाएँ बहुत अधिक बढ़ जाती हैं ऐसे समय अपने को मौसम वैज्ञानिक मानने वाले लोग कहने लगते हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण हम लोग हिमयुग में प्रवेश कर रहे हैं | इसी प्रकार से कई बार सूर्यज भूकंपों की अधिकता हो जाती है तब पृथ्वी से लेकर समुद्र तक तापमान अस्वाभाविक रूप से बढ़ने लग जाता है उससे ग्लेशियर पिघलने लगते हैं नदियाँ तालाब आदि अस्वाभाविक रूप से सूखने लग जाते हैं आग लगने की घटनाएँ काफी अधिक बढ़ जाती हैं | ऐसी परिस्थिति में मौसम वैज्ञानिक कहे जाने वाले लोग भ्रमित होने लगते हैं इसलिए वे ऐसी सम सामयिक घटनाओं को ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन से जोड़ने लग जाते हैं और अलनीनों लानीना जैसी आधार विहीन शंकाएँ करने लगते हैं उसे भविष्य में वर्षा होने या न होने तथा कम या अधिक होने के संबंध में जोड़कर देखने लग जाते हैं जबकि ऐसी बातों का वर्षा ऋतु में होने वाली वर्षा से कोई सीधा संबंध होता नहीं है |
कुल मिलाकर जिसका समाज पर यदि कुछ ऐसा प्रभाव प्रकृति अपने अंदर जब कोई नया बदलाव कर रही होती है उसी समय यदि अचानक कोई भूकंप आ जाता है तो वो उस बदलाव से संबंधित कोई बड़ी सूचना दे रहा होता है वो बदलाव अच्छा हो रहा है या बुरा इसकी सूचना दे रहा होता है है तो क्या और किस प्रकार से उसका अधिक से अधिक उपयोग समाज हित में किया जा सकता है और यदि बुरा है तो किस किस प्रकार से क्या हानि होने की संभावना है इससे संबंधित कोई सूचना भूकंप दे रहा होता है| कुछ भूकंप तो समाज के लिए बहुत सहायक होते हैं कई बार तो इतनी अधिक आवश्यक सूचनाएँ दे रहे होते हैं कि उसके विषय में सरकार समाज या लोगों को पहले से पता लग जाए तो कई बड़ी दुर्घटनाएँ टाली जा सकती हैं या फिर प्रयास पूर्वक उन दुर्घटनाओं के दुष्प्रभाव को घटा कर जन धन की हानि को कम किया जा सकता है |
कई बड़े दंगे टाले जा सकते हैं !कई आतंकवादी घटनाओं एवं बम विस्फोट से होने वाले दुष्प्रभावों को घटाया जा सकता है !
किसी क्षेत्र में कोई हिंसक आंदोलन छिड़ना होता है तो भूकंप आता है कहीं यदि आतंकवादी हमला या बमविस्फोट आदि होना होता है तो वहाँ भूकंप आते हैं !किसी बड़े नेता की रैली या कोई बड़ा आंदोलन यदि हिंसक होने की संभावना होती है तो भूकंप आता है !किसी राज्य या देश का कोई चुनाव हो रहा होता है उसमें यदि हिंसा भड़कने की संभावना होती है तो भूकंप आता है !चुनाव हो रहा होता है कोई सरकार बन या बिगड़ रही होती है तो भूकंप आता है |
कई बार किसी क्षेत्र विशेष में किसी एक ही प्रजाति के भूकंप बार बार आने लग जाते हैं वहाँ कोई विशेष प्रकार की घटना घटित होने जा रही होती है | अभी हाल में ही सन 2015 में पाकिस्तान से गीता भारत आयी तो उसी दिन भूकंप आया इसके बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्रमोदी जी 25 दिसंबर 2015 को पकिस्तान गए तो भूकंप आया उसके बाद 2 जनवरी 2016 को पठानकोट हमला हुआ तो भूकंप आया !11 अप्रैल 2016 को भारत पाकिस्तान में संयुक्त भूकंप आया था इसी के बाद पाकिस्तान के लाहौर स्थित कोटलखपत जेल में 11 अप्रैल को भारतीय किरपाल सिंह की संदिग्ध हालात में मृत्यु हो गई थी जिससे पाकिस्तान के प्रति भारत में आक्रोश प्रकट होना स्वाभाविक था | |ये घटनाएँ भारत पकिस्तान के आपसी संबंधों से संबंधित थीं और तीनों में जो भूकंप आए उनके झटके दोनों ही देशों में लगे थे | इनके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में कोई सूचना दी जा रही थी | ऐसे ही समय समय पर प्रकृति से लेकर जीवन तक अनेकों प्रकार घटनाएँ घटित हुआ करती हैं जिनकी चर्चा आगे विस्तार पूर्वक की गई है |
जानवरों के द्वारा भूकंपों का पूर्वानुमान -
यह बात कई शताब्दियों से चली आ रही है कि कुछ जानवर पशु-पक्षी आदि भी भूकंप आने से पहले अपनी हरकतें बदल डालते हैं। इसकी भले साइंटिफिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई हो, और खारिज भी नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसे विषयों पर भी रिसर्च कई बार हुए हैं। जानवरों के भूकंप के संकेत देने को लेकर इटली, जापान, चीन सहित कई देशों में बौद्धिक शोधचर्चा होती रही है। इन पर रिसर्च कार्य हुए भी हैं |अगर यह सही है तो वैज्ञानिक पशु-पक्षियों की इस अद्भुत क्षमता को भूकंप की पूर्व सूचना प्रणाली में क्यों नहीं बदल सकते। अगर ऐसा संभव हो जाए तो प्रकृति की इस तबाही पर विजय पा सकेगा मानव। यद्यपि प्रयोगशालाओं में इस पर शोध किए जा रहे हैं
वस्तुतः मनुष्य की अपेक्षा पशु पक्षी एवं जीव-जंतुओं की इंद्रियाँ प्रकृतिजनित कारकों के प्रति कई गुना अधिक संवेदनशील व सक्रिय होती हैं।संहिता ग्रंथों में पशुओं पक्षियों के व्यवहार परिवर्तनों का विशद वर्णन मिलता है ! जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है।वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए यंत्र न केवल बहुत आवश्यक होते हैं अपितु बहुत सहायक भी माने जाते हैं फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक उपकरणों की तुलना में जीव जंतु बेहद अधिक संवेदनशील होते हैं जीव, जंतु, पशु, पक्षी आदि भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं को महसूस कर लेते हैं। लाखों-करोड़ों वर्षों से इन जीव-जंतुओं के मध्य रहकर मनुष्य ने अनेक शुभ-अशुभ संकेतों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है !चक्रवात, भूकंप, बाढ़, वर्षा आदि आपदाओं का जीव-जंतुओं को पूर्वाभास हो जाता है।कुछ जीव जंतु भूकंप के पहले के भौगोलिक परिवर्तनों को महसूस कर लिया करते हैं |
जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है।यंत्र कभी धोखा दे भी सकते हैं लेकिन पशुपक्षियों का स्वभाव सामान्यरूप से बदलते नहीं देखा जाता है | जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है। ऐसा उनमें विद्यमान संवेदी तंत्र के कारण होता है।कुछ जानवरों में इंसानों की तुलना में सूँघने, सुनने, देखने और संवेदन करने की बेहतर शक्ति होती है।कई बार रात्रि को कुत्ते ऊपर मुंह करके रोते हैं। उनके रोने की आवाज का क्रम निरंतर जारी रहता है तो पुराने लोग कुत्ते बिल्लियों के रोने को अशुभ मानते थे | इसलिए पशुपक्षियों के व्यवहारों में अस्वाभाविक बदलाव देखकर समझ लिया करते थे कि कोई दैविक आपदा आने वाली है।कुछ समय में पास के किसी घर से अशुभ समाचार मिलता है।ऐसे ही कौवों के आचरणों में भी अनेक शुभ-अशुभ संकेत होते हैं।
ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि यदि आस-पास के कुत्ते और बिल्लियाँ रोने अजीब व्यवहार करने लगें तो ऐसा समझ लिया जाता था कि अब भूकंप आने की आशंका है! बिल्ली को हम आवाज और व्यवहार में विविधता प्रकट करने के कारण अशुभ मानते हैं। विचित्र तरीकों से रोना और यात्रा अथवा विशेष अवसर पर जाते समय रास्ता काटने को संकट का प्रतीक मानते हैं। सुना जाता है कि समुद्री नाविक यात्रा के समय बिल्लियों को अपने साथ ले जाते हैं। सन् 1912 में जब टाइटेनिक नामक जहाज अपनी यात्रा पर चल रहा था, तभी जहाज में मौजूद बिल्लियों ने कूदना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय में सारी की सारी बिल्लियाँ नीचे कूद गईं। जहाज में बैठे लोगों का इस ओर ध्यान नहीं गया। कुछ ही समय उपरांत जहाज एक बड़े हिमखंड से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसी प्रकार सन् 1955 में 'जोतिया' नामक जहाज अपनी यात्रा पर निकला। जहाज निकलने के साथ ही जहाज में मौजूद सभी बिल्लियाँ रोने व चिल्लाने लगीं। यह जहाज भी यात्रा के मध्य में नष्ट हो गया।
इसके कारण वे वातावरण के परिवर्तन और घटना विशेष के घटने के पूर्व अपना बचाव व व्यवहार परिवर्तन करने लगते हैं।इसलिए चक्रवात भूकंप आदि आने से पूर्व वही जीव-जंतु भयवश इधर-उधर घबराते हुए मंडराते हैं। विचित्र आवाजें निकालते हैं, मालिक को उस स्थान को छोड़ने के लिए विवश करते हैं। भूकंप आने के कुछ दिन पहले ही मेढक वहाँ से पलायन करने लग जाते हैं !
जापान में नागोया शहर के एक रेस्तरां में हर दिन बड़ी संख्या में चूहों को देखा जाता था, जो 1891 के नोबी भूकंप से पहले शाम को अचानक गायब हो गए थे ।1923 के कांटो भूकंप और 1933 के संक्रिकु भूकंप में भी चूहों से संबंधित इसीप्रकार की बातें सामने आयी थीं | चीन में, होप्टी प्रांत (बीजिंग से 300 किमी) में 1966 के हिंगसताई भूकंप से पहले चूहों के असामान्य व्यवहार की सूचना मिली थी।चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं। चूहे भूकंप आने का संकेत दे सकते हैं। बताया जाता है कि भूकंप आने से पहले जिस तरह के विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र बनते है अगर चूहों को उन क्षेत्रों में रखा जाए तो वे अजीबोगरीब हरकतें करते हैं।चूहों का ऐसा व्यवहार कोबे में आए भूकंप से एक दिन पहले देखा गया था ।
चींटी को भूकंप आने की जानकारी होजाती होगी क्योंकि चींटी भूकंप के झटके को महसूस कर लेती है, भूकंप की हलचल का भान होते ही चींटियां अपना घर छोड़ देती हैं। आमतौर पर चींटियां दिन में घर बदलती हैं, पर भूकंप का पता चलते ही वो किसी भी समय अपने घर से निकल पड़ती हैं!
भूकंप के झटके शुरू होने से पहले सांप अपने बिलों से बाहर भागने लगते हैं। समुद्र की गहराइयों में रहने वाली मछलियाँ भी भूकंप की तरंगों को बड़ी तीव्रता से पकड़ती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि धरती से पहले भूकंप की तरंगें पानी को कंपित करती हैं|
मेंढक या भेक मेंढक या भेक मेंढकों के समान या उनकी ही एक प्रजाति भेक को भूकंप से पहले आश्चर्यजनक रूप से पूरे समूह के साथ गायब होते पाया गया है। जहां भी भूकंप आया, वहां लगभग 3 दिन पहले से सारे भेक जादुई तरीके से गायब हो गए।
भूकंप आने से कुछ मिनट पहले राजहंस पक्षी एक समूह में जमा होते देखे गए हैं, तो बतखें डर के मारे पानी में उतरती पाई गई हैं। इतना ही नहीं, मोरों को झुंड बनाकर बेतहाशा चीखते हुए पाया गया है।
इसप्रकार से पशु पक्षी, मछलियाँ कुत्ते व अन्य जीव जंतु पहले से ही भूकंप के संकेत देने लगते हैं।इसीलिए विश्व में जहाँ भी जानवरों में इस तरह के अस्वाभाविक बदलाव होते देखे गए हैं, वहाँ इसके कुछ मिनट बाद ही बड़ा भयंकर भूकंप दर्ज किया गया है ऐसे कई उदाहरण विद्यमान हैं |
बताया जाता है कि 26 जनवरी 2001 को भुज (गुजरात) में भूकंप आने से पहले घर में बंधे कुत्ते ने घबराते हुए तेजी से भौंकना, उछलना प्रारंभ कर दिया। लगातार कुत्ते के भौंकने और उछलने की क्रिया जारी रहने पर जब मालिक उसे लेकर घर के बाहर निकला ही था कि कुछ ही पल में उसका मकान भूकंप के झटके में गिर गया।विनाशकारी भूकंपों से पहले जानवरों के असामान्य व्यवहार को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहले भी देखा गया था।
ऐसे ही भूकंप आने से पहले 1835 में चिली के तालकाहुआनो शहर से कुत्ते शहर में आए थे। 1822 और 1835 के चिली में आए भूकंप से पहले पक्षियों के झुंड अंतर्देशीय हो गए। निकारागुआ में 1972 के मानागुआ भूकंप से कुछ घंटे पहले बंदर बेचैन हो गए थे।1969 की गर्मियों में बहाई भूकंप (जुलाई, 1969) से ठीक पहले तित्सिन चिड़ियाघर के संरक्षकों ने देखा था कि हंस अचानक पानी से बाहर निकल गए थे और दूर रह गए, एक मंचूरियन बाघ ने पेसिंग बंद कर दी, एक तिब्बती याक का पतन हो गया, पंडों ने अपना सिर अंदर कर लिया। कछुए बेचैन देखे गए थे।
जापान में 1896 के रय्यक भूकंप में एक घंटे पहले ही कुछ जीव जंतुओं को बेचैन देखा गया था | यूगोस्लाविया के चिड़ियाघर में 1963 के भूकंप से पहले पक्षी रोने लगे थे । 1976 के भूकंप से दो या तीन घंटे पहले उत्तरी इटली के गांवों से हिरण इकट्ठा हुए और बिल्लियाँ गायब हो गईं थीं ।
भूकंप से ठीक पहले असामान्य व्यवहार उन जानवरों के बीच भी देखा गया है जो भूमिगत रहते हैं, जैसे सांप, कीड़े और कीड़े, और पानी में रहने वाले (मछलियाँ)। जापान के उत्तरी पश्चिमी तट पर 1896 में भूकंप और 1927 के टैंगो भूकंप से ठीक पहले प्रचुर मात्रा में मछलियों को पकड़ा गया था। हालांकि, कांटो भूकंप से पहले (1923) में मछलियाँ गायब होने की सूचना मिली थी।
ईदो भूकंप (11 नवंबर, 1855) से ठीक पहले, कई घास के सांपों के जमीन से बाहर निकल जाने की सूचना मिली थी, जबकि यह भीषण सर्दी थी। तुर्की के भूकंप (24 नवंबर, 1976) से ठीक पहले कुत्तों के बहुत ही असामान्य व्यवहार की सूचना मिली थी। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के बैरी रैले ने देखा कि होलिस्टर (कैलिफ़ोर्निया) में 28 नवंबर 1974 के भूकंप से ठीक पहले घोड़ों की मौत हो गई थी।
भारत में, भूकंप के संबंध में जानवरों के असामान्य व्यवहार को 1892 के प्रारंभ में देखा गया था। जानवरों को जमीन को सूँघने और घबराहट दिखाने के लिए देखा गया था, जैसे कि गोविंदपुर (मानभूमि) में फरवरी में एक कुत्ते को एक अस्पष्ट वस्तु की उपस्थिति में दिखाया गया था। 19, 1892. उत्तरकाशी (1991), लातूर (1993), जबलपुर (1997), चमोली (1999) और भुज (2001) के हालिया भूकंपों के दौरान पालतू कुत्तों के असामान्य व्यवहार के पृथक मामले थे।
पशु व्यवहारों के आधार पर ही 4 फरवरी, 1975 को चीन के लियाओनिंग प्रांत में हाइचांग भूकंप आने से पहले जानवरों के असामान्य व्यवहार को व्यापक प्रचार मिला था।इस दिन दोपहर 2 बजे तक एक सामान्य अलर्ट घोषित किया गया था ।छह घंटे के भीतर, 7.3 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप से क्षेत्र हिल गया था, लेकिन लगभग सभी एक लाख निवासियों को बचा लिया गया था। 1975 के हाइचांग भूकंप की सटीक भविष्यवाणी के बाद से चीन को जानवरों के असामान्य व्यवहार को पहचानने में अग्रणी माना जाता है|
भूकंप अनुसंधान संस्थान, बायोफिज़िक्स, चीन (1979) का समूह एक मजबूत भूकंप से पहले जानवरों के व्यवहार के व्यापक सर्वेक्षण के बाद निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचा है। ज्यादातर जानवर भूकंप से पहले बेचैनी बढ़ाते हैं।5 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंप के दौरान जानवरों का असामान्य व्यवहार देखा जाता है। पूर्ववर्ती समय कुछ मिनटों से लेकर कई दिनों तक भिन्न होता है, जिसमें 11घंटे से अधिक की बेचैनी होती है जो भूकंप के २ से 3घंटे पहले और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है। विभिन्न जानवरों के सामान्य अग्रदूत समय में ज्यादातर भूकंप से पहले 24 घंटे के भीतर होते हैं।
बताया जाता है कि चीनी रिपोर्ट फरवरी 1976 में यूनेस्को, पेरिस में आयोजित अंतर सरकारी बैठक में प्रस्तुत की गई थी।इसने वैज्ञानिकों के बीच काफी रुचि बढ़ाई थी ।
भूकंप की भविष्यवाणी के संबंध में जानवरों के असामान्य व्यवहार के बारे में दुनिया भर में व्यापक शोध किया जा रहा है। चीन और जापान इस संबंध में अग्रगामी हैं। यूएसए ने भूकंप की भविष्यवाणी के एक उपयोगी संकेतक के रूप में जानवरों के असामान्य व्यवहार में भी गहरी रुचि दिखाई है।
भारतीय वैदिक विज्ञान में ज्योतिष की एक शाखा है जिसमें लक्षण शास्त्र और शकुन शास्त्र, प्रकृति और विभिन्न प्राणियों के व्यवहार को देखकर प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया समझाई गई है !संहिताशास्त्र में ग्रह नक्षत्रों से संबंधित ,आकाशीय एवं वायु जनित बहुत सारे ऐसे लक्षण हैं जो समय समय पर प्रकट और विलुप्त होते रहते हैं जिनका प्राकृतिक उत्पातों पर बड़ा असर होता है ऐसे लक्षणों का अध्ययन करना भी भूकंपीय शोध के संबंध में बहुत सहयोगी सिद्ध हो सकता है !
इसी प्रकार से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य मंडल में चिन्ह वर्ण इसी प्रकार आकाश के वर्ण का अध्ययन चंद्र श्रृंगोन्नति का अध्ययन ,बज्रपातादि का अध्ययन ,ग्रहों नक्षत्रों के युति दृष्टि युक्ता आदि का फल अगस्त तारा उदित होते समय का अध्ययन यदि काँप रहा हो तो भूकंप का संकेत देता है इसी प्रकार और भी बहुत सारे लक्षण हैं भूकंप संबंधी पूर्वानुमान के लिए इन सब का अध्ययन किया जाना चाहिए !आयुर्वेदोक्त वात विकृति को भी सम्मिलित किया जाए तथा ज्योतिषोक्त सूर्य चंद्र के प्रभावों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए !
इसी प्रकार प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन आवश्यक है !जिस जगह अकारण आकाश अचानक धूलि धूसरित हो जाए !या कुछ समय से लगातार वर्षा होने लगे सर्दी संबंधी बीमारियाँ जोर पकड़ने लगें !आग लगने की अचानक बहुत अधिक घटनाएँ घटित होने लगें गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगे कुएँ तालाब अचानक सूखने लगें गरमी से सम्बंधित रोग जोर पकड़ने लगें ,अचानक भयानक आँधी तूफान आने लगें जो बहुत अधिक नष्ट भ्रष्ट कर गए हों ,आकाश में भयंकर काले काले बहुत बड़े बड़े आकार प्रकार के बादल घिरने लगें और बहुत थोड़ा सा बरस कर लौट जाएँ !ऐसे सभी लक्षणों का अध्ययन बहुत बारीकी से किया जाना चाहिए ऐसी सभी घटनाएँ भूकंप संबंधी पूर्व सूचना देने के लिए घटित हो रही होती हैं ! इसलिए भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों में ऐसे परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए | इसी प्रकार से ज्वालामुखियों और जल संबंधी बड़े बाँधों और सरोवरों को भी ऐसे अध्ययनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए |
संशय -
इस तरह के व्यवहार से भूकंप के आने का कुछ अंदेशा लगाया जा सकता है। हालाँकि जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की हरकतें एक समान नहीं रहती इसलिए पक्की भविष्यवाणी करना कठिन हो जाता है।बताया जाता है कि कुछ लोगों ने भूकंपों को जानवरों के व्यवहार के साथ जोड़ने का प्रयास किया भी था | जिसके लिए उन शोधकर्ताओं ने भूकंप की 160 घटनाओं के संदर्भ में असामान्य हरकत करने वाले जानवरों के विषय में अध्ययन किया है. जीएफजेड जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जिओसाइंसेस के हीको वाइथ ने कहा, भूकंप का पूर्वानुमान लगाने वाले जानवरों की क्षमता व इसकी संभावना पर कई समीक्षा पत्र मौजूद हैं, परंतु हमारे ज्ञान के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि डेटा का मूल्यांकन करने के लिए एक सांख्यिकीय दृष्टिकोण का उपयोग किया गया है. शोधकर्ताओं ने हाथियों से लेकर रेशम के कीड़े तक विभिन्न प्रकार के जानवरों में संभावित भूकंप के पूर्वानुमान लगाने की क्षमता पर आधारित रिपोर्ट एकत्र कर इनका अध्ययन किया है
बताया जाता है कि बुलेटिन ऑफ द सिस्मोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि ऐसे सबूत ज्यादातर किस्से – कहानियाँ व किवदंतियाँ पर आधारित होते हैं , जिनका परीक्षण तथ्यात्मक ढंग से नहीं किया जा सकता !
ऐसी परिस्थिति में जिन मानकों के आधार पर पशुपक्षियों के व्यवहार से भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने की पद्धति को यह कहकर ख़ारिज किया जा सकता है कि ये केवल किस्से कहानियाँ व किवदंतियाँ हैं आदि आदि |
ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि यदि ये केवल किस्से कहानियाँ व किवदंतियाँ ही थीं तो इन्हें ऐसे अनुसंधान योग्य समझा ही क्यों गया इसका मतलब है कि इनमें कुछ न कुछ ऐसा जरूर रहा होगा जिसके कारण ऐसी घटनाओं और पशुपक्षियों के व्यवहारों को शोधकार्य में सम्मिलित किया गया | इसके साथ ही इस अनुसंधान के असफल होने का कारण केवल यह ही नहीं है कि पशुपक्षियों के व्यवहार से भूकंपों का कोई संबंध नहीं है अपितु इसका कारण यह भी हो सकता है कि पशुपक्षियों के व्यवहार से भूकंपों का कोई संबंध है या नहीं यह समझने के लिए जिस वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता थी वह शोधकार्य उस सीमा तक पहुँच पाने में सफल ही नहीं हुआ | जिन मानकों के आधार पर ऐसा मान लिया जाता है कि ऐसी बातों का परीक्षण तथ्यात्मक ढंग से नहीं किया जा सकता है उन्हीं मानकों के आधार पर यदि ईमानदारी पूर्वक परीक्षण किया जाए तो आधुनिक विज्ञान के आधार पर बताए जाने वाले भूमिगतप्लेटों या संचित गैसों के दबाव वाले किस्से कहानियों किवदंतियों को भी विज्ञान सम्मत मानने योग्य कोई सुदृढ़ आधार अभी तक खोजा नहीं जा सका है इसलिए उसे ही विज्ञानसम्मत कैसे मान लिया जाए लिया जाए जबकि उसमें भी तो कोई वैज्ञानिक आधार नहीं दिखता है |
1. तापमान परिवर्तन:
तापमान और भूकंप के बीच कुछ संबंध प्रतीत होता है। चीन के लुंगलिन (1976) और रूस के प्रेजेवलस्क (1970) में भूकंप से पहले 10 ° C और 15 ° C तापमान में काफी वृद्धि दर्ज की गई थी। इन भूकंपों की महाकाव्य दूरी जहां गर्म पानी के झरने में देखी गई थी / अच्छी तरह से 10 और 30 किमी और अग्रवर्ती अवधि क्रमशः 42 और 72 दिन थी।
2. जल स्तर:
एक बड़े भूकंप से ठीक पहले कई कुओं में पानी के स्तर में भारी बदलाव होते हैं। जापान में ननकाई भूकंप (1946) से कुछ दिन पहले जल स्तर में गिरावट आई थी। लुंग्लिन (चीन) और प्राजेवलस्क (रूस) भूकंप से पहले 3 और 15 सेमी जल स्तर में वृद्धि की सूचना मिली थी।
इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया (1968) में मेकरिंग में भूकंप से कुछ घंटे पहले जल स्तर 3 सेमी बढ़ गया। चीन में कुओं में पानी के स्तर में वृद्धि हाइचेंग (1975), तांगशान (1976), लियू- क्वियाओ और शनिन (1979) के भूकंपों से पहले देखी गई थी।
रिक्टर पैमाने पर 4 और उससे अधिक के भूकंप की भविष्यवाणी करने के लिए कुरील द्वीपों में जल स्तर भिन्नता में प्रयोग किए गए हैं।यह पृथ्वी की पपड़ी के विरूपण को देखने के लिए एक प्रभावी तकनीक है। जिस मॉडल पर भूकंप का पूर्वानुमान आधारित है, वह बताता है कि भूकंप से 3 से 10 दिन पहले, जल स्तर गिरना शुरू हो जाता है। थोड़े समय के बाद, भूकंप आने पर यह ऊपर उठने लगता है।
वर्षा संबंधी लक्षण -
कुल मिलाकर पक्षियों के क्रियाकलाप और उनके साथ घटी घटनाएँ वर्षा, अल्पवर्षा और अतिवर्षा और सूखे आदि का संकेत माने जाते हैं।यदि कौआ कुएँ में गिरकर मर जाता है तो माना जाता है कि इस वर्ष वर्षा बहुत कम, बाढ़ अथवा तीव्र गर्मी रहेगी !
वर्षा ऋतु में कौओं के झुंड का बिना आवाज निकाले अपने घोसले में लौटना तेज वर्षा होने का संकेत देता है, तो इसके विपरीत दिन की घनघोर घटाओं और चमकती बिजली के बीच यदि कबूतरों के झुंड आकाश में ऊंची उड़ान भरने के स्थान पर चुपचाप वृक्षों पर बैठे रहें तो उन घटाओं और बिजली चमकने का कोई अर्थ नहीं होता अर्थात वे घटनाएं बिना पानी बरसाते ही गुजर जाती हैं। गिरगिट के शरीर के वर्ण (रंग) का परिवर्तन वर्षा, अल्पवर्षा तथा पूर्ण वर्षा का संकेत देता है।
वर्षा के विषय में -पेड़ों पर दीमक तेजी से घर बनाने लगें तो इसे अच्छी वर्षा का संकेत माना जाता है। मोरों का नाचना, मेंढक का टर्राना और उल्लू का चीखना तो पूरे भारत में वर्षा का संकेत माना ही जाता है। बकरियां अगर अपने कानों को जोर-जोर से फड़फड़ाने लगें, तो यह भी शीघ्र वर्षा होने का सूचक माना जाता है। भेड़ें अगर अचानक अपने समूह में इकट्ठी होकर चुपचाप खड़ी हो जाएं, तो समझा जाता है कि भारी बारिश शुरू होने ही वाली है।शाम ढलते समय अगर लोमड़ी की आवाज कहीं दूर से दर्द से चीखने जैसी आए, तो यह बारिश आने का आसार मानी जाती है। अगर चींटियां भारी मात्रा में अपने समूह के साथ अंडे लेकर घर बदलती दिखाई दें, तो माना जाता है कि बारिश का मौसम अब शुरू होने ही वाला है। चिड़िया के घोंसले की उंचाई से भी बारिश का अंदाजा लगाया जाता है। अगर चिडि़या ने घोंसला पर्याप्त उंचाई पर बनाया हो, तो इसे अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है। यदि घोंसला नीचा है, तो वर्षा की अनुमान भी सामान्य से कम होने का लगाया जाता है आदि ।
पशु संहार के कारण आते हैं भूकंप -
अभी तक मान्यता यही है कि भूकंप की भविष्यवाणी कर पाना लगभग असंभव है. कारण ये है कि मनुष्य को भूकंप का ठीक-ठीक कारण नहीं पता है |
कुछ विद्वान वैज्ञानिकों का मानना है कि पशु-पक्षी तथा मछलियों की हत्या के क्रम में उन्हें जो दुख-दर्द और भय का अनुभव होता है, उसका घनीभूत रूप ही भूकंप का कारण बनता है उनका दावा है कि पीड़ा का अनुभव सचमुच भौतिक तरंगों को उत्पन्न करने में सक्षम है ! कुल मिलाकर मन की शक्ति को समझने और विकसित करने की आवश्यकता है !भारत में ऐसे कई स्वामी हैं जो रोगों से छुटकारा दिलाते हैं और ध्यान केंद्रित कर लोगों के भविष्य बदल सकते हैं. तो मन और विचार की इस शक्ति की व्याख्या आप कैसे करेंगे ? कई बार ऐसा होता है कि आप किसी को याद कर रहे होते हैं और कुछ ही मिनटों में उसका फोन आ जाता है तो हम इसे ‘संयोग’ कहते हैं. इसका एक नाम सिंक्रॉनिसिटी (समकालिकता) भी है इस शब्द का पहली दफे प्रयोग प्रसिद्ध एनालिटिकल सायकोलॉजिस्ट(मनोविज्ञानी) कार्ल युंग ने किया था |
युंग का मानना था कि अगर किन्हीं दो घटनाओं में कार्य-कारण संबंध ना भी हो लेकिन वे इस तरह घटित हों कि उनके बीच सार्थक रिश्ता जान पड़े तो ऐसी घटनाओं को ‘सार्थक संयोग’ (मीनिंगफुल को-इन्सिडेंस) का नाम दिया जाता है |मन ऊर्जा की तरंगें उत्पन्न करता है |
बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद जब शिकागो पहुँचे तो उन्होंने बड़ी दूर से ही एक खास इलाके की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस इलाके पर उदासी की गहरी छाया है. यह एक कसाईखाना था, अमेरिका का सबसे बड़ा ‘स्लॉटरहाऊस’! यहाँ जानवरों को काटने के लिए लाया जाता था. क्या उदासी की वो छाया निरीह पशुओं के दुख-दर्द और कराह से निकली तरंगों की देन थी?
आज जिसे पैरा-नॉर्मल या अतीन्द्रिय (शायद नए साल में इसे ही नामर्ल यानी इंद्रियजन्य मान लिया जाय!) माना जाता है उसपर विश्वास करने वाले वैज्ञानिकों में सिर्फ युंग का ही नाम शुमार नहीं. आधुनिक विज्ञान के जनक कहे जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी ईपीडब्ल्यू यानी आइंस्टीनियन पे’न वेव्ज् सिद्धांत की चर्चा की थी. यह सिद्धांत भूगर्भ विज्ञान से संबंधित है!
कुल मिलाकर पशुओं के सामूहिक संहार से भूकंप का रिश्ता कायम करना संभव नहीं है !भूकंप कब और क्यों होते हैं- इसे अभीतक कोई नहीं जानता. सो, ऊपर जिस सिद्धांत का जिक्र आया है उसे भी उतना ही प्रामाणिक या अप्रामाणिक माना जा सकता है जितना भूंकप के बारे में किसी अन्य सिद्धांत को. बहुत संभव है, आगे के वक्त में भूकंप-विज्ञानी भी उसी निष्कर्ष पर पहुंचे जिसे हमारे ऋषि-मुनि सदियों से बताते आ रहे हैं कि ‘विश्वात्मा’ का मन दुनिया के तमाम उपकरणों से कहीं ज्यादा ताकतवर है |
अभी तक दुनियाँ की उन तमाम जगहों की रिपोर्ट का संकलन किया गया है जहाँ भूकंप आए और जहाँ पशुओं को मारने के लिए कसाईखाने थे. ऐसी भी जगहों से रिपोर्ट संकलित की गई है जहाँ कसाईखाने भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों के नजदीक बनाये गए हैं.
पे’न वेव्ज अर्थात पीड़ा के कारण उत्पन्न होने वाली तरंगें एक लंबी अवधि तक दबाव का क्षेत्र बनाते रहती हैं और जब यह दबाव अपने चरम-बिंदु पर पहुँच जाता है तो धरती की परत टूट जाती है और यह हादसा भूकंप का रूप ले लेता है! जानवरों को काटने के क्रम में उन्हें जिस पीड़ा का अहसास होता है उसमें चीख निकलती है, तनाव पैदा होता है और इन तमाम चीजों से भी पे’न वेव्ज का उसी तरीके से निर्माण होता है !ये पे’न वेव्ज धरती की परत में एक ना एक दिशा में चोट करती और दरार डॉलती हैं जो ‘सिस्मिक एनीसोट्रोफी’ अर्थात भूकंपीय चोट का कारण बनता है !
ध्वनि से धरती की परत पर लगने वाला धक्का ही भूकंप का कारण बनता है. यह धक्का अगर हल्का हो तो भी धरती की परत में कंपन होती है लेकिन ऐसे कंपन को शायद ही कोई महसूस कर पाता हो.सालों साल लाखों की तादाद में जानवरों को मारने से आने वाले भूकंपों की तीव्रता रिक्टेल स्केल पर ज्यादा होती है.
ध्वनि-तरंगें चट्टानों पर बहुत ज्यादा दबाव डॉलती हैं. रोजाना बड़ी तादाद में जानवरों को हत्या की जाय और ऐसा बरसों तक हो तो आइंस्टीनियन पेन वेव्ज के जरिए एकॉस्टिक एनिस्ट्रॉफी पैदा होती है. ऐसा मरते हुए जानवरों को पहुँचती पीड़ा के कारण होता है! ये ध्वनियाँ कालक्रम में लंबी दूरी तय करती हैं इसलिए किसी एक देश में बने कसाईखानों की वजह से दूसरे देश में भी भूकंप आ सकता है |
कसाईखानों में बड़े पैमाने पर पशु-हत्या होने से भूकंप आते हैं. लातूर(खिलारी) के भूकंप, उत्तरकाशी में आये भूकंप तथा असम के भूकंप को मिसाल के रुप में गिनाया है. अमेरिका में आये नार्थरिज (1994), लांग बिच (कैलिफोर्निया – 1933), लैंडर्स (कैलिफोर्निया -1992), सैन फ्रांसिस्को (1906), न्यू मैड्रिड (मिसौरी – 1811-12) के भूकंप का भी किताब में उदाहरण दिया गया है. रूस के नेफगोर्स्क (1995) के भूकंप पर किताब में विस्तार से चर्चा है. जापान के कांटो (1923), नोबी (1891), किटा टांगो (1927), सांगकिरो सुनामी (1933), शिजुका (1935), टोंनाकल (1944), नानकई (1948), फुकुई (1948), ऑफ टोकाची (1952), किज्ता-मिनो (1961), निगाटा (1964), ऑफ टोकाची (1968), कोबे (1995) के भी भूकंप को उदाहरण के रुप में दर्ज किया गया है. नेपाल में गढ़ीमई में 1934 एवं 2015 में हुए पशु-संहार और वहाँ दोनों बार आए भीषण भूकंप इस बात के सशक्त उदाहरण हैं !
क्या ऐसा संभव है ? हां, क्यों नहीं? गुरुत्वाकर्षण से संबंधित तरंगों(ग्रेविटेशनल वेव्ज) के बारे में एक सिद्धांत आइंस्टीन ने 1916 में बताया था. बरसों तक वैज्ञानिक इस सिद्धांत की खिल्ली उड़ाते रहे. सौ साल बाद, जब सही उपकरण तैयार हो गये तो फरवरी 2016 में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने ऐलान किया कि उन्होंने ग्रेविटेशनल वेव्ज को खोज निकाला है, उसे सुना और मापा है. इसे एक ऐतिहासिक खोज की संज्ञा दी गई और माना गया कि ग्रेविटेशनल वेव्ज के सहारे ब्रह्मांड को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है| गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों से ऐसी सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं जिससे ब्रह्मांड में किसी वस्तु की गति का पता चल सके |
इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जब वैज्ञानिकों ने कुछ धारणाएँ और सिद्धांत प्रस्तुत किये लेकिन उन्हें उस वक्त उपकरण ना होने के कारण मापा नहीं जा सका और ठीक इसी कारण धारणाओं को सच नहीं माना गया.! अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो अब भी सोचते हैं कि वैश्विक तापन(ग्लोबल वार्मिंग) कोई सच्चाई नहीं बल्कि एक काल्पनिक कहानी है व्यक्तिगत रूप से मैं इस विषय में उनकी सोच से शतप्रतिशत सहमत हूँ |पे’न वेव्ज टैक्टोनिक प्लेटस में कंपन उत्पन्न करते हैं और यह कंपन भूकंप का कारण बनता है.अमेरिका का टेकोमा ब्रिज 1940 में गिर पड़ा था. दर्ज इतिहास में यह पहला ब्रिज था जिसके गिरने की वजह वहाँ का उस प्रकार का वायु-प्रवाह था ! इस वजह से ऊपर बहती हवा के साथ कंपायमान होकर पूरा ब्रिज ही गिर पड़ा|
यदि वायुजनित कंपन पूरे ब्रिज के गिरने का कारण बन सकता है तो फिर मारे जाते जानवरों की पीड़ा से उत्पन्न पे’न वेव्ज से भूकंप क्यों नहीं आ सकते ? मारे जाते पशु को जो कष्ट पहुँचता है वो है क्या ? यह विशाल मात्रा में प्राण-ऊर्जा का निकलना ही तो है- एक ऐसी ऊर्जा जिसे हम अभी तक माप नहीं सके हैं |
पशुओं के सामूहिक संहार के क्रम में उनके दुख-दर्द से पैदा होते पे’न वेव्ज तथा इनके महाविनाशकारी कंपन को माप सकने वाली प्रौद्योगिकी या कोई यंत्र तैयार न होने के कारण इसे कब तक नाकारा जाएगा |
कई बार किसी स्थान विशेष पर यह प्राणऊर्जा बहुत लंबे समय तक स्थाई बनी रहती है जिसके कारण वहाँ लंबे समय तक भूकंप घटित होते रहते हैं !
सच्चाई पर प्रश्न -
जानकारी के अभाव में " भूगर्भवैज्ञानिकों को ये सिद्धांत भले समझ में न आवे किंतु इसकी सच्चाई और प्रमाणिकता को किसी भूगर्भवैज्ञानिक के समर्थन की आवश्यकता भी नहीं है | वैसे भी जिसने जिस विषय को पढ़ा ही नहीं है वह उस विषय में कुछ जानता ही नहीं होगा और जो जिस विषय को जानता ही नहीं है उसके समर्थन या विरोध का औचित्य ही क्या है ? जो जिस विषय के स्वभाव से सुपरिचित नहीं है ऐसे किसी अन्य विषय के विद्वान की सहमति लेनी आवश्यक भी नहीं होनी चाहिए !भूगर्भवैज्ञानिक भी तो अपने भूगर्भविज्ञान के आधार पर भी भूकंपों से संबंधित अनुसंधान को सुई की नोक के बराबर भी आगे नहीं बढ़ा सके हैं ऐसी परिस्थिति में भूकंपों से संबंधित अनुसंधान कार्यों में अभीतक असफल रहे लोगों की सहमति लेने का औचित्य ही क्या बचता है |
वैसे भी बिन ड्राइवर की कार, बिन तार का टेलीफोन, बिजली पैदा करने वाली समुद्री तरंग और रोजमर्रा के बरताव का हिस्सा बन चुकी ऐसी हजारों चीजों का एक ना एक दिन मजाक उड़ाया गया था, उनकी संभावना के बारे में जब कोई सिद्धांत रूप में अपनी बात रखता था तो उसका मजाक उड़ाया जाता था!बाद में उन्हीं विषयों या सिद्धांतों को मान्यता मिल गई |
निरपराध लोगों को मारा जाए तो वहाँ भूकंप आते हैं !पारियात्र पर्वत जिसे बाद में हिंदूकुश कहा जाने लगा था उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर अरबों-तुर्कों के क़ब्ज़े के बाद हिंदुओं को ग़ुलाम बनाकर इन पर्वतों से ले जाया जाता था और उनमें से बहुत यहाँ बर्फ़ में मर जाया करते थे बहुतों को मार दिया जाता था ! हिंदूकुश एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ हिंदुओं को मारने का स्थान ।बताया जाता है कि एक समय में यहाँ पर हिंदुओं का बड़ा संहार हुआ था तभी से पारियात्र पर्वत को हिंदूकुश कहा जाने लगा था !उस समय हिंदुओं की प्राणपीड़ा से वहाँ की प्रकृति विक्षुब्ध हो गई थी तब से लेकर आज तक इस क्षेत्र में अक्सर भूकंप आते रहते हैं जिसका केंद्र हिंदूकुश होता है |
कुल मिलाकर भूकंप तो कभी भी और कहीं भी आ सकते हैं और कितना भी बड़ा नुक्सान कर सकते हैं | भूकंपों को रोकने का तो कोई उपाय हो ही नहीं सकता किंतु इनके पूर्वानुमान के विषय में भी अभी तक विश्व वैज्ञानिक जगत सफलता शून्य है | लाचार है विश्व का भूकंप वैज्ञानिक समाज !भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो बहुत बड़ी बात है भूकंप आते क्यों हैं इसका भी अभी तक कोई विश्वसनीय उत्तर उपलब्ध नहीं है जो उत्तर दिए जा रहे हैं उनके समर्थन में दिए जाने वाले आधारभूत तर्क इतने छिछले और परिवर्तनशील हैं कि उन पर विश्वास कैसे किया जाए !इन तर्कों में सत्यता के साक्ष्य न होने पर भी हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है !पर्यावरण वैज्ञानिक कहते हैं कि पर्यावरण बिगड़ने से आते हैं भूकंप !धार्मिक लोग कहते हैं कि जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब आते हैं भूकंप !ज्योतिष वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगलशनि की युति या कुग्रहों के संयोग से आते हैं भूकंप !शकुनशास्त्र जानने वाले अपने अपने तर्क देते हैं जबकि भूकंपों के विषय में अभी तक कुछ भी न जान्ने वाले भूकंप वैज्ञानिक कहते हैं धरती के अंदर की प्लेटें खिसकती हैं इसलिए आते हैं भूकंप !किंतु सही किसे माना जाए और क्यों माना जाए !विश्वास करने योग्य कोई तर्क प्रमाण आदि दे नहीं पा रहा है हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है भूकंपों के पूर्वानुमान की घोषणा कोई कर नहीं पा रहा है जिससे ये पता लग सके कि सही कौन है और गलत कौन !
इन्हीं सभी कसौटियों पर कसे जाने पर भूकंप वैज्ञानिक अभी तक ये प्रूफ करने में असफल हैं कि वे भूकंपों के विषय में कुछ अलग से जानते हैं और कोई भरोसा करने योग्य बात बता सकते हैं मेरी जानकारी के अनुशार विश्व के देशों में भूकंपविज्ञान के लिए मंत्रालय संस्थान विभाग आदि जो भी बनाए गए हैं वो अभी तक अपनी सार्थकता सिद्ध करने में असफल रहे हैं ! हर कोई अपने अपने राग अलापे जा रहा है किंतु सामूहिक रूप से सभी के अनुभवों का समवेत अध्ययन करके कोई रिसर्च किया गया हो काम से काम मेरी जानकारी में तो ऐसा कुछ भी नहीं है !भूकंपों के विषय में बिना किसी कारण और प्रमाण के भी मतभिन्नता है अज्ञानता है किंतु ये तभी तक है जब तक भूकंपों के संबंध में सच्चाई सामने नहीं आ जाती है और पूर्वानुमान लगाने में सफलता नहीं मिल जाती है !
यह बात कई शताब्दियों से चली आ रही है कि कुछ जानवर पशु-पक्षी आदि भी भूकंप आने से पहले अपनी हरकतें बदल डालते हैं। इसकी भले साइंटिफिक तौर पर पुष्टि नहीं हुई हो, और खारिज भी नहीं किया गया हो, लेकिन ऐसे विषयों पर भी रिसर्च कई बार हुए हैं। जानवरों के भूकंप के संकेत देने को लेकर इटली, जापान, चीन सहित कई देशों में बौद्धिक शोधचर्चा होती रही है। इन पर रिसर्च कार्य हुए भी हैं |अगर यह सही है तो वैज्ञानिक पशु-पक्षियों की इस अद्भुत क्षमता को भूकंप की पूर्व सूचना प्रणाली में क्यों नहीं बदल सकते। अगर ऐसा संभव हो जाए तो प्रकृति की इस तबाही पर विजय पा सकेगा मानव। यद्यपि प्रयोगशालाओं में इस पर शोध किए जा रहे हैं
वस्तुतः मनुष्य की अपेक्षा पशु पक्षी एवं जीव-जंतुओं की इंद्रियाँ प्रकृतिजनित कारकों के प्रति कई गुना अधिक संवेदनशील व सक्रिय होती हैं।संहिता ग्रंथों में पशुओं पक्षियों के व्यवहार परिवर्तनों का विशद वर्णन मिलता है ! जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है।वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए यंत्र न केवल बहुत आवश्यक होते हैं अपितु बहुत सहायक भी माने जाते हैं फिर भी हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि वैज्ञानिक उपकरणों की तुलना में जीव जंतु बेहद अधिक संवेदनशील होते हैं जीव, जंतु, पशु, पक्षी आदि भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं को महसूस कर लेते हैं। लाखों-करोड़ों वर्षों से इन जीव-जंतुओं के मध्य रहकर मनुष्य ने अनेक शुभ-अशुभ संकेतों का ज्ञान प्राप्त कर लिया है !चक्रवात, भूकंप, बाढ़, वर्षा आदि आपदाओं का जीव-जंतुओं को पूर्वाभास हो जाता है।कुछ जीव जंतु भूकंप के पहले के भौगोलिक परिवर्तनों को महसूस कर लिया करते हैं |
जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है।यंत्र कभी धोखा दे भी सकते हैं लेकिन पशुपक्षियों का स्वभाव सामान्यरूप से बदलते नहीं देखा जाता है | जीव-जंतुओं में वर्षा, गर्मी, सर्दी, भूकंप, ज्वालामुखी से लेकर भावी घटनाओं के ज्ञान की विलक्षण क्षमता होती है। ऐसा उनमें विद्यमान संवेदी तंत्र के कारण होता है।कुछ जानवरों में इंसानों की तुलना में सूँघने, सुनने, देखने और संवेदन करने की बेहतर शक्ति होती है।कई बार रात्रि को कुत्ते ऊपर मुंह करके रोते हैं। उनके रोने की आवाज का क्रम निरंतर जारी रहता है तो पुराने लोग कुत्ते बिल्लियों के रोने को अशुभ मानते थे | इसलिए पशुपक्षियों के व्यवहारों में अस्वाभाविक बदलाव देखकर समझ लिया करते थे कि कोई दैविक आपदा आने वाली है।कुछ समय में पास के किसी घर से अशुभ समाचार मिलता है।ऐसे ही कौवों के आचरणों में भी अनेक शुभ-अशुभ संकेत होते हैं।
ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि यदि आस-पास के कुत्ते और बिल्लियाँ रोने अजीब व्यवहार करने लगें तो ऐसा समझ लिया जाता था कि अब भूकंप आने की आशंका है! बिल्ली को हम आवाज और व्यवहार में विविधता प्रकट करने के कारण अशुभ मानते हैं। विचित्र तरीकों से रोना और यात्रा अथवा विशेष अवसर पर जाते समय रास्ता काटने को संकट का प्रतीक मानते हैं। सुना जाता है कि समुद्री नाविक यात्रा के समय बिल्लियों को अपने साथ ले जाते हैं। सन् 1912 में जब टाइटेनिक नामक जहाज अपनी यात्रा पर चल रहा था, तभी जहाज में मौजूद बिल्लियों ने कूदना आरंभ कर दिया। कुछ ही समय में सारी की सारी बिल्लियाँ नीचे कूद गईं। जहाज में बैठे लोगों का इस ओर ध्यान नहीं गया। कुछ ही समय उपरांत जहाज एक बड़े हिमखंड से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया। इसी प्रकार सन् 1955 में 'जोतिया' नामक जहाज अपनी यात्रा पर निकला। जहाज निकलने के साथ ही जहाज में मौजूद सभी बिल्लियाँ रोने व चिल्लाने लगीं। यह जहाज भी यात्रा के मध्य में नष्ट हो गया।
इसके कारण वे वातावरण के परिवर्तन और घटना विशेष के घटने के पूर्व अपना बचाव व व्यवहार परिवर्तन करने लगते हैं।इसलिए चक्रवात भूकंप आदि आने से पूर्व वही जीव-जंतु भयवश इधर-उधर घबराते हुए मंडराते हैं। विचित्र आवाजें निकालते हैं, मालिक को उस स्थान को छोड़ने के लिए विवश करते हैं। भूकंप आने के कुछ दिन पहले ही मेढक वहाँ से पलायन करने लग जाते हैं !
जापान में नागोया शहर के एक रेस्तरां में हर दिन बड़ी संख्या में चूहों को देखा जाता था, जो 1891 के नोबी भूकंप से पहले शाम को अचानक गायब हो गए थे ।1923 के कांटो भूकंप और 1933 के संक्रिकु भूकंप में भी चूहों से संबंधित इसीप्रकार की बातें सामने आयी थीं | चीन में, होप्टी प्रांत (बीजिंग से 300 किमी) में 1966 के हिंगसताई भूकंप से पहले चूहों के असामान्य व्यवहार की सूचना मिली थी।चूहे अपने बिलों से बाहर आ जाते हैं। चूहे भूकंप आने का संकेत दे सकते हैं। बताया जाता है कि भूकंप आने से पहले जिस तरह के विद्युत और चुंबकीय क्षेत्र बनते है अगर चूहों को उन क्षेत्रों में रखा जाए तो वे अजीबोगरीब हरकतें करते हैं।चूहों का ऐसा व्यवहार कोबे में आए भूकंप से एक दिन पहले देखा गया था ।
चींटी को भूकंप आने की जानकारी होजाती होगी क्योंकि चींटी भूकंप के झटके को महसूस कर लेती है, भूकंप की हलचल का भान होते ही चींटियां अपना घर छोड़ देती हैं। आमतौर पर चींटियां दिन में घर बदलती हैं, पर भूकंप का पता चलते ही वो किसी भी समय अपने घर से निकल पड़ती हैं!
भूकंप के झटके शुरू होने से पहले सांप अपने बिलों से बाहर भागने लगते हैं। समुद्र की गहराइयों में रहने वाली मछलियाँ भी भूकंप की तरंगों को बड़ी तीव्रता से पकड़ती हैं। इसकी एक वजह यह भी है कि धरती से पहले भूकंप की तरंगें पानी को कंपित करती हैं|
मेंढक या भेक मेंढक या भेक मेंढकों के समान या उनकी ही एक प्रजाति भेक को भूकंप से पहले आश्चर्यजनक रूप से पूरे समूह के साथ गायब होते पाया गया है। जहां भी भूकंप आया, वहां लगभग 3 दिन पहले से सारे भेक जादुई तरीके से गायब हो गए।
भूकंप आने से कुछ मिनट पहले राजहंस पक्षी एक समूह में जमा होते देखे गए हैं, तो बतखें डर के मारे पानी में उतरती पाई गई हैं। इतना ही नहीं, मोरों को झुंड बनाकर बेतहाशा चीखते हुए पाया गया है।
इसप्रकार से पशु पक्षी, मछलियाँ कुत्ते व अन्य जीव जंतु पहले से ही भूकंप के संकेत देने लगते हैं।इसीलिए विश्व में जहाँ भी जानवरों में इस तरह के अस्वाभाविक बदलाव होते देखे गए हैं, वहाँ इसके कुछ मिनट बाद ही बड़ा भयंकर भूकंप दर्ज किया गया है ऐसे कई उदाहरण विद्यमान हैं |
बताया जाता है कि 26 जनवरी 2001 को भुज (गुजरात) में भूकंप आने से पहले घर में बंधे कुत्ते ने घबराते हुए तेजी से भौंकना, उछलना प्रारंभ कर दिया। लगातार कुत्ते के भौंकने और उछलने की क्रिया जारी रहने पर जब मालिक उसे लेकर घर के बाहर निकला ही था कि कुछ ही पल में उसका मकान भूकंप के झटके में गिर गया।विनाशकारी भूकंपों से पहले जानवरों के असामान्य व्यवहार को दुनिया के विभिन्न हिस्सों में पहले भी देखा गया था।
ऐसे ही भूकंप आने से पहले 1835 में चिली के तालकाहुआनो शहर से कुत्ते शहर में आए थे। 1822 और 1835 के चिली में आए भूकंप से पहले पक्षियों के झुंड अंतर्देशीय हो गए। निकारागुआ में 1972 के मानागुआ भूकंप से कुछ घंटे पहले बंदर बेचैन हो गए थे।1969 की गर्मियों में बहाई भूकंप (जुलाई, 1969) से ठीक पहले तित्सिन चिड़ियाघर के संरक्षकों ने देखा था कि हंस अचानक पानी से बाहर निकल गए थे और दूर रह गए, एक मंचूरियन बाघ ने पेसिंग बंद कर दी, एक तिब्बती याक का पतन हो गया, पंडों ने अपना सिर अंदर कर लिया। कछुए बेचैन देखे गए थे।
जापान में 1896 के रय्यक भूकंप में एक घंटे पहले ही कुछ जीव जंतुओं को बेचैन देखा गया था | यूगोस्लाविया के चिड़ियाघर में 1963 के भूकंप से पहले पक्षी रोने लगे थे । 1976 के भूकंप से दो या तीन घंटे पहले उत्तरी इटली के गांवों से हिरण इकट्ठा हुए और बिल्लियाँ गायब हो गईं थीं ।
भूकंप से ठीक पहले असामान्य व्यवहार उन जानवरों के बीच भी देखा गया है जो भूमिगत रहते हैं, जैसे सांप, कीड़े और कीड़े, और पानी में रहने वाले (मछलियाँ)। जापान के उत्तरी पश्चिमी तट पर 1896 में भूकंप और 1927 के टैंगो भूकंप से ठीक पहले प्रचुर मात्रा में मछलियों को पकड़ा गया था। हालांकि, कांटो भूकंप से पहले (1923) में मछलियाँ गायब होने की सूचना मिली थी।
ईदो भूकंप (11 नवंबर, 1855) से ठीक पहले, कई घास के सांपों के जमीन से बाहर निकल जाने की सूचना मिली थी, जबकि यह भीषण सर्दी थी। तुर्की के भूकंप (24 नवंबर, 1976) से ठीक पहले कुत्तों के बहुत ही असामान्य व्यवहार की सूचना मिली थी। यूएस जियोलॉजिकल सर्वे के बैरी रैले ने देखा कि होलिस्टर (कैलिफ़ोर्निया) में 28 नवंबर 1974 के भूकंप से ठीक पहले घोड़ों की मौत हो गई थी।
भारत में, भूकंप के संबंध में जानवरों के असामान्य व्यवहार को 1892 के प्रारंभ में देखा गया था। जानवरों को जमीन को सूँघने और घबराहट दिखाने के लिए देखा गया था, जैसे कि गोविंदपुर (मानभूमि) में फरवरी में एक कुत्ते को एक अस्पष्ट वस्तु की उपस्थिति में दिखाया गया था। 19, 1892. उत्तरकाशी (1991), लातूर (1993), जबलपुर (1997), चमोली (1999) और भुज (2001) के हालिया भूकंपों के दौरान पालतू कुत्तों के असामान्य व्यवहार के पृथक मामले थे।
पशु व्यवहारों के आधार पर ही 4 फरवरी, 1975 को चीन के लियाओनिंग प्रांत में हाइचांग भूकंप आने से पहले जानवरों के असामान्य व्यवहार को व्यापक प्रचार मिला था।इस दिन दोपहर 2 बजे तक एक सामान्य अलर्ट घोषित किया गया था ।छह घंटे के भीतर, 7.3 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप से क्षेत्र हिल गया था, लेकिन लगभग सभी एक लाख निवासियों को बचा लिया गया था। 1975 के हाइचांग भूकंप की सटीक भविष्यवाणी के बाद से चीन को जानवरों के असामान्य व्यवहार को पहचानने में अग्रणी माना जाता है|
भूकंप अनुसंधान संस्थान, बायोफिज़िक्स, चीन (1979) का समूह एक मजबूत भूकंप से पहले जानवरों के व्यवहार के व्यापक सर्वेक्षण के बाद निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचा है। ज्यादातर जानवर भूकंप से पहले बेचैनी बढ़ाते हैं।5 या उससे अधिक तीव्रता के भूकंप के दौरान जानवरों का असामान्य व्यवहार देखा जाता है। पूर्ववर्ती समय कुछ मिनटों से लेकर कई दिनों तक भिन्न होता है, जिसमें 11घंटे से अधिक की बेचैनी होती है जो भूकंप के २ से 3घंटे पहले और भी अधिक स्पष्ट हो जाता है। विभिन्न जानवरों के सामान्य अग्रदूत समय में ज्यादातर भूकंप से पहले 24 घंटे के भीतर होते हैं।
बताया जाता है कि चीनी रिपोर्ट फरवरी 1976 में यूनेस्को, पेरिस में आयोजित अंतर सरकारी बैठक में प्रस्तुत की गई थी।इसने वैज्ञानिकों के बीच काफी रुचि बढ़ाई थी ।
भूकंप की भविष्यवाणी के संबंध में जानवरों के असामान्य व्यवहार के बारे में दुनिया भर में व्यापक शोध किया जा रहा है। चीन और जापान इस संबंध में अग्रगामी हैं। यूएसए ने भूकंप की भविष्यवाणी के एक उपयोगी संकेतक के रूप में जानवरों के असामान्य व्यवहार में भी गहरी रुचि दिखाई है।
भारतीय वैदिक विज्ञान में ज्योतिष की एक शाखा है जिसमें लक्षण शास्त्र और शकुन शास्त्र, प्रकृति और विभिन्न प्राणियों के व्यवहार को देखकर प्राकृतिक आपदाओं के बारे में पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया समझाई गई है !संहिताशास्त्र में ग्रह नक्षत्रों से संबंधित ,आकाशीय एवं वायु जनित बहुत सारे ऐसे लक्षण हैं जो समय समय पर प्रकट और विलुप्त होते रहते हैं जिनका प्राकृतिक उत्पातों पर बड़ा असर होता है ऐसे लक्षणों का अध्ययन करना भी भूकंपीय शोध के संबंध में बहुत सहयोगी सिद्ध हो सकता है !
इसी प्रकार से सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सूर्य मंडल में चिन्ह वर्ण इसी प्रकार आकाश के वर्ण का अध्ययन चंद्र श्रृंगोन्नति का अध्ययन ,बज्रपातादि का अध्ययन ,ग्रहों नक्षत्रों के युति दृष्टि युक्ता आदि का फल अगस्त तारा उदित होते समय का अध्ययन यदि काँप रहा हो तो भूकंप का संकेत देता है इसी प्रकार और भी बहुत सारे लक्षण हैं भूकंप संबंधी पूर्वानुमान के लिए इन सब का अध्ययन किया जाना चाहिए !आयुर्वेदोक्त वात विकृति को भी सम्मिलित किया जाए तथा ज्योतिषोक्त सूर्य चंद्र के प्रभावों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए !
इसी प्रकार प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन आवश्यक है !जिस जगह अकारण आकाश अचानक धूलि धूसरित हो जाए !या कुछ समय से लगातार वर्षा होने लगे सर्दी संबंधी बीमारियाँ जोर पकड़ने लगें !आग लगने की अचानक बहुत अधिक घटनाएँ घटित होने लगें गर्मी बहुत अधिक पड़ने लगे कुएँ तालाब अचानक सूखने लगें गरमी से सम्बंधित रोग जोर पकड़ने लगें ,अचानक भयानक आँधी तूफान आने लगें जो बहुत अधिक नष्ट भ्रष्ट कर गए हों ,आकाश में भयंकर काले काले बहुत बड़े बड़े आकार प्रकार के बादल घिरने लगें और बहुत थोड़ा सा बरस कर लौट जाएँ !ऐसे सभी लक्षणों का अध्ययन बहुत बारीकी से किया जाना चाहिए ऐसी सभी घटनाएँ भूकंप संबंधी पूर्व सूचना देने के लिए घटित हो रही होती हैं ! इसलिए भूकंपों से संबंधित अनुसंधानों में ऐसे परिवर्तनों को भी सम्मिलित किया जाना चाहिए | इसी प्रकार से ज्वालामुखियों और जल संबंधी बड़े बाँधों और सरोवरों को भी ऐसे अध्ययनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए |
संशय -
इस तरह के व्यवहार से भूकंप के आने का कुछ अंदेशा लगाया जा सकता है। हालाँकि जीव वैज्ञानिकों का मानना है कि इस तरह की हरकतें एक समान नहीं रहती इसलिए पक्की भविष्यवाणी करना कठिन हो जाता है।बताया जाता है कि कुछ लोगों ने भूकंपों को जानवरों के व्यवहार के साथ जोड़ने का प्रयास किया भी था | जिसके लिए उन शोधकर्ताओं ने भूकंप की 160 घटनाओं के संदर्भ में असामान्य हरकत करने वाले जानवरों के विषय में अध्ययन किया है. जीएफजेड जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जिओसाइंसेस के हीको वाइथ ने कहा, भूकंप का पूर्वानुमान लगाने वाले जानवरों की क्षमता व इसकी संभावना पर कई समीक्षा पत्र मौजूद हैं, परंतु हमारे ज्ञान के लिए सबसे अच्छी बात यह है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि डेटा का मूल्यांकन करने के लिए एक सांख्यिकीय दृष्टिकोण का उपयोग किया गया है. शोधकर्ताओं ने हाथियों से लेकर रेशम के कीड़े तक विभिन्न प्रकार के जानवरों में संभावित भूकंप के पूर्वानुमान लगाने की क्षमता पर आधारित रिपोर्ट एकत्र कर इनका अध्ययन किया है
बताया जाता है कि बुलेटिन ऑफ द सिस्मोलॉजिकल सोसाइटी ऑफ अमेरिका नामक पत्रिका में प्रकाशित इस अध्ययन से पता चला है कि ऐसे सबूत ज्यादातर किस्से – कहानियाँ व किवदंतियाँ पर आधारित होते हैं , जिनका परीक्षण तथ्यात्मक ढंग से नहीं किया जा सकता !
ऐसी परिस्थिति में जिन मानकों के आधार पर पशुपक्षियों के व्यवहार से भूकंपों का पूर्वानुमान लगाने की पद्धति को यह कहकर ख़ारिज किया जा सकता है कि ये केवल किस्से कहानियाँ व किवदंतियाँ हैं आदि आदि |
ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि यदि ये केवल किस्से कहानियाँ व किवदंतियाँ ही थीं तो इन्हें ऐसे अनुसंधान योग्य समझा ही क्यों गया इसका मतलब है कि इनमें कुछ न कुछ ऐसा जरूर रहा होगा जिसके कारण ऐसी घटनाओं और पशुपक्षियों के व्यवहारों को शोधकार्य में सम्मिलित किया गया | इसके साथ ही इस अनुसंधान के असफल होने का कारण केवल यह ही नहीं है कि पशुपक्षियों के व्यवहार से भूकंपों का कोई संबंध नहीं है अपितु इसका कारण यह भी हो सकता है कि पशुपक्षियों के व्यवहार से भूकंपों का कोई संबंध है या नहीं यह समझने के लिए जिस वैज्ञानिक अनुसंधान की आवश्यकता थी वह शोधकार्य उस सीमा तक पहुँच पाने में सफल ही नहीं हुआ | जिन मानकों के आधार पर ऐसा मान लिया जाता है कि ऐसी बातों का परीक्षण तथ्यात्मक ढंग से नहीं किया जा सकता है उन्हीं मानकों के आधार पर यदि ईमानदारी पूर्वक परीक्षण किया जाए तो आधुनिक विज्ञान के आधार पर बताए जाने वाले भूमिगतप्लेटों या संचित गैसों के दबाव वाले किस्से कहानियों किवदंतियों को भी विज्ञान सम्मत मानने योग्य कोई सुदृढ़ आधार अभी तक खोजा नहीं जा सका है इसलिए उसे ही विज्ञानसम्मत कैसे मान लिया जाए लिया जाए जबकि उसमें भी तो कोई वैज्ञानिक आधार नहीं दिखता है |
1. तापमान परिवर्तन:
तापमान और भूकंप के बीच कुछ संबंध प्रतीत होता है। चीन के लुंगलिन (1976) और रूस के प्रेजेवलस्क (1970) में भूकंप से पहले 10 ° C और 15 ° C तापमान में काफी वृद्धि दर्ज की गई थी। इन भूकंपों की महाकाव्य दूरी जहां गर्म पानी के झरने में देखी गई थी / अच्छी तरह से 10 और 30 किमी और अग्रवर्ती अवधि क्रमशः 42 और 72 दिन थी।
2. जल स्तर:
एक बड़े भूकंप से ठीक पहले कई कुओं में पानी के स्तर में भारी बदलाव होते हैं। जापान में ननकाई भूकंप (1946) से कुछ दिन पहले जल स्तर में गिरावट आई थी। लुंग्लिन (चीन) और प्राजेवलस्क (रूस) भूकंप से पहले 3 और 15 सेमी जल स्तर में वृद्धि की सूचना मिली थी।
इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया (1968) में मेकरिंग में भूकंप से कुछ घंटे पहले जल स्तर 3 सेमी बढ़ गया। चीन में कुओं में पानी के स्तर में वृद्धि हाइचेंग (1975), तांगशान (1976), लियू- क्वियाओ और शनिन (1979) के भूकंपों से पहले देखी गई थी।
रिक्टर पैमाने पर 4 और उससे अधिक के भूकंप की भविष्यवाणी करने के लिए कुरील द्वीपों में जल स्तर भिन्नता में प्रयोग किए गए हैं।यह पृथ्वी की पपड़ी के विरूपण को देखने के लिए एक प्रभावी तकनीक है। जिस मॉडल पर भूकंप का पूर्वानुमान आधारित है, वह बताता है कि भूकंप से 3 से 10 दिन पहले, जल स्तर गिरना शुरू हो जाता है। थोड़े समय के बाद, भूकंप आने पर यह ऊपर उठने लगता है।
वर्षा संबंधी लक्षण -
कुल मिलाकर पक्षियों के क्रियाकलाप और उनके साथ घटी घटनाएँ वर्षा, अल्पवर्षा और अतिवर्षा और सूखे आदि का संकेत माने जाते हैं।यदि कौआ कुएँ में गिरकर मर जाता है तो माना जाता है कि इस वर्ष वर्षा बहुत कम, बाढ़ अथवा तीव्र गर्मी रहेगी !
वर्षा ऋतु में कौओं के झुंड का बिना आवाज निकाले अपने घोसले में लौटना तेज वर्षा होने का संकेत देता है, तो इसके विपरीत दिन की घनघोर घटाओं और चमकती बिजली के बीच यदि कबूतरों के झुंड आकाश में ऊंची उड़ान भरने के स्थान पर चुपचाप वृक्षों पर बैठे रहें तो उन घटाओं और बिजली चमकने का कोई अर्थ नहीं होता अर्थात वे घटनाएं बिना पानी बरसाते ही गुजर जाती हैं। गिरगिट के शरीर के वर्ण (रंग) का परिवर्तन वर्षा, अल्पवर्षा तथा पूर्ण वर्षा का संकेत देता है।
वर्षा के विषय में -पेड़ों पर दीमक तेजी से घर बनाने लगें तो इसे अच्छी वर्षा का संकेत माना जाता है। मोरों का नाचना, मेंढक का टर्राना और उल्लू का चीखना तो पूरे भारत में वर्षा का संकेत माना ही जाता है। बकरियां अगर अपने कानों को जोर-जोर से फड़फड़ाने लगें, तो यह भी शीघ्र वर्षा होने का सूचक माना जाता है। भेड़ें अगर अचानक अपने समूह में इकट्ठी होकर चुपचाप खड़ी हो जाएं, तो समझा जाता है कि भारी बारिश शुरू होने ही वाली है।शाम ढलते समय अगर लोमड़ी की आवाज कहीं दूर से दर्द से चीखने जैसी आए, तो यह बारिश आने का आसार मानी जाती है। अगर चींटियां भारी मात्रा में अपने समूह के साथ अंडे लेकर घर बदलती दिखाई दें, तो माना जाता है कि बारिश का मौसम अब शुरू होने ही वाला है। चिड़िया के घोंसले की उंचाई से भी बारिश का अंदाजा लगाया जाता है। अगर चिडि़या ने घोंसला पर्याप्त उंचाई पर बनाया हो, तो इसे अच्छी वर्षा का प्रतीक माना जाता है। यदि घोंसला नीचा है, तो वर्षा की अनुमान भी सामान्य से कम होने का लगाया जाता है आदि ।
पशु संहार के कारण आते हैं भूकंप -
अभी तक मान्यता यही है कि भूकंप की भविष्यवाणी कर पाना लगभग असंभव है. कारण ये है कि मनुष्य को भूकंप का ठीक-ठीक कारण नहीं पता है |
कुछ विद्वान वैज्ञानिकों का मानना है कि पशु-पक्षी तथा मछलियों की हत्या के क्रम में उन्हें जो दुख-दर्द और भय का अनुभव होता है, उसका घनीभूत रूप ही भूकंप का कारण बनता है उनका दावा है कि पीड़ा का अनुभव सचमुच भौतिक तरंगों को उत्पन्न करने में सक्षम है ! कुल मिलाकर मन की शक्ति को समझने और विकसित करने की आवश्यकता है !भारत में ऐसे कई स्वामी हैं जो रोगों से छुटकारा दिलाते हैं और ध्यान केंद्रित कर लोगों के भविष्य बदल सकते हैं. तो मन और विचार की इस शक्ति की व्याख्या आप कैसे करेंगे ? कई बार ऐसा होता है कि आप किसी को याद कर रहे होते हैं और कुछ ही मिनटों में उसका फोन आ जाता है तो हम इसे ‘संयोग’ कहते हैं. इसका एक नाम सिंक्रॉनिसिटी (समकालिकता) भी है इस शब्द का पहली दफे प्रयोग प्रसिद्ध एनालिटिकल सायकोलॉजिस्ट(मनोविज्ञानी) कार्ल युंग ने किया था |
युंग का मानना था कि अगर किन्हीं दो घटनाओं में कार्य-कारण संबंध ना भी हो लेकिन वे इस तरह घटित हों कि उनके बीच सार्थक रिश्ता जान पड़े तो ऐसी घटनाओं को ‘सार्थक संयोग’ (मीनिंगफुल को-इन्सिडेंस) का नाम दिया जाता है |मन ऊर्जा की तरंगें उत्पन्न करता है |
बताया जाता है कि स्वामी विवेकानंद जब शिकागो पहुँचे तो उन्होंने बड़ी दूर से ही एक खास इलाके की ओर इशारा करते हुए कहा कि इस इलाके पर उदासी की गहरी छाया है. यह एक कसाईखाना था, अमेरिका का सबसे बड़ा ‘स्लॉटरहाऊस’! यहाँ जानवरों को काटने के लिए लाया जाता था. क्या उदासी की वो छाया निरीह पशुओं के दुख-दर्द और कराह से निकली तरंगों की देन थी?
आज जिसे पैरा-नॉर्मल या अतीन्द्रिय (शायद नए साल में इसे ही नामर्ल यानी इंद्रियजन्य मान लिया जाय!) माना जाता है उसपर विश्वास करने वाले वैज्ञानिकों में सिर्फ युंग का ही नाम शुमार नहीं. आधुनिक विज्ञान के जनक कहे जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी ईपीडब्ल्यू यानी आइंस्टीनियन पे’न वेव्ज् सिद्धांत की चर्चा की थी. यह सिद्धांत भूगर्भ विज्ञान से संबंधित है!
कुल मिलाकर पशुओं के सामूहिक संहार से भूकंप का रिश्ता कायम करना संभव नहीं है !भूकंप कब और क्यों होते हैं- इसे अभीतक कोई नहीं जानता. सो, ऊपर जिस सिद्धांत का जिक्र आया है उसे भी उतना ही प्रामाणिक या अप्रामाणिक माना जा सकता है जितना भूंकप के बारे में किसी अन्य सिद्धांत को. बहुत संभव है, आगे के वक्त में भूकंप-विज्ञानी भी उसी निष्कर्ष पर पहुंचे जिसे हमारे ऋषि-मुनि सदियों से बताते आ रहे हैं कि ‘विश्वात्मा’ का मन दुनिया के तमाम उपकरणों से कहीं ज्यादा ताकतवर है |
अभी तक दुनियाँ की उन तमाम जगहों की रिपोर्ट का संकलन किया गया है जहाँ भूकंप आए और जहाँ पशुओं को मारने के लिए कसाईखाने थे. ऐसी भी जगहों से रिपोर्ट संकलित की गई है जहाँ कसाईखाने भूकंप की आशंका वाले क्षेत्रों के नजदीक बनाये गए हैं.
पे’न वेव्ज अर्थात पीड़ा के कारण उत्पन्न होने वाली तरंगें एक लंबी अवधि तक दबाव का क्षेत्र बनाते रहती हैं और जब यह दबाव अपने चरम-बिंदु पर पहुँच जाता है तो धरती की परत टूट जाती है और यह हादसा भूकंप का रूप ले लेता है! जानवरों को काटने के क्रम में उन्हें जिस पीड़ा का अहसास होता है उसमें चीख निकलती है, तनाव पैदा होता है और इन तमाम चीजों से भी पे’न वेव्ज का उसी तरीके से निर्माण होता है !ये पे’न वेव्ज धरती की परत में एक ना एक दिशा में चोट करती और दरार डॉलती हैं जो ‘सिस्मिक एनीसोट्रोफी’ अर्थात भूकंपीय चोट का कारण बनता है !
ध्वनि से धरती की परत पर लगने वाला धक्का ही भूकंप का कारण बनता है. यह धक्का अगर हल्का हो तो भी धरती की परत में कंपन होती है लेकिन ऐसे कंपन को शायद ही कोई महसूस कर पाता हो.सालों साल लाखों की तादाद में जानवरों को मारने से आने वाले भूकंपों की तीव्रता रिक्टेल स्केल पर ज्यादा होती है.
ध्वनि-तरंगें चट्टानों पर बहुत ज्यादा दबाव डॉलती हैं. रोजाना बड़ी तादाद में जानवरों को हत्या की जाय और ऐसा बरसों तक हो तो आइंस्टीनियन पेन वेव्ज के जरिए एकॉस्टिक एनिस्ट्रॉफी पैदा होती है. ऐसा मरते हुए जानवरों को पहुँचती पीड़ा के कारण होता है! ये ध्वनियाँ कालक्रम में लंबी दूरी तय करती हैं इसलिए किसी एक देश में बने कसाईखानों की वजह से दूसरे देश में भी भूकंप आ सकता है |
कसाईखानों में बड़े पैमाने पर पशु-हत्या होने से भूकंप आते हैं. लातूर(खिलारी) के भूकंप, उत्तरकाशी में आये भूकंप तथा असम के भूकंप को मिसाल के रुप में गिनाया है. अमेरिका में आये नार्थरिज (1994), लांग बिच (कैलिफोर्निया – 1933), लैंडर्स (कैलिफोर्निया -1992), सैन फ्रांसिस्को (1906), न्यू मैड्रिड (मिसौरी – 1811-12) के भूकंप का भी किताब में उदाहरण दिया गया है. रूस के नेफगोर्स्क (1995) के भूकंप पर किताब में विस्तार से चर्चा है. जापान के कांटो (1923), नोबी (1891), किटा टांगो (1927), सांगकिरो सुनामी (1933), शिजुका (1935), टोंनाकल (1944), नानकई (1948), फुकुई (1948), ऑफ टोकाची (1952), किज्ता-मिनो (1961), निगाटा (1964), ऑफ टोकाची (1968), कोबे (1995) के भी भूकंप को उदाहरण के रुप में दर्ज किया गया है. नेपाल में गढ़ीमई में 1934 एवं 2015 में हुए पशु-संहार और वहाँ दोनों बार आए भीषण भूकंप इस बात के सशक्त उदाहरण हैं !
क्या ऐसा संभव है ? हां, क्यों नहीं? गुरुत्वाकर्षण से संबंधित तरंगों(ग्रेविटेशनल वेव्ज) के बारे में एक सिद्धांत आइंस्टीन ने 1916 में बताया था. बरसों तक वैज्ञानिक इस सिद्धांत की खिल्ली उड़ाते रहे. सौ साल बाद, जब सही उपकरण तैयार हो गये तो फरवरी 2016 में अमेरिका के वैज्ञानिकों ने ऐलान किया कि उन्होंने ग्रेविटेशनल वेव्ज को खोज निकाला है, उसे सुना और मापा है. इसे एक ऐतिहासिक खोज की संज्ञा दी गई और माना गया कि ग्रेविटेशनल वेव्ज के सहारे ब्रह्मांड को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है| गुरुत्वाकर्षणीय तरंगों से ऐसी सूचनाएँ प्राप्त की जा सकती हैं जिससे ब्रह्मांड में किसी वस्तु की गति का पता चल सके |
इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जब वैज्ञानिकों ने कुछ धारणाएँ और सिद्धांत प्रस्तुत किये लेकिन उन्हें उस वक्त उपकरण ना होने के कारण मापा नहीं जा सका और ठीक इसी कारण धारणाओं को सच नहीं माना गया.! अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तो अब भी सोचते हैं कि वैश्विक तापन(ग्लोबल वार्मिंग) कोई सच्चाई नहीं बल्कि एक काल्पनिक कहानी है व्यक्तिगत रूप से मैं इस विषय में उनकी सोच से शतप्रतिशत सहमत हूँ |पे’न वेव्ज टैक्टोनिक प्लेटस में कंपन उत्पन्न करते हैं और यह कंपन भूकंप का कारण बनता है.अमेरिका का टेकोमा ब्रिज 1940 में गिर पड़ा था. दर्ज इतिहास में यह पहला ब्रिज था जिसके गिरने की वजह वहाँ का उस प्रकार का वायु-प्रवाह था ! इस वजह से ऊपर बहती हवा के साथ कंपायमान होकर पूरा ब्रिज ही गिर पड़ा|
यदि वायुजनित कंपन पूरे ब्रिज के गिरने का कारण बन सकता है तो फिर मारे जाते जानवरों की पीड़ा से उत्पन्न पे’न वेव्ज से भूकंप क्यों नहीं आ सकते ? मारे जाते पशु को जो कष्ट पहुँचता है वो है क्या ? यह विशाल मात्रा में प्राण-ऊर्जा का निकलना ही तो है- एक ऐसी ऊर्जा जिसे हम अभी तक माप नहीं सके हैं |
पशुओं के सामूहिक संहार के क्रम में उनके दुख-दर्द से पैदा होते पे’न वेव्ज तथा इनके महाविनाशकारी कंपन को माप सकने वाली प्रौद्योगिकी या कोई यंत्र तैयार न होने के कारण इसे कब तक नाकारा जाएगा |
कई बार किसी स्थान विशेष पर यह प्राणऊर्जा बहुत लंबे समय तक स्थाई बनी रहती है जिसके कारण वहाँ लंबे समय तक भूकंप घटित होते रहते हैं !
सच्चाई पर प्रश्न -
जानकारी के अभाव में " भूगर्भवैज्ञानिकों को ये सिद्धांत भले समझ में न आवे किंतु इसकी सच्चाई और प्रमाणिकता को किसी भूगर्भवैज्ञानिक के समर्थन की आवश्यकता भी नहीं है | वैसे भी जिसने जिस विषय को पढ़ा ही नहीं है वह उस विषय में कुछ जानता ही नहीं होगा और जो जिस विषय को जानता ही नहीं है उसके समर्थन या विरोध का औचित्य ही क्या है ? जो जिस विषय के स्वभाव से सुपरिचित नहीं है ऐसे किसी अन्य विषय के विद्वान की सहमति लेनी आवश्यक भी नहीं होनी चाहिए !भूगर्भवैज्ञानिक भी तो अपने भूगर्भविज्ञान के आधार पर भी भूकंपों से संबंधित अनुसंधान को सुई की नोक के बराबर भी आगे नहीं बढ़ा सके हैं ऐसी परिस्थिति में भूकंपों से संबंधित अनुसंधान कार्यों में अभीतक असफल रहे लोगों की सहमति लेने का औचित्य ही क्या बचता है |
वैसे भी बिन ड्राइवर की कार, बिन तार का टेलीफोन, बिजली पैदा करने वाली समुद्री तरंग और रोजमर्रा के बरताव का हिस्सा बन चुकी ऐसी हजारों चीजों का एक ना एक दिन मजाक उड़ाया गया था, उनकी संभावना के बारे में जब कोई सिद्धांत रूप में अपनी बात रखता था तो उसका मजाक उड़ाया जाता था!बाद में उन्हीं विषयों या सिद्धांतों को मान्यता मिल गई |
निरपराध लोगों को मारा जाए तो वहाँ भूकंप आते हैं !पारियात्र पर्वत जिसे बाद में हिंदूकुश कहा जाने लगा था उत्तरी भारतीय उपमहाद्वीप पर अरबों-तुर्कों के क़ब्ज़े के बाद हिंदुओं को ग़ुलाम बनाकर इन पर्वतों से ले जाया जाता था और उनमें से बहुत यहाँ बर्फ़ में मर जाया करते थे बहुतों को मार दिया जाता था ! हिंदूकुश एक फ़ारसी शब्द है जिसका अर्थ हिंदुओं को मारने का स्थान ।बताया जाता है कि एक समय में यहाँ पर हिंदुओं का बड़ा संहार हुआ था तभी से पारियात्र पर्वत को हिंदूकुश कहा जाने लगा था !उस समय हिंदुओं की प्राणपीड़ा से वहाँ की प्रकृति विक्षुब्ध हो गई थी तब से लेकर आज तक इस क्षेत्र में अक्सर भूकंप आते रहते हैं जिसका केंद्र हिंदूकुश होता है |
कुल मिलाकर भूकंप तो कभी भी और कहीं भी आ सकते हैं और कितना भी बड़ा नुक्सान कर सकते हैं | भूकंपों को रोकने का तो कोई उपाय हो ही नहीं सकता किंतु इनके पूर्वानुमान के विषय में भी अभी तक विश्व वैज्ञानिक जगत सफलता शून्य है | लाचार है विश्व का भूकंप वैज्ञानिक समाज !भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगाना तो बहुत बड़ी बात है भूकंप आते क्यों हैं इसका भी अभी तक कोई विश्वसनीय उत्तर उपलब्ध नहीं है जो उत्तर दिए जा रहे हैं उनके समर्थन में दिए जाने वाले आधारभूत तर्क इतने छिछले और परिवर्तनशील हैं कि उन पर विश्वास कैसे किया जाए !इन तर्कों में सत्यता के साक्ष्य न होने पर भी हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है !पर्यावरण वैज्ञानिक कहते हैं कि पर्यावरण बिगड़ने से आते हैं भूकंप !धार्मिक लोग कहते हैं कि जब जब अधर्म बढ़ता है तब तब आते हैं भूकंप !ज्योतिष वैज्ञानिकों का मानना है कि मंगलशनि की युति या कुग्रहों के संयोग से आते हैं भूकंप !शकुनशास्त्र जानने वाले अपने अपने तर्क देते हैं जबकि भूकंपों के विषय में अभी तक कुछ भी न जान्ने वाले भूकंप वैज्ञानिक कहते हैं धरती के अंदर की प्लेटें खिसकती हैं इसलिए आते हैं भूकंप !किंतु सही किसे माना जाए और क्यों माना जाए !विश्वास करने योग्य कोई तर्क प्रमाण आदि दे नहीं पा रहा है हर कोई अपनी अपनी बातें कहे जा रहा है भूकंपों के पूर्वानुमान की घोषणा कोई कर नहीं पा रहा है जिससे ये पता लग सके कि सही कौन है और गलत कौन !
इन्हीं सभी कसौटियों पर कसे जाने पर भूकंप वैज्ञानिक अभी तक ये प्रूफ करने में असफल हैं कि वे भूकंपों के विषय में कुछ अलग से जानते हैं और कोई भरोसा करने योग्य बात बता सकते हैं मेरी जानकारी के अनुशार विश्व के देशों में भूकंपविज्ञान के लिए मंत्रालय संस्थान विभाग आदि जो भी बनाए गए हैं वो अभी तक अपनी सार्थकता सिद्ध करने में असफल रहे हैं ! हर कोई अपने अपने राग अलापे जा रहा है किंतु सामूहिक रूप से सभी के अनुभवों का समवेत अध्ययन करके कोई रिसर्च किया गया हो काम से काम मेरी जानकारी में तो ऐसा कुछ भी नहीं है !भूकंपों के विषय में बिना किसी कारण और प्रमाण के भी मतभिन्नता है अज्ञानता है किंतु ये तभी तक है जब तक भूकंपों के संबंध में सच्चाई सामने नहीं आ जाती है और पूर्वानुमान लगाने में सफलता नहीं मिल जाती है !
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