गुरुवार, 6 फ़रवरी 2020

प्राकृतिक तारतम्य !

    प्रकृति की तरह ही मनुष्यादि जातियों में भी गर्भकाल अलग अलग हो सकता है किंतु प्रक्रिया यही रहती है वहाँ भी गर्भकाल के प्रारंभिक समय में गर्भ लक्षण दिखाई भले न पड़ें किंतु धीरे धीरे जैसे जैसे समय बीतते जाता है गर्भ लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं जिन्हें देखकर विशेषज्ञ लोग इस बात का अंदाजा लगा लिया करते हैं कि इस गर्भ को अभी कितने महीने बीते होंगे उसके साथ ही इस बात का पूर्वानुमान भी लगा लेते हैं कि इस गर्भ का प्रसव लगभग कितने सप्ताह बाद होगा !किंतु यह पूर्वानुमान लगाना हर किसी के बश की बात नहीं होती है यह तो केवल कोई विशेषज्ञ ही लगा सकता है |
      जिस प्रकार से इस चराचर संसार में प्रत्येक द्रव्य इन्हीं पाँचोंतत्वों से निर्मित होता है इसी प्रकार से प्रकृति में घटित होने वाली घटनाओं के निर्माण में भी इन पाँचों तत्वों की संयुक्त भूमिका होती है |विशेष बात यह है कि पृथ्वी और आकाश तो स्थिर होते हैं इसलिए ये दोनों तत्व हमेंशा एक जैसे ही बने रहते हैं इसलिए प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने न होने के विषय में इनकी कोई बड़ी भूमिका नहीं होती है किंतु इनके अतिरिक्त जो और बाकी बचे हुए वायु अग्नि और जल आदि तीन तत्व हैं ये हमेंशा घटते बढ़ते रहते हैं |इसलिए जब तक ये तीनों साम्यावस्था में बने रहते हैं तब तक सब कुछ व्यवस्थित बना रहता है सर्दी गर्मी और वर्षा अपने अपने समय पर उचित मात्रा में होती रहती है और जैसे ही इनका आपसी अनुपात बिगड़ने लगता है वैसे ही प्राकृतिक आपदाओं का निर्माण होने लगता है !तरह तरह के रोग पैदा होने लगते हैं !आयुर्वेद में इन्हीं तीनों तत्वों को वात ,पित्त और कफ के रूप में समझाया गया है !किसी के जीवन में जब तक ये साम्यावस्था में बने रहते हैं तब तक कोई रोग नहीं होता है अर्थात वो स्वस्थ बना रहता है इनका आपसी आपात बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगता है | ऐसी परिस्थिति में इन्हीं तत्वों को साम्यावस्था में लाने के लिए उस उस प्रकार की औषधियाँ दी जाती हैं जिनसे ये तत्व पुनः उचित अनुपात में व्यवस्थित हो जाते हैं और शरीर पुनः स्वस्थ हो जाता है |
      आकाश और पृथ्वी ये दोनों तत्व बिल्कुल शांत हैं दोनों में अंतर केवल इतना है कि इन पाँच तत्वों में आकाश बिल्कुल शून्य अर्थात रिक्त है और पृथ्वी इनमें सबसे अधिक कठोर एवं ठोस है |इसलिए वायु के साहचर्य से पृथ्वी और आकाश में घटित होने वाली घटनाओं में पृथ्वी के ठोसपन और आकाश के अवकाश का उपयोग वायु कर रहा होता है |इसी वायु के साहचर्य से पृथ्वी और आकाश में ये समस्त प्रकार की घटनाएँ घटित होरही होती हैं |
     आकाश न किसी वस्तु को खींचता है और न ही छोड़ता है ये विल्कुल शांत है फिर भी आकाश में वर्षा बादल आँधी तूफ़ान से लेकर पक्षियों का उड़ना, विमानों का उड़ना सूर्य चंद्र आदि समस्त ग्रहों का संचार ऐसी अनेकों प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं वायु के सहयोग से आकाश में ऐसी घटनाएँ घटित हुआ करती हैं |ये सब आकाशगत वायु के बल से ही संभव हो पाती हैं | 
     पृथ्वी तो स्वयं में शांत है किंतु जिस प्रकार से आकाशीय घटनाओं के घटित होने में आकाश के अवकाश का उपयोग मात्र होता है किंतु उसमें आकाश की कोई भूमिका नहीं होती है  उसी प्रकार से भूकंप आदि पृथ्वी में घटित होने वाली घटनाओं में आधार स्वरूपा पृथ्वी का उपयोग मात्र होता है किंतु भूकंप जैसी घटनाएँ वायु के साहचर्य से घटित हो रही होती हैं इसमें पृथ्वी की कोई भूमिका नहीं होती है अपितु ये पृथ्वीगत वायु का बल है | | 
      इसीप्रकार से समुद्र में घटित होने वाली ज्वार भाँटा आदि क्रियाओं का कारण भी वायु है जो एक निश्चित  समय पर जल को उछाला करती है | कुछ लोगों को लगता है कि चंद्रमा के आकर्षण के कारण समुद्र के जल में उछाल आता है यदि ऐसा होता तो केवल समुद्रों में ही क्यों नदियों तालाबों के जल  में भी उछाल दिखना चाहिए था किंतु ऐसा होते तो कभी देखा नहीं जाता है जबकि समुद्र में उठती हुई लहरें तो सबको दिखाई पड़ती हैं | वैसे भी वायु तो सभी जल में होती है जलस्थ वायु अंदर से बाहर की ओर उत्प्रेरित किया करती है ये समुद्रगत वायुबल है | सुनामी जैसी घटनाएँ भी समुद्रस्थ वायु के प्रभाव से ही घटित होती हैं !इसका स्पष्ट प्रभाव तब पता चलता है जब कभी कभी बिना भूकंप के भी सुनामी जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं !ऐसे समय में उन्हें बहुत आश्चर्य होता है जो यह धारणा बनाए बैठे हैं कि सुनामी के घटित होने का कारण भूकंप ही है |ऐसा ही आश्चर्य उन्हें तब भी होता है जब  समुद्री क्षेत्र में भूकंप आने के बाद भी सुनामी जैसी घटना घटित नहीं होती है | इससे यह बात पूरी तरह स्पष्ट हो जाती है कि भूकंप और सुनामी का आपस में कोई संबंध नहीं है अपितु पृथ्वी गत वायु के प्रकोप से भूकंप घटित होता है और समुद्रगत वायु के प्रकोप से सुनामी घटित होती है |अक्सर भूकंप और सुनामी की घटनाएँ साथ साथ घटित होते दिखाई पड़ती हैं इसलिए ये भ्रम होना स्वाभाविक ही है कि सुनामी जैसी घटनाएँ भूकंप के कारण ही घटित होती हैं | 
      कुछ विदेशी और स्वदेशी विद्वानों का कहना है कि पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण है किंतु यदि ऐसा होता तो ज्वार भाँटा जैसी समुद्री घटनाओं के घटित होने में चंद्र के प्रभाव कारण नहीं माना जा सकता है क्योंकि पृथ्वी का इतना भारी भरकम गुरुत्व उसी का प्रभाव समुद्र पर पड़ेगा !वैसे भी चन्द्रमा तो पृथ्वी से बहुत दूर है उसके आकर्षण से पृथ्वी पर स्थित समुद्री जल में ज्वार भाँटा जैसी घटनाएँ कैसे घटित हो सकती हैं |
      पृथ्वी गोल है तथा वो अपनी धुरी पर तो घूमती ही है इसके साथ ही सूर्य का चक्कर भी लगाती है ऐसा माना  जाता है !ऐसी परिस्थिति में गोल पृथ्वी की संपूर्ण सतह ऊपर नीचे आया जाया करती है | पृथ्वी की सतह में जल का भाग अधिक है और जल का स्वभाव ऊपर से नीचे की ओर जाना है ऐसे परिस्थिति में पृथ्वी के परिभ्रमण क्रम में समुद्री जल का ज्वार भाँटा के नाम पर चंद्राकर्षण से उछलने की अपेक्षा पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से पृथ्वी की स्थल सतह पर चारों ओर उस जल को फैल जाना चाहिए किंतु ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है | 
      गुरुत्वाकर्षण के कारण हवाई जहाजों को पृथ्वी में ही चिपका रहना चाहिए वे उड़ कैसे सकते हैं क्योंकि जिस वायु बल से वे उड़ते हैं उस वायु में ये क्षमता नहीं होती है कि वह गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव को कम कर सके |
      यदि भारी वस्तु का आकर्षण पृथ्वी करती है यह सिद्धांत ही यदि स्वीकार किया जाए तो एक एक बार में बड़ी बड़ी नदियों के जितना भारी भरकम जल लेकर उड़ने वाले बादल जलभार के कारण पृथ्वी पर गिर क्यों नहीं जाते हैं |
       आकाश में पानी तीन रूपों में रहता है एक तो भाफ के रूप में दूसरा ओले आदि बर्फ के रूप में तो तीसरा जल के रूप में ! ऐसी परिस्थिति में भाफ रूप में स्थित जल भले ही आकाश में स्थिर रह सकता हो किंतु ओले आदि बर्फ या जल के रूप में जो भार बादलों में होता है उसे तो पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण बल से पृथ्वी पर खिंचा चला आना चाहिए |
       पृथ्वी का निर्माण किसी एक तत्व से नहीं हुआ है इसमें सभी तत्व  सम्मिलित हैं जिसका जल भी एक अंग है और वह भी बड़ा भाग है जल आदि द्रव एवं मिटटी पत्थर आदि द्रव्य ही भार वाले हैं इसके अलावा हवा और आग इनका कोई विशेष भार नहीं होता है ऐसी परिस्थिति में पृथ्वी अपने गुरुत्वाकर्षण से समुद्र के जल को अपने से चिपकाकर कैसे रख सकती है क्योंकि पृथ्वी के आस्तित्व में जल भी सम्मिलित है इसलिए जल का आकर्षण कैसे संभव है |

कोई टिप्पणी नहीं: