'समयविज्ञान' और भूकंप (भूकंप भी कुछ कहते हैं !)
समय ही ऊर्जा है !
समय सबसे बड़ी ऊर्जा है इसी ऊर्जा के द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड उसी प्रकार से संचालित हो रहा है जिस प्रकार से घर में लगे अनेकों प्रकार के बिजली से चलने वाले विभिन्न प्रकार के उपकरण एक ही ऊर्जा से संचालित हुआ करते हैं | उनमें से कई उपकरण एक दूसरे के विरोधी स्वभाव के भी होते हैं किंतु वे दोनों प्रकार के उपकरण जिस ऊर्जा से संचालित होते हैं वह एक ही ऊर्जा उन दोनों में सामान रूप से प्रवहित हो रही होती है | उसी ऊर्जा से चलने वाला हीटर यदि गर्मी देता है तो एयरकंडीशनर ठंढक देता है दोनों यंत्र परस्पर विरोधी स्वभाव के हैं किंतु वे दोनों एक ही ऊर्जा से संचालित होते हैं |ऐसे ही और भी जितने प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं उन सबके अलग अलग कार्य हैं किंतु वे सभी एक ही ऊर्जा से संचालित हो रको हे होते हैं |
जिस प्रकार से बिजली के तारों में प्रवहित बिजली तारों को देखने से तो दिखाई नहीं पड़ती है बिजली संबंधी उपकरणों को चलता हुआ देखकर इस बात का अनुमान लगा लिया जाता है कि इन तारों में बिजली है |
इसीप्रकार से समय बीत रहा है यह जानते हुए भी बीतता हुआ समय दिखालाई नहीं पड़ता है किंतु प्रकृति और जीवन में हो रहे बदलावों को देखकर बीतते हुए समय के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है |जो जैसा पहले था वह वैसा आज नहीं है यह समय बीतने का लक्षण है क्योंकि उस समय में वह ऐसा था किंतु इस समय में वह वैसा नहीं है समय बीतने के कारण उसमें अंतर आ गया है |
किसी दवा में या खाद्यपदार्थ आदि में जो एक्सपायरी डेट लिखी जाती है उसका आशय भी यही है कि इस समय इसका जो स्वरूप है वह उस समय में वैसा नहीं रहेगा | \
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि समय केवल स्वरूप परिवर्तन ही नहीं करता है स्वभाव एवं गुणों में भी परिवर्तन कर देता है | जो गन्ने का पौधा एक समय बिल्कुल मीठा नहीं होता है वही कुछ समय बीतने के बाद मीठा हो जाता है | आम के जिस फल का स्वाद एक समय में बहुत खट्टा लगता है वही फल कुछ समय बीतने के बाद बहुत मीठा लगने लग जाता है |ऐसा अन्य फलों के साथ भी होते देखा जाता है |
एक समय में जिन दो लोगों के बीच मित्रता के संबंध बनते देखे जाते हैं दूसरे समय में उन्हीं दो लोगों के आपसी संबंध कटुता में बदल जाते हैं | जबकि वे दोनों लोग एक दूसरे के जिस शरीर विद्या बुद्धि सुंदरता आदि गुणों से प्रभावित होकर एक दूसरे से मित्रता करते हैं उन सारे गुणों के वैसे ही बने रहने के बाद भी उनके आपसी संबंधों के बिगड़ने का एक मात्र कारण समय होता है | जब मित्रता का समय था तब मित्रता हुई और जब वह समय नहीं रहा तब संबंध बिगड़ने लगे | उसके बाद दुबारा जब मित्रता वाला समय आता है तब वे दोनों फिर एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक रहने लगते हैं | कई तलाकशुदा लोग एक दूसरे से पुनः विवाह रचा लेते हैं ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने का कारण समय ही है |
एक समय होता है जब व्यक्ति स्वस्थ होता है दूसरे समय वही व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है और पुनः कुछ समय बाद स्वस्थ हो जाता है उस मनुष्य के स्वस्थ और अस्वस्थ होने का कारण समय है चिकित्सा सविविधाओं से संपन्न लोग अपने स्वस्थ होने का श्रेय चिकित्सा और औषधियों को देते देखे जाते हैं किंतु जंगलों में जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ बिल्कुल नहीं हैं वे भी अस्वस्थ होने के बाद स्वस्थ होते हैं उनके भी शरीरों में लगे हुए घाव ठीक होते देखे जाते हैं |जब अस्वस्थ होने या घायल होने का समय आया तब जो लोग घायल हुए स्वस्थ होने का समय आने पर वही लोग स्वस्थ हो जाते हैं |जिन रोगियों के जीवन में स्वस्थ होने का समय लौटकर नहीं आता वे चिकित्सा सुविधाओं से सभी प्रकार से संपन्न होने पर भी कई कई वर्ष तक रोगी रहते कुछ रोगी तो आजीवन ही अस्वस्थ रहते हुए देखे जाते हैं |
एक समय में कुछ लोग बहुत गरीब होते हैं वही लोग अपनी उसी विद्या बुद्धि परिश्रम प्रयास पूर्वक एक समय बहुत उँचाइयाँ चूमने लगते हैं कुछ लोग उन्हीं पदों प्रतिष्ठाओं को आजीवन प्राप्त करते रहते हैं तो कुछ लोग अचानक सारा वैभव खो देते हैं और भयंकर गरीबी के शिकार हो जाते हैं | इस प्रकार के ऐसे सभी बदलाव समय के कारण होते हैं जब जैसा समय तब तैसा बदलाव होते देखा जाता है |
किसी वृक्ष को कितना भी खाद पानी क्यों न दिया जाए किंतु अपनी ऋतु आए बिना वे फूल फल नहीं देते हैं उनकी दृष्टि में समय का इतना अधिक महत्त्व होता है | कई बार अच्छे अच्छे हरे भरे कुछ वृक्षों को उनकी अपनी ऋतु में भी फूलते फलते नहीं देखा जाता है | क्योंकि ऋतू आने पर भी वो उनके अपने फूलने फलने का समय नहीं होता है उस लिए वे नहीं फूलते फलते हैं |
इसी प्रकार कई बार पति पत्नी दोनों के स्वस्थ रहने पर भी उन दोनों से कोई संतान होते नहीं देखी जाती है ये उनके अपने जीवन पर पड़ने वाला समय का प्रभाव है |
जिन लोगों का यह मानना है कि कठोर परिश्रम पूर्वक प्रयास करने से ही लक्ष्य प्राप्त होता है उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि कई लोग आजीवन अत्यंत कठोर परिश्रम किया करते हैं फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं तो कुछ लोग सामान्य प्रयासों से ही अत्यंत ऊँचे ऊँचे स्थानों पर पहुँच जाते हैं |
प्रयासों का परिणाम तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है जब अत्यंत प्रयास करने के बाद भी लोग असफल होते देखे जाते हैं | ऐसे ही चिकित्सक अपनी समस्त चिकित्सा सुविधाओं के साथ किसी रोगी की चिकित्सा का रहे होते हैं इसके बाद भी उन्हें मरते देखा जाता है |
यह तो सच है कि जीवन में कभी कोई असफल होने या मरने के लिए प्रयत्न नहीं करता है इसके बाद भी उसे असफल होते या मृत्यु को प्राप्त होते देखा जाता है | कई काम बनाने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं किंतु वे बिगड़ जाते हैं ऐसे प्रकरणों में समय की शक्ति के स्पष्ट दर्शन हो रहे होते हैं जब प्रयास के विरुद्ध परिणाम मिल रहे होते हैं |यदि प्रयास के अनुशार परिणाम मिल जाते हैं तब तो यह भ्रम होना स्वाभाविक ही है कि यह कार्य मैंने किया है |
इसलिए हमें हमेंशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रकृति और जीवन में बहुत सारी घटनाएँ इस प्रकार की घटित होती हैं जो मानवी प्रयासों से संभव भी नहीं हैं इसके बाद भी वे घटनाएँ घटित होती हैं !भूकंप आँधी तूफ़ान ,बाढ़ ज्वार भाँटा आदि बड़ी बड़ी घटनाएँ किसी मनुष्य के प्रयास से नहीं अपितु समय के प्रवाह से घटित होती हैं |
चंद्रयान 2 के लिए विद्वान वैज्ञानिकों के द्वारा सभी प्रयास किए गए इसके बाद भी उस प्रकार की सफलता नहीं मिल पाई जैसा लक्ष्य रखकर इस प्रयास को प्रारंभ किया गया था !इसका कारण प्रयास तो पूरे किए गए किंतु समय की अनदेखी की गई जबकि परिणाम तो समय के ही आधीन होते हैं |
इसीलिए गीता में भगवन श्रीकृष्ण ने कहा कर्म करो फल की इच्छा मत करो क्योंकि उन्हें पता था कि फल किसी के कर्म के अनुशार नहीं अपितु समय के अनुशार मिलता है |कुल मिलाकर इस संसार में जहाँ जहाँ जो जो कुछ भी प्रकृति से लेकर जीवन तक घटित हो रहा है उन सबके लिए शक्तिस्रोत एक मात्र समय रूपी ऊर्जा ही है | उसके पीछे समय की शक्ति ही काम कर रही है | सूर्यादि ग्रह हों या कि नक्षत्र तारामंडल आदि सभी समय के सूत्र में पिरोये हुए हैं समय की प्रेरणा से ही ये सभी अपने अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं |
जिस प्रकार से इस संसार में प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति आदि के निर्मित होने या पैदा होने का समय है उसी प्रकार से हर वस्तु या व्यक्ति आदि के समाप्त होने का भी समय सुनिश्चित है सभी घटनाएँ अपने अपने समय पर घटित होती चली जा रही हैं | सभी के जन्म लेने विस्तार पाने एवं समाप्त होने की घटनाएँ समयानुसार घटित होती जा रही हैं | व्यवहार में भी ऐसा ही देखा जाता है कि जिस वस्तु का जब निर्माण होता है उसके नष्ट होने का समय निर्माण के साथ ही निश्चित कर दिया जाता है इसीलिए तो एक्पायरी डेट लिखी जाती है | वह डेट भी तो समय का ही स्वरूप है |
समय एक जैसा कभी नहीं रहता है ये प्रत्येक क्षण बदलता रहता हैं चूँकि समय दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए बदलते हुए समय के प्रभाव से समय बदलने के साथ साथ प्रकृति की प्रत्येक वस्तु आदि में जो बदलाव आते हैं मौसम संबंधी घटनाओं या जीवन से संबंधित स्वास्थ्य मन भाव स्वाद पसंद परिस्थितियों आदि में जो बदलाव होते हैं उन्हें देखकर समय के बदलते रहने का अनुभव होता रहता है |
कभी हवाएँ शांत होती हैं तो कभी भीषण तूफ़ान आ रहे होते हैं,कभी खूब गर्मी से ग्लेश्यिर पिघल रहे होते हैं तो कभी खूब सर्दी से बर्फबारी हो रही होती है |कभी गरमी के कारण नदी तालाब आदि सभी सूख रहे होते हैं तो कभी भीषण बाढ़ घटित होते दिखाई देती है !
में साथ भी नहीं दिखाई पड़ता है किंतु समय के प्रभाव समय इसमें बदलाव हमेंशा होते रहते ये हमेंशा समय का प्रभाव सब पर पड़ता है इसीलिए कोई व्यक्ति वस्तु स्वभाव स्वास्थ्य संबंध स्वाद पसंद आदि हर समय एक जैसे नहीं रहते हैं समय जब जैसा बदलता जाता है तब वैसा असर उन सबों पर पड़ता जाता है कितनी किसी वस्तु का क्षय समय के प्रभाव से ही होता है |
इस सृष्टि में कब किसका समय की किन परिस्थितियों में निर्माण हुआ था और किस समय में किन परिस्थितियों में किसमें किस प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाएँगे कब किसका क्षय होगा ये सभी समय से संचालित हो रहे है|समस्त जीव जंतुओं पेड़ पौधों वृक्षों बनस्पतियों नदियों झीलों समुद्रों पहाड़ों तक कौन कब तक रहेगा किसका कब कितना स्वरूप परिवर्तन होगा ये सबकुछ समय के आधीन है |
प्रकृति और परिवर्तन समय ही ऊर्जा है !
समय सबसे बड़ी ऊर्जा है इसी ऊर्जा के द्वारा संपूर्ण ब्रह्मांड उसी प्रकार से संचालित हो रहा है जिस प्रकार से घर में लगे अनेकों प्रकार के बिजली से चलने वाले विभिन्न प्रकार के उपकरण एक ही ऊर्जा से संचालित हुआ करते हैं | उनमें से कई उपकरण एक दूसरे के विरोधी स्वभाव के भी होते हैं किंतु वे दोनों प्रकार के उपकरण जिस ऊर्जा से संचालित होते हैं वह एक ही ऊर्जा उन दोनों में सामान रूप से प्रवहित हो रही होती है | उसी ऊर्जा से चलने वाला हीटर यदि गर्मी देता है तो एयरकंडीशनर ठंढक देता है दोनों यंत्र परस्पर विरोधी स्वभाव के हैं किंतु वे दोनों एक ही ऊर्जा से संचालित होते हैं |ऐसे ही और भी जितने प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं उन सबके अलग अलग कार्य हैं किंतु वे सभी एक ही ऊर्जा से संचालित हो रको हे होते हैं |
जिस प्रकार से बिजली के तारों में प्रवहित बिजली तारों को देखने से तो दिखाई नहीं पड़ती है बिजली संबंधी उपकरणों को चलता हुआ देखकर इस बात का अनुमान लगा लिया जाता है कि इन तारों में बिजली है |
इसीप्रकार से समय बीत रहा है यह जानते हुए भी बीतता हुआ समय दिखालाई नहीं पड़ता है किंतु प्रकृति और जीवन में हो रहे बदलावों को देखकर बीतते हुए समय के विषय में अनुमान लगा लिया जाता है |जो जैसा पहले था वह वैसा आज नहीं है यह समय बीतने का लक्षण है क्योंकि उस समय में वह ऐसा था किंतु इस समय में वह वैसा नहीं है समय बीतने के कारण उसमें अंतर आ गया है |
किसी दवा में या खाद्यपदार्थ आदि में जो एक्सपायरी डेट लिखी जाती है उसका आशय भी यही है कि इस समय इसका जो स्वरूप है वह उस समय में वैसा नहीं रहेगा | \
इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि समय केवल स्वरूप परिवर्तन ही नहीं करता है स्वभाव एवं गुणों में भी परिवर्तन कर देता है | जो गन्ने का पौधा एक समय बिल्कुल मीठा नहीं होता है वही कुछ समय बीतने के बाद मीठा हो जाता है | आम के जिस फल का स्वाद एक समय में बहुत खट्टा लगता है वही फल कुछ समय बीतने के बाद बहुत मीठा लगने लग जाता है |ऐसा अन्य फलों के साथ भी होते देखा जाता है |
एक समय में जिन दो लोगों के बीच मित्रता के संबंध बनते देखे जाते हैं दूसरे समय में उन्हीं दो लोगों के आपसी संबंध कटुता में बदल जाते हैं | जबकि वे दोनों लोग एक दूसरे के जिस शरीर विद्या बुद्धि सुंदरता आदि गुणों से प्रभावित होकर एक दूसरे से मित्रता करते हैं उन सारे गुणों के वैसे ही बने रहने के बाद भी उनके आपसी संबंधों के बिगड़ने का एक मात्र कारण समय होता है | जब मित्रता का समय था तब मित्रता हुई और जब वह समय नहीं रहा तब संबंध बिगड़ने लगे | उसके बाद दुबारा जब मित्रता वाला समय आता है तब वे दोनों फिर एक दूसरे के साथ प्रेम पूर्वक रहने लगते हैं | कई तलाकशुदा लोग एक दूसरे से पुनः विवाह रचा लेते हैं ऐसी परिस्थितियाँ पैदा होने का कारण समय ही है |
एक समय होता है जब व्यक्ति स्वस्थ होता है दूसरे समय वही व्यक्ति अस्वस्थ हो जाता है और पुनः कुछ समय बाद स्वस्थ हो जाता है उस मनुष्य के स्वस्थ और अस्वस्थ होने का कारण समय है चिकित्सा सविविधाओं से संपन्न लोग अपने स्वस्थ होने का श्रेय चिकित्सा और औषधियों को देते देखे जाते हैं किंतु जंगलों में जहाँ चिकित्सा सुविधाएँ बिल्कुल नहीं हैं वे भी अस्वस्थ होने के बाद स्वस्थ होते हैं उनके भी शरीरों में लगे हुए घाव ठीक होते देखे जाते हैं |जब अस्वस्थ होने या घायल होने का समय आया तब जो लोग घायल हुए स्वस्थ होने का समय आने पर वही लोग स्वस्थ हो जाते हैं |जिन रोगियों के जीवन में स्वस्थ होने का समय लौटकर नहीं आता वे चिकित्सा सुविधाओं से सभी प्रकार से संपन्न होने पर भी कई कई वर्ष तक रोगी रहते कुछ रोगी तो आजीवन ही अस्वस्थ रहते हुए देखे जाते हैं |
एक समय में कुछ लोग बहुत गरीब होते हैं वही लोग अपनी उसी विद्या बुद्धि परिश्रम प्रयास पूर्वक एक समय बहुत उँचाइयाँ चूमने लगते हैं कुछ लोग उन्हीं पदों प्रतिष्ठाओं को आजीवन प्राप्त करते रहते हैं तो कुछ लोग अचानक सारा वैभव खो देते हैं और भयंकर गरीबी के शिकार हो जाते हैं | इस प्रकार के ऐसे सभी बदलाव समय के कारण होते हैं जब जैसा समय तब तैसा बदलाव होते देखा जाता है |
किसी वृक्ष को कितना भी खाद पानी क्यों न दिया जाए किंतु अपनी ऋतु आए बिना वे फूल फल नहीं देते हैं उनकी दृष्टि में समय का इतना अधिक महत्त्व होता है | कई बार अच्छे अच्छे हरे भरे कुछ वृक्षों को उनकी अपनी ऋतु में भी फूलते फलते नहीं देखा जाता है | क्योंकि ऋतू आने पर भी वो उनके अपने फूलने फलने का समय नहीं होता है उस लिए वे नहीं फूलते फलते हैं |
इसी प्रकार कई बार पति पत्नी दोनों के स्वस्थ रहने पर भी उन दोनों से कोई संतान होते नहीं देखी जाती है ये उनके अपने जीवन पर पड़ने वाला समय का प्रभाव है |
जिन लोगों का यह मानना है कि कठोर परिश्रम पूर्वक प्रयास करने से ही लक्ष्य प्राप्त होता है उन्हें यह भी सोचना चाहिए कि कई लोग आजीवन अत्यंत कठोर परिश्रम किया करते हैं फिर भी सफल नहीं हो पाते हैं तो कुछ लोग सामान्य प्रयासों से ही अत्यंत ऊँचे ऊँचे स्थानों पर पहुँच जाते हैं |
प्रयासों का परिणाम तब और अधिक स्पष्ट हो जाता है जब अत्यंत प्रयास करने के बाद भी लोग असफल होते देखे जाते हैं | ऐसे ही चिकित्सक अपनी समस्त चिकित्सा सुविधाओं के साथ किसी रोगी की चिकित्सा का रहे होते हैं इसके बाद भी उन्हें मरते देखा जाता है |
यह तो सच है कि जीवन में कभी कोई असफल होने या मरने के लिए प्रयत्न नहीं करता है इसके बाद भी उसे असफल होते या मृत्यु को प्राप्त होते देखा जाता है | कई काम बनाने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं किंतु वे बिगड़ जाते हैं ऐसे प्रकरणों में समय की शक्ति के स्पष्ट दर्शन हो रहे होते हैं जब प्रयास के विरुद्ध परिणाम मिल रहे होते हैं |यदि प्रयास के अनुशार परिणाम मिल जाते हैं तब तो यह भ्रम होना स्वाभाविक ही है कि यह कार्य मैंने किया है |
इसलिए हमें हमेंशा इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि प्रकृति और जीवन में बहुत सारी घटनाएँ इस प्रकार की घटित होती हैं जो मानवी प्रयासों से संभव भी नहीं हैं इसके बाद भी वे घटनाएँ घटित होती हैं !भूकंप आँधी तूफ़ान ,बाढ़ ज्वार भाँटा आदि बड़ी बड़ी घटनाएँ किसी मनुष्य के प्रयास से नहीं अपितु समय के प्रवाह से घटित होती हैं |
चंद्रयान 2 के लिए विद्वान वैज्ञानिकों के द्वारा सभी प्रयास किए गए इसके बाद भी उस प्रकार की सफलता नहीं मिल पाई जैसा लक्ष्य रखकर इस प्रयास को प्रारंभ किया गया था !इसका कारण प्रयास तो पूरे किए गए किंतु समय की अनदेखी की गई जबकि परिणाम तो समय के ही आधीन होते हैं |
इसीलिए गीता में भगवन श्रीकृष्ण ने कहा कर्म करो फल की इच्छा मत करो क्योंकि उन्हें पता था कि फल किसी के कर्म के अनुशार नहीं अपितु समय के अनुशार मिलता है |कुल मिलाकर इस संसार में जहाँ जहाँ जो जो कुछ भी प्रकृति से लेकर जीवन तक घटित हो रहा है उन सबके लिए शक्तिस्रोत एक मात्र समय रूपी ऊर्जा ही है | उसके पीछे समय की शक्ति ही काम कर रही है | सूर्यादि ग्रह हों या कि नक्षत्र तारामंडल आदि सभी समय के सूत्र में पिरोये हुए हैं समय की प्रेरणा से ही ये सभी अपने अपने दायित्वों का निर्वाह कर रहे हैं |
जिस प्रकार से इस संसार में प्रत्येक वस्तु या व्यक्ति आदि के निर्मित होने या पैदा होने का समय है उसी प्रकार से हर वस्तु या व्यक्ति आदि के समाप्त होने का भी समय सुनिश्चित है सभी घटनाएँ अपने अपने समय पर घटित होती चली जा रही हैं | सभी के जन्म लेने विस्तार पाने एवं समाप्त होने की घटनाएँ समयानुसार घटित होती जा रही हैं | व्यवहार में भी ऐसा ही देखा जाता है कि जिस वस्तु का जब निर्माण होता है उसके नष्ट होने का समय निर्माण के साथ ही निश्चित कर दिया जाता है इसीलिए तो एक्पायरी डेट लिखी जाती है | वह डेट भी तो समय का ही स्वरूप है |
समय एक जैसा कभी नहीं रहता है ये प्रत्येक क्षण बदलता रहता हैं चूँकि समय दिखाई नहीं पड़ता है इसलिए बदलते हुए समय के प्रभाव से समय बदलने के साथ साथ प्रकृति की प्रत्येक वस्तु आदि में जो बदलाव आते हैं मौसम संबंधी घटनाओं या जीवन से संबंधित स्वास्थ्य मन भाव स्वाद पसंद परिस्थितियों आदि में जो बदलाव होते हैं उन्हें देखकर समय के बदलते रहने का अनुभव होता रहता है |
कभी हवाएँ शांत होती हैं तो कभी भीषण तूफ़ान आ रहे होते हैं,कभी खूब गर्मी से ग्लेश्यिर पिघल रहे होते हैं तो कभी खूब सर्दी से बर्फबारी हो रही होती है |कभी गरमी के कारण नदी तालाब आदि सभी सूख रहे होते हैं तो कभी भीषण बाढ़ घटित होते दिखाई देती है !
में साथ भी नहीं दिखाई पड़ता है किंतु समय के प्रभाव समय इसमें बदलाव हमेंशा होते रहते ये हमेंशा समय का प्रभाव सब पर पड़ता है इसीलिए कोई व्यक्ति वस्तु स्वभाव स्वास्थ्य संबंध स्वाद पसंद आदि हर समय एक जैसे नहीं रहते हैं समय जब जैसा बदलता जाता है तब वैसा असर उन सबों पर पड़ता जाता है कितनी किसी वस्तु का क्षय समय के प्रभाव से ही होता है |
इस सृष्टि में कब किसका समय की किन परिस्थितियों में निर्माण हुआ था और किस समय में किन परिस्थितियों में किसमें किस प्रकार के परिवर्तन होते देखे जाएँगे कब किसका क्षय होगा ये सभी समय से संचालित हो रहे है|समस्त जीव जंतुओं पेड़ पौधों वृक्षों बनस्पतियों नदियों झीलों समुद्रों पहाड़ों तक कौन कब तक रहेगा किसका कब कितना स्वरूप परिवर्तन होगा ये सबकुछ समय के आधीन है |
भूकंप आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ हैं उनके घटित होने से जो हानि या लाभ होता है वो तो होता है ही उसके साथ ही साथ वे कुछ अन्य दायित्वों का निर्वाह भी कर रही होती हैं |एक तो वे अपने से पहले घटित हो चुकी और बाद में घटित होने वाली कुछ प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सूचना दे रही होती हैं दूसरी बात उनके कारण प्रकृति एवं देश और समाज में हो रहे या होने वाले कुछ संभावित परिवर्तनों की सूचना दे रही होती हैं |
परिवर्तन प्रकृति का नियम है परिवर्तनों को देखकर ही इस बात का अनुभव होता है कि समय ब्यतीत हो रहा है इसीलिए इस संसार में कुछ भी ऐसा नहीं है जो कि परिवर्तनशील न हो । प्रकृति' का अर्थ ही ‘परिवर्तन’ है। जिसमें परिवर्तन न हो वह प्रकृति नहीं है। प्रकृति तभी तक जीवित है जब तक उसमें परिवर्तन होता रहे।भू तत्व, वायु तत्त्व, जल तत्त्व और अग्नि तत्व ही हमारे शरीर के मूल तत्व हैं।संसार की सभी वस्तुयें प्रकृति के अधीन होती हैं। यहां तक कि हमारा शरीर भी प्रकृति के आधीन होने के कारण यह भी नित्य परिवर्तनशील है।
प्रकृति में परिवर्तनशीलता का मुख्य कारण सूर्य है ऐसा इसलिए लगता है क्योंकि सूर्य प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है जो लोग परिवर्तनों को प्रत्यक्ष या यंत्रों से दिखाई पड़ने पर ही उन्हें सच मानते हैं उन्हें सारे परिवर्तन सूर्य के द्वारा होते हुए दीखते हैं | उन्हें लगता है कि पृथ्वी के सूर्य के चारों ओर भ्रमण करते रहने से पृथ्वी को प्रभावित करने वाली ऊर्जा के परिमाण में न्यूनाधिक वृद्धि के कारण विकारित होनेवाले चुम्बकीय क्षेत्रों के विस्तार का प्रभाव निरंतर परिवर्तित होते रहने से ही प्रकृति में परिवर्तन संभव हो पाता है।
इस प्रकार का चिंतन करने वालों को लगता है कि बसंत ऋतु के प्रभाव से पेड़ों में पतझड़ होने लगता है और नई नई कोपलें फूटने लगती हैं | वर्षाऋतु होते ही आकाश में बादल उमड़ घुमड़ कर बरसने लग जाते हैं सूर्य के उगने पर कमल खिलता है और सूर्य के अस्त होने पर कमल का पुष्प बंद हो जाता है |ऋतुओं का निर्माण तथा कमल का खिलना और बंद होना यदि सूर्य के आधीन है तो सूर्य किसके आधीन है क्योंकि सूर्य स्वतंत्र नहीं है | यदि इन परिवर्तनों का कारण सूर्य होता तो परिवर्तन के इस नियम में वह स्वयं सम्मिलित नहीं होता किंतु परिवर्तन तो स्वयं सूर्य के भी आकार प्रकार संचार आदि में होते रहते हैं इसलिए ये परिवर्तन सूर्यकृत नहीं हो सकते !
सूर्य और चंद्र तो एक प्राकृतिक घटीयंत्र की तरह हैं इनका काम समय की सूचना देना मात्र है जैसे आधुनिक घड़ी में घंटा मिनट आदि की अलग अलग सूचना देने वाली दो सुइयाँ होती हैं एक सुई घंटे की जानकारी देती है तो दूसरी मिनटों की | ऐसे ही प्रकृति घड़ी में सूर्य महीनों की जानकारी देता है तो चंद्र दिनों के बीतने की सूचना देता है किंतु जिस प्रकार से घड़ी के बंद हो जाने से समय की गति रुक नहीं जाती है उसी प्रकार से सूर्य और चंद्र यदि नहीं भी होते या सृष्टि निर्माण क्रम में जब नहीं रहे होंगे परिवर्तन तो तब भी होते रहे होंगे | यह आवश्यक तो नहीं है कि सबसे पहले सूर्य ही निर्मित हुआ हो और हुआ भी हो तो सूर्य का होना और न होना भी तो स्वयं में उसी परिवर्तन का ही एक अंग है |
जिस प्रकार से हम एक आम का पौधा लगाते हैं। उसका पालन पोषण करते हैं। समय आने पर उसमें मंजरियाँ आती हैं फिर फल लगते हैं। समय पाकर फल पकने लगते हैं और फिर पक कर नीचे धरती पर गिर जाते हैं। फिर वर्षा ऋतु आती है और बरसात होती है। धरती पर गिरे हुये वही फल सड़ने लगते हैं और बीजों में अंकुरण होने लगता है जो कुछ ही समय बाद एक पौधा बन जाता है, फिर से वृक्ष बनने के लिये।इस प्रकार से सारी वही प्रक्रिया दोबारा दोहराई जाती है। यही प्रकृति है और यही उसका कार्य है।
इसी प्रकार से सूर्य भी तो प्रतिदिन,प्रतिमास,प्रतिवर्ष आदि युग युगांत तक उसी संचार क्रम में अपनी क्रियाएँ ही दोहराता रहता है | केवल सूर्य ही नहीं अपितु प्रकृति में धरती और इसके पहाड़, नदियाँ , समुद्र, घाटियाँ , हरियाली समेत तमाम ज्ञात अज्ञात ग्रह , नक्षत्र आदि भी वही प्रक्रिया बार बार दोहराते जा रहे हैं | इन सभी के समवेत प्रभावों का परिणाम ही परिवर्तन के रूप में दृष्टिगोचर होता है। यह एक स्वयंचालित पारलौकिक व्यवस्था है जो परिवर्तन करने के लिए बाध्य है प्रकृति को परिवर्तन धारण करना उसकी अपनी विवशता है अपने को परिवर्तन मुक्त रखपाना सूर्य चंद्र समेत प्रकृति में किसी के वश की बात नहीं है | परिवर्तन से ही नूतन का जन्म होता है और नूतन ही पुरातन हो जाता है और अन्त में नष्ट होकर पुनः नूतन जन्म पाता है। यही प्रकृति है और परिवर्तन उसका कार्य है किंतु परिवर्तन होने के कारण की खोज भी आवश्यक है |
परिवर्तन और समय
संसार में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों का कारण समय है | दिखाई देने वाली या न दिखाई देने वाली केवल अनुभव की जाने वाली प्रत्येक वस्तु भावना परिस्थिति सुख दुःख उन्नति अवनति मित्रता शत्रुता स्वरूप स्वभाव स्वाद स्वास्थ्य आदि सब कुछ प्रतिफल परिवर्तित होते जा रहे हैं | सुख नहीं रहता तो दुख भी नहीं रहता है दिन नहीं रहता है तो रात्रि भी नहीं रहनी है कोई बच्चा हमेंशा बच्चा ही नहीं बना रहता है ऐसे ही युवा हमेंशा युवा नहीं रहता और वृद्ध हमेंशा वृद्ध नहीं रहता है ? प्रत्येक दिन बदलता है दिन में घटित होने वाली परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं इस बदलाव का कारण केवल समय है कुछ और नहीं | भूकंप वर्षा या आँधी तूफ़ान आदि प्राकृतिक घटनाएँ प्रत्येक दिन तो नहीं घटित होती हैं किसी दिन घटित होती हैं तो किसी दिन नहीं भी घटित होती हैं | कुल मिलाकर सारा क्रम हमेंशा बदलता रहता है |
ऐसे सभी प्रकार के परिवर्तन होने का कारण है समय | यह समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाता है समय के साथ ही साथ बदलाव अपने आप से होते जाते हैं |यही समय चक्र है जिसके आगे समस्त चराचर प्रकृति को नतमस्तक होना पड़ता है | परिवर्तनों का यह समूह समय की शक्ति से संचालित हो रहा है यहाँ तक कि सूर्य भी उसी से अनुशासित होकर अपने दायित्व का निर्वाह कर रहा है |
संसार की समस्त गतिविधियाँ समय के द्वारा संचालित हो रही हैं मानव कृतकार्य भी समय से ही संचालित होते हैं | समय पर ही बच्चा जन्म लेता है समय के साथ साथ बढ़ता जाता है और उसके जीवन से जुड़ी संपूर्ण क्रियाएँ समय के साथ साथ पूरी होती चलती हैं समय पर विवाह होता है समय पर बच्चे होते हैं समय से सुख दुःख मिलता है हानि लाभ होता है उन्नति अवनति होती है समय से ही बुढ़ापा आता है और जीवन संपूर्ण हो जाता है |यह समय का स्वचालित क्रम है जिसके साथ साथ अनंतकाल से निर्धारित घटनाऍं स्वतः घटित होती चली जा रही हैं |यदि समय के संचार को समझने के लिए एवं उसके साथ साथ होने वाले परिवर्तनों को समझने के लिए उन संभावित परिवर्तनों के रूप में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
प्रकृति या जीवन से जुड़ी सभी प्रकार की घटनाएँ समय प्रायोजित होने के कारण इन्हें समझने के लिए समय को समझना बहुत आवश्यक है इसके साथ ही समय के साथ होने वाले परिवर्तनों की शैली को समझना होगा एवं समय बीतने के साथ साथ प्रत्येक वस्तु पर अलग अलग पड़ने वाले समय के प्रभाव को समझना होगा |कोई वस्तु समय के साथ साथ विकसित हो रही होती है और कोई क्रमशः नष्ट हो रही होती है ऐसे विषयों में संभावित परिवर्तनों को अलग अलग परिभाषित करना होगा |
समय और जलवायुपरिवर्तन
संसार में सभी प्रकार के परिवर्तनों का मुख्य कारण है समय | जिस प्रकार से समय के साथ साथ संसार के सभी व्यक्तियों वस्तुओं स्थानों परिस्थितियों आदि में परिवर्तन आते जाते हैं उसी क्रम में समयचक्र के साथ ही साथ जल और वायु में भी सूक्ष्म परिवर्तन होते रहते हैं किंतु ये परिवर्तन इतने सामान्य होते हैं कि उनसे इनके गुणों लक्षणों एवं इनके मूल स्वभाव आदि में परिवर्तन होते नहीं देखा जाता है |अग्नि में होने वाला प्रकाश, उष्णता,किसी वस्तु को जला देना एवं अग्नि की लव का ऊपर की ओर जाना लाखों वर्षा पहले आग के यही गुण थे और आज भी वही गुण हैं |इस प्रकार से आग में तो कोई विशेष परिवर्तन हुआ नहीं |
जल का स्वभाव शीतलता है द्रवता है इसलिए जल को कितना भी गर्म कर लिया जाए अंत में वो शीतल ही होता है | इसी प्रकार उसे कहीं से गिराया जाए वो नीचे की ओर ही बहता है | लाखों वर्ष पहले जल में यही गुण था और आज भी यही है इसलिए जल में कोई विशेष परिवर्तन होते तो दिखता नहीं है |
इसीप्रकार से स्वरूप रहित होने के बाद भी स्पर्श करना ,गर्म स्पर्श पाकर गर्म हो जाना और शीतल स्पर्श पाकर शीतल हो जाना ये वायु के गुण हैं जो लाखों वर्ष पहले भी थे और आज भी हैं |
ऐसी परिस्थिति में जलवायु परिवर्तन के नाम से जिन बातों को कहा सुना जाता है वे समझ से बाहर की बातें हैं | बताया जाता है कि जलवायु परिवर्तनऔसत मौसमी दशाओं के पैटर्न में ऐतिहासिक रूप से बदलाव आने को कहते हैं।यह बात यदि मान भी ली जाए तो स्पष्ट यह भी किया जाना चाहिए कि ऐसा बदलाव हुआ क्या है और जिससे यह पता लगाया गया आधारभूत उसका डेटा कहाँ है |जिसके आधार पर तर्कपूर्ण ढंग से यह सिद्ध किया जा सकता हो कि पहले इतने सौ या हजार वर्ष पहले ऐसा होता था जो अब नहीं होता है इससे लगता है कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है |
भारत में मौसम संबंधी डेटा संग्रह करते अभी 144 वर्ष के लगभग ही हुए हैं अन्य देशों में सौ पचास वर्ष और अधिक हुए होंगे !इतने छोटे कालखंड को अनुभव मानकर जलवायु परिवर्तन जैसी इतनी बड़ी शंका पाल लेना वैज्ञानिक दृष्टि से उचित नहीं है |
जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताते हुए कहा जा रहा है कि मानसून की आँख मिचौली और पूरी दुनियाँ में जलवायु का अनिश्चित व्यवहार इसके प्रमाण हैं।गर्मियाँ लंबी और सर्दियाँ छोटी होती जा रही हैं |धरती का तापमान बढ़ रहा है. ऐसा और भी बहुत कुछ होने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा है |
समय विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो ये तो समय के साथ साथ होने वाले प्रकृति परिवर्तन हैं | गरमी की ऋतु में दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं पुनः सर्दी की ऋतु में रातें बड़ी और दिन छोटे होने लगते हैं इसके अतिरिक्त कुछ महीने ऐसे भी आते हैं जब दिन और रात्रि बराबर होने लगती हैं |यह क्रम एक वर्ष का है ऐसा ही लंबी अवधि को आधार बनाकर देखा जा सकता है जो समय का अपना एक क्रम है जो समय के साथ साथ होता ही रहेगा | जिसे रोक कर रखना तो संभव भी नहीं है |
इसके प्रभाव के विषय में कहा जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन का असर
मनुष्यों के साथ साथ वनस्पतियों और जीव जंतुओं
पर भी देखने को मिल सकता है. पेड़ पौधों पर फूल और फल समय से पहले लग सकते हैं
और जानवर अपने क्षेत्रों से पलायन कर दूसरी जगह जा सकते हैं.कभी कभी बर्फ
बहुत अधिक जम जाएगी तो कभी हिमखंड और
ग्लेशियर्स पिघलते देखे जाएँगे |कभी कभी वर्षा बहुत अधिक हो जाएगी तो कभी कभी
सूखा पड़ जाएगा | ये सब जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बताए जा रहे हैं |
इसप्रकार के सामान्य परिवर्तन तो प्रकृति के स्वभाव हैं जो समय के साथ साथ होते रहते हैं जो सभी में इसके लिए जलवायु परिवर्तन जैसी किसी भी परिकल्पना का कोई तर्कपूर्ण वैज्ञानिक आधार नहीं है | कभी गरमी होती है तो कभी सर्दी भी होती है |कभी ग्लेशियर पिघलते हैं तो कभी जमते भी तो हैं कभी गरमी रिकार्ड तोड़ती है तो कभी सर्दी भी तो तोड़ती है | ग्रीष्मऋतु में नदी तालाब आदि सूख जाते है तो वर्षाऋतु में भर भी तो जाते हैं |कुछ क्षेत्रों में कभी अधिक बरसता है और कुछ क्षेत्रों में कम इसके लिए प्रकृति को दोष देना ठीक नहीं है क्योंकि यह हजारों वर्ष पहले से होता आ रहा है | इसमें कुछ नया नहीं है तथा प्रकृति से ऐसी अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए कि वह प्रत्येक स्थान पर नाप तौल कर ही बरसेगी | ऐसा न तो पहले कभी हुआ है और न ही बाद में कभी होगा तथा समय वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा होना संभव भी नहीं है |
बताया जा रहा है कि इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है, भीषण बाढ़, आँधी तूफ़ान चक्रवात , सूखा और गर्म हवाएँ चलने की घटनाएँ बढ़ सकती हैं | इंसानों और जीव जंतुओं की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा | इसको लेकर 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेराॅइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा बताया जा रहा है | जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों के विषय में जो भयानक भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं वे चिंता पैदा करने वाली हैं इसलिए इन्हें वैसे तो हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए किंतु ऐसे विषयों में इतनी जिम्मेदारी अवश्य निभाई जानी चाहिए कि अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि उन लोगों के द्वारा ऐसी भविष्यवाणियाँ किए जाने का आधार क्या है तथा किस कालखंड में इनके कितने प्रतिशत सच होने की संभावना है |
इस विषय में संतोष की बात केवल इतनी है कि जलवायुपरिवर्तन से संबंधित ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वाले वही मौसम भविष्यवक्ता कहे जाने वाले लोग हैं जो दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ या तो कर नहीं पाते हैं और यदि करते भी हैं तो गलत निकल जाती हैं|मानसून आने जाने की तारीखें अभी तक निश्चित करने में लगे हैं बीते लगभग डेढ़ सौ वर्षों में अभी तक तारीखें सेट नहीं हो पाई हैं अब फिर आगे पीछे करने की तैयारी बताई जा रही है वही लोग जलवायुपरिवर्तन से संबंधित पूर्वानुमान बताते देखे जा रहे हैं
ऐसी परिस्थिति में जिनके द्वारा की जाने वाली दो चार दिन पहले की भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं वही मौसम भविष्य वक्ता लोग हीआज के सैकड़ों हजारों वर्ष बाद में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ करते देखे जा रहे हैं |इसलिए हमारी समझ में अधिक चिंता करने की बात नहीं है |
बिचारणीय बात यह है कि जो वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के विषय की सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ दो चार दिन पहले नहीं कर पाते हैं करते हैं तो कितने हिचकोले खा रहे होते हैं कितने बार उन्हें रिपीट करते हैं कितने बार उनमें संशोधन करते हैं फिर भी वे गलत निकल जाती हैं दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान सही नहीं हो पाता है ! मानसून आने जाने का पूर्वानुमान लगा पाने में असफल रहने के कारण ऐसे लोग अब मानसून आने जाने की तारीखें आगे पीछे करके प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं |
ऐसे लोग
ग्लोबलवार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव बताने के नाम पर आज से सौ सौ
दो दो सौ वर्ष बाद में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित
अफवाहें फैलाते देखे जा रहे हैं उन्हें लगता है कि तब तो हम होंगे नहीं
इसलिए तब तो हमारी जवाबदेही बिलकुल नहीं रहेगी !
इसप्रकार के सामान्य परिवर्तन तो प्रकृति के स्वभाव हैं जो समय के साथ साथ होते रहते हैं जो सभी में इसके लिए जलवायु परिवर्तन जैसी किसी भी परिकल्पना का कोई तर्कपूर्ण वैज्ञानिक आधार नहीं है | कभी गरमी होती है तो कभी सर्दी भी होती है |कभी ग्लेशियर पिघलते हैं तो कभी जमते भी तो हैं कभी गरमी रिकार्ड तोड़ती है तो कभी सर्दी भी तो तोड़ती है | ग्रीष्मऋतु में नदी तालाब आदि सूख जाते है तो वर्षाऋतु में भर भी तो जाते हैं |कुछ क्षेत्रों में कभी अधिक बरसता है और कुछ क्षेत्रों में कम इसके लिए प्रकृति को दोष देना ठीक नहीं है क्योंकि यह हजारों वर्ष पहले से होता आ रहा है | इसमें कुछ नया नहीं है तथा प्रकृति से ऐसी अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए कि वह प्रत्येक स्थान पर नाप तौल कर ही बरसेगी | ऐसा न तो पहले कभी हुआ है और न ही बाद में कभी होगा तथा समय वैज्ञानिक दृष्टि से ऐसा होना संभव भी नहीं है |
बताया जा रहा है कि इससे पीने के पानी की कमी हो सकती है, खाद्यान्न उत्पादन में कमी आ सकती है, भीषण बाढ़, आँधी तूफ़ान चक्रवात , सूखा और गर्म हवाएँ चलने की घटनाएँ बढ़ सकती हैं | इंसानों और जीव जंतुओं की ज़िंदगी पर असर पड़ेगा. ख़ास तरह के मौसम में रहने वाले पेड़ और जीव-जंतुओं के विलुप्त होने का ख़तरा बढ़ जाएगा | इसको लेकर 21वीं शताब्दी का सबसे बड़ा खतरा बताया जा रहा है। यह खतरा तृतीय विश्वयुद्ध या किसी क्षुद्रग्रह (एस्टेराॅइड) के पृथ्वी से टकराने से भी बड़ा बताया जा रहा है | जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले दुष्प्रभावों के विषय में जो भयानक भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं वे चिंता पैदा करने वाली हैं इसलिए इन्हें वैसे तो हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए किंतु ऐसे विषयों में इतनी जिम्मेदारी अवश्य निभाई जानी चाहिए कि अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जाना चाहिए कि उन लोगों के द्वारा ऐसी भविष्यवाणियाँ किए जाने का आधार क्या है तथा किस कालखंड में इनके कितने प्रतिशत सच होने की संभावना है |
इस विषय में संतोष की बात केवल इतनी है कि जलवायुपरिवर्तन से संबंधित ऐसी भविष्यवाणियाँ करने वाले वही मौसम भविष्यवक्ता कहे जाने वाले लोग हैं जो दो चार दिन पहले की मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ या तो कर नहीं पाते हैं और यदि करते भी हैं तो गलत निकल जाती हैं|मानसून आने जाने की तारीखें अभी तक निश्चित करने में लगे हैं बीते लगभग डेढ़ सौ वर्षों में अभी तक तारीखें सेट नहीं हो पाई हैं अब फिर आगे पीछे करने की तैयारी बताई जा रही है वही लोग जलवायुपरिवर्तन से संबंधित पूर्वानुमान बताते देखे जा रहे हैं
ऐसी परिस्थिति में जिनके द्वारा की जाने वाली दो चार दिन पहले की भविष्यवाणियाँ गलत हो जाती हैं वही मौसम भविष्य वक्ता लोग हीआज के सैकड़ों हजारों वर्ष बाद में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में भविष्यवाणियाँ करते देखे जा रहे हैं |इसलिए हमारी समझ में अधिक चिंता करने की बात नहीं है |
बिचारणीय बात यह है कि जो वर्षा बाढ़ एवं आँधी तूफानों के विषय की सही एवं सटीक भविष्यवाणियाँ दो चार दिन पहले नहीं कर पाते हैं करते हैं तो कितने हिचकोले खा रहे होते हैं कितने बार उन्हें रिपीट करते हैं कितने बार उनमें संशोधन करते हैं फिर भी वे गलत निकल जाती हैं दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान सही नहीं हो पाता है ! मानसून आने जाने का पूर्वानुमान लगा पाने में असफल रहने के कारण ऐसे लोग अब मानसून आने जाने की तारीखें आगे पीछे करके प्रतिष्ठा बचाने की कोशिश करते देखे जा रहे हैं |
कुलमिलाकर ऐसी निरर्थक बातें बता बताकर अनुसंधान के नाम पर हम अपना समय ऊर्जा ,संसाधन एवं धन निरर्थक बर्बाद करते जा रहे हैं ऐसी बातों पर विश्वास करने का औचित्य भी क्या है क्योंकि समय विज्ञान की दृष्टि से ऐसी बातों में कोई सच्चाई नहीं है और न ही ऐसा कुछ होने की संभावना ही है |उसमें भी इसके लिए मनुष्यों के द्वारा किए जाने वाले कार्यों को जिम्मेदार ठहराना इसलिए उचित एवं तर्कपूर्ण नहीं है क्योंकि क्योंकि समय के अनुशासन में चलने वाली प्रकृति के रुख को मोड़ने की क्षमता सामान्य मनुष्य क्या देवताओं में भी नहीं है |
मनुष्यकृत प्रयासों का प्रभाव
जिन परिवर्तनों को देखकर कई बार ऐसा लगता है कि इन परिवर्तनों का कारण केवल मनुष्यकृत प्रयास हैं किंतु ये भ्रम तब टूटता है जब प्रकृति में वे परिवर्तन दिखाई पड़ते हैं जिनमें मनुष्य क्या किसी भी जीव जंतु के द्वारा किए गए प्रयास सम्मिलित नहीं होते हैं | परिवर्तन तो उनमें भी होते देखे जाते हैं |पानी का स्वभाव नीचे की ओर बहना है ये किंतु मोटर चलाकर पानी ऊपर चढ़ा दिया जाता है ये मनुष्य कृत है तो दूसरी ओर नारियल के फल में बिना किसी मनुष्य कृत प्रयास के भी पानी भर जाता है | कोई सामान ऊपर की ओर ले जाने के लिए मनुष्य के द्वारा लिफ्ट आदि की व्यवस्था की जाती है तो दूसरी ओर बिना किसी मनुष्यकृत प्रयास की सहायता के भी पेड़ फलों के रूप में सैकड़ों मन भार अपने ऊपर लाद लिया करते हैं |नौकाओं में लादकर सामान जल मार्ग से ले जाने की प्रक्रिया मनुष्य करता है तो नदियाँ स्वयं भी अपनी धारा के साथ बहुत कुछ दूर दूर तक बहाकर ले जाती है तूफ़ान उड़ाकर इधर से उधर बड़ा बड़ा सामान ले जाते दिखाई पड़ते हैं !लाखोंटन पानी ढोते बादलों को देखा जाता है | बिना फ्रिज के भी पहाड़ों पर करोड़ोंटन बर्फ जमते देखी जाती है | बिना गीजर के भी बर्फीले क्षेत्रों में किसी झरने से गर्म जल निकलते देखा जाता है |बिना किसी रंग के भी वृक्षों से निकलने वाले पत्तों एवं फलों के कई रंग बदलते देखे जाते हैं | मनुष्यकृत प्रयास से जितना वजन लेकर विमानों को इधर से उधर जाते देखा जाता है उससे कई गुना अधिक जल का वजन लेकर बादलों को इधर से उधर आते जाते देखा जाता है |
इस प्रकार से प्रकृति ने जो जो काम करके दिखाए हैं मनुष्य उन्हें ही करना सीख रहा है प्रकृति ने पहाड़ों पर बर्फ जमा कर दिखाई इसे देखकर ही मनुष्य भी प्रेरित हुआ और उसने भी फ्रिज का निर्माण कर लिया | इसी प्रकार से मनुष्य के द्वारा किए गए सभी प्रकार के अनुसंधान प्रकृति प्रेरित हैं | ये सारे प्रयोग बिल्कुल उसी तरह के हैं जिसे माताओं को भोजन बनाते देखकर छोटे छोटे बच्चे भी आपस में भोजन बनाने के खेल खेलते देखे जाते हैं |मनुष्यकृत सभी प्रकार के अनुसंधान उसी प्रकृति प्रेरणा की उपज हैं |
यदि मनुष्य कुछ बना लेता है तो उसे लगता है कि इसका वह निर्माता है जबकि यह सच नहीं है क्योंकि मनुष्य कोई ऐसा निर्माण कर ही नहीं सकता है जो प्रकृति ने पहले कभी कर न रखा हो मनुष्य तो केवल प्रकृति के द्वारा किए गए निर्माणों को खोज सकता है इतना ही उसके वश में है |इसी श्रेणी में वो कवी आता है जो कविता का निर्माता नहीं अपितु मात्र अन्वेषक होता है |
इसलिए मनुष्य को यदि लगता है कि वह अपनी विद्या बुद्धि प्रयत्न परिश्रम के प्रभाव से समयकृत इन परिवर्तनों को परिवर्तित कर सकता है तो यह उसके द्वारा अपने मन में पाला गया विशुद्ध भ्रम है | यह भावना तब और अधिक बलवती हो जाती है जब कई बार संयोगवश वह उस दिशा में प्रयास करने लगता है जो समय के प्रवाह के साथ साथ स्वयं ही होने वाला होता है !जिसे न जानने के कारण वह कार्य जब वैसा हो जाता है जैसा कि वह चाह रहा होता है या जिसके लिए वह प्रयास कर रहा होता है तो उसे लगने लगता है कि यह कार्य उसके प्रयास से हुआ है किंतु यह भ्रम तब टूटता है जब दूसरे ही क्षण उसके प्रयास का परिणाम उसके प्रयास के विरुद्ध हो जाता है तब उसे यह बात समझ में आती है कि जब हम समय के साथ चल रहे होते हैं तब उस काम के होने का श्रेय हमें मिल जाता है और जब हम समय की चाल के विरुद्ध कोई प्रयत्न करने लगते हैं तो हमें असफल होने का दुःख होता है |
गीता में जब अर्जुन ने कहा कि हम अपने गुरू और पितामह जैसे श्रद्धाप्रुरुषों एवं बंधु बांधवों का बध न करने की इच्छा व्यक्त की तो भगवान् श्रीकृष्ण ने यही तो कहा था कि अर्जुन कोई मनुष्य किसी को मारने की क्षमता नहीं रखता है इसलिए ऐसा सोचना भी ठीक नहीं है समय बीतने के साथ उसी क्रम में जब किसी की मृत्यु का समय आ जाता है उस समय जो उसे मरने का प्रयास कर रहा होता है उसे उसका कर्ता मान लिया जाता है | इसीलिए भीष्म जैसे इतने बड़े बड़े बीरों की आयु समय क्रम से पूरी हो चुकी है अब इनकी मृत्यु का समय समीप है इनकी मृत्यु तो इनके अपने समय के कारण होगी किंतु यदि तुम उस समय इनसे युद्ध लड़ते हुए दिखाई दोगे तो संसार में संदेश जाएगा कि इतने बड़े बड़े वीरों का संहार अर्जुन ने किया है इसलिए अर्जुन इनसे बड़ा बीर है यह यश लाभ तुम्हें मिल जाएगा |
इस प्रकार से समय की गति का ज्ञान भगवान् श्रीकृष्ण को था उसी के द्वारा भगवान् श्रीकृष्ण जी ने महाभारत जैसी इतनी बड़ी घटना का पूर्वानुमान लगाकर उसका यशलाभ अर्जुन को दिलाने में सफल हुए और अर्जुन को सारे संसार में श्रेष्ठ धनुर्धर सिद्ध कर दिया |ये सब समय की गति ज्ञान के कारण ही संभव हो सका है |
इसीप्रकार से भगवान् श्रीराम के समान संसार में कोई दूसरा वीर नहीं हुआ और पत्नी के अपहरण के बराबर कोई दूसरा अपमान नहीं हो सकता है यह जानते हुए भी श्री राम ने महीनों तक शांत रहकर अपने अच्छे समय की प्रतीक्षा की और शरद ऋतु तक शांत बिचारण करते रहे शरदऋतु आते ही प्रयास प्रारंभ किए गए जिससे अच्छे समय प्रभाव के कारण न केवल सीता जी की खोज हो सकी अपितु सेतुबंध जैसा कठिन कार्य भी संभव हो पाया और रावण के बध का श्रेय उन्हें मिला |
इसीप्रकार से समय की गति को समझने वाले लोग हर युग में समय का पूर्वानुमान लगाकर और उसी के अनुशार चलते हुए सफलता का श्रेय पाते रहे हैं |
कोई चिकित्सक किसी रोगी को स्वस्थ करने के उद्देश्य से उसकी चिकित्सा करता है और यदि वह रोगी समय के प्रवाह से स्वस्थ हो जाता है तो अज्ञान के कारण उस चिकित्सक को लगने लगता है कि उस रोगी के स्वस्थ होने का कारण उसका प्रयास और उसके द्वारा की गई चिकित्सा है ,उसका यह भ्रम तब टूटता है जब उसके द्वारा चिकित्सा किए जाने पर भी चिकित्सा काल में ही कोई रोगी मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | उस मृत्यु के लिए वह समय कुदरत भाग्य ईश्वर आदि को जिम्मेदार मानने लगता है किंतु यदि इस बिचार से देखा जाएगा तब तो उसके स्वस्थ होने का कारण भी ये सब ही हो सकते हैं |
यदि समय कारण न होता तो कोई चिकित्सक जिस रोगी को जब दवा देता या जब आपरेशन करता और महीने भर में जो दवा दी जाती है वह संपूर्ण दवा उसी समय एक साथ ही दे दी जाती जिसके प्रभाव से उसे तभी तुरंत स्वस्थ हो जाना चाहिए था | दूसरी बात जिस जिस की चिकित्सा की जाती उन सभी को स्वस्थ हो जाना चाहिए था और जिस रोगी की चिकित्सा न की जाती उसे स्वस्थ नहीं होना चाहिए था किंतु ऐसा होते नहीं देखा जाता है कई बार चिकित्सा का लाभ लेने वाले भी अस्वस्थ रहते या मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं तथा जंगल में रहने वाले लोगों या पशुओं को भी रोग होते हैं घाव होते हैं बिना किसी चिकित्सकीय प्रयास के भी उन्हें स्वस्थ होते देखा जाता है |
इसका मतलब किसी के स्वस्थ या अस्वस्थ होने का कारण केवल चिकित्सा नहीं हो सकती चिकित्सा तो माध्यम मात्र है उसका मुख्यकारण तो समय ही है |
'समय'विज्ञान को न जानने के कारण होता है ऐसा भ्रम !
समयविज्ञान की जानकारी के अभाव में किन्हीं दो घटनाओं के एक साथ घटित होने के कारण उन्हें आपस में एक दूसरे के साथ जोड़कर देखा जाने लगता है |ऐसा लगता है कि ये दोनों एक दूसरे से संबंधित हैं जबकि समय विज्ञान की दृष्टि से सभी घटनाओं के घटित होने में सबका अपना अपना समय होता है | कई बार वो संयोगवश एक साथ ही उपस्थित हो जाता है इसलिए दोनों घटनाएँ साथ साथ घटित होते देखी जाती हैं |
समय के प्रवाह क्रम में जो समय सूर्य के उगने का है वही समय कमल के खिलने का होता है इससे यह सिद्ध नहीं हो जाता है कि सूर्य के उगने से कमल खिलता है अपितु ये दोनों स्वतन्त्र घटनाएँ हैं जो अपने अपने हिसाब से समय चक्र से प्रभावित होते देखी जा रही हैं |
यही स्थिति समुद्र में घटित होने वाली ज्वार भाँटा आदि प्राकृतिक घटनाओं की है दोनों स्वतंत्र घटनाएँ हैं जो अपने अपने समय के साहचर्य से संयोगवश एक साथ घटित होते देखी जाती हैं इसका मतलब यह कतई नहीं कि उन दोनों का आपस में कोई संबंध होगा ही |
एक अस्पताल में एक ही समय में कुछ बच्चों का जन्म और कुछ लोगों की मृत्यु होते देखी जाती है इसका यह अर्थ तो नहीं होता कि इन दोनों घटनाओं का आपस में एक दूसरे के साथ कोई संबंध होगा |
कई बार किसी की मृत्यु के लिए जो समय निश्चित होता है वही समय उसके साथ कोई दुर्घटना घटित होने का भी होता है | ऐसे में किसी की मृत्यु का समय जब समीप आया उसी समय किसी ने उसे गोली मार दी या किसी अन्य प्रकार से चोट पहुँचा दी | ऐसे में ये दोनों अलग अलग प्रकार की घटनाएँ एक साथ घटित होने के कारण एक दूसरी घटना से संबंधित लगती हैं जबकि यह निश्चित नहीं है कि किसी की मृत्यु का कारण कोई दुर्घटना ही हो | कई प्रकरणों में ऐसा भी देखा जाता है कि जब दुर्घटना के बिना भी किसी अच्छे भले स्वस्थ व्यक्ति की अचानक मृत्यु होते देखी जाती है |वहीं दूसरी ओर कुछ बड़ी दुर्घटनाएँ ऐसी भी देखी जाती हैं जिनमें संबंधित व्यक्ति की मृत्यु होते नहीं देखी जाती है | इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि किसी की मृत्यु और उसके साथ घटित होने वाली घटनाओं में आपस में कोई संबंध हो ही यह निश्चित नहीं होता है | दुर्घटना और मृत्यु के एक साथ घटित होने के कारण उन्हें एक साथ जोड़ना उचित नहीं है |
परीक्षित जी को जब तक्षक नाग को काटना था उससे परीक्षित जी की मृत्यु होनी थी | उधर सर्प के बिष से विमुक्त करने की अद्भुद क्षमता कश्यम ऋषि में थी इसलिए जब सर्प के डसने का समय आया तो उसका बिषा उतारने के लिए कश्यप जी परीक्षित जी के पास जा रहे थे इसी बीच उन्हें रास्ते में विप्र वेषधारी तक्षक मिला आपस में एक दूसरे का परिचय हुआ दोनों परीक्षित जी के यहाँ जा रहे थे तक्षक अपने बिष से परीक्षित को मृत्यु देने का बहाना बनने जा रहे थे तो कश्यप ऋषि परीक्षित जी को बिष मुक्त करने जा रहे थे |तक्षक के बिष में उन्हें मार देने की क्षमता थी और कश्यप ऋषि के मन्त्रों में उन्हें बिषमुक्त करके जीवित कर देने की क्षमता थी | इस हिसाब से परीक्षित जी का जीवन सुरक्षित होता दिखाई दे रहा था किंतु जैसे ही तक्षक ने कश्यप ऋषि से पूछा कि इसमें कोई संशय नहीं है कि हमारे बिष के प्रभाव से मरने के बाद आप इन्हें जीवित तो कर दोगे किंतु इनकी आयु अभी अवशेष है क्या आपने इस बात का बिचार किया है तो कश्यप ऋषि ने ध्यान से देखा तो परीक्षित जी की आयु समाप्त हो चुकी थी | ऐसी परिस्थिति में तक्षक तो बहाना था जबकि परीक्षित जी की मृत्यु का समय आ चुका था इसलिए मृत्यु तो समय के कारण होनी थी | इसलिए कश्यप ऋषि रस्ते से ही वापस लौट गए |
किसी दीपक की दृष्टि से देखा जाए तो जलते हुए दीपक में पड़ा घी ही उसकी आयु
होती है | इसलिए उसमें जब तक घी बना रहता है तब तक हवा आदि लगने से यदि वो
बुझ भी जाता है तो उसे दुबारा जला लिया जाता है और वो जलने लगता है किंतु
घी समाप्त होने के बाद उसे माचिस आदि से बार बार भी जलाया जाए तो भी नहीं
जलता ! इसलिए किसी व्यक्ति का जीवन बचने के लिए किए जाने वाले चिकित्सा आदि
उपाय तभी तक सफल होते हैं जब तक रोगी की आयु अवशेष रहती है आयु समाप्त
होते ही मृत्यु का समय आ पहुँचता है | वह समय ही काल होता है बाकी सब बहाने
बनते चले जाते हैं |
प्राचीन काल में किसी को आशीर्वाद या शाप देने की घटनाएँ घटित होते देखी जाती थीं और वैसा होता भी था जिससे यह लगने लगता था कि किसी के शाप या आशीर्वाद देने से ऐसा घटित हो रहा है किंतु ऐसा नहीं था यह विशुद्ध रूप से समय विज्ञान का उदाहरण है | तपस्वी ऋषि समय के विज्ञान को अच्छी प्रकार समझते थे जिसके प्रभाव से उन्हें पहले से इस बात का पूर्वानुमान हो जाता था कि इसके साथ कब कैसी घटनाएँ घटित होने वाली हैं | उसी समय प्रभाव से मिलता जुलता आशीर्वाद या शाप दे दिया करते थे | समय प्रभाव से उस प्रकार की घटनाएँ घटित हुआ करती थीं जबकि समय के प्रभाव को न समझने वाले लोगों को लगता था कि आशीर्वाद या शाप देने के कारण यह सब कुछ घटित हो रहा है |
इस प्रकार से किसी की मृत्यु होने में या कोई अन्य प्रकार की घटना के घटित होने में मुख्यकारण समय ही होता है | समय विज्ञान को समझने वाले समय शात्रवेत्ता उन घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |
प्राचीन काल में किसी को आशीर्वाद या शाप देने की घटनाएँ घटित होते देखी जाती थीं और वैसा होता भी था जिससे यह लगने लगता था कि किसी के शाप या आशीर्वाद देने से ऐसा घटित हो रहा है किंतु ऐसा नहीं था यह विशुद्ध रूप से समय विज्ञान का उदाहरण है | तपस्वी ऋषि समय के विज्ञान को अच्छी प्रकार समझते थे जिसके प्रभाव से उन्हें पहले से इस बात का पूर्वानुमान हो जाता था कि इसके साथ कब कैसी घटनाएँ घटित होने वाली हैं | उसी समय प्रभाव से मिलता जुलता आशीर्वाद या शाप दे दिया करते थे | समय प्रभाव से उस प्रकार की घटनाएँ घटित हुआ करती थीं जबकि समय के प्रभाव को न समझने वाले लोगों को लगता था कि आशीर्वाद या शाप देने के कारण यह सब कुछ घटित हो रहा है |
इस प्रकार से किसी की मृत्यु होने में या कोई अन्य प्रकार की घटना के घटित होने में मुख्यकारण समय ही होता है | समय विज्ञान को समझने वाले समय शात्रवेत्ता उन घटनाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते थे |
ऐसी घटनाओं के घटित होने में समय का सबसे अधिक महत्त्व होता है | ऐसी
परिस्थितियों का अनुसंधान करने के लिए समय संबंधी अध्ययनों की बहुत
आवश्यकता होती है जिसके आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है
किस तत्व से संबंधित किस प्रकार की घटना घटित हो सकती है उसका वेग कितना तक
तीव्र हो सकता है | समयविज्ञान के आधार पर अनुसंधान पूर्वक उस प्राकृतिक घटना के
अभिप्राय का अनुमान लगाया जा सकता है | इसी प्रकार से अन्य
वृक्षों लताओं नदियों पहाड़ों जीव जंतुओं आदि में आने वाले विशिष्ट
परिवर्तनों के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान
लगाया जा सकता है |
प्रकृति में ऐसा जब कभी भी होने लगे तब उसका कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है जो शुभ या अशुभ कुछ भी हो सकता है | उससमय अच्छा या बुरा जब जैसा समय चल रहा होता है तब तैसी सूचनाएँ देने वाली घटनाएँ घटित होने लगती हैं | ऐसी घटनाएँ जिस समय घटित होती हैं उस 'समय'के आधार पर इस बात का अनुसंधान करना होता है कि इस घटना के माध्यम से प्रकृति बताना क्या चाहती है उसके अनुशार अपने को व्यवस्थित करना होता है |
प्रकृति में घटित होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं से प्रत्यक्ष तौर पर कुछ लाभ हानि होते भले न दीखता हो किंतु निरर्थक वे भी नहीं होती हैं | संसार या समाज में कोई विशिष्ट घटना घटित होने जा रही होती है जिसकी पूर्व सूचना देने के लिए प्रकृति ऐसी अन्य प्राकृतिक घटनाओं का सहारा लेती है |इतिहास में जब जब कोई बड़ी घटना घटित हुई है तब तब उसकी पूर्व सूचना किसी न किसी अन्य घटना के द्वारा प्रकृति प्रायः देती रही है |वो घटना ऐसी होती है ताकि लोगों का ध्यान आसानी से उधर चला जाए और लोग उसके विषय में समझने का प्रयास करें |
वेदवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं के घटित होने के 'समय' को आधार बनाकर विश्लेषण करते रहते हैं यदि इनसे भविष्य संबंधी कोई शुभ सूचना मिल रही होती है तो वेद विज्ञान की भाषा में उसे शकुन कह दिया जाता है और यदि कोई अशुभ सूचना मिलने की संभावना होती है तो उसे अपशकुन बता दिया जाता है |वेदविज्ञान की दृष्टि से भविष्य संबंधी प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्यजनित घटनाओं का ऐसे ही पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है |
समय से अनुशासित प्रकृति भी देती है संदेश
संसार में कोई भी स्त्री पुरुष पशु पक्षी जीव जंतु पेड़ पौधे समेत प्रकृति में स्थित कोई छोटा से छोटा कण बेकार नहीं है सबकी इस सृष्टि संचालन में कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है | जिसके गुण दोष हानि लाभ या उपयोग आदि के विषय में हम कुछ जानने लगते हैं उसका प्रचार प्रसार उस रूप में हो जाता है |जिसके विषय में हम नहीं जानते हैं उसे निरर्थक मान लेते हैं |यह ठीक नहीं है |
इसी क्रम में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाएँ भी इस सृष्टि संचालन में अपनी अपनी भूमिका अदा कर रही हैं जिनके उपयोग को न समझ पाने के कारण ही इन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में मान लिया गया है |
जीवन में घटित होने वाली सुखदुख हानि लाभ जीवन मरण आदि परिस्थितियाँ निरर्थक नहीं हैं अपितु मानव जीवन को व्यवस्थित और सुदृढ़ करने में इनकी भी कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है जिसकी उपयोगिता बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान लोग समझते हैं |
किसी व्यक्ति के किसी दूसरे के साथ संबंध बनने या बिगड़ने की जीवन में कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है कई बार वह भूमिका दिखाई पड़ रही होती है और कई बार प्रत्यक्ष नहीं भी दिखाई पड़ती है किंतु होती अवश्य है |
इसलिए कभी किसी व्यक्ति वस्तु या घटना को निरर्थक नहीं माना जाना चाहिए हर किसी के होने या घटित होने का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है | उस प्रयोजन को खोजने का प्रयत्न किया जाना चाहिए |
ऐसे कुछ संबंध चल भी जाते हैं और कुछ नहीं भी चलते हैं | कुछ रोगी स्वस्थ हो भी जाते हैं और कुछ नहीं भी होते हैं | कई अपने लक्ष्य को पा लेते हैं कई लोग नहीं भी पा पाते हैं |यही कारण है कि कई बार पति पत्नी के स्वस्थ रहते हुए भी संतान नहीं होती है |
सौ रोगियों की चिकित्सा एक प्रक्रिया से की जाए तो उस चिकित्सा का परिणाम चिकित्सा के अनुशार नहीं अपितु उन रोगियों के अपने अपने समय के अनुशार हो रहा होता है | इसमें तो कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ चिकित्सा के बाद भी अस्वस्थ रहते हैं और कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं इनमें से स्वस्थ वही होते हैं जिनका अपना समय अच्छा चल रहा होता है अन्यथा चिकित्सकाल में ही उनमें से कुछ मृत्यु को भी प्राप्त होते देखे जाते हैं | केवल चिकित्सा के अनुशार यदि परिणाम होते तो चिकित्सा का प्रभाव सभी रोगियों पर एक जैसा पड़ता किंतु प्रायः ऐसा होते नहीं देखा जाता है |
कुलमिलाकर समय की शक्ति को कोई माने या न माने किंतु प्रकृति से जीवन तक सब कुछ समय के अनुशार ही घटित हो रहा है | वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि सभी घटनाएँ समय के अनुशार ही घटित हो रही हैं | इसी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति को समय के अनुशार ही चलना पड़ता है जो समय के अनुशार नहीं चलते हैं समय उन्हें अपने अनुशार चला लेता है और उन्हें मजबूरी में उसी के अनुशार चलना पड़ता है | समय के विरुद्ध जो कार्य अपनी हठ इच्छाओं या अहंकार के बशीभूत होकर करते हैं उसमें असफल होते देखे जाते हैं हैं |
कई बार देखा जाता है कि बिना कोई कारण दिखाई दिए बिना भी अच्छे भले स्वस्थ लोग भी रोगी होने लगते हैं जिसका कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा होता है और न ही किसी चिकित्सा का ही उन पर असर हो रहा होता है | ऐसे लोग समय के कारण अस्वस्थ होते हैं और स्वस्थ भी समय बदलने से ही होते हैं और समय यदि साथ नहीं देता है तो कितने भी चिकित्सकीय प्रयास क्यों न कर लिए जाएँ किंतु स्वस्थ होने की संभावना नहीं बन पाती है |उलटे कुछ रोगी तो गहन चिकित्साकाल में भी मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं |
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में समय ख़राब होने पर ही कोई महामारी फैलती है और उस क्षेत्र में रहने वाले जिन जिन लोगों का अपना समय खराब होता है उस महामारी का प्रभाव भी उन्हीं लोगों पर अधिक पड़ता है यही कारण है कि उस महामारी में भी वही लोग अधिक पीड़ित होते हैं जिनका अपना समय अच्छा नहीं चल रहा होता है |
किसी का समय जब अच्छा चल रहा होता है तभी उसके द्वारा किए गए प्रयास सफल होते हैं और तभी उसकी उन्नति होती है तभी उसे अच्छे मित्र मिलते हैं तभी उसे अच्छा पति या पत्नी मिलता है, तभी उसके साथ लोग अच्छा व्यवहार करते हैं , तभी उसे अच्छे मकान में रहने को एवं अच्छे वाहन से चलने को मिलता है ,समय ठीक हो तो व्यक्ति बुरी परिस्थितियों से घिर कर भी वहाँ से सकुशल निकल आता है | समय अच्छा हो तो मित्र क्या शत्रु भी सुख देने वाला व्यवहार करने लगते हैं और यदि समय अच्छा न हो तो अपने सगे संबंधी लोग भी अपने साथ अप्रिय व्यवहार करने लगते हैं या संबंध तोड़ लेते हैं यहाँ तक कि अपना पति या पत्नी भी ऐसे समय में अपना साथ छोड़ दिया करते हैं |समय अच्छा हो तो बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा वैभव आदि अनायास ही मिल जाया करते हैं ऐसे समय में विरोधी लोग भी प्रशंसा करते देखे जाते हैं | समय ख़राब हो तो अपने लोग भी बुराई करते देखे जाते हैं |
जिन परिस्थितियों में अच्छे समय में लोग प्रसन्न रह लेते हैं उन्हीं परिस्थितियों में बुरे समय में लोगों को तनावग्रस्त होते देखा जाता है |बुरे समय का सामना कर रहे लोग किसी व्यक्ति के लिए कितना भी सोच बिचार कर कितनी भी अच्छी भाषा बोलने का प्रयास करें किंतु उनके मुख से कुछ ऐसा निकल जाता है कि उन्हें अपनी बातों पर भी दुःख लगने लगता है पछतावा होने लगता है|इसीप्रकार से दूसरे लोग भी इनसे कितनी भी अच्छी बातें करें उनसे जाने अनजाने में कुछ ऐसा जरूर निकल जाता है जिससे कि इन्हें उससे भी तनाव हो जाता है |समय पीड़ित लोगों का उस परिस्थिति में साथ देने वाले लोगों की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा होती है उन्हें मदद तो करनी ही होती है इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होता है उस व्यक्ति को कुछ बुरा न लग जाए |
समय पीड़ित लोगों के द्वारा किए गए प्रयास अक्सर असफल होते देखे जाते हैं ऐसे लोग यदि किसी वैज्ञानिक टीम में सम्मिलित होकर कोई अनुसंधान करते हैं तो जिस अनुपात में समय पीड़ित लोग उस टीम में सम्मिलित होते हैं उसी अनुपात में ऐसे अनुसंधान कार्यों को रुकावटों का सामना करना पड़ता है |
इसी प्रकार से किसी युद्ध की परिस्थिति पैदा होने पर समय पीड़ित लोगों की संख्या यदि किसी सेना की टुकड़ी में अधिक हो तो ऐसे लोग जिस सीमा में तैनात किए जाते हैं उस युद्ध क्षेत्र में विजय तो दूर उनका सकुशल लौट पाना भी संदिग्ध बना रहता है |ऐसा ही प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत से अन्य क्षेत्रों में भी घटित होते देखा जाता है |
समय और घटनाएँ
समय की दृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति से लेकर जीवन तक सब कुछ समय से प्रभावित हो रहा है सबकुछ समय के साथ साथ बदलता जा रहा है | प्रकृति या जीवन से संबंधित जिन नई नई परिस्थितियों के रूप में स्वस्थ अस्वस्थ सुखी दुखी मिलते बिछुड़ते आदि विभिन्न स्वरूपों में लोग दिखाई पड़ते हैं या प्रकृति में वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाएँ घटित होती दिखाई पड़ती हैं | ये हमारे लिए तो घटनाएँ ही हैं किंतु समय की दृष्टि से देखा जाए तो ये समय के साथ साथ होने वाले प्रकृति और जीवन से संबंधित बदलाव हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ और बचपन जवानी बुढ़ापा अवस्थाएँ सुनिश्चित बदलवाव की श्रेणी में आते हैं इसीलिए ये अपने अपने समय पर प्रतिवर्ष और सभी के जीवन में घटित होते देखे जाते हैं | इसी प्रकार स्वस्थ अस्वस्थ हर्ष शोक आदि जीवन से संबंधित परिस्थितियाँ और वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि प्रकृति से संबंधित घटनाएँ भी तो समय के साथ साथ साथ प्रकृति और जीवन में होने वाले समय जनित बदलाव ही हैं | जो अत्यंत सूक्ष्म वैज्ञानिक चिंतन से ही समझ में आते हैं |
किसी गड्ढे के पास से एक रास्ता था एक व्यक्ति अपने काम पर जाने के लिए उसी रास्ते से प्रतिदिन निकलता था वर्षों बीत जाने के बाद एक बार जब उसका समय खराब आया तब एक दिन उसकी मोटर साइकिल उसी गड्ढे में गिर गई और उसकी मृत्यु हो गई !
इस घटना की वैज्ञानिक जाँच की जाने लगी और मृत्यु का कारण खोजने के विषय में जब अनुसंधान हुआ तो उस अनुसंधान के आधार पर मृत्यु का कारण रास्ते के किनारे वाले गड्ढे को माना गया और कहा गया कि यदि गड्ढा न होता तो यह दुर्घटना घटित ही नहीं होती |
इस अनुसंधान को ही सच मान लिया जाए तो प्रश्न उठता है कि गड्ढा तो बहुत पहले से था उसी स्थान पर था उसी प्रकार का था उतना ही बड़ा था और वहीं से उसी साधन से वही व्यक्ति प्रतिदिन निकला करता था तब तो ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई उसी दिन ऐसा नया क्या हुआ जिसके कारण इतनी बड़ी दुर्घटना घटित हो गई |इन प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना सिद्धांततः इस अनुसंधान को अधूरा माना जाना चाहिए !क्योंकि यदि उसकी मृत्यु का कारण वह गड्ढा होता तो वर्षों से वह उसी के पास से निकल रहा था तब तो ऐसा नहीं हुआ जब मृत्यु हुई तब उसमें नया कुछ तो हुआ नहीं इसलिए उस गड्ढे का दोष कैसे दिया जाए |
इस दुर्घटना का मुख्य कारण तो उस व्यक्ति का अपना समय था गड्ढा नहीं गड्ढा तो दुर्घटना घटित होने का बहाना मात्र बन गया | समय ही एक मात्र कारण था जो समय पहले होता था वह उस दिन नहीं था उसदिन उसका समय ही अच्छा नहीं था |
यदि प्रयास पूर्वक उस गड्ढे को मिट्टी से भर दिया गया उसके बाद वहाँ से कोई दूसरा समय पीड़ित व्यक्ति निकला तो उसके साथ भी कुछ वैसी ही दुर्घटना घटित हो गई तो उसका कारण कुछ और मान लिया गया किंतु वैसे कारण वहाँ से निकलने वाले अन्य लोगों के साथ भी तो विद्यमान रहते थे उनके साथ तो कोई वैसी दुर्घटना नहीं घटित हुई जिसके साथ घटित हुई उसी के साथ घटित होने का कारण क्या था ? इसे खोजे बिना इस अनुसंधान को पूरा कैसे माना जा सकता है |
प्रकृति से संबंधित विषयों का विज्ञान खोजने में अभी तक आधुनिक मनुष्य असफल ही रहा है असफल रहने के कारण ही प्रकृति से संबंधित अनुसंधानों के नाम पर बहानों को कारण मान लेना उसकी सबसे बड़ी मजबूरी है | इससे बहुत नुक्सान या हुआ है बहाने बदलते जा रहे हैं घटनाएँ घटित होती जा रही हैं अनुसंधान प्रक्रिया ठहरी हुई है | सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों भूकंपों आदि से संबंधित अनुसंधान के नामपर जिस अज्ञान को ढोया जा रहा है उसे विज्ञान कैसे माना जा सकता है और न ही उसका विज्ञान से कोई लेना देना ही है वो सब कुछ वैज्ञानिकों का भटकाव मात्र है |
मौसम भविष्यवक्ता माने जाने वाले लोग मजबूरीबश वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में या मानसून आने जाने की तारीखें गलत होने के विषय में जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग अलनीनों लानीना जैसी कल्पित कहानियाँ सुना दी जाती हैं जिनका संबंधित विषयों से कोई लेना देना नहीं होता है |
प्रकृति से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों से ऐसी भूलें अक्सर होते देखी जा रही हैं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 144 वर्ष हो गए इतना समय कम तो नहीं होता है किन्तु अभी तक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के पूर्वानुमान के विषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कह पाना संभव नहीं है |भूकंप के विषय में तो बिलकुल ही नहीं है | ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सारे अनुसंधान अधूरे पड़े हुए हैं | इसलिए इस दिग्भ्रमित अनुसंधान प्रक्रिया के विषय में पुनर्बिचार की आवश्यकता है |
संबंधों के विषय में 'समय' की भूमिका -
कई बार लोग प्रेम विवाह या विवाह करते तो सारा जीवन साथ रहने के लिए हैं किंतु बीच में ही संबंध बिगड़ने लग जाते हैं करते हैं क्योंकि विवाह जैसा संबंध केवल एक पुरुष और स्त्री का मिलन मात्र नहीं होता है कई बार उन दोनों के संयुक्त अंश से किसी बच्चे को जन्म लेना होता है उस बच्चे के भाग्य से उन दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता है और विवाह हो जाता है बच्चे के जन्म के बाद उन दोनों का एक दूसरे से लगाव घटना लग जाता है ऐसी परिस्थिति में उन दोनों के आपस में विवाह होने का कारण वह बच्चा ही होता है |ऐसे संबंधों के बनने बिगड़ने से सुख दुःख हानिलाभ आदि दोनों मिलते देखे जाते हैं |
कई बार किसी घटना के घटित होने के लिए जिन दो व्यक्तियों को कारण बनना प्रकृति ने निश्चित कर रखा होता है तो उस घटना के घटित होने के लिए वे दोनों लोग किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं और वह घटना घटित होते ही उन दोनों के बिचार आपस में मिलने बंद हो जाते हैं और उन दोनों के संबंध समाप्त हो जाते हैं ऐसा सभी क्षेत्रों में देखा जाता है कोई एक घटना घटित होने मात्र के लिए कोई दो व्यक्ति आपस में जुड़ते हैं और वह घटना घटित होते ही अलग अलग हो जाते हैं |
ऐसे संबंधों के बनने बिगड़ने के लिए उन दोनों में से किसी एक को या उन दोनों को ही अच्छा या बुरा नहीं माना जा सकता है कई बार समय के प्रवाह में वे दोनों उसी प्रकार से एक दूसरे के निकट आ जाते हैं जैसे किसी नदी के प्रवाह में बहते जा रहे लकड़ी के दो टुकड़े कभी एक दूसरे से मिल जाते हैं हैं और कभी अलग हो जाते हैं किंतु उन दोनों का मिलना या अलग होना उनके अपने वश में नहीं होता क्योंकि वे दोनों जिस जलधारा में बहते जा रहे होते हैं वे उसी के आधीन होते हैं | ठीक उसी प्रकार से हम सभी समय की धरा में बहते जा रहे हैं समय ही हमें कभी किसी से मिला देता है और कभी अलग कर देता है |
प्रकृति में ऐसा जब कभी भी होने लगे तब उसका कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है जो शुभ या अशुभ कुछ भी हो सकता है | उससमय अच्छा या बुरा जब जैसा समय चल रहा होता है तब तैसी सूचनाएँ देने वाली घटनाएँ घटित होने लगती हैं | ऐसी घटनाएँ जिस समय घटित होती हैं उस 'समय'के आधार पर इस बात का अनुसंधान करना होता है कि इस घटना के माध्यम से प्रकृति बताना क्या चाहती है उसके अनुशार अपने को व्यवस्थित करना होता है |
प्रकृति में घटित होने वाली छोटी से छोटी घटनाओं से प्रत्यक्ष तौर पर कुछ लाभ हानि होते भले न दीखता हो किंतु निरर्थक वे भी नहीं होती हैं | संसार या समाज में कोई विशिष्ट घटना घटित होने जा रही होती है जिसकी पूर्व सूचना देने के लिए प्रकृति ऐसी अन्य प्राकृतिक घटनाओं का सहारा लेती है |इतिहास में जब जब कोई बड़ी घटना घटित हुई है तब तब उसकी पूर्व सूचना किसी न किसी अन्य घटना के द्वारा प्रकृति प्रायः देती रही है |वो घटना ऐसी होती है ताकि लोगों का ध्यान आसानी से उधर चला जाए और लोग उसके विषय में समझने का प्रयास करें |
वेदवैज्ञानिक ऐसी घटनाओं के घटित होने के 'समय' को आधार बनाकर विश्लेषण करते रहते हैं यदि इनसे भविष्य संबंधी कोई शुभ सूचना मिल रही होती है तो वेद विज्ञान की भाषा में उसे शकुन कह दिया जाता है और यदि कोई अशुभ सूचना मिलने की संभावना होती है तो उसे अपशकुन बता दिया जाता है |वेदविज्ञान की दृष्टि से भविष्य संबंधी प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्यजनित घटनाओं का ऐसे ही पूर्वानुमान लगाया जाता रहा है |
समय से अनुशासित प्रकृति भी देती है संदेश
संसार में कोई भी स्त्री पुरुष पशु पक्षी जीव जंतु पेड़ पौधे समेत प्रकृति में स्थित कोई छोटा से छोटा कण बेकार नहीं है सबकी इस सृष्टि संचालन में कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है | जिसके गुण दोष हानि लाभ या उपयोग आदि के विषय में हम कुछ जानने लगते हैं उसका प्रचार प्रसार उस रूप में हो जाता है |जिसके विषय में हम नहीं जानते हैं उसे निरर्थक मान लेते हैं |यह ठीक नहीं है |
इसी क्रम में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाएँ भी इस सृष्टि संचालन में अपनी अपनी भूमिका अदा कर रही हैं जिनके उपयोग को न समझ पाने के कारण ही इन्हें प्राकृतिक आपदाओं की श्रेणी में मान लिया गया है |
जीवन में घटित होने वाली सुखदुख हानि लाभ जीवन मरण आदि परिस्थितियाँ निरर्थक नहीं हैं अपितु मानव जीवन को व्यवस्थित और सुदृढ़ करने में इनकी भी कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है जिसकी उपयोगिता बड़े बड़े ज्ञानी गुणवान लोग समझते हैं |
किसी व्यक्ति के किसी दूसरे के साथ संबंध बनने या बिगड़ने की जीवन में कोई न कोई भूमिका अवश्य होती है कई बार वह भूमिका दिखाई पड़ रही होती है और कई बार प्रत्यक्ष नहीं भी दिखाई पड़ती है किंतु होती अवश्य है |
इसलिए कभी किसी व्यक्ति वस्तु या घटना को निरर्थक नहीं माना जाना चाहिए हर किसी के होने या घटित होने का कुछ न कुछ प्रयोजन अवश्य होता है | उस प्रयोजन को खोजने का प्रयत्न किया जाना चाहिए |
जिस प्रकार से कोई सरकार या संस्था जब कोई आवश्यक सूचना समाज के प्रत्येक व्यक्ति तक
पहुँचाना चाहती है तो वो जिस किसी भी विज्ञापन माध्यम को अपनाकर अपनी बात
प्रसारित करती है | उस विज्ञापन में जो मुख्यविषय होता है उसे अलग अलग
रंगों आकृतियों कथनशैली आदि के द्वारा अधिक उभारा जाता है ताकि वो देखने
में बाकी विषय से कुछ अलग हटकर आकर्षक लगे जिससे सभी का ध्यान आसानी से उधर चला
जाए और लोगों तक वह सूचना पहुँच जाए |
इसीप्रकार से प्रकृति भी जब जिस क्षेत्र के लोगों को कोई सूचना देना चाहती है वहाँ भी मुख्यविषय को उभारने के लिए प्रकृति में कुछ घटनाएँ ऐसी घटित होनी प्रारंभ हो जाती हैं जो लीक से अलग हटकर होती हैं अर्थात जैसा हमेंशा नहीं होता है कभी कभी जब वैसा होते दिखाई पड़ने लगता है तो लोगों का ध्यान उधर आसानी से चला जाता है |प्रकृति के संकेतों का महत्त्व न समझ पाने वाले लोगों के लिए तो ये एक घटना मात्र होती है घटित हुई और समाप्त हो गई जबकि इन घटनाओं का सामायिक महत्त्व समझने वालों के लिए ये घटनाएँ प्रकृति के द्वारा भेजा गया एक विशेष प्रकार का संदेश होता है जिसके माध्यम से भविष्य की किसी न किसी घटना के विषय में सूचना दी जा रही होती है |
जिस प्रकार से बसंतऋतु में आम का वृक्ष फूलता और फलता है किंतु किसी वर्ष यदि उसी आम के पेड़ में बसंतऋतु के अतिरिक्त किसी अन्य ऋतु में फूल फल लगने लगे तो ये विशेष घटना है इसलिए इधर लोगों का ध्यान आसानी से चला जाता है और इस विशेष घटना के माध्यम से प्रकृति कोई सूचना दे रही होती है उसके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय मिल जाता है |
आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी इन्हीं पाँचों तत्वों से ब्रह्माण्ड की रचना हुई है इनका आपसी अनुपात उचित मात्रा में बने रहने से सारी गतिविधियाँ ठीक ढंग से संचालित होती रहती हैं | जिस क्षेत्र में इनके आपसी अनुपात की मर्यादा छूटने लगती है अर्थात इनमें से किसी का प्रभाव कुछ कम या किसी का प्रभाव कुछ अधिक पड़ने लग जाता है | वहाँ की प्रकृति में समाज में शरीरों में स्वभावों में कोई नई समस्या पैदा होना शुरू हो जाती है |ये पंचतत्वों का संतुलन जितना अधिक बिगड़ रहा होता है | समस्या उतनी अधिक बड़ी तैयार हो रही होती है |
जिस प्रकार से पानी पर तैर रही नौका तभी तक ठीक से तैर पाती है जब तक वह संतुलित रहती है अर्थात उसका भार सभी ओर बराबर होता है किंतु जैसे ही उसमें स्थापित भार किसी ओर कम और किसी ओर अधिक हो जाता है तो वह नौका आपत्तिग्रस्त होकर डूब जाती है | उसी प्रकार से प्रकृति में पञ्चतत्वों का संतुलन बिगड़ते ही कुछ अलग सी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं जो आमतौर पर घटित होते नहीं देखी जाती हैं शरीर में पञ्चतत्वों का संतुलन बिगड़ते ही शरीर रोगी और मन परेशान होने लग जाता है |
इसीलिए किसी क्षेत्र में जब कोई एक प्रकार का रोग बहुत लोगों को होने लगे या किसी एक प्रकार का रोग बहुत पशुओं पक्षियों पेड़ पौधों फसलों आदि में होने लगे तो इसका अर्थ होता है कि उस क्षेत्र में पञ्चतत्वों का संतुलन किसी न किसी रूप में बिगड़ने लगा है जिसके कारण निकट भविष्य में कोई बड़ी प्राकृतिक घटना घटित होने वाली है या उस क्षेत्र में कोई रोग या तनाव पैदा होने वाला है |भूकंप जैसी घटनाओं के संकेत भी ऐसी ही घटनाओं के माध्यम से मिलते देखे जाते हैं |
'समय' के अनुशार चलती है प्रकृति और बीतता है सबका जीवन -
जिसके
जीवन में जब जैसा समय आता है तब उसे वैसा करना पड़ता है समय की चाल को समझे
बिना जो जीवन में जितने भी प्रयास करता है वे सारे जुएँ के दाँव की तरह होते
हैं जो अपने पक्ष में ही होंगे ऐसा निश्चय नहीं होता | उसी प्रकार से समय
के विज्ञान को न समझने वाले लोग सारे जीवन प्रयास करते हैं उनमें से जुएँ के दाँव की तरह कुछ सफल हो भी जाते हैं और कुछ नहीं भी होते हैं | इसीप्रकार से प्रकृति भी जब जिस क्षेत्र के लोगों को कोई सूचना देना चाहती है वहाँ भी मुख्यविषय को उभारने के लिए प्रकृति में कुछ घटनाएँ ऐसी घटित होनी प्रारंभ हो जाती हैं जो लीक से अलग हटकर होती हैं अर्थात जैसा हमेंशा नहीं होता है कभी कभी जब वैसा होते दिखाई पड़ने लगता है तो लोगों का ध्यान उधर आसानी से चला जाता है |प्रकृति के संकेतों का महत्त्व न समझ पाने वाले लोगों के लिए तो ये एक घटना मात्र होती है घटित हुई और समाप्त हो गई जबकि इन घटनाओं का सामायिक महत्त्व समझने वालों के लिए ये घटनाएँ प्रकृति के द्वारा भेजा गया एक विशेष प्रकार का संदेश होता है जिसके माध्यम से भविष्य की किसी न किसी घटना के विषय में सूचना दी जा रही होती है |
जिस प्रकार से बसंतऋतु में आम का वृक्ष फूलता और फलता है किंतु किसी वर्ष यदि उसी आम के पेड़ में बसंतऋतु के अतिरिक्त किसी अन्य ऋतु में फूल फल लगने लगे तो ये विशेष घटना है इसलिए इधर लोगों का ध्यान आसानी से चला जाता है और इस विशेष घटना के माध्यम से प्रकृति कोई सूचना दे रही होती है उसके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए समय मिल जाता है |
आकाश वायु अग्नि जल और पृथ्वी इन्हीं पाँचों तत्वों से ब्रह्माण्ड की रचना हुई है इनका आपसी अनुपात उचित मात्रा में बने रहने से सारी गतिविधियाँ ठीक ढंग से संचालित होती रहती हैं | जिस क्षेत्र में इनके आपसी अनुपात की मर्यादा छूटने लगती है अर्थात इनमें से किसी का प्रभाव कुछ कम या किसी का प्रभाव कुछ अधिक पड़ने लग जाता है | वहाँ की प्रकृति में समाज में शरीरों में स्वभावों में कोई नई समस्या पैदा होना शुरू हो जाती है |ये पंचतत्वों का संतुलन जितना अधिक बिगड़ रहा होता है | समस्या उतनी अधिक बड़ी तैयार हो रही होती है |
जिस प्रकार से पानी पर तैर रही नौका तभी तक ठीक से तैर पाती है जब तक वह संतुलित रहती है अर्थात उसका भार सभी ओर बराबर होता है किंतु जैसे ही उसमें स्थापित भार किसी ओर कम और किसी ओर अधिक हो जाता है तो वह नौका आपत्तिग्रस्त होकर डूब जाती है | उसी प्रकार से प्रकृति में पञ्चतत्वों का संतुलन बिगड़ते ही कुछ अलग सी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगती हैं जो आमतौर पर घटित होते नहीं देखी जाती हैं शरीर में पञ्चतत्वों का संतुलन बिगड़ते ही शरीर रोगी और मन परेशान होने लग जाता है |
इसीलिए किसी क्षेत्र में जब कोई एक प्रकार का रोग बहुत लोगों को होने लगे या किसी एक प्रकार का रोग बहुत पशुओं पक्षियों पेड़ पौधों फसलों आदि में होने लगे तो इसका अर्थ होता है कि उस क्षेत्र में पञ्चतत्वों का संतुलन किसी न किसी रूप में बिगड़ने लगा है जिसके कारण निकट भविष्य में कोई बड़ी प्राकृतिक घटना घटित होने वाली है या उस क्षेत्र में कोई रोग या तनाव पैदा होने वाला है |भूकंप जैसी घटनाओं के संकेत भी ऐसी ही घटनाओं के माध्यम से मिलते देखे जाते हैं |
'समय' के अनुशार चलती है प्रकृति और बीतता है सबका जीवन -
ऐसे कुछ संबंध चल भी जाते हैं और कुछ नहीं भी चलते हैं | कुछ रोगी स्वस्थ हो भी जाते हैं और कुछ नहीं भी होते हैं | कई अपने लक्ष्य को पा लेते हैं कई लोग नहीं भी पा पाते हैं |यही कारण है कि कई बार पति पत्नी के स्वस्थ रहते हुए भी संतान नहीं होती है |
सौ रोगियों की चिकित्सा एक प्रक्रिया से की जाए तो उस चिकित्सा का परिणाम चिकित्सा के अनुशार नहीं अपितु उन रोगियों के अपने अपने समय के अनुशार हो रहा होता है | इसमें तो कुछ स्वस्थ होते हैं कुछ चिकित्सा के बाद भी अस्वस्थ रहते हैं और कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं इनमें से स्वस्थ वही होते हैं जिनका अपना समय अच्छा चल रहा होता है अन्यथा चिकित्सकाल में ही उनमें से कुछ मृत्यु को भी प्राप्त होते देखे जाते हैं | केवल चिकित्सा के अनुशार यदि परिणाम होते तो चिकित्सा का प्रभाव सभी रोगियों पर एक जैसा पड़ता किंतु प्रायः ऐसा होते नहीं देखा जाता है |
कुलमिलाकर समय की शक्ति को कोई माने या न माने किंतु प्रकृति से जीवन तक सब कुछ समय के अनुशार ही घटित हो रहा है | वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि सभी घटनाएँ समय के अनुशार ही घटित हो रही हैं | इसी प्रकार से प्रत्येक व्यक्ति को समय के अनुशार ही चलना पड़ता है जो समय के अनुशार नहीं चलते हैं समय उन्हें अपने अनुशार चला लेता है और उन्हें मजबूरी में उसी के अनुशार चलना पड़ता है | समय के विरुद्ध जो कार्य अपनी हठ इच्छाओं या अहंकार के बशीभूत होकर करते हैं उसमें असफल होते देखे जाते हैं हैं |
कई बार देखा जाता है कि बिना कोई कारण दिखाई दिए बिना भी अच्छे भले स्वस्थ लोग भी रोगी होने लगते हैं जिसका कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा होता है और न ही किसी चिकित्सा का ही उन पर असर हो रहा होता है | ऐसे लोग समय के कारण अस्वस्थ होते हैं और स्वस्थ भी समय बदलने से ही होते हैं और समय यदि साथ नहीं देता है तो कितने भी चिकित्सकीय प्रयास क्यों न कर लिए जाएँ किंतु स्वस्थ होने की संभावना नहीं बन पाती है |उलटे कुछ रोगी तो गहन चिकित्साकाल में भी मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं |
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में समय ख़राब होने पर ही कोई महामारी फैलती है और उस क्षेत्र में रहने वाले जिन जिन लोगों का अपना समय खराब होता है उस महामारी का प्रभाव भी उन्हीं लोगों पर अधिक पड़ता है यही कारण है कि उस महामारी में भी वही लोग अधिक पीड़ित होते हैं जिनका अपना समय अच्छा नहीं चल रहा होता है |
किसी का समय जब अच्छा चल रहा होता है तभी उसके द्वारा किए गए प्रयास सफल होते हैं और तभी उसकी उन्नति होती है तभी उसे अच्छे मित्र मिलते हैं तभी उसे अच्छा पति या पत्नी मिलता है, तभी उसके साथ लोग अच्छा व्यवहार करते हैं , तभी उसे अच्छे मकान में रहने को एवं अच्छे वाहन से चलने को मिलता है ,समय ठीक हो तो व्यक्ति बुरी परिस्थितियों से घिर कर भी वहाँ से सकुशल निकल आता है | समय अच्छा हो तो मित्र क्या शत्रु भी सुख देने वाला व्यवहार करने लगते हैं और यदि समय अच्छा न हो तो अपने सगे संबंधी लोग भी अपने साथ अप्रिय व्यवहार करने लगते हैं या संबंध तोड़ लेते हैं यहाँ तक कि अपना पति या पत्नी भी ऐसे समय में अपना साथ छोड़ दिया करते हैं |समय अच्छा हो तो बड़े बड़े पद प्रतिष्ठा वैभव आदि अनायास ही मिल जाया करते हैं ऐसे समय में विरोधी लोग भी प्रशंसा करते देखे जाते हैं | समय ख़राब हो तो अपने लोग भी बुराई करते देखे जाते हैं |
जिन परिस्थितियों में अच्छे समय में लोग प्रसन्न रह लेते हैं उन्हीं परिस्थितियों में बुरे समय में लोगों को तनावग्रस्त होते देखा जाता है |बुरे समय का सामना कर रहे लोग किसी व्यक्ति के लिए कितना भी सोच बिचार कर कितनी भी अच्छी भाषा बोलने का प्रयास करें किंतु उनके मुख से कुछ ऐसा निकल जाता है कि उन्हें अपनी बातों पर भी दुःख लगने लगता है पछतावा होने लगता है|इसीप्रकार से दूसरे लोग भी इनसे कितनी भी अच्छी बातें करें उनसे जाने अनजाने में कुछ ऐसा जरूर निकल जाता है जिससे कि इन्हें उससे भी तनाव हो जाता है |समय पीड़ित लोगों का उस परिस्थिति में साथ देने वाले लोगों की सबसे बड़ी अग्नि परीक्षा होती है उन्हें मदद तो करनी ही होती है इसके साथ ही यह भी ध्यान रखना होता है उस व्यक्ति को कुछ बुरा न लग जाए |
समय पीड़ित लोगों के द्वारा किए गए प्रयास अक्सर असफल होते देखे जाते हैं ऐसे लोग यदि किसी वैज्ञानिक टीम में सम्मिलित होकर कोई अनुसंधान करते हैं तो जिस अनुपात में समय पीड़ित लोग उस टीम में सम्मिलित होते हैं उसी अनुपात में ऐसे अनुसंधान कार्यों को रुकावटों का सामना करना पड़ता है |
इसी प्रकार से किसी युद्ध की परिस्थिति पैदा होने पर समय पीड़ित लोगों की संख्या यदि किसी सेना की टुकड़ी में अधिक हो तो ऐसे लोग जिस सीमा में तैनात किए जाते हैं उस युद्ध क्षेत्र में विजय तो दूर उनका सकुशल लौट पाना भी संदिग्ध बना रहता है |ऐसा ही प्रकृति और जीवन से संबंधित बहुत से अन्य क्षेत्रों में भी घटित होते देखा जाता है |
समय और घटनाएँ
समय की दृष्टि से देखा जाए तो प्रकृति से लेकर जीवन तक सब कुछ समय से प्रभावित हो रहा है सबकुछ समय के साथ साथ बदलता जा रहा है | प्रकृति या जीवन से संबंधित जिन नई नई परिस्थितियों के रूप में स्वस्थ अस्वस्थ सुखी दुखी मिलते बिछुड़ते आदि विभिन्न स्वरूपों में लोग दिखाई पड़ते हैं या प्रकृति में वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाएँ घटित होती दिखाई पड़ती हैं | ये हमारे लिए तो घटनाएँ ही हैं किंतु समय की दृष्टि से देखा जाए तो ये समय के साथ साथ होने वाले प्रकृति और जीवन से संबंधित बदलाव हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ और बचपन जवानी बुढ़ापा अवस्थाएँ सुनिश्चित बदलवाव की श्रेणी में आते हैं इसीलिए ये अपने अपने समय पर प्रतिवर्ष और सभी के जीवन में घटित होते देखे जाते हैं | इसी प्रकार स्वस्थ अस्वस्थ हर्ष शोक आदि जीवन से संबंधित परिस्थितियाँ और वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि प्रकृति से संबंधित घटनाएँ भी तो समय के साथ साथ साथ प्रकृति और जीवन में होने वाले समय जनित बदलाव ही हैं | जो अत्यंत सूक्ष्म वैज्ञानिक चिंतन से ही समझ में आते हैं |
किसी गड्ढे के पास से एक रास्ता था एक व्यक्ति अपने काम पर जाने के लिए उसी रास्ते से प्रतिदिन निकलता था वर्षों बीत जाने के बाद एक बार जब उसका समय खराब आया तब एक दिन उसकी मोटर साइकिल उसी गड्ढे में गिर गई और उसकी मृत्यु हो गई !
इस घटना की वैज्ञानिक जाँच की जाने लगी और मृत्यु का कारण खोजने के विषय में जब अनुसंधान हुआ तो उस अनुसंधान के आधार पर मृत्यु का कारण रास्ते के किनारे वाले गड्ढे को माना गया और कहा गया कि यदि गड्ढा न होता तो यह दुर्घटना घटित ही नहीं होती |
इस अनुसंधान को ही सच मान लिया जाए तो प्रश्न उठता है कि गड्ढा तो बहुत पहले से था उसी स्थान पर था उसी प्रकार का था उतना ही बड़ा था और वहीं से उसी साधन से वही व्यक्ति प्रतिदिन निकला करता था तब तो ऐसी कोई घटना घटित नहीं हुई उसी दिन ऐसा नया क्या हुआ जिसके कारण इतनी बड़ी दुर्घटना घटित हो गई |इन प्रश्नों का उत्तर खोजे बिना सिद्धांततः इस अनुसंधान को अधूरा माना जाना चाहिए !क्योंकि यदि उसकी मृत्यु का कारण वह गड्ढा होता तो वर्षों से वह उसी के पास से निकल रहा था तब तो ऐसा नहीं हुआ जब मृत्यु हुई तब उसमें नया कुछ तो हुआ नहीं इसलिए उस गड्ढे का दोष कैसे दिया जाए |
इस दुर्घटना का मुख्य कारण तो उस व्यक्ति का अपना समय था गड्ढा नहीं गड्ढा तो दुर्घटना घटित होने का बहाना मात्र बन गया | समय ही एक मात्र कारण था जो समय पहले होता था वह उस दिन नहीं था उसदिन उसका समय ही अच्छा नहीं था |
यदि प्रयास पूर्वक उस गड्ढे को मिट्टी से भर दिया गया उसके बाद वहाँ से कोई दूसरा समय पीड़ित व्यक्ति निकला तो उसके साथ भी कुछ वैसी ही दुर्घटना घटित हो गई तो उसका कारण कुछ और मान लिया गया किंतु वैसे कारण वहाँ से निकलने वाले अन्य लोगों के साथ भी तो विद्यमान रहते थे उनके साथ तो कोई वैसी दुर्घटना नहीं घटित हुई जिसके साथ घटित हुई उसी के साथ घटित होने का कारण क्या था ? इसे खोजे बिना इस अनुसंधान को पूरा कैसे माना जा सकता है |
प्रकृति से संबंधित विषयों का विज्ञान खोजने में अभी तक आधुनिक मनुष्य असफल ही रहा है असफल रहने के कारण ही प्रकृति से संबंधित अनुसंधानों के नाम पर बहानों को कारण मान लेना उसकी सबसे बड़ी मजबूरी है | इससे बहुत नुक्सान या हुआ है बहाने बदलते जा रहे हैं घटनाएँ घटित होती जा रही हैं अनुसंधान प्रक्रिया ठहरी हुई है | सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफानों भूकंपों आदि से संबंधित अनुसंधान के नामपर जिस अज्ञान को ढोया जा रहा है उसे विज्ञान कैसे माना जा सकता है और न ही उसका विज्ञान से कोई लेना देना ही है वो सब कुछ वैज्ञानिकों का भटकाव मात्र है |
मौसम भविष्यवक्ता माने जाने वाले लोग मजबूरीबश वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में या मानसून आने जाने की तारीखें गलत होने के विषय में जलवायु परिवर्तन ग्लोबल वार्मिंग अलनीनों लानीना जैसी कल्पित कहानियाँ सुना दी जाती हैं जिनका संबंधित विषयों से कोई लेना देना नहीं होता है |
प्रकृति से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों की जिम्मेदारी सँभाल रहे लोगों से ऐसी भूलें अक्सर होते देखी जा रही हैं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 144 वर्ष हो गए इतना समय कम तो नहीं होता है किन्तु अभी तक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के पूर्वानुमान के विषय में विश्वासपूर्वक कुछ भी कह पाना संभव नहीं है |भूकंप के विषय में तो बिलकुल ही नहीं है | ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित सारे अनुसंधान अधूरे पड़े हुए हैं | इसलिए इस दिग्भ्रमित अनुसंधान प्रक्रिया के विषय में पुनर्बिचार की आवश्यकता है |
संबंधों के विषय में 'समय' की भूमिका -
कई बार लोग प्रेम विवाह या विवाह करते तो सारा जीवन साथ रहने के लिए हैं किंतु बीच में ही संबंध बिगड़ने लग जाते हैं करते हैं क्योंकि विवाह जैसा संबंध केवल एक पुरुष और स्त्री का मिलन मात्र नहीं होता है कई बार उन दोनों के संयुक्त अंश से किसी बच्चे को जन्म लेना होता है उस बच्चे के भाग्य से उन दोनों का एक दूसरे के प्रति आकर्षण बढ़ता है और विवाह हो जाता है बच्चे के जन्म के बाद उन दोनों का एक दूसरे से लगाव घटना लग जाता है ऐसी परिस्थिति में उन दोनों के आपस में विवाह होने का कारण वह बच्चा ही होता है |ऐसे संबंधों के बनने बिगड़ने से सुख दुःख हानिलाभ आदि दोनों मिलते देखे जाते हैं |
कई बार किसी घटना के घटित होने के लिए जिन दो व्यक्तियों को कारण बनना प्रकृति ने निश्चित कर रखा होता है तो उस घटना के घटित होने के लिए वे दोनों लोग किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे के साथ जुड़ जाते हैं और वह घटना घटित होते ही उन दोनों के बिचार आपस में मिलने बंद हो जाते हैं और उन दोनों के संबंध समाप्त हो जाते हैं ऐसा सभी क्षेत्रों में देखा जाता है कोई एक घटना घटित होने मात्र के लिए कोई दो व्यक्ति आपस में जुड़ते हैं और वह घटना घटित होते ही अलग अलग हो जाते हैं |
ऐसे संबंधों के बनने बिगड़ने के लिए उन दोनों में से किसी एक को या उन दोनों को ही अच्छा या बुरा नहीं माना जा सकता है कई बार समय के प्रवाह में वे दोनों उसी प्रकार से एक दूसरे के निकट आ जाते हैं जैसे किसी नदी के प्रवाह में बहते जा रहे लकड़ी के दो टुकड़े कभी एक दूसरे से मिल जाते हैं हैं और कभी अलग हो जाते हैं किंतु उन दोनों का मिलना या अलग होना उनके अपने वश में नहीं होता क्योंकि वे दोनों जिस जलधारा में बहते जा रहे होते हैं वे उसी के आधीन होते हैं | ठीक उसी प्रकार से हम सभी समय की धरा में बहते जा रहे हैं समय ही हमें कभी किसी से मिला देता है और कभी अलग कर देता है |
जिसप्रकार से किसी जल धारा में दो नावें बराबर बहती जा रही होती हैं उन
में बैठे कुछ लोग कई बार कौतूहलवश एक दूसरे का हाथ पकड़कर साथ साथ चलने लग
जाते हैं तो उसमें बैठे अनुभवी लोग उन्हें ऐसा करने से रोकते हैं क्योंकि
उन्हें पता होता है कि दोनों नौकाएँ पास पास भले चल रही हैं क्योंकि ये
दोनों जिस जल के आधीन हैं वो जल न जाने इन दोनों के बीच कब कहाँ कितनी आपसी
दूरियाँ पैदा कर दे और उन दोनों का जीवन संकट में पड़ जाए |
इसीप्रकार से समय की धारा में बहता चला जा रहा हम सभी का जीवन कब
कहाँ किससे मिलना बिछुड़ना हो या न हो इस पर अपना कोई वश नहीं होता है ये तो
उस समय के आधीन है जिसके बशीभूत होकर हम सभी लोग जीवन जी रहे हैं |हमलोगों
को मिलने बिछुड़ने का सुख दुःख तो होता है किंतु इस प्रक्रिया पर किसी का
वश नहीं है | इसीलिए ज्ञानी गुणवान अनुभवी योगी साधक सिद्ध साधू संत आदि
सबको माया मोह से दूर रहे की सलाह देते हैं क्योंकि उन्हें पता होता है कि
जब ये छूटेंगे तब जो दुःख होगा उससे बचने का सबसे सरल रास्ता यही है कि
किसी भी संबंध के प्रति इतना अधिक समर्पित नहीं हो जाना चाहिए कि उसके अलग
होने के दुःख को सहना कठिन हो जाए |
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की पटकथा लिखता है 'समय' -
एक मुख्यमंत्री सरकारी काम से किसी विमान से कहीं जा रहा था रास्ते में विमान एक पहाड़ी से टकराकर गिर जाता है और उस मुख्यमंत्री की मृत्यु हो जाती है |इसी प्रकार से अंतरिक्ष यात्रा पर गई किसी महिला का यान सुदूर आकाश में दुर्घटना का शिकार हो जाता है | देखने में ये दोनों घटनाएँ सामान्य स्वतंत्र और अचानक घटित हुई सी लगती हैं जबकि वास्तविकता यह नहीं है किसी सामान्य परिवार के सामान्य व्यक्ति की मृत्यु इस स्थिति में होनी संभव नहीं थी |
किसी भी व्यक्ति की जिस स्तर की मृत्यु समय के द्वारा निर्धारित की गई होती है उस व्यक्ति की बचपन से ही सोच वैसी बन जाती है धीरे धीरे वो उसी ओर मुड़ता चला जाता है उसी प्रकार का खान पान रहन सहन घूमना फिरना पढ़ाई लिखाई नौकरी चाकरी आदि सब कुछ वैसा ही अपनाता चला जाता है |कुछ लोग ज्ञान धन पराक्रम नास्तिकता आदि के भ्रम में पड़कर समय भाग्य और ईश्वर को मानने का आडम्बर करते हैं इन बातों की आलोचना में अपना काफी समय बर्बाद कर दिया करते हैं किंतु समय से प्रेरित होकर चले उसी ओर जा रहे होते हैं जिस ओर समय निर्धारित मृत्यु उनकी प्रतीक्षा कर रही होती है |कुल मिलाकर जीवन उनका भी समय के अनुशार ही चला जा रहा होता है | वस्तुतः समय के प्रभाव को नकार पाना मनुष्य के बश की बात नहीं है |इसलिए जिस मनुष्य की मृत्यु प्रकृति के द्वारा जिस स्तर की निश्चित की गई होती है वो उसी ओर बढ़ने लग जाता है |
एक सामान्य परिवार के व्यक्ति की मृत्यु विमान पर बैठकर एक ऐसे पहाड़ से टकराकर कर होने के विषय में समय के द्वारा निर्धारित किया गया था | समय की लिखी इस पटकथा के अनुशार वो बचपन से ही चलने लगा उसका झुकाव राजनीति की ओर होने लगा इसलिए वह विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीत गया उसके पक्ष में बहुमत बना इसलिए वो मुख्यमंत्री बन गया | इसके बाद उसे ऐसा कार्य लगा जिसके कारण उसे विमान से उस पहाड़ी के पास से गुजरना पड़ा और उसी पहाड़ी से टकराकर दुर्घटना घटित हुई जिससे उसकी मृत्यु हो गई | ऐसी परिस्थिति में यदि बिचार किया जाए तो उसकी इस प्रकार की मृत्यु में ये सारी प्राकृतिक घटनाएँ सहायक हुईं |
यही स्थिति एक महिला की मृत्यु अंतरिक्ष में होने की है | उसकी शैक्षणिक रूचि सफलता संसाधन उसका अंतरिक्ष जाने वाले लोगों के साथ चयन ये सबकुछ उस महिला की अंतरिक्ष में मृत्यु होने की भूमिका में सम्मिलित मृत्यु की सहयोगी घटनाएँ थीं जिन्हें वह अपनी सफलता या उन्नति मान कर आगे बढ़ती जा रही थी ,अन्यथा यदि परिस्थितियाँ साथ न देतीं तो वो चाहकर भी अंतरिक्ष में जाकर कैसे मृत्यु का वरण कर सकती थी क्योंकि ये आम आदमी के लिए कैसे संभव हो सकता था |
समय के रहस्य को न समझने वालों के द्वारा ऐसी घटनाओं की जाँच करते समय विमान में आई तकनीकी खराबी ,चालक की लापरवाही, मौसम का साथ न देना आदि उस घटना के घटित होने में कारण सामने लाए जाते हैं वे वास्तविक कारण नहीं होते अपितु ये तो मुख्य घटना (मृत्यु) की सहयोगी घटनाएँ होती हैं जो प्लेन पर बैठे उस व्यक्ति के विमान को पहाड़ में टकराकर उस व्यक्ति की मृत्यु की सहायक की घटनाओं के रूप में अपनी अपनी भूमिका अदाकर रही होती हैं |
मिशन चंद्रयान 2 की सफलता संदिग्ध रही इसके निर्माण में भारी भरकम धनराशि लगी विद्वान वैज्ञानिकों ने उसे सफल बनाने के लिए संपूर्ण प्रयास किए इसके बाद भी उसका उस तरह से सफल न होना जिस प्रकार का लक्ष्य लेकर यह प्रयास प्रारंभ किया गया था | इसका कारण उसमें कहीं कोई कमी छूट गई होगी इसकी संभावना अत्यंत कम है क्योंकि यदि कमी रह जाती तो इतने विद्वान् वैज्ञानिकों में से किसी का ध्यान तो उधर जाता क्योंकि यह तो उन सबके द्वारा किया गया संयुक्त प्रयास था |इसकी संदिग्ध सफलता के लिए जिन भी कारणों को जिम्मेदार माना जाए वो एक अलग बात है किंतु सच यह भी है कि उसका सफल न होना यदि नियति ने निश्चित कर रखा था तो उसे सफल बनाने के लिए किए जाने वाले प्रयास उसे असफल बनाने में अपनी भूमिका निर्वाह करके नियति का साथ देने लगे थे |
कोई संपन्न स्वस्थ व्यक्ति अचानक अस्वस्थ होता है अच्छी से अच्छी चिकित्सा के लिए प्रयास किए जाते हैं इसके बाद भी उसकी मृत्यु हो जाती है | ऐसी घटनाओं में मृत्यु के कारण की खोज के रूप में रोगी का अपथ्यसेवन ,समय से चिकित्सा सुविधा न मिलपाना ,चिकित्सक की लापरवाही की या आवश्यक औषधियों का समय से रोगी को न मिलपाना या औषधियों के निर्माण की प्रक्रिया में कमी के कारण असर का कम होना आदि जितने भी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ने वाले कारण जिम्मेदार माने जा रहे होते हैं उन सबसे बिल्कुल अलग एक कारण प्रमुख कारण होता है उस रोगी का अपना 'समय' जिसके कारण उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में उस रोग का प्रवेश हुआ बाकी सारी घटनाएँ तो उसके बाद घटीं यदि वो अस्वस्थ ही न होता तो उसे अस्पताल नहीं पड़ता चिकित्सक से नहीं मिलना पड़ता दवा की आवश्यकता ही नहीं होती | इसलिए उस रोगी की मृत्यु तो उसके रोगी होने के साथ ही प्रारंभ हो चुकी थी जो समस्त चिकित्सकीय प्रयासों के तटबंध तोड़ती हुई समय के द्वारा निर्धारित की गई भूमिका का पालन करती जा रही थी |
किसी वस्तु का बिनाश उसके निर्माण के साथ ही निश्चित हो जाता है | जीव की मृत्यु उसके जन्म के साथ ही प्रारंभ हो जाती है समय बीतता जाता है घटनाएँ घटित होती जाती हैं जिन घटनाओं को हम उस व्यक्ति की मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान रहे होते हैं वे घटनाएँ उसकी मृत्यु का वास्तविक कारण न होकर अपितु उस नियति निर्धारित 'मृत्युकार्य' में सहयोगिनी मात्र होती हैं |
'समय' का संपूर्ण प्रकृति पर प्रभाव -
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाएँ एवं जीवन में घटित होने वाली सुखदुख हानि लाभ जीवन मरण आदि जीवन संबंधी घटनाएँ कभी मुख्य भूमिका निभा रही होती हैं | इनमें से कोई भी घटना किसी दूसरी घटना में मुख्य भूमिका में हो सकती है और किसी घटना में सहयोगिनी हो सकती है |जो कभी सहयोगिनी घटनाओं के रूप में घटित होकर मुख्य घटना के घटित होने की सूचना दे रही होती है |
कई बार जीवों के स्वभाव तथा स्वास्थ्य से संबंधित कुछ घटनाएँ निकट भविष्य में संभावित कुछ प्राकृतिक घटनाओं की सहयोगिनी घटनाओं के रूप में भूमिका अदा कर रही होती हैं जिन्हें देखकर उनसे संबंधित भविष्य में घटित होने वाली मुख्य घटना का पूर्वानुमान पता लग जाता है |
इसी प्रकार से आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ जैसी कुछ प्राकृतिक घटनाएँ निकट भविष्य में संभावित होती हैं कुछ स्वास्थ्य और स्वभाव में संभावित परिवर्तनों के संकेत दे रही होती हैं | इसी प्रकार से जीवों के स्वास्थ्य और स्वभाव से संबंधित कुछ परिवर्तन एवं प्रकृति में घटित होने वाली कुछ घटनाएँ निकट भविष्य में संभावित भूकंप जैसी कुछ बड़ी घटनाओं के घटित होने जैसे संकेत दे रही होती हैं | जिन्हें देखकर भविष्य में घटित होने वाली संभावित भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
कई बार कुछ भूकंप जैसी घटनाएँ निकट भविष्य में घटित होने वाली सूखा वर्षा अतिवर्षा तूफानों आदि के संकेत दे रहे होते हैं | दो राष्ट्रों में एक साथ आने वाले कुछ संयुक्त भूकंप उनके बीच पनपने वाली मित्रता शत्रुता या संभावित युद्ध के संकेत दे रहे होते हैं | केवल एक ही देश के किसी स्थान में आ रहे भूकंप उस क्षेत्र के विषय में सरकारों के द्वारा लिए जाने वाले राजनैतिक फैसलों के विरुद्ध उमड़ने वाले संभावित सामूहिक आक्रोश के संकेत दे रहे होते हैं | इसी प्रकार से कुछ भूकंप आतंकीगतिविधियों ,बमविस्फोटों,जनांदोलनों, सामाजिक उन्माद ,दंगा भड़कने या अन्य प्रकार से नरसंहार या देश की सीमाओं में गुपचुप तरीके से होने वाली घुसपैठ होने के संकेत दे रहे होते हैं |
ऐसे भूकंपों की सबसे बड़ी पहचान यही होती है कि किसी प्रकार के संकेत देने के लिए आने वाले भूकंप जहाँ कहीं भी घटित होते हैं उनसे जन धन की हानि नहीं होती है | जिन भूकंपों में जनधन की हानि होती है वे भूकंप सहायक घटना के रूप में नहीं अपितु मुख्य घटना की भूमिका का निर्वाह कर रहे होते हैं उनके घटित होने के विषय के संकेत प्रकृति में घटित हुई कुछ अन्य घटनाओं के द्वारा पहले से दी जा रही होती हैं जिनके अभिप्राय को न समझ पाने के कारण ही जब भूकंप जैसी वे घटनाएँ घटित होती हैं तो अचानक घटित हुई सी लगती हैं |
ऐसे मुख्य भूकंपों के निर्माण संबंधी सूचना प्रकृति विभिन्न घटनाओं लक्षणों संकेतों के द्वारा भूकंप घटित होने से लगभग छै महीने पहले से प्रकट करने लगती है ऋतुओं के प्रभाव में या तो बहुत कमी या बहुत अति देखी जाने लगती है जिसे वैदिक विज्ञान की भाषा में 'ऋतुध्वंस' कहा जाता है यही क्रम भूकंप घटित होने के छै महीने बाद तक चला करता है जो धीरे धीरे क्रमशः समाप्त होते जाता है |
ऐसे भूकंपों के कारण एक वर्ष तक उस क्षेत्र की संपूर्ण प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है जिसका प्रभाव उस क्षेत्र की वायु पर पड़ता है जल पर पड़ता है वृक्षों बनस्पतियों पर पड़ता है फसलों पर पड़ता है उससे उनकी पैदावार प्रभावित होती है !उन फूलों फलों अनाज आदि की सुगंध स्वाद आदि उनके गुणों की न्यूनाधिकता पर असर पड़ता है |बनस्पतियाँ उन गुणों से विहीन हो जाती हैं जिनके लिए वे पहचानी जाती रही होती हैं |
इनका मनुष्यों समेत सभी जीव जंतुओं के स्वास्थ्य और स्वभाव पर असर पड़ता है | स्वभाव बिगड़ने से उस क्षेत्र का चिंतन बिगड़ता है अच्छे भले शिक्षित और समझदार लोग उन्मादित होकर एक दूसरे को पराजित कर देने की भावना से भावित होने लगते हैं | स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के कारण मनुष्यों समेत अधिकाँश जीव जंतुओं में बेचैनी बढ़ने लग जाती है जिससे उनके स्वभाव आचार व्यवहार आदि में अंतर पड़ने लगता है |
इस 'ऋतुध्वंस' का असर स्वास्थ्य पर भी पड़ता है जिससे अनेकों प्रकार के रोग पनपने लगते हैं 'ऋतुध्वंस' के कारण कुछ समय के लिए असर विहीन हो चुकीं औषधियाँ ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने में अक्षम होती चली जाती हैं जिससे कई बार रोग महामारी का स्वरूप लेने लग जाते हैं | ऐसे रोगों की अधिकृत प्रभावी औषधियों से लाभ न होने के कारण चिकित्सकों को किसी नए रोग या विषाणु(वायरस) पनपने का भ्रम होने लगता है | इसके बाद ऋतुध्वंस का प्रभाव जैसे जैसे कम होते जाता है वैसे वैसे रोगों से मुक्ति मिलती चली जाती है और सबकुछ सामान्य होता चला जाता है |
ऐसे भूकंपों के निर्माण होने की प्रक्रिया कई बार प्राकृतिक एवं कई बार प्राणी ऊर्जा होती है जिसमें भारी संख्या में मनुष्यों पशु पक्षियों आदि का सामूहिक संहार या उत्पीड़न आदि होता है |
कई बार किसी क्षेत्र विशेष में प्रकृति से लेकर जीवों तक के चिर स्वभाव से अलग हटकर कुछ बदलाव आने लग जाते हैं जैसा होते हमेंशा नहीं देखा जाता है |किसी एक प्रकार के जीव जंतु व्याकुल होने या मरने लगते हैं या उस क्षेत्र में कोई ऐसा रोग फैलने लगता है जिसका निदान एवं चिकित्सा किसी को समझ में ही नहीं आती है या किसी एक प्रकार के पेड़ पौधे बनस्पतियों आदि में विकार आने लग जाते हैं | बार बार आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ घटित होने लग जाती हैं | किसी क्षेत्र विशेष में अचानक नदी नदी कुएँ तालाब आदि सूखने लग जाते हैं बार बार वर्षा बाढ़ आदि की घटनाएँ अति मात्रा में घटित होने लग जाती हैं !ऐसी घटनाएँ प्रकृति में निर्मित हो रही किसी भूकंप जैसी बड़ी घटना का संकेत दे रही होती हैं |
कुलमिलाकर प्रकृति या जीवन से संबंधित ऐसी सभी प्रकार की घटनाओं की अचानक घटित होने की प्रक्रिया देखकर तो ऐसा लगता है कि जैसे ये सभी स्वतंत्र और निरंकुश हैं इसलिए ये कभी भी कहीं भी किसी के भी जीवन में घटित हो सकती हैं जबकि सच्चाई इससे अलग है ये सभी समय नियम स्थान आदि सिद्धांत सूत्र में दृढ़ता पूर्वक पिरोई हुई हैं जिसे समझने के लिए इसके विज्ञान का खोजा जाना अभी तक अवशेष है |
भूकंप के विषय में दो शब्द -
भूकंप जब जहाँ कहीं भी आते हैं वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है चारों ओर हाहाकार मच जाता है अक्सर जब भूकंप आते हैं तो छोटे से लेकर बड़े तक बहुत नुक्सान होते देखे जाते हैं | ये उस भूकंप का एक पक्ष है दूसरा पक्ष यह भी है कि वह भूकंप निकट भविष्य में घटित होने वाली किसी अन्य घटना की सूचना दे रहा होता है | ज्ञान के अभाव में भूकंप के द्वारा प्रदत्त सूचना के विषय में तो किसी का ध्यान जाता नहीं है और न ही इसकी आवश्यकता ही समझी जाती है केवल भूकंप के वर्तमान स्वरूप की चर्चा एवं उसके प्रभाव से होने वाले नुक्सान की चर्चा की जा रही होती है |
ऐसे भयावह वातावरण में टीवी चैनलों पर भी गिरते हुए मकान फटी धरती टूटे पेड़ आदि के प्रतीकात्मक डरावने दृश्य दिखाए जाने लगते हैं! समाज एक तो भूकंप की दहशत से परेशान होता है तो दूसरे टीवी चैनलों पर एक से एक डरावनी बातें बताई जा रही होती हैं | अभी झटके लगते रहेंगे इसलिए खुली जगह में आ जाओ जैसी सलाहें समाज को दी जा रही होती हैं |डेंजर जोन गिनाए जा रहे होते हैं भूकंप रोधी बिल्डिंगें बनाने की सलाहें दी जा रही होती हैं | इसके साथ ही ये कहना कभी नहीं भूलते हैं कि निकट भविष्य में बहुत बड़ा भूकंप आएगा क्योंकि हिमालय के नीचे गैसों का भारी भंडार संचित हो गया है |गैसों के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटें रगड़ती हैं उसी से भूकंप आता है ! भूकंप का केंद्र कहाँ था,तीव्रता कितनी थी कितनी गहराई पर था कितने बजे आया था आदि बातें बताकर रीति रिवाज निभा लिए जातें हैं डेंजर जोन वाली हर बार जरूर बताते हैं !ये बताना नहीं भूलते कि इस तीव्रता का भूकंप दिल्ली में आएगा तो क्या क्या हो सकता है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसी बातें एक ओर तो अत्यंत विश्वास पूर्वक समझाई जा रही होती हैं तो वहीं दूसरी ओर वही लोग कह रहे होते हैं कि अभी भूकंपों के विषय में कोई अनुसंधान सफल नहीं हो सका है | इसलिए भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं है |
पिछले कुछ दशकों से इस क्षेत्र में निरंतर शोधकार्य करते करते मुझे लगने लगा है कि जब प्रकृति या समाज में अचानक और अकारण बहुत अधिक दुर्घटनाएँ घटने लगें या अधिक आग लगने की घटनाएँ घटित हों या वर्षा बाढ़ रोग या सामाजिक वैमनस्य ,आतंकवादी दुर्घटनाएँ या दो राष्ट्रों के बीच बढ़ता प्रेमालाप या बढ़ता वैर विरोध आदि तब भूकंप प्रेरक शक्तियों के आदेशों की प्रतीक्षा होने लगती है !
सकारण होने वाली घटनाओं का संबंध भूकंपों से नहीं माना जाना चाहिए !अचानक और अकारण घटने वाली घटनाएँ ही भूकंप प्रेरित मानी जानी चाहिए ! वैसे भी ऐसे विषयों पर अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है|
भूकंप जैसी बड़ी घटनाएँ वस्तुतः ये प्राकृतिक उत्पात होते हैं इसका मतलब ये केवल संकेत मात्र होते हैं भविष्य संबंधी घटनाएँ घटने के समय में और इनकी सूचनाओं में इतना अंतर तो होता है कि कई बार उन घटनाओं के दुष्प्रभाव से बचाव का प्रयास किया जा सकता है |
-भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में मिलने वाले संदेश-
प्राकृतिक आपदाओं के नाम से घटित होने वाली घटनाओं का दूसरा कारण उस स्थल में रहने वालों को कोई संदेशा देना भी होता है !ऐसे संदेश निकट भविष्य में होने वाली बाढ़ के हो सकते हैं आँधी तूफान के हो सकते हैं इसके अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार की प्राकृतिक सामाजिक शारीरिक मानसिक आदि घटनाएँ भी संभव हो सकती हैं |
हिंसक आतंकी घटनाओं की सूचना देते हैं भूकंप |
कुछ देश प्रदेश आदि आतंकवाद उग्रवाद आदि हिंसक घटनाओं से बहुत अधिक पीड़ित हैं कई बार यह आतंकवाद आदि देश के अंदर पनप रही किसी बगावती बिचारधारा के कारण होता है कई बार किसी पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद होता है |
आतंकी लोग स्वदेश के हों या विदेश के इनका उद्देश्य जनसंहार करना होता है उसके लिए ये तरह तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं | अक्सर देखा जाता है कि ऐसे लोग भारी भरकम विस्फोटक आदि लेकर किसी क्षेत्र में
विस्फोट कर देते हैं |
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की पटकथा लिखता है 'समय' -
एक मुख्यमंत्री सरकारी काम से किसी विमान से कहीं जा रहा था रास्ते में विमान एक पहाड़ी से टकराकर गिर जाता है और उस मुख्यमंत्री की मृत्यु हो जाती है |इसी प्रकार से अंतरिक्ष यात्रा पर गई किसी महिला का यान सुदूर आकाश में दुर्घटना का शिकार हो जाता है | देखने में ये दोनों घटनाएँ सामान्य स्वतंत्र और अचानक घटित हुई सी लगती हैं जबकि वास्तविकता यह नहीं है किसी सामान्य परिवार के सामान्य व्यक्ति की मृत्यु इस स्थिति में होनी संभव नहीं थी |
किसी भी व्यक्ति की जिस स्तर की मृत्यु समय के द्वारा निर्धारित की गई होती है उस व्यक्ति की बचपन से ही सोच वैसी बन जाती है धीरे धीरे वो उसी ओर मुड़ता चला जाता है उसी प्रकार का खान पान रहन सहन घूमना फिरना पढ़ाई लिखाई नौकरी चाकरी आदि सब कुछ वैसा ही अपनाता चला जाता है |कुछ लोग ज्ञान धन पराक्रम नास्तिकता आदि के भ्रम में पड़कर समय भाग्य और ईश्वर को मानने का आडम्बर करते हैं इन बातों की आलोचना में अपना काफी समय बर्बाद कर दिया करते हैं किंतु समय से प्रेरित होकर चले उसी ओर जा रहे होते हैं जिस ओर समय निर्धारित मृत्यु उनकी प्रतीक्षा कर रही होती है |कुल मिलाकर जीवन उनका भी समय के अनुशार ही चला जा रहा होता है | वस्तुतः समय के प्रभाव को नकार पाना मनुष्य के बश की बात नहीं है |इसलिए जिस मनुष्य की मृत्यु प्रकृति के द्वारा जिस स्तर की निश्चित की गई होती है वो उसी ओर बढ़ने लग जाता है |
एक सामान्य परिवार के व्यक्ति की मृत्यु विमान पर बैठकर एक ऐसे पहाड़ से टकराकर कर होने के विषय में समय के द्वारा निर्धारित किया गया था | समय की लिखी इस पटकथा के अनुशार वो बचपन से ही चलने लगा उसका झुकाव राजनीति की ओर होने लगा इसलिए वह विधान सभा का चुनाव लड़ा और जीत गया उसके पक्ष में बहुमत बना इसलिए वो मुख्यमंत्री बन गया | इसके बाद उसे ऐसा कार्य लगा जिसके कारण उसे विमान से उस पहाड़ी के पास से गुजरना पड़ा और उसी पहाड़ी से टकराकर दुर्घटना घटित हुई जिससे उसकी मृत्यु हो गई | ऐसी परिस्थिति में यदि बिचार किया जाए तो उसकी इस प्रकार की मृत्यु में ये सारी प्राकृतिक घटनाएँ सहायक हुईं |
यही स्थिति एक महिला की मृत्यु अंतरिक्ष में होने की है | उसकी शैक्षणिक रूचि सफलता संसाधन उसका अंतरिक्ष जाने वाले लोगों के साथ चयन ये सबकुछ उस महिला की अंतरिक्ष में मृत्यु होने की भूमिका में सम्मिलित मृत्यु की सहयोगी घटनाएँ थीं जिन्हें वह अपनी सफलता या उन्नति मान कर आगे बढ़ती जा रही थी ,अन्यथा यदि परिस्थितियाँ साथ न देतीं तो वो चाहकर भी अंतरिक्ष में जाकर कैसे मृत्यु का वरण कर सकती थी क्योंकि ये आम आदमी के लिए कैसे संभव हो सकता था |
समय के रहस्य को न समझने वालों के द्वारा ऐसी घटनाओं की जाँच करते समय विमान में आई तकनीकी खराबी ,चालक की लापरवाही, मौसम का साथ न देना आदि उस घटना के घटित होने में कारण सामने लाए जाते हैं वे वास्तविक कारण नहीं होते अपितु ये तो मुख्य घटना (मृत्यु) की सहयोगी घटनाएँ होती हैं जो प्लेन पर बैठे उस व्यक्ति के विमान को पहाड़ में टकराकर उस व्यक्ति की मृत्यु की सहायक की घटनाओं के रूप में अपनी अपनी भूमिका अदाकर रही होती हैं |
मिशन चंद्रयान 2 की सफलता संदिग्ध रही इसके निर्माण में भारी भरकम धनराशि लगी विद्वान वैज्ञानिकों ने उसे सफल बनाने के लिए संपूर्ण प्रयास किए इसके बाद भी उसका उस तरह से सफल न होना जिस प्रकार का लक्ष्य लेकर यह प्रयास प्रारंभ किया गया था | इसका कारण उसमें कहीं कोई कमी छूट गई होगी इसकी संभावना अत्यंत कम है क्योंकि यदि कमी रह जाती तो इतने विद्वान् वैज्ञानिकों में से किसी का ध्यान तो उधर जाता क्योंकि यह तो उन सबके द्वारा किया गया संयुक्त प्रयास था |इसकी संदिग्ध सफलता के लिए जिन भी कारणों को जिम्मेदार माना जाए वो एक अलग बात है किंतु सच यह भी है कि उसका सफल न होना यदि नियति ने निश्चित कर रखा था तो उसे सफल बनाने के लिए किए जाने वाले प्रयास उसे असफल बनाने में अपनी भूमिका निर्वाह करके नियति का साथ देने लगे थे |
कोई संपन्न स्वस्थ व्यक्ति अचानक अस्वस्थ होता है अच्छी से अच्छी चिकित्सा के लिए प्रयास किए जाते हैं इसके बाद भी उसकी मृत्यु हो जाती है | ऐसी घटनाओं में मृत्यु के कारण की खोज के रूप में रोगी का अपथ्यसेवन ,समय से चिकित्सा सुविधा न मिलपाना ,चिकित्सक की लापरवाही की या आवश्यक औषधियों का समय से रोगी को न मिलपाना या औषधियों के निर्माण की प्रक्रिया में कमी के कारण असर का कम होना आदि जितने भी प्रत्यक्ष रूप से दिखाई पड़ने वाले कारण जिम्मेदार माने जा रहे होते हैं उन सबसे बिल्कुल अलग एक कारण प्रमुख कारण होता है उस रोगी का अपना 'समय' जिसके कारण उस स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में उस रोग का प्रवेश हुआ बाकी सारी घटनाएँ तो उसके बाद घटीं यदि वो अस्वस्थ ही न होता तो उसे अस्पताल नहीं पड़ता चिकित्सक से नहीं मिलना पड़ता दवा की आवश्यकता ही नहीं होती | इसलिए उस रोगी की मृत्यु तो उसके रोगी होने के साथ ही प्रारंभ हो चुकी थी जो समस्त चिकित्सकीय प्रयासों के तटबंध तोड़ती हुई समय के द्वारा निर्धारित की गई भूमिका का पालन करती जा रही थी |
किसी वस्तु का बिनाश उसके निर्माण के साथ ही निश्चित हो जाता है | जीव की मृत्यु उसके जन्म के साथ ही प्रारंभ हो जाती है समय बीतता जाता है घटनाएँ घटित होती जाती हैं जिन घटनाओं को हम उस व्यक्ति की मृत्यु के लिए जिम्मेदार मान रहे होते हैं वे घटनाएँ उसकी मृत्यु का वास्तविक कारण न होकर अपितु उस नियति निर्धारित 'मृत्युकार्य' में सहयोगिनी मात्र होती हैं |
'समय' का संपूर्ण प्रकृति पर प्रभाव -
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ तथा भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ आदि प्राकृतिक घटनाएँ एवं जीवन में घटित होने वाली सुखदुख हानि लाभ जीवन मरण आदि जीवन संबंधी घटनाएँ कभी मुख्य भूमिका निभा रही होती हैं | इनमें से कोई भी घटना किसी दूसरी घटना में मुख्य भूमिका में हो सकती है और किसी घटना में सहयोगिनी हो सकती है |जो कभी सहयोगिनी घटनाओं के रूप में घटित होकर मुख्य घटना के घटित होने की सूचना दे रही होती है |
कई बार जीवों के स्वभाव तथा स्वास्थ्य से संबंधित कुछ घटनाएँ निकट भविष्य में संभावित कुछ प्राकृतिक घटनाओं की सहयोगिनी घटनाओं के रूप में भूमिका अदा कर रही होती हैं जिन्हें देखकर उनसे संबंधित भविष्य में घटित होने वाली मुख्य घटना का पूर्वानुमान पता लग जाता है |
इसी प्रकार से आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ जैसी कुछ प्राकृतिक घटनाएँ निकट भविष्य में संभावित होती हैं कुछ स्वास्थ्य और स्वभाव में संभावित परिवर्तनों के संकेत दे रही होती हैं | इसी प्रकार से जीवों के स्वास्थ्य और स्वभाव से संबंधित कुछ परिवर्तन एवं प्रकृति में घटित होने वाली कुछ घटनाएँ निकट भविष्य में संभावित भूकंप जैसी कुछ बड़ी घटनाओं के घटित होने जैसे संकेत दे रही होती हैं | जिन्हें देखकर भविष्य में घटित होने वाली संभावित भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
कई बार कुछ भूकंप जैसी घटनाएँ निकट भविष्य में घटित होने वाली सूखा वर्षा अतिवर्षा तूफानों आदि के संकेत दे रहे होते हैं | दो राष्ट्रों में एक साथ आने वाले कुछ संयुक्त भूकंप उनके बीच पनपने वाली मित्रता शत्रुता या संभावित युद्ध के संकेत दे रहे होते हैं | केवल एक ही देश के किसी स्थान में आ रहे भूकंप उस क्षेत्र के विषय में सरकारों के द्वारा लिए जाने वाले राजनैतिक फैसलों के विरुद्ध उमड़ने वाले संभावित सामूहिक आक्रोश के संकेत दे रहे होते हैं | इसी प्रकार से कुछ भूकंप आतंकीगतिविधियों ,बमविस्फोटों,जनांदोलनों, सामाजिक उन्माद ,दंगा भड़कने या अन्य प्रकार से नरसंहार या देश की सीमाओं में गुपचुप तरीके से होने वाली घुसपैठ होने के संकेत दे रहे होते हैं |
ऐसे भूकंपों की सबसे बड़ी पहचान यही होती है कि किसी प्रकार के संकेत देने के लिए आने वाले भूकंप जहाँ कहीं भी घटित होते हैं उनसे जन धन की हानि नहीं होती है | जिन भूकंपों में जनधन की हानि होती है वे भूकंप सहायक घटना के रूप में नहीं अपितु मुख्य घटना की भूमिका का निर्वाह कर रहे होते हैं उनके घटित होने के विषय के संकेत प्रकृति में घटित हुई कुछ अन्य घटनाओं के द्वारा पहले से दी जा रही होती हैं जिनके अभिप्राय को न समझ पाने के कारण ही जब भूकंप जैसी वे घटनाएँ घटित होती हैं तो अचानक घटित हुई सी लगती हैं |
ऐसे मुख्य भूकंपों के निर्माण संबंधी सूचना प्रकृति विभिन्न घटनाओं लक्षणों संकेतों के द्वारा भूकंप घटित होने से लगभग छै महीने पहले से प्रकट करने लगती है ऋतुओं के प्रभाव में या तो बहुत कमी या बहुत अति देखी जाने लगती है जिसे वैदिक विज्ञान की भाषा में 'ऋतुध्वंस' कहा जाता है यही क्रम भूकंप घटित होने के छै महीने बाद तक चला करता है जो धीरे धीरे क्रमशः समाप्त होते जाता है |
ऐसे भूकंपों के कारण एक वर्ष तक उस क्षेत्र की संपूर्ण प्रकृति का संतुलन बिगड़ जाता है जिसका प्रभाव उस क्षेत्र की वायु पर पड़ता है जल पर पड़ता है वृक्षों बनस्पतियों पर पड़ता है फसलों पर पड़ता है उससे उनकी पैदावार प्रभावित होती है !उन फूलों फलों अनाज आदि की सुगंध स्वाद आदि उनके गुणों की न्यूनाधिकता पर असर पड़ता है |बनस्पतियाँ उन गुणों से विहीन हो जाती हैं जिनके लिए वे पहचानी जाती रही होती हैं |
इनका मनुष्यों समेत सभी जीव जंतुओं के स्वास्थ्य और स्वभाव पर असर पड़ता है | स्वभाव बिगड़ने से उस क्षेत्र का चिंतन बिगड़ता है अच्छे भले शिक्षित और समझदार लोग उन्मादित होकर एक दूसरे को पराजित कर देने की भावना से भावित होने लगते हैं | स्वास्थ्य पर पड़ने वाले असर के कारण मनुष्यों समेत अधिकाँश जीव जंतुओं में बेचैनी बढ़ने लग जाती है जिससे उनके स्वभाव आचार व्यवहार आदि में अंतर पड़ने लगता है |
इस 'ऋतुध्वंस' का असर स्वास्थ्य पर भी पड़ता है जिससे अनेकों प्रकार के रोग पनपने लगते हैं 'ऋतुध्वंस' के कारण कुछ समय के लिए असर विहीन हो चुकीं औषधियाँ ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने में अक्षम होती चली जाती हैं जिससे कई बार रोग महामारी का स्वरूप लेने लग जाते हैं | ऐसे रोगों की अधिकृत प्रभावी औषधियों से लाभ न होने के कारण चिकित्सकों को किसी नए रोग या विषाणु(वायरस) पनपने का भ्रम होने लगता है | इसके बाद ऋतुध्वंस का प्रभाव जैसे जैसे कम होते जाता है वैसे वैसे रोगों से मुक्ति मिलती चली जाती है और सबकुछ सामान्य होता चला जाता है |
ऐसे भूकंपों के निर्माण होने की प्रक्रिया कई बार प्राकृतिक एवं कई बार प्राणी ऊर्जा होती है जिसमें भारी संख्या में मनुष्यों पशु पक्षियों आदि का सामूहिक संहार या उत्पीड़न आदि होता है |
कई बार किसी क्षेत्र विशेष में प्रकृति से लेकर जीवों तक के चिर स्वभाव से अलग हटकर कुछ बदलाव आने लग जाते हैं जैसा होते हमेंशा नहीं देखा जाता है |किसी एक प्रकार के जीव जंतु व्याकुल होने या मरने लगते हैं या उस क्षेत्र में कोई ऐसा रोग फैलने लगता है जिसका निदान एवं चिकित्सा किसी को समझ में ही नहीं आती है या किसी एक प्रकार के पेड़ पौधे बनस्पतियों आदि में विकार आने लग जाते हैं | बार बार आँधी तूफ़ान आदि घटनाएँ घटित होने लग जाती हैं | किसी क्षेत्र विशेष में अचानक नदी नदी कुएँ तालाब आदि सूखने लग जाते हैं बार बार वर्षा बाढ़ आदि की घटनाएँ अति मात्रा में घटित होने लग जाती हैं !ऐसी घटनाएँ प्रकृति में निर्मित हो रही किसी भूकंप जैसी बड़ी घटना का संकेत दे रही होती हैं |
कुलमिलाकर प्रकृति या जीवन से संबंधित ऐसी सभी प्रकार की घटनाओं की अचानक घटित होने की प्रक्रिया देखकर तो ऐसा लगता है कि जैसे ये सभी स्वतंत्र और निरंकुश हैं इसलिए ये कभी भी कहीं भी किसी के भी जीवन में घटित हो सकती हैं जबकि सच्चाई इससे अलग है ये सभी समय नियम स्थान आदि सिद्धांत सूत्र में दृढ़ता पूर्वक पिरोई हुई हैं जिसे समझने के लिए इसके विज्ञान का खोजा जाना अभी तक अवशेष है |
भूकंप के विषय में दो शब्द -
भूकंप जब जहाँ कहीं भी आते हैं वहाँ सब कुछ अव्यवस्थित हो जाता है चारों ओर हाहाकार मच जाता है अक्सर जब भूकंप आते हैं तो छोटे से लेकर बड़े तक बहुत नुक्सान होते देखे जाते हैं | ये उस भूकंप का एक पक्ष है दूसरा पक्ष यह भी है कि वह भूकंप निकट भविष्य में घटित होने वाली किसी अन्य घटना की सूचना दे रहा होता है | ज्ञान के अभाव में भूकंप के द्वारा प्रदत्त सूचना के विषय में तो किसी का ध्यान जाता नहीं है और न ही इसकी आवश्यकता ही समझी जाती है केवल भूकंप के वर्तमान स्वरूप की चर्चा एवं उसके प्रभाव से होने वाले नुक्सान की चर्चा की जा रही होती है |
ऐसे भयावह वातावरण में टीवी चैनलों पर भी गिरते हुए मकान फटी धरती टूटे पेड़ आदि के प्रतीकात्मक डरावने दृश्य दिखाए जाने लगते हैं! समाज एक तो भूकंप की दहशत से परेशान होता है तो दूसरे टीवी चैनलों पर एक से एक डरावनी बातें बताई जा रही होती हैं | अभी झटके लगते रहेंगे इसलिए खुली जगह में आ जाओ जैसी सलाहें समाज को दी जा रही होती हैं |डेंजर जोन गिनाए जा रहे होते हैं भूकंप रोधी बिल्डिंगें बनाने की सलाहें दी जा रही होती हैं | इसके साथ ही ये कहना कभी नहीं भूलते हैं कि निकट भविष्य में बहुत बड़ा भूकंप आएगा क्योंकि हिमालय के नीचे गैसों का भारी भंडार संचित हो गया है |गैसों के दबाव से जमीन के अंदर की प्लेटें रगड़ती हैं उसी से भूकंप आता है ! भूकंप का केंद्र कहाँ था,तीव्रता कितनी थी कितनी गहराई पर था कितने बजे आया था आदि बातें बताकर रीति रिवाज निभा लिए जातें हैं डेंजर जोन वाली हर बार जरूर बताते हैं !ये बताना नहीं भूलते कि इस तीव्रता का भूकंप दिल्ली में आएगा तो क्या क्या हो सकता है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर ऐसी बातें एक ओर तो अत्यंत विश्वास पूर्वक समझाई जा रही होती हैं तो वहीं दूसरी ओर वही लोग कह रहे होते हैं कि अभी भूकंपों के विषय में कोई अनुसंधान सफल नहीं हो सका है | इसलिए भूकंपों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना अभी तक संभव नहीं है |
ऐसी परिस्थिति में सबसे बड़ा
संशय इस बात का होता है कि इन दोनों बातों में सच आखिर है क्या ?भूकंपों के
विषय में कुछ पता है भी या नहीं या फिर धरती के अंदर की गैसों
और प्लेटों वाली बातें भी केवल कल्पनामात्र हैं यदि ऐसा तो भूकंपों के
विषय का सच क्या है |ये बात आखिर उन वैज्ञानिकों के अलावा कौन बताएगा कि
भूकंप आने का वास्तविक कारण क्या है और ऐसी बातें कहने के पीछे मजबूत आधार
आखिर क्या है। जनता की आशा उन्हीं वैज्ञानिकों से होनी स्वाभाविक है |
भूकंपों के विषय में उनके द्वारा दी जा रही गैसों और प्लेटों की
थ्यौरी ही भूकंपों के आने का वास्तविक कारण है या कुछ और ये भी वास्तविक
तर्कों से सिद्ध किया जाना चाहिए | आधुनिक विज्ञान यदि इन्हीं गैसों और
प्लेटों को भूकंपों के घटित होने का वास्तविक कारण मानता है तो इस थ्योरी
को भी तर्कों के द्वारा और अधिक विश्वसनीय बनाया जाना चाहिए | पिछले कुछ दशकों से इस क्षेत्र में निरंतर शोधकार्य करते करते मुझे लगने लगा है कि जब प्रकृति या समाज में अचानक और अकारण बहुत अधिक दुर्घटनाएँ घटने लगें या अधिक आग लगने की घटनाएँ घटित हों या वर्षा बाढ़ रोग या सामाजिक वैमनस्य ,आतंकवादी दुर्घटनाएँ या दो राष्ट्रों के बीच बढ़ता प्रेमालाप या बढ़ता वैर विरोध आदि तब भूकंप प्रेरक शक्तियों के आदेशों की प्रतीक्षा होने लगती है !
सकारण होने वाली घटनाओं का संबंध भूकंपों से नहीं माना जाना चाहिए !अचानक और अकारण घटने वाली घटनाएँ ही भूकंप प्रेरित मानी जानी चाहिए ! वैसे भी ऐसे विषयों पर अभी और अधिक शोध की आवश्यकता है|
भूकंप जैसी बड़ी घटनाएँ वस्तुतः ये प्राकृतिक उत्पात होते हैं इसका मतलब ये केवल संकेत मात्र होते हैं भविष्य संबंधी घटनाएँ घटने के समय में और इनकी सूचनाओं में इतना अंतर तो होता है कि कई बार उन घटनाओं के दुष्प्रभाव से बचाव का प्रयास किया जा सकता है |
-भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में मिलने वाले संदेश-
प्राकृतिक आपदाओं के नाम से घटित होने वाली घटनाओं का दूसरा कारण उस स्थल में रहने वालों को कोई संदेशा देना भी होता है !ऐसे संदेश निकट भविष्य में होने वाली बाढ़ के हो सकते हैं आँधी तूफान के हो सकते हैं इसके अतिरिक्त किसी अन्य प्रकार की प्राकृतिक सामाजिक शारीरिक मानसिक आदि घटनाएँ भी संभव हो सकती हैं |
प्रकृति प्रदत्त ऐसे
संकेतों पर यदि शोध किया जाए तो प्रकृति में घटित होने वाली कई घटनाएँ अपने
से पहले घटित हो चुकी कुछ घटनाओं से संबंधित होती हैं जो इस समय घट रही
घटनाओं को घटित होने की अग्रिम सूचना देने के लिए ही घटित हुई होती हैं इसी
प्रकार से इस समय घटित हो रही या हुई घटनाएँ निकट भविष्य के कुछ महीनों
में घटित होने वाली कुछ घटनाओं की सूचनाएँ दे रही होती हैं !ये सूचनाएँ
चिकित्सा और रोगों से जुड़ी हो सकती हैं निकट भविष्य में होने वाले सामाजिक
और राजनैतिक परिवर्तनों की सूचना दे रही होती हैं निकट भविष्य के अच्छे
बुरे सामाजिक और राजनैतिक परिवर्तनों की ओर इशारा कर रही होती हैं यदि ऐसी
घटनाएँ किन्हीं दो देशों में संयुक्त रूप घटित हो रही होती हैं तो उनसे दोनों
देशों को प्रभावित करती हैं कई बार तो निकट भविष्य में उन दोनों देशों में
उनका फल देखने को मिलता है साथ ही उन दोनों देशों के बीच निकट भविष्य में
बनने बिगड़ने वाले आपसी संबंधों की ओर भी इशारा कर रही होती हैं कि उन दोनों
देशों को आपसी संबंधों में किस प्रकार से कितनी सावधानी बरती जानी चाहिए
अन्यथा दोनों देशों को किस किस प्रकार से हानि लाभ उठानी पड़ सकती है !
कुल मिलाकर ऐसी घटनाएँ अक्सर हमें कुछ सूचनाएँ देने के लिए ही घटती हैं जो उस समय हमारे लिए बहुत आवश्यक होती हैं !विशेषकर भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के घटित होने का उद्देश्य हमें कुछ विशेष सूचनाएँ देना होता है जिन्हें समझने के लिए हमें प्रकृति की भाषा भाव और संकेतों को समझने का प्रयास करना होता है !
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटने से एक दो महीने पहले उस क्षेत्र की प्रकृति में बदलाव होने लगते हैं अपने आकारों प्रकारों आदि में तरह तरह के परिवर्तनों के द्वारा ये हमें अनेकों प्रकार की दुर्लभ सूचनाएँ समय समय पर आगे से आगे उपलब्ध कराया करते हैं |यदि इनके सूक्ष्म परिवर्तनों पर निरंतर दृष्टि रखी जाए तो इन्हें समझने का उत्तम अभ्यास हो जाता है |विभन्न विषयों पर हम इनके द्वारा दिए जाने वाले संकेतों को ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे ये हमसे बातें कर रहे हों |
प्रायः प्राकृतिक घटनाएँ घटने से कुछ पहले से ही ऐसे परिवर्तन केवल प्रकृति में ही नहीं दिखाई पड़ते हैं अपितु ऐसे क्षेत्रों के सभी जीव जंतुओं को भी अनुभव होने लगते हैं इन्हीं कारणों से उनके स्वभावों में बदलाव आने लगते हैं जिनका अनुभव प्राचीन भारत के मनीषी तो करते ही रहे हैं आधुनिक विचारक भी इधर ध्यान देने लगे हैं अब तो बहुत विद्वान लोग स्वीकार करने लगे हैं कि भूकंप आने से कुछ दिन पहले कुछ जीव जंतुओं के स्वभाव बदलने लग जाते हैं विभिन्न लोगों के द्वारा समय समय पर ऐसा होते देखा भी गया है और तो और उस क्षेत्र के स्त्री पुरुषों के स्वभाव बदलने लग जाते हैं स्वास्थ्य बिगड़ने लग जाते हैं किसी एक प्रकार के रोग के शिकार होने लगते हैं उस क्षेत्र के बहुसंख्य लोग !समाज में अकारण उन्माद फैलने लग जाता है पागलपन इस हद तक बढ़ जाता है कि अच्छे भले स्त्री पुरुष एक दूसरे को मार डालने पर उतारू हो जाते हैं कई बार तो दो देशों में परस्पर ऐसी भावनाएँ पनपने लगती हैं सामूहिक रूप से मरने मारने के लिए संघर्ष शुरू हो जाते हैं|कई बार इनके लक्षण शुभ भी होते हैं दो देशों की शत्रुता समाप्त करने के संकेत देते हैं किसी क्षेत्र में भाई चारे की भावना को पनपाने में सहयोग करते हैं कई बार तो यही भूकंप कई बड़ी दुर्घटनाओं को टालते देखे जाते हैं भूकंपों के द्वारा दी गई सूचनाओं पर यदि तुरंत ध्यान दिया जाए और उनके अनुशार सतर्कता बरती जाए तो उस क्षेत्र में विषय में कुछ ऐसी सूचनाएँ हाथ लग जाती हैं जो देश और समाज के लिए तुरंत ध्यान देने योग्य और बहुत महत्त्व पूर्ण होती हैं |
भूकंपों से प्राप्त होने वाली सूचनाओं का प्रभाव -
भूकंपों की प्रेरक शक्ति अपनी भूकंपीय सूचनाओं में इतनी अधिक सतर्कता बरतते देखी जाती है कि यदि कोई विशेष सूचना देने के लिए अभी कोई भूकंप आया होता है और भूकंप की घोषणाओं के अनुशार घटनाएँ घटने लग जाती हैं वैसी घटनाओं को रोकने के लिए भूकंपीय शक्तियों की यदि कोई नई योजना अचानक सामने आती है तो पहले भूकंप के विरोधी स्वभाव वाला कोई दूसरा भूकंप उसी क्षेत्र में पहले वाले भूकंप के प्रभाव की अवधि के अंदर ही आ जाता है पहले वाले भूकंप के प्रभाव को निष्फलता घोषणा कर देता है इस प्रकार से पहले वाले भूकंप के प्रभाव से प्रकृति या समाज में घटित हो रही घटनाएँ प्रभाव से तत्काल रोक दी जाती हैं | कई बार किसी भूकंप का प्रभाव यदि 60 दिन चलने की घोषणा की गई है बीच में यदि कोई दूसरा भूकंप नहीं आता है तो प्रकृति वो समाज में अगले साठ दिनों तक वैसी ही घटनाएँ घटती चली जाती हैं !उसके बाद वो घटनाएँ उसी प्रकार से लगातार आगे बढ़ानी हैं या वहीँ रोक देनी हैं या उसके विपरीत दिशा में चलानी है आदि अग्रिम आदेश प्रदान करने के लिए 55 से 65 दिनों के बीच ही उसी क्षेत्र में दूसरा भूकंप आकर पुनः उस क्षेत्र के अगले भविष्य की घोषणा करता है | भूकंप प्रेरक शक्तियों के द्वारा कई बार तो ये सतर्कता इतनी अधिक बरती जाती है कि यदि पहले भूकंप का प्रभाव 60 दिन लिखा गया है तो 61 वें दिन ही आ जाता है दूसरा भूकंप और भूकंप प्रेरक शक्तियों के अगले आदेश की घोषणा कर देता है | भूकंपों की तीव्रता यदि 5 डिग्री या उससे अधिक होती है या जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे उपर्युक्त प्रभावों को अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है तीव्रता जैसे जैसे कम होती जाती है उसका फल भी वैसे वैसे घटता चला है | कुछ भूकंप बहुत हल्के होते हैं इनकी तीव्रता यदि 3 डिग्री या उससे कम होती है तो विशेष अनुभव करने से ही उसके फल का अनुभव हो पाता है !जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5 के आसपास या उससे कुछ कम होती है ऐसे भूकंप जिस क्षेत्र में आते हैं वहाँ कोई प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी घटना घटित होने वाली होती है | आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि की परिस्थिति बनने पर इस दृष्टि से अनुसंधान किया जाना चाहिए कि ऐसी घटनाएँ निकट भविष्य में घटित होने वाले या तो किसी भूकंप आदि के विषय में सूचना दे रही होती हैं या फिर इनके विषय में सूचना देने के लिए कोई भूकंप अवश्य आएगा !इसी में कुछ भूकंपों की तीव्रता बहुत कम होती है इसलिए उनसे प्राप्त होने वाली सूचनाएँ भी अत्यंत छोटी अर्थात कम प्रभाववाली घटनाओं की ओर संकेत कर रही होती हैं |
कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जहाँ पृथ्वी की आतंरिक या बाह्य अर्थात वायुमंडल की परिस्थितियों के कारण बार बार भूकंप आते रहते हैं ऐसे भूकंपों को सूचना जैसी प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ अक्सर परस्पर विरोधी होती हैं |
कई बार किसी क्षेत्र में कोई भूकंप बहुत कम तीव्रता का आता है तो उसके द्वारा सूचित की जाने वाली घटनाओं का वेग भी अत्यंत कमजोर होता है | कई बार किसी क्षेत्र में पहले से जिस प्रकार की कोई गतिविधि प्रकृति में या समाज में चल रही होती है उसी गतिविधि को और अधिक आगे बढ़ाने वाला यदि कोई भूकंप आ जाता है तो उसकी तीव्रता कम होने पर भी उसका असर अधिक दिखाई पड़ता है |
भूकंप जैसी घटनाओं का स्वास्थ्य पर प्रभाव !
किसी क्षेत्र में वर्षा या वर्फबारी पहले से होती चली आ रही होती है और इसी बीच उसी क्षेत्र में चंद्र निर्मित भूकंप भी आ जाए तो उस क्षेत्र में वर्षा के प्रभाव को और अधिक बढ़ा देता है |यदि इस भूकंप की तीव्रता अधिक होती है तो वर्षा और बाढ़ से संबंधित घटनाओं का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता है |
यदि ऐसा संयोग विशेषकर सर्दी की ऋतु में बन जाए तो न केवल तापमान बहुत अधिक गिर जाता है अपितु सर्दी से संबंधित रोग बहुत अधिक बढ़ जाते हैं यदि जनवरी फरवरी आदि में ऋतु भी सर्दी की हो और भूकंप भी चंद्रज हो और उसकी तीव्रता भी अधिक हो तो सर्दी के स्तर को तो अधिक बढ़ा देगा | इससे अधिकवर्षा सर्दी या बर्फवारी का असर काफी अधिक बढ़ जाता है |इसके साथ साथ ही सर्दी से संबंधित बहुत सारे रोगों को देगा जो अधिक सर्दी के प्रभाव से होते हैं | ऐसे रोगों की कहीं कोई दवा नहीं होती है | यही स्थिति यदि गर्मी की ऋतु में बने तो सर्दी या वर्षा का प्रभाव उतना अधिक नहीं प्रतीत होता है फिर भी ऐसे भूकंप भी गर्मी की मात्रा को तो कम कर ही देते हैं |इसलिए सर्दी गर्मी आदि से होने वाले रोग पनपने लग जाते हैं |
ऐसे रोगों के लक्षण उपलब्ध चिकित्सा पद्धति की किसी भी प्रक्रिया से मेल नहीं खाते हैं इसलिए लक्षणों को देख देखकर ही इनके विषय में दवाएँ दी जाती हैं उससे बहुत अधिक लाभ तो नहीं होता है कुछ हो जाता है धीरे धीरे ऐसे रोग पैंतालीस से साठ दिन तक लेते देखे जाते हैं | ऐसे समय फैलने वाली महारियाँ काफी जन धन की हानि करने वाली होती हैं | भूकंप कृत रोग होने से लेकर समाप्त होने तक न किसी के पास इनकी कोई पहचान होती है और न ही दवा ये जिस प्रकार से आते हैं उसी प्रकार अपने मन की मर्जी से ही जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में रोगियों के स्वस्थ होने में चिकित्सा की कोई बड़ी भूमिका नहीं होती है |
इसीप्रकार से सूर्यज भूकंप आने से गर्मी बढ़ जाती है यदि ऐसा भूकंप गर्मी की ऋतु में आ जाए तो गर्मी की मात्रा अधिक बढ़ जाती है उसमें भी यदि भूकंप की तीव्रता अधिक हो तब तो न केवल बहुत अधिक गर्मी पड़ने लग जाती है अपितु जगह जगह आग लगने की घटनाएँ घटित होने लगती हैं इसके साथ ही अधिक गर्मी से होने वाली तरह तरह की सामूहिक बीमारियाँ महामारी आदि पनपने लग जाती है | यही सूर्यज भूकंप यदि सर्दी में आ जाता है तो गर्मी का ताप तो बहुत अधिक नहीं बढ़ता है किंतु सर्दी के असर को बहुत अधिक कमजोर कर देता है |
ऐसे ही मंगल बुद्ध बृहस्पति शुक्र शनैश्चर जैसे ग्रहों के प्रभाव से भी भूकंप निर्मित होते हैं उनका भी स्वास्थ्य आदि पर ऐसा ही प्रभाव पड़ता है |
भूकंप जैसी घटनाओं का मौसम पर प्रभाव !
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ प्रत्येक वर्ष में आती जाती है रहती हैं इनके आने जाने का क्रम भी सुनिश्चित है कौन ऋतु कितने समय तक रहेगी यह भी लगभग सुनिश्चित है किस ऋतु का किस क्षेत्र में कितना प्रभाव पड़ता है यह भी लगभग सुनिश्चित है ! इतना सब होने के बाद भी प्रत्येक वर्ष में प्रत्येक ऋतु का प्रभाव एक जैसा रहे ,एक निश्चित समय तक रहे, ऐसा होते नहीं देखा जाता है |
किसी वर्ष सर्दी की ऋतु में वर्षा बर्फबारी ओले कोहरा पाला आदि गिरने की घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जाती हैं जिससे तापमान अधिक गिरकर सर्दी बहुत अधिक बढ़ जाती है तो किसी वर्ष ऐसा होते नहीं देखा जाता है |इसका कारण यदि जनवरी फरवरी आदि में ऋतु भी सर्दी की होती है और भूकंप भी चंद्रज आ जाए तथा उसकी तीव्रता भी अधिक हो तो सर्दी के स्तर को और अधिक बढ़ा देगा | इससे अधिकवर्षा सर्दी या बर्फवारी का असर काफी अधिक बढ़ जाता है |
इसी प्रकार से किसी वर्ष गर्मी की ऋतु में ऐसा ही होते देखा जाता है किसी किसी वर्ष तापमान सामान्य रहता है तो किसी वर्ष तापमान बढ़ जाता है किसी किसी वर्ष तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जैसा अक्सर होते नहीं देखा जाता है जिससे नदी तालाब कुऍं आदि सूखने लग जाते हैं | आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घटित होने लग जाती हैं |आँधी तूफ़ान किसी वर्ष कम आते हैं किसी वर्ष बहुत अधिक आते हैं और उनमें जनधन की हानि अधिक होते देखी जाती है |
वर्षा में भी यही होते देखा जाता है कि वर्षा ऋतु होने पर किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा होती है किसी क्षेत्र में अधिक या बहुत अधिक वर्षा बाढ़ आदि होते देखी जाती है कुछ क्षेत्रों में सूखा जैसी घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं |
कई बार गर्मी सर्दी वर्षा आदि ऋतुओं का समय आ जाने के बाद भी गर्मी का प्रभाव देर से प्रारंभ होता है कई बार जल्दी प्रारंभ होते देखा जाता है इसी प्रकार कई बार देर से समाप्त होता है और कई बार जल्दी समाप्त होते देखा जाता है |कुलमिलाकर एक जैसा कभी नहीं रहता है थोड़ा बहुत अंतर प्रत्येक बार होते देखा जाता है !ऐसे समय में ही जानकारी के अभाव में कुछ लोगों को जलवायुपरिवर्तन जैसा भ्रम होने लगता है |कुछ लोगों ने मानसून आने जाने की तारीखों के विषय में कुछ काल्पनिक तारीखें घोषित कर रखी हैं उन तारीखों में वर्षा शुरू होने या बंद न होने से उन्हें बेचैनी होने लगती है जो ठीक नहीं है क्योंकि उनकी ऐसी कल्पना करने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है |
किसी दशक में वायुप्रदूषण कम बढ़ता है तो किसी दशक में अधिक बढ़ता है | किसी वर्ष में वायुप्रदूषण कम बढ़ता है तो किसी वर्ष में अधिक बढ़ता है !वर्ष के कुछ महीनों में वायुप्रदूषण कम बढ़ता है तो कुछ महीनों में अधिक बढ़ता है | ऐसे ही महीने के कुछ दिनों में वायुप्रदूषण बढ़ता है तो कुछ में नहीं बढ़ता है |कुछ स्थानों पर बढ़ता है और कुछ में नहीं बढ़ता है | ये सब उन उन ऋतुओं में घटित होने वाली भूकंप जैसी विभिन्न प्रकार की आकस्मिक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने के कारण होता है |
किसी क्षेत्र में वर्षा या वर्फबारी पहले से होती चली आ रही होती है और इसी बीच उसी क्षेत्र में चंद्र निर्मित भूकंप भी आ जाए तो उस क्षेत्र में वर्षा के प्रभाव को और अधिक बढ़ा देता है |यदि इस भूकंप की तीव्रता अधिक होती है तो भीषण वर्षा और बाढ़ एवं बादल फटने जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं ऐसी घटनाओं का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता है | ऐसी परिस्थिति में यदि अचानक सूर्यज भूकंप आ जाता है तो उस क्षेत्र में पहले से चली आ रही वर्षा बर्फवारी बाढ़ आदि की घटनाऍं अचानक कम या बंद हो जाती हैं |
इसी प्रकार से चंद्रज भूकंप यदि गर्मी की ऋतु में आ जाता है तो गर्मी का प्रभाव उतना अधिक नहीं प्रतीत होता है फिर भी ऐसे भूकंप गर्मी की मात्रा को तो कम कर ही देते हैं |इसलिए सर्दी गर्मी आदि से होने वाले रोग पनपने लग जाते हैं | -भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं का समाज पर प्रभाव !
जिस क्षेत्र में भूकंप आते हैं उस क्षेत्र के विषय में सामाजिक वातावरण की दृष्टि से कोई संदेश दे रहे होते हैं !जो भूकंप चंद्र के प्रभाव से निर्मित होते हैं ऐसे भूकंप जिन क्षेत्रों में आते हैं वहाँ सुख शांति समृद्धि का वातावरण बनता है लोग पुराने बैर विरोध छोड़कर आपस में प्रेम व्यवहार से रहने का प्रयास करने लगते हैं |
किसी क्षेत्र में कुछ लोगों का लक्ष्य ही समाज को पीड़ित या परेशान करना होता है ऐसे लोग किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर मिशन के तहत समाज में भय पैदा करने लिए जाने जाते हैं |जिस क्षेत्र में ये लोग रह रहे होते हैं वहाँ यदि चंद्रज भूकंप आ जाता है तो वहाँ का वातावरण शांति पूर्ण हो जाता है और वे उपद्रवी लोग या तो सुधर जाते हैं या फिर वह क्षेत्र छोड़कर भाग जाते हैं |
ऐसे क्षेत्रों में यदि पहले से कोई झगड़ा विवाद धरना प्रदर्शन आंदोलन हड़ताल आदि चला आ रहा होता है तो इस भूकंप के प्रभाव से वह शांत हो जाता है |
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में यदि सूर्यज भूकंप आ जाता है तो उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को क्रोध बहुत आने लगता है लोग छोटी छोटी बातों में लगने झगड़ने लग जाते हैं !उस क्षेत्र में अचानक तनाव का वातावरण बनने लग जाता है लोग झगड़ा करने और करवाने पर उतारू हो जाते हैं | समाज में असहनशीलता बढ़ने लग जाती है |
ऐसे क्षेत्रों में यदि पहले से कोई झगड़ा विवाद धरना प्रदर्शन आंदोलन हड़ताल आदि चला आ रहा होता है ऐसे समय में वहाँ यदि सूर्यज भूकंप आ जाता है तो इस भूकंप के प्रभाव से वह उपद्रव और अधिक बढ़ जाता है |
कुल मिलाकर ऐसी घटनाएँ अक्सर हमें कुछ सूचनाएँ देने के लिए ही घटती हैं जो उस समय हमारे लिए बहुत आवश्यक होती हैं !विशेषकर भूकंप जैसी बड़ी घटनाओं के घटित होने का उद्देश्य हमें कुछ विशेष सूचनाएँ देना होता है जिन्हें समझने के लिए हमें प्रकृति की भाषा भाव और संकेतों को समझने का प्रयास करना होता है !
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के घटने से एक दो महीने पहले उस क्षेत्र की प्रकृति में बदलाव होने लगते हैं अपने आकारों प्रकारों आदि में तरह तरह के परिवर्तनों के द्वारा ये हमें अनेकों प्रकार की दुर्लभ सूचनाएँ समय समय पर आगे से आगे उपलब्ध कराया करते हैं |यदि इनके सूक्ष्म परिवर्तनों पर निरंतर दृष्टि रखी जाए तो इन्हें समझने का उत्तम अभ्यास हो जाता है |विभन्न विषयों पर हम इनके द्वारा दिए जाने वाले संकेतों को ऐसे समझ सकते हैं कि जैसे ये हमसे बातें कर रहे हों |
प्रायः प्राकृतिक घटनाएँ घटने से कुछ पहले से ही ऐसे परिवर्तन केवल प्रकृति में ही नहीं दिखाई पड़ते हैं अपितु ऐसे क्षेत्रों के सभी जीव जंतुओं को भी अनुभव होने लगते हैं इन्हीं कारणों से उनके स्वभावों में बदलाव आने लगते हैं जिनका अनुभव प्राचीन भारत के मनीषी तो करते ही रहे हैं आधुनिक विचारक भी इधर ध्यान देने लगे हैं अब तो बहुत विद्वान लोग स्वीकार करने लगे हैं कि भूकंप आने से कुछ दिन पहले कुछ जीव जंतुओं के स्वभाव बदलने लग जाते हैं विभिन्न लोगों के द्वारा समय समय पर ऐसा होते देखा भी गया है और तो और उस क्षेत्र के स्त्री पुरुषों के स्वभाव बदलने लग जाते हैं स्वास्थ्य बिगड़ने लग जाते हैं किसी एक प्रकार के रोग के शिकार होने लगते हैं उस क्षेत्र के बहुसंख्य लोग !समाज में अकारण उन्माद फैलने लग जाता है पागलपन इस हद तक बढ़ जाता है कि अच्छे भले स्त्री पुरुष एक दूसरे को मार डालने पर उतारू हो जाते हैं कई बार तो दो देशों में परस्पर ऐसी भावनाएँ पनपने लगती हैं सामूहिक रूप से मरने मारने के लिए संघर्ष शुरू हो जाते हैं|कई बार इनके लक्षण शुभ भी होते हैं दो देशों की शत्रुता समाप्त करने के संकेत देते हैं किसी क्षेत्र में भाई चारे की भावना को पनपाने में सहयोग करते हैं कई बार तो यही भूकंप कई बड़ी दुर्घटनाओं को टालते देखे जाते हैं भूकंपों के द्वारा दी गई सूचनाओं पर यदि तुरंत ध्यान दिया जाए और उनके अनुशार सतर्कता बरती जाए तो उस क्षेत्र में विषय में कुछ ऐसी सूचनाएँ हाथ लग जाती हैं जो देश और समाज के लिए तुरंत ध्यान देने योग्य और बहुत महत्त्व पूर्ण होती हैं |
भूकंपों से प्राप्त होने वाली सूचनाओं का प्रभाव -
भूकंपों की प्रेरक शक्ति अपनी भूकंपीय सूचनाओं में इतनी अधिक सतर्कता बरतते देखी जाती है कि यदि कोई विशेष सूचना देने के लिए अभी कोई भूकंप आया होता है और भूकंप की घोषणाओं के अनुशार घटनाएँ घटने लग जाती हैं वैसी घटनाओं को रोकने के लिए भूकंपीय शक्तियों की यदि कोई नई योजना अचानक सामने आती है तो पहले भूकंप के विरोधी स्वभाव वाला कोई दूसरा भूकंप उसी क्षेत्र में पहले वाले भूकंप के प्रभाव की अवधि के अंदर ही आ जाता है पहले वाले भूकंप के प्रभाव को निष्फलता घोषणा कर देता है इस प्रकार से पहले वाले भूकंप के प्रभाव से प्रकृति या समाज में घटित हो रही घटनाएँ प्रभाव से तत्काल रोक दी जाती हैं | कई बार किसी भूकंप का प्रभाव यदि 60 दिन चलने की घोषणा की गई है बीच में यदि कोई दूसरा भूकंप नहीं आता है तो प्रकृति वो समाज में अगले साठ दिनों तक वैसी ही घटनाएँ घटती चली जाती हैं !उसके बाद वो घटनाएँ उसी प्रकार से लगातार आगे बढ़ानी हैं या वहीँ रोक देनी हैं या उसके विपरीत दिशा में चलानी है आदि अग्रिम आदेश प्रदान करने के लिए 55 से 65 दिनों के बीच ही उसी क्षेत्र में दूसरा भूकंप आकर पुनः उस क्षेत्र के अगले भविष्य की घोषणा करता है | भूकंप प्रेरक शक्तियों के द्वारा कई बार तो ये सतर्कता इतनी अधिक बरती जाती है कि यदि पहले भूकंप का प्रभाव 60 दिन लिखा गया है तो 61 वें दिन ही आ जाता है दूसरा भूकंप और भूकंप प्रेरक शक्तियों के अगले आदेश की घोषणा कर देता है | भूकंपों की तीव्रता यदि 5 डिग्री या उससे अधिक होती है या जैसे जैसे बढ़ती जाती है वैसे वैसे उपर्युक्त प्रभावों को अधिक स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है तीव्रता जैसे जैसे कम होती जाती है उसका फल भी वैसे वैसे घटता चला है | कुछ भूकंप बहुत हल्के होते हैं इनकी तीव्रता यदि 3 डिग्री या उससे कम होती है तो विशेष अनुभव करने से ही उसके फल का अनुभव हो पाता है !जिनकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर 5 के आसपास या उससे कुछ कम होती है ऐसे भूकंप जिस क्षेत्र में आते हैं वहाँ कोई प्राकृतिक सामाजिक या स्वास्थ्य संबंधी घटना घटित होने वाली होती है | आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ सूखा आदि की परिस्थिति बनने पर इस दृष्टि से अनुसंधान किया जाना चाहिए कि ऐसी घटनाएँ निकट भविष्य में घटित होने वाले या तो किसी भूकंप आदि के विषय में सूचना दे रही होती हैं या फिर इनके विषय में सूचना देने के लिए कोई भूकंप अवश्य आएगा !इसी में कुछ भूकंपों की तीव्रता बहुत कम होती है इसलिए उनसे प्राप्त होने वाली सूचनाएँ भी अत्यंत छोटी अर्थात कम प्रभाववाली घटनाओं की ओर संकेत कर रही होती हैं |
कुछ स्थान ऐसे भी होते हैं जहाँ पृथ्वी की आतंरिक या बाह्य अर्थात वायुमंडल की परिस्थितियों के कारण बार बार भूकंप आते रहते हैं ऐसे भूकंपों को सूचना जैसी प्रक्रिया में सम्मिलित नहीं किया जा सकता है क्योंकि उनके द्वारा प्रदत्त सूचनाएँ अक्सर परस्पर विरोधी होती हैं |
कई बार किसी क्षेत्र में कोई भूकंप बहुत कम तीव्रता का आता है तो उसके द्वारा सूचित की जाने वाली घटनाओं का वेग भी अत्यंत कमजोर होता है | कई बार किसी क्षेत्र में पहले से जिस प्रकार की कोई गतिविधि प्रकृति में या समाज में चल रही होती है उसी गतिविधि को और अधिक आगे बढ़ाने वाला यदि कोई भूकंप आ जाता है तो उसकी तीव्रता कम होने पर भी उसका असर अधिक दिखाई पड़ता है |
भूकंप जैसी घटनाओं का स्वास्थ्य पर प्रभाव !
किसी क्षेत्र में वर्षा या वर्फबारी पहले से होती चली आ रही होती है और इसी बीच उसी क्षेत्र में चंद्र निर्मित भूकंप भी आ जाए तो उस क्षेत्र में वर्षा के प्रभाव को और अधिक बढ़ा देता है |यदि इस भूकंप की तीव्रता अधिक होती है तो वर्षा और बाढ़ से संबंधित घटनाओं का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता है |
यदि ऐसा संयोग विशेषकर सर्दी की ऋतु में बन जाए तो न केवल तापमान बहुत अधिक गिर जाता है अपितु सर्दी से संबंधित रोग बहुत अधिक बढ़ जाते हैं यदि जनवरी फरवरी आदि में ऋतु भी सर्दी की हो और भूकंप भी चंद्रज हो और उसकी तीव्रता भी अधिक हो तो सर्दी के स्तर को तो अधिक बढ़ा देगा | इससे अधिकवर्षा सर्दी या बर्फवारी का असर काफी अधिक बढ़ जाता है |इसके साथ साथ ही सर्दी से संबंधित बहुत सारे रोगों को देगा जो अधिक सर्दी के प्रभाव से होते हैं | ऐसे रोगों की कहीं कोई दवा नहीं होती है | यही स्थिति यदि गर्मी की ऋतु में बने तो सर्दी या वर्षा का प्रभाव उतना अधिक नहीं प्रतीत होता है फिर भी ऐसे भूकंप भी गर्मी की मात्रा को तो कम कर ही देते हैं |इसलिए सर्दी गर्मी आदि से होने वाले रोग पनपने लग जाते हैं |
ऐसे रोगों के लक्षण उपलब्ध चिकित्सा पद्धति की किसी भी प्रक्रिया से मेल नहीं खाते हैं इसलिए लक्षणों को देख देखकर ही इनके विषय में दवाएँ दी जाती हैं उससे बहुत अधिक लाभ तो नहीं होता है कुछ हो जाता है धीरे धीरे ऐसे रोग पैंतालीस से साठ दिन तक लेते देखे जाते हैं | ऐसे समय फैलने वाली महारियाँ काफी जन धन की हानि करने वाली होती हैं | भूकंप कृत रोग होने से लेकर समाप्त होने तक न किसी के पास इनकी कोई पहचान होती है और न ही दवा ये जिस प्रकार से आते हैं उसी प्रकार अपने मन की मर्जी से ही जाते हैं !ऐसी परिस्थिति में रोगियों के स्वस्थ होने में चिकित्सा की कोई बड़ी भूमिका नहीं होती है |
इसीप्रकार से सूर्यज भूकंप आने से गर्मी बढ़ जाती है यदि ऐसा भूकंप गर्मी की ऋतु में आ जाए तो गर्मी की मात्रा अधिक बढ़ जाती है उसमें भी यदि भूकंप की तीव्रता अधिक हो तब तो न केवल बहुत अधिक गर्मी पड़ने लग जाती है अपितु जगह जगह आग लगने की घटनाएँ घटित होने लगती हैं इसके साथ ही अधिक गर्मी से होने वाली तरह तरह की सामूहिक बीमारियाँ महामारी आदि पनपने लग जाती है | यही सूर्यज भूकंप यदि सर्दी में आ जाता है तो गर्मी का ताप तो बहुत अधिक नहीं बढ़ता है किंतु सर्दी के असर को बहुत अधिक कमजोर कर देता है |
ऐसे ही मंगल बुद्ध बृहस्पति शुक्र शनैश्चर जैसे ग्रहों के प्रभाव से भी भूकंप निर्मित होते हैं उनका भी स्वास्थ्य आदि पर ऐसा ही प्रभाव पड़ता है |
भूकंप जैसी घटनाओं का मौसम पर प्रभाव !
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ प्रत्येक वर्ष में आती जाती है रहती हैं इनके आने जाने का क्रम भी सुनिश्चित है कौन ऋतु कितने समय तक रहेगी यह भी लगभग सुनिश्चित है किस ऋतु का किस क्षेत्र में कितना प्रभाव पड़ता है यह भी लगभग सुनिश्चित है ! इतना सब होने के बाद भी प्रत्येक वर्ष में प्रत्येक ऋतु का प्रभाव एक जैसा रहे ,एक निश्चित समय तक रहे, ऐसा होते नहीं देखा जाता है |
किसी वर्ष सर्दी की ऋतु में वर्षा बर्फबारी ओले कोहरा पाला आदि गिरने की घटनाएँ बार बार घटित होते देखी जाती हैं जिससे तापमान अधिक गिरकर सर्दी बहुत अधिक बढ़ जाती है तो किसी वर्ष ऐसा होते नहीं देखा जाता है |इसका कारण यदि जनवरी फरवरी आदि में ऋतु भी सर्दी की होती है और भूकंप भी चंद्रज आ जाए तथा उसकी तीव्रता भी अधिक हो तो सर्दी के स्तर को और अधिक बढ़ा देगा | इससे अधिकवर्षा सर्दी या बर्फवारी का असर काफी अधिक बढ़ जाता है |
इसी प्रकार से किसी वर्ष गर्मी की ऋतु में ऐसा ही होते देखा जाता है किसी किसी वर्ष तापमान सामान्य रहता है तो किसी वर्ष तापमान बढ़ जाता है किसी किसी वर्ष तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है जैसा अक्सर होते नहीं देखा जाता है जिससे नदी तालाब कुऍं आदि सूखने लग जाते हैं | आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घटित होने लग जाती हैं |आँधी तूफ़ान किसी वर्ष कम आते हैं किसी वर्ष बहुत अधिक आते हैं और उनमें जनधन की हानि अधिक होते देखी जाती है |
वर्षा में भी यही होते देखा जाता है कि वर्षा ऋतु होने पर किसी क्षेत्र में सामान्य वर्षा होती है किसी क्षेत्र में अधिक या बहुत अधिक वर्षा बाढ़ आदि होते देखी जाती है कुछ क्षेत्रों में सूखा जैसी घटनाएँ भी घटित होते देखी जाती हैं |
कई बार गर्मी सर्दी वर्षा आदि ऋतुओं का समय आ जाने के बाद भी गर्मी का प्रभाव देर से प्रारंभ होता है कई बार जल्दी प्रारंभ होते देखा जाता है इसी प्रकार कई बार देर से समाप्त होता है और कई बार जल्दी समाप्त होते देखा जाता है |कुलमिलाकर एक जैसा कभी नहीं रहता है थोड़ा बहुत अंतर प्रत्येक बार होते देखा जाता है !ऐसे समय में ही जानकारी के अभाव में कुछ लोगों को जलवायुपरिवर्तन जैसा भ्रम होने लगता है |कुछ लोगों ने मानसून आने जाने की तारीखों के विषय में कुछ काल्पनिक तारीखें घोषित कर रखी हैं उन तारीखों में वर्षा शुरू होने या बंद न होने से उन्हें बेचैनी होने लगती है जो ठीक नहीं है क्योंकि उनकी ऐसी कल्पना करने के पीछे कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है |
किसी दशक में वायुप्रदूषण कम बढ़ता है तो किसी दशक में अधिक बढ़ता है | किसी वर्ष में वायुप्रदूषण कम बढ़ता है तो किसी वर्ष में अधिक बढ़ता है !वर्ष के कुछ महीनों में वायुप्रदूषण कम बढ़ता है तो कुछ महीनों में अधिक बढ़ता है | ऐसे ही महीने के कुछ दिनों में वायुप्रदूषण बढ़ता है तो कुछ में नहीं बढ़ता है |कुछ स्थानों पर बढ़ता है और कुछ में नहीं बढ़ता है | ये सब उन उन ऋतुओं में घटित होने वाली भूकंप जैसी विभिन्न प्रकार की आकस्मिक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने के कारण होता है |
किसी क्षेत्र में वर्षा या वर्फबारी पहले से होती चली आ रही होती है और इसी बीच उसी क्षेत्र में चंद्र निर्मित भूकंप भी आ जाए तो उस क्षेत्र में वर्षा के प्रभाव को और अधिक बढ़ा देता है |यदि इस भूकंप की तीव्रता अधिक होती है तो भीषण वर्षा और बाढ़ एवं बादल फटने जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं ऐसी घटनाओं का वेग बहुत अधिक बढ़ जाता है | ऐसी परिस्थिति में यदि अचानक सूर्यज भूकंप आ जाता है तो उस क्षेत्र में पहले से चली आ रही वर्षा बर्फवारी बाढ़ आदि की घटनाऍं अचानक कम या बंद हो जाती हैं |
इसी प्रकार से चंद्रज भूकंप यदि गर्मी की ऋतु में आ जाता है तो गर्मी का प्रभाव उतना अधिक नहीं प्रतीत होता है फिर भी ऐसे भूकंप गर्मी की मात्रा को तो कम कर ही देते हैं |इसलिए सर्दी गर्मी आदि से होने वाले रोग पनपने लग जाते हैं | -भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं का समाज पर प्रभाव !
जिस क्षेत्र में भूकंप आते हैं उस क्षेत्र के विषय में सामाजिक वातावरण की दृष्टि से कोई संदेश दे रहे होते हैं !जो भूकंप चंद्र के प्रभाव से निर्मित होते हैं ऐसे भूकंप जिन क्षेत्रों में आते हैं वहाँ सुख शांति समृद्धि का वातावरण बनता है लोग पुराने बैर विरोध छोड़कर आपस में प्रेम व्यवहार से रहने का प्रयास करने लगते हैं |
किसी क्षेत्र में कुछ लोगों का लक्ष्य ही समाज को पीड़ित या परेशान करना होता है ऐसे लोग किसी पूर्वाग्रह से ग्रस्त होकर मिशन के तहत समाज में भय पैदा करने लिए जाने जाते हैं |जिस क्षेत्र में ये लोग रह रहे होते हैं वहाँ यदि चंद्रज भूकंप आ जाता है तो वहाँ का वातावरण शांति पूर्ण हो जाता है और वे उपद्रवी लोग या तो सुधर जाते हैं या फिर वह क्षेत्र छोड़कर भाग जाते हैं |
ऐसे क्षेत्रों में यदि पहले से कोई झगड़ा विवाद धरना प्रदर्शन आंदोलन हड़ताल आदि चला आ रहा होता है तो इस भूकंप के प्रभाव से वह शांत हो जाता है |
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में यदि सूर्यज भूकंप आ जाता है तो उस क्षेत्र में रहने वाले लोगों को क्रोध बहुत आने लगता है लोग छोटी छोटी बातों में लगने झगड़ने लग जाते हैं !उस क्षेत्र में अचानक तनाव का वातावरण बनने लग जाता है लोग झगड़ा करने और करवाने पर उतारू हो जाते हैं | समाज में असहनशीलता बढ़ने लग जाती है |
ऐसे क्षेत्रों में यदि पहले से कोई झगड़ा विवाद धरना प्रदर्शन आंदोलन हड़ताल आदि चला आ रहा होता है ऐसे समय में वहाँ यदि सूर्यज भूकंप आ जाता है तो इस भूकंप के प्रभाव से वह उपद्रव और अधिक बढ़ जाता है |
इसी प्रकार से शनिकृत भूकंप जिस क्षेत्र में आता है वहाँ अच्छे भले
शिक्षित समझदार लोग भी पागलों जैसी दलीलें देकर समाज में उन्माद की भावना
पैदा करते देखे जाते हैं |
ऐसे ही मंगल आदि ग्रहों के प्रभाव से जो भूकंप जन्म लेते हैं वे उस
क्षेत्र में अपने अपने स्वभाव के अनुशार समाज के मन पर असर डालते हैं |
कुछ देश प्रदेश आदि आतंकवाद उग्रवाद आदि हिंसक घटनाओं से बहुत अधिक पीड़ित हैं कई बार यह आतंकवाद आदि देश के अंदर पनप रही किसी बगावती बिचारधारा के कारण होता है कई बार किसी पड़ोसी देश द्वारा प्रायोजित आतंकवाद होता है |
आतंकी लोग स्वदेश के हों या विदेश के इनका उद्देश्य जनसंहार करना होता है उसके लिए ये तरह तरह के हथकंडे अपनाते रहते हैं | अक्सर देखा जाता है कि ऐसे लोग भारी भरकम विस्फोटक आदि लेकर किसी क्षेत्र में
विस्फोट कर देते हैं |
ऐसे प्रकरणों में सूर्यज चंद्रज भौमज या शनिज भूकंपों की बड़ी भूमिका होती
है जिस क्षेत्र में सूर्यज भूकंप आते हैं वहाँ कुछ उत्तेजक लोग किसी समाज
में छिपकर किसी वर्ग विशेष में आक्रोश पैदा करके समाज को झगड़ा आंदोलन
हड़ताल आदि के लिए प्रेरित करके सरकार के लिए चुनौती खड़ी कर रहे होते हैं |
यदि ऐसे भूकंप किन्हीं दो देशों में एक साथ आते हैं और उन दोनों देशों के
आपसी संबंध भी अच्छे नहीं होते हैं ऐसे देशों में आतंकी एक देश से दूसरे
देश में भेजे जा रहे होते हैं !जिस देश में भूकंप का प्रभाव कम होता है उस
देश से ऐसे देश में भेजे जा रहे होते हैं जिस देश में भूकंप का प्रभाव अधिक
होता है !
मंगल से उत्पन्न भूकंप यदि किसी क्षेत्र में आता है तो ऐसे क्षेत्र में
किसी बड़े विस्फोट की सूचना भूकंप के द्वारा दी जा रही होती है जिसमें जन
संहार की संभावना होती है | ऐसे देशों में आतंकी लोग विस्फोटक सामग्री के
साथ एक देश से दूसरे देश में भेजे जा रहे होते हैं
!जिस देश में भूकंप का प्रभाव कम होता है उस देश से ऐसे देश में भेजे जा
रहे होते हैं जिस देश में भूकंप का प्रभाव अधिक होता है !ऐसे भूकंप सशस्त्र
आत्मघाती आतंकियों की घुस पैठ के विषय में सूचना दे रहे होते हैं |
शनिकृत भूकंप ऐसे आतंकियों की सूचना दे रहे होते हैं जो किसी क्षेत्र
में बहुत बड़े वर्ग को प्रभावित करके सरकार या समाज के विरुद्ध ऐसा उन्माद
खड़ा कर देते हैं जिससे लोग बड़े पैमाने पर किसी देश जाति पंथ मत मजहब आदि
के नाम पर उत्तेजित होकर पागलों की तरह एक दूसरे से लड़ते देखे जाते हैं
!पत्थरबाजी जैसी घटनाओं की सूचना भी ऐसे भूकंप दे रहे होते हैं !ऐसे भूकंप
यदि किन्हीं दो देशों के बीच आते हैं तो उन दोनों के आपसी संबंध बहुत अधिक
खराब कर देते हैं कई बार तो ऐसे दो देशों के प्रति युद्ध जैसा वातावरण
पैदा करने में सफल हो जाते हैं |
चंद्रकृत भूकंप जिन क्षेत्रों में आते हैं वहाँ आपस में भाई चारे की भावना पनपते देखी जाती है दो देशों के बीच यदि तनाव पूर्ण संबंध पहले से चले आ रहे हों तो वे समाप्त होकर आपसी संबंधों की मधुरता बढ़ने लग जाती है | ऐसे देश में एक देश से दूसरे देश में घुसपैठ करते समय वही उत्तेजक लोग ऐसा वेष बदल लेते हैं कि उनकी पहचान कर पाना ही अत्यंत कठिन होता है | देश के अंदर ही यदि ऐसे भूकंप आते हैं तो ये उस क्षेत्र में मधुर वातावरण बनने की सूचना दे रहे होते हैं | ऐसे भूकंप जहाँ आते हैं वहाँ के विषय में ऐसी सूचना दे रहे होते हैं कि यहाँ विस्फोटकों के साथ अभी तक जो आतंकवादी आदि छिपे हुए थे उन्होंने अब यह स्थान छोड़ दिया है और अपने विस्फोटकों के साथ कहीं दूसरे स्थान पर चले गए हैं |
सरकारों के बनने बिगड़ने की सूचना देते हैं भूकंप !
किसी क्षेत्र में चलती हुई सरकारें कई बार लड़खड़ाने लग जाती हैं !कभी कभी कुछ भूकंपों के बाद अचानक ऐसी परिस्थिति बनने लगती है कि ऐसे शासक से उसकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता उससे से दूरी बनाकर उसकी सरकार को गिराने के कार्य में लग जाते हैं | उसके विरुद्ध दुष्प्रचार करने लगते हैं सामाजिक रूप से अपमानित होना पड़ता है |सत्तापक्ष पर विपक्ष भारी पड़ने लग जाता है |
ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर सरकार के विरुद्ध समीकरण बनने लगते हैं और धीरे धीरे कुछ महीनों में स्थापित सरकारें गिर जाया करती हैं |
विशेष बात -
कभी कभी देखा जाता है कि किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि की कहीं रैली होने जा रही होती है और उसी क्षेत्र में उसी समय भूकंप आ जाता है ऐसा भूकंप ऐसे लोकप्रिय नेता की रैली के संबंध में या उस नेता की सुरक्षा के विषय में कोई अच्छी या बुरी सूचना दे रहा होता है |
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में चुनाव होने जा रहे हों और उसी समय अचानक कोई भूकंप आ जाता है तो चुनाव से संबंधित संभावित अच्छे या बुरे वातावरण के विषय में कोई सूचना दे रहा होता है |
किसी क्षेत्र में सूखा वर्षा बाढ़ तथा आँधी तूफानों आदि की घटनाएँ अधिक मात्रा में घटित हो रही होती हैं और उसी समय कोई भूकंप आ जाता है तो उसी प्राकृतिक घटना के विषय में कोई सूचना दे रहा होता है |
किसी यदि कोई बीमारी या महामारी फैली हुई है जिसकी पहचान होना मुश्किल होता है उस पर किसी दवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में उसी बीच कोई भूकंप जाता है तो वो भूकंप उस बीमारी के घटने बढ़ने या बहुत अधिक हिंसक होने की सूचना दे रहा होता है भकंप !
किसी क्षेत्र में विस्फोट करने ,हिंसा फैलाने,उत्तेजना पैदा करने के उद्देश्य से कुछ उपद्रवी लोग लुक छिपकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे होते हैं | यदि उससे कोई बड़ा नुक्सान होने या हिंसा बढ़ने की संभावना होती है तो ऐसे लोग जहाँ ऐसी प्रक्रिया प्रारंभ करते हैं वहाँ भूकंप आते हैं | बड़े विस्फोटकों के साथ ये जिस जगह ठहरते हैं वहाँ उस प्रकार के भूकंप आते हैं और जिस स्थान को छोड़ते हैं वहाँ उस प्रकार के भूकंप आते हैं |
किसी एक ही क्षेत्र में किसी एक ही प्रजाति का भूकंप बार बार घटित होने लगता है तो ऐसे क्षेत्र में कोई न कोई बड़ी घटना घटित होने जा रही होती है जो लोगों को पता नहीं होती है उसके संकेतों को शीघ्र समझने की आवश्यकता होती है |
जिन क्षेत्रों में बिजली गिरने आँधी तूफ़ान आने एवं वायु प्रदूषण बढ़ने की घटनाएँ बार बार घटित हो रही होती हैं और भूकंप भी उसी प्रकार के आ रहे होते हैं ऐसे स्थानों पर किसी बड़ी दुर्घटना की सूचना दे रहे होते हैं ये भूकंप |
समय से प्रभावित होती है प्रकृति और घटित होती हैं प्राकृतिक घटनाएँ
समय के दो प्रकार होते हैं एक अच्छा और दूसरा बुरा |अच्छा समय जब प्रारंभ होता है तब जीवन से लेकर प्रकृति तक सब कुछ अच्छा अच्छा होता है और जब बुरे समय का संचार प्रारंभ होता है तब चारों ओर सब कुछ बुरा बुरा ही होते दिखाई पड़ता है |
अच्छे समय के संचार में प्रकृति स्वस्थ रहती है प्रकृति के स्वस्थ रहने से अभिप्राय प्रकृति में सबकुछ अच्छा बना रहता है मनुष्यों से लेकर समस्त जीव जंतुओं में भी प्रसन्नता का वातावरण बना रहता है सभी स्वस्थ निरोग एवं प्रसन्न रहते हैं सभी अपने अपने स्वभाव के अनुशार ही वर्ताव कर रहे होते हैं |
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं उचित मात्रा में अपना अपना प्रभाव छोड़ती हैं | सर्दी में सर्दी का प्रभाव अपने समय से प्रारंभ होता और समय से ही समाप्त होता है यह प्रभाव न बहुत कम होता है और न अधिक !ऐसी परिस्थिति में सर्दी से किसी को कोई कठिनाई नहीं होती है इसी प्रकार से गर्मी और वर्षा आदि का भी प्रभाव उचित मात्रा में होने से सभी पेड़ पौधे जीव जंतु आदि के लिए हितकर होता है | इसलिए ये सभी स्वस्थ निरोग एवं प्रसन्न रहते हैं |
ऐसे समय में नदियों तालाबों आदि का जल निर्मल एवं पर्याप्त बना रहता है प्रदूषण रहित स्वच्छ शीतल मंद सुगंधित सुखद वायु बहती है | सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान बज्रपात भूकंप आदि घटनाएँ नहीं घटित होती हैं वायु प्रदूषण नहीं बढ़ता है जल प्रदूषित नहीं होता है | बादलों का गर्जन धीमा अर्थात मधुर होता है | इसलिए सभी प्रकार के जीवजंतु पशु पक्षी आदि बेचैन होते नहीं देखे जाते हैं | समाज में किसी प्रकार की कोई महामारी आदि घटना सुनाई नहीं देती है | सभी लोग आपस में एक दूसरे के साथ मधुर व्यवहार रखते हैं | समाज में अपराध हिंसा आंदोलन पत्थरबाजी आदि से उन्माद फैलाने वाली घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं | सरकारें सुचारु रूप से अपने कार्यों का संचालन करते हुए अपने सेवाकार्यों से समाज का विश्वास जीतने में सफल बनी रहती हैं | चिंतन सात्विक होने से लोगों में अहंकार की भावना कम होती है लोग एक दूसरे के साथ सम्मानपूर्ण वर्ताव करते हैं एक दूसरे को सुख देने का प्रयास करते हैं | आतंकवादी घटनाएँ घटित नहीं होती हैं दो देशों के बीच तनाव युद्ध आदि की संभावनाएँ नहीं बनती हैं अपितु आपस में मित्रतापूर्ण वर्ताव होते दिखता है |
किसानों के द्वारा बोई जाने वाली फसलें रोगरहित होती हैं इसलिए पैदावार अच्छी होती है उससे किसान तो सुखी होते ही हैं उनके साथ साथ सारा समाज प्रसन्न बना रहता है |
इसके विपरीत जब सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव उचित मात्रा में न होकर न्यूनाधिक हो जाता है ऐसी परिस्थिति में जल और वायु प्रदूषित होने लगते हैं पेड़पौधों समेत किसानों के द्वारा खेतों में बोई जाने वाली सभी फसलें भी रोगी होने लगती हैं पैदावार मारी जाती है लोग परेशान होते हैं सभी जीव जंतु बेचैन होने लगते हैं तरह तरह के रोग महामारी आदि फैलने लगते हैं | कहीं सूखा तो कहीं भीषण बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप जैसी की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |बादलों का भयंकरगर्जन एवं बज्रपात आदि होते दिखाई देता है ओलावृष्टि बादल फटने जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | इसलिए सभी प्रकार के जीवजंतु पशु पक्षी आदि बेचैन होते नहीं देखे जाते हैं | सामूहिक रोग महामारी आदि घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |कुलमिलाकर आपसी अनुपात विषम होते ही सबकुछ उलटा होने लग जाता है |
मनुष्यों समेत सभी जीव जंतुओं में असंतोष व्याप्त हो जाने के कारण कलह विवाद उन्माद लड़ाई झगड़ा तथा समाज में अपराध हिंसा आंदोलन पत्थरबाजी आदि उन्माद फैलाने वाली घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं | ऐसे समय में हैरान परेशान असंतुष्ट एवं असहनशील समाज की अपेक्षाएँ अधिक बढ़ जाती हैं जिसे सरकारें उस अनुपात में पूर्ण नहीं कर पाती हैं | जिससे सरकारों शासकों के प्रति आक्रोश पनपता है ऐसे समय में सरकारों को सुचारु रूप से अपने कार्यों का संचालन करने में कठिनाई होती है सेवाकार्यों से समाज का विश्वास जीतने में असफल हो जाती हैं | चिंतन तामसी हो जाने के कारण लोगों में अहंकार की भावना अधिक बढ़ जाती है लोग एक दूसरे को अपमानित और परेशान करने की जुगत खोजने लगते हैं | आतंकवादी घटनाएँ घटित होती हैं दो देशों के बीच तनाव युद्ध आदि की संभावनाएँ नहीं बनते देखी जाती हैं |
ऐसी परिस्थिति में कहा जा सकता है कि प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार घटित होती हैं इसलिए अच्छी या बुरी कुछ प्राकृतिक घटनाओं को घटित होता देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय समय कैसा चल रहा है उसी के अनुशार भविष्य के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
इसीप्रकार से अच्छे या बुरे समय के अनुसार मनुष्यों समेत समस्त जीव जंतुओं के स्वभाव बदलाव होते रहते हैं उनमें यदि अच्छे बदलाव होते हैं तो निकट भविष्य में अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और यदि बुरे बदलाव दिखाई पड़ें तो उन्हें देखकर निकट भविष्य में संभावित बुरी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
श्रीकृष्ण भगवान् के जन्म की पूर्वसूचना देने वाली प्राकृतिक घटनाएँ !
सनातनधर्मियों के लिए भगवान के अवतार से अधिक शुभ कुछ भी नहीं हो सकता है और भगवान् के परमधाम से अधिक अशुभ कुछ भी नहीं हो सकता है | इसलिए सर्वप्रथम मैंने यहीं दोनों घटनाओं को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है |
प्राकृतिक घटनाएँ केवल बुरी सूचनाएँ ही नहीं देती हैं अपितु अच्छी सूचनाएँ भी देती हैं इनमें अनेकों बातें सम्मिलित होती हैं जिन्हें संक्षेप में इस प्रकार से समझा जा सकता है | अच्छी घटनाओं के घटित होने से पूर्व अत्यंत सुंदर समय का संचार होने लगता है | सुंदर समय के प्रभाव से नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर स्वतः स्वच्छ होने लगता है |वायुमंडल प्रदूषण रहित हो जाता है शीतल मंद एवं सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं आकाश धूल रहित होकर अत्यंत उत्तम दिखाई पड़ने लगता है |बादल समय से समान रूप से जल वर्षा करते देखे जाते हैं उनका गर्जन बहुत मंद एवं मधुर होता है |
भगवान् श्री कृष्ण के प्राकट्य की पूर्व सूचना प्रकृति ने ऐसे ही प्राकृतिक लक्षणों के माध्यम से दी थी |
समय -
भगवान् श्रीकृष्ण के प्राकट्य से पूर्व अत्यंत सुंदर समय आ गया था | उसी के अनुशार अच्छी अच्छी
" अथ सर्व गुणोपेतः कालः परम शोभनः |"
आकाश दिशाएँ - आकाश एवं दिशाएँ प्रदूषण रहित होकर अत्यंत स्वच्छ दिखाई पड़ती थीं |
" दिशः प्रसेदुर्गगनं निर्मलोडुगणोदयं |"
मेघगर्जन -
भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म समय में बादल अत्यंत धीरे धीरे मधुर मधुर गर्जन कर रहे थे ! यथा -
मंदंमंदं जलधराः जगर्जुरनुसागरं !
नदियाँ आदि -
नदियों में स्वच्छ जल बहने लगा था - "नद्यः प्रसन्नसलिला |"
तालाब -
तालाबों का जल तो स्वच्छ था ही रात्रि में कमल भी खिलने लगे थे- " ह्रदा जलरुहश्रियः |"
वायु -
शीतल मंद एवं सुगंधित हवाएँ बहने लगी थीं - "ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगंधवहः शुचि |"
इसी प्रकार से कुछ शुभ पशु पक्षियों का शुभ शुभ बोलना व्यवहार करना आदि से भी समय की शुभता का अनुमान लगा लिया जाता है |
ऐसी सभी बातों के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया गया था कि कोई अत्यंत उत्तम मंगलकारी सुंदर एवं सुखद घटना घटित होने वाली है |
भगवान् श्री राम के जन्म के समय यही हुआ था श्री राम का प्राकट्य होने से पूर्व ही समय को शुभ जानकर देवताओं ने उस समय की शुभता को समझ कर उसकी पूजा की और अपने अपने धाम को चले गए इसके बाद भगवान् श्री राम का अवतार हुआ था-
दो. सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम |
जगनिवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम ||
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर वर्तमान समय में भी शुभ और अशुभ का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है प्रकृति स्वयं ही विभिन्न घटनाओं के माध्यम से भविष्य में घटित होने वाली सामाजिक प्राकृतिक आदि घटनाओं की सूचना दिया करती है |
भगवान् श्रीकृष्ण के परमधाम गमन की पूर्व सूचना देने वाली प्राकृतिक घटनाएँ
भगवान् श्रीकृष्ण के परमधाम जाने से पूर्व उसकी सूचना देने के लिए अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो रही थीं | उनमें भूकंप भी घटित होते देखे जा रहे थे -
बार बार भूकंप आने लगे थे यथा - "कंपतेभूः सहाद्रिभिः" जिन्हें देखकर युधिष्ठिर अत्यंत चिंतित हो गए थे और आशंका व्यक्त करने लगे थे कि लगता है श्रीकृष्ण के धराधाम छोड़कर जाने का समय आ चुका है |
इसी प्रकार से असुरों के जन्म समय में अक्सर भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का वर्णन मिलता है भगवान् श्रीराम के बन जाने से पूर्व भूकंप आदि घटनाएँ घटित होने लगी थीं जिन्हें देखकर महाराज दशरथ जी को भय होने लगा था कि अयोध्या में कुछ अमंगल होने वाला है इसीलिए तो भारत और शत्रुघ्न के घर न होने पर भी हड़बड़ाहट में श्री रामराज्याभिषेक का मुहूर्त निश्चित कर दिया गया था किंतु वह हो नहीं पाया था |
जब जब अशुभ घटनाएँ घटित होनी होती हैं तब तब भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होती रही हैं | इसके अतिरिक्त भी केवल भूकंप ही नहीं अपितु सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कोई न कोई संदेशा दे रही होती हैं |
आँधी तूफ़ान भूकंप आदि की घटनाएँ बार बार घटित होने लगती हैं | ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ या पशु पक्षियों की बोली व्यवहार आदि से संबंधित घटनाएँ घटित होती हैं जो अशुभ सूचनाएँ देने के लिए जानी जाती हैं |
भगवान् श्री कृष्ण के परमधाम जाने के समय की सूचना प्रकृति ने कुछ इसप्रकार से दी थी |
समय -
सबसे पहले समय का संचार बिगड़ा था !जिसे देखकर लोग कहने लगे थे कि यह समय न जाने क्या करेगा !यथा - कालोयं किं विधाष्यति !
उसके कारण ऋतुएँ बिगड़ गई थीं ऋतुओं का असर कहीं कम तो कहीं अधिक दिखाई पड़ने लगा था -
ऋतुध्वंस : जिसे आधुनिक भाषा में 'जलवायुपरिवर्तन' कहने का रिवाज है -
ऋतुएँ अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने लगती हैं|जिस समय जो ऋतु होनी चाहिए उस समय वह नहीं होने लगी थी |सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्दी के लक्षण दिखाई पड़ने लगे थे वर्षा ऋतु सूखी निकल जाती थी वर्षा के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में अच्छी जलवर्षा होते देखी जाती थी | यथा -
कालस्य च गतिं रौद्रां विपर्यस्तर्तु धर्मिणः |
भूकंप आदि उत्पात -
पृथ्वी में भूकंप आदि घटित हो रहे थे और शरीरों में लोगों के भारी संख्या में रोग फैलने लगे थे |
यथा - पश्योत्पातान्नर व्याघ्र दिव्यान् भौमान् सदैहिकान् |
दिशाएँ-जिसे आधुनिक भाषा में 'पॉल्यूशन' कहने का रिवाज है |
वायु प्रदूषित होने लगती है आकाश धूल से भर जाता है | सूर्य और चंद्र का प्रकाश धूमिल लगने लगता है
दिशाओं में धुँधलापन छाने लगा था ! यथा - धूम्रःदिशः
मेघ गर्जन -
बादलों का गर्जन अत्यंत तीव्र होने लगा था यथा - निर्घातश्च महांस्तात
बिजली गिरना -
बिजली गिरने की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं यथा - साकं च स्तनयित्नुभिः
आँधी तूफ़ान -
शरीर को छेदने वाली वायु धूलि वर्षा कर रही थी बार बार आँधी तूफ़ान घटित हो रहे थे|
यथा - वायुर्वाति खरस्पर्शो रजसा विंसृजंस्तमः |
वर्षा - बादल रक्त वर्षा करने लगते थे -'असृग वर्षन्ति जलदा '
ऐसे सभी अपशकुनों को देखकर युधिष्ठिर के मन में ये निश्चय हो गया था कि लग रहा है भगवान् श्रीकृष्ण जी के धराधाम से जाने का समय आ चुका है |
इसी प्रकार से शुभ शकुन देखकर अच्छी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लग जाता है |
भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के समय प्रकृति में जो जो अच्छी घटनाएँ घटित हो रही थीं प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान उस युग के प्रकृति वैज्ञानिकों ने लगा लिया था कि इस समय कोई बहुत शुभ घटना घटित होने वाली है |
चंद्रकृत भूकंप जिन क्षेत्रों में आते हैं वहाँ आपस में भाई चारे की भावना पनपते देखी जाती है दो देशों के बीच यदि तनाव पूर्ण संबंध पहले से चले आ रहे हों तो वे समाप्त होकर आपसी संबंधों की मधुरता बढ़ने लग जाती है | ऐसे देश में एक देश से दूसरे देश में घुसपैठ करते समय वही उत्तेजक लोग ऐसा वेष बदल लेते हैं कि उनकी पहचान कर पाना ही अत्यंत कठिन होता है | देश के अंदर ही यदि ऐसे भूकंप आते हैं तो ये उस क्षेत्र में मधुर वातावरण बनने की सूचना दे रहे होते हैं | ऐसे भूकंप जहाँ आते हैं वहाँ के विषय में ऐसी सूचना दे रहे होते हैं कि यहाँ विस्फोटकों के साथ अभी तक जो आतंकवादी आदि छिपे हुए थे उन्होंने अब यह स्थान छोड़ दिया है और अपने विस्फोटकों के साथ कहीं दूसरे स्थान पर चले गए हैं |
सरकारों के बनने बिगड़ने की सूचना देते हैं भूकंप !
किसी क्षेत्र में चलती हुई सरकारें कई बार लड़खड़ाने लग जाती हैं !कभी कभी कुछ भूकंपों के बाद अचानक ऐसी परिस्थिति बनने लगती है कि ऐसे शासक से उसकी अपनी पार्टी के कार्यकर्ता उससे से दूरी बनाकर उसकी सरकार को गिराने के कार्य में लग जाते हैं | उसके विरुद्ध दुष्प्रचार करने लगते हैं सामाजिक रूप से अपमानित होना पड़ता है |सत्तापक्ष पर विपक्ष भारी पड़ने लग जाता है |
ऐसी परिस्थिति पैदा होने पर सरकार के विरुद्ध समीकरण बनने लगते हैं और धीरे धीरे कुछ महीनों में स्थापित सरकारें गिर जाया करती हैं |
विशेष बात -
कभी कभी देखा जाता है कि किसी लोकप्रिय प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री आदि की कहीं रैली होने जा रही होती है और उसी क्षेत्र में उसी समय भूकंप आ जाता है ऐसा भूकंप ऐसे लोकप्रिय नेता की रैली के संबंध में या उस नेता की सुरक्षा के विषय में कोई अच्छी या बुरी सूचना दे रहा होता है |
इसी प्रकार से किसी क्षेत्र में चुनाव होने जा रहे हों और उसी समय अचानक कोई भूकंप आ जाता है तो चुनाव से संबंधित संभावित अच्छे या बुरे वातावरण के विषय में कोई सूचना दे रहा होता है |
किसी क्षेत्र में सूखा वर्षा बाढ़ तथा आँधी तूफानों आदि की घटनाएँ अधिक मात्रा में घटित हो रही होती हैं और उसी समय कोई भूकंप आ जाता है तो उसी प्राकृतिक घटना के विषय में कोई सूचना दे रहा होता है |
किसी यदि कोई बीमारी या महामारी फैली हुई है जिसकी पहचान होना मुश्किल होता है उस पर किसी दवा का कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा होता है !ऐसी परिस्थिति में उसी बीच कोई भूकंप जाता है तो वो भूकंप उस बीमारी के घटने बढ़ने या बहुत अधिक हिंसक होने की सूचना दे रहा होता है भकंप !
किसी क्षेत्र में विस्फोट करने ,हिंसा फैलाने,उत्तेजना पैदा करने के उद्देश्य से कुछ उपद्रवी लोग लुक छिपकर अपनी गतिविधियों को अंजाम दे रहे होते हैं | यदि उससे कोई बड़ा नुक्सान होने या हिंसा बढ़ने की संभावना होती है तो ऐसे लोग जहाँ ऐसी प्रक्रिया प्रारंभ करते हैं वहाँ भूकंप आते हैं | बड़े विस्फोटकों के साथ ये जिस जगह ठहरते हैं वहाँ उस प्रकार के भूकंप आते हैं और जिस स्थान को छोड़ते हैं वहाँ उस प्रकार के भूकंप आते हैं |
किसी एक ही क्षेत्र में किसी एक ही प्रजाति का भूकंप बार बार घटित होने लगता है तो ऐसे क्षेत्र में कोई न कोई बड़ी घटना घटित होने जा रही होती है जो लोगों को पता नहीं होती है उसके संकेतों को शीघ्र समझने की आवश्यकता होती है |
जिन क्षेत्रों में बिजली गिरने आँधी तूफ़ान आने एवं वायु प्रदूषण बढ़ने की घटनाएँ बार बार घटित हो रही होती हैं और भूकंप भी उसी प्रकार के आ रहे होते हैं ऐसे स्थानों पर किसी बड़ी दुर्घटना की सूचना दे रहे होते हैं ये भूकंप |
समय से प्रभावित होती है प्रकृति और घटित होती हैं प्राकृतिक घटनाएँ
समय के दो प्रकार होते हैं एक अच्छा और दूसरा बुरा |अच्छा समय जब प्रारंभ होता है तब जीवन से लेकर प्रकृति तक सब कुछ अच्छा अच्छा होता है और जब बुरे समय का संचार प्रारंभ होता है तब चारों ओर सब कुछ बुरा बुरा ही होते दिखाई पड़ता है |
अच्छे समय के संचार में प्रकृति स्वस्थ रहती है प्रकृति के स्वस्थ रहने से अभिप्राय प्रकृति में सबकुछ अच्छा बना रहता है मनुष्यों से लेकर समस्त जीव जंतुओं में भी प्रसन्नता का वातावरण बना रहता है सभी स्वस्थ निरोग एवं प्रसन्न रहते हैं सभी अपने अपने स्वभाव के अनुशार ही वर्ताव कर रहे होते हैं |
सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ अपने अपने समय से आती जाती रहती हैं उचित मात्रा में अपना अपना प्रभाव छोड़ती हैं | सर्दी में सर्दी का प्रभाव अपने समय से प्रारंभ होता और समय से ही समाप्त होता है यह प्रभाव न बहुत कम होता है और न अधिक !ऐसी परिस्थिति में सर्दी से किसी को कोई कठिनाई नहीं होती है इसी प्रकार से गर्मी और वर्षा आदि का भी प्रभाव उचित मात्रा में होने से सभी पेड़ पौधे जीव जंतु आदि के लिए हितकर होता है | इसलिए ये सभी स्वस्थ निरोग एवं प्रसन्न रहते हैं |
ऐसे समय में नदियों तालाबों आदि का जल निर्मल एवं पर्याप्त बना रहता है प्रदूषण रहित स्वच्छ शीतल मंद सुगंधित सुखद वायु बहती है | सूखा बाढ़ आँधी तूफ़ान बज्रपात भूकंप आदि घटनाएँ नहीं घटित होती हैं वायु प्रदूषण नहीं बढ़ता है जल प्रदूषित नहीं होता है | बादलों का गर्जन धीमा अर्थात मधुर होता है | इसलिए सभी प्रकार के जीवजंतु पशु पक्षी आदि बेचैन होते नहीं देखे जाते हैं | समाज में किसी प्रकार की कोई महामारी आदि घटना सुनाई नहीं देती है | सभी लोग आपस में एक दूसरे के साथ मधुर व्यवहार रखते हैं | समाज में अपराध हिंसा आंदोलन पत्थरबाजी आदि से उन्माद फैलाने वाली घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं | सरकारें सुचारु रूप से अपने कार्यों का संचालन करते हुए अपने सेवाकार्यों से समाज का विश्वास जीतने में सफल बनी रहती हैं | चिंतन सात्विक होने से लोगों में अहंकार की भावना कम होती है लोग एक दूसरे के साथ सम्मानपूर्ण वर्ताव करते हैं एक दूसरे को सुख देने का प्रयास करते हैं | आतंकवादी घटनाएँ घटित नहीं होती हैं दो देशों के बीच तनाव युद्ध आदि की संभावनाएँ नहीं बनती हैं अपितु आपस में मित्रतापूर्ण वर्ताव होते दिखता है |
किसानों के द्वारा बोई जाने वाली फसलें रोगरहित होती हैं इसलिए पैदावार अच्छी होती है उससे किसान तो सुखी होते ही हैं उनके साथ साथ सारा समाज प्रसन्न बना रहता है |
इसके विपरीत जब सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का प्रभाव उचित मात्रा में न होकर न्यूनाधिक हो जाता है ऐसी परिस्थिति में जल और वायु प्रदूषित होने लगते हैं पेड़पौधों समेत किसानों के द्वारा खेतों में बोई जाने वाली सभी फसलें भी रोगी होने लगती हैं पैदावार मारी जाती है लोग परेशान होते हैं सभी जीव जंतु बेचैन होने लगते हैं तरह तरह के रोग महामारी आदि फैलने लगते हैं | कहीं सूखा तो कहीं भीषण बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप जैसी की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |बादलों का भयंकरगर्जन एवं बज्रपात आदि होते दिखाई देता है ओलावृष्टि बादल फटने जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | इसलिए सभी प्रकार के जीवजंतु पशु पक्षी आदि बेचैन होते नहीं देखे जाते हैं | सामूहिक रोग महामारी आदि घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं |कुलमिलाकर आपसी अनुपात विषम होते ही सबकुछ उलटा होने लग जाता है |
मनुष्यों समेत सभी जीव जंतुओं में असंतोष व्याप्त हो जाने के कारण कलह विवाद उन्माद लड़ाई झगड़ा तथा समाज में अपराध हिंसा आंदोलन पत्थरबाजी आदि उन्माद फैलाने वाली घटनाएँ घटित होते नहीं देखी जाती हैं | ऐसे समय में हैरान परेशान असंतुष्ट एवं असहनशील समाज की अपेक्षाएँ अधिक बढ़ जाती हैं जिसे सरकारें उस अनुपात में पूर्ण नहीं कर पाती हैं | जिससे सरकारों शासकों के प्रति आक्रोश पनपता है ऐसे समय में सरकारों को सुचारु रूप से अपने कार्यों का संचालन करने में कठिनाई होती है सेवाकार्यों से समाज का विश्वास जीतने में असफल हो जाती हैं | चिंतन तामसी हो जाने के कारण लोगों में अहंकार की भावना अधिक बढ़ जाती है लोग एक दूसरे को अपमानित और परेशान करने की जुगत खोजने लगते हैं | आतंकवादी घटनाएँ घटित होती हैं दो देशों के बीच तनाव युद्ध आदि की संभावनाएँ नहीं बनते देखी जाती हैं |
ऐसी परिस्थिति में कहा जा सकता है कि प्राकृतिक घटनाएँ समय के अनुसार घटित होती हैं इसलिए अच्छी या बुरी कुछ प्राकृतिक घटनाओं को घटित होता देखकर इस बात का अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस समय समय कैसा चल रहा है उसी के अनुशार भविष्य के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
इसीप्रकार से अच्छे या बुरे समय के अनुसार मनुष्यों समेत समस्त जीव जंतुओं के स्वभाव बदलाव होते रहते हैं उनमें यदि अच्छे बदलाव होते हैं तो निकट भविष्य में अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और यदि बुरे बदलाव दिखाई पड़ें तो उन्हें देखकर निकट भविष्य में संभावित बुरी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
श्रीकृष्ण भगवान् के जन्म की पूर्वसूचना देने वाली प्राकृतिक घटनाएँ !
सनातनधर्मियों के लिए भगवान के अवतार से अधिक शुभ कुछ भी नहीं हो सकता है और भगवान् के परमधाम से अधिक अशुभ कुछ भी नहीं हो सकता है | इसलिए सर्वप्रथम मैंने यहीं दोनों घटनाओं को अपने अनुसंधान का विषय बनाया है |
प्राकृतिक घटनाएँ केवल बुरी सूचनाएँ ही नहीं देती हैं अपितु अच्छी सूचनाएँ भी देती हैं इनमें अनेकों बातें सम्मिलित होती हैं जिन्हें संक्षेप में इस प्रकार से समझा जा सकता है | अच्छी घटनाओं के घटित होने से पूर्व अत्यंत सुंदर समय का संचार होने लगता है | सुंदर समय के प्रभाव से नदियों तालाबों आदि का जल प्रदूषण मुक्त होकर स्वतः स्वच्छ होने लगता है |वायुमंडल प्रदूषण रहित हो जाता है शीतल मंद एवं सुगंधित हवाएँ बहने लगती हैं आकाश धूल रहित होकर अत्यंत उत्तम दिखाई पड़ने लगता है |बादल समय से समान रूप से जल वर्षा करते देखे जाते हैं उनका गर्जन बहुत मंद एवं मधुर होता है |
भगवान् श्री कृष्ण के प्राकट्य की पूर्व सूचना प्रकृति ने ऐसे ही प्राकृतिक लक्षणों के माध्यम से दी थी |
समय -
भगवान् श्रीकृष्ण के प्राकट्य से पूर्व अत्यंत सुंदर समय आ गया था | उसी के अनुशार अच्छी अच्छी
" अथ सर्व गुणोपेतः कालः परम शोभनः |"
आकाश दिशाएँ - आकाश एवं दिशाएँ प्रदूषण रहित होकर अत्यंत स्वच्छ दिखाई पड़ती थीं |
" दिशः प्रसेदुर्गगनं निर्मलोडुगणोदयं |"
मेघगर्जन -
भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म समय में बादल अत्यंत धीरे धीरे मधुर मधुर गर्जन कर रहे थे ! यथा -
मंदंमंदं जलधराः जगर्जुरनुसागरं !
नदियाँ आदि -
नदियों में स्वच्छ जल बहने लगा था - "नद्यः प्रसन्नसलिला |"
तालाब -
तालाबों का जल तो स्वच्छ था ही रात्रि में कमल भी खिलने लगे थे- " ह्रदा जलरुहश्रियः |"
वायु -
शीतल मंद एवं सुगंधित हवाएँ बहने लगी थीं - "ववौ वायुः सुखस्पर्शः पुण्यगंधवहः शुचि |"
इसी प्रकार से कुछ शुभ पशु पक्षियों का शुभ शुभ बोलना व्यवहार करना आदि से भी समय की शुभता का अनुमान लगा लिया जाता है |
ऐसी सभी बातों के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया गया था कि कोई अत्यंत उत्तम मंगलकारी सुंदर एवं सुखद घटना घटित होने वाली है |
भगवान् श्री राम के जन्म के समय यही हुआ था श्री राम का प्राकट्य होने से पूर्व ही समय को शुभ जानकर देवताओं ने उस समय की शुभता को समझ कर उसकी पूजा की और अपने अपने धाम को चले गए इसके बाद भगवान् श्री राम का अवतार हुआ था-
दो. सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम |
जगनिवास प्रभु प्रकटे अखिल लोक विश्राम ||
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर वर्तमान समय में भी शुभ और अशुभ का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है प्रकृति स्वयं ही विभिन्न घटनाओं के माध्यम से भविष्य में घटित होने वाली सामाजिक प्राकृतिक आदि घटनाओं की सूचना दिया करती है |
भगवान् श्रीकृष्ण के परमधाम गमन की पूर्व सूचना देने वाली प्राकृतिक घटनाएँ
भगवान् श्रीकृष्ण के परमधाम जाने से पूर्व उसकी सूचना देने के लिए अनेकों प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो रही थीं | उनमें भूकंप भी घटित होते देखे जा रहे थे -
बार बार भूकंप आने लगे थे यथा - "कंपतेभूः सहाद्रिभिः" जिन्हें देखकर युधिष्ठिर अत्यंत चिंतित हो गए थे और आशंका व्यक्त करने लगे थे कि लगता है श्रीकृष्ण के धराधाम छोड़कर जाने का समय आ चुका है |
इसी प्रकार से असुरों के जन्म समय में अक्सर भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने का वर्णन मिलता है भगवान् श्रीराम के बन जाने से पूर्व भूकंप आदि घटनाएँ घटित होने लगी थीं जिन्हें देखकर महाराज दशरथ जी को भय होने लगा था कि अयोध्या में कुछ अमंगल होने वाला है इसीलिए तो भारत और शत्रुघ्न के घर न होने पर भी हड़बड़ाहट में श्री रामराज्याभिषेक का मुहूर्त निश्चित कर दिया गया था किंतु वह हो नहीं पाया था |
जब जब अशुभ घटनाएँ घटित होनी होती हैं तब तब भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होती रही हैं | इसके अतिरिक्त भी केवल भूकंप ही नहीं अपितु सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कोई न कोई संदेशा दे रही होती हैं |
आँधी तूफ़ान भूकंप आदि की घटनाएँ बार बार घटित होने लगती हैं | ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ या पशु पक्षियों की बोली व्यवहार आदि से संबंधित घटनाएँ घटित होती हैं जो अशुभ सूचनाएँ देने के लिए जानी जाती हैं |
भगवान् श्री कृष्ण के परमधाम जाने के समय की सूचना प्रकृति ने कुछ इसप्रकार से दी थी |
समय -
सबसे पहले समय का संचार बिगड़ा था !जिसे देखकर लोग कहने लगे थे कि यह समय न जाने क्या करेगा !यथा - कालोयं किं विधाष्यति !
उसके कारण ऋतुएँ बिगड़ गई थीं ऋतुओं का असर कहीं कम तो कहीं अधिक दिखाई पड़ने लगा था -
ऋतुध्वंस : जिसे आधुनिक भाषा में 'जलवायुपरिवर्तन' कहने का रिवाज है -
ऋतुएँ अपने स्वभाव के विरुद्ध आचरण करने लगती हैं|जिस समय जो ऋतु होनी चाहिए उस समय वह नहीं होने लगी थी |सर्दी में गर्मी और गर्मी में सर्दी के लक्षण दिखाई पड़ने लगे थे वर्षा ऋतु सूखी निकल जाती थी वर्षा के अतिरिक्त अन्य ऋतुओं में अच्छी जलवर्षा होते देखी जाती थी | यथा -
कालस्य च गतिं रौद्रां विपर्यस्तर्तु धर्मिणः |
भूकंप आदि उत्पात -
पृथ्वी में भूकंप आदि घटित हो रहे थे और शरीरों में लोगों के भारी संख्या में रोग फैलने लगे थे |
यथा - पश्योत्पातान्नर व्याघ्र दिव्यान् भौमान् सदैहिकान् |
दिशाएँ-जिसे आधुनिक भाषा में 'पॉल्यूशन' कहने का रिवाज है |
वायु प्रदूषित होने लगती है आकाश धूल से भर जाता है | सूर्य और चंद्र का प्रकाश धूमिल लगने लगता है
दिशाओं में धुँधलापन छाने लगा था ! यथा - धूम्रःदिशः
मेघ गर्जन -
बादलों का गर्जन अत्यंत तीव्र होने लगा था यथा - निर्घातश्च महांस्तात
बिजली गिरना -
बिजली गिरने की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं यथा - साकं च स्तनयित्नुभिः
आँधी तूफ़ान -
शरीर को छेदने वाली वायु धूलि वर्षा कर रही थी बार बार आँधी तूफ़ान घटित हो रहे थे|
यथा - वायुर्वाति खरस्पर्शो रजसा विंसृजंस्तमः |
वर्षा - बादल रक्त वर्षा करने लगते थे -'असृग वर्षन्ति जलदा '
ऐसे सभी अपशकुनों को देखकर युधिष्ठिर के मन में ये निश्चय हो गया था कि लग रहा है भगवान् श्रीकृष्ण जी के धराधाम से जाने का समय आ चुका है |
इसी प्रकार से शुभ शकुन देखकर अच्छी घटनाओं के घटित होने का पूर्वानुमान लग जाता है |
भगवान् श्रीकृष्ण के जन्म के समय प्रकृति में जो जो अच्छी घटनाएँ घटित हो रही थीं प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान उस युग के प्रकृति वैज्ञानिकों ने लगा लिया था कि इस समय कोई बहुत शुभ घटना घटित होने वाली है |
महाभारत युद्ध प्रारंभ होने के 13 पहले से भूकंप आने लगे थे !
महाभारत युद्ध से पहले युद्ध होने से संबंधित सूचनाएँ देने वाली कुछ और घटनाएँ मैंने देखीं | यथा -
सूर्योदय के समय आकाश में बादल न होने पर भी गंभीर गर्जना के साथ वर्षा होने लगी थी | अचानक प्रचंड आँधी और कंकड़ बरसने लगते थे जिससे सारे आसमान में धूल छा जाती थी | पूर्व दिशा की ओर भारी उल्कापात हुआ जो तेज आवाज के साथ पृथ्वी पर गिरी और पृथ्वी में विलीन हो गई !सूर्य का प्रकाश फीका पड़ चुका था पृथ्वी भयानक शब्द करती हुई बार बार काँपने और फटने लगती थी !बार बार बज्रपात होते देखे जाते थे !उस वर्ष दोनों पक्षों में त्रयोदशी को ही ग्रहण घटित हुए थे जबकि अमावस्या या पूर्णिमा में ऐसा होते हमेंशा से देखा जाता रहा है |हिमालय जैसे पर्वतों में शब्द हो रहे थे उनके शिखर बार बार टूट टूटकर गिरने लगे थे !चारों समुद्र उफनाने लगते थे !सूर्य चंद्र और तारे जलते हुए से दीख रहे थे चंद्रमा में बना हुआ मृगचिन्ह मिट सा गया था !गौवों से गधे, घोड़ी से बछड़े और कुटिया से गीदड़ पैदा होते देखे जाने लगे थे | चारों ओर बड़े जोर जोर की आँधी चलने से आकाश की धूल कभी समाप्त ही नहीं हो पा रही थी |
ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं ने उस समय होने वाले महाभारत जैसे युद्ध की पूर्व सूचनाएँ उपलब्ध करवाई थीं जिनके आधार पर महापुरुषों ने महाभारत जैसे भयानक युद्ध का पूर्वानुमान लगा लिया था | प्राकृतिक घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचनाएँ उपलब्ध करवा सकती थीं तो आज ऐसा होना संभव क्यों नहीं हो सकता है |
महाभारत में वर्णन मिलता है कि महाभारत के युद्ध से तेरह वर्ष पहले से भयंकर भूकंप एवं आँधी तूफ़ान बहुत अधिक संख्या में आने लगे थे एक दिन युधिष्ठिर ने व्यास जी से पूछा कि महाराज !अब तो शिशुपाल मारा जा चुका है अब ये भूकंप किस आपदा की सूचना देने के लिए अक्सर आते रहते हैं ?यह सुनकर व्यास जीने कहा कि आज के तेरह वर्ष बाद भयंकर युद्ध होगा जिसमें भारी संख्या में क्षत्रियों का संहार होगा उसी की सूचना देने आ रहे हैं ये भूकंप |
महाभारत की इस घटना से जहाँ एक ओर यह बात प्रमाणित होती है कि भूकंप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना देने आते हैं वहीँ इस बात का भी निश्चय हो जाता है कि भूकंपों के द्वारा भविष्य में काफी आगे घटित होने वाली घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
मुझे लगा कि यदि 13 वर्ष बाद होने वाले महाभारत जैसे युद्ध की सूचना भूकंप आदि घटनाओं के अनुसंधान के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है तो इस दृष्टि से भूकंप आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर उनसे प्राप्त संकेतों को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए | ऐसा विचार करके मैंने आज के लगभग 25 वर्ष पहले इस विषय में अनुसंधान प्रारंभ किया था जिसमें मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के वेदपुराण कुरआन बाइबल से लेकर विभिन्न धर्म पंथ क्षेत्र भाषा आदि से संबंधित समाज के अनुभवों प्रमाणों के साथ साथ आधुनिक विज्ञान से संबंधित बिचारों अनुमानों आशंकाओं के संयुक्त अध्ययनों को इस अनुसंधान में सम्मिलित किया गया है |
श्री राम बनवास और दशरथ जी की मृत्यु की सूचना देने वाली प्राकृतिक घटनाएँ !
दशरथ जी ने कहा - अयोध्या में पिछले आठ दिनों से बार बार आँधी तूफ़ान भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगी हैं | बार बार भयंकर शब्द करते हुए उल्कापात हो रहा है ने लगा था !बार बार बज्रपात होते देखा जा रहा है ! सूर्य मंगल और राहु जैसे ग्रहों का संचार विपरीत हो गया था !
जिस राज्य में ऐसे अपशकुन होने लगते हैं वहाँ के राजा को राज्य छोड़ देना पड़ता है और नया राजा बनता है | वर्तमान राजा भयंकर विपत्ति से ग्रस्त हो जाता है और अंततोगत्वा वर्तमान राजा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है !
प्रायेण च निमित्तानामीदृशानां समुद्भवे !
राजा ही मृत्यु माप्नोति घोरां चापदमृच्छति !!
ऐसी परिस्थिति में राजा यदि तुरंत बदल दिया जाता है तो संभव है ऐसे प्राकृतिक लक्षणों का दुष्प्रभाव कुछ कम भी हो जाए !इसलिए मेरा ऐसा मत है कि श्रीराम गुणों में श्रेष्ठ हैं ही और कल पुष्य नक्षत्र भी है कल ही उनका राज्याभिषेक करके अयोध्या में आने वाले संभावित संकट से अयोध्या को बचाया जा सकता है |
इन्हीं उत्पातों के कारण ननिहाल में बैठे भरत जी को भी अपशकुन होने लगे जिनका अनुभव करके श्री भरत जी ने कहा कि मैं श्री राम ,राजादशरथ या लक्ष्मण इनमें से किसी एक की मृत्यु अवश्य होगी | यथा -
महाभारत युद्ध से पहले युद्ध होने से संबंधित सूचनाएँ देने वाली कुछ और घटनाएँ मैंने देखीं | यथा -
सूर्योदय के समय आकाश में बादल न होने पर भी गंभीर गर्जना के साथ वर्षा होने लगी थी | अचानक प्रचंड आँधी और कंकड़ बरसने लगते थे जिससे सारे आसमान में धूल छा जाती थी | पूर्व दिशा की ओर भारी उल्कापात हुआ जो तेज आवाज के साथ पृथ्वी पर गिरी और पृथ्वी में विलीन हो गई !सूर्य का प्रकाश फीका पड़ चुका था पृथ्वी भयानक शब्द करती हुई बार बार काँपने और फटने लगती थी !बार बार बज्रपात होते देखे जाते थे !उस वर्ष दोनों पक्षों में त्रयोदशी को ही ग्रहण घटित हुए थे जबकि अमावस्या या पूर्णिमा में ऐसा होते हमेंशा से देखा जाता रहा है |हिमालय जैसे पर्वतों में शब्द हो रहे थे उनके शिखर बार बार टूट टूटकर गिरने लगे थे !चारों समुद्र उफनाने लगते थे !सूर्य चंद्र और तारे जलते हुए से दीख रहे थे चंद्रमा में बना हुआ मृगचिन्ह मिट सा गया था !गौवों से गधे, घोड़ी से बछड़े और कुटिया से गीदड़ पैदा होते देखे जाने लगे थे | चारों ओर बड़े जोर जोर की आँधी चलने से आकाश की धूल कभी समाप्त ही नहीं हो पा रही थी |
ऐसी और भी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाओं ने उस समय होने वाले महाभारत जैसे युद्ध की पूर्व सूचनाएँ उपलब्ध करवाई थीं जिनके आधार पर महापुरुषों ने महाभारत जैसे भयानक युद्ध का पूर्वानुमान लगा लिया था | प्राकृतिक घटनाएँ भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचनाएँ उपलब्ध करवा सकती थीं तो आज ऐसा होना संभव क्यों नहीं हो सकता है |
महाभारत में वर्णन मिलता है कि महाभारत के युद्ध से तेरह वर्ष पहले से भयंकर भूकंप एवं आँधी तूफ़ान बहुत अधिक संख्या में आने लगे थे एक दिन युधिष्ठिर ने व्यास जी से पूछा कि महाराज !अब तो शिशुपाल मारा जा चुका है अब ये भूकंप किस आपदा की सूचना देने के लिए अक्सर आते रहते हैं ?यह सुनकर व्यास जीने कहा कि आज के तेरह वर्ष बाद भयंकर युद्ध होगा जिसमें भारी संख्या में क्षत्रियों का संहार होगा उसी की सूचना देने आ रहे हैं ये भूकंप |
महाभारत की इस घटना से जहाँ एक ओर यह बात प्रमाणित होती है कि भूकंप भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं की सूचना देने आते हैं वहीँ इस बात का भी निश्चय हो जाता है कि भूकंपों के द्वारा भविष्य में काफी आगे घटित होने वाली घटनाओं का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
मुझे लगा कि यदि 13 वर्ष बाद होने वाले महाभारत जैसे युद्ध की सूचना भूकंप आदि घटनाओं के अनुसंधान के आधार पर प्राप्त किया जा सकता है तो इस दृष्टि से भूकंप आदि सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के आधार पर उनसे प्राप्त संकेतों को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए | ऐसा विचार करके मैंने आज के लगभग 25 वर्ष पहले इस विषय में अनुसंधान प्रारंभ किया था जिसमें मैंने बिना किसी पूर्वाग्रह के वेदपुराण कुरआन बाइबल से लेकर विभिन्न धर्म पंथ क्षेत्र भाषा आदि से संबंधित समाज के अनुभवों प्रमाणों के साथ साथ आधुनिक विज्ञान से संबंधित बिचारों अनुमानों आशंकाओं के संयुक्त अध्ययनों को इस अनुसंधान में सम्मिलित किया गया है |
श्री राम बनवास और दशरथ जी की मृत्यु की सूचना देने वाली प्राकृतिक घटनाएँ !
दशरथ जी ने कहा - अयोध्या में पिछले आठ दिनों से बार बार आँधी तूफ़ान भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने लगी हैं | बार बार भयंकर शब्द करते हुए उल्कापात हो रहा है ने लगा था !बार बार बज्रपात होते देखा जा रहा है ! सूर्य मंगल और राहु जैसे ग्रहों का संचार विपरीत हो गया था !
जिस राज्य में ऐसे अपशकुन होने लगते हैं वहाँ के राजा को राज्य छोड़ देना पड़ता है और नया राजा बनता है | वर्तमान राजा भयंकर विपत्ति से ग्रस्त हो जाता है और अंततोगत्वा वर्तमान राजा मृत्यु को प्राप्त हो जाता है !
प्रायेण च निमित्तानामीदृशानां समुद्भवे !
राजा ही मृत्यु माप्नोति घोरां चापदमृच्छति !!
ऐसी परिस्थिति में राजा यदि तुरंत बदल दिया जाता है तो संभव है ऐसे प्राकृतिक लक्षणों का दुष्प्रभाव कुछ कम भी हो जाए !इसलिए मेरा ऐसा मत है कि श्रीराम गुणों में श्रेष्ठ हैं ही और कल पुष्य नक्षत्र भी है कल ही उनका राज्याभिषेक करके अयोध्या में आने वाले संभावित संकट से अयोध्या को बचाया जा सकता है |
इन्हीं उत्पातों के कारण ननिहाल में बैठे भरत जी को भी अपशकुन होने लगे जिनका अनुभव करके श्री भरत जी ने कहा कि मैं श्री राम ,राजादशरथ या लक्ष्मण इनमें से किसी एक की मृत्यु अवश्य होगी | यथा -
अहं रामोथवा राजा लक्ष्मणो वा मरिष्यति !
अंत में महाराज दशरथ जी की मृत्यु भी हुई श्री राम का बनवास हुआ और अयोध्या में उदासीनता बढ़ती चली गई |
पूर्व में घटित हुई प्राकृतिक घटनाएँ इस प्रकार के अमंगल की सूचनाएँ दे
रही थीं | जिसमें न दोषी महाराज दशरथ जी थे न कैकई और न ही मंथरा क्योंकि
सभी लोग आपस में एक दूसरे के साथ स्नेह पूर्वक रह रहे थे | उनमें आपस में
कोई किसी प्रकार का मतभेद नहीं था किंतु समय के प्रभाव से ये घटनाएँ घटित
हुईं जिनकी सूचना प्राकृतिक घटनाओं ने पहले से दे दी थी |
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