हैजा, प्लेग, चिकनपॉक्स, इंफ्लूएंजा मानव इतिहास के सबसे बड़े वायरस में
शामिल रहे हैं. इन बीमारियों ने 30 से 50 करोड़ लोगों की जान ली है.
2009 में स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया गया था. तब पूरी दुनिया में दो लाख से ज्यादा लोग स्वाइन फ्लू से मारे गए थे.
भारत की बात करें तो कोरोना वायरस और
स्वाइन फ्लू से पहले भी यहां तीन बार महामारी घोषित हो चुकी है. 1940, 1970
और 1995 में. एक-एक कर जानते हैं उनके बारे में.
प्लेग
1994 का सितंबर. गुजरात का सूरत शहर. सुबह के वक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने खबर दी कि एक मरीज की मौत हुई है. उसे प्लेग था. उसी शाम सूरत के ही वेड रोड से 10 मौतों की खबर आई. सभी को प्लेग था. और फिर सात दिन के अंदर सूरत की लगभग 25 फीसदी आबादी शहर छोड़ गई. आजादी के बाद इसे दूसरा सबसे बड़ा पलायन कहा गया.सत्याग्रह की एक रिपोर्ट के अनुसार 1994 में देश में 1800 करोड़ का नुकसान हुआ. लंदन में एयर इंडिया के प्लेन को ‘प्लेग प्लेन’ कहा गया. ब्रिटिश अखबारों में इसे ‘मध्यकलीन श्राप’ कहा गया.
1994 का सितंबर. गुजरात का सूरत शहर. सुबह के वक्त स्वास्थ्य मंत्रालय ने खबर दी कि एक मरीज की मौत हुई है. उसे प्लेग था. उसी शाम सूरत के ही वेड रोड से 10 मौतों की खबर आई. सभी को प्लेग था. और फिर सात दिन के अंदर सूरत की लगभग 25 फीसदी आबादी शहर छोड़ गई. आजादी के बाद इसे दूसरा सबसे बड़ा पलायन कहा गया.सत्याग्रह की एक रिपोर्ट के अनुसार 1994 में देश में 1800 करोड़ का नुकसान हुआ. लंदन में एयर इंडिया के प्लेन को ‘प्लेग प्लेन’ कहा गया. ब्रिटिश अखबारों में इसे ‘मध्यकलीन श्राप’ कहा गया.
19वीं शताब्दी में प्लेग भारत में फैलने लगा.
1815 के आस पास बाद गुजरात के कच्छ और काठियावाड़ में यह सबसे पहले फैला
और फिर अगले वर्ष हैदराबाद (सिंध) और अहमदाबाद में. हर साल सैकड़ों लोगों
की मौतें होने लगीं जिसके बाद सन् 1853 में एक जांच कमीशन नियुक्त हुआ.
प्लेग महामारी की साइकिल चलती थी. यह कुछ-कुछ साल के बाद फैलता था और
सैकड़ों लोगों की जान ले लेता था. सन 1876 में एक बार और फैला. 1898 में
प्लेग फिर फैला और लगातार 20 साल तक देशभर में लोगों की जान लेता रहा.
प्लेग से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य बंगाल और मुंबई थे. प्लेग न हो इसके लिए टीका लगवाया जाता है. एंटीबायोटिक दवाओं की एक खुराक दी जाती है. कोई खास दवाई नहीं है|
कॉलरा -
1940 के दशक में आजादी के लिए लड़ते भारत ने कॉलरा से संघर्ष किया. आम बोलचाल में इसे हैजा कहते हैं.1990
के दशक में टीके की खोज के बाद इस पर काबू पाया गया. हालांकि अब भी यह
खत्म नहीं माना जा सकता है. छोटे और विकासशील देशों को कॉलरा ने पिछले चार
दशकों में खासा प्रभावित किया है.
चेचक -
चेचक का कोई इलाज नहीं है. यह संक्रमण की बीमारी है जो पांच से सात दिनों तक रहती है.
एचआईवी एड्स (साल 2005 से 2012 के दौरान चरम पर)
मौत का आंकड़ा: 3.6 करोड़
कारण: एचआईवी
साल 1976 में इसकी शुरुआत अफ्रीकी देश कॉन्गो से हुई थी. बाद में यह पूरी दुनिया में फैल गया. साल 1976 के बाद इसने 3.6 करोड़ लोगों की जान ली थी. अभी करीब 3.1 से 3.5 करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित हैं. ज्यादातर लोग अफ्रीकी देशों के हैं.
कारण: एचआईवी
साल 1976 में इसकी शुरुआत अफ्रीकी देश कॉन्गो से हुई थी. बाद में यह पूरी दुनिया में फैल गया. साल 1976 के बाद इसने 3.6 करोड़ लोगों की जान ली थी. अभी करीब 3.1 से 3.5 करोड़ लोग एचआईवी संक्रमित हैं. ज्यादातर लोग अफ्रीकी देशों के हैं.
बढ़ती जागरूकता और इलाज की नई प्रणालियों के विकास ने
एचआईवी को जड़ से खत्म तो नहीं किया है, मगर इसके रोकथाम के कई इलाज तैयार
कर लिए हैं. साल 2005 से 2012 के दौरान इसका प्रभाव सबसे अधिक था. इस
दौरान वार्षिक मौत का आंकड़ा 22 लाख से 16 लाख तक घटा है.
फ्लू महामारीमौत का आंकड़ा: 10 लाखकारण: इंफ्लूएंजा
दूसरी श्रेणी की फ्लू महामारी को हांगकांग फ्लू के नाम से भी जाना जाता है. इसका कारण H3N2 कीटाणु हैं, जो इंफ्लूएंजा महामारी पैदा करने वाले H2N2 वायरस की एक प्रजाती है. इसका पहला मामला 13 जुलाई 1968 में हांगकांग में आया था और 17 दिनों में ही यह सिंगापुर और वियतनाम तक पहुंच गया.महज तीन महीने में फिलिपींस, भारत, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका भी इसके शिकार हो गए. इस बीमारी के शिकार होने वाले सिर्फ 5 फीसदी लोगों की मौत होती थी, मगर इसने तब हांगकांग के 5 लाख लोगों यानी उसकी तत्कालीन 15 फीसदी आबादी को मार डाला था.
दूसरी श्रेणी की फ्लू महामारी को हांगकांग फ्लू के नाम से भी जाना जाता है. इसका कारण H3N2 कीटाणु हैं, जो इंफ्लूएंजा महामारी पैदा करने वाले H2N2 वायरस की एक प्रजाती है. इसका पहला मामला 13 जुलाई 1968 में हांगकांग में आया था और 17 दिनों में ही यह सिंगापुर और वियतनाम तक पहुंच गया.महज तीन महीने में फिलिपींस, भारत, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप और अमेरिका भी इसके शिकार हो गए. इस बीमारी के शिकार होने वाले सिर्फ 5 फीसदी लोगों की मौत होती थी, मगर इसने तब हांगकांग के 5 लाख लोगों यानी उसकी तत्कालीन 15 फीसदी आबादी को मार डाला था.
एशियन फ्लू (साल 1956-1958)
मौत का आंकड़ा: 20 लाखकारण: इंफ्लूएंजा
एशियन फ्लू भी ए ग्रेड का इंफ्लूंजा है, जो H2N2 से फैलता है. इसकी शुरुआत साल 1956 से हुई और यह साल 1958 तक जारी रहा. यह सिंगापुर, हांगकांग और अमेरिका तक फैला. विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार, इसने 20 लाख लोगों को मारा, जिसमें से 69,800 लोग अमेरिकी थे.
एशियन फ्लू भी ए ग्रेड का इंफ्लूंजा है, जो H2N2 से फैलता है. इसकी शुरुआत साल 1956 से हुई और यह साल 1958 तक जारी रहा. यह सिंगापुर, हांगकांग और अमेरिका तक फैला. विश्व स्वास्थ संगठन के अनुसार, इसने 20 लाख लोगों को मारा, जिसमें से 69,800 लोग अमेरिकी थे.
फ्लू (साल 1918)मौत का आंकड़ा: 2 से 5 करोड़ कारण: इंफ्लूएंजा
साल
1918 से 1920 के दौरान इस जानलेवा इंफ्लूंजा ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट
में लिया. दुनिया की आबादी का एक-तिहाई हिस्सा इसका शिकार बना और करीब 20
से 50 लाख लोगों की जान गई. इस बीमारी से 50 करोड़ लोग प्रभावित हुए और
मरने वालों का आंकड़ा 10 से 20 फीसदी के बीच रहा.
हैजा (साल 1910-1911)मौत का आंकड़ा: 8 लाख से अधिक कारण: हैजा (कॉलेरा)
इसकी
शुरुआत भारत से हुई और इसकी 8 लाख से अधिक लोगों की जान ली. इसकी चपेट में
मध्य पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, पूर्वी यूरोप और रूस भी आए
फ्लू (1889-1890)मौत का आंकड़ा: 10 लाख कारण: इंफ्लूएंजा
इसे
शुरुआत में एशियाई फ्लू या रूसी फ्लू नाम दिया गया था. यह भी ए ग्रेड का
इंफ्लूंजा है, जो H2N2 से फैलता है. हालांकि, कई शोध में इसकी वजह ए ग्रेड
के H3N8 वायरस को भी माना गया है. इसका पहला मामला साल 1889 में मध्य एशिया
के तुर्किस्तान में आया था.
तीसरी श्रेणी का हैजा (साल 1852-1860)
मौत का आंकड़ा: 10 लाखकारण: हैजा (कॉलेरा)
हैजा
की सात श्रेणियों में से इसे सबसे अधिक जानलेवा माना जाता है. इस रोग की
शुरुआत 19वीं सदी में हुई थी. मगर इसका प्रकोप साल 1852 से 1860 के दौरान
सबसे अधिक रहा. इसकी भी शुरुआत भारत से हुई और फिर यह एशिया, यूरोप, उत्तरी
अमेरिका और अफ्रीका तक फैल गया.इसने 10 लाख लोगों की जान ली.
ब्रिटिश डॉक्टर जॉन स्नो ने गरीब इलाकों में रहते हुए इसकी पहचान की.
उन्होंने पता लगाया कि खराब पानी इसकी सबसे बड़ी वजह है. हालांकि, साल 1854
में इस बीमारी ने ग्रेट ब्रिटेन में 23,000 लोगों को मौत के घाट उतारा.
द ब्लैक डेथ (साल 1346 से 1353)
मौत का आंकड़ा: 7.5 से 20 करोड़
कारण: प्लेग
साल 1346 से 1353 के दौरान यूरोप में प्लेग महामारी फैली और इसने अफ्रीका और एशिया में भी कहर मचाया. बताया जाता है कि इससे कुल 7.5 करोड़ से 20 करोड़ लोग मारे गए. कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत एशिया से हुई.प्लेग चूहों से फैलता है और फिर कीड़ों के जरिए मनुष्य इससे संक्रमित होता है. यह जहाजों के जरिए पूरी दुनिया तक पहुंचा. इसका मुख्य स्रोत पोत बने, जहां चूहों के पनपना आम बात है. इस तरह इसे रोक पाना काफी कठिन हो गया था.
कारण: प्लेग
साल 1346 से 1353 के दौरान यूरोप में प्लेग महामारी फैली और इसने अफ्रीका और एशिया में भी कहर मचाया. बताया जाता है कि इससे कुल 7.5 करोड़ से 20 करोड़ लोग मारे गए. कुछ लोगों का मानना है कि इसकी शुरुआत एशिया से हुई.प्लेग चूहों से फैलता है और फिर कीड़ों के जरिए मनुष्य इससे संक्रमित होता है. यह जहाजों के जरिए पूरी दुनिया तक पहुंचा. इसका मुख्य स्रोत पोत बने, जहां चूहों के पनपना आम बात है. इस तरह इसे रोक पाना काफी कठिन हो गया था.
जस्टिनियन का प्लेग (साल 541-542)
मौत का आंकड़ा: 2.5 करोड़कारण: बुबोनिक प्लेग
माना जाता है कि इस बीमारी ने यूरोप की आधी आबादी को साफ कर दिया था. इसका सबसे अधिक प्रभाव बिजेटिनियन साम्राज्य और मेडिटेरिनियन पोर्ट पर पड़ा था. इस एक साल के कहर ने 2.5 करोड़ लोगों को मार डाला था. इसकी शुरुआत कहां से हुई, यह पता नहीं चल सका है.हालांकि, इससे पूरी दुनिया प्रभावित रही है. इसने पूर्वी मेडिटेरिनियन और कॉन्सटेन्टिनोपल शहर की 40 फीसदी आबादी को हमेशा के लिए सुला दिया. इससे औसतर 5,000 लोग रोज मरा करते थे
माना जाता है कि इस बीमारी ने यूरोप की आधी आबादी को साफ कर दिया था. इसका सबसे अधिक प्रभाव बिजेटिनियन साम्राज्य और मेडिटेरिनियन पोर्ट पर पड़ा था. इस एक साल के कहर ने 2.5 करोड़ लोगों को मार डाला था. इसकी शुरुआत कहां से हुई, यह पता नहीं चल सका है.हालांकि, इससे पूरी दुनिया प्रभावित रही है. इसने पूर्वी मेडिटेरिनियन और कॉन्सटेन्टिनोपल शहर की 40 फीसदी आबादी को हमेशा के लिए सुला दिया. इससे औसतर 5,000 लोग रोज मरा करते थे
एन्टोनाइन प्लेग (साल 165)मौत का आंकड़ा: 50 लाख कारण: अज्ञाज
गेलेने
के प्लेग के नाम से जाने वाली इस बीमारी ने तत्कालीन एशिया, मिस्र, यूनान
(ग्रीस) और इटली को सबसे अधिक प्रभावित किया. कई लोगों का मानना है कि इसका
सबसे बड़ा कारण चेचक या स्मॉलपॉक्स है. मगर इस बारे में पक्के तौर पर कुछ
नहीं कहा जा सकता है. इसने 50 लाख लोगों अपना शिकार बनाया.
भारत में हैजा, प्लेग, चेचक (स्मॉल पॉक्स), मलेरिया, टायफाइड, टी0बी0 इत्यादि आते रहे हैं. भारतीय इतिहास में 1870 से 1910 के काल खण्ड को 'महामारी एवं आकाल का युग' ही कहा जाता है. आकाल ने तो किया ही महामारियों ने भी भारत मे व्यापक जनसंहार किया.see more...https://www.bbc.com/hindi/india-52464756
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