मंगलवार, 14 जुलाई 2020

महामारी -3

                           महामारी  के संकट काल में वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता !           
     मौसम बदलने का कारण समय का संचार होता है समय बदलता है तो समय के साथ साथ वायुमंडल में परिवर्तन होते हैं उसके साथ साथ प्रकृति और जीवन में सब कुछ बदलता चलता है यही कारण है कि प्रकृति और जीवन में जो कुछ जैसा कल दिखाई पड़ रहा था या अनुभव किया जा रहा था वो आज वैसा नहीं है और जो जैसा आज दिखाई पड़ रहा है वो वैसा कल नहीं रहेगा !छोटे बड़े बदलाव प्रकृति के प्रत्येक कण कण में होते  रहते हैं इसी प्रकार से समय के साथ साथ जीवन में भी बदलाव होते देखे जाते हैं ! अच्छे और बुरे के भेद से समय दो प्रकार का होता है जब समय अच्छा चल रहा होता है तब प्रकृति और जीवन दोनों में ही सब कुछ अच्छा अच्छा होते देखा जाता है | 
     अच्छे समय में आवश्यकता के अनुसार सुखद वर्षा होती है और वायु प्रदूषण रहित स्वास्थ्यकर मंद मंद बहा करती है ! बुरे समय के प्रवाह में सब कुछ विपरीत होते देखा जाता है !कहीं अधिकवर्षा भीषण बाढ़ बज्रपात ओलेगिरना बादलों का फट पड़ना आदि वर्षा का हिंसक स्वरूप दिखाई पड़ने लगता है !इसी प्रकार से बुरे समय के प्रवाह से वायु प्रदूषित हो जाता है आकाश धूलि धूसरित दिखाई पड़ने लगता है भीषण हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ घटित होने लगती हैं !बार बार भूकंप घटित होने लगते हैं | बुरे समय के प्रवाह के साथ साथ ऐसी ही विपरीत घटनाएँ जीवन में भी घटित होते देखी जाती हैं |
      जब कभी बहुत बुरा समय चलने लगता है तब प्रकृति और जीवन दोनों में ही अत्यंत बिपरीत घटनाएँ बार बार घटित होने लगती हैं प्रकृति में बार बार उथल पुथल होते देखी जाती है !मनुष्यों पशुओं पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं में बेचैनी बढ़ती जाती है इसमें भी टिड्डियों पक्षियों और चूहों में व्याकुलता विशेष अधिक बढ़ जाती है | बुरे समय के प्रभाव से ही लोग तनावग्रस्त मानसिकता से जूझने लग जाते हैं! दूध वाले पशुओं की दुग्धदान क्षमता में कमी आ जाती है | 
      ऐसी परिस्थिति में लोग अपनी बढ़ती मानसिक शारीरिक आर्थिक आदि समस्याओं के बढ़ने का कारण आपस में ही एक दूसरे को मानने लग जाते हैं |इसीलिए  परिवारों में कलह व्याप्त हो जाता है संस्थाओं संस्थानों संगठनों राजनैतिकदलों सरकारों में मानसिक असंतोष के कारण आपसी मतभेद बढ़ने लग जाते हैं ! मनुष्यों की तरह ही कुछ समुदाय देश आदि एक दूसरे से लड़ने झगड़ने लग जाते हैं| पडोसी देश एक दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करने लग जाते हैं| 
      अत्यंत बुरे समय के प्रवाह के कारण समस्त वायु मंडल प्रदूषित हो जाता है प्रकृति और जीवन दोनों में ही प्रदूषण जनित संक्रमण बढ़ने लग जाता है उससे प्रकृति और जीवन दोनों ही रोगी होने लग जाते हैं | बुरे समय के प्रवाह में जीव जंतुओं से लेकर मनुष्यों तक के शरीरों में ऐसे ऐसे रोग पैदा होते हैं जिनके लक्षण स्पष्ट नहीं होते और न ही स्थिर होते हैं इसलिए ऐसे रोगों के कारण और निवारण को खोजना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है|
     बुरे समय के प्रवाह से जहाँ एक ओर शरीर को धारण करने वाली शक्ति दिनोंदिन क्षीण होने लगती है वहीँ दूसरी ओर वायु  जल फल फूल बनस्पतियाँ अन्न आदि सभी खाने पीने की वस्तुएँ प्रदूषित होकर बड़े बड़े रोगों को जन्म देने लग जाती हैं | ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों में सम्मिलित की जाने वाली बनस्पतियों पर भी बुरे समय का प्रभाव पड़ने के कारण वे गुणहीन अर्थात निर्वीर्य होकर अपना औषधीत्व खो देती हैं उनका आस्तीत्व एक सामान्य घास की तरह का हो जाता है|इसीलिए ऐसे समय जनित रोगों की कोई प्रभावी औषधि नहीं होती है |
    ऐसे समय होने वाली महामारियाँ किसी एक स्थान पर प्रकट होकर विश्व के अधिकाँश भागों को अपनी चपेट में लेती चली जाती हैं जिन्हें  की क्षमता किसी में नहीं होती है इसीलिए ऐसी महामारियों पर अंकुश लगा पाना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है | 
                                  महामारियाँ भी समय के आधीन ही होती हैं
    कुल मिलाकर समय, प्रकृति, मौसम,रोग और महारोग (महामारियाँ)साथ साथ चलते हैं | समय प्रतिपल बदलता रहता है उसके प्रभाव से संसार की प्रत्येक वस्तु में प्रतिक्षण छोटे छोटे बदलाव होते रहते हैं वे बदलाव अच्छे या बुरेकैसे भी हो सकते हैं !कब कैसे बदलाव हो सकते हैं उसका कारण वह समय होता है जिसके प्रभाव से बदलाव हो रहे होते हैं | 
     समय में बदलाव अच्छा या बुरा दोनों में से किसी भी प्रकार का हो सकता है किंतु बदलाव जिस प्रकार का होगा प्रकृति और जीवन में घटनाएँ भी उसी प्रकार की घटित होंगी इसका क्रम यह है कि सबसे पहले समय बदलता है समय के बदलने का असर सारे संसार पर उसी प्रकार का पड़ने लगता है इसलिए उससे सबसे पहले प्रकृति प्रभावित होती है जिससे प्रकृति में उस प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगती हैं | अच्छा बदलाव होता है तो सब कुछ अच्छा अच्छा होते देखा जाता है और यदि समय का बदलाव बुरा हुआ तो प्रकृति से लेकर जीवन तक सब कुछ बुरा बुरा होते देखा जाता है | बुरे समय के प्रभाव से ही भूकंप, भीषणबाढ़, सूखा ,हिंसक आँधी तूफान बज्रपात आदि घटनाएँ घटित होने लगती हैं |कुलमिलाकर पाताल से लेकर आकाश तक तब कुछ समय के प्रभाव से प्रभावित होता है |
    यह परिवर्तन केवल प्रकृति तक ही सीमित नहीं रहता है अपितु इसका उसी प्रकार का असर जीवन पर भी पड़ता है छोटे छोटे जीव जंतुओं से लेकर मनुष्य पर्यन्त हर कोई समय के प्रभाव से प्रभावित होता है !सबके शरीरों में मन में बिचारों में उस प्रकार के बदलाव होने लगते हैं !शरीररोगी एवं  मन तनावग्रस्त रहने लगता है |सभी जीव जंतुओं में बेचैनी बढ़ने लगती है | समय के प्रभाव से घटित होने वाली भूकंप जैसी घटनाओं से पूर्व जीवों के स्वभाव में बदलाव होते देखा जाने लगता है |
    इसके बाद उसी बुरे समय के प्रभाव से जहाँ एक ओर प्रकृति में भूकंप, भीषणबाढ़, सूखा ,हिंसक आँधी तूफान बज्रपात आदि घटनाएँ घटित होने लगती हैं वहीं दूसरी ओर शरीरों में रोग महारोग आदि पनपने लगते हैं 
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    महामारियों के बिषय में यदि काफी पहले से पूर्वानुमान लगा लिया जाए तो उसके लिए सतर्कता बरती जा सकती है आहार बिहार को उचित रखकर अत्यंत संयम पूर्वक अपने जीवन की रक्षा की जा सकती है महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए समय के बदलावों की समझ विकसित करने के लिए अनुसंधान किए जाने चाहिए इसके बाद प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में अनुसंधान किया जाना चाहिए कि पिछले कुछ समय से प्रकृति में धरती से लेकर आकाश तक भूकंप , वर्षा, बाढ़, सूखा ,हिंसक आँधी तूफान आदि किस किस प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं |उन घटनाओं के आधार पर भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं रोगों महारोगों एवं सामाजिक परिस्थितियों का पूर्वानुमान लगा लिया जाना चाहिए कि यदि आज ऐसी घटनाएँ घटित हो रही है तो भविष्य में कैसी घटनाएँ कब घटित होंगी और कब किस प्रकार के रोग या महारोग फैलने की संभावना बनेगी |  
     
समय और मौसम  !
   समय के अनुशार ही ऋतुओं का निर्धारण होता है | एक समय आता है तब वर्षा होती है |


                                       समय के अनुशार शरीरों में होते हैं रोग !
   समय का अपना स्वभाव होता है उसके स्वभाव के अनुरूप ही सबको बदलना पड़ता है इसके अतिरिक्त किसी के पास कोई विकल्प ही नहीं है | इसके अनेकों स्वरूप होते हैं जिनका प्रभाव संसार के प्रत्येक कण में जीवन के स्वरूपों में हो रहे बदलाव के रूप में दिखाई पड़ता है | समय की अपनी सोच होती है जो व्यक्ति आज जैसा सोचता है कल वैसी सोच नहीं रहती इसीलिए तो जो जिसे आज पसंद करता है उससे ही बाद में घृणा करने लगता है |जिसे आज मित्र मानता है कल उससे संबंध बिगड़ते देखे जाते हैं | यही कारण है कि कई लोग आज जिन बिपरीत परिस्थितियों को प्रसन्नता पूर्वक सहते चले जाते हैं एक समय ऐसा भी आता है जब उनकी सोच बदल जाती है और उन्हें उन्हीं परिस्थितियों में तनाव होने लगता है | समय की अपनी शक्ति होती है जो व्यक्ति जिस काम को आज जितनी कुशलता से कर लेने में सक्षम होता है कल वो वैसा नहीं कर पाता है जिन प्रयासों में कल तक वो सफल होता रहा था उन्हीं संसाधनों के बने रहते भी वह अचानक असफल होने लगता है उसके बाद फिर उन्हीं परिस्थितियों में उसी काम में दोबारा सफलता मिलने लगती है |समय बिपरीत आने पर बड़े बड़े योद्धा साधारण लोगों से पराजित होते देखे गए हैं | समय के अनुशार स्वरूप बदलता रहता है संपूर्ण  प्रकृति में समय  के अनुशार बदलाव होता रहता है जब जैसा समय होता है तब तैसे बदलाव होते हैं | समय सब कुछ करने में सक्षम है उसी का आदेश मानकर सबको चलना पड़ता है |जो नहीं मानते वे दुःख पाते हैं |
    समय का अपना स्वाद होता है जिस खाद्य वस्तु का जो स्वाद आज होता है वह स्वाद कल नहीं रहता जो कल होता है वो उसके बाद नहीं रहता है | कुछ चीजें समय बीतने के साथ साथ बिगड़ती जाती हैं कुछ बनती जाती हैं | अचार सिरका राब आदि समय बीतने के साथ ही सिद्ध होते हैं |कुल मिलाकर समय बीतने के साथ साथ वस्तुओं के गुण और दोषों में कमी या अधिकता होने लगती है |वर्षा ऋतु में सामान्य और सीठा लगने वाला गन्ना भी शरद ऋतु में मीठा होने लगता है | समय के प्रभाव से वह भी मीठा हो जाता है |
      हवाएँ भी समय के आदेश का ही पालन करती हैं !जब जैसा समय होता है तब तैसी हवाएँ चलती हैं ग्रीष्म ऋतु में पश्चिम की ओर से आने वाली हवाएँ गरम और मीठी होती हैं|लू लगने से खरबूजा तरबूज  आदि मीठे हो जाते हैं | यहाँ तक कि बसंत ऋतु में अत्यंत खट्टे स्वाद वाल आम भी ग्रीष्म ऋतु के प्रभाव से मीठा हो जाता है |अत्यंत खट्टी इमली का स्वाद भी ग्रीष्म ऋतु  में बदल जाता है |ग्रीष्मऋतु में कम खट्टा नीबू भी वर्षा ऋतु में अधिक खट्टा हो जाता है | मिर्च कभी कम कटु होती है तो कभी अधिक कटु लगती है |
    देखा जाए तो भिन्न भिन्न स्वाद वाले फलों के बीजों स्वाद उन फलों के स्वाद जैसा नहीं होता है आम का बीज खट्टा मीठा कुछ भी नहीं होता है वो जिस मिटटी में उगता है मिट्टी न खट्टी है और न मीठी  होती है | उसमें जिस जल से सिंचन किया जाता है वो न खट्टा होता है और न मीठा होता है | इसके बाद भी आम के फल ,गन्ना, नीबू ,मिर्च आदि का स्वाद गुण आदि बदलने या बदलते रहने का कारण है समय ही है |
      समय के प्रभाव से बीज अंकुरित होते हैं 

बीजों बनस्पतियों आदि सब पर पड़ता है
    समय से ही   बीज  के साथ ही अंकुर फूटते हैं 


     समय की तरह ही हवाओं का भी स्वाद होता है जिस समय में जिस दिशा से जैसी हवाएँ चलने लगती हैं उनका वैसा स्वाद होता है |मई जून के महीने में भी खरबूजे उतने मीठे होते हैं जितनी पश्चिम दिशा से आने वाली गरम हवाएँ चलती हैं !जो ठंडी हवाएँ पूर्व दिशा से आती हैं वो लगने पर खरबूजे फीके होते हैं !

चलने वाली हवाओं का स्वाद कैसा होता है के बदलाव का लक्षण है |



 मौसम और महामारियों की मित्रता 

      सूर्योदय कमल बारे समय के प्रवाह में जिस प्रकार से हिंसक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते देखि जाती हैं


सभी बुरे समय आवश्यकता अच्छा ये जीवन में भी इसी प्रकार के बदलाव 

बदलता है वायुमंडल के बदलने का प्रभाव प्रकृति पर पड़ता है जो सर्दी गर्मी वर्षा बाढ़ आँधी तूफान भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं के रूप में देखने को मिलता है| इनका असर जल और वायु पर पड़ता है उससे समस्त प्रकृति प्रभावित होती है सभी पेड़ पौधे बनस्पतियाँ फल फूल ,समस्त खाद्यपदार्थ,पेयपदार्थ आदि और भी जो कुछ इस प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान है वो सब कुछ प्रभावित होता है |इस बदलाव का प्रभाव मनुष्य समेत समस्त जीव जंतुओं पर पड़ता है !इसी के अच्छे प्रभाव से सारे संसार में सुख शान्ति का वातावरण बनता है और बुरे प्रभाव से क्रोध कलह रोग द्वेष अपराध आदि का वातावरण बनता है इसी से अनेकों प्रकार के रोग होते देखे जाते हैं | 
 पर पड़ता है ते देखा जाता हैमौसम भी बदलता जाता है मौसम के साथ साथ  उसी के प्रभाव से प्राकृतिक वातावरण में बदलाव होते हैं !वृक्षों में कभी नई नई कोपलें निकल रही होती हैं तो कभी पतझड़ हो रहा होता है ! फलदार वृक्षों में एक समय फूल फल लग रहे होते हैं तो दूसरे समय वही फूल फल पाक कर झड़ने लग जाते हैं कभी

   विपरीत रहन सहन खान पान आदि बिगड़ने के कारण तो रोग होते ही हैं इसके साथ साथ समय बदलने पर भी रोग होते हैं जिसका कारण हम मौसम बदलने को मानते हैं

और दूसरे मौसम बदलने पर होने वाले रोगों की संभावना रहती है |ऐसे रोग किसी किसी को होते हैं और जिस किसी को होते हैं वह अपना खान पान आदि सुधारकर उचित औषधि सेवन जैसे प्रयासों से रोगमुक्त हो सकता है |     
     ऐसी घटनाएँ प्रतिवर्ष घटित होती हैं सर्दी गरमी वर्षा आदि के प्रतिवर्ष आने जाने का समय निश्चित है इनका कर्म निश्चित है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी और वो कब तक रहेगी उसके जाने के बाद दूसरी कौन सी ऋतु आएगी | 
   ऐसी परिस्थिति में ऋतुओं के आने जाने का अपना समय निश्चित है ऋतुओं के बदलने का समय भी निश्चित होता है ऋतुओं का स्वभाव और प्रभाव निश्चित है ऋतु परिवर्तन पर होने वाले संभावित रोग भी प्रायः निश्चित होते हैं कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी !उन दोनों की ऋतु संधि के किस प्रकार के रोग हो सकते हैं और किन किन ऋतुओं की संधि में वायु मंडलीय वातावरण में किस किस प्रकार के बदलाव होते हैं उन प्राकृतिक  परिवर्तनों का जीवन पर क्या क्या असर होता है उससे किस किस प्रकार के रोगों के होने की संभावना होती है | प्रकार की ऋतु संधि

 समय आपसी संधिकाल में अचानक मौसम बदलते समय बहुत लोग ज्वर सर्दी जुकाम खाँसी सिरदर्द पेटदर्द वमन विरेचन जैसे रोगों से पीड़ित होते हैं !
     इस ऋतु परिवर्तन का जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा ऐसे समय किस किस प्रकार के रोग होने की संभावना बनती हैं |उससे बचने के लिए किस किस प्रकार की सावधानियाँ बरतनी होंगी उस प्रकार का पथ्य परहेज आदि उचित प्रकार का खान पान रहन सहन आदि अपनाकर कुछ लोग रोगी होने से बच जाते हैं जो रोगी हो भी जाते हैं वे उचित पथ्य भोजन रहन सहन औषधि सेवन आदि से स्वस्थ हो जाते हैं !      यहाँ तक ये सारा क्रम बना हुआ है जो थोड़े बहुत बदलाव के साथ प्रतिवर्ष घटित होता है इससे सभी लोग सुपरिचित हैं इसलिए ऐसे रोगों से विशेष अधिक कठिनाई नहीं होती है इससे निपटने की तैयारियॉँ चिकित्सकों से लेकर आम समाज तक सभी के पास होती हैं | इसे सहने के लिए भी लोग मानसिक रूप से तैयार रहते हैं ऐसी घटनाएँ प्रतिवर्ष घटित होने के कारण इनसे बचाव के लिए लोगों ने तरह तरह की औषधियों खाद्य पदार्थों आदि की व्यवस्था कर रखी होती है जिससे बचाव हो जाता है | इसके अतिरिक्त भी ऋतुसंधि जनित रोग एक निश्चित समय सीमा के बाद स्वतः समाप्त होने लगते हैं |                                                    
      इसलिए ऐसे रोगों से न समाज बहुत अधिक परेशान  होता है और न ही इनसे बचाव के लिए समाज बेचैन होता है | इसलिए ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए समाज को किसी चिकित्सकीय अनुसंधान की आवश्यकता नहीं होती है | 

     दूसरे वह रोग होते हैं जो किसी का अपना समय बिगड़ने के कारण उसके शरीर में होते हैं ऐसे लोग कितना भी उचित खान पान रहन सहन आदि अपनाते हुए अत्यंत संयमित जीवन जीते हैं इसके बाद भी जैसे ही उनकाअपना बुरा समय आता है तो वे रोगी होने लगते हैं जिससे बचाएं के लिए कितने भी पथ्य परहेज का सेवन क्यों न किया जाए तथा अपने को रोग मुक्त रखने के लिए कितनी भी उन्नत चिकित्सा चिकित्सकों एवं औषधियों का लाभ क्यों न लिया जाए इसके बाद भी रोग अपने समय पर प्रारंभ होकर दिनों दिन बढ़ता चला जाता है और एक निश्चित समय तक रहता है उस व्यक्ति का अपना बुरा समय बीतने के बाद वह रोग बिना किसी चिकित्सा के स्वयं ही समाप्त होने लगता है और वह पूरी तरह से रोग मुक्त हो जाता है | उनमें से जिन रोगियों का अच्छा समय नहीं आना होता है वे रोगी बने रहते हैं या उनमें से जिनका समय बहुत अधिक खराब होता है वे अपने बुरे समय के प्रभाव से मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | कुलमिलाकर बुरे समय के प्रभाव से होने वाले रोग अच्छा समय आने पर ही शांत होते हैं औषधियों आदि का इन पर कोई विशेष असर नहीं होता है | ऐसे समय जन्य रोगों से बड़े बड़े चिकित्सक वैज्ञानिक साधू संत आदि सभी प्रभावित होते देखे जाते हैं क्योंकि समय का प्रभाव सब पर पड़ता है | 

उनका प्रभाव प्रकृति और जीवन पर किस प्रकार का पड़ेगा


समाज स्वयं जूझ लेता है ऐसे रोगों में घरेलू  चिकित्सा भी प्रायः लाभदायक सिद्ध होती है | उससे लाभ न हुआ तो अच्छे चिकित्सकों से चिकित्सा करवा ली जाती है उनकी योग्यता अनुभव एवं औषधियों से ऐसे रोगों पर नियंत्रण करके स्वास्थ्य लाभ ले लिया जाता है | जिन रोगों के बिषय में पूर्वानुमान पता होते हैं कि मौसम में अचानक बदलाव होने के कारण इस प्रकार के रोग हो सकते हैं !उनके लक्षण पता होते हैं कि मौसम में ऐसा बदलाव अचानक होने के कारण ऐसे ऐसे लक्षण वाले रोगों के होने की संभावना रहती है |उन रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए जिन औषधियों की आवश्यकता होती है उनके विषय में ज्ञान होता है जिनका सेवन करने से उस प्रकार के रोगों से मुक्ति मिल जाती है |ऐसा अनादि काल से होता चला आ रहा है |इनका पूर्वानुमान पता होता है रोग लक्षण पता होते हैं रोगों से मुक्ति दिलाने वाली औषधियाँ पता होती हैं जिनका प्रयोग करने पर रोगों से मुक्ति मिल जाती है ऐसे रोगों से समाज भयभीत नहीं होता है | इसीलिए ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए अति विशिष्ट वैज्ञानिक अनुसंधानों  की आवश्यकता नहीं होती है | इसीलिए ऐसी परिस्थिति में होने वाली बीमारियों  को रोग कहा जाता है |
     
इसके अतिरिक्त कुछ 'महारोग" होते हैं जो कभी कभी ही होते हैं उनके  कोई वे किसी शताब्दी के किसी दशक के किसी भी वर्ष में होते देखे जाते हैं | इसके बिषय में किसी को कोई पूर्वानुमान पता नहीं होता है |  ये कब प्रारंभ होंगे कब से कब तक रहेंगे कब समाप्त होंगे | इसके बिषय में किसी को कुछ भी पता नहीं होता है ऐसे समय में होने वाले रोगों के लक्षणों में एक रूपता नहीं होती है इसलिए इनके लक्षण देखकर ऐसे महारोगों से ग्रसित महारोगियों को उनके लक्षणों से पहचानना अत्यंत कठिनहोता है | ऐसे रोगों के लक्षणों के आधार पर दी जाने वाली औषधियों का महामारी से ग्रसित महारोगियों पर कोई विशेष असर नहीं होता है इसीलिए महारोगों लाभ नहीं होता है इसीलिए इन्हें महामारी या महारोग कहा जाता है | 
      महामारियों में रोगों के लक्षण अलग अलग प्रकार के होते हैं इसलिये लिए कई बार भ्रम होता है कि महामारियाँ स्वरूप बदल रही हैं जबकि उनका कोई स्वरूप होता ही नहीं है तो बदलेंगे क्या ?




      ऋतुएँ एवं ऋतुध्वंस
 जाने वाली संक्रमित   होंगे  



 महामारियों के समय में जनता का जीवन बचाने के लिए अधिकाँश सरकारें ईमानदारी पूर्वक प्रयास तो करती हैं किंतु उन्हें यह नहीं पता होता है कि उन्हें ताकत कहाँ कितनी किस प्रकार से लगानी है  जिसके जनहित में कुछ परिणाम भी दिखाई देने चाहिए ! संबंधित विषयों में सही एवं सटीक अच्छे और प्रभावी निर्णय लेने के लिए सरकारों को वैज्ञानिक अनुसंधानों अनुभवों की आवश्यकता होती है जितना  अच्छा वैज्ञानिक सहयोग मिल जाता है उतनी ही अच्छी रणनीति बनाकर महामारियों के समय भी सरकारें समाज की सुरक्षा करने का प्रयास करते देखी  जाती हैं | 
    विश्व में इतने बड़े बड़े वैज्ञानिक अनुसंधान हुआ करते हैं कोरोना जैसी महामारियों से निपटने के लिए सरकारों को वैज्ञानिकों के उन अनुसंधानात्मक अनुभवों की आवश्यकता होती है|वैज्ञानिकों के द्वारा समय से यदि अच्छी जानकारी सरकारों को उपलब्ध करवा दी जाती है तो सरकारों के द्वारा किए जाने वाले प्रयास और अधिक प्रभावी हो जाते हैं |
   किसी भी बिषय में सरकारों  के पास जितनी अधिक सही एवं सटीक सूचनाएँ होती हैं सरकारों से उतने ही अच्छे फैसले लेने की आशा की जानी चाहिए ! प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली संभावित जन धन की हानि को कम करने के लिए उन घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमानों की सरकारों को सबसे अधिक आवश्यकता होती है | उसी के आधार पर सरकारें बचाव कार्यों एवं राहत कार्यों का प्रबंधन करती हैं |सही एवं सटीक पूर्वानुमानों को जानने के लिए विश्वसनीय विज्ञान न होने के कारण अधिकाँश प्राकृतिक आपदाओं के विषय में सरकारों को कोई पूर्व सूचना नहीं होती है |इसी  कारण तो प्राकृतिक आपदाओं के घटित होने पर भारी जन धन की हानि होते देखी जाती है पूर्वानुमानों के अभाव में सरकारों को घटनाओं की भयंकरता के विषय में अनुमान नहीं होता है उन्हें अँधेले में तीर चलाए जा रही होती हैं |संबंधित विषय में वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में आपदा पीड़ितों को बचाव या राहत पहुँचाने के लिए जिम्मेदार सतर्क सरकारें उनके लिए पानी की तरह पैसे बहाती हैं सारे संसाधन उपलब्ध करवाती हैं इसके बाद भी जरूरत वाले आपदा पीड़ित लोगों तक वे प्रयास उतने नहीं पहुँच पाते हैं जितने कि पहुँचने चाहिए इसलिए किसी को लाभ हो या न हो सरकारें अपने दायित्व का निर्वाह करके अंत में घायलों तथा मृतकों के आश्रितों के लिए मुआबजे का एलान कर देती हैं | सरकारों से इससे अधिक और अपेक्षा भी क्या की जा सकती है | यदि महामारियों एवं प्राकृतिक आपदाओं के आने के विषय में पूर्वानुमान पहले से पता हो तो बचाव और राहत कार्यों के लिए किए गए प्रयासों के प्रभावी परिणाम भी दिखाई पड़ सकते हैं |
      यही स्थिति कोरोना जैसी महामारी के बिषय में भी होते देखी जाती है महामारियाँ भी तो एक प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं  श्रेणी में ही आती हैं इसलिए सरकारों को उचित प्रबंधन करने के लिए महामारियों के विषय में भी सही एवं सटीक पूर्वानुमान की आवश्यकता होती है | सरकारों को पता होना चाहिए कि किसी क्षेत्र में महामारी कब आएगी कब तक रहेगी और कब जाएगी !सरकारें उसी हिसाब से ऐसी महामारियों से निपटने के लिए अपनी रणनीति बना लिया करती हैं इसके साथ साथ अपने देश बासियों को भी ऐसी महामारियों से मुकाबले के लिए उसी हिसाब से तैयार कर लिया करती हैं| ऐसी परिस्थिति में महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान उपलब्ध करवाने की सरकारी भविष्यवक्ताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है |उसके अभाव में अच्छे से अच्छे प्रबंधन भी महामारियों पर लगाम लगाने में असफल होते देखे जाते हैं | 
     पूर्वानुमानों की तरह ही महामारियों के समय में होने वाले रोगों के लक्षण क्या होते हैं इनकी भयंकरता कितनी है इनमें सावधानियाँ क्या क्या और कब तक बरती जानी चाहिए, कैसे रहा जाना चाहिए ,रहन सहन और भोजन आदि में किस प्रकार के पथ्य परहेज का पालन किया जाना चाहिए !ऐसे रोगों की परीक्षण प्रक्रिया तथा उससे संबंधित आवश्यक संसाधनों एवं ऐसे रोगों से मुक्ति दिलाने में सहायक औषधियों की उपलब्धता की सही एवं सटीक जानकारी चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा सरकारों को समय से उपलब्ध करवाई जानी  चाहिए !उसी के अनुसार सरकारें अपने समस्त  विभागों को सतर्क एवं सक्रिय करके महामारियों से निपटने के लिए संसाधन जुटाती हैं समाज को आवश्यक जानकारियाँ देने के साथ ही साथ सावधानियाँ बरतने के लिए विश्वास में लेती हैं | इसके लिए पर्याप्त समय एवं विश्वसनीय वातावरण चाहिए होता है | पूर्वानुमान पता होने पर तैयारियाँ करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है | 
    महामारियों से संबंधित इसीप्रकार की बातों की सही सही जानकारी यदि सरकारों को समय से पता लग जाती है तो सरकारें उसी प्रकार की बातें समाज को सूचित किया करती हैं और  रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए उसी प्रकार के संसाधन जुटाती हैं |
    महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान यदि पता न हों और रोगों के लक्षणों की चिकित्सा की पथ्य परहेज की सही सही जानकारी न हो तो उसका असर सरकारों के प्रयासों पर भी  पड़ता है |सरकारें आधी अधूरी जानकारी के आधार पर रोगों के लक्षणों एवं सावधानियों के बिषय में बताते समय यदि बार बार अपनी बातों में बदलाव करती हैं तो जनता का विश्वास टूटने लगता है |
    वर्तमान समय में चल रही कोरोना महामारी के बिषय में सरकारों और समाज को इस प्रकार की समस्याओं का सामना कई बार करना पड़ा है |महामारी का वास्तविक स्वरूप समझे बिना ही आधी अधूरी जानकारी  के आधार पर कोरोना के  स्वरूप और लक्षणों की कल्पना कर ली गई उन कल्पनाओं में संपूर्ण सच्चाई का अभाव था इसी कारण जो लक्षण महामारीकोरोना के बताए जा रहे थे वे उसके थे ही नहीं क्योंकि जाँच में जिन लोगों को संक्रमित पाया जा रहा था उनमें से अनेकों रोगियों में वे लक्षण मिल ही नहीं रहे थे |
   ऐसी परिस्थिति में लक्षण बताते समय सावधानी उस तरह की नहीं बरती गई जो बरती जानी चाहिए थी इसलिए लक्षण गलत बता दिए गए अब जनता को विश्वास में लेने के लिए सच बताना आवश्यक था इसलिए या तो ये कहा जाता कि इसकी जाँच प्रक्रिया ही सही नहीं है जिन रोगियों में लक्षण लक्षण देख कर उनकी जाँच करवाई गई किंतु जाँच प्रक्रिया में वही लोग संक्रमित नहीं निकले जिन्हें लक्षणों के आधार पर संक्रमित होने की आशंका व्यक्त की गई थी | कुछ लोग ऐसे भी संक्रमित निकले जिनमें चिकित्सा वैज्ञानिकों के बताए हुए लक्षण नहीं निकल रहे थे |
    इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि या तो जाँच प्रक्रिया ठीक नहीं थी या फिर वे लक्षण कोरोना रोग के थे ही नहीं जो पहले बताए गए थे |इन बातों को बोलना सबके बश की बात नहीं है इसलिए यह कहना अधिक सरल लगा कि कोरोना अपना स्वरूप बदल रहा है जबकि यह नहीं बताया जा सका कि कोरोना का वास्तविक स्वरूप किसी की समझ में ही नहीं आ  रहा है |
     इस प्रकार से समाज को महारोग का वास्तविक स्वरूप व लक्षण नहीं बताए जा सके !इसके विस्तार का माध्यम अंततक नहीं बताया जा सका |ये कब तक रह सकता है और कितना भयावना हो सकता है किसे कितना सावधान रहना चाहिए  आदि विषयों में जब जो कुछ बताया गया कुछ दिनों के बाद में उसी विषय में कुछ और बता दिया गया | वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में महामारी के विषय में जो काल्पनिक जानकारी दी जाती रही सरकारें वही उसी प्रकार से जनता को परोस देती रहीं !उस पर शुरू में तो जनता ने इतना अधिक विश्वास कर लिया कि सरकार के एक आह्वान पर संपूर्ण देश में दीपक जला दिए गए | थाल बजाने या घंटा शंख तालियाँ आदि बजाने के आह्वान पर भी देश वासियों ने संपूर्ण समर्पण के साथ पालन किया | वैज्ञानिक तैयारियों के अभाव में जो बार बार बातें बदली गईं उन  पर उसी जनता का विश्वास अधिक समय तक टिक पाना संभव न था |मजदूरों के पलायन के लिए यही वे बातें जिम्मेदार हैं जिनपर पहले ध्यान नहीं दिया गया |
     मजदूरों को लगा कि संक्रमण रोकने के लिए जो जो बातें बताई जा रही हैं बहुत कुछ उनके विपरीत निकलता जा रहा है यहाँ तक कि चिकित्सक स्वयं संक्रमित होते देखे जा रहे हैं ये बात जनता के गले नहीं उत्तरी इसीलिए तो जनता का धैर्य टूटने लगा और पैदल ही अपने अपने घर गाँव के लिए लोग निकल पड़े |
     इसका कारण इस महामारी के कठिन दौर में मानव जीवन को सर्वोच्च प्राथमिकता देने की जगह विज्ञान का संपूर्ण ध्यान कोरोना महामारी पर केंद्रित हो गया | मानव जीवन को बचाने की जगह हम कोरोना को पराजित करने में लग गए !हम अपने को कोरोना योद्धा समझने का भ्रम पाल बैठे !आखिर कोरोना से लड़ने लायक हमारे पास था क्या हथियार क्या थे प्रयास क्या कर रहे थे | बिना संसाधनों और बिना तैयारियों के युद्ध कैसे जीते जा सकते हैं |
      इस लिए इस कोरोना जैसी महामारी से सबक लेकर सरकारों को माँग और आपूर्ति के बिषय में मंथन करना चाहिए और पोषण उसी विज्ञान को मिलना चाहिए जो कोरोना जैसी महामारियों के महामुशीबत वाले समय में भी   कुछ मदद करने  लायक तो हो !अन्यथा  ऐसे अनुसंधानों पर निरर्थक धन और समय  करने का क्या अर्थ जो ऐसे कठिन काल में जनता  का साथ  न दे सके ! 
            महामारी को ठीक ठीक समझपाने में अंत तक असफल रहे वैज्ञानिक !

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