जरूरतों पर केंद्रित विज्ञान के विकास की आवश्यकता है
ऐसे सक्षमविज्ञान के अभाव में ही कोरोना जैसी इतनी बड़ी एवं व्यापक महामारी के रहस्यों को समझ पाना संभव नहीं हो सका !वैज्ञानिकदुर्बलता के कारण ही न केवल कोरोना महामारी से संबंधित अपितु भूकंप, बाढ़ और चक्रवात जैसी सभी प्रकार की हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के कारणों और उनके पूर्वानुमानों को समझने के लिए किए गए अभी तक के सभी अनुसंधान अधूरे पड़े हुए हैं |वर्षा एवं आँधी तूफानों से संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों के अभाव में ही किसी एक स्थान पर दिखाई पड़ रहे बादलों एवं आँधी तूफानों को उपग्रहों रडारों से देखकर उसी के अनुशार उनकी गति एवं दिशा का अंदाजा लगाकर काम चला लिया जाता है |ये उपग्रहों रडारों के द्वारा की जाने वाली प्राकृतिक घटनाओं की जासूसी तो है किंतु विज्ञान नहीं है |यद्यपि इसके द्वारा भी कई बार प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप से होने वाली जन धन की हानियों से रक्षा करने में काम चलाऊ मदद तो मिल जाती है किंतु ऐसे तीर तुक्कों को ही विज्ञान मानकर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में की गई अपनी निराधार कल्पनाओं को विज्ञान के रूप प्रतिष्ठित करके संतुष्ट हो जाने वाली प्रवृत्ति ही कोरोना महामारी के रूप में विश्व पर भारी पड़ी है | वैज्ञानिक अक्षमता के कारण ही इस महामारी का आरंभ कब हुआ और इससे मुक्ति कब मिलेगी इस बात का अनुमान एवं पूर्वानुमान लगाया जा सका !इसके पैदा होने के कारण नहीं खोजे जा सके यह मानव निर्मित है या प्राकृतिक है इसे समझ पाना संभव नहीं हो सका !इस महामारी का विस्तार कितना है और इसका प्रसार माध्यम क्या है आदि बातें आज तक खोजी नहीं जा सकी हैं |
1918 में जब महामारी घटित हुई थी उस दौर में महामारी के इलाज के लिए कोई सटीक दवा या वैक्सीन नहीं थी और आज भी नहीं है । बस प्रभावित इलाकों में लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी जा रही थी। आज महामारी के चलते लोगों को मास्क पहनने के लिए कहा गया था। वहीं स्कूल, थिएटर और बिजनेस पूरी तरह से बंद कर दिए गए थे, ताकि लोग घरों से कम से कम निकलें।
2020 में जब कोरोना महामारी घटित हुई तब भी महामारी से मुक्ति दिलाने लायक कोई सटीक दवा या वैक्सीन नहीं थी और आज भी नहीं हैअबकी बार भी लोगों को सावधानी बरतने और मास्क पहनने के लिए कहा गया था। अबकी बार भी स्कूल, थिएटर और बिजनेस पूरी तरह से बंद कर दिए गए थे, ताकि लोग घरों से कम से कम निकलें।ऐसे ही और सारी सावधानियाँ पहले की तरह ही बरतने की सलाह दी जा रही है !
कुल मिलाकर चिंतन इस बात का किया जाना चाहिए कि बीते 102 वर्षों में चिकित्सा के क्षेत्र में जितने भी वैज्ञानिक अनुसंधान हुए उनसे कोरोना जैसी महामारी की इतनी बड़ी आपदा के समय जनता को कितनी मदद पहुँचाई जा सकी? कुछ निराधार कल्पनाओं आशंकाओं अफवाहों के अलावा महामारी के दुखद समय में उन अनुसंधानों से जनता को ऐसा क्या उपलब्ध कराया जा सका जो यदि अनुसंधान न किए जाते तो संभव नहीं हो पाता ?
मौसम पूर्वानुमानों से संबंधित अनुसंधानों की यही स्थिति है अप्रैल मई 2018 में भारत में पूर्वोत्तर में बार बार आँधी तूफ़ान आए किंतु मौसम संबंधी अनुसंधानों से ऐसे मुसीबत में जनता को क्या मदद मिली !संभावित आँधी तूफ़ानों के बिषय में जनता को पूर्वानुमान तक तो बताए नहीं जा सके !बाद में भारत के मौसम विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर साहब से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसी घटनाएँ घटित हो रही हैं इसलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका |
इसीप्रकार से अगस्त 2018 में सदी की सबसे बड़ी त्रासदी से केरल जूझ रहा था जबकि भारतीय मौसम विभाग के द्वारा 3 अगस्त 2018 को जारी प्रेस विज्ञप्ति के मध्यम से अगस्त सितंबर में दक्षिण भारत के बिषय में सामान्य बारिश की भविष्यवाणी की गई थी और उस पूर्वानुमान के मात्र 2 दिन बाद ही दक्षिण भारत में भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी बाद में भारत के मौसम विभाग के तत्कालीन डायरेक्टर साहब से पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि जलवायुपरिवर्तन के कारण ऐसी घटनाएँ घटित हो रही हैं इसलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका |
इसी प्रकार से सन 2019 और 2020 में भारत में बार बार भूकंप आते रहे ऐसा पहले शायद ही कभी हुआ हो !जनता एक ओर तो महामारी रही थी और दूसरी ओर बार बार वाले भूकंपों से भयभीत थी !ऐसी परिस्थिति में भूकंपों से संबंधित अनुसंधान करने वालों से पूछा गया तो उन्होंने बताया हिमालय के नीचे बढ़ते वायु दाब के कारण बार बार बार भूकंप आ रहे हैं निकट भविष्य में यहाँ बहुत बड़ा भूकंप आने की संभावना है | यह सुनकर जनता का तनाव और सातवें आसमान पर पहुँच गया !जबकि ऐसी अफवाहें अक्सर वर्ष दो वर्ष में उड़ा दी जाती हैं इसलिए जनता भी प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में बोली जाने वाली ऐसी निराधार एवं कभी न सच होने वाली अफवाहों की आदी हो चुकी है | 1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति और 1866 और 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई।तब से लेकर अभी तक लगभग 145 वर्ष बीत चुके हैं एक दो घटनाओं के पूर्वानुमान संबंधी कुछ तीर तुक्के यदि छोड़ दिए जाएँ तो आज भी भारतीय मौसम विज्ञान 1864 की स्थिति में ही खड़ा है जबकि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों के लिए ही तो जनता के खून पसीने की कठोर कमाई का कितना पैसा ऐसे अनुसंधानों पर सरकारें खर्च किया करती हैं उसके बदले में ऐसे अनुसंधानों से जनता को मदद कितनी मिलती है |
बढ़ते वायुप्रदूषण के लिए जिम्मेदार निश्चित कारणों की खोज में किए जाने वाले अनुसंधानों पर पानी की तरह पैसा बहाने जाने के बाद भी अभी तक यह निश्चित नहीं किया जा सका है कि वायुप्रदूषण बढ़ने की घटना मनुष्यकृत है या प्राकृतिक !जबकि होली दीवाली दशहरा सर्दी गर्मी एवं पराली जलाने से लेकर वाहनों भवननिर्माणों ईंटभट्ठों आदि न जाने किस किस को वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बता दिया जाता है किंतु उनमें से किस काम को कम या बंद कर दिया जाए तो वायु प्रदूषण बढ़ने की घटना समाप्त हो जाएगी !वायुप्रदूषण बढ़ने के लिए जिम्मेदार ऐसे निश्चित कारणों को अभी तक चिन्हित नहीं किया जा सका है |
ऐसी परिस्थिति में जिस ज्ञान विज्ञान के द्वारा जिन प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण नहीं खोजे जा सके उन घटनाओं के घटित होने के बिषय में सही सही पूर्वानुमान नहीं लगाए जा सके उसी ज्ञान विज्ञान को उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं का विज्ञान मान लेने की मजबूरी क्या है ?जब तक कि उन घटनाओं के साथ ऐसे ज्ञान विज्ञान का कोई प्रमाणित वैज्ञानिक संबंध न सिद्ध हो सके |
जिन बिषयों का जिन प्राकृतिक घटनाओं के साथ विज्ञान के रूप में प्रमाणित होना अभी तक बाकी है उन्हीं बिषयों को उन घटनाओं का विज्ञान मानकर उसका पठन पाठन किया जाना तर्कसंगत कैसे माना जा सकता है !ऐसे बिषयों को पढ़कर जो वैज्ञानिक तैयार होंगे उनमें से मौसमवैज्ञानिक यदि मौसमसंबंधी घटनाओं के बिषय में और भूकंप वैज्ञानिक यदि भूकंप संबंधी घटनाओं के बिषय में उनके घटित होने के लिए निश्चितकारण एवं उनके पूर्वानुमान बताने में सक्षम नहीं होंगे तो ऐसे वैज्ञानिकों और आमलोगों में अंतर किस आधार पर किया जाएगा !बादल आने पर हर कोई अंदाजा लगा लेता है कि वर्षा हो सकती है | ऐसे ही अन्य प्राकृतिक घटनाओं के बिषय में सामान्य अंदाजा तो सभी को होता ही है किंतु विशेष जानकारी रखने वाले वैज्ञानिक होते हैं हर किसी को तो वैज्ञानिक नहीं माना जा सकता है |
कि प्राकृतिक घटनाओं के विज्ञान के रूप में किसी बिषय का पूर्वाग्रह पूर्वक थोपा जाना स्वस्थ वैज्ञानिक अनुसंधान परंपरा के अनुरूप नहीं है |
कुछ मिलाकर प्राकृतिक घटनाओं के बिषय का विज्ञान कुछ बिषयों को मान भले लिया गया हो किंतु घटनाओं के आधार पर उनका उनका विज्ञान के रूप में प्रमाणित होना जब तक बाकी है| ऐसी परिस्थिति में उससे संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया को पूर्वाग्रह पूर्वक केवल उसी बिषय में कैद करके रखना ठीक नहीं है | ऐसा कहने के पीछे हमारा अभिप्राय मात्र इतना है कि बिषय को आगे करके अनुसंधान प्रक्रिया को सभी बिषयों के लिए खुला छोड़ा जाना चाहिए जिस भी ज्ञान परंपरा या विज्ञान के आधार पर अनुसंधान करने से प्रकृति घटनाओं के घटित होने के आधारभूत कारण पता लगाए जा सकें या सही सही पूर्वानुमान लगाया जा सके उस ज्ञान परंपरा को ही उस बिषय के विज्ञान के स्वरूप में चाहिए !
प्राचीन भारतवर्ष की ज्ञान परंपरा में प्रायः सभी बिषयों का पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितीयविज्ञान की प्रक्रिया अपनाया जाता था और गणित के आधार पर ही प्राकृतिक रहस्यों का अनुसंधान पूर्वक पता लगा लिया जाता था | उसी प्रक्रिया के द्वारा सूर्य चंद्र ग्रहणों का पूर्वानुमान
आज भी सैकड़ों वर्ष पहले लगा लिया जाता है | इसी गणितीय प्रक्रिया के आधार पर मौसम स्वास्थ्य तथा और भी प्रकृति एवं जीवन से संबंधित सभी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | पहले ब्रिटेन आदि कुछ देशों में भी मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान गणित के आधार पर करने की परंपरा थी !लगभग 1885 के आसपास एक चक्रवात के बिषय में एक महिला के द्वारा गणितीय पद्धति से लगाया गया पूर्वानुमान ही सही घटित हुआ था जबकि दूसरी प्रक्रियाओं से लगाए गए पूर्वानुमान गलत हुए थे | इसके बाद भी गणितीय प्रक्रिया में अधिक समय लगने के कारण वो पद्धति गौण होती चली गई जबकि भारत वर्ष में प्रचलित गणितीय पद्धति सुगम होने के कारण निरंतर प्रयोग में बनी रही है |
वर्तमान समय में प्राकृतिक अनुसंधान सबसे बड़ा अभिशाप उन लोगों की संकीर्ण मानसिकता के कारण झेल रहे हैं जो जिस बिषय के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करते हैं तो सफलता इसलिए नहीं मिल पाती है क्योंकि उसमें विज्ञान जैसा कुछ है ही नहीं वो तो प्राकृतिक घटनाओं की जासूसी मात्र होती है और जो बिषय उन घटनाओं के वास्तविक विज्ञान के स्वरूप हैं उन बिषयों को ऐसे अनुसंधानों में केवल इसलिए सम्मिलित नहीं होने देते हैं क्योंकि उन बिषयों को उन्होंने पढ़ा नहीं होता है उन्हें यदि ऐसे अनुसंधानों में सम्मिलित कर लेंगे तो स्वयं के बेरोजगार होने का खतरा उन्हें सताया करता हैं | इसलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित वास्तविक विज्ञान को अंधविश्वास रूढ़िवाद आदि न जाने क्या क्या बोलकर उन वैज्ञानिक बिषयों का तिरस्कार किया करते हैं !निष्प्राण सरकारें उन्हीं की तर्कहीन निराधार बातों बिचारों का समर्थन किया करती हैं |
आधुनिक विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिकों की दृष्टि में खगोल विज्ञान पद्धति की गणितीय प्रक्रिया से निकाले गए पूर्वानुमान यदि अंधविश्वास होते हैं तो जिस विज्ञान को वो मान्यता देते हैं यदि वो वास्तव में विज्ञान है तो उसके आधार पर ही कोरोना महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगा लिया गया होता और जो लगाया गया वही सच निकला होता आखिर उन्हें ऐसा करने रोका किसने था ? आधुनिक विज्ञान पद्धति से महामारी के बिषय में जो जो कुछ बोलै गया है प्रायः सभी अनुमान और आशंकाएँ गलत निकली हैं इसके बाद भी उसे विज्ञान के रूप में मान्यता मिली हुई है जिसमें विज्ञानं जैसा कुछ दूर दूर तक और जो वास्तविक विज्ञान जिसके द्वारा कोरोना जैसी महामारी के बिषय में भी पूर्वानुमान लगाना संभव है उस बिषय की उपेक्षा की जा रही है यदि ऐसा न किया गया होता तो कोरोना महामारी के बिषय में कुछ तो पूर्वानुमान लगाया ही जा सकता था !
इसलिए ईमानदार एवं लक्ष्य समर्पित सरकारों के लिए आवश्यक है कि वे विशेषकर प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों के बिषय में उदारता बरतें और सभी वैज्ञानिक प्रक्रियाओं को अनुसन्धान यात्रा में सम्मिलित करें और जो ज्यादा सही एवं सटीक लगे उसे ही अनुसंधान योग्य समझा जाना चाहिए |
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