प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली
"पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा एक ऐसी विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली विकसित की जा रही है, जिससे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की संभावना का अनुमान लगाया जा सकेगा।इस योजना की एक सबसे बड़ी विशेषता यह है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग भी इस विशिष्ट प्रणाली की विकास अध्ययन और प्रक्रिया में शामिल है।पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा विकसित किया जा रहा मॉडल मौसम में आने वाले परिवर्तन और रोग की घटनाओं के बीच संबंध पर आधारित है।बताया जा रहा है कि ऐसे कई रोग हैं, जिनमें मौसम की स्थिति अहम भूमिका निभाती है।मलेरिया जैसे रोग जिसमें विशेष तापमान और वर्षा पैटर्न के माध्यम से इसके प्रकोप के बारे में आसानी से पता लगाया जा सकता है।विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली एक ऐसी निगरानी प्रणाली है, जो त्वरित सार्वजनिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप को संभव बनाने के लिये ऐसे रोगों से संबंधित सूचना एकत्र करती है, जो भविष्य में महामारी का रूप ले सकते हैं | विश्लेषण के मुताबिक, मौसम में अस्थायी और स्थानिक परिवर्तन, उदाहरण के लिये अल-नीनो के प्रभाव के रूप में तापमान और वर्षा में अल्पकालिक वृद्धि, मलेरिया के प्रकोप का कारण बन सकता है।जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनलने अपने एक अध्ययन में कहा था कि जलवायु परिवर्तन के कारण डायरिया संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। जलवायु परिवर्तन, जो कि बाढ़ और सूखे जैसी चरम घटनाओं में वृद्धि के लिये उत्तरदायी है, विकासशील देशों में अत्यधिक चिंता का विषय है।यद्यपि कोरोना वायरस महामारी के प्रसार को प्रभावित करने वाले मौसम के पैटर्न पर कई अध्ययन और विश्लेषण किये गए हैं, किंतु अभी तक शोधकर्त्ता कोरोना वायरस महामारी और मौसम के बीच एक निश्चित संबंध स्थापित करने में सफल नहीं हो पाए हैं।
- प्रकाशित 22 -12-2020
यदि सरकार ऐसी कोई प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली बनाने जा ही है तो यह सरकार के द्वारा सही दिशा में देर से उठाया गया एक कदम हो सकता है क्योंकि महामारी जैसे प्राकृतिक रोग मौसमसंबंधी घटनाओं से प्रभावित हो सकते हैं | इस अनुसंधान की सबसे बड़ी अच्छाई यह है कि इसमें मौसमविज्ञानविभाग के वैज्ञानिकों को भी सम्मिलित किया जाएगा | इसलिए सरकार के द्वारा यदि इस प्रकार की कोई योजना बनाई जा रही है तो भविष्य में यदि कोई महामारी आती है तो संभव है उस समय महामारी के विषय में वैज्ञानिक इतने खाली हाथ न रहें |
मुझे लगता है कि इसप्रकार की स्वास्थ्य योजना में मौसमसंबंधी अनुसंधानों की बड़ी भूमिका होने जा रही है | इस योजना का मुख्यआधार मौसमसंबंधी अनुसंधान होंगे | इसलिए इसमें उपग्रहों रडारों की मदद से आँधी तूफानों एवं बादलों की जासूसी करने वाले प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले वास्तविक मौसम वैज्ञानिक चाहिए जो प्रकृति का स्वभाव प्रकृतिक लक्षणों का करके मौसम संबंधी घटनाओं के चिन्ह किसी भी रूप में प्रकट होने से पूर्व वर्षा आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हों ऐसे स्वास्थ्य संबंधी अध्ययनों में प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले वैज्ञानिक महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा सकते हैं | इसके अतिरिक्त उपग्रहों रडारों से बादलों या आँधी तूफ़ानों को एक स्थान पर देखकर उनकी दिशा और गति के हिसाब से उनके दूसरे स्थान पर पहुँचने का अंदाजा लगाने वाले वैज्ञानिकों की ऐसे अध्ययनों में कोई भूमिका इस लिए नहीं है क्योंकि उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों या आँधी तूफ़ानों की जासूसी करने में विज्ञान है ही कहाँ यह तो आकाशस्थ कैमरों के आधार पर लगाए जाने वाले तीर तुक्के मात्र हैं |
इसलिए ऐसी स्वास्थ्य प्रणाली को सफल बनाने के लिए सरकार को कुछ वास्तविक मौसम वैज्ञानिक खोजने होंगे |जो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों अन्यथा यदि प्रकृति के स्वभाव को समझना इतना ही आसान होता तो इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा ही न हुई होतीं और अब तक महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया होता |
महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है उन्हीं मौसमी घटनाओं के आधार पर भावी महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | मौसम और महामारी
प्रारंभिक स्वास्थ चेतावनी प्रणाली में मौसमसंबंधी वैज्ञानिकों को सम्मिलित किए जाने का मतलब महामारी प्रारंभ होने पर या इससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने पर मौसम का प्रभाव पड़ता है ऐसी परिस्थिति में महामारी से संबंधित पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में सही सही मौसम पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है |उसके लिए सर्वप्रथम प्रकृति के स्वभाव को समझा जाना आवश्यक है |मौसम के क्षेत्र में प्रकृति के स्वभाव को समझने के लिए क्या किया जा रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं है इतनी अवश्य है कि उपग्रहों रडारों से जो दिखाई पड़ता है उसकी भविष्यवाणी कर दी जाती है और उन कैमरों से भूकंप नहीं दिखाई पड़ते तो भूकंप संबंधी पूर्वानुमान लगाने को असंभव बता दिया गया है | उन्हीं कैमरों से बादलों आँधी तूफानों को देख लिया जाता है वे जब जिस दिशा में जितनी गति से आगे बढ़ रहे होते हैं उसी के अनुशार गुणागणित लगाकर अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कितने दिनों घंटों आदि में किस देश प्रदेश शहर आदि में पहुँच सकते हैं | यह तो बिल्कुल उस प्रकार का अंदाजा है जैसे किसी नहर में पानी छोड़ा जाता है वह कब कहाँ पहुँचेगा इसका अंदाजा उसी समय लगा लिया जाता है ट्रेन फ्लाइट आदि की भी यही स्थिति है | उपग्रहों रडारों के माध्यम से बादलों या आँधी तूफ़ानों की जासूसी करने में विज्ञान है ही कहाँ यह तो आकाशस्थ कैमरों के आधार पर लगाए जाने वाले तीर तुक्के मात्र होते हैं |
मौसम संबंधी अनुसंधानों की इस विधा में विज्ञान का तो कोई विशेष उपयोग लगता नहीं है जिसमें प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों का अध्ययन करके भूकंपों या मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में कोई पूर्वानुमान लगाया गया हो |जहाँ तक बात अलनीनों लानिना जैसी काल्पनिक कहानियों की है तो उनके प्रभाव को अभी तक प्रमाणित नहीं किया जा सका है क्योंकि उसके आधार पर लगाए गए दीर्घावधि पूर्वानुमान प्रायः गलत निकलने के लिए ही बताए जाते हैं |वे सही निकालें तब तो ऐसी कहानियों का सच्चाई से कोई संबंध प्रमाणित हो |
प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों के प्रभाव से भूकंप वर्षा बज्रपात एवं आँधीतूफ़ान जैसी घटनाएँ घटित होती हैं उन्हीं प्राकृतिक परिवर्तनों के प्रभाव से रोग या महारोग (महामारियाँ) आदि जन्म लेते हैं | प्रकृति के स्वाभाविक परिवर्तनों का अनुसंधान किए बिना न तो मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है और न ही महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
महामारियों से संबंधित अनुसंधानों कुछ वास्तविक मौसम वैज्ञानिक खोजने होंगे |जो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों अन्यथा यदि प्रकृति के स्वभाव को समझना इतना ही आसान होता तो इस प्रकार की परिस्थितियाँ पैदा ही न हुई होतीं और अब तक महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगा लिया गया होता | महामारी के बिषय में पूर्वानुमान लगाने से पहले मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक है उन्हीं मौसमी घटनाओं के आधार पर भावी महामारियों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
मौसम संबंधी अनुसंधानों के अभाव में नहीं लगाए जा सके महामारियों के विषय में पूर्वानुमान ! महामारियों से संबंधित अनुसंधानों के क्षेत्र में यदि कुछ भी प्रगति हुई होती तो वह दिखाई भी पड़ती क्योंकि अनुसंधान तो हमेंशा चलते हैं निकलता उनसे क्या है ये उन्हीं को पता होगा जो महामारियों से संबंधित अनुसंधानों की जिम्मेदारी सँभालते हैं | जनता को भी अब लगने लगा है कि वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं को महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने के लिए चार सौ वर्ष तो दिए जा चुके आखिर कितना समय और दिया जाना चाहिए तब वे महामारियों के बिषय में किसी निश्चित निष्कर्ष पर पहुँच सकेंगे |
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