बुधवार, 29 दिसंबर 2021

5.जलवायु परिवर्तन का कितना प्रभाव पड़ा ?

  एशिया में 20 हजार साल पहले भी आई थी महामारी 

28 जून 2021 को प्रकाशित -अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के विश्वविद्यालयों में प्राचीन मानव जीन संरचना के अध्ययन से पता चला है कि मौजूदा चीन, जापान, मंगोलिया, उत्तर कोरिया, दक्षिण कोरिया और ताइवान के इलाके में कोविड-19 जैसी महामारी 20 हजार साल पहले भी आई थी। लेकिन यह एक बार आकर खत्म हो गई थी। बीते 20 साल में भी कोरोना वायरस तीन बार आई महामारियों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इस दौरान सबसे पहले फैले सार्स-कोरोना वायरस से श्वसन तंत्र को गंभीर नुकसान हुआ था। यह बीमारी 2002 में चीन से ही पैदा हुई थी और उससे 800 से ज्यादा लोग मारे गए थे। जबकि मर्स-कोरोना वायरस पश्चिम एशिया में पैदा हुआ, उसने भी श्वसन तंत्र पर हमला किया। उससे 850 से ज्यादा लोग मारे गए। वर्तमान में सार्स-कोरोना वायरस-2 के कारण कोविड-19 महामारी फैली है जिससे अभी तक दुनिया में 39 लाख लोग मारे जा चुके हैं।
       20 हजार साल पहले कोरोना वायरस के कारण हुई तबाही के बारे में क्वींसलैंड यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया सैन फ्रांसिस्को और यूनिवर्सिटी ऑफ एरिजोना ने अध्ययन किया है। यह अध्ययन करेंट बायलॉजी नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है। वैज्ञानिक दल ने 2,500 से ज्यादा मानव जीनोम का अध्ययन किया। ये जीनोम दुनिया के 26 भू भागों से संकलित किए गए थे। इन सब पर कोरोना वायरस से फैली बीमारी का अध्ययन किया गया। 


 

 

 

 

जलवायु परिवर्तन और महामारी !

  महामारी के पैदा होने और समाप्त होने में जलवायु परिवर्तन की भी अहम् भूमिका बताई जाती रही है |6 दिसंबर 2020 को जिनेवा: विश्व स्वास्थ्यसंगठन (WHO) के प्रमुख टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेससने कोरोना वायरस महामारी को लेकर बड़ा दावा किया था | एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए  WHO चीफ ने कहा था कि कोरोना वायरस दुनिया के लिए अंतिम महामारी संकट नहीं है. टेड्रोस ने कहा कि अगर हम जलवायु परिवर्तन और पशु कल्याण काे लेकर हल नहीं ढूंढ पाते, तो मानव स्वास्थ्य को बेहतर करने वाले हमारे सभी प्रयास व्यर्थ साबित होंगे |
    ऐसी परिस्थिति में यदि इस बात को मान भी लिया जाए कि महामारी पैदा होने या समाप्त होने में या संक्रमितों  की संख्या  बढ़ने  या कम  होने में  जलवायु परिवर्तन की भूमिका हो सकती है |  तो जलवायु परिवर्तन होने का कारण क्या  हो सकता है | यह प्राकृतिक है या मनुष्यकृत  ! इसमें किस प्रकार के बदलाव आने पर महामारी जैसी परिस्थितियाँ पैदा होती हैं | इसका पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है आदि का पता किए बिना महामारी पर  जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पड़ता है  या नहीं किस प्रकार पड़ता है आदि बातों का पता लगाए बिना महामारी इसके प्रभाव को कैसे समझा जा सकता है | 

     जलवायु परिवर्तन एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, किन्तु मानवीय गतिविधियों द्वारा जलवायु परिवर्तन की दर में आई वृद्धि चिंता का विषय है। प्राकृतिक कारणों से होने वाले जलवायुपरिवर्तन से पर्यावरण प्रभावित होता है तथा मानवीय गतिविधियों द्वारा पर्यावरण प्रदूषित होने से जलवायु प्रभावित होती है।कुलमिलाकर जलवायु की दशाओं में यह बदलाव प्राकृतिक भी हो सकता है और मानव के क्रियाकलापों का परिणाम भी। ग्रीनहाउस प्रभाव और वैश्विक तापन को मनुष्य की क्रियाओं का परिणाम माना जा रहा है जो औद्योगिक क्रांति के बाद मनुष्य द्वारा उद्योगों से निःसृत कार्बन डाई आक्साइड आदि गैसों के वायुमण्डल में अधिक मात्रा में बढ़ जाने का परिणाम बताया जा रहा  है।

    20 Jul 2021-भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान’ (आईआईएसईआर) भोपाल के वैज्ञानिकों ने एक सांख्यिकीय मॉडल विकसित किया है जो गर्मियों में तापमान और भारत में विस्तृत जलवायु विसंगतियों का पूर्वानुमान व्यक्त कर सकता है। यह मॉडल पिछली सर्दी के मौसम के आंकड़ों का इस्तेमाल कर पूर्वानुमान बताता है।मॉडल विकास और भविष्यवाणी अध्ययन के परिणाम हाल ही में ‘इंटरनेशनल जर्नल ऑफ क्लाइमेटोलॉजी’ में प्रकाशित हुए हैं।यह मॉडल गर्मियों के तापमान का पूर्वानुमान व्यक्त करने के अलावा विभिन्न  मौसमी  पैमानों में संबंध और बीते 69 सालों में गतिशील रूप में उन्होंने कैसे विकास किया इसे समझने में भी मदद करता है।
   वैज्ञानिक अनुसंधानों के क्षेत्र में ऐसे दावे कोई नई बात नहीं है किंतु जब तक परीक्षण  सही न घटित हों तब तक इन पर विश्वास करके महामारी के विषय में कोई निर्णय लेना उचित नहीं होगा |

      मानव निर्मित है  जलवायु परिवर्तन : 5 मई 2020 : दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिक इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव-प्रेरित है और चेतावनी देता है कि तापमान में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव मानव गतिविधि द्वारा बढ़ाए जा रहे हैं। इसे जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है। मानव गतिविधियों ने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि की है, जिससे तापमान बढ़ रहा है। चरम मौसम और पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ संभावित प्रभावों में से हैं।जलवायु में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव आते हैं |

    जलवायु परिवर्तन :             

21अप्रैल 2020 - कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू ! कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहां अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल रही है.|
 22 अप्रैल 2020 - कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका खस्ताहाल ! ट्रंप पर बड़ी आफत !अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा 18 साल तक चला. यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका  हुआ है |
30  मई 2020- भारत में
जलवायु परिवर्तन का मजाक :

29 दिसंबर  2017  ट्रंप ने ग्‍लोबल वार्मिंग का बनाया मजाक, कहा- बर्फीली हवाओं से दिलाएगा राहत दुनिया
अमेरिका का पूर्वी क्षेत्र इन दिनों कड़ाके की सर्दी से गुजर रहा है। सर्द हवाओं ने आम जनजीवन को पूरी तरह अस्‍त-व्‍यस्‍त कर दिया है, पर अमेरिका के राष्‍ट्रपति डोनाल्‍ड ट्रंप ने इस मौके का इस्‍तेमाल ग्‍लोबल वार्मिंग पर तंज कसने के लिए किया। उन्‍होंने मजाकिया लहजे में कहा कि धरती के बढ़ते तापमान से शायद कड़ाके की सर्दी से निपटने में मदद मिल सके। 

29 जनवरी 2019 को शाम में भयानक ठंड का शिकार हुए मिडवेस्ट रीजन का हवाला देते हुए ट्रंप ने ग्लोबल वार्मिंग को ताना मारते हुए उसे तेजी से वापस आने के लिए कहा है।ट्रंप ने ट्वीट किया कि, 'खूबसूरत मिडवेस्ट में ठंडी हवाओं के चलते तापमान माइनस 60 डिग्री तक पहुंच गया है। ठंड ने रिकॉर्ड तोड़ दिया है। आने वाले दिनों में और भी ठंडा होने की उम्मीद है। लोग एक मिनट के लिए भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के साथ क्या हो रहा है? कृपया तेजी से वापस आएं, हमें आपकी आवश्यकता है!'

22 मई 2020 - कोरोना को लेकर अपने देश के वैज्ञानिकों पर भड़के ट्रंप, कही ये बातडोनाल्ड ट्रंप ने हफ्ते में दो बार कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की बात बेसिर पैर की है. उनकी बातों में कोई सबूत नहीं है|देश के कई बड़े वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह को खारिज करते हुए ट्रंप लॉकडाउन हटाना चाहते थे | 

        जलवायु परिवर्तन है क्या ?

        वैज्ञानिक अनुसंधान के क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन के नाम पर बहुत बड़ा झूठ बोला  जा रहाहै | जहाँ एक ओर आज के चार दिन बाद कहाँ क्या होगा इस बात के विषय में कोई पूर्वानुमान बताना हो तो सौ तीर तुक्के लगाए जाते हैं फिर भी गलत निकल जाते हैं उन्हीं वैज्ञानिकों से यदि यह पूछ दिया जाए कि आज के दो सौ वर्ष बाद जलवायु परिवर्तन के कारण प्राकृतिक क्षेत्र में कितना बदलाव आ सकता है तो हमारे वैज्ञानिकों को सबकुछ पता होता है सूखा पड़ेगा बाढ़ आएगी आँधी तूफ़ान आएँगे बार बार भूकंप आएँगे ग्लेशियर तेजी से पिघलेंगे उससे समुद्रों का जल बढ़ जाएगा भविष्य को लेकर न जाने कितनी अफवाहें फैलाई जाती हैं जबकि विज्ञान का उद्देश्य अफवाहें फैलाना  तो नहीं है |

    वैसे भी दस पाँच दिन पहले की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में हमारे वैज्ञानिकों को भले कुछ पता न हो किंतु दस बीस वर्ष या दस बीस हजार वर्ष पहले या बाद की जानकारी वे अत्यंत आत्म विश्वास के साथ बोल रहे होते हैं उसका कारण न मैं तब था और न मैं आगे रहूँगा वर्तमान में ऐसा बोलने से यदि अपनी वैज्ञानिकता सुरक्षित रहती है तो बुराई भी क्या है ?


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