महामारी के अचानक आ जाने के कारण इससे होने वाले रोगों की पहचान कर पाना संभव न था इसलिए कुछ उपायों की परिकल्पना की गई जिससे महामारी जनित संक्रमण का विस्तार कम से कम हो |
1. मॉस्क धारण अनिवार्य किया गया
2. शोशल डिस्टेंसिंग अपनाने को कहा गया
3. बार बार लॉक डाउन लगाया गया
4. सैनिटाइजर का प्रयोग अनिवार्य किया गया
5. फल सब्जियों को गर्म पानी से धोकर खाने कीसलाह दीगई
6. एकांत बॉस
ये सब उपाय ऐसे रोगों की औषधि खोजे जाने तक बचाव के लिए अपनाने की सलाह दी गई थी बाद में इन्हीं उपायों का उपयोग चिकित्सकीय औषधि की तरह किया जाने लगा !जब जब कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ती तब तब इसके लिए मॉस्क न लगाने वालों एवं शोशल डिस्टेंसिंग का पालन न करने वालों को जिम्मेदार मान लिया जाता था | महामारी पर विजय प्राप्त करने के उद्देश्य से इन्हीं उपायों का शक्ति से पालन करवाया जाने लगता | धीरे धीरे ऐसी परिस्थिति बनती चली गई कि ऐसे उपायों का उपयोग महामारी चिकित्सा की तरह करना पड़ा | जब जब जहाँ कहीं संक्रमितों की संख्या बढ़ती वहाँ शक्ति बरतनी प्रारंभ कर दी जाती | उपायों के नाम पर वही शोशल डिस्टेंसिंग,मॉस्क धारण, सैनिटाइजर का प्रयोग आदि वही सब कुछ |
शोशलडिस्टेंसिंग, मॉस्कधारण,एकांतबॉस-
कोरोनाकाल में दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों से जो परिश्रमी वर्ग निकला उसके लिए भोजन जुटाना मुश्किल था | वह मॉस्क धारण,शोशल डिस्टेंसिंग,लॉक डाउन,सैनिटाइजर ,एकांत बॉस का पालन कैसे कर लेता जिसके पास अपना कोई घर ही नहीं था,कारोबारियों के निकल देने के कारण भोजन भी नहीं था ,पैसे थे ही नहीं ऐसी परिस्थितियों घर से निकलने के अतिरिक्त उनके पास कोई विकल्प ही नहीं था | कोविड नियमों का पालन न कर पाना उनकी मज़बूरी भी थी | उनके साथ छोटे छोटे बच्चे भी थे बूढ़े भी थे रोगी भी थे और आसन्न प्रसव महिलाएँ भी थीं जिनके उसी परिस्थिति में प्रसव भी हुए | उन्हें रास्ते चलते जिसने जहाँ कहीं जो कुछ भी जैसे भी हाथों से दिया | वही खा लेना उनकी और उनके बच्चों बूढ़ों आदि की मज़बूरी थी | रास्ते में सबके साथ रखना खाना पीना सोना जागना सब कुछ चलता रहा इसके बाद भी उन्हें कोरोना नहीं हुआ |
नगरों महानगरों में कारोबार करने वालों के यहाँ एक एक हाल में पचासों लोग एक साथ रहते खाते पीते और सोते जागते देखे जाते थे | ऐसी बस्तियों में रहने वालों ने न कभी मॉस्क लगाया और न ही किसी अन्य कोविड नियम का पालन किया किंतु इस बहुत बड़े वर्ग को प्रायः कोरोना नहीं हुआ या फिर बहुत कम हुआ | यदि ऐसे भीड़ भरे स्थानों पर किसी एक व्यक्ति को कोरोना हो भी जाता तो उसके साथियों को कोरन्टाइन करने का नियम बनाया गया था किंतु यहाँ वह भी संभव नहीं हुआ इसके बाद भी प्रायः ऐसा देखा गया कि उस भीड़ में संक्रमित के साथ रहते रहे दूसरे लोग भी संक्रमित नहीं हुए |
नगरों महानगरों में गरीबों के छोटे छोटे बच्चे कोरोना नियमों का पालन किए बिना दिन
दिन भर भोजन की तलाश में घूमते जहाँ जो जैसे हाथों से दिया जाता वो खा लेते
!जहाँ भोजन बँटते देखते वहाँ उस भीड़ भरी लाइन में लग जाते ! जो मिलता वो खा लेते किंतु उन्हें कोरोना नहीं हुआ ?
इसी प्रकार से घनी
बस्तियों के छोटे छोटे मकानों में बसी बस्तियाँ जिनके पास पतली पतली गलियों से निकलने के अतिरिक्त और कोई दूसरा विकल्प भी नहीं था ,कुछ परिवार
तो ऐसे भी होते हैं जहाँ एक छोटे से मकान में अट्ठाइस तीस सदस्य भी रहते
देखे जाते हैं उनके पास एक या दो लेट्रिन बाथरूम थे उनमें सोने जागने
खाने पीने नहाने धोने में एक दूसरे के संपर्क में आने से बचना संभव ही
नहीं था | दूसरे के तौलिए इस्तेमाल करना एक दूसरे का जूठा खाना पीना आदि
सब कुछ चला करता था | महानगरों में तो ऐसी बस्तियाँ अलग से चिन्हित हैं |
जिनकी गलियों में भी एक दूसरे का शरीर स्पर्श किए बिना निकलना संभव ही नहीं
था | ऐसे सामान्य परिवारों में खाद्य सामग्री जुटाना मुश्किल था ये इतने
लोगों के लिए मास्क और सैनिटाइजर कैसे लाते इसके लिए पैसे कहाँ से आते
!बच्चे बूढ़े रोगी या आसन्नप्रसूता महिलाओं की व्यवस्था इन्हें ही करनी थी
जिसके लिए ये दैनिक कमाई पर आश्रित थे जहाँ काम था उनसे ही उधार व्यवहार ले
लिया करते थे उनका काम बंद होगया थो उन्होंने भी देना बंद कर दिया अब
वे किससे माँगकर काम चलाते और कैसे कोरोना नियमों का पालन करते | कुलमिलाकर रोज कमाने खाने वाले इस वर्ग को ऐसे कोरोना नियम किसी कठोर सजा के समान थे जो उन्हें भुगतने के लिए विवश होना पड़ा |
कोरोना नियमों की नींव रखने वाले वैज्ञानिकों का आकलन था कि ऐसे स्थानों या अवसरों पर कोरोना संक्रमितों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाएगी | ऐसे लोग जहाँ जाएँगे वहाँ कोरोना फैलाएँगे किंतु ऐसा कहीं कुछ होते देखा नहीं गया ! ऐसे भीड़ भरे स्थानों पर यदि कुछ लोगों को कोरोना हो भी गया तो उनकी संख्या बहुत कम थी एवं उनके संपर्क में रहने वालों को कोरोना नहीं हुआ |
दूसरी तरफ नगरों महानगरों में संपन्न वर्ग ने पूरी तरह से कोरोना नियमों का पालन किया उन्होंने किसी को छूने या कहीं आने जाने से, किसी के साथ मिलने जुलने से किसी का कुछ दिया खाने से पूरी तरह बचाव किया | सब्जी फल जैसी वस्तुएँ नौकरों से मँगाई जाती थीं चौबीस घंटे बाहर रखी रहने दी जाती थीं इसके बाद गर्म पानी में डाल दी जाती थीं उसके बाद उपयोग में लाई जाती थीं | इसके बाद भी उन लोगों में से बहुतों को कोरोना हुआ जो कभी किसी के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क में ही नहीं आए थे |
कोरोना
काल में बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियों में उमड़ती रही भारी भीड़ों में
किसी भी प्रकार से कोरोना नियमों का पालन नहीं किया जा सका | दिल्ली में
चल रहे किसान आंदोलन में कभी कोरोना नियमों का पालन नहीं किया गया
?हरिद्वार के कुंभ मेले की भीड़ में कभी कोरोना नियमों का पालन नहीं हुआ ! नगरों महानगरों में कोरोना काल की धनतेरस दीपावली जैसे त्योहारों की बाजारों में उमड़ने वाली भारी भीड़ों में कभी कोरोना नियमों का पालन होते नहीं देखा गया | इसके बाद भी वहाँ कोरोना नहीं बढ़ा !
दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में न चुनाव हुए न चुनावी रैलियाँ हुईं ,न कुंभ मेला हुआ यदि कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण कोरोना नियमों का न पालन करना ही था तो यहाँ कोरोना संक्रमितों की संख्या बढ़ने का कारण क्या था ?
जहाँ तक फलों और सब्जियों को धोकर खाने से कोरोना संक्रमण से बचाव की बात कही जाती थी तो तंजानियाँ जैसे जिन देशों में फलों सब्जियों के अंदर भी परीक्षण करने पर कोरोना संक्रमण पाया गया ,कई देशों के पशु पक्षियों में कोरोना संक्रमण पाया गया,नदियों नालों तालाबों के पानी में कोरोना संक्रमण मिला पाया गया | हवा में कोरोना विद्यमान है ऐसा उन्हीं वैज्ञानिकों के द्वारा स्वीकार किया गया | ऐसी परिस्थिति में जो कोरोना संक्रमण प्रकृति में ही विद्यमान था उससे मनुष्य कृत कोविड आदि नियमों के पालन जनित प्रयासों से बच कैसे संभव था !
विशेष बात यह है कि कोरोना संक्रमण बढ़ने के लिए जिम्मेदार जो कारण वैज्ञानिकों ने माने थे वे विद्यमान होने पर भी लोगों को कोरोना संक्रमण नहीं हुआ और जिन नियमों का पालन करके कोरोना से बचाव की सलाह दी गई थी उन नियमों का पालन करने वालों का भी कोरोना से बचाव नहीं हुआ |
ऐसी परिस्थिति में कोरोना नियमों के नाम पर जो नियम पालन करने के लिए जनता को विवश किया गया ,उनके काम धंधे रोके गए ,अध्ययन अध्यापन रोका गया,शादी विवाह कामकाज आदि ठप्प कर दिए गए |मॉक्स धारण ,लॉक डाउन जैसे नियमों का पालन करने के लिए विवश किया गया | ऐसे नियमों के पालन की आवश्यकता थी भी या नहीं ?
कुलमिलाकर जिन्हें कोरोना होना था वे जहाँ कहीं भी जितनी पाबंदियों में भी रहे कितना भी कोविड नियमों का पालन किया इसके बाद भी उन्हें कोरोना हुआ और जिन्हें नहीं होना था वे कोरोना नियमों का पालन किए बिना ही कितने भी खुले घूमते रहे इसके बाद भी वे कोरोना से संक्रमित नहीं हुए |
ऐसे कोरोना नियमों के पालन का यदि कोरोना संक्रमण बढ़ने घटने से कोई लेना देना नहीं था तो ऐसे समय उनका पालन करने के लिए महामारी से घबड़ाए हुए समाज को इस प्रकार से विवश क्यों किया गया जबकि एक ओर महामारी उन्हें रौंद ही रही थी | यदि महामारी से बचाव के लिए कोई सार्थक अनुसंधान नहीं किया जा सका था तो अपनी उपस्थिति दर्ज कराने का यह तरीका कितना उचित था ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें