बुधवार, 29 दिसंबर 2021

1. महामारी का कारण प्रतिरोधक क्षमता की कमी थी या महामारी की संक्रामकता ? - 00000000000000

           महामारी प्रारंभ होने की जानकारी मिलने के साथ साथ ही भारी संख्या में लोगों का रोगी होना प्रारंभ हो जाता है उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु भी होने लगती है चिकित्सा से कोई लाभ नहीं होते देखा जाता है चारों ओर अफरातफरी का वातावरण होता है तरह तरह की अफवाहें फैल रही होती हैं | समय बहुत कम होता है ऐसी परिस्थिति में रोगों को पहचानना सबसे बड़ी चुनौती होती है |वैसे भी महामारी के समय होने वाले रोगों  की पहचान करना अत्यंत जटिल कार्य होता है और रोग की पहचान किए बिना उसकी चिकित्सा करना उससे कठिन कार्य होता है | रोग की पहचान किए बिना ही चिकित्सा करने लगना चिकित्सा धर्म की दृष्टि से अपराध माना गया है आयुर्वेद में तो ऐसे चिकित्सक को प्राणदंड देने तक की बात कही गई है -

          भेषजं केवलं कर्तुं यो न जानाति चामयम् |वैद्यकर्म स चेद् कुर्याद् बधमर्हति राजतः | 

   ऐसी परिस्थिति में महामारियों का पूर्वानुमान लगाने में असफल वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं  के लिए महामारी आने से पहले उसके विषय में कुछ जान समझ पाना बिल्कुल कठिन होता है इसलिए इतनी जल्दी तुरंत रोग परीक्षण करना संभव ही नहीं हो पाता है | कई बार तो महामारियों के विषय में महीनों वर्षों बीतते देर नहीं लगती है और चिकित्सकों के द्वारा अँधेरे में ही तीर चलाए जा रहे होते हैं | 
      ऐसे समय में हो रहे रोगों के लक्षणों के आधार पर उनके विषय में एक बार जो समझ बनाई जा रही होती है अगले ही दिन वो गलत निकल जाती है ऐसे में चिकित्सा कैसे प्रारंभ की जाए और यदि चिकित्सा न प्रारंभ की जाए तो लोगों को रोग पीड़ा से तड़पते मृत्यु को प्राप्त होते कब तक और कैसे देखते रहा जाए | चिकित्सकों के लिए ये सबसे बड़ा धर्म संकट होता है | 
   कोरोना महामारी के समय में भी महामारी को पहचानने के नाम पर काफी समय तक अँधेरे में ही तीर चलाए जाते रहे | ऐसी परिस्थिति में महामारी जनित रोगों की पहचान या तो की नहीं जा सकी जो की गई उसके आधार पर महामारी के विषय में जो जो अनुमान लगाए जाते रहे वे संपूर्ण रूप से गलत निकलते रहे|
      ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा की दृष्टि से रोगजनकों का रूपांतर बहुत तेजी से होता है उस समय रोग की पहचान हो पाना काफी कठिन होता है इसलिए किसी एक रोग को पहचान कर जब तक उसकी चिकित्सा प्रारंभ की जाती है तब तक उस रोग का स्वरूप ही बदल चुका होता है उस बदले हुए  स्वरूप की चिकित्सा करते करते उसका स्वरूप बदलकर कुछ और हो जाता है | इस प्रक्रिया में शरीर दिनोंदिन दुर्बल होता चला जाता है और रोग का प्रभाव बढ़ता चला जाता है | रोगी का स्वस्थ हो पाना दिनोंदिन कठिन होता चला जाता है |
     ऐसे समय में महामारी जनित रोगों को समझने के लिए चिकित्सकों को कुछ समय चाहिए होता है उतने समय में महामारी का प्रभाव काफी बढ़ जाता है | ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकों को रोग समझने में जितना समय चाहिए होता है उतने समय तक स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से सहायक शक्ति के रूप में जनता की रोग प्रतिरोधक क्षमता से बहुत मदद मिलते बताई जाती है |इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता की बहुत बड़ी भूमिका होती है जिसके बलपर महामारी का हमला हो जाने के कुछ समय बाद तक उस रोग प्रतिरोधक क्षमता के बल पर महामारी जनित पीड़ा को सहने में शरीर कुछ सक्षम बने रहते हैं जिससे स्वास्थ्य के क्षेत्र में ज्यादा नुक्सान नहीं होने पाता है | इसी बीच महामारी को समझकर उससे मुक्ति दिलाने के लिए  आवश्यक औषधियों का निर्माण कर लिया जाता है |  
     रोग प्रतिरोधक क्षमता को ऐसा महान कवच बताया जाता है जिसके बल पर किसी व्यक्ति की रोगों महारोगों महामारियों आदि से  सुरक्षा होती रहती है | कहा जाता है कि विटामिन, मिनिरल्स, एमिनो एसिड और हर्बल एक्स्ट्रैक्ट्स घी दूध मेवा आदि रस रसायनों के सेवन से उचित रहन सहन आदि को अपनाकर पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सकता है उससे शरीर सुदृढ़ हो सकते हैं| जिससे संभव है कि एक सीमा तक ऋतुजनित रोगों पर अंकुश  लगाया भी जा सकता है | 
 
                       उपाय और शंकाएँ     

   स्वास्थ्य सुधार के लिए रोग प्रतिरोधक क्षमता की बहुत आवश्यकता होती है |इसके अभाव में किसी रोगी का शीघ्र स्वस्थ होना कठिन माना जाता है |इसके लिए सही मात्रा में पोषक तत्व लेते रहना होता है इससे शरीर की प्रतिरक्षा-प्रणाली मजबूत रहती है  | इसके लिए कई तरह के विटामिन, मिनिरल्स, एमिनो एसिड और हर्बल एक्स्ट्रैक्ट्स की जरूरत पड़ती है.खान-पान औरजीवनशैली में कुछ बदलाव करके जरूरी पोषक तत्वों की कमी को पूरा कर सकते हैं |अच्छा स्वास्थ्यकर खान पान रहन सहन आदि अपनाकर  रोग प्रतिरोधक क्षमता तैयार करके महामारी जैसे  महारोग पर अंकुश लगाए जाने की विषय में बिचार किया जा रहा है |

      गरीबों ग्रामीणों किसानों आदिवासियों के पास तो साधनों का अभाव माना जा सकता है खान पान के लिए पौष्टिक पदार्थों की व्यवस्था उतनी अच्छी नहीं हो पाती है | समय पर पूरे टीके नहीं लग पाते हैं चिकित्सकों की इतनी उपलब्धता नहीं होती है धन के अभाव में उतनी अच्छी व्यवस्था बन पाना कठिन होता है | इसलिए उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो सकती है यह बात तो समझ में आती है | 

 

 मैंने सुना है कि  स्वास्थ्य के अनुकूल अपनाए जाने वाले आहार विहार रहन सहन एवं समय समय पर ली जाने वाली विशिष्ट स्वास्थ्य सुविधाओं  का सेवन कर  लेने से  शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता का ऐसा निर्माण संभव है उससे महामारी जैसी  भयंकर आपदा से बचाव हो सकता है |

      ऐसी परिस्थिति में बरबस ध्यान उस अत्यंत साधन संपन्न वर्ग की ओर चला जाता है जो 
सभी अत्याधुनिक चिकित्सा सुविधाओं से युक्त होता है पारिवारिक चिकित्सक जन्म होने से पहले ही उस बच्चे की स्वास्थ्य सुरक्षा हेतु अपना अपना दायित्व सँभाल लिया करते हैं |उसी समय से दंपति को चिकित्सकों की गहन देखरेख में रखा जाने लगता है और उसे समय समय पर संभावित संतान को स्वस्थ और बलिष्ट बनाने के लिए औषधियों का सेवन कराया जाने लगता है | प्रसव के समय सावधानी बरतने के लिए बच्चे का जन्म भी चिकित्सकों के द्वारा करवाया जाता है उसके बाद वही चिकित्सकीय सघन सावधानी  बरती जाती है भविष्य में स्वास्थ्य सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए बच्चे को समय पर सारे टीके लगवाए जाते हैं | बच्चे को क्या खाने को देना है क्या नहीं पूरा डाइट चार्ट बनाया जाता है उसके अनुशार भोजन दिया जाता है | सारे जीवन के लिए फैमिली डॉक्टर रखने वाला यह वर्ग चिकित्सकों की सलाह पर अच्छे अच्छे टॉनिक पीता है ,आयरन कैल्शियम आदि का संतुलन बनाकर चलता है | दूध घी फल फूल मेवा आदि स्वास्थ्य के अनुकूल शक्तिवर्द्धक  खान पान अपनाने वाले वातानुकूलित सुख सुविधापूर्ण रहन सहन में रहने वाला साधन संपन्न वर्ग नियमानुसार तो प्रतिरोधक क्षमता से  संपन्न होना चाहिए था और संक्रमित होने से इसका बचाव होना ही चाहिए था |

      इस वर्ग ने सबसे अधिक कोविड नियमों का पालन भी किया है उसे बाहर निकलने की कोई मज़बूरी नहीं थी नौकरों से सामान  मँगाने से लेकर चिकित्सकों के द्वारा बताई जा रही विधि का पालन करते हुए उसका उपयोग करने वाला वर्ग ही सबसे अधिक संक्रमित हुआ है |

      इसलिए उनमें तो रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होती ही होगी | इसके बाद भी कोरोना महामारी के समय यह वर्ग सबसे अधिक संक्रमित हुआ इसका कारण क्या हो सकता है | 
    चिकित्सकीय संसाधनों से संपन्न अमेरिका जैसे विकसित देशों में जहाँ स्वास्थ्य व्यवस्था पर बहुत अधिक ध्यान दिया जाता है | इसी प्रकार भारत में अन्य शहरों की अपेक्षा दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में लोग स्वास्थ्य की दृष्टि से विशेष सावधान रहते हैं उन्हें स्वास्थ्य के अनुकूल वातावरण भी मिल जाता है इसलिए यहाँ के लोग विटामिन, मिनिरल्स, एमिनो एसिड और हर्बल एक्स्ट्रैक्ट्स लेकर पोषक तत्वों की कमी को अवश्य पूरी  कर सकते हैं |इसके बाद भी यहाँ के लोगों में  इतनी प्रतिरोधक क्षमता की कमी होने का कारण क्या था आखिर अन्य स्थानों की जगह ऐसे देशों शहरों में इतना अधिक संक्रमण बढ़ने का कारण क्या था ? सबसे अधिक यहीं का संपन्न वर्ग  महामारी की चपेट में क्यों आया ? कुछ लोग गंभीर रूप से बीमार हुए उनमें से कुछ लोगों की दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु भी हुई है |
 
      गरीबी में जीवन जीने वाला वर्ग, अपनी अपनी मजबूरियों के कारण  कोविड नियमों का  बिल्कुल पालन न कर पाने वाले  वर्ग को छोटे छोटे बच्चों के साथ कोविड काल में ही महानगरों से पलायन करना पड़ा उन्हें जहाँ जो जैसे हाथों से दिया लिया गया खाते पीते पैदल चले गए ! रास्ते में कई प्रसव भी हुए उस समास सबसे अधिक सावधानी की आवश्यकता होती है किंतु इन परिस्थितियों में वह संभव न था |घनी बस्तियों के छोटे छोटे घरों में रहने वाले साधन विहीन लोगों में दो गजदूरी संभव न थी मॉक्स धारण करना संभव न था , उन परिस्थितियों में भोजन के लिए सावधानी भी नहीं बरती जा सकती थी |   गरीबों ग्रामीणों मजदूरों श्रमिकों झुग्गी झोपडी वालों को उनके छोटे छोटे बच्चों को बिना मॉस्क के बिना शोशल डिस्टेंसिंग के ही भोजन के लिए दिन दिन भर लाइनों में लगना पड़ता था | शहरों में सब्जी एवं फल विक्रेता रेड़ी पटरी वाले पूरे कोरोना काल में गली गली में जा जाकर सब्जी फल आदि बेचते रहे | गरीबों ग्रामीणों साधन विहीनों में प्रतिरोधक क्षमता पर्याप्तहोने का कारण क्या था ?गरीबों के तो बचपन में लगाए जाने वाले टीके भी पर्याप्त नहीं लगे होते हैं | इन्हें नमक रोटी मुश्किल में मिलती है |  कोविड नियमों का  बिल्कुल पालन न करने पर भी ये वर्ग प्रायः स्वस्थ बना रहा |      
       इसी प्रकार से  मंदिरों के पुजारियों में, साधु संतों में ,रिक्सा चालकों में,दिल्ली में धरना पर बैठे किसानों में,कुछ प्रदेशों में हुई चुनावी रैलियों की भारी भीड़ों में महामारी का उतना दुष्प्रभाव नहीं दिखाई पड़ा जितना कि कोविड नियमों का संपूर्ण रूप से पालन करने वाले लोगों पर पड़ा है | 
     इसका कारण ऐसे लोगों के आसपास महामारी का प्रकोप कम था या इनमें रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक थी ?
        कुल मिलाकर महामारीकाल में जनता के जिस वर्ग ने परिस्थितिबशात मॉस्क नहीं लगाया !दो गज दूरी का पालन भी नहीं किया !पूरी तरह से संक्रमितों के संपर्क में रहा !जिसने जहाँ जैसे हाथों से जो कुछ भी दिया उसने वैसे ही बिना सैनिटाइज किए हाथों से खा भी लिया ,फिर भी ये वर्ग या तो संक्रमित नहीं हुआ और यदि संक्रमित हुआ भी तो उसे  पता ही नहीं लगा या थोड़ा बहुत पता भी लगा तो घर ही में सामान्य काढ़ा आदि पीकर स्वस्थ हो गया !कुछ लोगों को अस्पताल जाना भी पड़ा तो वहाँ चिकित्सा का लाभ लेकर स्वस्थ हुए और घर लौट आए | इस वर्ग के शरीरों में ऐसी क्या विशेषता थी कि महामारी प्रकुपित होकर भी ऐसे वर्ग का कुछ नहीं बिगाड़ पाई |

     भूकंप बाढ़ आँधी तूफानों की तरह ही महामारियों के वेग को  घटाया तो जा नहीं सकता है |अपने बचाव का रास्ता खोजा जा सकता है ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के एक बार प्रारंभ हो जाने के  बाद इन्हें रोका जाना मनुष्य के बश की बात नहीं  होती है |इसलिए इनसे बचाव के लिए दो बातें आवश्यक होती हैं पहली बात तो ऐसी महामारियों के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाए और पहले से उचित एवं स्वास्थ्य के अनुकूल दिनचर्य्या बनाकर संभावित संक्रमण से बचने का प्रयास किया जाए | 

  इस बात का अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है कि  महामारी की संक्रामकता पर प्रतिरोधक क्षमता का कितना प्रभाव पड़ सकता है | क्या प्रतिरोधक क्षमता के बलपर महामारी काल में भी संक्रमित होने से बचा जा सकता है | जिस वर्ग ने कोरोना नियमों का किसी भी प्रकार से पालन नहीं किया इसके बाद भी वो  संक्रमित नहीं हुआ |  ऐसी परिस्थिति में जो वर्ग संक्रमित नहीं  हुआ और जो वर्ग बहुत अधिक संक्रमित हुआ उन दोनों वर्गों में ऐसी क्या विशेषता या कमी थी कि महामारी का प्रभाव दोनों पर पड़ा किंतु दोनों वर्गों पर उसके परिणाम अलग अलग प्रकार के अर्थात एक दूसरे से बिल्कुल विपरीत दिखाई पड़े |

       संक्रमित होने और न होने वाले सभी लोग लगभग एक जैसे खाद्य पदार्थों का सेवन कर रहे थे ,एक जैसी हवा में साँस ले रहे थे इसके बाद भी उनमें से कुछ प्रतिशत लोग संक्रमित हुए एवं कुछ प्रतिशत लोगों की मृत्यु हुई जबकि कुछ प्रतिशत लोग पूरी तरह  स्वस्थ बने रहे |

    यदि महामारीजनित संक्रमण अपना प्रभाव सब पर एक समान रूप से डाल रहा था !इसलिए महामारी संपूर्ण प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान थी |अतः खाने पीने की सभी वस्तुएँ महामारी के  बिषैलेपन से प्रदूषित हो चुकी थीं |हवा पानी यहाँ तक कि वृक्ष बनौषधियाँ तक सभी  महामारी से  संक्रमित थे | ऐसी परिस्थिति में सिद्धांततः संक्रमण का प्रभाव सभी पर लगभग एक जैसा दिखाई पड़ना चाहिए था किंतु ऐसा न दिखाई पड़ने का कारण क्या था | एक जैसे वातावरण और खान पान का अनुपालन करते हुए कुछ लोग तो भयंकर रूप से संक्रमित हुए उनमें से कुछ तो इतने अधिक संक्रमित हो गए कि उनकी मृत्यु हो गई जबकि बहुत लोगों के शरीरों पर महामारी का कोई प्रभाव ही नहीं पड़ा | इतने बड़े अंतर का कारण क्या हो सकता है | 

    मेरे बिचार  से उस बचाव के लिए जिम्मेदार निश्चित कारण को अवश्य खोजा जाना चाहिए | जिसे अपनाकर  महामारी मुक्त समाज का निर्माण किया जा सके | क्योंकि महामारियाँ तो हमेंशा आती और जाती रहती हैं भविष्य  में भी आती जाती रहेंगी ये तो प्राकृतिक घटनाएँ हैं इन्हें तो रोका नहीं जा सकता है अपने शरीरों में ही ऐसी प्रतिरोधक क्षमता  तैयार की जा सकती है जो महामारियों का सामना करने में सक्षम हो |

       भूकंप रोकना संभव नहीं है इसलिए भूकंपरोधी भवन बनाकर अपना बचाव कियाजा सकता है | महामारी के विषय में भी वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसे किसी महामारी कवच का आविष्कार किया जाना चाहिए जो भविष्य में आने वाली महामारियों से बचाव करने में सक्षम हो |

                                प्रतिरोधक क्षमता के निर्माण के लिए क्या किया जाए !

          इतनी भयंकर महामारी सारे विश्व को पीड़ित करती रही फिर भी जिन शरीरों को संक्रमित नहीं कर सकी उन शरीरों में ऐसी क्या विशेषता थी |वह खोजी जानी चाहिए !यदि थी तो वह विशेषता क्या थी इसके साथ ही वह जन्मजात  थी या फिर उनके द्वारा जाने अनजाने में अपनाए गए स्वास्थ्य के अनुकूल  आहार विहार खानपान रहन सहन एवं समय समय पर ली जाने वाली विशिष्ट स्वास्थ्य सुविधाओं  का सेवन करने से उनके शरीर महामारी का सामना करने में सक्षम हो गए थे | 



              दूसरी तरफ दिल्ली मुंबई में कोई चुनाव नहीं था कोई कुंभ मेला नहीं था !अन्य स्थानों की अपेक्षा ऐसे नगरों के लोग भी अधिक साधन संपन्न एवं सतर्क थे इसके बाद भी यहाँ कोरोना संक्रमितों की संख्या सबसे अधिक रही !इसका सुनिश्चित कारण क्या हो सकता है |

    ऐसी परस्पर विरोधी परिस्थितियों केपैदा होने का कारण प्रतिरोधक क्षमता की न्यूनाधिकता को मान भी लिया जाए तो जिनमें प्रतिरोधक क्षमता जितनी कम रही वे उतने अधिक संक्रमित हुए ऐसा कहा जासकता है | जिसमें जितनी अधिक रही उसका उतना अधिक बचाव हो गया है |

      इसका मतलब यह हुआ कि जो लोग महामारी से संक्रमित हुए या  मृत्यु हो गई उसका प्रमुख कारण महामारी न होकर अपितु  उनमें प्रतिरोधक क्षमता की कमी थी और जिनका बचाव हो गया उसका कारण उन पर महामारी का प्रभाव नहीं पड़ा हो ऐसा नहीं है अपितु उनमें प्रतिरोधक क्षमता का पर्याप्त मात्रा  में होना है |

      ऐसी परिस्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य महामारी समेत समस्त प्राकृतिक आपदाओंको घटित होने से रोकना नहीं अपितु उनसे जनता का अधिक से अधिक बचाव करना है | चिकित्सकों के द्वारा बचाव के लिए यदि कोविड नियमों के अच्छी तरह से पालन को एवं पर्याप्त प्रतिरोधक क्षमता को आवश्यक समझा गया है तो जो साधन संपन्न लोग अधिक संक्रमित हुए यदि उनमें प्रतिरोधक क्षमता की कमी थी तो उसका कारण अवश्य खोजा  जाना चाहिए ताकि भविष्य में आने वाली महामारियों से प्रतिरोधक क्षमता के बलपर जनता की सुरक्षा सुनिश्चित की जाए |

   भूकंप के झटकों से  कुछ घर  गिर जाएँ और बाकियों पर कोई प्रभाव न पड़े !इसके लिए भूकंप को उतना जिम्मेदार नहीं माना जाना चाहिए जितना  कि भवनों के निर्माण में बरती गई कमजोरी और लापरवाही होती है |

   इसी प्रकार से  महामारियों से  उतना नुक्सान नहीं होता है जितना कि उनसे बचाव के लिए मजबूत जानकारी का अभाव है | जनता को यह पता लगना चाहिए कि महामारी के इस डरावने समय में जिनपर महामारी का कोई प्रभाव पड़ा ही नहीं  उन शरीरों में ऐसी क्या विशेषता थी कि वे महामारी का सामना करने में सक्षम हो सके | 

 

 


 

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