महामारी हो या मौसम
प्राकृतिक घटनाओं का पीछाकरने में विज्ञान कहाँ है | पूर्वानुमानलगाने के लिए घटनाओं से आगे बढ़ना होगा | मौसमपूर्वानुमान के नाम पर जो होता है उसे जनता सहती ही है महामारी में वैज्ञानिक अनुसंधानों ने जो साथ दिया है उसे भी जनता कभी नहीं भूलेगी !प्राकृतिक घटनाओं के विषयमें क्या भविष्य में भी इसी प्रकार के वैज्ञानिक अनुसंधान होते रहेंगे या ऐसे कुछ वास्तविक अनुसंधान भी होंगे जिनसे प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी जैसी घटनाओं में कुछ मदद भी मिल सके |
महामारी मौसम एवं सभी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में अभी तक
हम कुछ भी खोजने में असफल रहे हैं जिसका दंड मनुष्य समाज सभी प्रकार की
प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों में भोगता है | ऐसे विषयों में उसे कुछ
पता नहीं है यह स्वीकार करने में संकोच होता है और पता न होने के कारण
आजतक कुछ किया नहीं जा सका है |
प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली प्रत्येक घटना का कारण समय है और समय से संबंधित विषयों में अनुसंधान की आवश्यकता समझी नहीं जाती है | इसलिए समय के प्रभाव से घटित होने वाली घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि कुछ भी नहीं लग पाता है |उसका कारण पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक विधा का न होना है | इसके बाद भी पूर्वमान लगाने के नाम पर कुछ तीर
तुक्के भिड़ाए जाते हैं | वे सही निकले तो पूर्वानुमान और गलत निकले तो
जलवायु परिवर्तन !वैज्ञानिक विधा के अभाव में इस प्रकार से काम चलाना पड़ता है |
प्रकृति हमेंशा समय का अनुगमन करती है जब जैसा समय बदलता है तब तैसे बदलाव प्रकृति में भी होते देखे जाते हैं | यही कारण है कि बारहों महीने जंगलों में खड़े पुराने से पुराने पेड़ अपनी अपनी ऋतुओं का इंतजार किया करते हैं | समय आने पर पतझड़
होकर उनमें नई नई कोपलें फूटने लगती हैं | समय के साथ वृक्ष स्वतः फूलने फलने
लगते हैं |इस प्रक्रिया में मनुष्य का हस्तक्षेप दूर दूर तक नहीं दिखाई
पड़ रहा होता है | इन वृक्षों का समय के साथ ऐसा घनिष्ट संबंध होता है कि निर्धारित ऋतुओं के अतिरिक्त किसी दूसरे समय में
खाद पानी आदि देकर मनुष्य यदि प्रयास भी करे तो भी इन वृक्षों में बिना समय के फूल फल आदि लगते
नहीं देखे जाते हैं |इसी प्रकार से भूकंप
आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ महामारी आदि समस्त प्रकृति एवं जीवन संबंधी
घटनाएँअपने अपने समय का इंतजार किया करती हैं समय आते ही घटित होने लगती
हैं |
जिसप्रकार से किसी ट्रेन में रिजर्वेशन होने पर यात्री गण पहले तो अपनी
अपनी ट्रैन का इंतजार कर रहे होते हैं | ट्रैन के आने पर अपने कोच का
इंतज़ार करते हैं उसके बाद अपनी सीट खोजकर उसमें बैठ लेते हैं | इसीप्रकार से बगीचों में खड़े वृक्ष अपने अपने समय का इंतजार कर रहे होते हैं | भूकंप
आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ महामारी आदि समस्त प्रकृति एवं जीवन संबंधी घटनाएँ भी अपने अपने समय का इंतज़ार किया करती हैं | जैसे जैसे इनके घटित होने का समय आता जाता है वैसे वैसे ये घटित होती जाती हैं |
किस यात्री को किस तारीख की
किस ट्रेन के किस डिब्बे की किस सीट पर बैठकर यात्रा करना है यह उसदिन
निश्चित हो गया होता है जिस दिन रिजर्वेशन हुआ होता है |इस यात्री को किस
महीने की किस तारीख को कितने बजे किस ट्रेन के किस कोच की किस सीट पर बैठकर
कहाँ से कहाँ तक की यात्रा करनी है | इस विषय में यदि बिल्कुल सही सही पूर्वानुमान लगाना है तो रिजर्वेशन टिकट खोजना होगा | केवल टिकट को देख लेने मात्र से भी दूर बैठे बैठे यह बताया जा सकता है कि अमुक व्यक्ति को किस तारीख की किस ट्रेन के किस डिब्बे की किस सीट पर बैठकर कहाँ से कहाँ तक की यात्रा करना है |
इसी प्रकार से अपने अपने घटित होने के समय का इंतजार कर रही भूकंप
आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ महामारी आदि समस्त प्रकृति एवं जीवन संबंधी घटनाएँ कब
कब घटित होंगी उसके लिए ऐसी घटनाओं की रिजर्वेशन टिकट अर्थात वह लेखा जोखा
खोजना होगा जिसमें इनके घटित होने का विवरण लिखा हुआ होता है | उस यात्री की ट्रेन टिकट यदि हाथ न लगे तो यात्रा के विषय में पूर्वानुमान की जगह कुछ तीर तुक्के ही लगाने पड़ेंगे |उस यात्री का पीछा करना होगा और यात्री के पीछे पीछे वहाँ तक जाना होगा जहाँ वह ट्रेन से उतरेगा |
पूर्वानुमान के नाम पर पीछा करने वाला व्यक्ति उस यात्री की यात्रा के
विषय में आँखों देखा हाल बताता चला जाएगा | जिधर जिधर वह जाएगा वैसा वैसा
बताता जाएगा | उसी के आधार पर कुछ अंदाजा लगाता चला जाएगा कि वो आज निकला
है इसका मतलब आज यात्रा कर सकता है | उधर जा रहा है इसका
मतलब उस प्लेटफार्म पर जा सकता है | यहाँ अमुक ट्रैन आने की संभावना है हो
सकता है उसी से जाए | किस बोगी में बैठ सकता है उस डिब्बे की किस सीट पर
बैठ
सकता है | यहाँ से कहाँ तक जा सकता है ये सब कुछ उसी प्रकार से अनुमान
आश्रित होता है जैसे मौसम वैज्ञानिक लोग उपग्रहों रडारों की मदद से वर्षा आँधी तूफ़ान आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के नाम पर आँखों देखा हाल बताया करते हैं | आकाश में किसी एक
स्थान पर घटित होती घटनाओं को देखकर उनकी गति और दिशा के अनुशार कब कहाँ पहुँच सकती हैं उसका अंदाजा बताया करते हैं | अभी में इसी
अंदाजा लगाने की इसी कला को मौसमविज्ञान कहा जाने लगा है |
विशेष बात यह है कि उस यात्री को अक्सर यात्रा करनी पड़ती है हर बार तारीख़ ,समय ,ट्रेन , कोच तथा गंतव्य आदि बदलता रहता है किंतु पीछा करने वाला व्यक्ति यदि कोई व्यक्ति हर बार एक जैसा पूर्वानुमान बताता चला जाएगा तो स्वाभाविक ही है कि हर बार एक जैसा घटित नहीं होगा |इसलिए वो यात्रा का आँखों देखा हाल पहले जैसा जो बताता जाएगा वैसा नहीं घटित होगा | इसका मतलब यह तो नहीं कि यह ट्रेन संबंधी जलवायु परिवर्तन है |
एक जैसी घटनाएँ घटित न होने का मतलब यह भी नहीं कि इनके विषय में
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है अपितु इसके लिए भी रिजर्वेशन टिकट
अर्थात प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का वास्तविक लेखा जोखा ही खोजना होगा | सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ हर बार अलग अलग समय पर अलग अलग प्रकार से घटित होती हैं फिर भी इसी विधि से पूर्वानुमान लगा लिया जाता है और सही घटित होता है |
अनुसंधानों के लिए हाथीविज्ञान
कुछ नेत्रहीन लोगों के द्वारा एक बार हाथियों का विस्तार जानने
के विषय में रिसर्च प्रारंभ की गई कि हाथियों का शरीर कैसा और कितना बड़ा
होता है |रिसर्च
करने की जिम्मेदारी जिन्हें सौंपी गई नेत्रहीन होने के कारण उन्हें कुछ
दिखाई तो पड़ता नहीं था इसलिए वे हाथी के शरीर को हाथों से टटोल टटोल कर ही
अंदाजा लगाने लगे कि हाथी का शरीर कैसा बना है |
उन नेत्रहीन लोगों ने हाथी का आकार प्रकार जानने
के लिए रिसर्चप्रक्रिया प्रारंभ की ?उनके पास एक हाथी लाकर खड़ा किया गया
और उनसे कहा गया कि हाथी का शरीर कैसा होता है पता करो | उन्होंने हाथी को न
कभी देखा था और न ही हाथी के बिषय में कभी कुछ सुना ही था | नेत्र थे नहीं
अब वो हाथों से टटो टटो कर ही हाथी के आकार प्रकार की परख करने लगे |
उन नेत्रहीन लोगों में
से हाथी की पूछ पर जिसका हाथ पड़ा वो कहने लगा कि हाथी पतला लंबा बिल्कुल
सर्प की तरह होता है | हाथी के पैरों पर जिसका हाथ पड़ा उसके अनुभव में हाथी मोटे खंभे
की तरह समझ में आया | हाथी के पेट पर जिसका हाथ पड़ा वह कहने लगा कि हाथी तो
पहाड़ की तरह होता है | हाथी के मुख में जिसका हाथ पड़ा उसे हाथी किसी कीचड़
युक्त दलदली कंदरा की तरह लगा | कुलमिलाकर हाथी के जिस अंग पर उनमें से जिस व्यक्ति का हाथ पड़ा वे हाथी का आकार प्रकार उसी हिसाब का समझने लगे |
इस प्रकार से हाथी के विषय में अलग अलग प्रकार के अनुभवों के साथ
रिसर्च संपन्न हुई उसके विषय में 'हाथीविज्ञान' के नाम से एक पुस्तक बनाकर
प्रकाशित कर दी गई बहुत बड़े आयोजन में बड़े लोगों के द्वारा किताब का
लोकार्पण किया गया | ऐसे वैज्ञानिक रिसर्च से कोई निष्कर्ष भले न निकला हो किंतु इसी को हाथीविज्ञान के
नाम से पाठ्यक्रम में सम्मिलित करके एक विषय के रूप में कॉलेजों में पढ़ाया
जाने लगा उस पर छात्रों से रिसर्च करवाया जाने लगा पी एच डी,डीलिट आदि
करवाया जाने लगा |
ऐसे हाथीविद्वानों के गाँव में एक बार पागल हाथी घुस आया और
उपद्रव करते हुए तहस नहस करने लगा | लोग उन हाथी वैज्ञानिकों से बचाव की
उम्मींद करते हुए उनके पास पहुँचे | वे हाथी वैज्ञानिकलोग हाथी को जिधर जाते देखते उधर के
विषय में अनुमान व्यक्त करने लगते !हाथी किसी का घर गिराने लगे तो कहने
लगते कि लग रहा है कि यह अब घर गिरा ही डालेगा | कुलमिलाकर हाथी को जो जो
कुछ करते देखते हाथी वैज्ञानिक भी उसीप्रकार की भविष्यवाणी करते चले जा
रहे थे | उनके अंदाजे में और समाज के अंदाजे में कोई अंतर ही नहीं था |
महामारी या मौसम संबंधी अनुसंधानों में यही तो होते देखा जा रहा है| बादलों को देखकर
वैज्ञानिक लोग वर्षा संबंधी पूर्वानुमान बता पाते हैं और बादलों को देखने
के बाद जनता को भी पता लग ही जाता है कि अब शायद पानी बरसेगा |दोनों के
देखने में अंतर केवल इतना है कि जनता के पास उपग्रहों रडारों आदि से देखने
की सुविधा नहीं है |इसलिए साधन संपन्न लोग कुछ पहले से देख लिया करते हैं
किंतु इस कला में प्रकृति के स्वभाव को समझने वाला विज्ञान तो नहीं ही है |
इसी प्रकार से ऐसे ही कुछ बाढ़वैज्ञानिक नदी की बाढ़ पर रिसर्च करने के लिए
नदी में उतरे और इसी उद्देश्य से नदी को पार करने लगे उन्हें यह पता ही
नहीं था कि नदी में कहाँ कितना गहरा है | वे डंडे से टटो टटो कर आगे बढ़ते
जा रहे थे जब उनका पैर किसी गहरे गड्ढे में पड़ता तब वे बाढ़पूर्वानुमान के
नाम पर शोर मचाने लग जाते कि बाढ़ बहुत है इसके बाद इसी क्रम में बाढ़ की
अधिकता के कारण गहराई इसी क्रम में आगे बढ़ती चली जाएगी | यह भविष्यवाणी
करते समय ही उनका पर अचानक किसी ऊँची जगह पड़ जाता जहाँ पानी बहुत कम रह गया
होता था तो वे सब ख़ुशी के मारे चिल्ला उठते कि अब आगे नदी में बाढ़ बिल्कुल
नहीं है
हमलोगों ने बाढ़ को पराजित कर दिया है | हमने बाढ़ को जीत लिया है !बाढ़ डर कर
भाग गई आदि आदि ऐसी वीरोक्तियों से अपना मनोबल बढ़ाते हुए वे कुछ समय के
लिए अपने को बाढ़वैज्ञानिक या बाढ़योद्धा मानने लगे ,इसी क्रम में अगले ही
क्षण नदी के अंदर कोई गहरा गड्ढा आया उसमें पैर चला गया और स्वयं बहने लगे
तो फिर चिल्ला पड़े बाढ़ भयानक है अभी और बढ़ने की संभावना है | उनसे पूछा गया कि आप कभी तो बाढ़ बढ़ने की भविष्यवाणी कर रहे थे अचानक कहने लगे कि नदी
में बाढ़ बिल्कुल नहीं है
हमलोगों ने बाढ़ को पराजित कर दिया है | हमने बाढ़ को जीत लिया है !बाढ़ डर कर
भाग गई आदि !कुछ देर बाद फिर भयंकर बाढ़ आने की चेतावनी देने लगे कारण क्या
था | उन्होंने कहा कि प्राकृतिक घटनाएँ आजकल ठीक से नहीं घटित होती हैं
नदी का तल इतना ऊँचा खाली है ये नदी संबंधी जलवायु परिवर्तन है | नदी का
तल तो एक समान बराबर होना चाहिए था | ऐसा कहीं संभव है कि प्राकृतिक
घटनाओं को हम अपने अनुशार घटित होने के लिए बाध्य करें |
उपग्रहों रडारों आदि की मदद से जहाँ तक घटनाओं को देखने
की तक बात है यह उसी प्रकार का विज्ञान है जिस प्रकार से किसी गाँव के एक
ओर जंगल पड़ता हो उससे अचानक निकल कर कभी कभी हाथी उस गाँव में उत्पात मचा
जाते हों गाँव वाले इकट्ठे होकर जब तक उन्हें भगाते तक काफी नुक्सान हो
जाता | उससे बचाव के लिए गाँव वालों ने गाँव की उस दिशा में कैमरे लगवा
लिए | जंगल से निकलकर गाँव की ओर आते हुए जब हाथी कैमरे में दिखाई देते तब
गाँव वाले इकट्ठे होकर उन हाथियों को खदेड़ दिया करते थे | इससे गाँव वालों
का से बच जाता था किंतु इसे हाथी विज्ञान तो नहीं कहा जा सकता है |
इसी प्रकार से उपग्रहों रडारों की मदद से चक्रवातों को देखकर यदि अपना संभावित नुक्सान कुछ कम कर लिया जाता है | इसका यह मतलब कतई नहीं है कि इसे चक्रवातविज्ञान मान लिया जाए | यदि किसी महीने में एक के बाद एक ऐसे यदि दस चक्रवात आने हों तो जैसे जैसे वे आते रहेंगे वैसे वैसे उपग्रहों
रडारों की मदद से बताए जाते रहेंगे कि अभी एक और आ रहा है किंतु यह कैसे
पता लगाया जाएगा कि इस वर्ष इस महीने में इतने अधिक चक्रवात क्यों आ रहे
हैं और ये कब तक आते रहेंगे ? यह पता लगाने के लिए कौन सा विज्ञान है ?
बाढ़ में भी ऐसा ही देखा जाता है उपग्रहों
रडारों की मदद से एक बार में जहाँ तक के बादल दिखाई पड़ते हैं उस हिसाब से
बता दिया जाता है कि 72 घंटे बरसेगा | इसके बाद इधर पानी बरसता रहता है उधर
बादलों कि चैन चलती रहती है तो फिर 72 घंटे और बरसने की भविष्यवाणी कर दी जाती है उसके बाद फिर 48 घंटे और बरसने की भविष्यवाणी कर दी जाती है तब तक घरों की पहली मंजिल डूब जाती है | अब लोग अपने आपसे कहीं जाने आने लायक भी नहीं बचते हैं | लोग उन भविष्यवाणियों को सच मानकर फँस जाते हैं | उन्हें यह पता होता कि इतनी अधिक वर्षा होगी तो पहले ही किसी सुरक्षित स्थान के लिए निकल लिए होते !किंतु यह पता लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है |
कुलमिलाकर ऐसे हाथीवैज्ञानिकों या बाढ़वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले
रिसर्चों से हाथियों या बाढ़ों को समझना संभव ही नहीं था किंतु अज्ञानवश
जिन्हें हाथी वैज्ञानिक या बाढ़ वैज्ञानिक मान लिया गया उनके वैज्ञानिक
रिसर्चों का अपने अपने विषयों को समझने में योगदान तो कोई रहा नहीं इसके बाद
भी कुछ लोग उन्हें योद्धा कह कर प्रोत्साहित करने लगें तो इतनी
जिम्मेदारी तो उन योद्धाओं की भी बनती ही थी कि निष्पक्ष भाव से अपनी आत्मा से पूछें कि वे हाथियों या बाढ़ों के स्वभाव को समझने
में कितने प्रतिशत सफल हुए |
वैज्ञानिक
अनुसंधानों के नाम पर ऐसी अवैज्ञानिक वैज्ञानिकता को स्वीकार करके मानव
समाज ने सबसे ज्यादा धूल अपनी आँखों में झोंकी है और सबसे अधिक धोखा
अपने आपको ही दिया है यदि ऐसा न किया गया होता तो महामारी या मौसम संबंधी
प्राकृतिक आपदाओं से पीड़ित समाज इतना बेबश नहीं होता कि मौसम संबंधी
प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों के समय उसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई
मदद ही नहीं मिल पाती है और प्राप्त परिस्थितियों से उसे अकेले ही जूझना पड़ता है | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान या तापमान के बढ़ने घटने के विषय में जिस प्रकार की
ढुलमुल नीति अपनाई जा रही होती है या जिस प्रकार की द्वयर्थी बातें बोल
बोलकर लीपापोती की जा रही होती है |वो अनुसंधान भावना के साथ ही उपहास
किया जा रहा होता है |
ऐसे प्राकृतिक वैज्ञानिक अनुसंधानों में पारदर्शिता दूर दूर तक देखने को नहीं मिल पा रही है | महामारी भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान या
तापमान के बढ़ने घटने के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते हैं तार्किक
कसौटी पर खरा उतरने लायक उनमें सच्चाई होती ही नहीं है | वे अँधेरे में तीर
चलाए जा रहे होते हैं उनमें क्या वैज्ञानिकता है कितने तीर तुक्के हैं यह
पता ही नहीं लग पाता है | वे आम जनता की तरह अंदाजे लगाए जा रहे होते हैं
वैज्ञानिक पूर्वानुमान बताए जा रहे होते हैं |
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