समयविज्ञान और महामारी !
'समयविज्ञान' भारत की वह प्राचीनवैज्ञानिक विधा है जिसके द्वारा 'समय'
'प्रकृति' और 'प्राणियों' में एक समान रूप से प्रतिपल परिवर्तित हो रही
परिस्थितियों का संयुक्त अध्ययन करना होता है उसके अनुशार भविष्य में घटित
होने वाली 'प्रकृति' और 'प्राणियों' से संबंधित घटनाओं के विषय में
पूर्वानुमान लगाना होता है एवं उन घटनाओं के घटित होने का अनुमानित कारण
खोजना होता है |इन्हीं तीन विंदुओं में संतुलन बैठाकर कुछ ऐसे अनुभव
जुटाने होते हैं जो सभी प्रकार की भविष्य संबंधी परिस्थितियों को समझने में
मदद कर सकें |
प्राचीन काल में शकुन अपशकुन के नाम में 'समय' 'प्रकृति' और 'प्राणियों'
में समान रूप से होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता रहा है|
प्रकृति या जीवन में कब क्या किस प्रकार का घटित होने जा रहा है | यह जानने
के लिए समय प्रेरित जड़ प्रकृति में उस समय प्रकट होने वाले चिन्हों का
अध्ययन तो किया ही जाता है,इसके साथ ही साथ पशु पक्षियों के स्वभाव,बोली
एवं व्यवहार में होने वाले परिवर्तनों का भी अनुसंधान किया जाता है |
जिस समय के प्रभाव से प्रकृति या जीवन में जो अच्छी या बुरी घटनाएँ या
प्राकृतिक आपदाएँ घटित होने जा रही होती हैं उस समय उसी अनुपात में समय का
प्रभाव प्रकृति पर भी पड़ता है जिससे प्रकृति में कुछ उस प्रकार के परिवर्तन
होने लगते हैं | इसी अनुपात में उस समय का प्रभाव पशु पक्षियों पर भी
पड़ता है उससे उसी प्रकार के बदलाव उनमें भी होते देखे जाते हैं | भूकंप आने
से पहले कई देशों समूहों के द्वारा पशु पक्षी आदि प्राणियों में इस
प्रकार के बदलाव अनुभव भी किए जाते रहे हैं | समय का यही अच्छा या बुरा
प्रभाव उन मनुष्यों पर या उनके सगे संबंधियों पर पड़ता है जिन्हें ऐसी
प्राकृतिक घटनाओं से प्रभावित होना होता है उन्हें व्यक्तिगत रूप से अपने
आसपास शकुन अपशकुन आदि दिखाई देने लगते हैं | जो घटनाएँ घटित होने के बाद
अनुभव किए जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में बिल्ली के रास्ता काट जाने से
किसी का नुक्सान नहीं होता है अपितु जिस समय के प्रभाव से जो नुक्सान हो
रहा होता है उसी समय का प्रभाव उन जीवों पर भी पड़ रहा होता है जिससे वे उस
प्रकार के आचरण करने के लिए स्वाभाविक रूप से प्रेरित हो जाते हैं जिसका
उन्हें स्वयं पता नहीं होता है कि उनके स्वभाव बोली व्यवहार आदि में ऐसा
परिवर्तन क्यों आ रहा है | वस्तुतः ये समयकृत सूचनाएँ हैं जिनका आदान
प्रदान प्रकृति और प्राणियों के माध्यम से हो रहा होता है |
कुल
मिलाकर प्रकृति और जीवन में समय की बहुत बड़ी भूमिका है |प्रकृति हमेशा समय
के अनुशार नियमबद्ध अनुशासित आचरण करते देखी जाती है |जीवों को भी प्रकृति
के
अनुशार आहार व्यवहार आदि अपनाना पड़ता है जो जब ऐसा नहीं करते हैं वे तभी
रोगी होने लगते हैं | ऐसी परिस्थिति में समय का जब हानि कर प्रभाव प्रकृति
और जीवन पर पड़ने लगता है तो उस अशुभ समय के प्रभाव से प्रकृति और जीवन अपना
अपना स्वभाव छोड़कर उस प्रकार का व्यवहार करने लग जाते हैं जैसा अच्छा या
बुरा समय चल रहा होता है |बुरे समय की व्याकुलता मनुष्यों के साथ पशु
पक्षियों में भी होती है उस लिए उनमें भी अस्वाभाविक बदलाव होते देखे जाते
हैं | जिन्हें शकुन अपशकुन के रूप में जाना जाता है |
इसीलिए तो महामारियों के समय अशुभ समय के प्रभाव से जहाँ एक ओर महामारी
फैल रही होती है | उसी अशुभ समय का प्रभाव उसी अनुपात में प्रकृति पर भी पड़
रहा होता है इसलिए प्रकृति भी प्रदूषित होने लगती है उससे जल वायु फसलें
आनाज शाक सब्जियाँ फल फूल वृक्ष बनस्पतियाँ आदि के स्वाद स्वभाव गुणों आदि
में अस्वाभाविक बदलाव होने के कारण उनके उन गुणों में विकार आ जाते हैं
जिनके प्रसिद्ध होते हैं | औषधियों आदि के गुणों में अस्वाभाविक बदलाव आ
जाने के कारण औषधियों में भी विकार आ जाते हैं | जिससे वे उस प्रकार का
लाभ करने लायक नहीं रह जाती हैं जिन रोगों पर वे प्रभावी मानी जाया करती
थीं |उनमें समयकृत विकार आ जाने के कारण कई बार उन्हें अपने गुणों के
विपरीत व्यवहार करते भी देखा जाता है |
विपरीत समय के प्रभाव से एक ओर महामारी फैलती है उसी समय के प्रभाव से खाद्य पदार्थ एवं औषधियाँ आदि प्रदूषित हो जाती हैं | ऐसी परिस्थिति में चिकित्सकों के लिए यह
निर्णय करना कठिन हो जाता है कि व्यक्ति को किन खाद्यपदार्थों एवं औषधियों
के सेवन की सलाह दी जाए उनमें विकार आ जाने के कारण उनका प्रभाव मनुष्य
शरीरों पर न जाने कैसा पड़े | इसी प्रकार की परिस्थितियों के कारण सघन
चिकित्सा कक्ष में विद्वान चिकित्सकों की अत्युत्तम देख रेख में चिकित्सा
का लाभ ले रहे रोगी चिकित्सकों के देखते देखते मृत्यु को प्राप्त होते देखे
जाते हैं चिकित्सकों का कोई बश नहीं चल पाता है |
इसीलिए महामारी के समय प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले अधिकाँश मानक अनुभव
अध्ययन अनुसंधान आदि प्रभाव विहीन होते देखे जाते हैं | ऐसे समय में
परोक्ष(समय) विज्ञान के आधार पर महामारियों को समझने एवं उनमें प्रभावी कदम
उठाने में काफी मदद मिलते देखी जाती है | समय समय पर होते रहने वाले समय ,प्रकृति और जीवन से संबंधित परिवर्तनों
के अध्ययन से प्रकृति एवं जीवन में होने वाले परिवर्तनों प्राकृतिक घटनाओं
रोगों महारोगों आदि का अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
मेरे द्वारा परोक्षविज्ञान के आधार पर किए गए अनुसंधान -----------------------------------------------------------------------------------------------------------------
समयविज्ञान !
समयखंड समय का एक छोटा सा अंश बसंतऋतु है | इस
कालखंड में समय के प्रभाव से तापमान क्रमशः बढ़ने लगता है |उष्णता लिए हुए
पश्चिमी हवाओं का प्रवाह प्रारंभ हो जाता है,बर्फबारी ,कोहरा आदि से मुक्ति मिलती
है|वृक्षों में पतझड़ होना एवं नवीन कोपलें आना आम के वृक्षों में फूल
(बौर)और
फल लगना ,आनंदित कर देने वाले प्राकृतिक वातावरण का बनना आदि ये सब उसी
समय से संबंधित प्रकृति में होने वाले परिवर्तन हैं| समय प्रभाव से इसी ऋतु
में कोयलों का बोलना एवं ऋतुजनित प्राकृतिक वातावरण से मनुष्यों के मन का
प्रसन्न होना तथा ऋतुप्रभाव से कफ प्रकुपित होने के कारण कफ जनित
स्वास्थ्य विकार होना आदि ये बसंतऋतु नामक समयखंड से संबंधित बदलाव हैं
|
जिस प्रकार से यह समय प्रकृति और प्राणियों में साथ साथ होने वाले परिवर्तनों
का श्रेष्ठ उदाहरण है | इन तीनों में से किसी एक के विषय में जानकारी होते
ही शेष दो में होने वाले परिवर्तनों के विषय में भी अनुमान लगा लिया जाता है |
जैसे कोयल बोलते सुनकर बसंतऋतु आने का आभाष हो जाता है और उस समय बनने वाले
समस्त प्राकृतिक और जीव जनित वातावरण का अनुमान स्वतः लग जाता है | ये समय
प्रकृति और जीवन से संबंधित सर्व विदित प्रत्यक्ष उदाहरण है |
इसी प्रकार से परोक्ष उदाहरण भी होते हैं जो कभी कभी घटित होते हैं
उनमें भी समय का प्रकृति और जीवन के साथ परोक्ष संबंध होता है | उस प्रकार
की प्राकृतिक एवं जीवन संबंधी घटनाएँ भी समय से संबंधित होती हैं | भूकंप
आँधी तूफ़ान आदि मौसम संबंधी जितनी भी प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो रही होती
हैं | उनका संबंध समय संचार के साथ होता है उससे मानव मन और शरीर भी उसी
प्रकार से प्रभावित होते हैं |
ग्रीष्मऋतु नामक समयखंड के प्रभाव से पश्चिमी उष्ण हवाओं (लू) के
मधुर स्वाद से खट्टे लगने वाले आम इमली आदि के स्वाद में मधुरता आ जाती है |
खरबूजा तरबूज आदि की मधुरता में वृद्धि होते देखी जाती है | समय जनित
हवाओं की मधुरता का यह प्रभाव इसी अनुपात में मनुष्य आदि प्राणियों के
शरीरों पर भी पड़ता है जिससे मधुमेही आदि शर्करा रोगियों में शर्करा (शुगर
)की मात्रा बढ़ते देखी जाती है |
किसी किसी वर्ष इसी ग्रीष्मऋतु नामक समयखंड में अशुभ समय के प्रभाव से
यदि अक्सर वर्षा होती रहे और उत्तर पूरब की ओर से स्वभाव विपरीत शीतल
हवाएँ चलने लगती हैं तो उन हवाओं में मधुरता न होने के कारण आम इमली
खरबूजा तरबूज आदि के पकने पर भी वह मधुरता नहीं रह जाती है जिससे शर्करा
रोगियों की शुगर उतनी अधिक भले न बढ़े किंतु इससे स्वस्थ वातावरण के लिए
आवश्यक मधुरता की मात्रा कम हो जाने के कारण
कुछ दूसरे प्रकार के रोगों के पैदा होने की संभावना बनते देखी जाती है | इसका दुष्प्रभाव भावी प्राकृतिक घटनाओं पर भी पड़ता है |
जिसप्रकार से बिजली के तारों में प्रवहित बिजली प्रत्यक्ष तो नहीं दिखाई
पड़ रही होती है किंतु किसी कारखाने में लगे बिजली के उपकरण जब बिजली के
आने जाने से अचानक चलते और बंद होते दिखाई पड़ते हैं उससे बिजली के न दिखाई
पड़ने के बाद भी बिजली आने जाने का परोक्ष अनुमान लगा लिया जाता है |इसी
प्रकार से समय का प्रभाव प्रत्यक्ष रूप से दिखाई भले न पड़े किंतु उसे नकारा
नहीं जा सकता है | अच्छे बुरे समय की पहचान परोक्ष विज्ञान से तो संभव है
इसके अतिरिक्त समय प्रभाव से प्रकृति और प्राणियों में होने वाले
परिवर्तनों कोदेखकर समय संबंधी ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है |
समयविज्ञान या परोक्षविज्ञान
प्रायः सभी प्राकृतिक घटनाओं में 'समय' 'प्रकृति' और 'प्राणी' तीन कारण
होते हैं | 'समय' बीतने के साथ साथ उसमें अच्छे बुरे सभी प्रकार के
परिवर्तन होते चलते हैं |जो परिवर्तन समय में होते हैं उसीप्रकार के
परिवर्तन प्रकृति और प्राणियों में होते देखे जाते हैं | समय में होने
वाले बदलाव प्रत्यक्ष रूप से भले न दिखाई पड़ते
हों किंतु परोक्ष रूप में अवश्य अनुभव किए जाते हैं |इसकेअतिरिक्त समय में
होने वाले परिवर्तनों का अनुभव प्रकृति और प्राणियों में समय समय पर होने
वाले परिवर्तनों को देखकर किया जाता है |समय पहले बदलता है उसका प्रभाव
प्रकृति और प्राणियों पर समान रूप से पड़ता है इसलिए इन दोनों में साथ साथ
बदलाव आते दिखाई देते हैं |
परिवर्तनों में समय की प्रमुख भूमिका होते हुए भी प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने
के कारण लोग समय को भूलकर प्रकृति और प्राणियों को साथ जोड़कर अनुभव करने
लगते हैं | जैसे प्रातःकाल के समय का प्रभाव सूर्य और कमल पुष्प पर पड़ते ही
सूर्य उग आता है और कमल खिल जाते हैं | समय का प्रभाव दोनों पर एक साथ एक
समान रूप से पड़ रहा होता है | समय प्रभाव से उन दोनों में परिवर्तन भी एक
साथ होते हैं | प्रातः काल संबंधित समय के प्रभाव से ही सूर्य उग जाता है
और उसी समय के प्रभाव से ही कमलपुष्प खिल जाते हैं |
ऐसी घटनाओं में समय तो प्रत्यक्ष रूप में दिखाई नहीं पड़ रहा होता है सूर्य
और कमलपुष्प ही दिख रहे होते हैं इसलिए इन दोनों घटनाओं का संबंध एक दूसरी
घटना के साथ जोड़ दिया जाता है | हमें लगता है कि कमलपुष्प तो बहुत छोटा
होता है इसलिए इसके प्रभाव से तो सूर्य का उगना संभव नहीं है जबकि सूर्य
बहुत बड़ा है उसी का प्रभाव कमल पुष्प पर पड़कर कमल खिल गया होगा | ऐसा
सोचकर हमने भ्रमवश निश्चय कर लिया कि सूर्य के उगने के प्रभाव से कमलपुष्प
खिल जाता है किंतु सूर्य भी तो किसी के प्रभाव से उगता होगा जो प्रत्यक्ष
भले न दिखाई देता हो किंतु परोक्ष कुछ न कुछ कारण तो होंगे जिनके प्रभाव से
सूर्य उगता है उन्हें भी अनुसंधान पूर्वक खोजा जाना आवश्यक था |जिसकी हमने
आवश्यकता ही नहीं समझी | ऐसी घटनाओं में सूर्य और कमलपुष्प दोनों में एक
साथ होते परिवर्तनों को देखकर भ्रम वश हम इन दोनों को एक साथ जोड़ कर देखने
लगते हैं |
ऐसे ही समय प्रभाव से घटित होने वाली दो पृथक पृथक प्राकृतिक घटनाएँ
केवल इसलिए एक साथ जोड़कर देखी जाने लगती हैं क्योंकि वे दोनों एक ही समय
में घटित हो रही होती हैं |इसी दृष्टि से पूर्णिमा के पूर्णचंद्र और
समुद्र की उठती हुई लहरों को भ्रमवश आपस में जोड़ लिया गया है और यह निश्चय
कर लिया गया है कि पूर्ण चंद्र के आकर्षण प्रभाव से समुद्र में ऊँची लहरें
उठती हैं | यह प्रभाव यदि चंद्र आकर्षण जनित होता तब तो चंद्र का आकर्षण
केवल समुद्री जल के प्रति न होकर अपितु समस्त छोटे बड़े जल संस्थानों पर
पड़ता जिससे केवल समुद्रों में ही क्यों अपितु नदियों नालों तालाबों घरों
में भी संचित जल उछलने लगता ,यहाँ तक कि मनुष्यों के द्वारा पिया गया पानी
भी पूर्णचंद्र के आकर्षण से पेट में उछल रहा होता | पूर्णिमा के पूर्णचंद्र
के समय यदि वर्षा होने का संयोग कभी बनता तो वर्षा की बूँदें पृथ्वी पर
गिरती ही नहीं ,समुद्रजल की अपेक्षा ये तो हल्की होती हैं इसलिए इन्हें तो
आकर्षित करके पूर्णचंद्र ऊपर ऊपर ही बड़ी आसानी से खींच ले जाता तब तो
पूर्णिमा के दिन धरती पर होने वाली बारिश चंद्रमा पर ही हुआ करती | लाखों
टन पानी लिए घूमने वाले बादलों को चंद्र आकर्षित कर लेता |
परोक्ष विज्ञान की समझ के अभाव में हमने इस घटना में समय की भूमिका का
बिचार किए बिना ही अपने कल्पित भ्रम को सच मान लिया है |किसी निश्चित समय
में समुद्र में घटित होने वाली घटना को पूर्णचंद्र के साथ जोड़ना तर्कसंगत
नहीं है |
जीवन संबंधित घटनाओं में समय की भूमिका
समय की परोक्ष भूमिका को समझे बिना स्वास्थ्य ,सम्मान,संपत्ति ,सुख दुःख
एवं पद प्रतिष्ठा का घटना बढ़ना ,मित्रों शत्रुओं की संख्या घटना बढ़ना
,मित्रों शत्रुओं में मित्रता एवं
शत्रुता की भावना का घटना बढ़ना आदि समय के प्रभाव से घटित होने वाली घटनाओं
के लिए हम कुछ वस्तुओं, परिस्थितियों ,व्यक्तियों एवं उनके अच्छे बुरे
व्यहार को जिम्मेदार मानकर उनसे ईर्ष्या द्वेष आदि करने लगते हैं जबकि उनका
वास्तविक कारण समय होता है |
स्वास्थ्य पर चिकित्सा का प्रभाव न पड़ना ,पतिपत्नी के स्वस्थ होने के
बाद भी संतान न होना आदि | प्रयत्न करने के बाद भी कार्य क्षेत्र में सफल न
होना आदि |
किसी रोगी की चिकित्सा के लिए अत्यंत उन्नत तकनीक, उत्तम औषधियों एवं
योग्य चिकित्सकों की मदद के बाद भी कई बार रोगी के स्वस्थ न होने का कारण
समय का प्रतिकूल प्रभाव होता है | इसी प्रकार से जंगलों के सुदूर गाँवों
में जहाँ न उन्नत तकनीक ,न उत्तम औषधियाँ न योग्य चिकित्सक होते हैं इसके
बाद भी समय के सहयोग से वहाँ के रोगी भी होते देखे जा रहे होते
हैं | कोरोनामहामारी के समय अच्छी प्रकार से कोरोना नियमों का पालन करते
हुए उत्तम चिकित्सा व्यवस्था से संपन्न होने पर भी समय के असहयोग के कारण
कई लोग संक्रमित होते देखे जा रहे होते हैं| इनके अतिरिक्त कुछ दूसरे
जिन्होंने कोरोना नियमों का पालन बिल्कुल नहीं किया कोई सावधानी नहीं बरती
चिकित्सा की भी अच्छी व्यवस्था नहीं रही ,बचपन से खानपान भी पौष्टिक नहीं
रहा ,इसके बाद भी समय के सहयोग से स्वस्थ बने रहे |
सम्मान,संपत्ति ,पद प्रतिष्ठा एवं व्यवसाय आदि के लिए कार्यक्षेत्र
में कुछ लोग समर्पित भावना से बहुत प्रयास करके भी समय का सहयोग न मिलने के
कारण सफल नहीं हो पाते हैं जबकि कुछ दूसरे लोग बहुत कम प्रयास करके भी समय
का सहयोग पाकर सफल होते देखे जाते हैं |
समय के सहयोग से मित्रों की संख्या बढ़ती है मित्रों में मित्रता की भावना
बढ़ती है इसलिए ऐसे समय में जिनसे शत्रुता चली आ रही होती है वे भी मित्र
भावना से भावित होने लगते हैं |समय के प्रभाव से कुछ ऐसे लोग जिनसे बहुत
पहले संबंध छूट चुके होते हैं वे पुनः आकर मिलने लगते हैं !संबंध विच्छेद
करके वर्षों से अलग अलग रह रहे पतिपत्नी आदि भी ऐसे समय पुरानी बातें भूलकर
एक साथ प्रेम पूर्वक रहने लग जाते हैं |
इसी प्रकार से समय का सहयोग न मिलने पर अकारण शत्रुओं की संख्या बढ़ने लगती
है |इसी के साथ ही ऐसे समय शत्रुओं में शत्रुभावना अधिक तेजी से बढ़ते
देखी जाती है |
इसीप्रकार से जीवन में और भी बहुत सारी ऐसी घटनाएँ घटित होते देखी
जाती हैं जिनके घटित होने का कारण समय होता है जो प्रत्यक्ष रूप से दिखाई
नहीं पड़ रहा होता है|इसलिए वास्तविक कारण केअभाव में उसके आस पास की चीजों
को ही हम वास्तविक कारण मान लिया करते हैं|उन्हीं कल्पित कारणों को आधार
बनाकर अनुसंधान किया करते हैं | ऐसी भूलें अक्सर हुआ करती हैं जिससे हम
वास्तविक कारण तक नहीं पहुँच पाते हैं |
समय शक्ति से अनजान लोग कई बार ऐसा कहते सुने जाते हैं कि लक्ष्य कितना भी
बड़ा क्यों न हो यदि सच्चे मन से उसके लिए प्रयत्न किया जाए तो सफलता अवश्य
मिलती है ऐसी बातों पर विश्वास करके बहुत लोग अपने लक्ष्य को पाने के लिए
अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं फिर भी समय का सहयोग न मिलने के कारण वे
सफल नहीं हो पाते हैं |असफलता के कारण तनाव के शिकार होकर कई बार नशा या
अन्य प्रकार के अपराध आदि में संलिप्त होते देखे जाते हैं | कर्म पर
विश्वास करके किसी प्रेमिका को पाने के लिए सभी प्रकार के प्रयत्न करके थक
हार चुका कोई असफल व्यक्ति उस लड़की को चोट पहुँचाने के प्रयत्न में लग जाता
है | इसमें उस लड़की का कोई दोष नहीं किंतु उस अपराध का शिकार वो होती है |
वस्तुतः इस प्रयास में सफलता न मिलने का कारण समय का साथ न देना ही था |
उस कार्य में उसके प्रवृत्त होने का कारण ये कहावत थी -"सच्चे मन से
प्रयत्न किया जाए तो सफलता अवश्य मिलती है|"
एक कहावत ऐसी भी सुनी जाती है कि किसी पत्थर को तोड़ने की क्रिया में
सौवीं चोट में पत्थर टूटे इसका मतलब यह नहीं कि निन्यानबे चोटें ब्यर्थ
चली गई हैं उनका भी इस कार्य में योगदान रहा होता है |
समय वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो इस प्रक्रिया में उन चोटों का यही
योगदान माना जा सकता है कि किस प्रहार या प्रयास को समय का समर्थन प्राप्त
होगा यह पता न होने के कारण लगातार चोट करना ही होगा ताकि इस पत्थर के
टूटने का समय आने पर पत्थर टूट जाएगा उस समय यह बहाना नहीं बनेगा कि पत्थर
टूटने का समय आने पर चोट नहीं मारी जा सकी |
कुलमिलाकर प्रत्येक घटना में प्रयत्न का महत्त्व अवश्य होता है
किंतु प्रयत्न सफल वही होते देखे जाते हैं जिनमें समय का सहयोग मिलता है |
घटनाओं के घटित होने के कारण का महत्त्व !
महामारी,भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं के लिए जिम्मेदार
कुछ प्रत्यक्ष कारण दिखाई पड़ते हैं कुछ परोक्ष कारण ऐसे होते हैं जिनके
सहयोग से इसप्रकार की घटनाएँ घटित हो रही होती हैं किंतु वे दिखाई नहीं पड़
रहे होते हैं |
जिसप्रकार से किसी कारखाने में बड़ी बड़ी विशालकाय मशीनें चल
रही होती हैं | उन मशीनों में लगे छोटे छोटे पुर्जे भिन्न भिन्न प्रकार की
भूमिका अदा कर होते हैं |ऐसी मशीनों के चलने के कारण जो शोर हो रहा होता है | उस शोर को बंद करने के लिए मशीनों का बंद होना आवश्यक लगता है |
कारखाने में प्रत्यक्ष तो मशीनें ही चलते दिखाई पड़ रही होती हैं किंतु मशीनें कब तक चलेंगी इसका पूर्वानुमान नहीं पता होता है और मशीनों को पकड़ कर तो बंद नहीं किया जा सकता है |ऐसी परिस्थिति में मशीनों को बंद किया जाना उसीप्रकार से असंभव सा लगता है जिसप्रकार से महामारी,भूकंप, सुनामी, आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात एवं बादलों के फटने,ओलेगिरने,तापमान अचानक अधिक बढ़ने-घटने तथा अतिवृष्टि और अनावृष्टि जैसी प्राकृतिक घटनाओं को रोकना असंभव माना जाता है |
मशीनों को चलने की ताकत देने वाली ऊर्जा जिस पावर हाउस से आ रही होती है |वह कितना भी दूर क्यों न हो वहीं बैठे बैठे कारखाने में आने वाली बिजली की