शुक्रवार, 22 जुलाई 2022

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !

                              राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !

            प्राकृतिक आपदाओं से बचाव की दृष्टि से वैज्ञानिकअनुसंधानों की भूमिका  क्या है ?   

                                        वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की अपेक्षा !

  भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाएँ हों या महामारियाँ ये सब अचानक घटित होने लगती हैं |ऐसी आपदाएँ घटित होते ही तुरंत नुक्सान हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो  होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है | 

     ऐसी परिस्थिति में आपदाएँ घटित होने एवं नुक्सान होने के बीच में समय इतना नहीं मिल पाता है कि संभावित प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें या बचाव  के लिए आवश्यक सतर्कता बरती जा सके !

   इसलिए आवश्यकता ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की है जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले सरकार एवं  समाज को यह जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने  वाली है |जिससे घटना घटित होने से पहले सरकार आपदा प्रबंधन संबंधी व्यवस्थाओं को तैयार कर ले एवं ऐसे आवश्यक संसाधन जुटाना प्रारंभ  कर दे जिससे  उस प्रकार की आपदा से नुक्सान कम से कम हो ऐसा  सुनिश्चित किया जा सके | इसके साथ ही  साथ ऐसे पूर्वानुमान पाकर समाज भी अपने स्तर से सावधानी बरतनी प्रारंभ कर दे |यदि ऐसा संभव हो तब तो प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता है अन्यथा ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की जनहित में उपयोगिता ही क्या बचती है | 

      वर्षा संबंधी प्राकृतिक अनुसंधान !-  भारत कृषि प्रधान देश है! कृषि कार्यों एवं फसलयोजनाओं के लिए वर्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है | यद्यपि वर्षा की आवश्यकता तो सभी फसलों को होती है किंतु धान जैसी कुछ फसलों  के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है और मक्का जैसी कुछ फसलों के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है|ऐसी परिस्थिति में धान जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों को किसान लोग नीची जमीनों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान ऊँची जमीनों पर बोते हैं | 

   इसी प्रकार से किसी वर्ष की वर्षाऋतु में वर्षा बहुत अधिक होती है जबकि किसी वर्ष की वर्षा ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है | इसलिए जिस वर्ष में वर्षा अधिक होने की संभावना होती है उस वर्ष किसान लोग धान जैसी अधिक अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें अधिक खेतों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान कम खेतों में बोते हैं | 

     धान जैसी फसलों में पहले बीज बोकर थोड़ी जगह में बेड़ तैयार की जाती है निर्धारित समय बाद उन  पौधों की रोपाई पूरे खेत में करनी होती है उस समय अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए किसान लोग इस प्रकार की योजना पहले से बनाकर चलते हैं ताकि धान की रोपाई के समय तक मानसून आ चुका हो  जिससे पानी की कमी न पड़े | इसके लिए किसानों को सही सटीक मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | इसके लिए मानसून आने के विषय में सही तारीखों का पता लगना जरूरी  माना जाता है | 

     मार्च अप्रैल में फसलें तैयार होने पर किसान लोग वर्ष भर के लिए आवश्यक आनाज एवं भूसा आदि संग्रहीत करके बाकी बचा हुआ आनाज भूसा आदि बेच लिया करते हैं |जिससे उनकी आर्थिक आवश्यकताओं  पूर्ति हो जाती  है |इसके  लिए उन्हें मार्च अप्रैल में ही वर्षा ऋतु में  होने वाली संभावित बारिश का पूर्वानुमान पता करने की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि खरीफ की फसल पर इसका प्रभाव पड़ता है | मार्च अप्रैल में किसानों को आनाज एवं भूसा आदि का संग्रह करके बाकी बचे हुए अनाज भूसा आदि की बिक्री के लिए किसानों को खरीफ की फसल की उपज को ध्यान में रखकर चलना होता है |इसके लिए वर्षा ऋतु संबंधी  सटीक मौसम  पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |

तापमान संबंधी पूर्वानुमान - 

     तापमान ऋतुओं के  हिसाब से घटता बढ़ता रहता है उसका तो समाज को अभ्यास है |उसके आधार पर ही समाज ने अपना अपना जीवन व्यवस्थित कर रखा है किंतु जब तापमान बढ़ने और कम होने की प्रक्रिया असंतुलित होने लगती है तापमान ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए अस्वाभाविक रूप से घटने या बढ़ने लगता है | उससे मनुष्यों को तरह तरह के रोग होने लगते हैं | फसलों वृक्षों बनस्पतियों आदि में अनेकों प्रकार के विकार पैदा होने लगते हैं जिससे उपज प्रभावित होती है |अतएव समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा है कि ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए तापमान कब अचानक बढ़ने या कम होने लगेगा इसका पूर्वानुमान समाज को पहले से पता होने चाहिए ताकि समाज उसी हिसाब से अपने कार्यों एवं जीवन को व्यवस्थित कर सके |  

 वायुप्रदूषण संबंधी अनुमान  पूर्वानुमान- मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है।इसलिए वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।वायु प्रदूषण बढ़ने से दमा, सर्दी-खाँसी, अँधापन, त्वचा  रोग आदि अनेकों प्रकार की बीमारियाँ पैदा होने लगती हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे प्रदूषण मुक्त शुद्ध वायु मिले  किंतु यह कैसे संभव है इसके लिए समाज को क्या अपनाना एवं क्या छोड़ना पड़ेगा और क्या करना होगा | इसके विषय में सही एवं सटीक जानकारी अनुसंधान पूर्वक समाज को उपलब्ध करवाई जाए |इसके साथ ही साथ यदि  वायु प्रदूषण घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो तो समाज को वह उपलब्ध करवाया जाए | समाज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा करता है |

 महामारी संबंधी अनुमान  पूर्वानुमान - लोगों को महामारियों से डर लगना स्वाभाविक ही है| महामारियों के समय का वातावरण बहुत भयावह होता है जो हर किसी को सहना ही होता है |भारी मात्रा में जन धन की  हानि होते देखी जाती है |महामारी काल में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह निष्प्रभावी होती है | ऐसे समय में रोग और रोग के लक्षण  पता न होने के कारण चिकित्सा करना भी संभव नहीं होता है |

     ऐसे कठिन समय में वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं से जनता यह अपेक्षा रखती हैकि महामारी प्रारंभ होने से पहले उसे महामारी के विषय में अनुमानों पूर्वानुमानों से उसे अवगत कराया जाए कि इतने वर्षों या  महीनों के बाद महामारी प्रारंभ होने की संभावना है | इससे महामारी आने के समय तक समाज अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुशार अपने लिए आवश्यक वस्तुओं का संग्रह कर सकता है | संभावित रोगों से बचाव के लिए आहार विहार रहन सहन खान पान में  आवश्यक संयम  का पालन करके अपने  बचाव के लिए प्रयत्न किया जा सकता है | 

     इसीप्रकार से महामारी के विषय में सरकारों को यदि अनुमान पूर्वानुमान आदि समय रहते पता चल जाए तो सरकारें बचाव के लिए यथा संभव संसाधन जुटा सकती हैं चिकित्सा की दृष्टि से आवश्यक प्रबंधन कर सकती हैं | जीवन यापन  के लिए आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में संग्रह करके रखा जा सकता है |

   ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार  को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती  है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |

  वैज्ञानिक अनुसंधानों  से जीवन संबंधी अपेक्षाएँ -   

       राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का लक्ष्य -

    मानव जीवन से संबंधित कुछ ऐसी अत्यंत कठिन समस्याएँ हैं जो न कही जा सकती हैं और न सही जा पाती हैं | ऐसी समस्याओं का  समाधान निकालना वैज्ञानिकों  के बश में होता तब तो कोई बात ही नहीं थी | जिस प्रकार से स्वास्थ्य समस्याओं के लिए सरकारों ने चिकित्सालय खोल रखे हैं लोग वहाँ जाकर अपनी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान पा लिया करते हैं |इसमें वैज्ञानिक अनुसंधान सफल हैं | 

    स्वास्थ्य से ही संबंधित कुछ ऐसी समस्याएँ हैं जिनका वैज्ञानिकों के द्वारा न समाधान किया जा रहा है और न ही मना किया जा रहा है कि इनका समाधान निकालना हमारे बश की बात नहीं है |वैज्ञानिकों आवश्यकता पड़ने पर वैज्ञानिक लोग अपनी असफलता छिपाने के लिए ऊटपटाँगवैज्ञानिकों मनगढंत   मनगढंत कहानियाँ सुना दिया करते हैं | जैसे मौसम के विषय में भविष्यवाणी न कर पाए  मनगढंत

 

 

 

से उन विषयों पर 

 ऐसी परिस्थिति में हम के विषय

 

   में का समाधान निकाल 

जिनका समाधान आधुनिक विज्ञान से होना संभव होता तो अब तक हो हो जाता |भूकंप,तूफ़ान,सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिकआपदाओं एवं  महामारियों के विषय में एक ओर वैज्ञानिक लोग अनुसंधान किया ही करते हैं वहीं दूसरी ओर ऐसी प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होने लगती हैं | जिनके विषय में उन वैज्ञानिकों को कुछ पता  ही नहीं होता है | ऐसे अनुसंधानों से उस समाज को क्या लाभ होता है जिसके खून पसीने की कमाई से दिए गए टैक्स का पैसा ऐसे अनुसंधानों के नाम पर खर्च किया जाता है | ऐसे अनुसंधान न हों तो क्या नुक्सान हो जाएगा | यद्यपि ये सरकार और वैज्ञानिकों का आपसी विषय है |  

   ऐसी आपदाएँ घटित होते ही उस समाज का नुक्सान तो तुरंत हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो  होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है | वैज्ञानिकों के द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की उपयोगिता क्या है |  

  इसीलिए राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का लक्ष्य भारतवर्ष के प्राचीनविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों के द्वारा ऐसे लोगों को सुरक्षित बचाना है|जो सभी तरफ से निराश हताश होकर अपने जीवन को बोझ समझने लगे हैं | ऐसे लोगों को सुरक्षित बचाकर उनके निराश हताश जीवन के खोए हुए आनंद को वापस लाने  के लिए प्रभावी प्रयत्न करना है | 

 1.     मनुष्य अपने जीवन में अक्सर पराजित और परेशान होता रहता है और जब जब ऐसा होता है तब तब मनुष्यों का परेशान होना स्वाभाविक ही है | प्रत्येक मनुष्य सफल होने के लिए बार बार प्रयत्न करता है जो सफल हो जाता है उसका प्रयत्न तो दिखाई पड़ता है जो प्रयास करने पर भी सफल नहीं होता है उसके प्रयास पर लोग विश्वास नहीं करते जबकि वह कई बार प्रयास करने के बाद भी लगातार असफल होता जाता है | ऐसी परिस्थिति में वो गंभीर मानसिक पीड़ा से गुजर रहा होता है|निरंतर असफल होते रहने के बाद उसका दिमागी तनाव बढ़ता है इससे उसे नींद आनी कम होती है|उसके बाद भूख लगने में कमी आती है | पेट की गंदी गैस सीने में चढ़ती है | उससे घबराहट होती है|यही गंदी गैस जब सिर पर चढ़ती है तो सिर चकराने लगता है आँखों में अँधेरा दिखने लगता है | उल्टी लगने लगती है|बालों और त्वचा में रूखापन होने लगता है|शुगर बीपी जैसे रोग पनपने लगते हैं|कई बार हृदयरोग या हृदयघात जैसी गंभीर घटनाएँ घटित होती देखी जाती हैं|निरंतर असफल होते रहने वाले व्यक्ति का जब शरीर भी साथ नहीं देने लगता है तब वह निराश हो जाता है |ऐसे हैरान परेशान कुछ लोग कभी कभी असफलता से आहत होकर आत्महत्या या सपरिवार आत्महत्या जैसे दुर्भाग्यपूर्ण कठोर कदम उठाते देखे जाते हैं |बहुत लोग ऐसी दुर्भाग्य पूर्ण परिस्थिति को धैर्य पूर्वक  सह तो जाते हैं किंतु निराश हताश मन उन्हें किसी लायक नहीं  रहने देता है |

 विशेष बात 


 

 

कई उसकी असफलता का कारण उसके प्रयास  में कमी को माना जाता है

    ऐसी परिस्थिति में जिस असफलता के कारण ऐसी परिस्थिति पैदा हुई उसके लिए वह व्यक्ति कितना दोषी है सफलता के लिए जिसने निरंतर प्रयत्न किए इसके बाद भी उसे सफलता नहीं मिली इसका कारण क्या है ?

 

 ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार  को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती  है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |

         

 महामारी और अनुसंधान

   

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