शुक्रवार, 1 जुलाई 2022

Dr.Shesh Narayan Vajpayee

                              राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की आवश्यकता !

            प्राकृतिक आपदाओं से बचाव की दृष्टि से वैज्ञानिकअनुसंधानों की भूमिका  क्या है ?   

                                        वैज्ञानिक अनुसंधानों से समाज की अपेक्षा !

 भूकंप, तूफ़ान, सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हों या महामारियाँ ये सब अचानक घटित होने लगती हैं |ऐसी आपदाएँ घटित होते ही तुरंत नुक्सान हो जाता है या फिर उसी समय नुक्सान होना प्रारंभ जाता है| जिससे जनधन की हानि जो  होनी होती है वो हो ही जाती है |इसके तुरंत बाद आपदाप्रबंधन विभाग सारी जिम्मेदारी सँभाल ही लेता है | 

     ऐसी परिस्थिति में आपदाएँ घटित होने एवं नुक्सान होने के बीच में समय इतना नहीं मिल पाता है कि संभावित प्राकृतिक आपदा से बचाव के लिए आवश्यक संसाधन जुटाए जा सकें या बचाव  के लिए आवश्यक सतर्कता बरती जा सके !

   इसलिए आवश्यकता ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की है जिनके द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने से पहले सरकार एवं  समाज को यह जानकारी उपलब्ध करवाई जा सके कि किस प्रकार की प्राकृतिक घटना कब घटित होने  वाली है |जिससे घटना घटित होने से पहले सरकार आपदा प्रबंधन संबंधी व्यवस्थाओं को तैयार कर ले एवं ऐसे आवश्यक संसाधन जुटाना प्रारंभ  कर दे जिससे  उस प्रकार की आपदा से नुक्सान कम से कम हो ऐसा  सुनिश्चित किया जा सके | इसके साथ ही  साथ ऐसे पूर्वानुमान पाकर समाज भी अपने स्तर से सावधानी बरतनी प्रारंभ कर दे |यदि ऐसा संभव हो तब तो प्राकृतिक विषयों में वैज्ञानिक अनुसंधानों की सार्थकता है अन्यथा ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों की जनहित में उपयोगिता ही क्या बचती है | 

      वर्षा संबंधी प्राकृतिक अनुसंधान !-  भारत कृषि प्रधान देश है! कृषि कार्यों एवं फसलयोजनाओं के लिए वर्षा की बहुत बड़ी भूमिका होती है | यद्यपि वर्षा की आवश्यकता तो सभी फसलों को होती है किंतु धान जैसी कुछ फसलों  के लिए अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है और मक्का जैसी कुछ फसलों के लिए कम वर्षा की आवश्यकता होती है|ऐसी परिस्थिति में धान जैसी अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलों को किसान लोग नीची जमीनों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान ऊँची जमीनों पर बोते हैं | 

   इसी प्रकार से किसी वर्ष की वर्षाऋतु में वर्षा बहुत अधिक होती है जबकि किसी वर्ष की वर्षा ऋतु में वर्षा बहुत कम होती है | इसलिए जिस वर्ष में वर्षा अधिक होने की संभावना होती है उस वर्ष किसान लोग धान जैसी अधिक अधिक पानी की आवश्यकता वाली फसलें अधिक खेतों में बोते हैं जबकि मक्का जैसी कम वर्षा की आवश्यकता वाली फसलों को किसान कम खेतों में बोते हैं | 

     धान जैसी फसलों में पहले बीज बोकर थोड़ी जगह में बेड़ तैयार की जाती है निर्धारित समय बाद उन  पौधों की रोपाई पूरे खेत में करनी होती है उस समय अधिक पानी की आवश्यकता होती है इसलिए किसान लोग इस प्रकार की योजना पहले से बनाकर चलते हैं ताकि धान की रोपाई के समय तक मानसून आ चुका हो  जिससे पानी की कमी न पड़े | इसके लिए किसानों को सही सटीक मौसम संबंधी पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है | इसके लिए मानसून आने के विषय में सही तारीखों का पता लगना जरूरी  माना जाता है | 

     मार्च अप्रैल में फसलें तैयार होने पर किसान लोग वर्ष भर के लिए आवश्यक आनाज एवं भूसा आदि संग्रहीत करके बाकी बचा हुआ आनाज भूसा आदि बेच लिया करते हैं |जिससे उनकी आर्थिक आवश्यकताओं  पूर्ति हो जाती  है |इसके  लिए उन्हें मार्च अप्रैल में ही वर्षा ऋतु में  होने वाली संभावित बारिश का पूर्वानुमान पता करने की आवश्यकता इसलिए होती है क्योंकि खरीफ की फसल पर इसका प्रभाव पड़ता है | मार्च अप्रैल में किसानों को आनाज एवं भूसा आदि का संग्रह करके बाकी बचे हुए अनाज भूसा आदि की बिक्री के लिए किसानों को खरीफ की फसल की उपज को ध्यान में रखकर चलना होता है |इसके लिए वर्षा ऋतु संबंधी  सटीक मौसम  पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |

तापमान संबंधी पूर्वानुमान - 

     तापमान ऋतुओं के  हिसाब से घटता बढ़ता रहता है उसका तो समाज को अभ्यास है |उसके आधार पर ही समाज ने अपना अपना जीवन व्यवस्थित कर रखा है किंतु जब तापमान बढ़ने और कम होने की प्रक्रिया असंतुलित होने लगती है तापमान ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए अस्वाभाविक रूप से घटने या बढ़ने लगता है | उससे मनुष्यों को तरह तरह के रोग होने लगते हैं | फसलों वृक्षों बनस्पतियों आदि में अनेकों प्रकार के विकार पैदा होने लगते हैं जिससे उपज प्रभावित होती है |अतएव समाज को वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा है कि ऋतु आधारित अपने क्रम को तोड़ते हुए तापमान कब अचानक बढ़ने या कम होने लगेगा इसका पूर्वानुमान समाज को पहले से पता होने चाहिए ताकि समाज उसी हिसाब से अपने कार्यों एवं जीवन को व्यवस्थित कर सके |  

 वायुप्रदूषण संबंधी अनुमान  पूर्वानुमान- मनुष्य भोजन के बिना हफ्तों तक जल के बिना कुछ दिनों तक जीवित रह सकता है, किन्तु वायु के बिना उसका जीवित रहना असम्भव है।इसलिए वायु सभी मनुष्यों, जीवों एवं वनस्पतियों के लिए अत्यंत आवश्यक है।वायु प्रदूषण बढ़ने से दमा, सर्दी-खाँसी, अँधापन, त्वचा  रोग आदि अनेकों प्रकार की बीमारियाँ पैदा होने लगती हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति चाहता है कि उसे प्रदूषण मुक्त शुद्ध वायु मिले  किंतु यह कैसे संभव है इसके लिए समाज को क्या अपनाना एवं क्या छोड़ना पड़ेगा और क्या करना होगा | इसके विषय में सही एवं सटीक जानकारी अनुसंधान पूर्वक समाज को उपलब्ध करवाई जाए |इसके साथ ही साथ यदि  वायु प्रदूषण घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो तो समाज को वह उपलब्ध करवाया जाए | समाज अपने वैज्ञानिक अनुसंधानों से ऐसी अपेक्षा करता है |

 महामारी संबंधी अनुमान  पूर्वानुमान - लोगों को महामारियों से डर लगना स्वाभाविक ही है| महामारियों के समय का वातावरण बहुत भयावह होता है जो हर किसी को सहना ही होता है |भारी मात्रा में जन धन की  हानि होते देखी जाती है |महामारी काल में चिकित्सा व्यवस्था पूरी तरह निष्प्रभावी होती है | ऐसे समय में रोग और रोग के लक्षण  पता न होने के कारण चिकित्सा करना भी संभव नहीं होता है |

     ऐसे कठिन समय में वैज्ञानिक अनुसंधान कर्ताओं से जनता यह अपेक्षा रखती हैकि महामारी प्रारंभ होने से पहले उसे महामारी के विषय में अनुमानों पूर्वानुमानों से उसे अवगत कराया जाए कि इतने वर्षों या  महीनों के बाद महामारी प्रारंभ होने की संभावना है | इससे महामारी आने के समय तक समाज अपनी अपनी सामर्थ्य के अनुशार अपने लिए आवश्यक वस्तुओं का संग्रह कर सकता है | संभावित रोगों से बचाव के लिए आहार विहार रहन सहन खान पान में  आवश्यक संयम  का पालन करके अपने  बचाव के लिए प्रयत्न किया जा सकता है | 

     इसीप्रकार से महामारी के विषय में सरकारों को यदि अनुमान पूर्वानुमान आदि समय रहते पता चल जाए तो सरकारें बचाव के लिए यथा संभव संसाधन जुटा सकती हैं चिकित्सा की दृष्टि से आवश्यक प्रबंधन कर सकती हैं | जीवन यापन  के लिए आवश्यक वस्तुओं का पर्याप्त मात्रा में संग्रह करके रखा जा सकता है |

   ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार  को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती  है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |

  वैज्ञानिक अनुसंधानों  से जीवन संबंधी अपेक्षाएँ -   

    मनुष्य अपने जीवन में अक्सर पराजित और परेशान होता रहता है और जब जब ऐसा होता है तब तब मनुष्यों का परेशान होना स्वाभाविक ही है | वो सफल होने के लिए बार बार प्रयत्न करता रहता है और बार बार असफल  होता है | 

    निरंतर असफल होते रहने के बाद उसका दिमागी तनाव बढ़ता है इससे उसे नींद आनी कम होती है|उसके बाद भूख लगने में कमी आती है | पेट की गंदी गैस सीने में चढ़ती है | उससे घबराहट होती है | यही गंदी गैस जब सिर पर चढ़ती है तो सिर चकराने लगता है आँखों में अँधेरा दिखने लगता है | उल्टी लगने लगती है | बालों और त्वचा में रूखापन होने लगता है | निरंतर असफल होते रहने वाले व्यक्ति का जब शरीर भी साथ नहीं देने लगता है तब वह निराश हो जाता है | 

    ऐसी परिस्थिति में जिस असफलता के कारण ऐसी परिस्थिति पैदा हुई उसके लिए वह व्यक्ति कितना दोषी है सफलता के लिए जिसने निरंतर प्रयत्न किए इसके बाद भी उसे सफलता नहीं मिली इसका कारण क्या है ?

 

 ऐसी परिस्थिति में महामारी संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा वैज्ञानिक लोग यदि महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाकर यदि समय रहते समाज एवं सरकार  को उपलब्ध करवा सकते हैं तब तो उनकी और उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानों की सार्थकता सिद्ध होती  है अन्यथा उनकी उपयोगिता पर संशय होना स्वाभाविक ही है |

         

 महामारी और अनुसंधान

   

 

 

 

 समाज की अपेक्षा पर कितने खरे उतरते हैं वैज्ञानिक अनुसंधान

   प्राकृतिक आपदाएँ और अनुसंधान !

     1864 में चक्रवात के कारण कलकत्ता में हुई क्षति और 1866 और 1871 के अकाल के बाद, मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीतने को आए भूकंप, तूफ़ान, सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में वैज्ञानिक लोग हमेंशा अनुसंधान किया करते हैं |ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों पर सरकारें पानी की तरह पैसा बहाते देखी जाती हैं | ये धनराशि जिस जनता से टैक्स रूप में सरकारों के द्वारा वसूली जाती है उस जनता को ऐसे अनुसंधानों से मिलता आखिर क्या है ?

  भूकंप, तूफ़ान, सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में किए जा रहे वैज्ञानिक अनुसंधान यदि तुरंत रोक दिए जाएँ तो इसका समाज पर किस प्रकार से कितना दुष्प्रभाव होगा ?उस दुष्प्रभाव से आम लोगों का ऐसा क्या नुक्सान होना शुरू हो जाएगा जो अभी  नहीं होता है ?क्या प्राकृतिक दुर्घटनाएँ और अधिक घटित होने लगेंगी या लोग और अधिक संख्या में ऐसी दुर्घटनाओं के शिकार होने लगेंगे ! कुलमिलाकर प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए आखिर क्या है  ऐसे अनुसंधानों का योगदान ?

    इसी प्रकार से स्वास्थ्य के विषय में वैज्ञानिक अनुसंधान लगातार चला करते हैं | जनता से प्राप्त टैक्स की भारी भरकम धनराशि उन वैज्ञानिक अनुसंधानों पर भी खर्च की जाती है जो स्वास्थ्य सुरक्षा की दृष्टि से किए जाते हैं | महामारी भी तो उसी का एक अंग है | उन अनुसंधानों से समाज को ऐसा क्या मिला  जो कोरोना महामारी से जूझती जनता का बचाव करने में सहायक सिद्ध  हुआ हो !ऐसे अनुसंधान न चलाए जा रहे होते तो जनता  का  इससे अधिक और क्या नुक्सान हो सकता था | जो इन वैज्ञानिक अनुसंधानों के कारण नहीं हुआ !इन अनुसंधानों की मदद से जनता को महामारी से सुरक्षित बचाए रखने में सफलता मिली है | क्या ऐसा हुआ है ?

आखिर कब सहोगे वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर आडंबर ! 

     जिन अनुसंधानों के लिए आप सरकार को टैक्स देते हो आपको यह पूछने का पूरा अधिकार है कि आपके द्वारा दिया गया धन जिन वैज्ञानिक अनुसंधानों पर सरकारें खर्च  करती हैं उनसे ऐसा क्या हासिल होता है जिससे जनता को मदद पहुँचाई जाती है 

 

 राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान का आह्वान  !

     भारत का अपना पुराना विज्ञान कितना सक्षम था ! जिस गणित विज्ञान द्वारा सुदूर आकाश में घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के विषय में सैकड़ों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता है और वो  एक एक मिनट सेकेंड तक बिल्कुल सही घटित होता है |उसी गणित विज्ञान के द्वारा अपने प्राचीन गणित  वैज्ञानिक आँधी तूफान वर्षा बाढ़ सूखा बज्रपात एवं कोरोना महामारी  जैसी हिंसक प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वर्षों पहले अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया करते थे |वह सत्तर अस्सी प्रतिशत तक सही निकलता भी था | इस वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा ग्रहण ,मौसमया महामारी संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के  विषय में अनुसंधान पूर्वक हजारों लाखों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | घटनाओं के विषय में पहले से पता लग जाने से बचाव के लिए प्रयत्न करना आसान हो जाता था |आपदा प्रबंधन के लिए इतना समय मिल जाया करता था | इस प्रकार से भारत वर्ष की अनुसंधान पद्धति अत्यंत उन्नत थी | 

     दुर्भाग्य से भारतवर्ष सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा उस समय प्राचीन विज्ञान के विषय में अनुसंधान करना तो दूर इनका अध्ययन अध्यापन भी लगभग समाप्त कर दिया गया था | ऐसे विज्ञान संबंधी ग्रंथों को नष्ट  कर दिया गया था | ऐसी स्थिति में  जिन विद्वानों ने ऐसे अनुसंधानों को सँभाल कर रखा वे  अपनी आजीविका की परवाह न करते हुए  व्यक्तिगत तौर पर ऐसे अनुसंधानों में लगे रहे उन्होंने इसे अभी तक  सुरक्षित रखा हुआ है |उन्होंने अपनी समस्त सुख सुविधाओं की इच्छा छोड़कर पीढ़ी दर पीढ़ी उस विज्ञान को सँभाल कर रखने में समर्पित कर  दी हैं | उनके बल पर वह विज्ञान बीजरूप में अभी भी बहुत कम लोगों के पास सुरक्षित है | जिसके द्वारा जहाँ तहाँ आज भी ऐसी घटनाओं के विषय अनुमान पूर्वानुमान आदि सफलता पूर्वक लगाया जा रहा है | यद्यपि ऐसा करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है | इसका कारण ऐसी विद्या के जानकार बहुत थोड़े बचे हैं जो हैं भी वे आजीविका भय से ऐसा करने में असमर्थ  हैं |इसलिए धीरे धीरे यह विद्या विलुप्त होती जा रही है | 

   वर्तमान समय में भारत सरकार वेद विज्ञान आदि प्राचीन विज्ञान के विषय में सकारात्मक रुख अपनाती तो दिख रही है किंतु उससे हो कुछ नहीं पा रहा है और यदि सरकारी कार्यपद्धति में समय रहते सुधार नहीं किया गया तो वेद विज्ञान संबंधी अनुसंधानों के लिए सरकार के द्वारा की जा रही मदद वे लोग निगल  जाएँगे जिन्होंने आज  तक प्राचीन विद्याओं के नाम पर विश्व विद्यालयों और सरकारों के बीच आज तक दलाली की है | वे आज अपनी आदत छोड़ देंगे क्या ?वेद विज्ञान संबंधी अनुसंधानों  के नाम पर सरकारों के द्वारा संस्कृत विश्व विद्यालयों को दी  जाने वाली धनराशि अनुसंधानों  पर  खर्च होकर उसकी खानापूर्ति पर खर्च कर दिए जाते हैं | अनुसंधान के नाम पर कुछ सभा सम्मेलन आयोजित कर दिए जाते हैं कुछ सेमीनार करा दिए जाते हैं इन सबके फोटो छापकर कोई पत्रिका बना दी जाती है |शोध प्रबंध के  नाम पर  इधर उधर से नोच के कोई किताब बनाकर रख दी  जाएगी | वो सारी धनराशि इसी सारे आडंबर में समाप्त कर  दी जाती है | अभी तक यही होता रहा है | 

    इसलिए सरकार यदि कुछ नया करना चाहती है तो प्राचीन विद्याओं के  विकास के लिए सरकारों को ईमानदार प्रयास करने होंगे | सबसे पहले सरकार को चाहिए कि ऐसे अनुसंधानों को करवाने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपनी चाहिए जिनकी योग्यता ऐसे कार्यों के  में है जो ऐसे अनुसंधानों को करने के लिए सरकारों से उन्नत पद प्रतिष्ठा सैलरी आदि सुख सुविधाएँ लेने के लिए प्रमाणित हो चुकी हो उन्होंने मौसम या महामारी  विषय में कोई ऐसा अनुसंधान किया हो जिससे उनके द्वारा लगाया गया कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि सही घटित हुआ हो |घोषणा पूर्वक मन्त्र विज्ञान  आधार पर कोई ऐसा प्रयत्न किया हो जिससे महामारी पर अंकुश लगाने में सफलता मिली हो !योग्यता अभाव में यदि वे स्वयं ऐसा कुछ अभी तक नहीं कर पाए तो वे क्या अनुसंधान करेंगे और क्या किसी से करवाएँगे ,फिर भी ऐसे कठिन अनुसंधानों को करने के लिए सरकारों ने उन्हें ही उन्नत पद प्रतिष्ठा सैलरी आदि सुख सुविधाओं के साथ साथ ऐसे अनुसंधानों  को करने की जिम्मेदारी सौंप रखी है | प्राचीन विद्याओं के  विकास के नाम पर अंधों के शहर में ऐनक बेचने का प्रयत्न सरकार कर रही है | 

वर्तमान समय में उपग्रहों रडारों कैमरों से देख देख कर मदद नहीं माँगनी पड़ती है | वे प्राचीन गणित वैज्ञानिक गणित  विज्ञान के द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में  सटीक अनुमान पूर्वानुमान आदि वर्षों पहले लगा लिया करते थे |

   वर्तमान समय में विश्व के वैज्ञानिकों के पास ऐसी कोई वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया नहीं है जिसके द्वारा मौसम  एवं महामारी जैसे विषयों में किसी भी प्रकार का  अनुमान पूर्वानुमान आदि पता करना संभव हो |यही कारण है कि  मानसून मौसम  एवं महामारी  घटनाओं के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा आजतक  पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका है और जो लगाए भी गए  वे कभी सही नहीं निकले हैं | कोरोना महामारी के समय विभिन्न वैज्ञानिकों  द्वारा अलग अलग  समय में महामारी के विषय में जो जो बोलते रहे वो सभी गलत निकलते रहे हैं |ये बात इससे और अधिक स्पष्ट हो जाती है |

  वैज्ञानिकों  के द्वारा मौसम एवं महामारी ने बड़ी चतुराई से सरकार एवं समाज को यह समझा दिया है कि वे मौसम  एवं महामारी जैसे विषयों मेंअनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा सकते हैं | प्रश्न उठता है कि यदि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना वैज्ञानिकों के बस की बात नहीं है तो वे ऐसा करते क्यों हैं ?वैज्ञानिक  होने के नाते उन्हें प्रत्येक प्राकृतिक घटना के विषय में कुछ न कुछ बोलना  पड़ता ही है | यदि वो सही निकले तो पूर्वानुमान और गलत निकले तो जलवायु परिवर्तन या महामारी के  विषय में स्वरूप परिवर्तन जैसी बातें वैज्ञानिकों के  द्वारा पहले से ही बता दी गई हैं |

ऐसी स्थिति पता करना

     भारतवर्ष सैकड़ों वर्षों तक गुलाम रहा उस समय प्राचीन विज्ञान के विषय अनुसंधान करना तो दूर इनका अध्ययन अध्यापन भी लगभग समाप्त कर दिया गया था | ऐसी स्थिति में  व्यक्तिगत तौर पर जिन्होंने अपनी आजीविका की परवाह न करते हुए अपनी समस्त सुख सुविधाओं की इच्छा छोड़कर ऐसे अनुसंधानों में लगे रहे और पीढ़ी दर पीढ़ी उस विज्ञान को तक सँभाल कर रखा है जिसके द्वारा आज भी ऐसी घटनाओं के विषय अनुमान पूर्वानुमान आदि सफलता पूर्वक लगाया जा रहा है | यद्यपि ऐसा करने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है | इसका कारण ऐसी विद्या के जानकार बहुत थोड़े बचे हैं जो हैं भी वे आजीविका भय से ऐसा करने में असमर्थ  हैं |

    सोर्स सिफारिस और घूसखोरी  बलपर संस्कृत विश्वविद्यालयों में नियुक्त लोगों में बहुत बड़ा वर्ग 

      

   आधुनिक विज्ञान के द्वारा ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के  विषय में कोई विज्ञान ही  नहीं है | 

      

बाँधकर नहीं जा सकते

 

उस विज्ञान को सुरक्षित रखने के लिए हम लोगों का  कर्तव्य है  क्या करना चाहिए !

     प्राचीन विज्ञान की विशेषता -

      बंधुओ ! वर्तमान समय में हर चीज की मशीनें बन गई हैं इसलिए बहुत काम आसान हो गए हैं | इसका ये मतलब नहीं है कि प्राचीन काल में विकास  हुआ ही नहीं था |आधुनिक विज्ञान का जब जन्म भी नहीं हुआ था उस आदि काल में ही अपने पूर्वजों ने प्रकृति और जीवन के न केवल स्वभाव को समझने में सफलता हासिल कर ली थी अपितु प्रकृति और जीवन में समय के साथ होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों ,उनके क्रम अवधि आदि को भी सफलता पूर्वक समझ लिया था | 

     ज्ञान विज्ञान से संपन्न अपने पूर्वज प्रकृति एवं जीवन में घटित होने  वाली घटनाओं के स्वभाव को समझने के कारण ही उनके विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया  करते थे | सर्दी गरमी वर्षा आदि ऋतुचक्र के स्वभाव को समझने के कारण उन्होंने प्रत्येक ऋतु के क्रम अवधि स्वभाव प्रभाव आदि का स्पष्ट निर्धारण कर दिया था कि कौन ऋतु कब आएगी और कब जाएगी कितने समय तक रहेगी !उस समय प्राकृतिक वातावरण किस प्रकार का होगा !उन ऋतुओं में किस किस  प्रकार रोगों के फैलने की संभावना रहेगी |   

     महामारी का निर्माण कैसे होता है ?

     जिस प्रकार से भोजन निर्माण में लगने वाली प्रत्येक वस्तु के गुण दोष स्वभाव प्रभाव आदि को समझने वाले रसोइए को पता होता है कि भोजन निर्माण में किस वस्तु को कितनी मात्रा में डाला जाना चाहिए उससे कम या अधिक  होने से भोजन स्वाद बिगड़ सकता है | यह असंतुलन यदि बहुत अधिक मात्रा  में हुआ तो संभव है कि वह भोजन इतना अधिक बिगड़ जाए कि खाने लायक भी न जाए | 

      इसी प्रकार से प्रकृति है | जबतक सर्दी गरमी वर्षा आदि ऋतुएँ उचित मात्रा में अपना अपना प्रभाव छोड़ती हैं तब तक हवा पानी शाक सब्जियाँ फल फूल वृक्ष बनस्पतियाँ एवं सभी प्रकार के आनाज आदि विकार रहित होकर शरीर को स्वस्थ एवं मन को प्रसन्न रखने वाले होते हैं |इसके विपरीत जैसे जैसे ऋतुओं का प्रभाव असंतुलित होने लगता है वैसे वैसे हवा पानी शाक सब्जियाँ फल फूल वृक्ष बनस्पतियाँ तथा आनाज आदि विकार युक्त हो जाते  जिन्हें खाने पीने से एवं प्रदूषित वायु में साँस लेने से लोग रोगी होने लग जाते हैं | इस प्रकार का ऋतुज असंतुलन यदि बहुत  जाता है और कुछ वर्षों तक ऐसा ही चला करता है | उस समय प्रकृति  में कोरोना जैसी किसी महामारी का निर्माण हो रहा होता है | 

     इस प्रकार से महामारी का जन्म ऋतु प्रभाव के असंतुलन से होते  देखा जाता है किंतु इसके आधार पर महामारियों के विषय में बहुत पहले से  अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना  संभव  नहीं है जबकि महामारियों के  विषय सूचना जितने पहले से मिलती है  महामारियों  के विषय में अध्ययन अनुसंधान आदि करने  के लिए उतना ही अच्छा होता है | बचाव के लिए आहार बिहार खान पान आदि में सुधार के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है | 

    ऋतुओं के  आधार पर अनुसंधान करने से सुधार के लिए समय बहुत कम मिल पाता है | दूसरी बात इसके आधार पर महामारी के  विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं होता है |इसलिए पूर्वजों ने गणित विज्ञान की खोज की | 

     महामारी  प्राचीन विज्ञान की दृष्टि में - महामारी को कैसे पहचानें ?

        

उस समय का प्रकृति विज्ञान एवं जीवनविज्ञान वर्तमान  तरह इतना अधिक कमजोर नहीं था कि

 को भी अच्छी प्रकार से समझ लिया था |इससे उन्हें आगे से आगे इस बात का पता रहता था प्रकृति और जीवन में कब कब किस किस प्रकार के बदलाव होते चलेंगे | वे उसी के अनुसार स्वयं जीवन जीते एवं औरों  को भी उसी प्रकार से जीने के लिए प्रेरित करते रहते थे | 

     इससे सबसे बड़ा लाभ यह होता था कि भूकंप, तूफ़ान, सूखा ,बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिक आपदाएँ तो घटित होती थीं किंतु उससे मनुष्य जीवन बहुत अधिक पीड़ित नहीं होता था बिल्कुल उसी तरह से जैसे वर्षा होने की संभावना देखकर छतरी लेकर निकल लिया जाए !सर्दी के समय सर्दी से बचाव के लिए घर से ही अच्छी तैयारी करके निकला जाए |ऐसा ही गर्मी आदि की ऋतुओं में होते देखा जाता था | जिसके जितने मजबूत उपाय होते थे उसका उतना बचाव होता था | प्रयास पूर्वक बचाव ही किया जा सकता है | जिस प्रकार से सूर्योदय -सूर्यास्त, दिन -रात आदि का क्रम निरंतर चलते देखा जाता है  इस क्रम को रोका नहीं जा सकता है ठीक इसीप्रकार से भूकंप, आँधी तूफ़ान, सूखा ,वर्षा, बाढ़ एवं बज्रपात आदि भी तो प्राकृतिक घटनाएँ ही हैं | प्राकृतिक घटनाओं  के घटित होने का समय अलग अलग अवश्य होता है किंतु कौन सी घटना कब घटित होगी इसका निश्चय  आज के पौने दो अरब वर्ष पहले हो गया था |इसलिए ऐसी किसी प्राकृतिक घटना का निर्माण अभी कभी मनुष्यकृत किसी कर्म से हो  गया होगा और ऐसी घटनाओं को मनुष्यकृत किसी प्रयास से न तो रोका जा सकता है और न ही या कम किया जा सकता है | 

      अपने पूर्वजों ने जिस प्रकार से ऋतुएँ खोजीं और ऋतुओं का क्रम अवधि आदि खोजकर इन्हें समझना आसान कर दिया है अन्यथा सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के विषय में यदि पता होता तो ये ऋतुएँ भी किसी महामारी से कम घातक नहीं होतीं !

 

आगे से आगे अपना बचाव करते हुए 

    

 जो प्राकृतिक घटना वर्तमान समय में घटित होते दिख रही है |  उसके इस  समय घटित 

 

आपदाएँ तो घटित होती थीं प्राकृतिक घटनाओं को रोकना 

 

 


नाओं 

जनता के खून पसीने की कमाई से प्राप्त टैक्स 

     प्रत्येक देश में जनता के द्वारा चुनी गई सरकारें देशवासियों की खून पसीने की कठिन कमाई से टैक्स वसूलते समय जनता की मजबूरियाँ नहीं समझती हैं और टैक्स वसूलने के लिए कठोर से कठोर व्यवहार करते देखी जाती हैं,वही सरकारें उन वैज्ञानिकों पर इतनी नरम कैसे हो जाती हैं जो मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगा पाते हैं यदि लगाते भी हैं तो गलत निकल जाते हैं !


 

जनता के खून पसीने की कमाई से टैक्स लेकर उस धनराशि को सरकारें विभिन्न विकास योजनाओं पर खर्च किया करती हैं उससे कुछ न कुछ ऐसा हासिल होता है जो जनता के जीवन में आने वाली कठिनाइयों को कम या समाप्त करता है एवं जनता की सुख सुविधाएँ बढ़ाने में मदद करता है | यदि कुछ कार्य ऐसे हैं जो अपने दायित्वों का अच्छी प्रकार से निर्वहन करने में सफल होते नहीं दिखाई देते हैं |उन कार्यक्रमों में किस प्रकार का क्या और कितना सुधार अपेक्षित है| उसकी समय समय पर समीक्षा करना एवं उसके अनुसार उचित निर्णय लेना सरकार का दायित्व बनता है | जनता के प्रति जवाबदेही सरकार की होती है क्योंकि ऐसे विकास कार्यों के लिए सरकार ही तो जनता से टैक्स लेती है | इसलिए सरकारें अपने कर्तव्यों का सफलता पूर्वक निर्वहन करते देखी भी जाती हैं | 

      

  ऐसा बार बार होने का कारण वैज्ञानिक लोग जलवायुपरिवर्तन को बता दिया करते हैं |ये दलीलें सरकारें तो सुनकर सह जाती हैं किंतु वह जनता क्या करे जिससे टैक्स रूप में वसूली गई धनराशि ऐसे अनुसंधानों पर खर्च की जाती है उसके बदले उसे मिलता क्या है जिसे ऐसी दुर्घटनाओं से जूझते हुए बार बार जनधनहानि को सहना पड़ता है |    


 

     ऐसी ही सतर्कता भूकंप, तूफ़ान, सूखा ,बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित अनुसंधानों के विषय में भी वरती जानी चाहिए !ऐसे अनुसंधानों से क्या हासिल होता है ये सरकारों के साथ साथ साथ समाज को भी पता लगना चाहिए कि ऐसे अनुसंधानों से हासिल क्या होता है | प्राकृतिक आपदाओं से समाज की सुरक्षा के लिए सरकारें अपने वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमानों की प्रतीक्षा किया करती हैं | यही स्थिति समाज की भी है प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए समाज भी अपने वैज्ञानिकों से सही सटीक अनुमानों पूर्वानुमानों की अपेक्षा किया करता है |परिस्थितियाँ तब बहुत अधिक बिगड़ते देखी जाती हैं जब भूकंप, तूफ़ान, सूखा ,बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ अचानक घटित होने लगती हैं उनके विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं होता है |

                     प्राकृतिक आपदाएँ और अधूरे अनुसंधान !

       मौसमसंबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि न लगा पाने का या उसके गलत निकल जाने का दोष जलवायुपरिवर्तन पर डालकर मौसमवैज्ञानिक लोग ऐसी घटनाओं से स्वयं किनारा कर लिया करते हैं | यही स्थिति स्वास्थ्य के क्षेत्र में है प्राकृतिक रोगों महारोगों या कोरोना जैसी महामारियों और उसकी बार बार आने जाने वाली लहरों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि न लगा पाने या उनके द्वारा लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि के गलत निकल जाने पर स्वास्थ्य वैज्ञानिक लोग इसे महामारी का स्वरूप परिवर्तन बताकर स्वयं किनारा कर लिया करते हैं | 

      अपने देश की सुरक्षा में सीमा पर डटे किसी राष्ट्र भक्त सैनिक की यह जिम्मेदारी होती है कि शत्रु की प्रत्येक चाल का अंदाजा लगाकर उसे मुखतोड़ जवाब दे | ये उस सैनिक में योग्यता होनी ही चाहिए यही तो उसका वैशिष्ट्य होता है | शत्रु से पराजित होकर सीमा से भाग आने वाले सैनिक को यही समाज कायर कहने लगता है | ऐसा डरपोक सैनिक यदि कहे कि शत्रु के द्वारा रणनीति में परिवर्तन कर लिया गया था | इसलिए मुझे मैदान छोड़कर भागना पड़ा !उस सैनिक के द्वारा कही गई ऐसी बातें क्या सह ली जाएँगी | 

    ऐसी परिस्थिति में मौसम वैज्ञानिकों की जलवायुपरिवर्तन एवं स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की महामारी के स्वरूप परिवर्तन जैसी बातें कैसे सह ली जाती हैं | ये सरकारों की जिम्मेदारी बनती है कि ऐसी घटनाओं के कारणों की खोज करवाए और उनके विषय में समाधान खोजने का प्रयत्न करे | ये सरकारों ,मौसम वैज्ञानिकों एवं स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की अयोग्यता या फिर लापरवाही की घटनाएँ हैं जिन्हें समय रहते दूर कर लिया जाना चाहिए अन्यथा ऐसी घटनाएँ भविष्य में भी जब जब घटित होंगी उस समय भी सरकारें पूरी तरह खाली हाथ होंगी | उस समय भी ऐसी दुर्घटनाओं से समाज को सुरक्षित बचा लेना आसान नहीं होगा |

         जलवायुपरिवर्तन को समझे बिना महामारी को  समझना कैसे संभव है ?

     प्राकृतिक आपदाएँ भविष्य में भी घटित होनी ही हैं यदि वैज्ञानिक अनुसंधान इसीप्रकार से चलते रहे तब तो भविष्य में भी ऐसी दुर्घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव न होगा !उस समय भी मौसम वैज्ञानकों के द्वारा इसका कारण 'जलवायुपरिवर्तन' को बता कर स्वयं को किनारे कर लिया जाएगा ! यदि होना ही यही है तो ऐसे अनुसंधानों पर उस धन के व्यय की आवश्यकता ही क्या है जो देश की विकास योजना पर खर्च करने के लिए जनता से लिया जाता है | इसलिए सरकारों का यह दायित्व बनता है कि जिस किसी भी प्रकार से वह अपने देशवासियों को प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से सुरक्षा उपलब्ध करवाए | 

    इसी प्रकार से स्वास्थ्य वैज्ञानिकों की महामारी के स्वरूप परिवर्तन जैसी बातें हैं वे भी महामारी आने के विषय में पहले से कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा ही नहीं पाए और  महमारी की लहरों के आने जाने के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाते भी रहे वह सब कुछ गलत निकलते देखे जाते रहे | इसके लिए दोषी महामारी के स्वरूप परिवर्तन को हर बार ठहरा दिया जाता रहा | केवल इतना भर बोल देने के लिए किए जाते हैं क्या वैज्ञानिक अनुसंधान !यदि जनता को उनसे कोई मदद नहीं मिलनी है तो उनके किए जाने की आवश्यकता ही क्या है | 

      इसी  कोरोना महामारी के कठिन समय में अनेकों वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के पैदा होने या महामारी की लहरों के पैदा और समाप्त होने के लिए मौसम संबंधी विभिन्न परिवर्तनों को जिम्मेदार बताया जाता रहा है |तापमान एवं वायुप्रदूषण के बढ़ने और घटने को भी महामारी के बढ़ने और घटने के लिए जिम्मेदार बताया जाता रहा है | उनकी इस  आशंका में यदि थोड़ी भी सच्चाई हुई तो मौसम संबंधी सभीप्रकार के परिवर्तनों के विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी के बढ़ने और घटने के विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान लगाने की कल्पना कैसे की जा सकती है | इसीप्रकार से तापमान एवं वायुप्रदूषण के बढ़ने और घटने के विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी के बढ़ने और घटने के विषय में कोई अनुमान या पूर्वानुमान लगा पाना संभव ही नहीं है | 

     ऐसी परिस्थिति में मौसमसंबंधी जलवायुपरिवर्तन जनित घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना वैज्ञानिकों के द्वारा असंभव माना जाता  रहा है | इसी प्रकार से तापमान एवं वायुप्रदूषण के बढ़ने और घटने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए जबतक कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया विकसित नहीं होती है तब तक ऐसे प्राकृतिक परिवर्तनों के कारण होने वाले रोगों महारोगों महामारियों आदि के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं है | 

     संभवतः यही कारण है कि कोरोना महामारी के विषय में किसी भी प्रकार का कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने  लिए हमारे वैज्ञानिक सफल नहीं हुए | कोरोना महामारी को समझना भी संभवतः इसीलिए संभव  नहीं हो पाया क्योंकि जलवायुपरिवर्तन,वायुप्रदूषण एवं तापमान के बढ़ने घटने के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए वैज्ञानिकों के पास अभी तक कोई विज्ञान ही नहीं है |    

    जिसप्रकार से जलवायुपरिवर्तन यदि मौसमसंबंधी घटना है तो इसे मौसम वैज्ञानिक ही समझेंगे उनके अतिरिक्त और दूसरा कौन समझ सकेगा | यदि उनमें अपने विषय की योग्यता है तो उन्हें ऐसा करने में कठिनाई भी नहीं व्यक्त करनी चाहिए | यदि वे ऐसी हिंसक घटनाओं को जलवायुपरिवर्तन जनित बताकर पीछे हट जाते हैं तो उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधान उपयोगी कैसे हो सकते हैं यदि संकटकाल में उन्हें जलवायुपरिवर्तनजनित समस्याएँ बताकर 


 

 

 

 

और महामारी का स्वरूप परिवर्तन यदि स्वास्थ्य संबंधी घटना है तो इसे समझने में हमारे मौसमवैज्ञानिकों और स्वास्थ्यवैज्ञानिकों को कठिनाइ कों है 

     राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ने

भी हमारी वैज्ञानिक विभूतियाँ वैसे हमारी वैज्ञानिक विभूतियाँ वैसे

 विशेषकर भारत में भारतीयमौसमविज्ञानविभाग की स्थापना के बाद घटित हो रही प्राकृतिक घटनाओं एवं उनसे संबंधित अध्ययनों अनुसंधानों अनुमानों पूर्वानुमानों पर जनता का ध्यान भी स्वाभाविक रूप से जाने लगा है |उसमें यह देखा जा रहा है कि भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी जैसे प्राकृतिक रोगों महारोगों के विषय में अभी तक किए जाने वाले अनुसंधानों की कोई ऐसी उपयोगिता सिद्ध नहीं हुई है जिससे ऐसी घटनाओं से बचाव के उद्देश्य से समाज को कोई मदद मिल सकी हो | आकाशस्थ कैमरों (उपग्रहों रडारों) से समुद्र में घटित हो रही आँधी तूफ़ान चक्रवात आदि घटनाएँ कभी दिखाई पड़ जाती हैं तो वो जिस गति से जिधर जाते दिखाई उनसे उसी प्रकार का अंदाजा लगा लिया जाता है कई बार यह अंदाजा ई बार यह जाती हैं जार नाओं को 

बातें तो बहुत बड़ी बड़ी होती हैं किंतु 

उसमें ऐसे अनुसंधानों की उपयोगिता  

एवं इनसे संबंधित विगत कुछ दशकों से देखा जा रहा है कि भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारी जैसे प्राकृतिक रोगों महारोगों के विषय में कोई सार्थक एवं सटीक परिणाम सामने नहीं लाए जा सके हैं हमारी वैज्ञानिक विभूतियाँ वैसे

भी हमारी वैज्ञानिक विभूतियाँ वैसे हमारी वैज्ञानिक विभूतियाँ वैसे

उससे क्या भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना महामारी जैसे प्राकृतिक रोगों महारोगों के विषय में भी 

हमारे संस्थान का उद्देश्य है कि अन्य सरकारी योजनाओं की तरह ही

  

      भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीतने जा रहे हैं | उसके तहत जो अनुसंधान किए जा रहे हैं उन पर सरकारें पानी की तरह पैसे बहा रही हैं जबकि उन अनुसंधानों से प्राकृतिक संकटों के समय जनता को ऐसी क्या मिल पा रही है जो यदि न मिलती तो भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ जनता के जान धन का नुक्सान इससे भी अधिक कर सकती थीं |       ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से क्या कोई ऐसी मदद मिल पाती है जिससे भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से समाज का बचाव हो जाता है | यदि ऐसे अनुसंधानों से मदद न मिलती तो क्या इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था ? ये आम  समाज के चिंतन का विषय इसलिए भी है कि समाज  कमाई ऐसे अनुसंधानों पर खर्च होती है | 

    प्राकृतिक आपदाओं के समय जनता ऐसे अनुसंधानों से मदद की अपेक्षा करती है उस समय ऐसे अनुसंधानों से जनता को कोई मदद नहीं मिल पाती है |भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से जनता को स्वयं जूझना पड़ता है | ऐसे संकटकालीन समय में जनता सरकारों की ओर देखती है सरकारें वैज्ञानिकों की ओर देखती हैं |वैज्ञानिक अपनी अनुसंधान क्षमता की ओर देखते हैं | आधुनिक विज्ञान में ऐसी कोई अनुसंधान प्रक्रिया ही नहीं है जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं के विषय में भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में कुछ पता लगा पाना संभव हो | यह सच्चाई वैज्ञानिक भी निरंतर स्वीकार करते चले आ रहे हैं | ऐसी घटनाओं के बार बार घटित होने को वैज्ञानकों के द्वारा जलवायु परिवर्तन जनित बताने का आधारभूत कारण यही है कि ऐसी घटनाओं के विषय में हमें कुछ भी पता नहीं है | इसलिए ऐसे विषयों में हमसे कोई अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए |   

   ऐसी परिस्थिति में नासमझ सरकारों की ओर से विशेष दबाव पड़ने पर संबंधित प्राकृतिक आपदाओं के विषय में वैज्ञानिक लोगों को मजबूरी में कुछ न कुछ बोलना पड़ता है |जो शतप्रतिशत गलत निकलने के लिए ही बोला जाता है | उसमें वैज्ञानिकता तो होती ही नहीं है इसीलिये उनके द्वारा प्राकृतिक आपदाओं के विषय में कही गई बातें वैज्ञानिकों के द्वारा गढ़े गए काल्पनिक किस्से कहानियों से अधिक कुछ नहीं होती हैं | उनके सच होने की संभावना भी नहीं होती है और वे सच होती भी नहीं हैं |मौसम संबंधी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जनता अपने वैज्ञानिकों की ऐसी आधार विहीन भविष्यवाणियों को हमेंशा से झेलती रही है और महामारी के विषय में हमारे वैज्ञानिक अपने अनुसंधानों से जनता की क्या कुछ मदद कर सकते हैं | इसे दुनियाँ ने कोरोना महामारी के समय अच्छी प्रकार से अनुभव किया है कि महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कही गई प्रत्येक बात ही नहीं अपितु प्रत्येक शब्द गलत सिद्ध हुआ है |इसके बाद भी जनता अपनी अपनी सरकारों एवं वैज्ञानिकों की  ओर देख रही है | ये सबसे अधिक दुखद है |  

     ऐसी परिस्थिति में यह बिचार करने का समय आ गया है कि भूकंप आँधी तूफ़ान सूखा वर्षा बाढ़ बज्रपात एवं महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए ऐसे निरर्थक अनुसंधानों के भरोसे अकेले अपने बल पर कब तक ऐसे प्राकृतिक संकटों से जूझा जाएगा | 

    ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए समाज के सामने कुछ अन्य विकल्प भी हैं जो ऐसे प्राकृतिक संकटों से बचाव के लिए जनता की काफी मदद कर सकते हैं किंतु सरकारों और वैज्ञानिकों की मिली भगत से उन विकल्पों को समाज तक पहुँचने नहीं दिया जा रहा है | उनकी उपेक्षा की जा रही है !समाज को उनसे दूर रखा जा रहा है |

आधुनिक विज्ञान की असफलता पर आत्ममंथन आवश्यक है !

       विज्ञान का मतलब केवल आधुनिक विज्ञान ही तो नहीं होता है और अनुसंधान का मतलब किसी भी प्राकृतिक घटना के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि के नाम पर कुछ भी बकना बोलना तो नहीं होता है | ऐसे विषयों में अनुसंधानों का उद्देश्य प्राकृतिक संकटों का समाधान निकालना होता है| इस लक्ष्य को सामने रखकर जिस भी विषय से संबंधित अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा ऐसे संकटों का समाधान निकलना संभव हो  वही उस विषय से संबंधित वास्तविक विज्ञान होता है|यदि ऐसा करना संभव न हो तो उसकी वैज्ञानिकता संदिग्ध होनी स्वाभाविक है |वैज्ञानिकताविहीन ऐसे विज्ञान को बदलकर उसका वैकल्पिक विज्ञान खोज लिया जाना चाहिए |अब समय आ गया है जब सरकार एवं समाज को ऐसे कठोर निर्णय आपसी सहमति से लेने चाहिए ताकि प्राकृतिक आपदाओं मौसम संबंधी असंतुलन एवं कोरोना जैसी महामारियों के समय समाज को कुछ मदद वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी मिल सके  | यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो ऐसे अनुसंधानों की उपयोगिता और क्या है ? 

    मौसम के विषय में ही यदि चिंतन किया जाए तो भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग डेढ़ सौ वर्ष होने जा रहे हैं अभी तक मौसम संबंधी किसी भी प्राकृतिक आपदा के विषय में सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पाया है |जो लगाए भी जाते हैं वे गलत निकल जाते हैं |मौसम वैज्ञानिकों के द्वारा प्रतिवर्ष घोषित की जाने वाली मानसून आने जाने की तारीखें हर बार गलत निकल जाती हैं |दीर्घावधि मध्यावधि पूर्वानुमान तो हर बार गलत निकल ही जाते हैं |

    वायु प्रदूषण के विषय में ही यदि  चिंतन किया जाए तो बातें बहुत बड़ी बड़ी की जाती हैं   बड़े बड़े पर्यावरणविद वायुमंडल में बढ़ते प्रदूषण से बहुत चिंतित बताए जाते हैं | सरकारें बहुत चिंतित हैं वायुप्रदूषण कम करने के विषय में चिंतन करने के लिए सरकारी प्रतिनिधियों पर्यावरणविदों एवं मौसम वैज्ञानिकों के  बड़े बड़े सभा सम्मेलन होते देखे जा रहे हैं  जिनमें बातें तो बड़ी बड़ी होती हैं बड़े बड़े सपने देखे और दिखाए जाते हैं किंतु वास्तविकता यह है यह वायुप्रदूषण बढ़ने का कारण क्या है और इसके घटने बढ़ने के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | इस विषय में अभी तक एक कदम भी आगे नहीं बढ़ाया  जा सका है !

    भूकंपों जैसी घटनाओं के घटित होने के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कुछ काल्पनिक किस्से कहानियाँ भले तैयार कर ली गई हों किंतु भूकंप संबंधी घटनाओं से उन कहानियों का अभी तक कोई संबंध सिद्ध नहीं हो पाया है | इसीलिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अभी तक किसी भी प्रकार का अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं हो पाया है |

      इसी प्रकार से कोरोना महामारी को प्रारंभ हुए लगभग तीन वर्ष बीतने जा रहे हैं किंतु वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा महामारी के किसी भी पक्ष को अभी तक समझना संभव नहीं हो पाया है | महामारी प्रारंभ होने का कारण क्या था और ये समाप्त कैसे और कब होगी ?इसका विस्तार कितना है प्रसार माध्यम क्या है | इसकी सभी पदार्थों में अंतर्गम्यता कितनी है | महामारी पर तापमान एवं वायु प्रदूषण के घटने बढ़ने का प्रभाव कैसा पड़ता है | महमारीजनित संक्रमितों की संख्या अचानक घटने और बढ़ने का कारण क्या है ?

     मौसम से लेकर महामारी तक ऐसे सभी विषयों में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के उद्देश्य से अभी तक जितने भी अनुसंधान किए गए हैं उनसे ऐसी कोई सफलता नहीं मिल सकी है जिससे ऐसी प्राकृतिक संकट कालीन परिस्थितियों में समाज को थोड़ी भी मदद नहीं पहुँचाई जा सकीहै | ऐसी परिस्थिति में इन वैज्ञानिक अनुसंधानों की मानव जीवन में और दूसरी उपयोगिता क्या है ?

     ऐसी परिस्थिति में जिस भी विज्ञान के द्वारा मौसम से लेकर महामारी तक ऐसे सभी विषयों में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव न हो पाया हो तो यह मान लिया जाना चाहिए कि ऐसे कठिन प्राकृतिक विषयों में अनुसंधान करना इस  वैज्ञानिक अनुसंधान प्रक्रिया के आधार पर संभव नहीं है | इसके लिए किसी वैज्ञानिक विकल्प की तलाश शुरू कर दी जानी चाहिए ताकि भविष्य में जब कभी ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हों उस समय वैज्ञानिक अनुसंधानों से कुछ तो मदद मिल ही सके |

 

 

जिस किसी भी अनुसंधान प्रक्रिया से कोई सफलता मिलती है तो सरकारों के द्वारा जनता की भलाई को ध्यान में रखते हुए बाक़ी सभी बातें भूलकर उन अनुसंधानजनित अनुभवों को जनहित में स्वीकार किया जाना चाहिए  |

      अनुसंधानों के क्षेत्र के लिए इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही माना जाएगा कि आधुनिक विज्ञान से संबंधित वैज्ञानिक लोग मौसमसंबंधी प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना जैसी महामारियों के समय समाज  को स्वयं तो कोई मदद पहुँचा ही नहीं पाते हैं | किसी अन्य वैज्ञानिक पद्धति से ऐसा किया जाना संभव भी होता है तो  कोरोना जैसी महमारियों को समझने में मदद मिल सकती है ! ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं | घटनाओं के स्वभाव को समझा जा सकता है | उनसे  बचाव  के लिए उचित मार्ग खोजा  जा सकता है | 

    ऐसे अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिक लोग सरकारों से बिना कोई मदद मिले ही अत्यंत परिश्रम पूर्वक  ऐसे विषयों में अनुसंधान करते हैं | अपने अनुसंधानों से जनता को मदद पहुँचाने के उद्देश्य से जब वे अपने अनुसंधानों को सरकारों के सामने प्रस्तुत करना चाहते हैं तो सरकारों की ओर से उन अनुसंधानकर्ताओं को अपने अनुसंधान लेकर उनकी उपयोगिता को मापने के लिए उस फाइल क उन्हीं वैज्ञानिकों के पास भेजा जाता है जो स्वयं ऐसे विषयों में अनुसंधान करने में असफल रहे हैं वे किसी दूसरे की सफलता को स्वीकार कैसे कर लें | इसलिए उन लोकोपकारी अनुसंधानों को या तो सीधे तौर पर यह कहकर अस्वीकार कर दिया जाता है कि तुम्हारे द्वारा किए गए अनुसंधान यदि सही हों तो भी वो इसलिए स्वीकार्य नहीं हो सकते क्योंकि वे जिस प्रक्रिया से किए गए हैं उसे हम लोग विज्ञान नहीं मानते हैं | ये कहकर वापस कर देते हैं उनके वापस करते ही सरकारें ऐसे जनहितकारी अनुसंधानों की मदद करने को मना कर दिया करती हैं | 

     "राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान" के साथ पिछले कुछ दशकों से यही होता आ रहा है | इसीलिए महामारियों एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं के विषय में आगे से आगे लगाए जाते रहे पूर्वानुमान सही निकलते रहने के बाद भी उन्हें स्वीकार नहीं किया गया |  ऐसे अनुसंधानों की मदद करने के लिए सरकारी तंत्र ने पूरी तरह मना कर दिया 




 प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से पीड़ित समाज का सहारा आखिर कौन है ?ऐसे महामारी वैज्ञानिकों पर कितना विश्वास किया जाना चाहिए  ! प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोना जैसी माहमारियों के विषय में जिन्हें कुछ पता ही नहीं है !उनके द्वारा ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिन कारणों को जिम्मेदार बताया जाता है उनमें सच्चाई कितनी  है और वैज्ञानिकता कहाँ है |संबंधित विषयों में वैज्ञानिक लोग जो जो कुछ बताया करते हैं उन किस्से कहानियों में वैज्ञानिकता बिल्कुल नहीं होती है | 

     भूकंप वैज्ञानिकों को भूकंपों के विषय में क्या पता है कितना पता है ये वही जानें किंतु उनके द्वारा भूकंपों के विषय में कही गई कोई भी बात सच नहीं निकलती !मौसम वालों को मौसम के विषय में कुछ नहीं पता होता है जब जैसी घटनाएँ घटित होने लगती  हैं वे तब तैसी कहानियाँ सुनाने लगते हैं | अब ऐसा होगा तब वैसा होगा | तापमान घटने बढ़ने से लेकर आँधी तूफानों वर्षा बाढ़ आदि किसी भी विषय में आज तक वैज्ञानिक ऐसा कुछ नहीं बता पाए हैं जिससे जनता का कुछ भला हो और जो वैज्ञानिकता संपन्न हो | वायु प्रदूषण घटने बढ़ने का कारण क्या है इस विषय में हमारे वैज्ञानिक आजतक कुछ स्पष्ट कारण नहीं बता पाए हैं | महामारी में जनता ने उनके जूठे प्रवचनों को बार बार सुना है | ये आश्चर्य की बात है कि दिनरात विज्ञान विज्ञान रटने वाले लोगों के पास ऐसी बड़ी घटनाओं के विषय में कोई वैज्ञानिक तर्कसंगत चिंतन ही नहीं है !

    सरकारें 

   ऐसी परिस्थिति में स्वयं के विषय में कुछ तो सोचना ही होगा ! 

        पिछले कुछ दशकों से प्रकृति में तरह तरह परिवर्तन होते देखे जा रहे हैं | सर्दी में तापमान या तो बहुत कम हो जाता है या फिर जितना होना चाहिए उससे अधिक हो जाता है | यही स्थिति गरमी की ऋतु में होती है या तो तापमान बहुत अधिक बढ़ता चला  जाता है या फिर अप्रैल मई तक वर्षा होती रहती है इसलिए तापमान ऋतु के अनुकूल बढ़ने ही नहीं पाता है| ऐसा ही वर्षा के समय होते देखा जा रहा है जहाँ एक ओर पेय जल का संकट दिनोंदिन गहराता जा रहा है वहीं वर्षाऋतु में कई देशों प्रदेशों में भीषण बाढ़ की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं | बार बार भूकंप घटित होते देखे जा रहे हैं हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ घटित होते देखी जा रही हैं | उल्कापात बज्रपात आदि हिंसक घटनाएँ मानव जीवन को भयभीत करती जा रही हैं | पिछले कुछ वर्षों से संपूर्ण विश्व में महामारी व्याप्त है|जिसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए और बड़ी संख्या में लोग मारे भी गए हैं |      विश्व के अधिकाँश देशों ने अपने अपने देश में  राष्ट्रीय स्तर पर या वैश्विक दृष्टि से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संयुक्त रूप से ऐसे विषयों में अनुसंधान करने के लिए बड़े बड़े कार्यक्रम चला रखे हैं|जिनमें एक से एक सुयोग्य वैज्ञानिक ऐसे अनुसंधान कार्यों में लगे हुए हैं जो प्रकृति के स्वभाव को समझने का प्रयत्न कर रहे हैं | जिसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अध्ययन पूर्वक आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके, किंतु इस विषय में अभी तक ऐसी कोई सफलता हाथ नहीं लगी है | 

     इसे दुर्भाग्य ही समझा जाएगा कि संपूर्ण विश्व इतनी बड़ी महामारी से पीड़ित है किंतु वैज्ञानिकों के द्वारा महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि सही नहीं बताए जा सके हैं उनके द्वारा अभी तक जो जो कुछ बताया जाता रहा है वो हमेंशा गलत ही निकलता रहा है |अभी तक किसी को ये नहीं पता है कि महामारी कब तक रहेगी कितनी लहरें अभी और आएँगी और संपूर्ण रूप से महामारी कब समाप्त होगी | अगली महामारी कब आएगी ? यह संपूर्ण समाज जानना चाहता है किंतु दुर्भाग्य से ऐसे प्रश्नों के उत्तर विश्व के किसी भी वैज्ञानिक के द्वारा अभी तक नहीं दिए जा सके हैं | 

    जिन वैज्ञानिकों को ऐसे ही कार्यों के लिए भारी भरकम सैलरी समेत समस्त सुख सुविधाएँ दी जाती हैं पद प्रतिष्ठा प्रदान की जाती है | एक से एक विशिष्ट पुरस्कार दिए जाते हैं उनके द्वारा किए जाने वाले अनुसंधानकार्यों पर सरकारें वो पैसा पानी की तरह बहाया करती हैं जो जनता अपने खून पसीने की कमाई से टैक्स रूप में सरकारों को देश के विकास के लिए दिया करती है | जिसे अनुसंधानों के नाम पर मनमाने ढंग से खर्च किया जाता है | सरकारों के द्वारा प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कराए जा रहे ऐसे अनुसंधान प्राकृतिक आपदाओं या महामारी जैसे प्राकृतिक संकटों के समय जनता के किसी काम नहीं आए | कोरोना महामारी के समय इस सच्चाई को सारी दुनिया ने देखा है | 

     ऐसी परिस्थिति में मौसम एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में आधुनिक वैज्ञानिकों के अनुसंधानों से कोई उम्मींद नहीं की जा सकती है | उन्हीं वैज्ञानिकों की दृष्टि से मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों को देखने वाली सरकारों के वक्तव्य विश्वसनीय नहीं हैं |वैज्ञानिकलोग ही जब महामारी को नहीं समझ सके तो वो सरकार को क्या समझाएँगे !सरकारें स्वयं नहीं समझेंगी तो वो समाज को मौसम एवं महामारी के विषय में क्या समझा पाएँगी |

     ऐसी परिस्थिति में सरकारों के लिए यह परमावश्यक है कि ऐसे विषयों में जनता के सामने वे अपनी स्थिति स्पष्ट करें !मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों को समझने में वैज्ञानिक आज तक असफल रहे हैं फिर भी उन पर सरकारें पानी की तरह पैसे बहाती हैं | ऐसे अनुसंधान हों तो जनता का क्या नुक्सान हो जाएगा !जनता का पैसा ऐसे निरर्थक अनुसंधानों पर व्यय करने का अचित्य क्या है जिससे किसी प्रकार के लाभ की आशा ही न हो फिर भी सरकारें उसे खींचे जा रहीं हैं | वर्तमान वैज्ञानिक समुदाय ऐसे प्राकृतिक विषयों में न स्वयं कुछ कर पा रहा है और न ही दूसरों को कुछ करने दे रहा है | ये बहुत बड़ी चिंता की बात है |ऐसी परिस्थिति में सरकारों को वर्तमान वैज्ञानिक अनुसंधान पद्धतियों का विकल्प खोजना प्रारंभ कर देना चाहिए अन्यथा भविष्य की महामारियों एवं मौसम संबंधी प्राकृतिक आपदाओं के समय भी वैज्ञानिक समुदाय इतना ही खाली हाथ होगा और ऐसी आपदाओं से जूझ रही जनता भविष्य में भी इतनी ही लाचार बनी रहेगी | 

                                      राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान और अनुसंधान 

        ऐसे अनुसंधानों से क्या लाभ !

       जिस प्रकार की घटनाओं के विषय में अनुसंधान आदि विश्व में हमेशा चला करते हैं इसके बाद भी उस प्रकार अनुसंधान समाज के काम न आवें तो ऐसे अनुसंधानों के होने न होने का अर्थ ही क्या बचता है | इतनी बड़ी महामारी आने के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कोई भी पूर्वानुमान न तो पहले बताया जा सका और न ही अभी तक किसी को पता है कि महामारी आगे कब तक रहेगी | 

     कुलमिलाकर महामारी संबंधित वैज्ञानिकों को महामारी के विषय में यदि कुछ न पता हो !भूकंप वैज्ञानिकों को भूकंपों के विषय में कुछ न पता हो !मौसम वैज्ञानिकों को मौसम के विषय में कुछ न  पता हो !यहाँ तक कि मानसून आने जाने के विषय में उन वैज्ञानिकों के द्वारा प्रत्येक वर्ष जो जो तारीखें बताई जाती हैं वे प्रत्येक वर्ष गलत निकलते देखी जाती हैं | बढ़ता वायु प्रदूषण समाज के लिए दिनोंदिन समस्या बनता जा रहा है किंतु ऐसे अनुसंधानों से संबंधित वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक ये नहीं बताया जा सका है कि वायु प्रदूषण बढ़ने का वास्तविक कारण क्या है ?

 गया जो सही निकले हों !वैज्ञानिकों के द्वारा अभी तक जो जो कुछ दुर्भाग्य से

 

 

 

'भाग्यभ्रम':- भाग्य को कुछ लोग मानते हैं और कुछ लोग नहीं मानते हैं कुछ लोग भाग्य और कर्म दोनों को मानते हैं जबकि कुछ लोग केवल कर्म को ही मानते हैं|इसमें विशेष बात यह है कि जिस बात को हम अच्छी प्रकार से जानते हैं और उसके गुण दोष को अच्छी प्रकार से समझते हैं | उसी को मानने या न मानने के विषय में हम कोई भी बिचार प्रकट कर सकते हैं जबकि वर्तमानसमय में कुछ ऐसा होते देखा जा रहा है कि भाग्य के विषय में बिल्कुल जानकारी न रखने वाले लोग भी भाग्य को नहीं मानने का दावा करते हैं | ऐसे लोगों से हमारे कुछ प्रश्न हैं | 

1.कोई भी व्यक्ति जिस किसी भी काम को करता है उसमें वो कभी सफल और कभी असफल होते देखा जाता है जबकि उस व्यक्ति में उस कार्य को करने की योग्यता अनुभव परिस्थिति एक परिश्रम पूर्वक समर्पण एक जैसा रहता है | इसके बाद भी उस कार्य में बार बार होने वाले उतार चढ़ाव का कारण यदि उस व्यक्ति का अपना अच्छा बुरा भाग्य नहीं तो और क्या होता है ?

 2. किसी व्यक्ति में एक जैसे ज्ञान गुण गरिमा अनुभव आदि रहने के बाद भी वो समाज में परिवार में कार्य क्षेत्र में या किसी संस्था संगठन राजनैतिक दल एवं सरकार आदि में रहते हुए कभी सम्मानित और कभी अपमानित होता रहता है कभी चुनावी टिकट मिलती है और कभी नहीं मिलती है | कभी चुनाव जीतता है और कभी कभी हार जाता है |ऐसा होने का कारण यदि उस व्यक्ति का अपना अच्छा और बुरा भाग्य नहीं तो और क्या होता है ? 

 3.कुछ लोगों की आपस में एक दूसरे से मित्रता कभी अच्छी रहती है कभी सामान्य एवं कभी शत्रुता हो जाती है | ऐसी परिस्थिति में एक जैसी योग्यता स्वभाव प्रभाव आवश्यकताएँ दोनों तरफ होने के बाद भी समय समय पर संबंधों के बनने बिगड़ने का कारण यदि उन दोनों मित्रों का अपना अपना अच्छा बुरा भाग्य नहीं तो और क्या होता है ? 

4.जिन स्त्री- पुरुषों का विवाह एक दूसरे की योग्यता अनुभव स्वभाव प्रभाव यश अपयश आदि का अच्छी प्रकार से परीक्षण करके किया जाता है उन सारे गुणों के एक जैसे बने रहने पर कुछ समय बाद उन लोगों के आपसी संबंध बनने बिगड़ने लग जाते हैं | कई बार तो तलाक तक होते देखा जाता है | वैवाहिक जीवन में आने वाले ऐसे उतार चढ़ावों का कारण यदि उस दोनों स्त्री पुरुषों का अपना अपना अच्छा और बुरा भाग्य नहीं तो और क्या हो सकता है ?

 5.चिकित्सकीय दृष्टि से संपूर्ण रूप से स्वस्थ होने के बाद भी कुछ विवाहित स्त्री पुरुषों को संतान नहीं होती है | बार बार चिकित्सकीय सहयोग लेने के बाद भी उन्हें संतान नहीं होती है |इसका कारण उन दोनों का अपना अपना अच्छा बुरा भाग्य नहीं तो और दूसरा क्या होता है ?

 6. संपूर्ण रूप से स्वस्थ कुछ युवा लोग स्वास्थ्य कर खान पान रहन सहन आदि अपनाते हुए भी अचानक रोगी होते देखे जाते हैं | चिकित्सा का सहयोग मिलने पर उनमें से कुछ रोगी तो स्वस्थ हो जाते हैं जबकि सघन चिकित्सा काल में अच्छी से अच्छी चिकित्सा लेने पर भी कुछ रोगियों की स्थिति बिगड़ती चली जाती है | ऐसे रोगी कई बार तो मृत्यु तक को प्राप्त हो जाते हैं | उन संपूर्णरूप से स्वस्थ लोगों के अचानक रोगी होने का कारण एवं चिकित्सकों के द्वारा अच्छी प्रकार से चिकित्सा किए जाने पर भी चिकित्सा के आधीन पड़े रोगियों की स्वास्थ्य स्थिति बिगड़ने का कारण लोगों का अपना अपना अच्छा या बुरा भाग्य नहीं तो और क्या हो सकता है ?

7. भूकंप,बाढ़,बज्रपात,आँधी तूफान आदि प्राकृतिक या मनुष्यकृत किसी बड़ी हिंसक दुर्घटना के घटित होने पर ,किसी बस या कार के खाई में गिर जाने पर उससे प्रभावित तो बहुत लोग होते हैं किंतु उनमें से कुछ लोगों को खरोंच भी नहीं आती है जबकि कुछ लोग गंभीर चोट के शिकार हो जाते हैं और कुछ लोग दुर्भाग्य पूर्ण मृत्यु के शिकार हो जाते हैं | ऐसी परिस्थिति में उस एक प्रकार की दुर्घटना में प्रभावित हुए उन बहुत लोगों पर अलग अलग प्रकार का प्रभाव पड़ने का कारण यदि उन लोगों का अपना अपना अच्छा या बुरा भाग्य नहीं तो और क्या हो सकता है ? 

 8. 

मानसिक तनाव ! 

 

'कर्म और भाग्य में भ्रम':-

 कर्म करके हम कोई वस्तु पा तो सकते हैं किंतु उसका भोग नहीं कर सकते हैं भोग करने का सुख तभी मिलेगा जब अपने भाग्य में बदी  हुई कोई वस्तु प्रयास पूर्वक प्राप्त की गई हो 

भाग्य और समय 

समय और प्राकृतिक  परिस्थितियाँ

लोगों उनके आपसी    

जीवन में 'भाग्यबल' की भूमिका 

भाग्यबल वह बल है जिससे प्रत्येकजीव प्रभावित होता है मनुष्यजीवन में इसका अनुभव अधिक होता है | 

 


 

प्रत्येक व्यक्ति किसी भी कार्य को करता

     प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भाग्य की भूमिका सबसे अधिक होती है वह प्रयास पूर्वक कोई भी कार्य प्रारंभ कर सकता है किंतु उस कार्य में वह कितना सफल होगा उसका परिणाम उसे उसके भाग्य के 

कोई भी

 

 

राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान का मुख्य उद्देश्य भाग्यविज्ञान को समझना है

 

 अस्पतालों में लोग स्वस्थ होने के लिए जाते हैं वहाँ शवगृहों का क्या काम !

     चिकित्सालय स्वास्थ्य लाभ देने के उद्देश्य से बनाए जाते हैं | रोगी भी रोग मुक्ति की आशा लेकर ही चिकित्सालयों में ले जाए जाते हैं |चिकित्सा करने वाले चिकित्सकों का उद्देश्य भी रोगी को रोग मुक्ति दिलाना ही होता हैं वहाँ रोगियों को स्वस्थ करने के लिए चिकित्सक समर्पित भावना से प्रयास करते हैं | 

     चिकित्सालयों से जो रोगी स्वस्थ होकर निकलते हैं उसका क्रेडिट चिकित्सकों के द्वारा की गई चिकित्सा को मिलना स्वाभाविक है किंतु चिकित्सालयों में भर्ती होने के बाद चिकित्सा चलते रहने पर भी जिन रोगियों का रोग दिनोंदिन बढ़ता चला जाता है और अंत में मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं |इसकी जिम्मेदारी कोई लेने को तैयार नहीं होता है | 

    चिकित्सक केवल चिकित्सकीय प्रयास ही तो कर सकते हैं उसके परिणाम स्वरूप रोगी स्वस्थ होंगे या नहीं दोनों ही परिस्थितियों के लिए चिकित्सक जिम्मेदार नहीं होते हैं क्योंकि चिकित्साजनित प्रयास का परिणाम प्रत्येक व्यक्ति को अपने अपने भाग्य के अनुसार मिलता है | भाग्य बदलना चिकित्सकों का काम नहीं है और किसी रोगी के अच्छे बुरे भाग्य को समझना चिकित्सकों के बश का नहीं है क्योंकि आधुनिक विज्ञान में भाग्य को समझने की कोई प्रक्रिया है ही नहीं |

    भाग्यविज्ञान को समझने की क्षमता न होने के कारण ही अस्पतालों में भर्ती रोगियों का भाग्य कैसा है ये चिकित्सकों को पता नहीं होता है | इसलिए वे इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगा पाते हैं कि अस्पतालों में भर्ती रोगियों में से किसे स्वस्थ होना है किसे अस्वस्थ ही रहना है और किसे मृत्यु को प्राप्त होना है | 

    ऐसी भ्रम की स्थिति में अस्पतालों में जहाँ एक ओर कुछ कमरे स्वास्थ्य लाभ लेने वाले रोगियों के लिए बने होते हैं वहीं दूसरी ओर शवगृह बना होता है | जिस रोगी के विषय में उसका अपना भाग्य जिस प्रकार का निर्णय देता है उन सजीव या निर्जीव रोगियों को वैसे कमरों में भेज दिया जाता है | 

      भाग्य को समझने की क्षमता यदि चिकित्साकों में होती तो चिकित्सालयों में संभवतः शवगृह बनाने ही नहीं पड़ते ,चिकित्सालयों का उद्देश्य स्वास्थ्य लाभ देना है शव तैयार करना नहीं| 

किंतु रोगियों के स्वस्थ होने का क्रेडिट जिसे जाता है|  मृत्यु को प्राप्त हुए रोगियों की मृत्यु की जिम्मेदारी भी उन्हीं की बनती है 

    चिकित्सालयों में


  इस रहस्य को केवल भाग्यविज्ञान के द्वारा ही समझा जा सकता है आधुनिक विज्ञान में भाग्य विज्ञान को  क्षमता न होने के कारण ही उन्हें प्रकृति एवं जीवन से संबंधित सभी क्षेत्रों में दोनों प्रकार के परिणामों के लिए तैयारी करके चलनी पड़ती है | अस्पतालों में स्वस्थ होने का उद्देश्य लेकर चिकित्सा के लिए ले जाए गए रोगियों का भाग्यबल चिकित्सकों को पता नहीं होता है इसलिए वे यह नहीं पता लगा सकते कि अस्पतालों में एडमिट होने वाले रोगियों में से किनको स्वस्थ होना है किनको रोगी ही रहना है और किन्हें मृत्यु को प्राप्त होना है | 

     bhaचिकित्सा करके केवल उसी रोगी को स्वस्थ किया जा सकता है जिसके अपने भाग्य में स्वस्थ होना लिखा होता है या जिसका साथ उसका अपना भाग्य दे रहा होता है जिस किसी रोगी का साथ यदि उसका अपना भाग्य ही छोड़ देता है तो ऐसे भाग्यविहीन रोगियों पर अच्छी से अच्छी चिकित्सा का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है जिससे  स्वास्थ्य दिनों दिन बिगड़ता चला जाता है अंततः मृत्यु हो जाती है |

      चिकित्सा वैज्ञानिकों को ये बात अच्छी प्रकार से पता है |

कई बार कोई स्वस्थ युवा व्यक्ति भाग्य बिगड़ते ही रोगी होने लगता है जिसकी चिकित्सा स्वदेश से लेकर विदेश तक करवाई जाती है | भाग्य विपरीत होने के कारण उसे चिकित्सा से कोई लाभ नहीं होता है जिससे उसका रोग दिनोंदिन बिगड़ता चला जाता है और वह मृत्यु को प्राप्त हो जाता है | 


 

 या तो कुछ कम नहीं मिलता है ही मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में समय के द्वारा निर्धारित किया गया होता है | और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/



 

 

 भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख ! 


Dr.Shesh Narayan Vajpayee

 
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 
वैदिक मौसम वैज्ञानिक 
वैदिक भूकंपवैज्ञानिक 
वैदिक वर्णवैज्ञानिक
वैदिक प्राकृतिक रोगवैज्ञानिक 
 संस्थापकः-  राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोधसंस्थान seemore....http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2014/06/blog-post_3979.html
हमारी शिक्षा -
व्याकरणाचार्य (एम.ए.)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
ज्योतिषाचार्य (एम.ए.ज्योतिष)संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी कानपुर विश्व विद्यालय
पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता ,उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी(काशी हिंदू विश्वविद्यालय ) 
  
 जीवन का मुख्य लक्ष्य : आजीवन सरकारी या निजी नौकरी न करने का व्रत लेकर ज्योतिष आयुर्वेद योग आदि समस्त वेदविज्ञान के आधार पर जलवायुपरिवर्तन, पर्यावरण, मौसम, भूकंप,स्वास्थ्य  एवं महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण खोजने के लिए एवं ऐसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाने के बिषय में अनुसंधानकार्य हेतु समर्पित भावना से कार्य करते हुए मानवता की सेवा करने का लक्ष्य |
 कोरोना महामारी के विषय में विस्तृत जानकारी के साथ -
    संक्रमितों की संख्या बढ़ने और घटने के बिषय में हमारे द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान सही सटीक घटित हुए हैं जो पीएमओ की मेल पर आज भी विद्यमान हैं | 
मौसम विज्ञान -
    भारतीय मौसम विज्ञान विभाग से संबंधित कार्यों के बिषय में प्रेस ट्रस्ट ऑफ़ इंडिया के द्वारा विभिन्न अखवारों में प्रकाशित करवाया गया अनुसंधानात्मक लेख : "मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान !'  see more....  https://navbharattimes.indiatimes.com/india/astrologers-claim-the-weather-as-well-as-forecasts-of-disturbing-events-are-telling-the-government/articleshow/73211738.cms 
 
 हमारे मौसम संबंधी अनुसंधान को सच मानने वाले निजीसंस्था स्काईमेट के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ.रजनीश रंजन का परिचय !
Dr. R Ranjan, PhD,PGJMC,LLB
Vice President (Government Business & Disaster Management)
Senior Consultant, National Disaster Management Authority, Govt. of India  [former]
Special Advisor ,International Federation of Red Cross and Red Crescent Societies [former]
Programme Manager (e-learning),National Institute of Disaster Management [former]
Assistant Professor (Disaster Management) ,YASHADA, Pune [former]
Assistant Professor (Disaster Management) ,J&K IMPA,Jammu [former]
Landline  -91-120-4156504
Mobile - 91-9971767760
Skype-rajnishranjan70 
 डॉ.रजनीश रंजन जी के द्वारा मौसम विभाग के महानिदेशक  मृत्युंजय महापात्रा जी के लिए लिखा गया हमारे अनुसंधान के विषय में पत्र -
    To: Mrutyunjay Mohapatra <mohapatraimd@gmail.com>

Dear Sir,

My heartiest congratulations to you for assuming the highest and the prestigious position in your organization, which you really deserve. I have been one of the active spectator of your knowledge and skills  , who has seen you in different roles since long- As a Hard Core Scientist, A good orator on the subject, An excellent faculty, A dynamic communicator and head of the division and many more . Sir,  May god give you strength and enthusiasm so that you can continue your extra ordinary services to the nation . I shall be happy  and pleased to offer my support whenever required .

Further I would also like to introduce you with a qualified Astrologer Dr. Shesh Narayan Vajpayee (vajpayeesn@gmail.com) , to whom I came in contact recently and found him with a great capability of  forecasting weather with his Astrological Science . If you could desire to utilize his honorary services to your utility then he may be happily come to meet you for further discussion. May I request you to kindly listen to his techniques and model for further consideration in your system .

Thank you very much and warm regards.

Sincerely Yours ,

Rajnish Ranjan, PhD   Ex- Sr. Consultant 

NDMA ,M-9971767760

 विशेष: - वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीन वाङ्मय एवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय
हमारेलिखी हुई पुस्तकें-
प्रकाशितः- पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिंदी  की किताबें
   कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम (एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन)
कुछ मैग्जीनों में संपादन, सह-संपादन, स्तंभ लेखन आदि।
अप्रकाशित साहित्यः- श्री शिव सुंदरकांड, श्री हनुमत सुंदरकांड,
संक्षिप्त निर्णय सिंधु, ज्योतिषायुर्वेद, श्री रुद्राष्टाध्यायी, वीरांगना द्रोपदी, दुलारी राधिका, ऊधौ-गोपी संवाद, श्रीमद्भगवद् गीताकाव्यानुवाद
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव - इंदलपुर, पो.- संभलपुर, जि.- कानपुर,उत्तर प्रदेश
तत्कालीन पता :
के -71, छाछी बिल्डिंग चौक,
कृष्णा नगर, दिल्ली-110051
मो. 9811226973, 9811226983 
ई - मेल : vajpayeesn @gmail.com 
वेवसाइट :www.drsnvajpayee.com
 
 वैदिकमौसमविज्ञान के कार्य :- उपग्रहों रडारों की मदद से मौसम वैज्ञानिक लोग आँधी     तूफानों एवं बादलों की जासूसी कर सकते हैं उनकी एक जगह उपस्थिति देखकर उनकी गति और दिशा के हिसाब से अंदाजा लगाकर उनके दूसरी जगह पहुँचने के विषय में तीर तुक्के लगा सकते हैं यदि हवा का रुख बदलता नहीं हैतो कभी कभी तीर तुक्के सही लग भी जाते हैं किंतु अधिकाँश गलत निकलते ही देखे जाते हैं जिनके लिए जलवायुपरिवर्तन का बहाना बनाया जाता है जो कोरी कल्पना मात्र है |इसीलिए मानसून आने जाने की तारीखें दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान आँधी तूफान के पूर्वानुमान आदि प्रायः गलत निकलते रहे हैं | इसका प्रमुख कारण मौसम संबंधी अध्ययनों के लिए किसी सही एवं सटीक पूर्वानुमानविज्ञान का न होना है |इसलिए वैदिक मौसम पूर्वानुमान संबंधी अनुसंधानों की आवश्यकता समझ कर इस पद्धति से मौसम संबंधित अनुसंधान किए जाते रहे हैं जिसके आधार पर दसहजार(10000) वर्ष  आगे तक के मौसम सम्बन्धी घटनाओं के पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं|यह गणित संबंधी वही अनुसंधान विधा है जिसके द्वारा हमारों वर्ष पहले सूर्य चंद्र संबंधी ग्रहणों का सही एवं सटीक पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | 
वैदिकभूकंप विज्ञान के कार्य:- भूकंप संबंधी किसी भी वैज्ञानिकपद्धति का कोई भी संबंध अभी तक भूकंपसंबंधी घटनाओं के साथ वैज्ञानिक रूप में प्रमाणित नहीं किया जा सका है भूमिगत गैसों या प्लेटों केआपस में टकराने की काल्पनिक कहानियों का कोई ऐसा तर्कसंगत वैज्ञानिक आधार नहीं है जिसके आधार परभूकंपों के विषय में कभी कुछ बताया जा सका हो जो तर्क की कसौटी पर खरा उतर सका हो| इसलिए वैदिक भूकंपविज्ञान के द्वारा गणितागतपद्धति से सभीप्रकार के भूकंपों के विषय में बहुत कुछ पूर्वानुमान लगाया जा सकता है| 
वैदिक वर्णविज्ञान के कार्य:- प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर नगर गाँव मोहल्ला संस्था संस्थान संगठन राजनैतिक दल साहित्यिकग्रंथ फिल्में,काव्य ,नाटक आदि प्रत्येक छोटे से छोटे या बड़े से बड़े अंश में न केवल सारी अच्छाइयाँ होती हैं और न ही सारी बुराइयाँ होती हैं वस्तुतः संसार की समस्त वस्तुएँ उन्हीं अच्छाइयों बुराइयों का  ही सम्मिश्रण हैं |  जिसे जो व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर नगर आदि जितने अच्छे लगते हैं उन्हें वह उतना अच्छा मान लेता है जो जिसे अच्छे नहीं लगते हैं वो उन्हें उतना ख़राब मान लेता है |अच्छा और बुरा लगने का कारण उन सबका अपने अपने नाम का पहला अक्षर होता है | नाम के पहले अक्षर के अनुशार लोगों का स्वभाव होता है | उस व्यक्ति वस्तु स्थान  देश  शहर आदि के लोगों  के नाम के पहले अक्षर के साथ जितना अच्छा संबंध होता है उन दोनों के आपसी संबंध भी उतने ही मधुर होते देखे जाते हैं | वही नगर गाँव मोहल्ला संस्था संस्थान संगठन राजनैतिक दल साहित्यिकग्रंथ फिल्में,काव्य ,नाटक आदि  पहली पसंद होता है वहीँ उसका मन लगता है | नाम के पहले अक्षर के अनुशार ही मित्र शत्रु बनते हैंउसी के अनुशार देश शहर नगर गाँव मोहल्ले  आदि स्थान  अच्छे या बुरे लगने लगते हैं | जिन दो या दो से अधिक अक्षरों का स्वभाव एक दूसरे वर्ण से मिल रहा होता है उन दोनों अक्षरों वाले लोगों के मन में एक दूसरे के प्रति दोष देखने की दृष्टि नहीं रह जाती है अपितु आपस में एक दूसरे केअंदर दिखाई पड़ने वाले दुर्गुणों में भी गुण खोज लिए जाते हैं और एक दूसरे से मित्रता बढ़ती चली जाती है और जिन वर्णों का स्वभाव एक दूसरे से विपरीत होता है वे एक दूसरे की अच्छाइयों में भी बुराइयाँ खोजते खोजते एक दूसरे के शत्रु होते चले जाते हैं |  |  इस प्रकार से वैदिक वर्ण विज्ञान के आधार पर बिखरते समाज तथा  टूटते परिवारों एवं बिगड़ते संबंधों को सुधारने की दृष्टि से अनुसंधान किए जाते हैं| see more... https://www.drsnvajpayee.com/index.php/relation/58-2018-10-03-06-15-31
 
वैदिकसमय विज्ञान के कार्य:- https://www.drsnvajpayee.com/index.php/2019-02-23-13-39-44
 
आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी एवं श्री श्याम बिहारी मिश्र जी के साथ 
आचार्य डॉ.शेष नारायण  वाजपेयी

श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 


आदरणीय  डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी के साथ 
आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी                श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
श्रीमती सुषमा स्वराज जी के साथ आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
        श्री मदनलाल खुराना जी के साथ आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी




                                          




                            
                                                                                                                                                                                   मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं !

 दूसरा ...... 

 आप स्वयं  देखिए ... https://epaper.livehindustan.com/imageview_484316_46643970_4_1_06-01-2020_8_i_1_sf.html


  विशेष बात :आप अवश्य पढ़िए -
             वैदिक विज्ञान को विज्ञान न मानने वालों की सच्चाई आप भी एक बार अवश्य पढ़ें कुछ पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशित लेख -और मौसम पूर्वानुमान !
     यह भारत का सबसे प्राचीन विज्ञान है इसमें प्रकृति से लेकर जीवन तक सबके रहस्य छिपे हुए हैं यह जानते हुए भी सरकारी मशीनरी इसे विज्ञान नहीं मानती है ?आखिर रोजी रोटी का सवाल जो है | 
   जिस मौसमविज्ञान के नाम पर मंत्रालय बनाए जाते हैं मंत्री नियुक्त किए जाते हैं मौसम वैज्ञानिक बताकर लोगों को बड़े बड़े ओहदों  पर बैठाया जाता है उन्हें भारी भरकम सैलरी दी जाती है उनके अनुसंधानों के नाम पर करोड़ों रूपए पानी की तरह बहा दिए जाते हैं मंत्रालयों के संचालन में करोड़ों रूपए लगा दिए जाते हैं इतना सब करने के बाद भी उनके द्वारा लगाए जाने वाले दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान गलत निकल जाते हैं !मानसून आने जाने की तारीखें गलत निकल जाती हैं |ऐसे अनुसंधान कर्ताओं और उनके तामझाम पर इतना धन खर्च किए जाने का औचित्य क्या है ? जनता के टैक्स के पैसों से ये सब खेल खेला जाता है आखिर किस लिए ?इसकाम में यदि वेद विज्ञान सहायक हो सकता है और इनकी अपेक्षा उसमें खर्च भी बहुत कम लगता है इसके बाद भी सरकार उसमें रूचि नहीं लेती है क्यों ?इसविषय में सच्चाई  अवश्य पढ़िए  ....       

जनसत्ता के पेज - 7 पर -
ज्योतिषी का दावा, मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं केंद्र सरकार कोsee more....
https://epaper.jansatta.com/2508300/Jansatta/13-January-2020?fbclid=IwAR3uHqAiU1rYP81z6DSWs5lX0LA_IN0f_roA_w7cLsBOLygazUnJsErPkaI#page/7/2

नव भारत में -मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान !
    https://navbharattimes.indiatimes.com/india/astrologers-claim-the-weather-as-well-as-forecasts-of-disturbing-events-are-telling-the-government/articleshow/73211738.cms 


 ABP news
ज्योतिषी का दावा: मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं सरकार को। ... https://www.abplive.com/news/india/weather-to-disturbing-events-every-forecast-is-telling-govt-astrologer-1277275
  
इण्डिया न्यूज -
ज्योतिषी का दावा: मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं सरकार को। ........ https://navbharattimes.indiatimes.com/india/astrologers-claim-the-weather-as-well-as-forecasts-of-disturbing-events-are-telling-the-government/articleshow/73211738.cms

पंजाब केशरी -मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान...... https://www.punjabkesari.in/national/news/from-weather-to-disturbing-events-every-forecast-is-telling-govt-astrologer-1110219 

R.भारत - मौसमी घटनाएँ -

 webdunia.

   सोमवार, 13 जनवरी 2020 :ज्योतिषी का दावा, मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं केंद्र सरकार कोsee more ....  https://hindi.webdunia.com/national-hindi-news/weather-to-disturbing-events-every-forecast-is-telling-govt-astrologer-120011200023_1.html

asianetnews.........मौसम के साथ

ज्योतिषी का दावा, मौसम के साथ ही अशांति फैलाने वाली घटनाओं के पूर्वानुमान भी बता रहे हैं केंद्र सरकार को ....... 

 The  Print-ज्योतिषी का दावा,

web DuniA :ज्योतिषी का दावा,


The world  News------मौसम के साथ
मौसम ही नहीं सरकार को दंगे फसाद के पूर्वानुमान की भी जानकारी देते हैं, हैरान करने वाले हैं ज्योतिषी ...

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मौसम ही नहीं सरकार को दंगे फसाद के पूर्वानुमान की भी जानकारी देते हैं, हैरान करने वाले हैं ज्योतिषी ...

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मौसम ही नहीं सरकार को दंगे फसाद के पूर्वानुमान की भी जानकारी देते हैं, हैरान करने वाले हैं ज्योतिषी ...

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