'हिंदू' शब्द का मतलब क्या है ?हिंदू राष्ट्र बन जाने से क्या होगा ?
हिन्दू राष्ट्र हो जाने से क्या होगा ?ये हिन्दू है क्या ? आखिर इसकी उत्पत्ति कब और कहाँ हुई ?ये नाम कैसे पड़ा
इसका वर्णन कहीं नहीं मिलता है |जहाँ मेदिनी में केवल साढ़े चार हजार और हलायुध में आठ हजार नाम हैं।वहीं अमरकोष में प्राय: दस हजार नाम हैं,उसमें भारतवर्ष और आर्यावर्त जैसे नाम तो हैं किंतु हिंदू या हिंदुस्तान जैसे नाम नहीं है | इसका मतलब अमरकोश की रचना होने तक हिंदू या हिंदुस्तान जैसे नामों की कल्पना नहीं की गई थी | यथा -
अमरकोश में इसे भारतवर्ष और आर्यावर्त कहा गया है -लोकोऽयं भारतंवर्षं ,
ऐसे ही - आर्यावर्तः पुण्यभूमिर्मध्यं विन्ध्य हिमालयोः
वेदों में, पुराणों में, संस्कृतकाव्यों में, या प्राचीन संस्कृत के साहित्यिक ग्रंथों में भी भारतवर्ष और आर्यावर्त जैसे नामों का ही प्रयोग मिलता है |प्राचीन भौगोलिक
प्रकरणों से संबंधित 'कूर्मचक्र'
,'बृहत्संहिता' या नरपतिजयचर्या जैसे किसी भी ग्रंथ हिंदू शब्द का प्रयोग नहीं मिलता है
|
बृहस्पति द्वारा रचित 'बृहस्पतिसंहिता' प्रामाणिक ग्रंथ है जिसकी चर्चा प्राचीनसाहित्य में सभी जगह मिलती है |उसमें हिंदू शब्द का प्रयोग कहीं नहीं है |
जिस 'बृहस्पतिआगम' नामक ग्रंथ की चर्चा कहीं और नहीं मिलती, उसकी रचना का समय क्या है उसका लेखक कौन है ?आदि अस्पष्ट कारणों से यदि उस ग्रंथ की ही प्रामाणिकता सिद्ध नहीं हो पाती है तो उसमें लिखित 'हिंदू' शब्द का प्रयोग कितना प्रामाणिक हो सकता है | उसमें कहा गया है -
श्लोक : 'हिमालयात् समारभ्य यावत् इन्दुसरोवरम्।
तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते॥'- (बृहस्पति आगम)'
इसके आधार पर समझा जा रहा है कि हिमालय से इन्दुसरोवर के मध्य का भाग हिन्दुस्तान है | इसमें जिस 'सरोवर' शब्द का प्रयोग है उसका अर्थ तालाब होता है न कि समुद्र !तालाब और समुद्र में बहुत बड़ा अंतर होता है | इसलिए इंदुसरोवर शब्द का प्रयोग समुद्र के लिए किया गया है ऐसा तर्कसंगत नहीं है |
दूसरी बात हिमालय का 'हि' और इंदु के 'इ' की संधि करके 'हीन्दु' शब्द बना है ऐसा कहा जा रहा है जो तर्क सांगत नहीं है |
तीसरी बात कही जा रही है कि 'स'
को बोलने में कठिनाई होने के कारण सिंधु को 'हिंदु' कहा जाने लगा
?यदि ऐसा होता तो सिंधप्रांत,सिंधुनदी और संस्कृत जैसे शब्दों को भी 'हिंधप्रांत','हिंधुनदी' और 'हंस्कृत' कर दिया जाना चाहिए था |ऐसा न किए जाने का कारण क्या था कि जो कठिनाई उसमें होती थी वही कठिनाई इन शब्दों में क्यों नहीं हुई ?
ऐसी परिस्थिति 'हिंदू' शब्द की प्रामाणिकता पर प्रश्न चिन्ह स्वाभाविक ही है ?
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'सनातनधर्मियों' को 'हिंदू' और भारत को हिंदुस्तान कहने की आवश्यकता ही क्यों पड़ी ?
सभी देशों का काम एक नाम से चल जाता है भारत के तो जम्बूद्वीप, भरतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त जैसे इतने नाम थे इसके बाद भी इस देश का नाम हिंदुस्तान रखने की आवश्यकता क्यों पड़ी?
दूसरी भाषा में अनुवाद करते समय में भी नाम का अनुवाद नहीं किया जाता है ! यहाँ तक कि नाम के स्थान पर उसका पर्यायवाची शब्द भी प्रयुक्त नहीं होता है |किसी का नाम 'रविशंकर' हो तो उसे 'सूर्यशंकर' कहने की परंपरा नहीं है |रूस को रसिया चीन को चाइना आदि तत्सम से तद्भव भले हुआ हो किंतु भारत का तो पूरा का पूरा नाम ही बदल दिया गया क्यों ?
दूसरी बात किसी का नाम उसके घर के लोग रखते हैं या उससे संबंधित लोग रखते हैं सनातनधर्मियों
का नाम हिंदू रख कर ईरानी लोग चले गए !ऐसा क्यों हुआ तो उन्हें स अक्षर उच्चारण करने में कठिनाई होती थी !ऐसा भी कहीं होता है कि बीमारी ईरानियों की और सजा भुगते भारत ! ईरानियों के द्वारा रखे गए हिंदू या हिंदुस्तान नाम को आज तक ढोने के लिए सनातन धर्मी मजबूर क्यों हैं ?
हिंदू शब्द की वकालत करने वालों को सोचना चाहिए कि छोटी छोटी बातों की प्रमाणिकता खोजने के लिए जिन प्राचीन ग्रंथों को खँगाला जाता है !यदि हिन्दू शब्द को भी प्राचीन मानना है तो उन प्राचीन ग्रंथों में क्यों नहीं खोजा जाता है किन किन ग्रंथों में इस शब्द का प्रयोग किया गया है |हिंदू शब्द का प्रयोग यदि प्राचीन ग्रंथों में नहीं मिलता है तो सोचिए सूर तुलसी जैसे हिंदी के शीर्ष कवियों ने हिन्दू शब्द का प्रयोग किस ग्रंथ में कितनी बार किया है? एक धर्म विशेष के लोगों कवियों विद्वानों की ही हिन्दू और हिंदुस्तान जैसे शब्दों का प्रयोग करने में इतनी अधिक रुचि क्यों है ?
इस देश को धर्म निरपेक्ष मानने की कसम खाए बैठे लोगों हिंदुस्तान कहने में आपत्ति क्यों नहीं है |भारत नाम तो किसी धर्म संप्रदाय का संबंध नहीं है जबकि हिंदुस्तान तो हिंदू धर्मावलंबियों से संबंधित है फिर भी किसी को परेशानी नहीं होती है |
आखिर हमें हिंदू और हमारे देश का नाम हिंदुस्तान रखने में किसी की इतनी अधिक रूचि क्यों थी ?इसके पीछे की भावना को समझे बिना ऐसे शब्दों को हम प्राचीन सिद्ध करने के प्रयत्न में क्यों लगे हैं !
'हिन्दोस्ताँ'-
'हिंदुस्तान' शब्द में 3 अक्षर होते हैं जबकि इस गीत में तीन अक्षरों वाले शब्द की आवश्यकता थी !भारत नाम में तीन अक्षर ही हैं |यहाँ भारत लिखकर यह पंक्ति पूरी की जा सकती थी - 'सारे जगत से अच्छा है भारत हमारा |' किंतु भारत न लिखकर हिंदुस्तान शब्द को खंडित करके 'हिन्दोस्ताँ' लिख दिया गया !भारत लिखने में क्या चिढ थी और हिन्दोस्ताँ लिखना क्यों आवश्यक समझा गया ?
गुलसिताँ - सनातन धर्मी लोग इस देश को गुलसिता अर्थात बगीचा नहीं मानते अपितु इसे भारत माता मानते हैं | 'बंदेमातरं' बोलकर पवित्र भाव से इसे प्रणाम करते हैं |
'बुलबुलें ' - भारत माँ की सनातनधर्मी संतानों की तुलना इस गीत के लेखक ने बुलबुलों से की है ,किंतु हमारी तुलना बुलबुलों से नहीं हो सकती है | बुलबुलें तो कीड़े मकोड़े खाने वाले मांसाहारी पक्षी होते हैं जबकि सनातन धर्मी लोग शाकाहारी होते हैं |दूसरी बात बुलबुलों में नर और मादा दो होते हैं | नर प्रजाति का बुलबुल ही गाता है जबकि मादा बुलबुल नहीं गाती है | स्त्री जाति को यहाँ भी बुर्के में रखा गया है ,जबकि सनातन धर्मियों में स्त्री पुरुष दोनों को ही समान अधिकार होते हैं | तीसरी बात बुलबुल में लड़ने की आदत विशेष होती है | इसीलिए शौकीन लोग बुलबुलों को पालते और आपस में लड़ाकर खुद आनंदित होते रहे हैं |दूसरों को खुश करने के लिए भारत माता की संतानों को आपस में लड़ाया जाए ऐसा सनातनधर्मी स्वीकार नहीं कर सकते |इस गीत के लेखक मोहम्मद इकवाल ने तो ऐसा कर दिखाया था | 29 दिसंबर,1930 को इलाहाबाद में आयोजित इंडियन मुस्लिम लीग के 21 वें सत्र के अध्यक्षीय संबोधन में भारत के विभाजन और पाकिस्तान की स्थापना का विचार सबसे पहले मोहम्मद इकवाल ने ही उठाया था !उन्होंने ही न जाने क्या समझकर "सारे
जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा" गीत लिखा था | जिस विभाजन में बड़ी
संख्या में नर संहार हुआ | क्या इसीलिए इस देश के निवासियों को अपने गीत में बुलबुलें कहकर बुलबुलों की तरह ही हिंदू मुशलमानों को लड़ा दिया गया था |
हिमालयपर्वत -सनातनधर्मी संतानें जिस हिमालय पर्वत को अपने देवी देवताओं का नित्य निवास मानती हैं | उसे श्रद्धा से देवभूमि कहकर प्रणाम करती हैं | शिव पार्वती जी के उसी पवित्र निवास को लेखक ने संतरी अर्थात पहरेदार या द्वारपाल के रूप में लिखा है | हिमालय तो भारत माता का पवित्र मस्तक है |इसे सनातनधर्मी संतानें अपना संतरी अर्थात पहरेदार या द्वारपाल कैसे मान सकती हैं |
सनातनराष्ट्र का राष्ट्रगीत
'सारे जगत से अच्छा है भारत हमारा |
संतान हम इसी की इसका ही है सहारा ||
हिमगिरि से रत्न सागर तक पुण्य भूमि सारी |
खेले हैं हम इसी में अँगनाई यह हमारी ||
माँ भारती है देवी हैं हम सभी पुजारी |
बंदेमातरं ख़ुशी से गाएँ सभी सुखारी ||
हम लाडले हैं इसके यह भी हमें दुलारा || सारे जगत से ...
गंगा जी और गीता पहचान हैं हमारी |
हम भाई भाई सारे माँ भारती हमारी ||
धर्म ये सनातन तप त्याग की कहानी |
दुःख दूसरों का हरना शिक्षा यही पुरानी ||
वेदोपनिषद पुराणों में दिव्यज्ञान धारा | सारे जगत से ...
श्रराम कृष्ण प्यारे पैदा हुए यहाँ पर |
गीता हो या रमायण पढ़ते हैं लोग घर घर ||
शिव के त्रिशूल पर है विद्यमान काशी !
उद्घोष हर हर बम बम करते यहाँ के बासी |
यह देश है सनातन भगवा है ध्वज हमारा |
बंदेमातरं कहें हम यह ही है दिव्य नारा || सारे जगत से ...
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हिन्दू राष्ट्र का सपना !
विश्व की कुल जनसंख्या में लगभग 15-16% सनातन धर्म के अनुयायियों की जनसंख्या होने पर भी कोई हिंदूराष्ट्र क्यों नहीं है? विश्व के एक मात्र हिंदूराष्ट्र नेपाल को भी !जिस प्रकार से उसे अब धर्मनिरपेक्ष देश बना लिया गया है उसी प्रकार से इस्लामिक या ईसाई राष्ट्रों को धर्म निरपेक्ष देश क्यों नहीं बना लिया जाता है?
इसी प्रकार से जितनी बड़ी संख्या में हिंदुओं को ईसाई या मुशलमान बना लिया जाता है उसी प्रकार से ईसाई या मुशलमानों को हिंदू बना लेना क्यों संभव नहीं है | आखिर ऐसी क्या कमजोरी है हिंदुओं में ?
बताया जाता है कि जिस नाम का पहला अक्षर 'ह' होता है उस नाम वाले लोग या देश शिक्षा कला खेलकूद आदि मनोरंजक विषयों में तो अच्छा स्थान प्राप्त कर लिया करते हैं किंतु गंभीर आचरण करके अपनी प्रतिष्ठा बना पाना इनके लिए बहुत कठिन होता है | इसीलिए अपनी प्रतिभा के बलपर राजनैतिक दृष्टि से कोई बड़ा पद हासिल कर पाना इनके लिए प्रायः संभव नहीं होता है |इन्हें हर कदम पर किसी न किसी सहारे की आवश्यकता होती है | दूसरों के लिए हुए निर्णयों पर औरों की इच्छा के अनुशार चलना इनका स्वभाव होता है | रामायण की कथा में इतने बड़े ग्यानी गुणवान वीर होने पर भी हनुमान जी पहले सुग्रीव की सेवा में लगे रहे और बाद में श्री राम जी की सेवा में,जबकि उन्हीं परिस्थितियों में श्री राम जी का साथ देने वाले विभीषण ,सुग्रीव एवं अंगद ने राजगद्दी पायी |यद्यपि सभी ह अक्षर वाले सभी लोगों के साथ ऐसा नहीं होता है फिर भी अधिकाँश के साथ ऐसा होता है | कुछ ह अक्षर वाले लोगों के निजी सलाहकार यदि बहुत अच्छे हुए या उनके अभिभावक सक्षम हुए तो उनके तत्वावधान में ह अक्षर वाले लोग भी कार्य करते जाते हैं |सम्राटहर्ष इतने प्रतापी राजा थेउन्हें परंपरा से गद्दी मिली थी | उनका साम्राज्य उनके साथ ही समाप्त हो गया | ऐसे ही कश्मीर के विषय में हरी सिंह का कमजोर निर्णय एक उस समस्या को बढ़ाने में एक बड़ा कारण बना |
ह अक्षर इतना कमजोर होता है इसीलिए श्री राम का जन्मनाम ह अक्षर से निकलने पर भी वशिष्ठ जी ह अक्षर से न रखकर र अक्षर से 'राम' नाम रखा था |
इसी प्रकार से हंगरी हैती हाँगकाँग एवं हौण्डुरस जैसे कुछ देशों को छोड़कर किसी बड़े देश ने अपना नाम ह अक्षर से रखना उचित नहीं समझा है |आसंदीवत् नामक सक्षम राज्य में हाथियों की अधिकता हो जाने के कारण इसे हस्तिनापुर कहा जाने लगा हस्तिनापुर नाम पड़ते ही यह कलह का अखाड़ा बनता चला गया |
ऐसी सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ही ईरानी विद्वान अलबरूनी ने अपने ग्रंथ 'किताबुलहिन्द' में सनातन धर्मियों के लिए 'हिन्दू' शब्द का प्रयोग किया है | कभी सोने की चिड़िया या विश्व गुरु कहलाता रहा भारत हिन्दू और हिदुस्तान बनते ही पराधीन होते चला गया |
वर्तमान सरकार ने जबसे भारत नाम का प्रचार करना प्रारंभ किया है तब से प्रतिष्ठा पुनः बढ़ती दिख रही है |
इसलिए इसे हिंदू राष्ट्र कहना उचित नहीं होगा |
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