ज्योतिषविद्यालय ऑनलाइन !
तनाव से मुक्ति पाने के लिए ज्योतिष सीखिए ! 'ज्योतिष एक काम अनेक !'
ज्योतिष से आप स्वयं लाभ उठावें और दूसरों को भी लाभान्वित करें ! दूसरे विषयों को पढ़ने के बाद भी आपको महीनों वर्षों तक नौकरी के लिए धक्के खाने पड़ेंगे! ज्योतिष पढ़ने के तुरंत बाद आप ज्योतिष का कार्य शुरू कर सकते हैं |जिससे आप धन कमाने के साथ साथ प्रसिद्ध हो सकते हैं |
डॉक्टर बनें या ज्योतिषी - डॉक्टर बनने में बहुत पैसे खर्च करने होंगे,किंतु ज्योतिषी बनने में उससे बहुत कम पैसे खर्च होंगे !दूसरी बात बहुत पैसे खर्च करके आप किसी एक रोग के डॉक्टर बन सकेंगे,जिन्हें वो रोग होगा आप केवल उन्हीं लोगों के बीच पॉपुलर हो सकते हैं, किंतु ज्योतिष पढ़कर तो आप सभी की जरूरत बन सकते हैं ,क्योंकि ज्योतिष की आवश्यकता तो सभी को सभी कामों के लिए पड़ती है | इसलिए प्रत्येक व्यक्ति के लिए आप उपयोगी बन सकते हैं !यदि आप चाहते हैं कि आपको बहुत लोग जानें !आप बहुत लोगों के काम आवें और बहुत लोग आपका सम्मान करें तो आप ज्योतिष पढ़ें !
1.डॉक्टर तो रोग होने के विषय में रोगी होने के बाद बता पाते हैं ,जबकि ज्योतिषी तो रोग होने से पहले ही सावधान कर सकते हैं कि कब किसे किस प्रकार का रोग होने की संभावना है |यदि किसी को अपने स्वास्थ्य की चिंता लगी रहती है तो ज्योतिष के द्वारा पता लगाना संभव है कि कोई रोग होने वाला है भी या नहीं !बेकार में ही चिंता किए जा रहे हैं !
रोगी होने के बाद यदि आपको लगता है कि हम स्वस्थ होंगे या नहीं होंगे तो कब यह चिंता आपको परेशान कर रही है तो ज्योतिष के द्वारा ऐसे प्रश्नों के उत्तर खोजकर चिंता मुक्त हुआ जा सकता है |
तो आप पता लगा सकते हैं कि डॉक्टर आपको यदि आपको स्वास्थ्य संबंधी चिंता है तो आपको जब रोग हो जाएगा तब पता लगेगा कि आपको रोग हो गया,जबकि ज्योतिष से तो आप पहले ही पता कर सकते हैं कि आपको किस समय कैसा रोग हो सकता है ?
जब स्वस्थ हो जाएँगे तब पता लगेगा कि आप स्वस्थ हो गए !
यदि आपने ज्योतिष वास्तव में पढ़ी हो !
लोग आपको भले ही नाम और रूप से पहचान लेते हों किंतु याद तो आपके स्वभाव एवं कर्मों के आधार पर रखते हैं
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ! (RPS)
संस्थान के बारे में : राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान दिल्ली स्थित एक अनुसंधान संस्थान है |इसकी स्थापना वैसे तो सन 1992 में हो गई थी,किंतु पंजीकृत सन 2012 में हुआ था |हमारे संस्थान का उद्देश्य समस्यामुक्त सुखशांति युक्त स्वस्थ समाज का निर्माण करना है|इसी लक्ष्य को लेकर अनुसंधानकार्य किए जा रहे हैं | इसमें आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के साथ साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करना होता है |प्रकृति में वर्तमान समय में घटित हो रही कोई एक प्राकृतिक घटना भविष्य में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना के विषय में सूचना दे रही होती है | इसलिए भावी अनुसंधानों के लिए ऐसी प्राकृतिक घटनाओं का संग्रह करके रखना होता है | प्राचीन विज्ञान के आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजने हेतु अनुसंधान किया जाता है | इसके साथ ही साथ आकस्मिक रूप घटित होने वाली भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए भी अनुसंधान कार्य किया जा रहा है | गणितविज्ञान के साथ ही साथ समय समय पर उभरने वाले प्राकृतिक संकेतों के आधार पर अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाता है कि भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं को टालना या इनके वेग को कम किया जाना संभव नहीं है|इसलिए ऐसी आपदाओं से मनुष्य जीवन को सुरक्षित बचाकर रखने हेतु सफल अनुसंधान करने के लिए हमारा संस्थान कृत संकल्प है |
सही पूर्वानुमानों को खोजने के लिए किए जा रहे हैं अनुसंधान -
सृष्टि के प्रारंभिक काल की यदि कल्पना की जाए तो उस समय मनुष्य प्रकृति की प्रत्येक घटना से अपरिचित रहा होगा | उस समय उसे सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं के आने जाने का क्रम एवं उनके रहने का समय प्रभाव आदि जब पता नहीं रहता रहा होगा | ऋतु संबंधी घटनाओं से परिचित न होने के कारण उस समय सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ भी किसी आपदा से कम नहीं लगती रही होंगी, अब वही सर्दी गर्मी आदि ऋतुएँ आती हैं अपना अपना प्रभाव भी छोड़ती हैं,लेकिन उनसे किसी को भय नहीं होता है ,क्योंकि लोगों को उनके आने के विषय में पहले से पता होता है |
इसी प्रकार से भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी जो घटनाएँ अचानक घटित हुई सी लगती हैं |उनमें नुक्सान भी अधिक होता है | इसीलिए उनसे हमेंशा डर लगा रहता है कि ऐसी घटनाएँ न जाने कब घटित होने लगें |यदि इनके घटित होने के विषय में पहले से पता लगाया जाना संभव हो जाए कि कब कौन घटना घटित होगी ,तो ऐसी घटनाओं के विषय में लोगों का डर तो बहुत कम हो ही जाएगा | इसके साथ ही ऐसी घटनाओं में जनधन की हानि भी बहुत कम होगी |
पूर्वानुमान पता लगते ही शुरू होगा समाधान !
सृष्टि के प्रारंभिक काल में पहले से जानकारी के अभाव में सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं लगती होंगी !ऋतुजनित ऐसी घटनाओं के समय में भी ऋतुओं का प्रभाव सहना बड़ा कठिन होता होगा | अधिक सर्दी गर्मी वर्षात से पीड़ित बहुत लोग रोगी होकर मृत्यु का शिकार हो जाते होंगे | सर्दी गर्मी वर्षात के आने जाने का क्रम एवं उनके रहने का समय प्रभाव आदि जबसे पता लगा तब से उन्हीं ऋतुओं के प्रभाव से लोग उस प्रकार से रोगी नहीं होते हैं | ऋतुओं के प्रभाव से बचाव की तैयारियाँ आगे से आगे करके रख लिया करते हैं |अब वही सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ आती हैं अपना अपना प्रभाव भी छोड़ती हैं,लेकिन उनसे किसी को भय इसलिए नहीं होता है ,क्योंकि लोगों को उनके आने के विषय में पहले से पता होता है | जिनसे बचाव की तैयारियाँ उन्होंने पहले से ही करके रख ली होती हैं | जिससे भीषण सर्दी ,गर्मी एवं वर्षा आदि के दुष्प्रभावों से यथा संभव बचाव हो जाता है |
ऐसे ही भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी जो घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना यदि संभव हो जाए और उसी के अनुशार बचाव के लिए पहले से तैयारियाँ करके रख ली जाएँ तो ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से भी जनधन का उतना नुक्सान नहीं होगा जितना अभी होता है |
विज्ञान के अभाव में बढ़ती जा रही हैं समस्याएँ
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं से बचाव के लिए जो तैयारियाँ पहले से करके रखनी होती हैं या जो जो अग्रिम सावधानियाँ बरतनी होती हैं | ये सब करने के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता होने की आवश्यकता होती है |
किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिसके द्वारा भविष्य को देखना संभव हो | इसके बिना भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को देखा जाना कैसे संभव है |भविष्य में झाँकने ऐसा विज्ञान कोई विज्ञान ही नहीं है जिससे पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो |प्राचीन काल में गणित विज्ञान के द्वारा बहुत सारी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता था | उसी गणित विज्ञान एवं कुछ अन्य प्राकृतिकसंकेतों के आधार पर पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे यहॉंअनुसंधान कार्य किए जा रहे हैं |
आवश्यक गणित का प्रबंध भी संस्थान में ही है !
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में गणितविज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना यदि संभव भी हो जाए तो भी प्राचीन गणित विज्ञान के इतने सुयोग्य विद्वानों की बहुत कमी है |जो ऐसी सटीक गणित करने में सक्षम हों जिससे प्राकृतिक आपदाओं या घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव हो | संस्कृत और ज्योतिष की निरंतर उपेक्षा होने के कारण कोई अपने बच्चे को ऐसे विषय पढ़ाना ही नहीं चाहता है | ऐसी स्थिति में गणित ज्योतिष जैसे विषयों के विद्वान कहाँ से लाए जाएँ !संस्कृत विश्व विद्यालयों में ऐसे विषयों के अध्यापन के लिए नियुक्त शिक्षकों में से किसी के द्वारा कोई ऐसा अनुसंधान नहीं किया जा सका जिससे पिछले दस वर्षों में घटित हुई भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी किसी घटना के विषय में कोई पूर्वानुमान बताया जा सका हो |ऐसी स्थिति में वहाँ से पढ़लिखकर ऐसे गणितवैज्ञानिक कैसे तैयार किए जा सकते हैं जो भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा -बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाकर समाज की मदद करने में सक्षम होंगे |
ऐसी परिस्थिति में प्रकृत्तिक घटनाओं के विषय में सही सटीक पूर्वानुमान लगाने हेतु अनुसंधानों के लिए आवश्यक गणित संबंधी कार्य भी यथा संभव संस्थान में किए जा रहे हैं |इस गणित के आधार पर लगाए जा रहे पूर्वानुमान सही घटित हो रहे हैं |
प्राकृतिक आपदाओं पर अंकुश लगाया जाना संभव है क्या ?
प्राकृतिक आपदाएँ और मनुष्यजीवन की समस्याओं से संबंधित अनुसंधान -
जीवन को लेकर बहुत ऐसे प्रश्न उठते हैं जिनका उत्तर मिलना बहुत कठिन होता है | ऐसे ही जीवन में बहुत सारी ऐसी समस्याएँ होती हैं जिनका समाधान निकाला जाना बहुत कठिन होता है | मनुष्यजीवन को सुखी स्वस्थ सुख सुविधा युक्त समस्यामुक्त रखने का लक्ष्य
लेकर हमारे संस्थान में विविध प्रकार के अनुसंधान किए जा रहे हैं |
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के घटित होने में जो लोग घायल या रोगी होते हैं या जिनकी मृत्यु होती है |उनके साथ ऐसा होना ही होता है ,या प्रयत्न पूर्वक इनकी चपेट में आने से बचा भी जा सकता है | उनके घायल होने,रोगी होने या उनकी मृत्यु होने को मनुष्यकृत प्रयत्नों से टाला जाना कितना संभव है ! ऐसी घटनाओं में जिनकी मृत्यु होती है उस मृत्यु के लिए ऐसी घटनाएँ जिम्मेदार होती हैं या वह मनुष्य जिसकी मृत्यु हुई होती है अथवा उसकी मृत्यु का समय ही पूरा हो चुका होता है |यह पता करने के लिए भी हमारे यहॉं अनुसंधान किया जाता है |
जीवन में अनेकों प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है |उन
समस्याओं का तनाव उस व्यक्ति को होना निश्चित होता है या प्रयत्न पूर्वक उससे बचा भी जा सकता है ?ऐसे ही जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जिस लक्ष्य की लालषा से प्रयत्न प्रारंभ किया जाता है | उसमें यदि सफलता नहीं मिलती है तो तनाव होता ही है | ऐसे समय में उस व्यक्ति को तनाव मिलना ही
था या सफलता न मिलने के कारण तनाव मिला है !वह व्यक्ति यदि चाहता तो ऐसे तनाव से बचा जाना संभव था क्या ?यह खोजने के लिए भी हमारे यहॉँ अनुसंधान किए जाते हैं |
कुछ लोग अस्वस्थ होते हैं समय से चिकित्सा न मिल पाने के बाद उनकी मृत्यु हो जाती है | सामान्य रूप से इसका कारण समय से चिकित्सा न मिल पाने को माना जाता है,किंतु समय से चिकित्सा होने पर क्या मृत्यु को टालना संभव हो जाता ?ऐसे प्रश्नों के उत्तर भी अनुसंधान पूर्वक खोजे जा रहे हैं |
जीवन में बहुत लोगों के साथ संबंध बनाकर जीना पड़ता है समय समय पर कुछ संबंध बनते बिगड़ते रहते हैं | ऐसा होने का कारण क्या है |ऐसे संबंधों को बिगड़ने से रोका जा सकता है क्या या कि उन्हें बिगड़ना ही होता है |यह पता करने के लिए अनुसंधानों को आगे बढ़ाया जा रहा है !
संस्थान के उद्देश्य :
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे संकटपूर्ण समय में समाज
को सुरक्षित बचाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी होती है |इनमें में जन धन का नुक्सान बिल्कुल न हो या कम से कम हो, इसके लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पता लगाना आवश्यक होता है | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पहले से पता लगाने के लिए ऐसा कोई सक्षम भविष्यविज्ञान हो | जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को पहले से देख लेने की कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया हो !हमारा लक्ष्य प्राचीन विज्ञान संबंधी अपने अनुसंधानों के द्वारा उस वैज्ञानिक पद्धति को खोजना है जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा,बाढ़ एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाना संभव हो सके |
संस्थान के कार्य :
विगत तीस वर्षों से संस्थान के तत्वावधान में भूकंप आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे विषयों में जो अनुसंधान किए जाते रहे हैं | उनके द्वारा प्राप्त अनुभवों के आधार पर ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में जो पूर्वानुमान लगाए जाते रहे हैं | उनमें से वर्षा होने के विषय में लगाए जाने वाले दीर्घावधि मध्यावधि पूर्वानुमान प्रायः सही निकलने लगे हैं | चक्रवात आँधी तूफ़ान आदि के विषय में भी लगाए गए पूर्वानुमान भी प्रायः सही होते देखे जा रहे हैं |ऐसी
सभी प्रकार के पूर्वानुमान प्रमाणित रूप से घटना घटित होने से काफी पहले
ही स्काईमेट, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग एवं पीएमओ की मेल पर भेजे दिए जाते रहे हैं |पीएमओ की मेल पर अभी भी भेजे जा रहे हैं जो साक्ष्य रूप में मेल पर विद्यमान हैं | कोरोना महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में हमारे संस्थान के द्वारा लगाए जाते रहे पूर्वानुमान संपूर्ण रूप से सही निकलते देखे गए हैं | महामारी का विस्तार, प्रसारमाध्यम, अंतर्गम्यता आदि के विषय में लगाए गए अनुमान भी सही निकले हैं | ये सभी पीएमओ की मेल पर अभी भी विद्यमान हैं |
भविष्य की कार्य योजना : भविष्य में भूकंप आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे विषयों में और अधिक गंभीरता से अनुसंधान किए जाने की आवश्यकता है|जिससे भूकंप जैसी बड़ी प्राकृतिक घटनाओं को समझना तथा ऐसी घटनाओं के घटित होने के वास्तविक कारण खोजना एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना संभव हो सके | वर्षा कहाँ होगी कितनी होगी इस विषय में और अभी स्पष्टता लाए जाने की आवश्यकता है |आँधीतूफ़ान चक्रवात आदि के विषय में अनुसंधानों के द्वारा स्थान पता लगाए जाने पर कार्य चल रहा है कि ऐसी घटनाएँ कब कहाँ से शुरू हो सकती हैं उस स्थान के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाने की आवश्यकता है |
राजेश्वरीविद्यालय :
परतंत्रता के समय आक्रांताओं के द्वारा बहुत सारा साहित्य नष्टकर दिया गया था |इससे संबंधित विद्वानों की संख्या भी धीरे धीरे समाप्त होती चली गई | इस सबके बाद भी कुछ ऐसे विद्वान बच गए जो इसप्रकार के अनुसंधान करने में सक्षम थे,किंतु उन्होंने अपनी विद्या किसी को देना उचित नहीं समझा !उसे गुप्त रखते रखते अपने साथ लेते चले गए |अब बहुत कम ऐसे विद्वान बचे होंगे जो प्राचीन विज्ञान से संबंधित अनुसंधानों में मदद करने की क्षमता रखते होंगे !उन्हें खोजकर उनके ज्ञान विज्ञान को उनसे प्राप्त किया जाना बहुत बड़ा कार्य है |जिसे अत्यंत साधनापूर्वक किया जाना आवश्यक है | जहाँ कहीं से उस विद्या की छोटी सी चिंगारी भी मिल जाए उसे ही तपस्या पूर्वक आग के बहुत बड़े ढेर में बदलना है | यह बहुत बड़ी तपस्या का कार्य है जिसे अत्यंत समर्पण पूर्वक किया जाना है |
इतने बड़े कार्य को करने के लिए सुयोग्य समर्पित एवं तपस्वी विद्वानों की आवश्यकता है | जिन्हें बहुत बड़ी जिम्मेदारी निभानी होगी | उन्हें संस्थान के द्वारा पहले से किए जा रहे अनुसंधानों को न केवल और अधिक विस्तार देना है अपितु इसे भविष्य में सदियों तक चलाने के लिए उस प्रकार की अनुसंधान सामग्री संग्रहीत करनी है |इसके लिए अनुसंधान में आवश्यक आयुर्वेद विज्ञान,स्वरविज्ञान,ज्योतिषविज्ञान,जीवजंतुविज्ञान एवं बनस्पतिविज्ञान के ऐसे सक्षम विद्वान तैयार करना है | जो गणित विज्ञान के द्वारा तो प्रकृति के स्वभाव को समझने में सक्षम हों ही इसके साथ ही साथ पृथ्वी से लेकर आकाश तक में हमेंशा होते रहने वाले प्रकृति परिवर्तनों का भी अध्ययन एवं अनुसंधान करने में सक्षम हों | इसकेसाथ ही शास्त्र में वर्णित प्रयोगों का प्रयोग पूर्वक परीक्षण करने में सक्षम हों | ऐसे विद्वान तैयार करने के लिए राजेश्वरीविद्यालय की स्थापना करने का उद्देश्य है |
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान ! (RPS)
संस्थापक :आचार्य डॉ. शेष नारायण वाजपेयी
Ph.D. By B.H.U
पता : K-71,छाछी बिल्डिंग चौक,कृष्णानगर,दिल्ली-110051
मो. 9811226983 , मेल - RPS1965 @mail.com
धन के अभाव में अधूरे पड़े अनुसंधानों को पूर्ण करने की योजना :
आँधीतूफ़ान चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसे इतने
बड़े बड़े अनुसंधान जिन्हें करने के लिए सरकारें अरबों खरबों रुपए खर्च कर
देती हैं | उन्हीं विषयों में संस्थान में सीमित संसाधनों के द्वारा
इसके बाद भी आधुनिक वैज्ञानिक प्रक्रिया के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान इसलिए सही नहीं निकल पाते हैं, क्योंकि भविष्य में झाँकने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है | उसके बिना भविष्य संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |इसी कारण महामारी संबंधी पूर्वानुमान सही नहीं लगाए जा सके हैं | धन के अभाव में सीमित संसाधनों के द्वारा किए गए इतने
इन्हें और अधिक स्पष्ट एवं उपयोगी बनाने के लिए अभी भी अनुसंधान कार्य चल रहा है |
इसके लिए ऐसी घटनाओं
इसी प्रकार से जिन जिन प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का क्रम समय प्रभाव आदि पता लगता जाता है उन उन से बचाव की तैयारियाँ पहले से करके रख ली जाती हैं | जिससे उनसे सुरक्षा होती चली जाती है |भारत के प्राचीन वैज्ञानिकों ने प्रकृति के बहुत सारे रहस्यों को प्राचीन काल में ही सुरझा लिया था |उनके प्रभाव से होने वाले हानि लाभ को उसी समय समझ लिया गया था |इसलिए उनसे बचाव हो जाता है |
विज्ञान के इतनी उन्नति कर लेने के बाद भी भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा ,बाढ़ एवं महामारी जैसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ अभी भी रहस्य ही बनी हुई हैं | इसलिए उनमें से किस घटना के घटित होने का समय क्या है | इसका पहले से पता लगाने के लिए अभी तक कोई ऐसी वैज्ञानिक प्रक्रिया नहीं विकसित की जा सकी है जिससे ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाया जा सके | इस कारण उनसे बचाव के लिए ऐसी घटनाओं के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाए जाने की आवश्यकता है |
कुलमिलाकर
के लिए
क्योंकि
आशय यह है कि मतलब उस घटना का होता है |
ने के कारण
इनसे समाज को सुरक्षित बचाने के लिए यही विकल्प बचता है कि वस्तुतः ऐसी घटनाओं के घटित होने से उतना नुक्सान नहीं होता है जितना नुक्सान
जनधन का नुक्सान न हो इसके लिए
इनसे समाज को
के घटित होने के विषय में पहले से पता नहीं लग पा रहा है | जिसके कारण पर भारी जनधन की हानि होते देखी जाती है |
आकाशवाणियाँ: सनातनग्रंथों में आकाशवाणियों की चर्चा बार बार पढ़ने सुनने को मिलती है |ये आकाशवाणियाँ हैं क्या और किसके द्वारा की जाती थीं | किस भाषा में की जाती थीं | आकाशवाणियों के अभिप्राय को क्या सभी लोग समझ लेते थे या कुछ विद्वान लोग ही समझ पाते थे | क्या वर्तमान युग में भी आकाशवाणियाँ होती हैं |यदि होती हैं तो पता क्यों नहीं लग पाती हैं |इसका कारण क्या हो सकता है | कहीं ऐसा तो नहीं है कि आकाशवाणियों को समझने वाले लोग ही अब न रहे हों ! जिन आकाशवाणियों से भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के विषय में पहले से पता लग जाया करता था उन आकाशवाणियों को न समझ पाने के कारण ही वर्तमान समय में
इससे बचाव के लिए उन्हीं आकाशवाणियों से प्राप्त संकेतों को समझने के ज्ञान विज्ञान को अनुसंधान पूर्वक पुनर्जीवित करना होगा |इसी उद्देश्य से मैंने आज के तीस वर्ष पहले राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान की स्थापना की थी | उसी समय से अनुसंधान का यह क्रम अभी तक चला आ रहा है |
जलवायु परिवर्तन -
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोधसंस्थान !
जनधन हानि को कम किया जाना कितना संभव है !उसके लिए ऐसे प्रभावी उपाय खोजने के लिए अनुसंधान किया जाता है | जिनसे ऐसी घटनाओं में संभावित जनधन हानि को कम किया जा सके |
मनुष्यजीवन संबंधी घटनाओं के विषय में -
भूकंप आँधीतूफ़ान बज्रपात चक्रवात वर्षा एवं बाढ़ आदि घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने एवं प्राकृतिक आपदाओं को नियंत्रित करने संबंधी मनुष्य की अपनी क्षमता को खोजना है |
एवं मनुष्यजीवन से संबंधित आपदाओं
एवं मनुष्य जीवन से संबंधी सभी पहलुओं पर अंतःविषय अनुसंधान को बढ़ावा देने, आगे के शोध और सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए आईकेएस को संरक्षित और प्रसारित करने के लिए की गई है। यह कला और साहित्य, कृषि, बुनियादी विज्ञान, इंजीनियरिंग और प्रौद्योगिकी, वास्तुकला, प्रबंधन, अर्थशास्त्र आदि के क्षेत्र में हमारे देश की समृद्ध विरासत और पारंपरिक ज्ञान को फैलाने के लिए सक्रिय रूप से संलग्न होगा।
दृष्टि:"भारतीय ज्ञान प्रणालियों" के सभी पहलुओं पर अंतःविषय अनुसंधान को बढ़ावा देना, आगे के शोध और सामाजिक अनुप्रयोगों के लिए "भारतीय ज्ञान प्रणालियों" को संरक्षित और प्रसारित करना।
उद्देश्य : उन व्यक्तियों और संगठनों का एक डेटाबेस बनाएं जिन्होंने कला, संगीत, नृत्य, नाटक से लेकर गणित, खगोल विज्ञान, विज्ञान, प्रौद्योगिकी, जीवन विज्ञान तक प्राचीन और समकालीन समृद्ध भारतीय ज्ञान प्रणालियों के अनुसंधान, शिक्षण, प्रकाशन और संरक्षण के माध्यम से योगदान दिया है। पर्यावरण और प्राकृतिक विज्ञान, स्वास्थ्य देखभाल, योग, कानून, न्यायशास्त्र, अर्थशास्त्र, सामाजिक विज्ञान, मनोविज्ञान, दर्शन, प्रबंधन, भाषा विज्ञान, भारत की मौखिक परंपराएं, संस्कृत, प्राकृत, तमिल, पाली आदि में छिपा ज्ञान।
आईकेएस प्रभाग के कार्य:
विश्वविद्यालयों, राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों, अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशालाओं और विभिन्न मंत्रालयों सहित भारत और विदेशों में विभिन्न संस्थानों द्वारा किए गए आईकेएस आधारित/संबंधित अंतर और ट्रांसडिसिप्लिनरी कार्यों को सुविधाजनक बनाना और समन्वयित करना और निजी क्षेत्र के संगठनों को इससे जुड़ने के लिए प्रेरित करना। संस्थानों, केंद्रों और व्यक्तियों के शोधकर्ताओं को शामिल करते हुए विषय-वार अंतःविषय अनुसंधान समूहों की स्थापना, मार्गदर्शन और निगरानी करना। लोकप्रियकरण योजनाएँ बनाएँ और प्रचारित करें। विभिन्न परियोजनाओं के वित्त पोषण की सुविधा प्रदान करना और अनुसंधान शुरू करने के लिए तंत्र विकसित करना। आईकेएस को बढ़ावा देने के लिए जहां भी आवश्यक हो, नीतिगत सिफारिशें करें। MoE @ AICTE के IKS प्रभाग के बारे में: शिक्षा मंत्रालय (एमओई) का भारतीय पारंपरिक ज्ञान प्रणाली (भारतीय ज्ञान परंपरा) प्रभाग एआईसीटीई मुख्यालय में स्थित है, जिसे अक्टूबर 2020 में स्थापित किया गया था। टीम में शुरुआत में श्री ए.बी. शामिल थे। शुक्ला (मुख्य समन्वयक), और तीन शोध अध्येता (डॉ. संजीव पांचाल, श्री अनुराग देशपांडे, और श्री श्रेयस कुहरेकर)। अक्टूबर, 2021 में राष्ट्रीय समन्वयक के रूप में प्रोफेसर गंती मूर्ति (आईआईटी इंदौर) और समन्वयक के रूप में डॉ. अनुराधा चौधरी (आईआईटी खड़गपुर) की नियुक्ति के साथ टीम को और मजबूत किया गया। MoE के एक समर्पित IKS डिवीजन की उत्पत्ति 18 मार्च, 2020 को "भारतीय पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों में अनुसंधान" विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में हुई। कार्यशाला की अध्यक्षता माननीय मानव मंत्री ने की। संसाधन विकास (अब MoE), श्री रमेश पोखरियाल 'निशंक' और विभिन्न शैक्षणिक और वैज्ञानिक संस्थानों और अन्य संगठनों के 100 से अधिक विद्वानों ने भाग लिया। पहला और महत्वपूर्ण कार्य बिंदु एक समर्पित आईकेएस डिवीजन स्थापित करना था जो मिशन मोड में काम करेगा। MoE का IKS डिवीजन एक मिशन मोड में स्थापित किया गया था और AICTE मुख्यालय में स्थित था और टीम AICTE के अध्यक्ष प्रोफेसर अनिल सहस्रबुद्धे को रिपोर्ट करती थी। प्रभाग के लिए प्रशासनिक सहायता एआईसीटीई मुख्यालय द्वारा प्रदान की जाती है।
आवश्यकता :वैज्ञानिक अनुसंधानों की सराहनीय प्रगति ने मनुष्य जीवन को सरल एवं सुखसविधा संपन्न बनाया है| जिस पर गर्व होना स्वाभाविक ही है | दूर संचार से लेकर यातायात के क्षेत्र में भी बहुत उन्नति हुई है |मनुष्य का चंद्रमा पर पहुँचना छोटी उपलब्धि नहीं है | इस सबके बाद भी प्रकृति और जीवन से जुड़े बहुत ऐसे आवश्यक विषय है,जिनमें संतोषजनक प्रगति नहीं हो सकी है | इस अधूरेपन के कारण प्राकृतिक क्षेत्र के साथ ही साथ मानव जीवन में बहुत अनिश्चितता बनी हुई है|प्राकृतिक घटनाओं के द्वारा कभी भी जनधन की हानि होनी शुरू हो जाती है जिसे रोकने में मनुष्य का कोई बश नहीं चलता है |
कोरोना महामारी को ही लिया जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के इतने उच्चस्तर पर पहुँच जाने के बाद भी महामारी से जनता को ही जूझना पड़ा है | भारत वर्ष को विगत दशकों में पड़ोसी शत्रु देशों से तीन युद्ध लड़ने पड़े उन तीनों युद्धों में इतने लोग मृत्यु को नहीं प्राप्त हुए हैं जितने कि अकेले कोरोना महामारी में मारे गए हैं |
ऐसा होने का सबसे बड़ा कारण प्राकृतिक आपदाओं एवं कोरोनामहामारी जैसे स्वास्थ्यसंकटों से निपटने के लिए पहले से किसी तैयारी का न होना है|प्राकृतिक आपदाएँ हों या फिर महामारियाँ ये अत्यंत वेग से अचानक हमला करती हैं|जिससे तुरंत लोग प्रभावित पीड़ित एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | ऐसे संकटों में जो नुक्सान होना होता है वो प्रायः पहले झटके में ही हो चुकता है| उसके बाद आपदाप्रबंधन वाले लोगों की भूमिका प्रारंभ हो जाती है | इसमें वैज्ञानिक अनुसंधानों की कोई भूमिका बचती ही नहीं है |
महामारी से भारी संख्या में लोग जब संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगे और उन पर चिकित्सा का कोई प्रभाव नहीं पड़ने लगा तब ये महामारी है ऐसा निश्चय हुआ | इसके बाद उस रोग को समझना,उसके अनुशार औषधि तैयार करना !औषधि निर्माण के लिए इतने बड़े पैमाने पर औरषधीय द्रव्यों का संग्रह करना औषधि निर्माण करके उसे जन जान तक पहुँचाने जैसे इतने बड़े काम को करने के लिए काफी समय चाहिए होता है | यदि वो औषधि प्रभाव कारी हो भी तो उसे जन जन तक पहुँचने में इतना समय लग आग जाता है कि तब तक महामारी के स्वतः समाप्त होने का समय आ जाता है |
ऐसी परिस्थिति में आवश्यकता इस बात की है कि ऐसे संकटों के आने से पहले इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने की क्षमता विकसित की जाए ! यह विज्ञान की भूमिका है किंतु विज्ञानं इसमें अभी तक इसलिए सफल नहीं हुआ है क्योंकि ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली को देखा या उनके विषय में अनुमान लगाया जा सके | ऐसे विज्ञान को खोजे जाने की आवश्यकता है |
मनुष्य जीवन की दृष्टि से -
1. सत्य की खोज करना या छिपे हुए सत्य का पता लगाना।
2. नवीन तथ्यों की खोज करना या नवीन ज्ञान की प्राप्ति करना।
3. किसी घटना के बारे में नई जानकारी प्राप्त करना,
4. किसी विशेष स्थिति का सही वर्णन प्रस्तुत करना।
5. समस्याओं का निदान या समाधान करना।
6. वैज्ञानिक कार्यविधि के उपयोग द्वारा प्रश्नों के उत्तर प्राप्त करना।
7. विज्ञान पर आधारित वस्तुपरक ज्ञान प्राप्त करना।
8. किन्ही चरों के बीच कार्य-कारण संबंध ( causal relationship) को समझना और परीक्षण करना।
9. किसी घटना के साथ सह-संबंध की जानकारी प्राप्त करना।
10. व्यवस्थित प्रयत्न द्वारा सिद्धांतों का निर्माण करना।
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