दिल्ली एम.सी.डी.या सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाता कौन ?
मैंने चार विषय से एम.ए.एवं बी.एच.यू. से पी.एच.डी.की है विभिन्न विषयों
की करीब सौ पुस्तकों का लेखक हूँ।मेरी लिखी हुई कई पुस्तकें पाठ्यक्रम में
पढ़ाई भी जा रही हैं।मेरी बच्चियॉं एम.सी.डी.के स्कूल में ही पढ़ती हैं।एक
अभिभावक होने के नाते मेरी यह पीड़ा भी है और प्रश्न भी!कि प्राइवेट स्कूलों
के शिक्षकों की अपेक्षा एम.सी.डी.के प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक अधिक शिक्षित एवं ट्रेंड होते हैं फिर भी क्या कारण हैं कि प्रायःशिक्षित लोग,संपन्न लोग,संभ्रात लोग, शिक्षा मंत्री से लेकर सांसद,विधायक आदि लोग प्राइवेट विद्यालयों में ही अपने बच्चे पढ़ातेहैं सरकारी या निगम स्कूलों में नहीं !
एम.सी.डी.के अधिकारी कर्मचारी यहॉं तक कि एम.सी.डी.के प्राथमिक स्कूलों के शिक्षक शिक्षिकाऍ
यदि काम चोर न होकर ईमानदार हैं तो अपने बच्चे एम.सी.डी.के स्कूलों में
क्यों नहीं पढ़ाते प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं क्यों?
अधिकारियों की लापरवाही एवं शिक्षकों के द्वारा बच्चों के भविष्य के साथ किए जा रहे दुर्व्यवहार के अलावा एम.सी.डी.के स्कूलों में और क्या क्या ठीक नहीं हैं?क्या इसी अकर्मण्यता की सैलरी मिलती है उन्हें ?आखिर ये लापरवाही क्यों
2.एम.सी.डी.स्कूलों में शिक्षा के नाम पर इतना विज्ञापन होता है शिक्षा की न केवल बड़ी बड़ी बातें होती हैं अपितु इन स्कूलों में फ्री शिक्षा,
फ्री भोजन, फ्री किताबें और भी बहुत सारी सरकारी सुविधाएं फ्री में मिलती
हैं किंतु अत्यंत दुःख की बात है कि शिक्षा नहीं मिलती है!
शिक्षा व्यवस्था को अच्छे ढंग से चलाने के लिए बड़े बड़े अधिकारियों की भारी
भरकम फौज होती है आखिर किस लिए क्या करते हैं वे अधिकारी? कभी बच्चों एवं
बच्चों के अभिभावकों की आँखों से भी देखें अपने शिक्षकों की शैक्षणिक लापरवाही को!
प्रतिदिन स्कूल नहीं जाना,जाना तो समय से नहीं पहुँचना,देर सबेर
पहुँचना,पहुँचकर भी कक्षा में नहीं पहुँचना,आफिस में बैठे बातें करते
रहना,कक्षा में जाना भी तो समय से नहीं जाना देर सबेर जाना,वहाँ फ़ोन पर
लगे रहना फिर आफिस पहुँच जाना,समय से पहले घर चले जाना यदि नहीं जाना तो
जल्दी छुट्टी कर देना।कभी कई कई दिनों की छुट्टी कर लेना!बच्चे घूमा करते
हैं!पढ़ाई के नाम पर कभी किसी कापी की नक़ल कभी किसी किताब की नक़ल करने को
बता देना जो जितनी रँग लेता है अपनी कापियाँ वही उनकी पढ़ाई मान ली जाती
है।इंग्लिश और मैथ जैसे विषयों का तो कहना ही क्या है?कम्पटीशन के इस युग
में जहाँ अच्छी से अच्छी पढ़ाई करने पर भी तो गुजारा नहीं है वहाँ बच्चों के
भविष्य के साथ यह खिलवाड़ कितना सही है?जनता की कमाई इन शिक्षा शेरों पर
निरर्थक लुटाई जा रही होती है इस काम चोरी के मिलते हैं उन्हें चालीस से
पचास हजार रूपए महीने !
प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा इनके शिक्षक काफी महँगे होते हैं ।इस सारी
व्यवस्था को करने में एवं इन अधिकारियों,कर्मचारियों तथा शिक्षकों को दी
जाने वाली सैलरी आदि में कितनी बड़ी धनराशि खर्च होती होगी!फिर भी यहॉं की
शिक्षा और शिक्षा व्यवस्था पर यदि एम.सी.डी.के अधिकारी,कर्मचारी एवं
शिक्षकों का ही विश्वास नहीं है ,यदि एम.सी.डी.के शिक्षक अपने शिक्षाकर्म
से अपने अधिकारियों,कर्मचारियों एवं अपने आप को ही संतुष्ठ नहीं कर सके तो
यहॉं की शिक्षा व्यवस्था पर आम आदमी कितना और क्यों भरोसा करे?ऐसी
शैक्षणिक व्यवस्था को आम समाज के साथ धोखा एवं वहॉं पढ़ने वाले बच्चों के
भविष्य के साथ खिलवाड़ तथा इन स्कूलों पर खर्च होने वाली विशाल धनराशि को
धन का दुरुपयोग क्यों न माना जाए?
बच्चों के एडमीशन के लिए मैं स्वयं सरकारी वा एम.सी.डी.के कई स्कूलों में
गया,लगभग हर स्कूल के शिक्षकों ने हमें यह समझाने की कोशिश की कि यदि आप
अपनी बच्चियों को वास्तव में पढ़ाना चाहते हैं तो इन्हें प्राइवेट में पढ़ा
लें ,हमारे यहाँ इनकी जिंदगी मत बरबाद करें?यदि आपको केवल एडमीशन चाहिए वो
हो जाएगा!फ्री भोजन, फ्री किताबें और जो भी सरकारी सुविधाएँ मिलती हैं वो
आपकी बच्चियों को भी मिलेंगी!पढ़ें न पढ़ें पास कर दी जाएँगी लेकिन पढ़ाई न हो
उसके लिए मैं जिम्मेदार नहीं हूँ हमसे मत कहना!एक स्कूल में तो एक
शिक्षिका ने हमें डाँटते हुए यहाँ तक कहा कि आपको लड़के लड़की में इतना भेद
भाव नहीं करना चाहिए!यदि ये लड़कियाँ न होतीं इनकी जगह लड़के होते तो उन्हें
भी क्या आप पढ़ाते एम.सी.डी.या सरकारी स्कूलों में!सच कहूँ तो यह सुनकर हमें
प्राणों से प्यारी बच्चियाँ हमारे मुख की ओर देखने लगीं मैं उनसे आँखें
मिलाने का साहस नहीं कर पा रहा था मुझे लग रहा था कि जमीन फट जाए मैं समा
जाऊँ!जहाँ के शिक्षक ही अपने स्कूलों के विषय में ऐसी बातें करते हों वहाँ
कैसी शिक्षा और कैसा शिक्षा अधिकार कानून?सरकार की जब नियत ही ठीक नहीं है
तो कानून बनाने से क्या होगा?जैसे कानून बना किंतु शिक्षा नहीं हो रही है
इससे तो यही लगता है कि कानून बने क्या इससे बंद होंगे बलात्कार,क्या
करेगा भोजन का कानून सब सरकारी मशीनरी ही खा पी जाएगी!
अस्तु,ऐसे स्कूलों में
कोई थोड़ा भी सक्षम अभिभावक कैसे पढ़ा पाएगा अपने बच्चे?उसे भी इसी समाज में
रहना जीना है!बच्चों के काम काज भी करने हैं?यदि एम.सी.डी.और सरकारी स्कूलों की यही प्रतिष्ठा रही तो कौन थाम्हेगा यहाँ पढ़ने वाली बच्चियों का हाथ और कैसा होगा यहाँ पढ़ने वाले बच्चों का भविष्य ?
इतने भारी भरकम खर्चे के बाद भी लगभग सभी एम.सी.डी.के स्कूलों में पढ़ाई न
होने जैसी बातों का कारण समझने के लिए मैं एक स्कूल में बिना बच्चों को लिए
एक दिन अकेला ही गया तो आफिस में कई शिक्षिकाएँ बैठी हुई थीं चपरासी
महोदय बाहर बैठे थे मैंने उनसे पूछा यहाँ कैसी पढ़ाई होती है?उसने कहा कि ये
सब मैडमें आफिस में ही बैठकर बातें किया करती हैं थोड़ी बहुत देर के लिए
कक्षाओं में चली भी गईं तो राइटिंग वगैरह लिखने को बता आईं बाकी बच्चे शोर
मचाते रहते हैं कभी कभी हमें बोल देती हैं तो मैं जाकर बच्चों को डाँट
देता हूँ वे थोड़ी बहुत देर के लिए शांत हो जाते हैं बस फिर वही!तुम्हीं
जाकर देखो नौ बज रहे हैं अभी तक तो सब आफिस में ही हैं कभी कोई चक्कर मार
आई हो तो पता नहीं!अब अभी आधे घंटे बाद लंच हो जाएगा, जो लगभग साढे़ दस तक
चलेगा।इसके बाद बारी बारी से किसी न किसी शिक्षक को रोज जरूरी काम लगा करता
है किसी को दवा लेनी होती है आदि आदि।स्कूल टाइम में ही शिक्षिकाएं निपटा
रही होती हैं अपने अपने काम!जो छुट्टी पर रहती हैं उन्हें बीमार बताने के
लिए हमसे कहा गया है जो मार्केट जाती हैं उन्हें मीटिंग में गई हैं ऐसा
बताने को बोला गया है!कुछ शिक्षक छुट्टी करने को स्कूल में बैठे रहते हैं
किंतु अभिभावकों को पहले ही समझाया जा चुका है कि साढ़े बारह बजे छुट्टी
होनी है उसके एक भी मिनट बाद आपके बच्चे की हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं
है!इस बात से भयभीत अभिभावक बारह बजे से ही स्कूल से अपने बच्चे ले जाने
लगते हैं!इसप्रकार से धीरे धीरे बिना छुट्टी किए ही हो जाती है छुट्टी!खैर
मैं अंदर आफिस में गया तो देखा दरवार सजा था वहॉं भी शिक्षा को लेकर वही
पुरानी बातें सुनकर मैंने पूछा कि आखिर यहॉं क्यों नहीं होती है पढ़ाई?
उन्होंने समझाया कि आफिसियल वर्क हम लोगों पर इतना अधिक होता है कि हमलोगों
को उसी से समय नहीं मिलता है तो बच्चों को कैसे पढ़ाएं ! हमने कहा कि आपके
स्कूलों के गेट पर तो लिखा है कि यहॉं अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई होती है।यह
सुनकर उन्होंने हमारा खूब उपहास उड़ाया।साथ ही सरकारी किताबों की बिषय
सामग्री का मजाक उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि इनमें पढ़ाने लायक है ही
क्या?आदि आदि।
मैं जानना चाहता हूँ कि क्या शिक्षा एवं बच्चों के भविष्य के साथ यह
मजाक ठीक है!यदि नहीं तो इसमें लापरवाही किसकी है और उस पर नियंत्रण किया
नहीं जा रहा या हो नहीं पा रहा है यदि किया नहीं जा रहा तो क्यों यदि हो
नहीं पा रहा तो क्यों?
एक दिन ग्यारह बजे पूर्वी दिल्ली कृष्णा नगर के एम.सी.डी.के एक
नर्सरी स्कूल में गया मेरे साथ एक और मित्र थे दो वहीं की और अध्यापिकाएँ
भी आ गईं अध्यापिका नहीं थी बच्चों को रखाकर कोई और बैठा था! हम सब लोग
काफी जोर जोर से बात कर रहे थे हम लोगों ने देखा कि सारे बच्चे एक साथ बैठे
बैठे मेज पर शिर रख कर बेसुध होकर सो रहे थे।नींद वह भी ऐसी कि बच्चे
जगना तो दूर हिले डुले भी नहीं थे। मैंने उनको पूछा कि इतने सारे बच्चे एक
साथ अचानक कैसे सो गए तो उन्होंने बताया बच्चे हैं सो जाते हैं खैर मैंने
उनसे कहा कि ये ठीक नहीं है आप पढ़ाया करो खिलाया करो,सुलाया मत करो !
बंधुओं,एक दिन मैंने किसी दूसरे स्कूल के विषय में टी.वी.पर देखा था कि
छोटे बच्चों को स्कूल पहुँचते ही सीरप पिलाया दिया जाता है तो बच्चे सोया
करते हैं उस दिन जब यहाँ देखा तो वो बात याद आ गई सच्चाई तो ईश्वर ही
जानें!किन्तु सरकारी या नगर निगम के स्कूलों से जुड़े शिक्षकों पर से अब
विश्वास तो सबका उठ रहा है किंतु धनहीन लोग अच्छे स्कूलों में पढ़ा नहीं
सकते सरकारी और नगर निगम के शिक्षक पढ़ाना नहीं चाहते।
एक दिन नगर निगम के किसी स्पेक्टर को ये सब बातें बताने गया तो
पता लगा कि उन्हें पहले से पता है किंतु उन्होंने हमें नाम न बताने की शर्त
पर कहा कि वहाँ कोई शिक्षिका पढ़ाना नहीं चाहती मैं क्या कर सकता हूँ सभी
जगह का यही हाल है सरकारी स्कूलों में भी तो पढ़ाई नहीं होती है तो मैंने
पूछा कि फिर ये विद्यालय चलते क्यों हैं क्यों दी जाती है शिक्षकों को
सैलरी ?यह कहकर चला आया!
प्राइवेट स्कूलों में तो लाखों रुपए एडमीशन फीस एवं हजारों रुपए महीने की
फीस होती है जहॉं शिक्षकों के लिए उच्चशिक्षा एवं ट्रेंड होने की
अनिवार्यता भी नहीं होती इनकी सैलरी भी एम.सी.डी.के स्कूलों के शिक्षकों की
अपेक्षा काफी कम होती है।प्राइवेट स्कूलों में कोई अधिकारी नहीं होता है
बस अकेला स्कूल मालिक ही होता है वह भी जरूरी नहीं कि शिक्षित या खास
शिक्षित हो!फिर भी प्राइवेट स्कूलों का विश्वास इतना अधिक क्यों है कि
लाखों रुपए खर्च करके भी हर कोई अपने बच्चे वहॉं पढ़ाना चाहता है?प्राइवेट
स्कूलों से और अधिक अच्छे क्यों नहीं हो सकते एम.सी.डी.के और सरकारी
स्कूल?यदि हो सकते हैं तो देर क्या है उसके लिए प्रयास क्या किए जा रहे
हैं?या ऐसा कोई बिचार ही नहीं है या जैसा चल रहा है उससे संतुष्ट है
एम.सी.डी.या सरकारी स्कूल प्रशासन?
एम.सी.डी.स्कूलों के मध्यान्ह भोजन के बिषय में लोगों का अनुमान है कि
भोजन में गंदगी कीड़े मकोड़े केंचुए छिपकलियॉं आदि निकलने का कारण केवल यहॉं
के शिक्षकों की लापरवाही है!यदि सरकारी स्कूलों के
अधिकारी,कर्मचारी,शिक्षक शिक्षिकाओं के अपने बच्चे भी इन्हीं एम.सी.डी.और
सरकारी स्कूलों में ही पढ़ रहे होते तो भी क्या होती शिक्षा में लापरवाही और
मिलती भोजन में गंदगी?इसलिए यदि ऐसा करने से शिक्षा और भोजन दोनों का ही
सुधार संभव है तो सरकारी स्कूलों के अधिकारी, कर्मचारी, शिक्षक
शिक्षिकाएं एम.सी.डी.और सरकारी स्कूलों में ही क्यों नहीं पढ़ाते हैं
अपने भी बच्चे?
इतना सब होने के बाद भी शिक्षक दिवस पर शिक्षकों को बधाई !
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें