शनिवार, 9 नवंबर 2013

धर्म से जुड़े लोग ही करवा रहे हैं धर्म की छीछालेदर !

  सभी सनातन धर्मी बंधु  बहनों  से प्रार्थनात्मक  प्रश्न !

    आज अपने धर्म का जिस प्रकार से व्यापारी करण हुआ है क्या आप उससे सहमत हैं ? 

       जब शास्त्रीय धर्म का पालन साधू संन्यासी योगी ब्रह्मचारी आचार्य कथाबाचक या विद्वान् ब्राह्मण ,पंडितों समेत सभी  शिक्षित लोग नहीं करेंगे तो आम लोगों से धर्म सम्मत जीवन जीने की आशा ही क्या करनी ! जिन्होंने शास्त्र पढ़े ही न हों शास्त्रीय विद्वानों का संग ही न किया हो शास्त्रीय नियम धर्मों को अपनी अपनी सुविधानुसार  तोड़ मरोड़ कर अपनी मनमानी व्याख्या के अनुशार स्वच्छंदता पूर्वक स्वयं चलने वाले एवं अपने चेला चेलियों को चलाने वालों से शास्त्रीय धर्म सम्मत धर्म कर्म के प्रचार प्रसार की आशा कैसे की जाए!कम से कम वो लोग भी प्रणम्य हैं जो किसी कारण या स्वास्थ्य आदि मजबूरी बश शास्त्रीय धर्मकर्म का पालन स्वयं तो नहीं कर पाते हैं किन्तु अपनी पोल खुलने के भय से अपने शिष्यों को नहीं भटकाते हैं अर्थात उन्हें जानकारी सही सही देते हैं तो उनमें जो संयमी लोग शास्त्रीय आचरण करना चाहते हैं वे कर भी लेते हैं ! 

       व्यापार करने के लिए धन की आवश्यकता होती है धन जुटाने के लिए कर्ज लेना और फिर   लौटाना पड़ेगा,ब्याज पर ले तो ब्याज देना पड़ेगा मूल धन तो देना ही पड़ेगा किन्तु व्यापार गर्भित वो व्यक्ति बाबा बनकर जन हित का काम करने की बड़ी बड़ी बातें करने लगे और धर्म के नाम पर माँग कर धन इकठ्ठा करता  फिरे तो न माँगने में शर्म,न देने की चिंता न किसी के सवाल न जवाब  न हिसाब न किताब स्वयंभू मालिक होकर उस धन से जो चाहे सो व्यापार करे अब वो अपना और अपने बाप का !कितनी अच्छी तरकीब है धन संग्रह करने की !

        इसके बाद तीर्थों में होटल धर्मशालाएँ  बनवा कर उनसे किराया वसूले ,दवा दारू बनावे बेचे,सुख सुविधा पूर्ण  जीवन जिए और जब कोई पूछे तो बता दे कि मैं तो दिन  भर में  केवल एक केला खा कर रहता हूँ ! आश्रमों में सुन्दर सुन्दर बेड रूम बने हों और कहे कि मैं तो चटाई पर सोता हूँ ऐसे लोगों पर और इनकी बकवासी बातों पर  कितना विश्वास किया जाए कि इनका जीवन संयमित होगा ?चलो हम धार्मिक होने के नाते मान भी लें किन्तु और लोग क्यों मानेंगे और हम भी क्यों मान लें ईश्वर ने बुद्धि दी है उसका उपयोग क्यों न किया जाए !

      जब वह धर्म व्यापारी किसी पाप प्रपंच में पकड़ा जाए तो धर्म की दुहाई देकर धार्मिक लोगों को अपने धर्म पर मर मिटने के लिए ललकारे ,जो सुन कर  हिन्दू लोग धर्म की  रक्षा के नाम पर उनके पापों की रक्षा के लिए दौड़ पड़ें क्या इन हिंदुओं के सम्मान स्वाभिमान समर्पण का भी कोई महत्त्व होना चाहिए या नहीं ?हिन्दू धर्म में यह धांधली आखिर कब तक चलेगी और क्यों चलने देनी चाहिए ?क्या यही अपना शास्त्रीय सनातन हिन्दू धर्म है आखिर हिंदू इतना बेबश और लाचार क्यों है वह अपने धर्माचार्यों से धार्मिक एवं शास्त्रीय आचरण की अपेक्षा क्यों नहीं  कर सकता है ? सभी सनातन धर्मी बंधु  बहनों  से प्रार्थनात्मक  निवेदन  !

      आज परिस्थिति ऐसी बन गई या बना दी गई है कि अब हमें अपने धर्म एवं धर्म से जुड़े लोगों एवं उनकी धार्मिक गतिविधियों के विषय में न केवल सोचना होगा अपितु हम उनके  अशास्त्रीय असमाजिक अधार्मिक आचार व्यवहार का विरोध करें न करें उससे अपने को अलग जरूर कर लेना चाहिए ताकि बाद में होने वाले अपयश में सहभागी न होना पड़े !

      आज अपने धर्म का जिस प्रकार से व्यापारी करण हुआ है क्या आप उससे सहमत हैं ?

       केवल धन कमाने के लिए कथा वाचक बनना, कथा वाचक या बाबा कैसा भी फूहड़ श्रृंगार करे, कुछ भी गावे, कैसे भी नाचे, अपने नाम के साथ कितना भी बड़ा धर्म गुरु लिखने लगे केवल धन कमाने के लिए योगी बनने लगे ,केवल धन कमाने के लिए संत का वेष  धारण करने लगे !यदि विरक्त का लक्ष्य भी धन संग्रह करना ही है तो गृहस्थ और विरक्त में अंतर क्या रह जाएगा !

      इन  सबसे माँग माँग कर मोटा फंड जुटा लेने के बाद दवा दारू आदि का व्यापार कर ले व्यापार की सुरक्षा के लिए राजनीति  में घुसपैठ करने लगना,और जब अपने बुने जाल में फँसने लगे तो हिन्दू धर्म और धर्माचार्यों  के  आँचल में मुख ढक कर बचने का प्रयास करे और  अपेक्षा ये रखे कि  सारे हिन्दू हमारे सम्मान स्वाभिमान की रक्षा के लिए मर मिटें क्या ये ठीक है ?क्या बन्दे मातरम् या भारत माता की जय बोल देने मात्र से बात समझ में आ जानी चाहिए कि ये स्वामी विवेकानंद जी हैं !

       क्या अब समय नहीं आ गया है कि हिन्दू लोग अपने उन्हीं धर्माचार्यों के प्रति समर्पित हों जिनकी  जीवन शैली शास्त्रीय हो और जो सभी प्रकार के व्यापार और व्यभिचार से ऊपर  उठे हों जिनमें साधुत्व का स्वाभिमान भी हो !जिनका जीवन इतना पारदर्शी हो कि उनके आचरण पर अँगुली उठाने की किसी की हिम्मत ही न पड़ सके !

        योग और योग गुरुओं का बढ़ता प्रचलन -

          आज  शहरों का रहन सहन विलासी और आराम पसंद हो गया है जो जितना संपन्न हो गया है वो अपने हाथ से उठाकर पानी भी नहीं  चाहता है!ऐसी परिस्थिति में   लोगों के पेट ख़राब हो रहे हैं धनी  वर्ग शारीरिक श्रम से दूर रहता है और दिन भर फास्ट फूड खाता रहता है वो जब  किसी तथाकथित योग नाम के शिविर में जाता है अंकुरित चने खाता या फल सलाद आदि खाता है फास्ट फूड आदि वहाँ दिए नहीं जाते हाथ पैर चलाकर कसरत करने का अभ्यास करता है तो उस शरीर में सड़  रही महीनों की संचित गन्दगी निकल जाती है वह हल्का हो जाता है।जिससे शरीर शुद्ध होने के कारण स्वस्थ और प्रसन्न होगा ही स्वाभाविक है । 

   ये सीधी सी बात न समझने के कारण शहरी लोग अपनी स्वास्थ्य खराबी के लिए शहर के प्रदूषण को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं किन्तु यदि ऐसा होता तो रिक्से वालों  का खान पान तो और कमजोर या दूषित होता है उन्हें तो  पानी भी शुद्ध नहीं मिल पाता  है फिर भी वो अपने शरीर  को परिश्रम करके शुद्ध और स्वस्थ कर लेते हैं।

        चूँकि गाँव के किसान अत्यंत परिश्रमी होते हैं कसरत से लेकर दंड बैठक या पहलवानी आदि करना उनका स्वभाव होता है इसी रहन सहन खान पान के बल पर वे स्वस्थ रह लेते हैं। 

         जो धनी  वर्ग   काम करने को अपनी बेइज्जती समझता है नौकरों के रहते वह काम क्यों करे किन्तु स्वस्थ रहने के लिए किसी को भी शरीर तो हिलाना ही पड़ेगा !अब बीच का रास्ता क्या निकाला जाए ?

         इसी बीच गाँव का कोई चालाक आदमी इसमें धंधा ढूँढ  लेता है और वह इस शरीर हिलाने को एक नया नाम दे देता है कि यह तो योग है जिसे ख़ुशी ख़ुशी सब स्वीकार कर लेते हैं और वर्षों से विस्तरों में जाम लोग हिलने डुलने लगते हैं इससे शरीर शुद्ध और स्वस्थ होगा ही स्वाभाविक है।

धर्माचार्यों की लापरवाहियों से आहत सनातन हिन्दू समाज !

        मैं आप से भी पूछना चाहता हूँ कि जिसे बचपन से हम आप शारीरिक व्यायाम कहते सुनते आ रहे हैं उसी शारीरिक व्यायाम को आज योग  बताया जा रहा  है? योग हमारा प्राचीन विज्ञान है वह आत्मा को  परमात्मा से मिलाने की अत्यंत गूढ़ कठोर साधना  है।  इसमें संयमित यम नियमादि प्रक्रिया से गुजरते हुए परमपथ की ओर आगे बढ़ने का ऐकांतिक साधनात्मक  अभ्यास होता है । सभा सम्मेलनों मंचों सामूहिक स्थलों पर किया जा रहा शारीरिक व्यायाम योग कैसे हो सकता है । योग नाच गाने की तरह सामूहिक स्थलों पर किया ही नहीं जा सकता है !उचित होगा यदि शारीरिक व्यायाम को योग कहने से बचा जाए ! क्योंकि योग  सनातन धर्मियों की अत्यंत पवित्र थाती है इस ऋषि सम्पदा के साथ छेड़ छाड़ ठीक नहीं है !वैसे भी  यदि शारीरिक व्यायाम को योग कहा जाने लगेगा तो योग को क्या कहा जाएगा !व्यायाम  को योग कहना कहीं  भारतीय प्राचीन योगविद्या के विरुद्ध कोई सोचा समझा अभियान तो नहीं चलाया जा रहा है !

       खैर, जो भी हो अपनी आत्मा और मन के बीच छिड़े भयंकर द्वंद्व में फँसकर  बेचारा  मैं अपनी चिंता आज अपने सभी फेसबुकी पारिवारिक  अत्यंत आत्मीय सदस्यों के सामने रख रहा हूँ । पिछले कई महीनों से धर्म एवं धर्माचार्यों पर निरंतर आक्षेप सहते सहते अत्यंत आहत मेरा मन विवश है । जब टी.वी.चलाओ जो  टी.वी.चलाओ तब केवल महात्माओं की निंदा चल रही होती है भला हो चुनावों का अन्यथा टी.वी. वाले खाली होते तो आज भी वही दरते रहते ! धर्म एवं धर्म शास्त्रों की निंदा इतनी अधिक हुई कि चरित्रवान   धार्मिक समुदाय तथा  धर्माचार्य उसका प्रभावी प्रतिकार करने में नाकाम रहे हैं । यह स्वीकार करने में अब संकोच नहीं होना चाहिए! अक्सर टी.वी.चैनलों पर आने के शौक़ीन टी.वी.चैनलों के पालतू  तथाकथित धार्मिक गुर्गे भिन्न भिन्न टी.वी.चैनलों  पर वेश भूषा बदल बदल कर धार्मिक छीछालेदर करने कराने जाते रहे बात और है कि  उनके अशास्त्रीय एवं काल्पनिक उत्तर उस नास्तिकी बहस में बिलकुल ठहर नहीं सके ! हमारा कोई भी अधिकृत धर्माचार्य सामने नहीं आया ये समझ कर कि हम तो इन लोगों को संत मानते ही नहीं हैं जो मानते है वे भुगतें !

          पत्रकारों एवं धर्म विरोधियों ने उनके बहाने धर्म एवं धार्मिकों की जम कर धुनाई की  है वो चोटें आज भी कसकती हैं इतना कि किसी भी धर्मवान व्यक्ति को रात रात भर सोने नहीं देती हैं !कई बार लगता है कि ऐसे लोगों के सहारे यह समझ कर धर्म एवं धार्मिक गौरव को छोड़ा गया था कि ये सक्षम हैं सब सँभाल लेंगे किन्तु दुर्भाग्य से इन्होंने डुबाने  में कोई कसर छोड़ी नहीं है । बाकी सनातन हिन्दू धर्म की  जड़ें इतनी गहरी हैं कि इन्हें जब विदेशी आक्रांता नहीं हिला सके तो क्या कर लेंगे ये लोग? हाँ, उपहास करने का मौका तो इन्हें मिल ही गया इस बात की चोट इतनी गहरी है कि अपने कहे जाने वाले तथाकथित धर्माचार्यों ने  ये चोट दी है!  धर्म एवं धर्म शास्त्रों  के लिए जिस किसी ने भी जीवन सौंपा है तो यह भी सहना पड़ेगा ! आज स्वयं मेरे विचारों पर संदेह कर रहा है मेरा मन !

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