बुधवार, 6 नवंबर 2013

दिल्ली भाजपा के 5 विजय भारी पड़े दिल्ली विजय पर !भाजपा देखती रह गई!

      डेढ़  वर्ष पुरानी नौसिखियों की पार्टी ने सवा सौ वर्ष पुरानी पार्टी को धूल चटा दी !भाजपा बेचारी देखती रह गई!आखिर  भाजपा को इससे अच्छा मौका और कब मिलेगा ?किन्तु मानना पड़ेगा कि भाजपा के 5 विजय भारी पड़े भाजपा की दिल्ली विजय पर!!!

        बिना कुछ काम किए भी जिस काँग्रेस को अपनी बारी आने पर बिना प्रयास किए ही सत्ता मिल जाती रही हो  उस काँग्रेस का उन्मत्त होना स्वाभाविक ही है और समझ में भी आती है क्योंकि उसे अबकी भी आशा थी कि आपसी भिडंत में मस्त भाजपा को चकमा देकर निकाल ले जाएँगे चुनाव और बना लेंगे अपनी सरकार ! किन्तु अबकी बार आम आदमी पार्टी के रूप में एक सशक्त सिपाही दिल्ली की काँग्रेस सरकार को हर मोर्चे में असफल सिद्ध करने पर तुला हुआ था । इसके लिए उन्होंने भयंकर परिश्रम भी किया था वो दिल्ली की काँग्रेस सरकार पर न केवल आरोप लगाते अपितु उनके पास वे आरोप सिद्ध करने के तर्क और प्रमाण भी होते थे ये उनकी वास्तविक तैयारी थी ,जबकि भाजपा नेताओं के पास उस तरह की तैयारी नहीं थी इससे पूरे देश की वह आशंका भी सच साबित हुई कि काँग्रेस अपने बलबूते पर चुनाव नहीं जीत पाती है अपितु भाजपा की ओर से जीतने का उतना प्रयास ही नहीं हो पाता  है जितना किया जाना चाहिए था इसीलिए काँग्रेस जीतती रही है, किन्तु अबकी बार केजरीवाल ने हकीकत सबके सामने उजागर कर दी है। वैसे भी भाजपा अभी भी कुछ बढ़त के साथ अपनी पुरानी  जगह पर ही है किन्तु डेढ़ वर्ष पुरानी नौसिखियों की पार्टी ने सवा सौ वर्ष पुरानी पार्टी को धूल चटा दी !न केवल इतना अपितु दिल्ली भाजपा को भी सबक सिखा दी कि चुनाव जीतने के लिए तैयारी कैसे की जाती है जो करने की आवश्यकता बहुत पहले थी जिसे तुम नहीं कर पाए और मैंने कर के दिखा दिया!

     यह राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के लिए आत्म मंथन का समय है कि इन्हीं तैयारियों के बल पर  मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाए जाने की बात करना कहाँ तक ठीक है?

     यहाँ एक बात और प्रमुख है  कि केंद्र वा प्रदेशों की  सत्ता में अभी तक  लगभग काँग्रेस ही रहती आई है और प्रमुख विपक्षी पार्टी भाजपा रही है किन्तु अपनी कमजोरियों के कारण जिन जिन प्रांतों में विपक्षी भूमिका निभा पाने में भाजपा असफल रही है वहाँ वहाँ क्षेत्रीय पार्टियाँ जन्म लेती रही हैं दिल्ली में पिछले पंद्रह वर्षों की भाजपाई लापरवाही आज आमआदमी पार्टी के रूप में सामने आई है और इस प्रकार से  दिल्ली में भी हुआ एक नई पार्टी का जन्म !जिन प्रांतों में सम्मानित विपक्षी भूमिका निभा पाने में भाजपा सफल हो सकी है वहाँ नहीं पनप पाई हैं क्षेत्रीय पार्टियाँ।

     सम्मानित विपक्षी भूमिका निभा  पाने से हमारा अभिप्राय यह है कि न अधिक हो सके तो एक एक बार सत्ता मिलती रहे वह भी ठीक है किन्तु दिल्ली में तो पिछले पंद्रह वर्षों से भाजपा को सत्ता के समीप  फटकने ही नहीं दिया गया इससे भाजपा सत्ता में तो नहीं ही आ पाई अपितु सम्मानित विपक्ष की भूमिका निभाने लायक भी नहीं बन सकी !

        इस प्रकार से आम आदमी पार्टी ने केवल काँग्रेस को ही अपितु भाजपा को भी हतप्रभ कर दिया है जिसके पास प्रचारकों की इतनी बड़ी फौज है प्रचार की कला में निपुण प्रचारकों का सघन चिंतन भी दिल्ली भाजपा के शिथिल नेतृत्व को चुस्त न कर सका जिसकी परिणति इस रूप में सामने आई कि आम आदमी पार्टी की सफलता ने सभी को सोचने पर मजबूर कर दिया है कि चुनाव कैसे  लड़ा जाता है! 

      इसी प्रकार मध्य प्रदेश  और राजस्थान में भी वहाँ की प्रांतीय भाजपा ने न केवल अपना गौरव बचाया है अपितु आगामी लोक सभा के चुनावों के लिए अपने केंद्रीय नेतृत्व एवं पार्टी के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं का मनोबल भी बढ़ाया है इतना ही नहीं मीडिया के आधार हीन प्रश्नों पर अंकुश लगाया है साथ ही देश को दिखा दिया है कि हमें अपने बल बूते चुनाव जीतना एवं सरकार बनाना भी आता है। इसमें यदि मोदी जी के प्रभाव को सारा श्रेय दिया जाए तो दिल्ली में भी भाजपा का वर्चस्व बढ़ा होता किन्तु ऐसा नहीं हो सका इसलिए यदि मोदी जी के प्रभाव को नकारा  नहीं जा सकता तो स्थानीय नेताओं के प्रभाव को भी स्वीकार करना ही पड़ेगा !

     अबकी  बार संभ्रांत वर्ग काँग्रेस से बहुत पहले ही निराश हो चुका था क्योंकि उसे पता था कि इन्हें कुछ करना ही होता तो बहुत बार सत्ता में रह चुके हैं अब तक कभी का  कर लेते! इसलिए  या तो इनके बश की बात नहीं है या इन्हें पता नहीं है कि करना क्या और कैसे है या फिर ये लोग कुछ करना ही नहीं चाहते हैं !इन्हें पता है कि जब हमारी बारी आएगी तब हमें सत्ता स्वयं ही मिल जाएगी इसलिए क्यों कुछ करना !किन्तु अबकी बार देश काँग्रेस से मुक्ति पाने का मन बना चुका है इसका  अर्थ ये कतई नहीं है कि देश का झुकाव  भाजपा की ओर हो रहा है और न ही भाजपा को सन 2009  के चुनावों की तरह अबकी अपनी बारी के इंतजार में ही भाग्य के भरोसे बैठना चाहिए अन्यथा काँग्रेसी सरकारों की फीडर पार्टियाँ चुनावों  से कुछ पूर्व सरकार  से अलग होकर काँग्रेस की  बुराई करके विपक्ष की भूमिका निभा लेती हैं और सरकार के विरोधी वोट पर कर लेती हैं अपना कब्ज़ा और ये सारा पत्रं पुष्पं  लेकर चढ़ा देती हैं काँग्रेस के चरणों में इस प्रकार बदले में माँग लेती हैं कोई अभय वरदान ! इसी  प्रकार से बन जाती है उनकी सरकार और भाजपा अगले चुनावों की प्रतीक्षा में अपनी बारी की आशा लगा कर दिन बिताने लगती है मन मारकर!फिर कब चुनाव आएँगे कब मेरी बारी आएगी किन्तु चुनाव आते हैं काँग्रेस फिर मार ले जाती है दाँव भाजपा फिर देख़ती  रह जाती है ।आखिर चक्कर क्या है ?

      मेरी समझ में सबसे बड़ी बात यह है कि जहाँ जहाँ  भाजपा नंबर दो पर है वहाँ वहाँ काँग्रेस जीतती नहीं है अपितु भाजपा हार जाती है इसलिए स्वाभाविक है कि काँग्रेस जीतती ही है !केवल आलू प्याज की  कीमतें बढ़ने पर दिल्ली की भाजपा सरकार काँग्रेसियों ने उखाड़  फेंकी थी तब से आज तक भाजपा को दिल्ली की गद्दी नसीब नहीं हुई किन्तु आज काँग्रेसियों की सरकार भगवान् दया से सारे दोषों से भरी पुरी  थी फिर भी उसके विरुद्ध भाजपा आज तक कोई लहर नहीं बना पाई है! काँग्रेसियों की सरकार के विरुद्ध आज क्या क्या मुद्दे नहीं भाजपा के पास हैं केवल उठाने वाला चाहिए उठावे कौन?

     जो उठाने वाला उस समय दिल्ली भाजपा का प्रान्त प्रमुख था  वो इस दुविधा में था कि वो मुख्य मंत्री का प्रत्याशी होगा कि नहीं ऐसी अवस्था में वह व्यर्थ  परिश्रम क्यों करे ! इसी प्रकार भाजपा की ओर से जो आज दिल्ली के मुख्य मंत्री पद के प्रत्याशी हैं उनका बनाया जाना तब निश्चित नहीं था जब काँग्रेस के विरुद्ध एवं भाजपा के पक्ष में लहर बनाने का समय था तो वो अकारण परिश्रम क्यों करते ? और जब वे मुख्य मंत्री के प्रत्याशी के रूप में उतारे गए  तब समय इतना कम था  कि कोई लहर पैदा कर पाना सम्भव ही नहीं था वैसे भी ऐसा आक्रामक उनका स्वभाव ही नहीं है जिसे जनता देखना चाहती है।

     इन सब बातों का दुष्परिणाम यह हुआ है कि पिछले दस वर्ष मानसिक रूप से पराजित हो चुकी काँग्रेस फिर से न केवल बराबरी में खड़ी हो गई थी  अपितु जीत के सपने भी देखने लगी थी और कोई बड़ी बात भी नहीं थी  कि दिल्ली के आगामी चुनावों में काँग्रेस अपनी  सरकार बनाने में कामयाब भी हो जाती यदि आम आदमी पार्टी न होती तो !

      क्या भाजपा की ओर से दिल्ली के मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी कौन होगा इस विषय का  निर्णय कुछ और पहले नहीं लिया जा सकता था ? मैं तो कहूँगा कि यह सारी  प्रबंधन की कमजोरी है जिसका दंड भाजपा के सारे कार्यकर्ताओं को भोगना पड़ता है इससे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूटता है निराशा बढ़ती है ।

    क्या क्या मुद्दे नहीं थे आज भाजपा के पास ? सम्पूर्ण दोषों से भरी पूरी है काँग्रेसी सरकार ! कौन सा दोष नहीं है इस सरकार में ?महँगाई है , भ्रष्टाचार है,चरमराती कानून व्यवस्था है,ध्वस्त होती शिक्षा व्यवस्था है ,छिन्न भिन्न हुई चिकित्सा व्यवस्था है ,लचर डाक व्यवस्था है , उपेक्षित फोन व्यवस्था है इसी प्रकार से बलात्कार आदि सम्पूर्ण दोषों से समलंकृत इन काँग्रेसी सरकारों का कार्यकाल है फिर भी भाजपा की उदासीन संदिग्ध दिल्ली विजय चिंतनीय है लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचने में भाजपा से अधिक अरविन्द केजरीवाल ने सफलता पाई है।

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