गुरुवार, 7 नवंबर 2013

लोगों के मन में उठने वाले धार्मिक प्रश्नों के उत्तर तो उन्हें मिलने चाहिए !

   बाबा लोग  आखिर ऐसा  कौन सा अच्छा काम कर रहे हैं जिनके गिरफ्तार होने पर हम मातम मनाएँ  ?

   इन बाबा लोगों का  साथ भारत के प्रमाणित शास्त्रीय संत क्यों नहीं देते? क्यों ये हाईटेक बाबा संत समाज से बहिष्कृत हैं ! उन्हें भी पता है कि ये अशास्त्रीय संत लोग संत समाज की बेइज्जती कराकर धन कमाने वाले शांत ही रहें तो अच्छा है कहीं भी रहें और जहाँ सरकार उचित समझे वहाँ इन डॆंगुओं को रखे ये बाहर रह कर कौन वेड पढ़ेंगे यहाँ भी अकबर बीरबल बीर बल के लतीफे ही सुनाने हैं झूठ ही बोलना है कल फिर कहेंगे हम तो ब्रह्म ज्ञानी हैं क्या फायदा?ऐसे बाबाओं के लिए कोई क्यों अपना समय बर्बाद करे ?वैसे भी पेट तो पशु भी भर लेते हैं वो काम हम गृहस्थ भी कर रहे हैं किन्तु इन बाबा लोगों को चाहिए कि ये सनातन धर्म के लिए कुछ करें ये इतना इतना पैसा दबाए  बैठे है सनातन धर्म के लिए कर क्या रहे रहे हैं ?

       आज हमारे देश में हर त्यौहार दो दो होने  लगे हैं पैसे की कमी के कारण शास्त्रीय सिद्धांत ज्योतिष पर कोई शोध पूर्ण कार्य नहीं हो पा  रहा है कोई एक प्रमाणित सर्व मान्य पंचांग नहीं बनाया जा सका है भारत वर्ष में सनातन धर्म से जुड़ी कोई ऐसी संस्था नहीं बन सकी है जिसकी हेल्प लाइनों के माध्यम से इस प्रकार की व्यवस्था हो कि कभी किसी के मन में शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान के विषय में कोई प्रश्न उठे तो टेलीफोन पर अपनी शंकाओं का समाधान कर सकें और उसे शास्त्र प्रमाणित उत्तर मिल सकें।

       वैराग्य एवं चरित्र के मूल्यों का  श्रीमद भागवत जैसा  महान ग्रन्थ विलुप्त सा होता जा रहा है भागवत की  पोथी सामने रखकर या पोथी की जगह कुछ और कपडे में लिपेट  कररख लेते हैं फिर इन  नचैया गवैया लुटेरों के भागवतिहा गिरोह सात दिन तक  कब्बाली गाते हैं फिर लूट पाटकर भाग जाते हैं ऐसी होती हैं आजकल भगवतें !आज के तीस साल पहले भी  आपने कभी सुनी या देखी  थी भागवत  के नाम पर ऐसी भड़ैती? ये लोग केवल श्री कृष्ण जन्मोत्सव और रुक्मिणी विवाहोत्सव मनाने के नाम पर पैसे लूट कर भाग जाते हैं !कुछ बाबा भी ऐसा ही कर रहे हैं कुछ नहीं कर रहे हैं तो इस पाप का समर्थन कर रहे हैं । कम से कम इस धार्मिक भ्रष्टाचार का विरोध तो नहीं ही कर रहे हैं !

        हमारे धार्मिक ग्रंथों को समाज में सही ढंग से प्रस्तुत न किए जाने के कारण  ही देश में चरित्र संकट खड़ा हो गया है!  छोटी छोटी बच्चियों से बलात्कार आखिर क्यों हो रहा है समाज को संस्कारित करने की जिम्मेदारी यदि महात्माओं की नहीं तो किसकी है और यदि इनकी नहीं तो इनका और काम क्या है  केवल पेट हिलाना और दवा  बेचना या  विदेश से काला धन लाने  के लिए चीघना  चिल्लाना बारे साधू संत !ऐसे कर्तव्य भ्रष्टों के लिए क्यों लड़े समाज!इनके समर्थन में क्यों खड़ा हो समाज ! भजन करने में इनका मन क्यों नहीं लगता है ?कोई कहता हम तो केवल एक केला खा कर रहते हैं कोई कहता है कि हम तो एक ग्लास दूध लेते हैं आखिर  क्यों बोलते हैं इतना झूठ ? और क्यों नहीं खाते हैं पेट भर ?खाएं और काम करें आखिर ये बाबा लोग गृहस्थों से न ज्यादा तो इतना ही सीख लें कि मेहनत करके खाना चाहिए! क्या ये भी नहीं सीख सकते ! इनका काम शास्त्रीय संस्कारों का प्रचार प्रसार करना है वो ये बाबा लोग क्यों नहीं करते हैं  समाज जब राष्ट्रवादी बनेगा मानव मूल्यों के प्रति उसका लगाव बढ़ेगा तब ये सब काम समाज के लिए स्वतः आसान होते चले जाएँगे !

        केवल पैसे कमाने के लिए सधुअई करना कितना उचित है ? एक यादव जी को पैसे कमाने की भूख लगी तो  बाबा बन  बैठे, फिर  लोगों से धन माँग माँग इकठ्ठा किया इसके बाद ठाट से दवा का व्यापार करने लगे आज काला  पीला धन खोजते घूम रहे हैं! अजीब सधुअई हो रही है आजकल !

         चुनावों से पहले कुछ राजनैतिक दलों की ऐसी मनौती है कि वो अपनी कुल देवी के नाम की बलि कुछ पापुलर बाबाओं के व्यक्तित्व की चढ़ाते हैं वो बाबा उन चुनावों के बाद प्राण हीन हो जाते हैं या यूँ कह लें कि किसी लायक नहीं रह जाते हैं और नेता लोग चुनाव जीत हार कुछ भी जाते हैं इसलिए इस बार के भी बलि पशु चुनावों तक मिमियाते घूम रहे हैं इन्हे संत कहना मुनासिब नहीं होगा !हमारे शास्त्रीय साधू संत इन सारे प्रपंचों से दूर हैं वो तो आत्मा परमात्मा के सम्बन्धों को सजीव करने में लगे रहते हैं ! आपने सुना ही होगा कि पिछले चुनावों में जिन बाबाओं बबाइनों के भाषणों  की भरमार थी आज वो नदारद हैं ऐसे चुनावी प्रोडक्ट बाबा बबाइनें राजनीति  में भी निष्क्रिय कर के रखे गए हैं जब वे अपनी बात बोलने का मन करते हैं घुड़क दिए जाते हैं बेचारों को हाइकमान से पूछ पूछ कर बोलना पड़ता है हमारे  शास्त्रीय संत   इतने दीन हीन कभी नहीं हो सकते हैं उन्हें क्या जरूरत है किसी हाइकमान के सामने गिड़गिड़ाने की !संत तो ईश्वर के दास होते हैं वो क्यों उदास रहें ?उदास रहे उनकी बलाय !

         हमारे कहने का अभिप्राय मात्र इतना है कि ऐसी लापरवाहियों से समाज का बहुत बड़ा नुकसान हो चुका है अब इसे रोका जाना चाहिए !ऐसे बाबाओं को समाज कब तक और क्यों ढोवे ?जब ये और इनका रहन सहन समाज पर बोझ बनता जा रहा हो !अब पुनर्विचार  करने जरूरत है इस देश को शास्त्रीय संत चाहिए जो समाज को संस्कारित करने की कृपा करें !




 

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