धर्म एवं धर्म शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को मीडिया ने बनाया अंध विश्वास!
धर्म एवं धर्म शास्त्रों के ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार की आवश्यकता देश और समाज को है लोगों को भरोसा है कि धर्माचरण से उनका सब कुछ ठीक हो जाएगा इसके अलावा भी एकांतिक अपराधों को रोकने में धर्म एवं धर्म सम्बन्धी पुण्य पाप भावना अभी तक महत्त्व पूर्ण भूमिका निभाती रही है किन्तु आधुनिकता एवं अंध विश्वास के नाम पर उस धर्म भावना को कुंठित करने का प्रयास करना देश और समाज के हित में नहीं ही है इससे अपराध और बढ़ेंगे ही घटेंगे नहीं! दूसरी और अपने प्राचीन भारतीय ज्ञान विज्ञान से लोग कटते चले जाएँगे !हाँ, इतना अवश्य है कि धर्म एवं धर्म शास्त्रों से जुड़े होने का दावा करने वाले उन लोगों पर भी अंकुश लगाने आवश्यकता है जो प्राचीन शास्त्रीय विज्ञान को बिना जाने समझे ही इन विषयों का अपने को मर्मज्ञ बताने लगते हैं धन बल पर मीडिया के माध्यम से भी ऐसे कुटिल अज्ञानी लोग ज्ञानियों की तरह अपने को स्थापित करते हैं यह सबसे ज्यादा दुर्भाग्य पूर्ण है उससे ज्यादा दुर्भाग्य पूर्ण यह है कि मीडिया उसमें उनका साथ देता है वह भले पैसे लेकर ही क्यों न हो !
अतएव मीडिया से मेरा आपसे निवेदन है कि शास्त्रीय ज्ञान विज्ञान के प्रचार प्रसार की आवश्यकता समझ कर इसे तो चलने देना चाहिए किन्तु धर्म एवं शास्त्रीय विद्वानों के नाम पर मीडिया में चर्चित हो चुके शास्त्रीय योग्यता विहीन ऐसे लोगों को अशास्त्रीय एवं मन गढ़ंत बकवास करने से रोका जाना चाहिए । इसे रोकने के लिए इसमें संस्कृत विश्वविद्यालयों के उन उन विषयों के शिक्षकों का सहयोग लिया जा सकता है या इन्हीं सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों से उन उन विषयों में उच्च डिग्रियाँ प्राप्त लोगों की सेवाएँ ली जा सकती हैं जो ज्योतिष वास्तु आदि विषयों में सुशिक्षित हो ! जिस विषय में जो विद्वान सुशिक्षित हो उसका ही विज्ञापन वो भी इस शर्त के साथ दिया जाना चाहिए कि वो शास्त्र सीमा से अलग हटकर निराधार सब्जबाग न दिखाए । सुशिक्षित विद्वान से हमारा अभिप्राय है कि सरकारी संस्कृत विश्वविद्यालयों से सम्बंधित विषय में उच्च डिग्री प्राप्त की हो अथवा किसी और प्रकार से उसका सम्यक परिक्षण किया गया हो ।
आपने सुना और देखा होगा कि आशाराम नाम का एक व्यक्ति जिसका किसी साधू समुदाय या संप्रदाय से कोई सम्बन्ध नहीं है उसने अपने को स्वयंभू संत घोषित कर रखा था जिसका प्रचार प्रसार मीडिया के विविध माध्यमों एवं धार्मिक टी.वी. चैनलों ने खूब किया भाई होगी उसमें कोई खूबी, खासियत या मोटा धन देता होगा मीडिया को । यदि ऐसा भी है तो इतना धन आता कहाँ से होगा क्या उन अर्थागम के श्रोतों की मीडिया ने कभी जांच पड़ताल करने की कोई कोशिश की या बात बात में सरकार से जवाब तलब करने वाले मीडिया ने बाबाओं की बढ़ती संपत्ति का मुद्दा सरकार के सामने कभी क्यों नहीं उठाया ?
यह बहुत बड़ा प्रश्न है कि इस समाज का बहुत बड़ा वर्ग दिन रात कठोर परिश्रम करता है फिर भी रोटी दाल जुटाना बड़ा मुश्किल हो जाता है किन्तु बाबा बनने मात्र से बिना कोई काम किए दिन दूनी रात चौगुनी संम्पति बढ़ती जाती है कभी मीडिया का कोई व्यक्ति इसकी सच्चाई रखते हुए जन जागरण क्यों नहीं करता है?सारा काम काज छोड़ कर संन्यास लेने वाले बाबा जी दवाएँ बनाने बेचने का बहुत बड़ा कारोबार फैला लेते हैं।
गो शाला चला कर दूध दही घी बेचते हैं स्कूल अस्पताल चलाने लगते या राजनीति करने लगते हैं।जिन औरतों से विषय बासना का भय समझकर बाबा बने थे बाबा बनने के बाद उन्हीं से घिरे रहते हैं राजनीति भी कर लेते हैं इस आश्रम नाम की कोठी बनाते हैं बेड रूम बनाते हैं उसमें बेड और उस पर मखमली बिछावन लगाते हैं इस प्रकार से साधुओं के नाम से साधू स्वरूप में रहकर अपार धन संग्रह पूर्वक सारा सुख सुविधा भोगी जीवन जीने वाले किसी व्यक्ति वर्ग या समाज से ऐसी आशा ही क्यों की जाए कि बिषय बासना से दूर रहे क्योंकि जो अन्य सभी सुख भोगने सम्बन्धी इच्छा नहीं रोक सका वह बासना से अपने मन को कैसे रोक पाएगा ?इतने कमजोर मन का ऐसा कोई आदमी इंद्रियों के सामने घुटने क्यों नहीं टेक देगा अर्थात कैसे लगाम दे पाएगा अपनी इंद्रियों को और क्यों नहीं भोगेगा स्त्री सुख ? वैसे भी जिसे दूध ही नहीं पीना होगा वो गाय पालेगा ही क्यों ? इसी प्रकार कोई चरित्र वान संत अपने साथ महिलाओं की भीड़ क्यों लगाएगा ?यदि महिलाओं के संपर्क में ही रहना था तो बाबा बनने की जरूरत ही क्या थी ?
जब किसी भी अच्छी बुरी चीज के प्रचार प्रसार का मुख्य माध्यम मीडिया ही है तब मीडिया धर्म एवं धर्म शास्त्रों से जुड़े समुदाय के शुद्धिकरण की बात क्यों नहीं करता?जबकि धर्म एवं धर्म शास्त्रों जुड़े ज्ञान विज्ञान को अंध विश्वास ,रूढ़िवादिता आदि कहने में उसे कोई समस्या नहीं दिखती !यह दोष मीडिया का ही है !
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