सोमवार, 2 दिसंबर 2013

क्या दिल्ली में बन पाएगी भाजपा की सरकार ?

  नाम समस्या से जूझती भाजपा के लिए कैसे रहेंगे आगामी चुनाव ?

      दिल्ली भाजपा में पाँच  विजय एक साथ न केवल काम कर रहे हैं अपितु निर्णायक भूमिका में हैं यह ज्योतिष का एक गम्भीर दोष है यही कारण है कि जब से ऐसा हुआ है तब से दिल्ली की सत्ता से अकारण ही भाजपा बाहर कर दी गई है इसी एक दोष के कारण गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा भाजपा को !।इसलिए पाँच विजयों में किसी एक को मुख्य मंत्री पद का प्रत्याशी बनाया जाना उचित नहीं होता उसकी अपेक्षा डॉ.साहब ठीक हैं किन्तु पाँचों  विजयों की  कार्य शैली पर निर्भर कर करती है आगामी चुनावों में भाजपा की विजय !इस विषय में मैं पिछले छै महीने में कई बार भाजपा हाईकमान को पत्र लिख चुका  हूँ इसके लिए उदाहरण स्वरूप वही पत्रात्मक लेख यहाँ दिया जा रहा है यह लेखDelhi V.J.P. ke 4 Vijay इसी नाम से गूगल पर भी पढ़ा जा सकता है -

इस लेख में ज्योतिषीय चुनावी चिंतन है जिसे इसी दृष्टि से लिया जाना चाहिए ---

   दिल्ली भाजपा के चार विजयों  के  समूहका एक साथ एक क्षेत्र में एक समय पर काम करना   आगामी चुनावों में राजनैतिक भविष्य  के लिए चिंता प्रद हैं। इनमें आपसी तालमेल बेहतर  बनाने के लिए किसी मजबूत व्यक्तित्व की व्यवस्था  समय रहते कर  लेना उत्तम होगा   

                        विजयेंद्रजी -विजयजोलीजी 

     विजयकुमारमल्होत्राजी - विजयगोयलजी-विजयेन्द्र  शर्मा जी 

           किन्हीं दो या दो से अधिक लोगों का नाम यदि एक अक्षर से ही प्रारंभ होता है तो ऐसे सभी लोगों के आपसी संबंध शुरू में तो अत्यंत मधुर होते हैं बाद में बहुत अधिक खराब हो जाते हैं, क्योंकि इनकी पद-प्रसिद्धि-प्रतिष्ठा -पत्नी-प्रेमिका आदि के विषय में पसंद एक जैसी होती है। इसलिए कोई सामान्य मतभेद भी कब कहॉं कितना बड़ा या कभी न सुधरने वाला स्वरूप धारण कर ले या शत्रुता में बदल जाए कहा नहीं जा सकता है। 

जैसेः-राम-रावण, कृष्ण-कंस आदि। इसी प्रकार और भी उदाहरण हैं।

   लराजमिश्र-कल्याण सिंह  

  बामा-सामा   

  रूण जेटली- भिषेकमनुसिंघवी

  मायावती-मनुवाद

रसिंहराव-नारायणदत्ततिवारी 

लालकृष्णअडवानी-लालूप्रसाद 

 रवेजमुशर्रफ-पाकिस्तान 

 भाजपा-भारतवर्ष  

 नमोहन-मता-मायावती    

   माभारती -   त्तर प्रदेश 
मरसिंह - जमखान - खिलेशयादव 

 मर सिंह - निलअंबानी - मिताभबच्चन 

नितीशकुमार-नितिनगडकरी-रेंद्रमोदी 

प्रमोदमहाजन-प्रवीणमहाजन-प्रकाशमहाजन

न्नाहजारे-रविंदकेजरीवाल-सीम त्रिवेदी-

ग्निवेष- रूण जेटली - भिषेकमनुसिंघवी

  दिल्ली भाजपा का कैसा है आगामी चुनावी भविष्य ?  

    ज्योतिषीय  दृष्टि से इस चुनावी समर में भाजपा के पाँच विजयों का एक साथ संगठित होकर चुनावी विजय के लिए विशेष परिश्रम पूर्वक काम करके  सफलता हासिल कर पाना यदि असंभव नहीं तो असंभव जैसा जरूर होगा।
     वैसे भी दिल्ली  भाजपा जब तक अपने पाँचों बिजय बीरों को दिल्ली में एक साथ लगभग समान अधिकारों के साथ जमाए  रखेगी तब तक दिल्ली भाजपा के हाथ में मुख्यमंत्री पद पहुँचना अत्यंत कठिन ही नहीं असम्भव भी लगता है !श्रीमान साहब सिंह वर्मा जी के बाद दिल्ली भाजपा में कोई सर्वसम्मान्य नेता उभर ही नहीं पाया।इसका प्रमुख कारण दिल्ली भाजपा का शीर्ष नेतृत्व इन पाँचों बिजय बीरों में विभाजित है ज्योतिषीय दृष्टि से पाँच वि एक साथ शांति पूर्ण ढंग से नहीं रह सकते !यही  कारण है कि आपसी खींचतान से जूझ रही पार्टी का कोई प्रमुख चेहरा नहीं बन पाया जिसके सिद्धांतों से प्रभावित होकर जनता भाजपा के पक्ष में मतदान करे।यही वो प्रमुख कारण है जिससे दिल्ली भाजपा लम्बे समय से दिल्ली की सत्ता से बाहर बनबास भोग रही है जो इतनी आसानी से टूटते भी नहीं दिख रहा है ! अन्यथा सोच कर देखा जाए तो अतीत में भाजपा से ऐसी कौन सी बड़ी भूल हुई है जिसका दंड भाजपा को आज तक सत्ता से दूर रहकर मिल रहा है?दिल्ली भाजपा में जैसे जैसे विजयों की संख्या बढ़ती गई दिल्ली भाजपा सत्ता से दूर होते चली गई मजे की बात यह है कि काँग्रेस ने भाजपा को कभी नहीं हराया है हमेंशा भाजपा अपने दोषों से ही हारी है यह बात मैं इस लिए विश्वास से कह सकता हूँ कि जब से भाजपा आई है तब से काँग्रेस ने जनहित में भाजपा से अच्छा कभी कोई काम ही नहीं किया है और भाजपा ने जनता को कभी कोई प्रताड़ना दी है । 
    जनता में भाजपा के विरुद्ध कोई आक्रोश भी नहीं दिखता है भ्रष्टाचार का कोई आरोप लगाकर भी भाजपा को सत्ता से नहीं हटाया गया था।केवल आलू प्याज की महँगाई पर भाजपा को  सत्ता छोडनी पड़ी थी।यदि यही एक कारण भाजपा के सत्ता से हटने का था तो दिल्ली के काँग्रेस शासन में तो ऐसा अक्सर होता रहता है वर्तमान में भी महँगाई चर्म सीमा पर है फिर भी इतने लम्बे समय तक सत्ता में रहे काँग्रेस शासन के विरुद्ध कोई लहर बनती नहीं दिख रही है!आखिर इसका कारण  क्या है क्यों दिल्ली में भाजपा रही अब तक सत्ता से दूर और आगे आने वाले चुनावों में भाजपा के लिए क्या कुछ हो पाएगा? 
(इस विषय में और अधिक जानकारी के लिए Delhi V.J.P. ke 4 Vijay  नाम से हमारा  लेख Google पर सर्च करके पढ़ा  जा सकता है।)  

   यहाँ सबसे महत्त्व पूर्ण बात यह है कि दिल्ली की राजनीति में अभी अभी आए अरविन्द केजरीवाल एवं उनकी आम आदमी पार्टी का वजूद दिल्ली में भाजपा से बहुत ज्यादा कम नहीं दिखता जबकि भाजपा के सलाहकार बड़े बड़े अनुभवी लोग एवं संगठन हैं फिर भी दिल्ली भाजपा का आकर्षण दिनोंदिन घटता क्यों जा रहा है ?

       नाम समस्या से जिस तरह से भाजपा जूझ रही है अरविन्द केजरीवाल भी उससे अछूते नहीं हैं उन्हें भी इसकी कीमत आगामी दिल्ली के चुनावों में चुकानी पड़ेगी !विस्तार पूर्वक जानने के लिए गूगल पर यह लेख पढ़ा जा सकता है

क्या है अरविन्द का भविष्य आम आदमी पार्टी में ? आम आदमी पार्टी, अरविन्द और अन्नाहजारे http://snvajpayee.blogspot.in/2013/12/blog-post_7.html


     अतः इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कहा जा सकता है कि भाजपा की दिल्ली विजय के लिए आवश्यक है कि इन विजयों में से कुछ विजय महानुभावों का कार्यस्थल बदला जाना चाहिए! भले ही उन्हें भाजपा अपने केन्द्रीय कार्यक्रमों में उनकी सेवाओं का सदुपयोग करे।

    दूसरा एक उपाय और है कि इन पाँचों विजय महानुभावों से वरिष्ठ,प्रभावी,लोकप्रिय  एवं जनता की दृष्टि में विश्वसनीय कोई ऐसा व्यक्ति केंद्रीय भाजपा की ओर से आगामी चुनावों में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रस्तुत किया जाए जिसके तत्वाधान में प्रसन्नता पूर्वक पाँचों विजय पूर्ण मनोयोग से काम करने को तैयार हो जाएँ तो आगामी चुनावों में विजयी हो सकती है भाजपा !यह भी संभव है कि ये लोग ज्योतिष की महत्ता को समझते हुए निजी महत्वाकांक्षाएँ छोड़कर निजी भेदभाव भूल कर केवल पार्टी को विजय दिलाने के लिए कार्य करें जिसकी सम्भावनाएँ बहुत कम हैं फिर भी यदि ऐसा हो तो  भी सत्ता में आ सकती है भाजपा? यदि इस प्रकार के तालमेल पर विशेष ध्यान नहीं दिया गया तो दिल्ली  के आगामी चुनावों में भाजपा की सफलता संदेहास्पद  मानी जानी  चाहिए! 
     इसका प्रमुख कारण यह भी है कि दिल्ली के पाँचों विजयों को एक साथ दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाया नहीं जा सकता और इनमें से आगे पीछे कोई बनना नहीं चाहेगा!यदि किसी और को मुख्यमंत्री बनाने के लिए आगे लाया जाएगा तो ये पाँचों विजय उसका दोष भी आपस में एक दूसरे पर ही मढेंगे जिसका चुनावी नुकसान भाजपा को ही होगा और फायदा विरोधी पार्टी अर्थात कांग्रेस को होगा इसलिए भाजपा की ओर से इन पाँचों विजयों को पार्टी के प्रति समर्पित करने के लिए समय रहते यदि गंभीर प्रयास नहीं किए जाते तो काँग्रेस अर्थात शीला दीक्षित जी को पराजित कर पाना  भाजपा के लिए आसान नहीं होगा!
   वैसे भी ज्योतिषीय  दृष्टि से शीला दीक्षित जी का कई वर्ष तक अच्छा ही अच्छा समय है। यद्यपि यह उनका निजी जीवन के लिए लाभप्रद है फिर भी चुनावी राजनीति में भी अच्छे बुरे ग्रहों का प्रभाव कुछ तो पड़ता ही है!इतना तो होगा कि इनकी अपनी ग्रहस्थिति के अनुशार  साधारण तैयारी के द्वारा भी इन्हें चुनावी समर में पराजित कर पाना विरोधियों के लिए अत्यंत कठिन होगा।

        दूसरी बात आम आदमी पार्टी की है इस पार्टी में अरविंद जी के विरोध  में भड़कने वाले असंतोष के कारण इस दल का कोई सबल आस्तित्व  बन पाने से पहले ही काल्पनिक ईमानदार वाद बिखर जाएगा!  दिल्ली के चुनावों में उनकी सामर्थ्य उनकी आशा की अपेक्षा बहुत कम बन पाएगी।इसलिए ज्योतिषीय  दृष्टि से इनसे भयभीत होने की आवश्यकता भाजपा को उतनी  नहीं है जितनी दिखती है किन्तु लौकिक दृष्टि से ये लोग भी वोट तो भाजपा का ही काटेंगे ये भाजपा का निजी नुकसान आम आदमी पार्टी के कारण होगा!
    इन सभी बातों को भाजपा अपनी संगठनात्मक कमजोरियों के कारण  ही श्रीमती शीला दीक्षित जी से आगामी चुनावों में पिछड़ते हुए फिलहाल अभी तो दिख रही है।यदि ऐसा हो ही गया तो इसका श्रेय मुख्यमंत्री के रूप में शीला दीक्षित जी की कार्यकुशलता को कम एवं विपक्षी दलों की शिथिल चुनावी तैयारियों को अधिक देना होगा ।कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि दिल्ली भाजपा के पास अभी तक  उतनी तैयारी दिखती नहीं है आगामी चुनावों में सफल होने के लिए जितनी तैयारी की उन्हें आवश्यकता है! अपने राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध संस्थान के तत्वावधान में हुए इस रिसर्च के प्रपत्रों को पहले भी पोस्ट एवं कोरियर के द्वारा हर समाचार पत्र पत्रिकाओं एवं टी.वी.चैनलों में भेजा जा चुका है साथ ही भाजपा ,आर. एस. एस.और  विहिप जैसे संगठनों एवं इनके वरिष्ठ नेताओं को भी इसी संदर्भ में पत्र भी पहले भी लिखे जा चुके हैं swasth samaj नाम के हमारे blog पर ऐसे लेख समय समय पर पिछले एक वर्ष से प्रकाशित किए जाते रहे हैं जो अभी भी पड़े एवं पढ़े जा रहे हैं! इसी प्रकार से फेस बुक पर भी ये लेख समय समय पर डाले जाते रहे हैं । 

इसी प्रकार से -

  अन्ना हजारे हों कि अरविन्द केजरीवाल  वो भी इसी दोष से परेशान हैं आखिर क्यों नहीं स्वीकार करने को तैयार हैं ज्योतिष की सच्चाई ? बेकार में अपने आंदोलन की भद्द अपने हाथों  से पीटते जा रहे हैं

     अन्ना हजारे  के आंदोलन की भी इसी कारण से दुर्दशा हुई जिसमें अन्ना हजारे जी आज भी हिसाब किताब का ठीकरा अरविंद केजरीवाल पर फोड़ते घूम रहे हैं  जो  गलत है

 अन्ना हजारे जी आज अरविंदकेजरीवाल जी को हिसाब किताब के कटघरे में खड़ा करते घूम रहे हैं अन्ना हजारे के आंदोलन के तीन प्रमुख ज्वाइंट थे अन्ना हजारे , अरविंदकेजरीवाल एवं अग्निवेष जिन्हें एक दूसरे से तोड़कर ये आंदोलन ध्वस्त किया जा सकता था। इसमें अग्निवेष कमजोर पड़े और हट गए। दूसरी ओर जनलोकपाल के विषय में लोक सभा में जो बिल पास हो गया वही राज्य सभा में क्यों नहीं पास हो सका इसका एक कारण नाम का प्रभाव भी हो सकता है। सरकार की ओर से अभिषेकमनुसिंघवी थे तो विपक्ष के नेता अरूण जेटली जी थे। इस प्रकार ये सभी नाम अ से ही प्रारंभ होने वाले थे। इसलिए अभिषेकमनुसिंघवी की किसी भी बात पर अरूण जेटली का मत एक होना ही नहीं था।अतः राज्य सभा में बात बननी ही नहीं थी। दूसरी  ओर अभिषेकमनुसिंघवी और अरूण जेटली का कोई भी निर्णय अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल को सुख पहुंचाने वाला नहीं हो सकता था। अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल का महिमामंडन अग्निवेष कैसे सह सकते थे?अब अन्ना हजारे एवं अरविंदकेजरीवाल कब तक मिलकर चल पाएँगे?कहना कठिन है।असीमत्रिवेदी भी अन्नाहजारे के गॉंधीवादी बिचारधारा के विपरीत आक्रामक रूख बनाकर ही आगे बढ़े। आखिर और लोग भी तो थे।  अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अन्नाहजारे  से अलग क्यों दिखना चाहते थे ? ये अ अक्षर वाले लोग  ही अन्नाहजारे के इस आंदोलन की सबसे कमजोर कड़ी हैं।अधिक जानने के लिए ---

       क्या है अरविन्द का भविष्य आम आदमी पार्टी में ?



     आम आदमी पार्टी, अरविन्द और अन्नाहजारे 

http://snvajpayee.blogspot.in/2013/12/blog-post_7.html

अन्नाहजारे की तरह ही अमर सिंह जी भी अ अक्षर वाले लोगों से ही व्यथित देखे जा सकते हैं। अमरसिंह जी की पटरी पहले मुलायम सिंह जी के साथ तो खाती रही तब केवल आजमखान साहब से ही समस्या होनी चाहिए थी किंतु अखिलेश  यादव का प्रभाव बढ़ते ही अमरसिंह जी को पार्टी से बाहर जाना पड़ा। ऐसी परिस्थिति में अब अखिले श के साथ आजमखान कब तक चल पाएँगे? कहा नहीं जा सकता। पूर्ण बहुमत से बनी उत्तर प्रदेश  में सपा सरकार का यह सबसे कमजोर ज्वाइंट सिद्ध हो सकता है
 चूँकि अमरसिंह जी के मित्रों की संख्या में अ अक्षर से प्रारंभ नाम वाले लोग ही अधिक हैं इसलिए इन्हीं लोगों से दूरियॉं बनती चली गईं। जैसेः- आजमखान अमिताभबच्चन  अनिलअंबानी  अभिषेक बच्चन आदि।

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