योग गुरु बाबा रामदेव, धर्मगुरु चिदानंद मुनि और सर्वानंद सरस्वती.
आज तक वालों ने नेट पर यहाँ तीन साधुओं का वक्तव्य दिया है जिससे मैंने जो समझा वो यह है कि एक ने धर्म के नाम पर धर्म ही हो इस बात का समर्थन किया तो दूसरे ने व्यापार को धर्म बताया तो तीसरे ने धर्म को व्यापार और व्यापार को धर्म बताया ।
एजेंडा आज तक का अगला सेशन था 'धर्म या धंधा'. बातचीत के लिए सामने थे
मशहूर योग गुरु बाबा रामदेव, धर्मगुरु चिदानंद मुनि और सर्वानंद सरस्वती.
इस मौके पर बाबा रामदेव आदि के विचार !
धर्म की बात श्रीपीठम के चांसलर सर्वानंद सरस्वती जी के मुख से ----
इस सेशन में आए श्रीपीठम के चांसलर सर्वानंद सरस्वती बोले कि इस देश में
बाबा के नाम पर कई गुरु घंटाल पैदा हो गए हैं. उन्होंने कहा कि बाबा नाम
जुड़ते ही कारोबार शुरू हो जाता है. धर्मगुरुओं के आडंबर पर सवाल उठाते हुए
सर्वानंद ने कहा कि हर बाबा फाइव स्टार होटल नुमा आश्रम बनाने की जुगत में
लगा है. विदेश यात्रा करना चाहता है. भोग की चीजें जुटाना चाहता है.
उन्होंने कहा कि ये गुरु घंटाल बच्चों से ये नहीं कहते कि अपने मां-बाप की
पूजा करो. अपनी पूजा करने की. अपनी फोटो टांगने की नसीहत देते हैं.
धंधे की बात बाबा रामदेव जी के मुख से---
चालाक व्यापारियों की तरह बाबा रामदेव जी ने भी अपनी व्यापारिक फाइलें बनाकर रख ली होंगी किन्तु इसका मतलब चालाकी होता है ईमानदारी नहीं!अन्यथा आपका रहन सहन बी. आई. पी. कैसे बन पाता ? यह सब उसी धन के बल पर ही तो है ) फकीरों जैसा वेष तो धन जुटाने के लिए बनाना ही पड़ता है !अन्यथा ये अरबों की संपत्ति कैसे इकट्ठी होती ?और ये जितनी भी दलीलें आप दे रहे हैं वो सब व्यापारिक झूठ के अंतर्गत ही आते हैं !आप स्वयं पढ़ें ----
"उन्होंने कहा कि उनके पास न तो बैंक अकाउंट है
और न ही एक रुपये की बचत. उन्होंने कहा कि सरकार चाहे जितने मुकदमे कर ले,
मगर सच यही है कि मेरे पास एक टुकड़ा जमीन का नहीं.अपने कारोबार पर रामदेव बोले कि मैंने अरबों का मुनाफा कमाने वाली मल्टी
नेशनल कॉस्मेटिक्स और पेय पदार्थ कंपनियों की दुकानें बंद करवानी शुरू कर
दीं. इसलिए ये सब बातें हो रही हैं. उन्होंने कहा कि पहले लोग जिन पदार्थों
के लिए हजारों रुपये देते थे. अब वही पतंजलि योग पीठ कुछ सौ रुपयों में
मुहैया कराता है. रामदेव ने पूछा कि इस तरह का काम धंधा कैसे हो सकता है."
धर्म और धंधा' परमार्थ निकेतन के चिदानंदजी के मुख से ----(इनके कहने का अभिप्राय साफ साफ दिखता है कि देखने में धर्म दिखे और अंदर से धंधा भी होता रहे कोई जान भी न पाए और धंधा भी हो जाए,जो सबका भला सोचे यदि यही धर्म है तो नेता लोग भी तो सबका ही भला सोचते हैं तो क्या वे धार्मिक या संत होते हैं। रही बात किसी के आचरणों में प्रपंच देखकर उसका बहिष्कार क्यों न किया जाए?जिसके आचरण गलत हों किन्तु वह पकड़ा न जाए तो उस पर उंगली उठाना ठीक नहीं है जो पकड़ा जाए केवल वो दोषी इस नियम से तो सारे निर्दोष ही सिद्ध होते रहेंगे क्योंकि निजी बैर बुराई हुए बिना कोई किसी को क्यों पकड़ेगा ?)आप स्वयं पढ़ें क्या कहा उन्होंने ---
बहस में शामिल होते परमार्थ निकेतन के चिदानंद महाराज ने बोलते हुए कहा कि " धंधा वह है,
जो सिर्फ अपने लिए सोचता है और धर्म वह है, जो सबके लिए सोचता है.चिदानंद
ने एक ऑटो वाले का उदाहरण दिया. जिसकी गाड़ी के पीछे लिखा था. प्रभु सबका
भला करो. शुरुआत मुझसे करो.चिदानंद बोले कि आज धर्म की यही हालत हो गई है.
पहले मेरा धंधा दुरुस्त हो जाए सर्वानंद सरस्वती ने राजनीति से पहले धर्म की सफाई के सवाल पर कहा कि
धर्मगुरु अपनी चाकरी करवाने में इतना मगन रहते हैं कि उनके मुंह से सफाई की
बात भली नहीं लगती.
अंत में चिदानंद सरस्वती बोले कि अगर कभी किसी को किसी धर्म से जुड़े
व्यक्ति से शिकायत होती है, तो उसे ध्यान रखना चाहिए कि यह व्यक्ति का मसला
है, उसे पूरे धर्म से न जोड़ा जाए "
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