आज सेक्स नहीं तो प्रेम नहीं ये कैसा प्रेम ! ये तो सेक्स के लिए व्याकुलता और पागलपन है कामियों के इश्क की तुलना श्री राधा और कृष्ण जी के प्रेम से कैसे की जा सकती है !
आज अपने को प्रेमी कहने वाला कोई कामी इस बात पर भरोसा ही नहीं कर पाता है कि बिना सेक्स के भी प्रेम हो सकता होगा !
केवल सेक्स के लिए ही प्रेम नाम का खिलवाड़ होता है आज ! वह लड़का है तो किसी लड़की से जुड़ेगा और लड़की है तो किसी लड़के से जुड़ेगी आखिर ऐसा क्यों प्रेम तो किसी से भी हो सकता है ! किन्तु कामी(सेक्सी)लोग जिससे सेक्स संभव नहीं होगा उससे प्रेम नहीं करते !क्योंकि ये सोचते हैं की जब सेक्स मिलेगा ही नहीं तो प्रेम करना ही क्यों ! वैसे भी जो सेक्स के गुलाम जोड़े अपने तथाकथित प्रेम(सेक्स) को श्री राधा कृष्ण की तुलना में खड़ा करते हैं उन अज्ञानियों को संकोच होना चाहिए क्योंकि श्री राधाकृष्ण वाला प्रेम तो एक साथ सबसे किया जा सकता है उनके जैसा प्रेम तो माता पिता भाई बहन किसी से भी हो सकता है इतना ही नहीं उनसे तो यदि गोपिकाएँ प्रेम करती हैं तो ग्वाल बाल भी करते हैं गौएँ बछड़े पशु पक्षी पेड़ पौधे आदि सब कोई करता है हाँ इतना अवश्य है राधा जी अधिक प्रेम करती थीं इसीलिए उन्हें सर्वोपरि माना गया है। श्री कृष्ण की सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ थीं क्या श्री कृष्ण उनसे प्रेम नहीं करते थे ! किन्तु श्री राधा जी का प्रेम उन सबसे अधिक था उसकी तुलना किसी से नहीं थी!
श्री राधा जी को यह कभी नहीं लगा कि श्री कृष्ण हमारे हैं तो उन पर केवल हमारा अधिकार है अर्थात हमारे श्री कृष्ण से इतने अधिक लोग प्रेम क्यों करते हैं यहाँ तक की उन्हें यह कभी नहीं लगा कि श्री कृष्ण ने हमसे विवाह क्यों नहीं किया और सोलह हजार एक सौ आठ रानियों से प्रेम क्यों करते हैं !
श्री कृष्ण प्रेम में कोई बलात्कार नहीं हुआ कोई हत्या नहीं हुई किसी को लेकर कोई भगा नहीं , किसी लड़की के भाई या माता पिता की हत्या नहीं की गई किसी को माता पिता से छिपना नहीं पड़ा कोई प्रेमिका गर्भवती नहीं हुई आज किसी महिला चिकित्सालय में जाकर देखो कितनी भ्रूण हत्याएँ हो रही हैं किसी मेडिकल स्टोर वाले से पूछो कितना गर्भ निरोधक बिक रहा है !
पिछले वर्ष विदेश की एक घटना है किसी कामी (प्रेमी) को प्रेम(सेक्स)की प्यास लगी व्याकुलता बढ़ी अब वो विचारा क्या करता ! उसने अपनी सेक्स भूख मिटाने के लिए अपनी तथाकथित प्रेमिका को बुलाया किन्तु वो मौके पर समय से नहीं पहुँच पाई तो उसने अपनी घोड़ी के साथ सेक्स किया और बाद में प्रेमिका आई तो उसे मारा दिया ।अरे! यह कैसा प्रेम ?इसे पवित्र प्रेम कहेंगे क्या अपवित्र ! क्या यही प्रेम परमात्मा स्वरूप है जो दूसरों की जान लेने के लिए ही बना हो ! जिसके साथ प्रेम करे उस प्रेम की पराकाष्ठा में उसकी हत्या तक संभव हो और जो प्रेम करे उसकी प्रेम पराकाष्ठा में उसे फाँसी तक संभव हो तो ऐसा प्रेम परमात्मा स्वरूप तो नहीं अपितु यमराज स्वरूप जरूर हो सकता है !
प्रेम के पवित्र सिद्धांत में एक और बात है कि वहाँ विकल्प नहीं चलता है अर्थात अपने प्रेमी या प्रेमिका से कितना भी अधिक सुन्दर या संपत्तिवान कोई दूसरा स्त्री पुरुष क्यों न आ जाए किन्तु वह अपने प्रेमी या प्रेमिका के अलावा किसी और को स्वीकार ही नहीं करेगा वह कितना भी सुन्दर क्यों न हो किन्तु उसकी च्वाईस इतनी घटिया हो ही नहीं सकती कि वो अपने प्रेमी या प्रेमिका को छोड़ कर अपना काम निकालने के लिए किसी और को पकड़ ले ! और काम निकल जाए तो छोड़ दे !
ये तो उसी तरह की बात हुई कि पेशाब लगती है तो यूरिन पास करना होता है इसलिए उसे यूरिनल की अर्थात यूरिन पॉट की आवश्यकता होती है इसी प्रकार से लेट्रीन लगती है तो लेट्रिन पॉट की आवश्यकता होती है थूकने की इच्छा होती है तो पीकदान की आवश्यकता होती है ऐसे ही सेक्स की इच्छा जगे तो सेक्सपॉट चाहिए ! आश्चर्य!! जब तक आवश्यकता तब तक अपना बाद में जाए जहन्नुम में ।
यदि सेक्स से परेशान कुछ लोगों ने अपनी सेक्स समस्या का नाम प्रेम रख लिया और जिससे उस समस्या का समाधान होने लगे उसका नाम प्रेमी और प्रेमिका रख लिया जाए और फिर उसकी तुलना श्री राधा कृष्ण के प्रेम से करने लगे तो ये गलत बात है। आचरण पशुओं जैसे और तुलना श्री राधा कृष्ण के प्रेम से !
वह भी अपने को पढ़ा लिखा समझने वाले ऐसा कहें तो यही कहा जाएगा कि इन्हें पढ़ाई लिखाई कुछ समझ में आई नहीं क्योंकि ये वहाँ भी सेक्स सेक्स ही खेलते रहे !वो शिक्षा के नाम का सेक्स था युवा अवस्था में शादी के नाम पर और बुढ़ापे में अकेलेपन के नाम पर सेक्स !देखो अट्ठासी अट्ठासी वर्ष के नेता विवाह रचा रहे हैं तो जवानों को क्या कहें !कहते हैं कि हमारा प्रेम हो गया था अरे ! प्रेम होता तो छूटता क्यों ?प्रेम तो अलग होने पर भी छूटता नहीं और यदि छूट भी गया तो जब मिलते तब हृदय से लगा लेते किन्तु प्रेम था ही नहीं सेक्स हुआ था जिससे गर्भ हुआ बच्चा हुआ बड़ा हुआ और जब सामने पड़ा तो अपने बच्चे को कैसे हिम्मत पड़ी उसे पुत्र न मानने की ऐसा तो पशु भी नहीं करते हैं पुत्र को डी.एन.ए.कराकर कोर्ट के माध्यम से सिद्ध करना पड़े कि मैं तुम्हारा पुत्र हूँ धिक्कार है ऐसे प्रेम पाखंडियों को !ऊपर से कहते हैं कि हमारा प्रेम तो राधा कृष्ण की तरह है ! अरे!कोई अपनी जुग्गी झोपड़ी को लाल किला कहने लगे तो कहे वह उसकी अपनी आवश्यकता की पूर्ति के कारण उसके लिए लालकिला या मंदिर मस्जिद जो भी माने वह हो सकता है किन्तु समाज के लिए तो वो झुग्गी झोपड़ी ही है ! उससे क्यों कहा जाए कि तुम इसे लाल किला मानो !
सच्चाई यह है कि पुराने समय में विवाह कम उम्र में हो जाया करते थे भले ही नियम तो ब्रह्मचर्य पालन के लिए बने हुए थे किन्तु जो ब्रह्मचर्य का पालन नहीं कर पाता था उसके लिए विकल्प खुले हुए थे इसीलिए के लोगों के बहुत कम उम्र से बच्चे होने लगते थे और कई कई बच्चे जो जाया करते थे यद्यपि उससे आज कल तो जनसंख्या पर भी असर पड़ता है किन्तु इतना अवश्य है कि कम उम्र में होने वाली शादियाँ यदि रोक दी गई हैं उससे सेक्स आपूर्ति बाधित होना तो स्वाभाविक है ही !
इसीलिए सामूहिक स्थानों पर सेक्साचार या समलैंगिक सेक्साचार या पशुओं से सेक्साचार या बलपूर्वक सेक्साचार (बलात्कार) आदि सब कुछ फैल रहा है !आखिर कैसे रोका जाए उसे ?कोई नाली बंद हो जाए तो उससे निकलने वाला पानी आखिर कहीं तो जाएगा ही !बस वही हाल सेक्साचार का है जो सब जगह मारा मारा फिर रहा है।
सेक्स की चाहत ऐसी कि अपने सेक्स अर्थात प्रेमी या प्रेमिका को पाने के लिए ऐसे कामियों के द्वारा अपने माता पिता भाई बहन आदि सबको छोड़ दिया जाता है।कई जगह तो इसी सेक्स चाहत में इन कामियों को अपनों की हत्या तक करते देखा जा सकता है और जो अपनों की हत्या कर सकता है वो परायों को कब और क्यों छोड़ देगा ! इसलिए बलात्कारियों और इन प्रेमियों अर्थात सफेद पोश बलात्कारियों में भेदभाव करना समाज के लिए घातक हो रहा है !
यहाँ तक कि वह कामी जिसे अपना प्रेमी या प्रेमिका बनाकर जिससे वह सेक्स करना चाहता है किन्तु वो ऐसा करने को तैयार न हो !तो वो तथा कथित मित्र क्या क्या उपद्रव नहीं करेगा ! उसे जान बचाना मुश्किल होगा । इसी प्रकार से -
जिससे वह सेक्स कर रहा है और यदि कोई दूसरा उससे और अधिक सुन्दर मिल जाए और पुराना वाला साथी छोड़ना न चाहे चिपका रहना चाहता हो !तो उसे रास्ते से हटाने के लिए क्या क्या नहीं करता है वह !
तीसरी बात जिसे अपना प्रेमी या प्रेमिका बनाकर जिससे वह सेक्स सम्बन्ध बनाकर चल रहा हो किन्तु वह किसी और के प्रति समर्पित हो जाए !तो उसे सबक सिखाने के लिए वह अपनी शक्ति सामर्थ्य भर कुछ उठा तो नहीं धरेगा !
चौथी बात अपनी सेक्स भावना न रोक पाने के कारण जिस धन बल जन बल आदि के द्वारा सामूहिक अत्याचार करके अपनी सेक्स भावना पूरी करता है !
उपर्युक्त इन चारों भावनाओं में अंतर केवल इतना होता है कि जिसकी जैसी भूख उसका वैसा व्यवहार !और जिसकी जैसी शक्ति सामर्थ्य वैसा उसका रियेक्सन ! कई लोग अपने मन पर नियंत्रण कर लेते हैं तो वो अपराध भावना से बच जाते हैं और कई लोग नहीं कर पाते तो अपराध कर बैठते हैं इसका मतलब ये कतई नहीं माना जाना चाहिए कि जो बलात्कार या हत्या कर देते हैं अपराधी केवल वही हैं अपितु अपराधी वे सभी हैं जो इस रास्ते पर चलना प्रारम्भ करते हैं क्योंकि दुर्घटना कोई भी कहीं भी घट सकती है इसलिए यदि अपराध भावना न हो तो ये प्रेम वेम का चक्कर ही कोई क्यों पालेगा जो जिसे पसंद करेगा सीधे उससे विवाह करेगा वो कुत्ते बिल्लियों की तरह लुका छिपी करते पार्कों झाड़ी जंगलों मैट्रो या कूड़ादानों के पास क्यों चिपकता घूमेगा ! सच्चाई ये है कि सेक्स की व्याकुलता में प्रेमी प्रेमिका नाम के कामी इतने पागल हो चुके होते हैं कि उन्हें होश ही नहीं होता कि वो खड़े कहाँ हैं कैसे खड़े हैं कौन देख रहा है या हम कितना बड़ा अपराध करने जा रहे हैं !इसीलिए आज प्रेम नाम के कारोबार में बड़े बड़े अपराध घटित होते देखे जा सकते हैं पवित्र
प्रेम(मित्रता)परमात्मा का स्वरूप होता है क्योंकि इसमें सुख भोगने की भावना न
होकर अपितु सुख देने की भावना होती है कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से अलग विवाह किसी और से करे इसके बाद भी उसकी प्रेमिका उसके प्रति समर्पित बनी रहे आधुनिक प्रेम में ऐसा हो सकता है क्या ?और इसके बाद भी जहाँ सेक्स वहाँ प्रेम और सेक्स नहीं तो प्रेम नहीं ये सेक्स के लिए होने वाले पागल पन को प्रेम नहीं कहा जा सकता ! श्री कृष्ण ने श्री राधा जी जैसा प्रेम खोजने के लिए तो एक एक करके 16108 विवाह कर के देखा परखा किन्तु श्री राधा जी जैसा प्रेम कहीं नहीं मिला तब ग्रहण के समय प्रभाषक क्षेत्र में जाकर श्री राधा जी से मिले ।
इसीलिए प्रेमी और प्रेमिका आपस में कभी पत्नी नहीं बन सकते क्योंकि प्रेमसंबंधों में पति पत्नी के बीच बनने वाले सेक्स सम्बन्ध तो दूर सेक्स भावना भी स्वीकार्य नहीं है सेक्स भावना प्रेम को प्रदूषित कर देती है या यूँ कह लें कि प्रेम सम्बन्धी मित्रता में मूत्रता नहीं चलती है मूत्रता आते ही मित्रता समाप्त हो जाती है फिर मूत्रता ही चल पाती है मित्रता नहीं चलती क्योंकि मित्रता बहुत कोमल होती है थोड़ा भी कपट झूठ अविश्वास स्वार्थ ये सब आते ही मित्रता मर जाती है जबकि मूत्रता चलाने का मुख्य आधार ही कपट झूठ अविश्वास स्वार्थ आदि पर टिका हुआ होता है !
पवित्र प्रेम में सभी को सुख देने की भावना इतनी
बलवती होती है कि वो जिससे प्रेम करते हैं उसे तो सुख देते ही हैं अपितु
अन्य लोग भी इनसे प्रसन्न रहा करते हैं क्योंकि पवित्र प्रेम में किसी की
किसी से कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है किसी के मन में ये भावना नहीं
होती है कि हमारे प्रेमास्पद अर्थात प्रेमी या प्रेमिका से कोई दूसरा
प्रेम न करे जबकि पवित्र प्रेम में इच्छा होती है कि हमारे प्रेमी से
हर कोई प्रेम करे यदि ऐसा न होता तो श्रीकृष्ण ने सैकड़ों विवाह किए इसके
बाद भी श्री राधाकृष्ण जी एक दूसरे को न केवल चाहते रहे अपितु अपने प्रेम को अमर कर दिया !
श्री राधाकृष्ण के प्रेम और आधुनिक प्रेम में पर्याप्त अंतर है श्री कृष्ण का एक नाम मनमोहन भी है इनके पास अपना मन नहीं था जिस दिन इन्होंने महारास किया था केवल उसी दिन मन को अंगीकार किया था बाक़ी वो बिना मन के ही रहे "वीक्ष्य रन्तुम् मनश्चक्रे " आदि आदि !
बिना मन के होने का कहने के पीछे हमारा सीधा सा संकेत यह है कि बासना अर्थात सेक्स का उदय मन में ही होता है और जब मन ही पास नहीं था तो सेक्स का प्रश्न ही नहीं उठता है और सेक्स न होने से यह प्रेम पवित्र बना रहा और पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप होता है क्योंकि इसमें सुख भोगने की भावना न होकर अपितु सुख देने की भावना होती है ऐसे लोगों के सुख देने की भावना इतनी बलवती होती है कि वो जिससे प्रेम करते हैं उसे तो सुख देते ही हैं अपितु अन्य लोग भी इनसे प्रसन्न रहा करते हैं क्योंकि पवित्र प्रेम में किसी की किसी से कोई प्रतिस्पर्द्धा नहीं होती है किसी के मन में ये भावना नहीं होती है कि हमारे प्रेमास्पद अर्थात प्रेमी या प्रेमिका से कोई दूसरा प्रेम न करे जबकि की पवित्र प्रेम में इच्छा होती है कि हमारे प्रेमी से हर कोई प्रेम करे यदि ऐसा न होता तो श्रीकृष्ण ने सैकड़ों विवाह किए इसके बाद भी श्री राधाकृष्ण जी एक दूसरे को न केवल चाहते रहे अपितु दोनों का जीवन चरित्र एक दूसरे से इतना अधिक घुलमिल गया कि आज भी अंतर कर पाना कठिन है जैसे आपसे कोई 'राधे राधे' कह कर यदि अभिवादन करता है तो समझ लिया जाता है कि अमुक स्त्री पुरुष श्री राधाकृष्ण जी का भक्त है जबकि उसने श्री कृष्ण का नाम तो लिया ही नहीं 'राधे राधे' केवल इतना ही कहा है फिर भी श्री कृष्ण ही ध्वनित हुआ ये पवित्र प्रेम हुआ ।
पवित्र प्रेम तो विवाह और सेक्स से बहुत ऊपर की अवस्था है इसलिए कोई भी पवित्र प्रेमी अपने प्रेमात्मक समर्पण को सेक्स और विवाह के पचड़े में डालकर पतित क्यों करेगा ।
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