साईं पूजा के साथ साथ बढ़ते हैं जा रहे हैं अपराध भ्रष्टाचार आदि !
पाप की कमाई में भी साईं को हिस्सा देते जाओ तो वहाँ पाप करने को रोकता कौन है इसीलिए लोग हिस्सा देते रहते हैं पाप करते रहते हैं जस्ट लाइक घूस !ऊपर से कहते हैं बाबा बड़े दयालू हैं क्यों नहीं जहाँ पापों पर इसतरह से पर्दा डाल दिया जाता हो वो दयालु क्यों नहीं कहे जाएंगे ?
देवी देवताओं को पूजने के लिए पाप छोड़ने को कहा जाता है किंतु पाप करते हुए जो पूजना चाहे उसके लिए 'साईं 'क्योंकि वहां ऐसा कोई नियम नहीं है इसलिए पाप भी करे और धार्मिक भी बना रहना है तो पूजो साईं को और पाप छोड़कर धार्मिक बनना है तो देवी देवताओं की शरण में जाओ ! जब साईं पूजा नहीं होती थी तब नहीं था इतना भ्रष्टाचार बलात्कार अपराध आदि क्योंकि साईं के आचार व्यवहार प्रेरक नहीं हो सके से के जीवन से कोई श्री राम की तरह चूँकि भगवान नाम की अवधारणा शास्त्र की है इसलिए किसी को भगवान बताते समय नियमानुशार शास्त्र विधि का पालन करना ही होगा !और ऐसे नियम हर धर्म में बनाए गए हैं जिनका पालन उन उन धर्मों के अनुयायी किया करते हैं कोई किन्तु परन्तु नहीं करता !
आस्था पर अंकुश लगाना बहुत आवश्यक है निरंकुश आस्था ठीक नहीं है !
किसी को भगवान बनाने न बनाने के लिए न हम अधिकृत हैं और न ही कोई और , भगवान शब्द का वर्णन जिन शास्त्रों में मिला उन्हीं शास्त्रों में भगवान के लक्षण भी लिखे गए हैं इसी प्रकार से जिन शास्त्रों में मूर्ति पूजन का विधान बताया गया है उन्हीं में उन भगवानों की प्रतिष्ठा के अलग अलग मन्त्र भी बताए गए हैं जिनसे अंगन्यास करन्यास आदि करके मूर्तियों में प्राण प्रतिष्ठा की जाती है ये शास्त्रीय नियम हैं जो सनातन से चले आ रहे हैं और ये नियम हमारे बनाए हुए नहीं हैं !
प्रश्न -श्री राम को भगवान मानने से ऐसी क्या प्रेरणा मिलती है जो साईं से नहीं ?उत्तर - वस्तुतः भगवान या महापुरुष इस संसार को शिक्षा देने ही आते हैं जब जिस काल खंड में भगवान का अवतार होता है उस समय की आवश्यकतानुशार भगवान अवतार लेकर वैसी ही शिक्षाएँ देते हैं जैसे भगवान श्री राम आए तो उन्होंने अपने आचरण से सबको शिक्षा दी प्रातः काल उठकर माता पिता एवं गुरुजनों को प्रणाम करते थे-जैसे -भाई भाई का प्रेम, पिता पुत्र का प्रेम, राजा प्रजा का प्रेम परस्पर मधुर व्यवहार आदि आदि सबको सिखाया अन्यथा वो भी आते और बिना कुछ किए धरे मुख बना के बैठ जाते केवल पुजाने के लिए -
माता पिता गुरुओं का सम्मान -
प्रातकाल उठि के रघुनाथा । मात पिता गुरु नावहिं माथा ॥
सबसे मधुरता पूर्वक बोलते थे अपने से बड़ों का सम्मान करते थे समाज के सभी लोग मिलजुलकर चलते थे वो स्त्रियों का सम्मान करते थे दूसरों के धन हरण का निषेध था -
जननी सम जानहिं पर नारी । धन पराय विष ते विष भारी ॥
इतना ही नहीं समाज की रक्षा के लिए उन्होंने असुरों का संहार किया !मानवता की रक्षा की और भी तमाम जनहित के कार्य किए जिन्हें देखा सुना और लिखा गया उसके प्रमाणित ग्रन्थ हैं -
दूसरे की स्त्री पर कुदृष्टि डालने का निषेध था -
सो परनारि लिलार गोसाईं । तजहु चौथ के चन्द्र की नाईं ॥
दूसरों के प्रति उपकार की भावना थी -
परहित बस जिनके मन माहीं । तिन्ह कहँ जग दुर्लभ कछु नाहीं ॥
साधुओं के सम्मान की भावना थी साधू संतों के आश्रमों में जाते थे उनका अभिवादन करते थे ,बूढ़ी माता शबरी और पक्षी राज जटायु का भी सम्मान किया था।समाज की रक्षा के लिए वीरता पूर्वक रावण से लड़े और समस्त असुरों का संहार किया ।
प्रश्न - साईं को इतने दिनों से भगवान बना कर पूजा जा रहा है उससे देश और समाज का क्या बिगड़ गया ?
उत्तर - बिगड़ा तो बहुत कुछ किन्तु देखने और समझने वाला हो तो समझे ! साईं से किसी को प्रेरणा आखिर क्या मिली यही कि बिना कुछ किए धरे बैठे बैठे पूजाओ !श्री राम जी के पूजने से समाज को जो संस्कार मिलते हैं साईं का अनुशरण करने वाले उन्हें भूल रहें हैं क्योंकि साईं के यहाँ उनका कोई संस्कार ही नहीं है । जैसे जैसे साईं पूजा की प्रथा बढ़ रही है वैसे वैसे समाज छिन्न भिन्न होता जा रहा है माता पिता भाई बहन ,छोटे बड़ों के पारस्परिक व्यवहार के संस्कार नष्ट हो रहे हैं । बहन बेटियों से व्यवहार के संस्कार अपने से बड़ों के सम्मान एवं अभिवादन के संस्कार,देवी देवताओं के पूजने के संस्कार अच्छे ढंग से बात करने के संस्कार धीरे धीरे नष्ट भ्रष्ट हो रहे हैं !
भगवान श्रीराम भी चाहते तो पुजाने चले आते किन्तु ऐसा करने से समाज को पारस्परिक व्यवहार के संस्कार कैसे मिलते इसलिए वे अवतरित हुए और आम आदमी की तरह सारे आचरण करके लोगों को संस्कार सिखाए उनका लोगों पर असर अधिक पड़ता है उपदेश तो सभी देते हैं श्री राम ने आचरण करके समाज को इन व्यवहारों की शिक्षा दी है वो साईं फकीर आदमी कैसे दे सकते थे ! संत लोग तो भगवान की और लोगों को प्रेरित कर देते हैं भगवच्चरित्र से संस्कार मिलते हैं इसका मतलब ये तो नहीं हुआ कि खुद पुजाने बैठ जाएँ !
साईं प्रचलन का समाज पर इतना अधिक दुष्प्रभाव पड़ रहा है कि पिछले बीस से तीस वर्षों में चारों ओर सभी प्रकार के अपराध बढ़ते जा रहे हैं ।बलात्कार के विरुद्ध तो कठोर कानून बना फिर भी नहीं रोके रुक रहें हैं बलात्कार आखिर क्यों ! श्री राम का प्रचार घटने और साईं का बढ़ने से समाज में संस्कारों का अभाव होना स्वाभाविक है क्योंकि साईं के पास अनुकरणीय संस्कार ही कौन थे ?अगर उन्हें संत मान भी लिया जाए तो भी वो श्री राम चरित का उपदेश करते होंगे इसकी संभावना तो बहुत कम है क्योंकि यदि वो ऐसा करते होते तो उनके अनुयायियों में इसके संस्कार होते तो आज ये समस्या ही पैदा नहीं होती !आज देश में सबसे बड़ा संकट संस्कारों का है !यहाँ तक कि आज बलात्कारों को न रोक पाने के लिए भी पुलिस प्रशासन दोषी हो सकता है किन्तु सम्पूर्ण रूप से नहीं एकांत में कोई किसी को पकड़ लेता है गला दबा देता है किसी से बलात् ब्यभिचार करता है छोटी छोटी बच्चियों के साथ बासनात्मक अत्याचार करता है ऐसे नर पशुओं पर एकांत में भी संस्कार नियंत्रण करते हैं न की पुलिस प्रशासन !आखिर किसे किसे कहाँ कहाँ कितनी कितनी कैसे कैसे सुरक्षा दी जाएगी ?किन्तु जैसे जैसे साईं का प्रचार प्रसार बढ़ा संस्कारों का संतुलन बिगड़ता चला गया आज बेटी बहुओं का घर से निकलना मुश्किल हो गया है ये साईं श्रद्धा बढ़ने और शास्त्र श्रद्धा घटने का ये दुष्प्रभाव है अन्यथा आज के बीस तीस वर्ष पहले भी क्या समाज की यही दुर्दशा थी ?अपराध बलात्कार आदि क्या तब भी इसी प्रकार से थे यदि नहीं तो आज क्यों बिगड़ता जा रहा है समाज पाप पुण्य का भय क्यों समाप्त होता रहा है इसका चिंतन करना बहुत आवश्यक है!भारतीय संस्कृति में संस्कारों को सुधारने के लिए जो शास्त्रीय नियामक ग्रन्थ हैं उन पर अश्रद्धा उत्पन्न की जा रही है और साईं चरित्र के नाम पर जो कुछ परोसा जा रहा है उसमें चरित्र के नाम पर कुछ मिलता नहीं हैं जो परिवार एवं समाज को आपस में जोड़ने के संस्कार दे सके या पाप पुण्य की मानसिकता बनाकर समाज को गलत कार्यों में जाने से रोके !जैसे शास्त्रीय साहित्य सहायक होता रहता है!
साईं चरित बढ़ने और शास्त्रीय प्रचार घटने का दुष्प्रभाव ही है कि आज बूढ़े माता पिता घर से निकाले जा रहे हैं !शिक्षकों का अपमान किया जा रहा है क्योंकि माता पिता या शिक्षकों का सम्मान करते साईं को किसी न कभी देखा नहीं ,आपस में सबके सबसे सम्बन्ध टूटते जा रहे हैं आखिर क्यों ? ये सब इन्हीं बीस वर्षों में क्यों हुआ ! मोबाइल जेब में डाले घूम रहे हैं किन्तु किससे कहें मन की बात सबसे सम्बन्ध बिगाड़ लिए हैं हर कोई अपने को साईं बाबा समझ रहा है कि हम तो हैं ही पूजने के लिए सामने वाले की हजार बार गर्ज हो तो वो पूजे किन्तु किसी को कोई क्यों पूजे ? इसी साईं मानसिकता से धीरे धीरे हर कोई अकेला पड़ता जा रहा है !दरवाजे पर दसों गाड़ियाँ और ड्राइवर आदेश की प्रतीक्षा कर रहे हैं किन्तु जाएं किसके घर सबसे सम्बन्धों की औपचारिकता भर रह गई है बाकी टूट चुके हैं सारे सम्बन्ध ?
कुल मिलाकर साईं की तरह ही सारा समाज अकेला होता जा रहा है परिवार टूट रहे हैं समाज छिन्न भिन्न होता जा रहा है व्यवहार नष्ट हो रहे हैं शिष्टाचार समाप्त हो रहा है यदि पैसे की बात छोड़ दें तो हर कोई संबंधों के मामले में साईं की तरह फकीर होता जा रहा है! पति पत्नी साथ साथ नहीं रहना चाहते !छोटे छोटे बच्चों की परवाह किए बिना तलाक ले रहे हैं !भ्रूण हत्याएं हो रही हैं आखिर क्यों हो रहा है ये सारा पापाचार !
साईं संप्रदाय में कोई ऐसा धर्म ग्रन्थ नहीं है जो गलत कार्यों की निंदा करे !सनातन हिन्दू धर्मशास्त्र चूँकि गलत कार्यों की निंदा करते हैं पाप दोष दिखाते हैं इसलिए ऐसा वैसा करने वाले लोग इधर उधर पीर फकीरों के पास भाग रहे हैं क्योंकि वहाँ कोई गलत काम को गलत कहेगा नहीं इसलिए पूजो साईं को और छोड़ दो सनातन धर्म अन्यथा यहाँ तो छोटे छोटे अपराधों को भी पाप पाप कहकर रोका गया है।इसलिए यहाँ तो सुधारना पड़ेगा ! केवल आम आदमी ही नहीं पंडित पुजारी यहाँ तक कि कुछ साधू संतों का वेष धारण करने वाले सामाजिक राजनीति व्यापार आदि सांसारिक प्रपंचों में फँसे लोगों को भी साईं बाबा अच्छे लगने लगे हैं क्योंकि यहाँ तो हर किसी के लिए धर्मशास्त्रों की मर्यादाएँ है उसी के अनुशार चलना होगा इसलिए साईं बाबा को मानने लगो जैसे चाहो वैसे रहो किसी का कोई बंधन नहीं बिलकुल उन्मुक्त जीवन जियो यहाँ तो गलत को गलत कहना और सुनना पड़ेगा !यहाँ तो धर्मशास्त्रीय संविधान है जिसके अनुशार ही चलना होता है किन्तु साईं संप्रदाय में कौन सा संविधान है जिसके अनुशार चला जाए ?वहाँ तो बिलकुल वैसा होता है जैसे कोई देश बिना संविधान से चलाया जाए जिसकी लाठी उसकी भैंस !साईं संप्रदाय इसी तरह चल रहा है जो जो कुछ बोल देता है उसी के पीछे चल दिया जाता है साईं संप्रदाय में ऐसा कोई ग्रन्थ नहीं है जो कथा कहानियों के द्वारा अच्छे आचरणों का उपदेश करे । साईं संप्रदाय में कोई ऐसा संत नहीं है जो समाज की जिज्ञासा शांत करे वहाँ तो हिसाब किताब रखने वाला ट्रस्टी ही सब कुछ होता है,जैसे किसी कम्पनी में मैनेजर होता है केवल आय व्यय का हिसाब किताब घाटा मुनाफा आदि देखने वाला ! ये धर्म स्थल नहीं क्या कोई फैक्टरी है क्या ?वो ट्रस्टी धार्मिक शास्त्रीय शिक्षा की दृष्टि से बिलकुल अपाहिज होता है ।साईं साईं कह कर शोर मचाने वाले गाली देने वाले मीडिया चर्चित लोग ही उनके धर्माचार्य हैं । इस धार्मिक भड़ैती से साईं का प्रभाव बढ़ने के साथ साथ समाज का शिष्टाचार सदाचार बिलकुल समाप्त होता जा रहा है मानव मूल्य समाप्त होते जा रहे हैं आप स्वयं सोचिए बीस से तीस वर्ष पहले जब इस देश में साईं संप्रदाय का प्रचार प्रसार नहीं था तब भी पापाचार बलात्कार भ्रष्टाचार इतना ही होता था क्या ? आप स्वयं देखिए श्री राम से विमुख होने का मतलब संस्कारों से विमुख होता जा रहे समाज को वो कैसे सँभाल लेंगे जिनके अपने पास ही संस्कारों का अकाल है !
साईं को न तो किसी ने माता पिता आदि किसी बड़े बूढ़े को प्रणाम करते देखा तो उनके अनुयायी माता पिता को प्रणाम करना किससे सीखें ?
स्त्रियों का सम्मान करते साईं को किसी ने नहीं देखा क्योंकि वो फकीर थे जो जाएगा उन्हीं का सम्मान करेगा वो किसी का क्यों करें इसी लिए उनके अनुयायी स्त्रियों का सम्मान करना किससे सीखें ?
साईं को धन दौलत की जरूरत थी नहीं संत फकीर आदमी थे इसलिए धन का लेन देन करते देखा नहीं जाता था इसलिए उनके अनुयायिओं को ये प्रेरणा कैसे और कहाँ से मिले कि किसी को ठग कर धन नहीं लेना चाहिए ।
साईं को किसी साधू महात्मा के यहाँ जाकर कभी किसी को प्रणाम और सम्मान तो करते तो किसी ने देखा सुना नहीं तो उनके अनुयायी कैसे किसी साधू माहत्मा को प्रणाम या सम्मान करें !इसीलिए किसको कब कहाँ क्या बोलना है उन बेचारों को नहीं पता है साईं के अनुयायियों को वाणी का संस्कार मिला नहीं इसलिए टीवी पर चर्चा करने जाते हैं तो वहाँ गाली गलौच पर जाते हैं और फेस बुक पर आते हैं तो यहाँ गाली लिखते हैं ये उनकी मजबूरी है वो चर्चा के लिए बोले जाते हैं कुछ आता हो तो न चर्चा करें !धर्मशास्त्रों की चर्चा करनी होती है किन्तु जिसका नकोई धर्म है न शास्त्र वो गाली न दें तो क्या करें !
साईं को वेद पुराण रामायण एवं सनातन धर्मग्रंथों का अध्ययन करते किसी ने देखा नहीं तो उनके अनुयायी कहाँ से सीखें वेद पुराण रामायण एवं सनातन धर्मग्रंथों की सारगर्भित बातें ?
साईं को हिन्दू देवी देवताओं की पूजा करते किसी ने देखा सुना नहीं तो उनके अनुयायी क्यों करें हिन्दू देवी देवताओं की पूजा ?
चूँकि साईं निजी तौर पर किसी देवी देवता को नहीं मानते या पूजते थे इसलिए उनके अनुयायी क्यों मानें या पूजें हिन्दू देवी देवताओं को वो सब मिलजुलकर उन्हें ही पूजने लगे !
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