जिस देश की राष्ट्र भाषाहिंदी और जिस देश का नाम हिंदुस्तान है वहाँ के रहने वाले हिन्दू और वह देश हिंदू राष्ट्र क्यों नहीं है !और यदि नहीं है तो है और क्या ?
यदि विभिन्न भाषाओं के शब्दों को समेट कर चलने वाली भाषा को हिंदीभाषा कहने और मानने में किसी को आपत्ति नहीं है !
यदि विभिन्न जातिसंप्रदाय के लोगों वाले देश को हिन्दुस्थान कहने और मानने में किसी को आपत्ति नहीं है !
विभिन्न जाति संप्रदाय वाले लोगों को राष्ट्रवाद की भावना से अपने साथ मिलाकर जो चले उसे हिंदू कहने और मानने में किसी को आपत्ति क्यों है ?
इसीप्रकार से हिंदुस्थान को हिंदूराष्ट्र कहने और मान लेने में क्या समस्या है ?
भारत हो या हिंदुस्थान।दोनों की हिंदू पहचान॥
अपने देश का नाम भारत होने का तो लंबा इतिहास है किन्तु इस देश का नाम इंडिया क्यों पड़ा ?इसका क्या इतिहास है ? जो भी हो किन्तु भारत वर्ष कहने से जो आत्मगौरव की अनुभूति होती है वह इंडिया से नहीं ! भारत नाम, एक प्राचीन हिन्दू सम्राट भरत जो कि मनु के वंशज ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र थे तथा जिनकी कथा श्रीमद्भागवत महापुराण में है, के नाम से लिया गया है। भारत (भा + रत) शब्द का मतलब है आन्तरिक प्रकाश । इसके अतिरिक्त भारतवर्ष को वैदिक काल से आर्यावर्त "जम्बूद्वीप" और "अजनाभदेश" के नाम से भी जाना जाता रहा है।
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सम्भाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव
के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही
विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक
भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप
का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को
जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों
में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन भारत देश था। राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। पहले भारतवर्ष का नाम ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे बहुत पहले यह देश 'सोने की चिड़िया' के रूप में जाना जाता था।
इस प्रकार भारत नामअपनी पवित्र संस्कृति एवं इतिहास की याद दिलाता है जबकि इंडिया नाम से हमारा कोई सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक सम्बन्ध नहीं सिद्ध होता है ।
भारतीय परम्परा में महिलाओं का सम्मान
भारतीय परम्परा में महिलाओं का सम्मान हमेंशा होता रहा है।महिलाओं के
प्रति व्यवहार भारतीय परंपरागत मूल्यों के आधार पर आज भी होना चाहिए-
मातृवत् पर दारेषु परद्रव्येषु लोष्ठवत् |
जननी सम जानहिं पर नारी।
धन पराय बिष ते बिष भारी ।।
अर्थ- दूसरे की स्त्री को माता के समान एवं दूसरे के धन को मिट्टी या बिष के समान समझना चाहिए।
कन्या पूजन का विधान केवल भारतीय संस्कृति में है।सौभाग्यवती स्त्रियों का देवी रूप में पूजन करने की भारत में परंपरा है।
ब्रह्मचर्य का उपदेश भारतीय संस्कृति में मिलता है -
मरणं विन्दु पातेन जीवनं विन्दु रक्षणात् |
एक भारतीय संत ने विदेश हो रहे अपने भाषण ब्रदर्स एंड सिस्टर्स कह कर सभी लोगों को चकित कर दिया था ।ये सारी पवित्र परंपराएँ भारत की हैं किसी अन्य संस्कृति में ऐसा नहीं माना जा रहा है ।
इसलिए जो भारत में रहकर भारतीय परम्पराओं पर विश्वास करता है वो भारतीय है हिंदू है और जो नहीं करता है वो नहीं है !
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