शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

सनातन धर्म की पुरानी पड़ी परम्पराओं में आग लगी नहीं अपितु लगाई गई है वो भी घर के चिराग से !

    हम सोचते थे कि हमारी चालाकी कोई समझ नहीं पाएगा किन्तु समाज ने समझने से पहले ही हमें दुदकार दिया है ! हत भाग्य हम कुछ नहीं कर सके !

पहले गायोँ ,कन्याओं एवं ब्राह्मणों को पूजा जाता था !

    तब गौएँ गंध नहीं खाती थीं आज  गौएँ  गंध  खाने लगी हैं! इसी प्रकार से तब लड़कियाँ प्यार नाम के ब्याभिचार में सम्मिलित नहीं होती थीं किन्तु आज ऐसा होता देखा जा रहा है !पहले ब्राह्मण नियम संयम से रहते थे शास्त्रीय स्वाध्याय करते थे पाप पुण्य की बातें दूसरे लोगों को समझाते थे किन्तु आज इन बातों को मानने के लिए वे स्वयं तैयार नहीं हैं वो भी हाईटेक हो रहे हैं । ऐसे ही आचरणों के कारण आज समाज गायोँ ,कन्याओं एवं ब्राह्मणों के प्रति उदासीन होता जा रहा है ये चिंता का विषय है !

     पहले के समय में लड़कियाँ प्यार नाम के ब्यभिचार में सम्मिलित नहीं होती थीं आज उनका एक वर्ग ऐसी परिस्थितियों में सम्मिलित दिखने लगा है कालगर्ल के रूप में लड़के बुलाने को तैयार हैं तो लड़कियाँ जाने को एक जगह कुछ लड़कों ने मिलकर शरारत की एक ऐसी ही लड़की को धन देकर दो घंटे के लिए लाया गया किन्तु लड़की को ये नहीं बताया गया कि तुम्हें जिस कमरे में ले जाया जा रहा है वहां चार लड़के पहले से बैठे हुए हैं सच्चाई ये थी जो पैसे उस लड़की को दिए गए वो लड़कों ने आपस में कंट्रीब्यूशन करके दिए थे वहां पहुँचने के बाद अब वो अकेली लड़की क्या कर लेती और कहाँ ले जाई गई थी उस जगह की पहचान भी उसे नहीं थी और होती भी तो क्या लड़के वहाँ दोबारा जाने पर मिल पाते !

      इसीप्रकार से सेक्स रैकटों में सहभागिता पाई जा रही है ,पार्कों में पार्किंगों में और भी सार्वजनिक जगहों पर लोग यदि चूमने को तैयार हैं  तो चुमवाने वालों की कमी नहीं है यदि कुछ लोग चिपकाने को तैयार हैं तो कुछ चिपकने को भी तैयार हैं !लड़कियाँ हर जगह लड़कों की बराबरी करने को तैयार हैं !पार्कों में या अन्य सार्वजनिक जगहों पर लड़के लड़कियाँ दोनों ही अपने अभिभावकों से छिपकर एक दूसरे को चिपकते चूमते चाटते रहते हैं ऐसे आचरण सामाजिक मर्यादाओं को तार तार कर रहे हैं ! 

   इसी प्रकार से पहले ब्राह्मणों का जीवन सात्विक सदाचारी संयमी तपस्वी एवं विद्वत्ता पूर्ण होता था अब ब्राह्मण भी हाईटेक होने लगे हैं पैंटशर्ट कुर्ता पाजामा पहन कर पूजा करा रहे हैं सात्विकता  सदाचारण  संयम तपस्या  एवं शास्त्रीय विद्वत्ता धीरे धीरे समाप्त होती जा रही है । अब ब्राह्मण भी सबकुछ खाने और सबकुछ करने लगे हैं । इनके दुष्परिणाम भी समाज में साफ साफ दिखने लगे हैं -

    इसीलिए पहले गायों को  काटा नहीं जाता था, कन्याओं पर  अत्याचार नहीं होते थे और ब्राह्मणों को गालियाँ नहीं दी जाती थीं किन्तु अब  अच्छी अच्छी गउएँ भी काटी जा रही हैं कुछ लड़कियों की अत्याधुनिक हाईटेकनेस से दुष्प्रभावित लोग निरपराध अबोध कन्याओं को भी सता रहे हैं इसीप्रकार से कुछ कुमार्गी ब्राह्मणों के दुष्कर्मों से दुष्प्रभावित लोग तपस्वी चरित्रवान ब्राह्मणों को भी गालियाँ दे रहे हैं !        इन्हीं कारणों से आज गायों ,कन्याओं एवं ब्राह्मणों के प्रति भी पूज्य भाव समाप्त होता जा रहा है । किसी का किसी के प्रति पूज्य भाव कोई और नहीं बना सकता है ये उसी के सदाचरणों पर निर्भर करता है कि वो अपनी अच्छाइयों से समाज को प्रभावित करे !और यदि वो न करे तो कानून व्यवस्था कैसे करे ?

      कई साधू साध्वियों को पहले आपने देखा होगा कि वो बहुत शौक शान से नहीं रहते थे उतना हाईटेक श्रंगार नहीं करते थे किन्तु जैसे जैसे सधुअई का धंधा चलता गया धन आता गया मन लगता गया और मन में ही बासना का उदय होता है मनो हि मूलं हरिदग्ध मूर्तेः और जैसे जैसे बासना बढ़ती गई वैसे वैसे उपासना घटती गई बासनापूर्ति की चाहत बढ़ने लगी अब तो कलर बदले जाने लगे ,केश रँगे जाने लगे महँगी महँगी इंपोर्टेड क्रीमें लगाई जाने लगीं ,धीरे धीरे विरक्तता धोई जाने लगी बासना पिरोई जाने लगी तन का श्रंगार मन की बासना को सूचित करता है यह सिद्धांत है धीरे धीरे बहने लगा बैराग्य और शिथिल पड़ने लगा इन्द्रिय निग्रह ,बासना के प्रबल प्रवाह में टूटने लगे संयम के तट बँध ! और उमड़ने घुमड़ने लगीं मन्मथ भावों की घनघोर घटाएँ ,हाव भाव कटीले कटाक्ष दीर्घ दीर्घायित नेत्रों से निर्निमेष खोजने लगे अपने स्वप्न सुन्दर प्रेमास्पदों को !अब तो फिल्मी गीतों में राधा और कृष्ण का नाम पिरो पिरो कर गाते हुए गोपियों के बहाने खिल्लियाँ उड़ाई जाने ऊधौ  जी के वैराग्योपदेश की ! अंततः लक्ष्य लालषा पूरी हुई और शांत हुए दशकों से तृषित अतृप्त मनोभाव  ! अब तो अपने प्रेमालाप की कल्पित कहानियाँ अनुभव आनंद आदि कृष्ण कथाओं के नाम पर बताये जाने लगे और गाए जाने लगे अपने अनुभवों के चयनित गीत !अपने मन माने कथा कहानियाँ गढ़ गढ़ कर सुनाने लगे अब बैराग्य के नाम पर सब कुछ बह चुका था बचा केवल कपड़ों का कलर एवं मस्तक पर एक सुन्दर सा फैशनेबल टीका !

     बंधुओ !समाज जब ये रास लीला समझ पाया तो इसमें ढोल के भीतर भरी पोल लगा वेद शास्त्र जैसे संस्कृत के कठिन ग्रन्थ वो पढ़ नहीं पाया और इस मन माने धर्म एवं धार्मिकों से तंग आकर मंदिरों साईं जैसे आम कल्पितों को पूजने लगा इसी भाव से कि कम से कम ये कलर तो नहीं बदलते हैं !

        अस्तु बंधुओ !

     गायों कन्याओं एवं ब्राह्मणों पूजन पहले होता था अब नहीं होता है आखिर क्यों ?

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