बेजुबान जीवों के बध को कुर्बानी कैसे कह दें।
हिंसा मुक्त संस्कृति मेरी कैसे बदनामी सह लें ॥
जिस दिन निरपराध पशुओं का होता हो भीषण संहार।
कहो बंधुओ !कैसे कह दें उस दारुण दिन को त्यौहार ॥
बकड़े बेबश खड़े कट रहे शोणित के फूटे फब्बार ।
रक्त रंजिता धरती माता शिर और खालों के अम्बार॥
ऐसा दुर्दिन दीख रहा जब जीवों में हो हाहाकार ।
हत्या दिन को कैसे मानें भाई चारे का त्यौहार ॥
अमन चैन का दिन कह करके कैसे इन्हें बधाई दूँ ।
बकड़े कोसेंगे मरकर क्यों उनसे ब्यर्थ बुराई लूँ ॥
जिनकी पर्व प्रथा हो ऐसी उनसे शांति की उम्मींद!
तब तक कैसे की जा सकती जब तक है ऐसी बकरीद ?
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