इस दुनियाँ में गुरु का महत्त्व महान है किन्तु गुरु होते अलभ्य हैं
गुरु खोजे भी नहीं जा सकते अपने किए हुए पुण्य कर्म जब संचित हो जाते हैं
तब कोई गुरू कृपा कर ही देता है किन्तु गुरु बनने की कृपा करते घूमने वाला
हर व्यक्ति गुरु नहीं होता !
संतों की पहचान संपत्ति से नहीं अपितु भक्ति से होनी चाहिए
कोई गरीब से गरीब व्यक्ति अपना बाप नहीं बदल सकता मरने मारने को तैयार हो जाएगा फिर जिन लोगों ने अपना भगवान ही बदल लिया हो उन्हें आप क्या कहेंगे !देखो साईं वालों को !!
ऐसे सत्संगों से बचने में ही भलाई है !
किसी भी स्त्री पुरुष के शरीर का श्रंगार उसके मन में छिपी हुई बासना के स्तर को प्रकट करता है ,मजनुओं की तरह सजे धजे कई भागवत कथा व्यापारी भी तो हैं जिनके कृपा प्रसाद से अनेक घर गृहस्थियाँ चौपट हुई हैं बच्चे मारे मारे घूम रहे हैं बंधुओं ! देश समाज और परिवार हित में क्या ऐसे सत्संगों से बचा नहीं जाना चाहिए !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/08/blog-post.html
वैवाहिक जोड़े अपने अपने गृहस्थ जीवन को छोड़ कर
अति श्रृंगारित एवं मिठाई की दुकानों की तरह दूसरों के घर बर्बाद करते घूम रहे हैं नू करने के नाम से नाचने
गाने वाले नाम की कहने वाले लोग या सधुअई (साधू बनने का बिजनिस ) करने वाले लोग
संतों की पहचान संपत्ति से नहीं अपितु भक्ति से होनी चाहिए
कोई गरीब से गरीब व्यक्ति अपना बाप नहीं बदल सकता मरने मारने को तैयार हो जाएगा फिर जिन लोगों ने अपना भगवान ही बदल लिया हो उन्हें आप क्या कहेंगे !देखो साईं वालों को !!
साईं और उनके अनुयायियों में एक समानता है दोनों को शास्त्रीय विषयों में
लिखना पढ़ना नहीं आता है धर्म कर्म की शिक्षा साईं की क्या रही न इसका कोई
प्रमाण मिलता है और न ही साईं के अनुयायियों की ! धार्मिक विषयों में लिखना
पढ़ना इनके बश का है नहीं केवल घुसपैठ करने में ये लोग माहिर होते हैं जैसे
साईं मंदिरों में घुस गए ऐसे ये भी कहीं भी प्रकट हो जाते हैं किन्तु पढ़े
लिखे लोग इनकी बातों का जवाब ही नहीं देते हैं इसी लिए मैं भी शांत रहता
हूँ और उचित भी यही है !
ऐसे सत्संगों से बचने में ही भलाई है !
किसी भी स्त्री पुरुष के शरीर का श्रंगार उसके मन में छिपी हुई बासना के स्तर को प्रकट करता है ,मजनुओं की तरह सजे धजे कई भागवत कथा व्यापारी भी तो हैं जिनके कृपा प्रसाद से अनेक घर गृहस्थियाँ चौपट हुई हैं बच्चे मारे मारे घूम रहे हैं बंधुओं ! देश समाज और परिवार हित में क्या ऐसे सत्संगों से बचा नहीं जाना चाहिए !see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2014/08/blog-post.html
वैवाहिक जोड़े अपने अपने गृहस्थ जीवन को छोड़ कर
अति श्रृंगारित एवं मिठाई की दुकानों की तरह दूसरों के घर बर्बाद करते घूम रहे हैं नू करने के नाम से नाचने
फिल्मों के बोल्ड एवं सेक्सी सीनों से हृद्घायलों के लिए वैसे ही हॉस्पिटल भी तो हों !
आजकल अच्छे दृश्यों की पहचान कपड़े उतारने से बनती जा रही है अर्थात
जो जितने कपड़े उतार दे वो उतना बोल्ड ,सेक्सी,सुन्दर आदि कुछ भी या यूँ
कह लें कि लुकते छिपते हुए कैमरे के सामने नग्न या अर्धनग्न होना ही आज
कला का पर्याय बनता जा रहा है ऐसे तथाकथित बोल्ड ,सेक्सी,सुन्दर टाईप के
लोग इस नंगपन को कहानी की माँग बताकर जायज ठहराते हैं !बंधुओ ! कहानी क्या
वेदों से तो उठाई नहीं गई थी जो बदली नहीं जा सकती किन्तु जिसे देखना और
दिखाना ही फूहड़ता है उसे क्या कहानी क्या कला !किन्तु ऐसे धारदार दृश्यों
से घायल तरुणाई रेप ,हत्या या फिर आत्महत्या जैसे दारुण पथों पर बढ़ती जा
रही है क्या इस पर भी समाज के समझदारों को सोचना नहीं चाहिए खैर, हम काम तो
समाज की पीड़ा परोसना बाक़ी होगा तो वही जो मालिक लोग चाहेंगे !
बंधुओ ! हमारी दवा व्यापार सम्बन्धी बात को किसी एक संत से जोड़ कर न देखा
जाए ! वैसे हम तो इस धर्म व्यापार विचारधारा के ही पक्ष में नहीं हैं !
बंधुओ ! दवा बेचने संबंधी हमारे लेख का उद्देश्य किसी व्यक्ति विशेष की ओर इशारा करना नहीं है अपितु हमारा उद्देश्य धर्म को व्यापार बनने से रोकना है ताकि धर्म का उपयोग धर्म की तरह धार्मिक लोग करते रहें और व्यापार का काम व्यापारी लोग देखते रहें अन्यथा धार्मिक लोग व्यापार करने लगेंगे तो व्यापारी लोग क्या भस्म रमा कर हरिद्वार में गंगा किनारे बैठेंगे !इसलिए ये घाल मेल करना ठीक नहीं है आजकल जितने आर्टीफीशियल बाबा हैं सब कुछ न कुछ बेच ही रहे हैं प्रश्न ये है कि कुछ बेचने के लिए बाबा बनना कहाँ तक नैतिक है ! कोई ज्योतिष के नाम पर नग नगीने बेंच रहा है कोई धर्म के नाम पर कोई आयुर्वेद या वास्तु के नाम पर ! क्या धर्म और धर्म शास्त्रों का उद्देश्य केवल व्यापार करना है ! खैर , इसलिए दोष किसी एक व्यक्ति को क्यों और कैसे दिया जाए ! वैसे भी दोष किसी को कैसे दिया जाए ! और किसी को दोषी कहने वाले हम होते भी कौन हैं यह तो समाज को सोचना है !
गाने वाले नाम की कहने वाले लोग या सधुअई (साधू बनने का बिजनिस ) करने वाले लोग
संतों का काम दवा बेचना नहीं अपितु दुआ अर्थात आशीष देना है !
संत की तो दुआ से ही सब काम बन जाते हैं इसलिए दवा बेचने की संतों को
आवश्यकता ही क्या है ! दवा बेचना तो वैद्यों का काम है और यदि संत ही दवा
बेचने लगेंगे तो बैद्य बिचारे क्या करेंगें और संतों का काम है समाज में
आध्यात्मिक भावना भरना वो कौन करेगा और यदि वो नहीं होगा तो समाज में
अपराधों की प्रवृत्ति बढ़नी स्वाभाविक ही है ! और यदि कोई संत कहे कि हम तो
सब कुछ कर लेंगें तो फिर प्रश्न उठता है कि ऐसे लोग अकेले अपने को ही इतना
बड़ा समझदार किस आधार पर समझते हैं कि अकेले वही सारे काम कर सकते हैं ! खैर
,जो भी हो ये भटकाव दूर तो होना चाहिए !सबके काम सबकी सीमाएँ सब को पता
तो लगनी चाहिए !ऐसे तो जब मन आवे तब हम संत हो जाएँ ,जब मन आवे तब व्यापारी
और जब मन आवे तब नेतागिरी करने लगें ! इससे व्यापारियों और नेताओं की
छवि को धक्का लगे न लगे किन्तु विरक्त संतों का गौरव तो घटता ही है उसे
कैसे सुरक्षित रखा जाए !see more...http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/2015/03/blog-post_17.html
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