माता सीता का हरण संभव ही नहीं था ऐसा करने की सामर्थ्य आखिर थी किसमें !
अपने अवतार का प्रयोजन स्वरूप राक्षसों के संहार का संकल्प पूरा करने के लिए माता सीता को स्वेच्छया लंका जाना पड़ा था उन्हीं की इच्छा से प्रेरित होकर रावण माता सीता को लेने के लिए आया था !
गोस्वामी जी लिखते हैं कि
" पुनि माया सीता कर हरना "
चूँकि रावण को शाप था कि वो किसी स्त्री को बासना भाव से देख कर स्पर्श करता तो नष्ट हो जाता फिर सीता हरण के समय उसके मन में यदि बासना रही होती तो नष्ट क्यों नहीं हुआ -
रावण मातृभाव से भगवती सीता को ले गया था अन्यथा जिस स्त्री के प्रति किसी के मन में बासना होती है वो उसे प्रणाम नहीं करता है किन्तु रावण ने माता सीता को ले जाते समय उन्हें प्रणाम किया था -
यथा -"मन महुँ चरण बंदि सुख माना "
बासना के भाव से ले जाता तो महल में रखता किन्तु रावण ने ऐसा नहीं किया प्रभु राम श्री राम का बचन उसे याद था -
"पिता बचन मैं नगर न जाऊँ " इसलिए "बन अशोक तेहि रखत भयऊ"
इसी प्रकार कोई बासना की दृष्टि से किसी से प्रणय निवेदन करने जाता है तो अकेले जाता है किन्तु पुष्पबाटिका में रावण जब माता सीता के पास पहुँचता है -
तेहि अवसर रावण तहँ आवा । संग नारि बहु किए बनावा ॥
आदि आदि बहुत कुछ ऐसा है कि दोनों तरफ से मर्यादा की रक्षा की गई है किन्तु रावण को प्रभु के हाथों प्राण छोड़ना था इसलिए कुछ तो करना ही था !
प्रभु श्री हनुमान जी लिखते हैं कि रावण मंदोदरी से कहता है कि प्रिये!मुझे पता है कि सीता का लंका में आगमन ही हमारे बध के लिए हुआ है फिर भी मैं प्राण छोड़ दूँगा किन्तु सीता को नहीं !यथा -
बधं च जानामि निजं दशास्य तथापि सीतां न समर्पयामि |
इन सब बातों के साथ साथ हमें यह ध्यान रखना होगा कि -
" द्वार पाल हरि के प्रिय दोऊ । जय अरु विजय जान सब कोऊ ॥"
इसलिए राक्षसों के संहार की लीला करने के लिए प्रभु श्री राम की प्रेरणा से ही यह लीला हुई है अन्यथा भगवती सीता के विषय में प्रभु श्री हनुमान जी कहते हैं -"कालरात्रीति तां विद्धि सर्व लंका विनाशिनीम् "
भृकुटि विलास जासु जग होई ।राम बाम दिशि सीता सोई ॥
इसलिए माता सीता का हरण लीला मात्र ही है इससे अधिक कुछ भी नहीं है सोच पाना संभव ही नहीं था । भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक महात्मा सूरदास जी लिखते हैं कि त्रिजटा ने रावण से एक बार आकर कह दिया कि सीता आप किसी भी कीमत पर स्वीकार करने को तैयार नहीं है -रावण ने हँसते हुए त्रिजटा से कहा कि जिस दिन सीता प्रबु श्री राम के अतिरिक्त किसी और को स्वीकार कर लेंगीं उस दिन तीनों लोक नष्ट हो जाएँगे यथा -
"जौ पै सीता सत टरै तो सात भुवन जरि जाइ । "
इसके साथ ही रावण ने ही त्रिजटा को माता सीता की सेवा करने के लिए प्रेरित किया था आदि आदि और भी बहुत कुछ है इस पर तो हमारी किताब भी है -
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