किसानों की जिंदगी की कीमत इतनी कम क्यों हैं ?और नेता एवं बाबा इतने बहुमूल्य क्यों हैं जो उन्हें तो चाहिए सिक्योरिटी किन्तु किसानों नहीं आखिर क्यों ?
किसानों की सुरक्षा के लिए आखिर क्या हैं इंतजाम ?और नेताओं बाबाओं को आखिर क्यों चाहिए सिक्योरिटी ?
नेता अपना घर भर रहे हैं और बाबा अपने आश्रम !फिर इन्हें क्यों चाहिए अलग से सिक्योरिटी ?देश की जनता आखिर इनके अपव्ययों को क्यों बर्दाश्त करे ?ये दोनों देश के लिए कर आखिर क्या रहे हैं जबकि किसान आज भी देश की भूख मिटा रहा है उसकी इतनी उपेक्षा क्यों ?
देश का किसान मजदूर तथा सभी प्रकार के आम आदमियों के लिए आखिर सुरक्षा की व्यवस्था क्या है और जो है उसे सरकार यदि नेताओं और बाबाओं के लिए पर्याप्त नहीं मानती है तो ऐसी सुरक्षा व्यवस्था को सरकार किसानों या आम जनता के लिए कैसे पर्याप्त मानती है ! जिस सुरक्षा से देश के नेता और बाबा अपने को सुरक्षित नहीं मानते इसीलिए उन्हें अलग से सिक्योरिटी चाहिए होती है उस सुरक्षा के भरोसे किसान कैसे सुरक्षित माने जा सकते हैं ! किसानों मजदूरों आम आदमियों की जिंदगी के प्रति इतनी उपेक्षा की भावना आखिर क्यों है ?
समाज को समझाने के लिए नेता संविधान(कानून व्यवस्था ) की दुहाई देते हैं और बाबा भगवान की किंतु जब अपने पर बन आती है तो नेताओं का भरोसा कानून व्यवस्था से उठ जाता है और बाबाओं का भगवानों से और दोनों अपने लिए सिक्योरिटी माँगने लगते हैं आखिर क्यों ?
धिक्कार है ऐसे नेताओं एवं धार्मिक लोगों को जो राष्ट्रवाद और धर्मवाद के नाम पर दूसरों को आग में कुदाने के लिए तो बहादुरी की बड़ी बड़ी बातें करते हैं किंतु जब बात अपने पर आती है तो अच्छे अच्छे आश्रमों में रहते हुए भी सरकारी सिक्योरिटी की खोली में घुस जाते हैं ऐसे नेताओं और बाबाओं को अलग से सिक्योरिटी क्यों चाहिए बाबाओं और बल लगते हैंअगर ऐसे धार्मिक लोगों को
नकली डरपोक साधुओं की सुरक्षा सरकार भरोसे जबकि चरित्रवान तपस्वी संतों के भरोसे सरकारें क्या सारा संसार सुरक्षित रहता है !
जिन्हें भगवान पर भरोसा नहीं रहा फिर साधू किस बात के !
भगवान भरोसे रहने वाला किसान ऐसे साधुओं से लाख गुना अच्छा है जबकि खेतों और जंगलों
भगवान पर भरोसा तो करता है जो अच्छे अच्छे आश्रमों में भी दूसरी और किसान भगवन भरोसे रहता है
इनसे तो लाख गुना वो किसान अच्छा है जो पूष माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में खुले जंगल में रात में भी काम किया करता है कई बार हिंसक जीव जंतु भी घुस आते हैं किन्तु यदि उससे कोई पूछे कि ऐसी अँधेरी रात्रि में आप अकेले हो अगर शेर आ जाए तो आप क्या करोगे !तो वो कितने भरोसे से कहता कि अभी तक भगवान बचाते रहे हैं आगे भी उन्हीं के भरोसे हैं क्या भगवान पर ऐसा विश्वास दिखता धार्मिक लोगों में !
पूष माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में जिस दिन गंभीर गर्जन के साथ बरस रहे होते हैं बादल गिर रहे होते हैं ओले कड़क रही होती है बिजली इन सबके बीच खुले जंगलों के बीच खेतों खलिहानों में अपनी कटी हुई पसल समेटने के लिए निकल पड़ता है किसान अँधेरी रात में ऐसे अपनी जिंदगी पर खेलने वाले किसानों के लिए सरकार के द्वारा क्या सिक्योरिटी की ब्यवस्था की गई है ?
सावन भादौं (जुलाई अगस्त )के महीनों में जब दिन में ही रात लगने लगती है उस ऋतु की अँधेरी डरावनी रातों में बढ़ी घासों कारण खेत और मेड़ों का अंतर कर पाना कठिन हो जाता है जहाँ किस कदम पर कौन कितना जहरीला साँप बिच्छू काट ले या मक्का ज्वार बाजरा अरहर गन्ना ढेंचा जैसी फसलें जो आदमी के शिर से ऊपर निकल जाती हैं ऐसी फसलों से कहाँ कब इतना भयानक जानवर निकल आवे हर और जीवन लीला समाप्त कर दे ये सब खतरे जानते हुए भी किसान अपनी फसल को बचाने के लिए कंधे पर फरुहा रखकर निकल पड़ता है अपने खेतों से पानी निकलने और फसल बचने के लिए ऐसे किसानों को सरकार कितनी देती है सिक्योरिटी ?
सरकारी आफिसों ब्लॉक,बैंक,डाकखाना,तहसील,पुलिस आदि सरकार के गैर जिम्मेदार विभागों से कभी कोई आता है धमका कर या कोई नोटिस थम्हा कर चला जाता है अपना काम काज छोड़कर वो तपस्वी किसान आफिसों आफिसों में अलग अलग बाबुओं के पास भटकता घूमता है जहाँ आदतन सरकारी लोग किसी और बाबू का नाम बताकर या फोन नंबर देकर आगे टरका देते हैं अक्सर अंग्रेजी न जानने वाले किसान वो कागज लिए दर दर भटकते रहे होते हैं किंतु बिना पैसे दिए लगभग कहीं सुनवाई नहीं होती और देश के अन्नदाता उन तपस्वी किसानों से सरकारी विभागों के लोग बहुत गंदा बर्ताव करते हैं किसान का अपना खेत लेखपाल गलती या साजिश से किसी और के नाम चढ़ा देता है उसे ठीक करने के हजारों रूपए माँगता है !खाद जिसका जितना सोर्स उसको उतनी खाद मिलती है !
ला वो किसान में अपने रोजमर्रा के कामों के लिए किसान जाता है किंतु सरकारी
क्या देती है निकल पड़ता कब फसलों फसलों
क्या सिक्योरिटी आखिर क्या सिक्योरिटी होती भी काम करने वाले किसान
के बलपर जिंदगी ढोते हैं जबकी धुओं सुरक्षा सरकार धू बाबा लोग सरकारी सुरक्षा के भरोसे रहते
नकली संन्यासी सरकारी सुरक्षा के भरोसे जीते हैं जबकि असली संन्यासियों की ईच्छा से सरकारें बनते बिगड़ती रहती हैं !
नकली संन्यासियों को भगवान पर भरोसा नहीं होता है इसलिए ये बड़े बड़े नगरों शहरों महलों रजवाड़ों में भी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे ही जिन्दा रहते हैं जबकि असली संन्यासी भगवान के भरोसे ही भयानक जीव जंतुओं के बीच बियावान जंगलों में तपस्या करते हुए आनंद करते रहते हैं ! ऐसे स्वाभिमानी लोगों के आशीर्वाद के बल पर बड़े बड़े राजप्रासादों में राजा लोग सुरक्षित रहते रहे हैं जिनके आशीर्वाद और शाप दोनों में बल हुआ करता था उन चरित्रवान तपोमय देव तुल्य संन्यासी महापुरुषों की प्रजाति ही समाप्त होने की कगार पर है ।
असली शास्त्रीय संन्यासियों के लक्षण
संन्यासियों या किसी भी प्रकार के महात्माओं को काम क्रोध लोभ मोह मद मात्सर्य आदि विकारों पर नियंत्रण तो रखना ही चाहिए यदि पूर्ण नियंत्रण न रख सके तब भी प्रयास तो
पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि
लकड़ी की भी बनी हो तो भी वैराग्य व्रती उसका स्पर्श न करे.....! see more...http://bharatjagrana.blogspot.in/2013/06/blog-post_6671.html
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संन्यासियों को अपने नियमों का पालन क्यों नहीं करना चाहिए?
संन्यासियों
के भी कुछ तो नियम होते ही होंगे उनका पालन उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए
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नकली संन्यासी सरकार भरोसे रहते हैं जबकि असली संन्यासियों के भरोसे सरकारें रहती हैं
नकली संन्यासियों को भगवान पर भरोसा नहीं होता है इसलिए ये बड़े बड़े नगरों शहरों महलों रजवाड़ों में भी सरकारी सिक्योरिटी के भरोसे ही जिन्दा रहते हैं जबकि असली संन्यासी भगवान के भरोसे ही भयानक जीव जंतुओं के बीच बियावान जंगलों में तपस्या करते रहते हैं ! ऐसे स्वाभिमानी लोगों के आशीर्वाद के बल पर बड़े बड़े राजप्रासादों में राजा लोग सुरक्षित रहते रहे हैं जिनके आशीर्वाद और शाप दोनों में बल हुआ करता था उन चरित्रवान तपोमय देव तुल्य संन्यासी महापुरुषों की प्रजाति ही समाप्त होने की कगार पर है
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पूरा होना ही चाहिए।वैराग्य की दृढ़ता दिखाने के लिए कहा गया कि स्त्री यदि
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नकली बाबाओं का बढ़ता आर्थिक ,व्यापारिक आदि साम्राज्य एवं राजनैतिक हरकतें शास्त्रीय संतों - संन्यासियों को शर्मिंदा कर रही हैं
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