फर्जी डिग्रियों के मामले में भेद भाव क्यों ?अपराध तो अपराध है उसमें पक्षपात कैसा ?
सरकार को केवल अपनी वाणी से नहीं अपितु अपने आचार व्यवहार से
प्रमाणित करना चाहिए कि वो वास्तव में भ्रष्टाचार के विरुद्ध है आदर्श शासक
को प्रजा प्रजा में भेद शोभा नहीं देता !
फर्जीडिग्री यदि अपराध है तो ज्योतिषी और तांत्रिक तो खुले आम कानून को
दिखा रहे हैं ठेंगा !देखो टीवी चैनलों पर फेंकते हैं कितनी लंबी लंबी !
क्या पढ़े लिखे होते हैं !चैनल वालों को पैसे देकर बकने लगते हैं जो मन आता
है सो ,और भविष्य का भय दिखाकर बेचते हैं नग,नगीने यंत्र तंत्र ताबीज कवच
कुण्डल और भी बहुत कुछ ! उनके कैसे कैसे नाम रख लेते हैं जो शास्त्रों में
कहीं हैं ही नहीं ! जो दैनिक राशिफल दिनभर बकते हैं वो सौ प्रतिशत जूठ होता
है !ऐसी संपूर्ण धोखाधड़ी कोई डिग्री होल्डर ज्योतिष शास्त्रीय विद्वान कभी
नहीं कर सकता और यदि भारत सरकार इनसे निपटने में सक्षम नहीं है तो
संस्कृत विश्वविद्यालय बंद करे सरकार!अन्यथा उनकी दी हुई डिग्रियों की
गरिमा की रक्षा करे !पहले ज्योतिष और आयुर्वेद विश्वास और ईमानदारी पर चलते
थे किंतु इस धोखाधड़ी को रोकने के लिए ही तो BHU जैसे सरकारी संस्कृत विश्व
विद्यालयों में ज्योतिष और आयुर्वेद जैसे विषयों में भी डिग्रियों की
व्यवस्था की गई थी आखिर सरकार की उस भावना का सम्मान क्यों न किया जाए !और
जिस कानून का पालन सरकार करवा नहीं सकती उसे बनाने का क्या लाभ ? क्यों
खर्च की जा रही है इसके अध्ययन अध्यापन पर भारी भरकम धनराशि ?टीवी चैनलों
पर सुबह से ज्योतिषीय भविष्य बताने वालों के पास क्या होती हैं ज्योतिष
डिग्रियाँ !उनकी बातें ज्योतिष शास्त्र से कहीं मेल नहीं खातीं,सरकार उनकी
डिग्रियों की जाँच क्यों नहीं करती !see
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