काशी कि हो गरिमा गुरुदेव
बहाते रहे सदा भक्ति की धारा ।
मानस प्रेमियों के सर्वस्व हो
ज्ञानियों के लिए भारी सहारा ॥
कोइ गीत नहीं संगीत नहीं
पर मानस को हृदयों में उतारा ।
'मानस रत्न' के पुण्य पदों में
हो स्वीकृत कोटि प्रणाम हमारा ॥
हे गुरुदेव ! हो आयु अनंत
रहो 'तुलसी' कि ध्वजा फहराते ।
स्वस्थ शरीर रखें सदा शंभु
श्री राम कृपा से रहो मुसकाते ॥
आपकी वाणी प्रसाद को पाकर
हैं कितने जन मानस गाते ।
दिव्य तपोमय जीवन आपका
होवे सुदीर्घ सदासुख पाते ॥
ऐसी कथा न सुनी कबहूँ कतौ
जैसी कथा गुरुदेव ने गाई ।
भाव के भीतर भाव छिपे
धनि मानस ये तुलसी कि लिखाई ॥
धारा प्रवाह कथा कविता
श्लोक जड़ें कहुँ शैली सुहाई ।
वाणी पे नाचत देखी है शारदा
सो छवि आजु लौं भूलि न पाई ॥
'श्री नाथ' गुरूजी अनाथन्ह की
अँगुरी गहि 'मानस' पंथ चलाए ।
बोलिबोहू जिनको दुष्वार
कथा कहिबो तिन्हैं घेरि सिखाए ॥
काशी में होती कथा जब देखी
तो वक्तन्ह 'संग फिरहिं डोरियाए '।
वो तप तेज वो भाषा वो भाव कि
'ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ '॥
'श्री नाथ' गुरूजी अनाथन्ह की
अँगुरी गहि 'मानस' पंथ चलाए ।
बोलिबोहू जिनको दुष्वार
कथा कहिबो तिन्हैं घेरि सिखाए ॥
काशी में होती कथा जब देखी
तो वक्तन्ह 'संग फिरहिं डोरियाए '।
वो तप तेज वो भाषा वो भाव कि
'ठवनि जुबा मृगराजु लजाएँ '॥
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें