गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

गोभक्षी भेड़ियों के साथ कैसे किया जाए इंसानों जैसा व्यवहार ! गाय खोई खाने पीने की वस्तु है क्या !

  पहले  राक्षसों के राज्य में सताया जाता था गायों को तब गायों की रक्षा के लिए ही तो भगवान अवतार लिया करते थे और राक्षसों का संहार किया करते थे ऐसा शास्त्रों में लिखा हुआ है भगवान कृष्ण की गौ सेवा सारा विश्व जनता है गोपालन या गौशालाएँ गो दुग्ध के लिए बनाई जाती थीं न कि गोमांस के लिए । गो सेवा जैसे शब्द अनंत काल से भारतीय संस्कृति की धरोहर बने हुए हैं इसके बाद भी उन दुलारी पियारी गउओं को खाने वाले राक्षस आज हमें समझा रहे हैं कि पुराने जवाने में ऋषि मुनि भी गौएँ खाया करते थे !कितना बड़ा झूठ है यह ऐसे लोगों पर गोहत्या के लिए उकसाने जैसा केस दायर किया जाना चाहिए और होनी चाहिए कठोर कानूनी कार्यवाही !
       दूसरी बात कुछ गोभक्षी राक्षस तर्क देते हैं कि कोई क्या खाएगा ये उसका अपना विषय है किसी से पूछ के खाएगा क्या !
    बंधुओ !क्या खाएगा ये तो नहीं पूछना पड़ेगा किंतु किसे खाएगा ये तो चिंतनीय है ऐसे कैसे कोई किसी को खा जाएगा !कल कोई किसी मनुष्य को मार के खा जाएगा तो भी क्या यही नियम लागू होगा !हिंदू जब चिल्ला  चिल्ला कर कह रहा है कि गाय हमारी माता है फिर भी ये बात गो भक्षी राक्षसों को समझ में क्यों नहीं आ रही है आखिर कोई तो कारण होगा जब हिन्दू ऐसा कह रहे हैं अगर गाय पशु ही होती तो हिन्दू उसे माँ क्यों कहने लगते !
    गोभक्षक  भेड़िया संस्कृति बंद होनी   चाहिए !अन्यथा कैसे सुरक्षित रख पाओगे अपनी अपनी बहू बेटियों को !
    जो स्वेच्छाचारी राक्षस लोग आज गायों को मनमाने ढंग से खाने की वकालत करते दिख रहे हैं ऐसे ही निरंकुश लोग कल सेक्स के विषय में भी स्वेच्छाचारी हो जाएँगे आखिर वो भी तो उनकी ईच्छा है यदि भोजन संबंधी स्वाद के शौकीन लोग अपनी सेक्स भावना पर लगाम  लगाना क्यों पसंद करेंगे ! ऐसी स्वतंत्र प्रवृत्ति के लोग जिसे देखेंगे अच्छा लगा या लगी ये भेडिए उसी के चिपक लेंगे आखिर तब कैसे रोका जा सकेगा उन्हें !
गो दूध पीने वाले देवताओं ने गोमांस खाने वाले राक्षसों का मान मर्दन हमेंशा किया है !आज फिर राक्षस खाए जा रहे हैं गउएँ और संस्कृति रक्षा के नाम पर हम रावण के पुतले ही जलाते रहेंगे क्या ?इन राक्षसों से आखिर कब निपटेंगे !
    बंधुओ !गायों का दूध संपूर्ण आहार भी है और औषधि भी !उसे नष्ट किए दे रहे हैं आज राक्षस ! 
     इस सृष्टि का सञ्चालन करने के लिए गो दुग्ध की बहुत बड़ी भूमिका है आदिकाल में जब सृष्टि बनी थी तब दुनियाँ में खाने पीने का सामान नहीं था उस समय गायों ने ही अपना दुग्ध पिलाकर सभी जीवों को जीवन दान दिया था तब केवल गउओं का ही सहारा था उस समय किसी और के दूध की व्यवस्था भी नहीं थी इसीलिए गायों को न केवल माता कहा जाने लगा अपितु उन्हें पूजा भी जाने लगा !गायों ने अन्न उपजाने के लिए अपने बछड़ों को लगाया वो न केवल खेत जोतते थे अपितु जरूरी सामान इधर उधर ले जाने में बड़ी मदद करने लगे !इससे धीरे धीरे जिंदगी आसान होते चली गई !
     उसी समय से मानवता के शत्रु राक्षसों ने मनुष्य जाति  को समाप्त करने के लिए संकल्प सा ले लिया है उनका कहना है कि अपने धर्म की रक्षा करो और उनका अपना धर्म क्या है रावण ने अपने प्रजाजनों को समझाते हुए तीन काम करने को कहे -
      दूसरों की  स्त्रियों से बलात्कार करो -'गमनं व परस्त्रीणां '    
      जीवित पशुओं को आग में फ़ेंक दो -'गलं जग्राह जीवतः'
      दूसरों का धन छीन लो -'पर द्रव्यं प्रमथ्य च'
     उसी रावण के द्वारा समझाई हुई इन्हीं तीनों बातों का पालन आज भी रावण के अनुयायी करते चले आ रहे हैं तथाकथित प्यार के जाल में फँसा कर  बहू बेटियों से बलात्कार कर रहे हैं मानवाधिकारों की रक्षा का हवाला देकर गउएँ खाये जा रहे  हैं ,लूट घसोट और भ्रष्टाचार के द्वारा भले लोगों से धन छीन रहे हैं ये लोग ! रावण भी यही तीनों काम करता था !
       इन्हीं अत्याचारों का अंत करने के लिए प्रभु श्री राम ने अवतार लिया था -         'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
     उन राक्षसों के अनुयायियों ने आज भी तीन काम चला रखे हैं पहला काम गायों की हत्या करो उससे बैल नहीं मिलेंगे खेती नहीं हो पाएगी तो मनुष्य भूख से ब्याकुल होंगे उस समय गौएँ अपने दूध से उनका पोषण न कर सकें इसलिए गौओं को पहले ही मार कर खा जाओ !इससे मनुष्यों को दूध दही मिलेगा ही नहीं वो स्वतः ही मर जाएँगे !बंधुओ !आज भी राक्षसी संस्कृति के लोग उसी काम में लगे हैं आप कल्पना कीजिए कि यदि किसी कारण से प्रकृति प्रदत्त डीजल पेट्रोल नहीं मिल सका तब कैसे होगी खेती कहाँ से मिलेगा अन्न और क्या खाएँगे लोग और बिना खाए जिएँगे कब तक ! राक्षसीवृत्ति के लोग तो फिर भी कुछ समय पार कर लेंगे उनका क्या इमान  धर्म उन्हें खाने के लिए गउएँ नहीं मिलेंगी किसी जीव को खाएँगे वो भी नहीं मिला तो राक्षस लोग आदमियों  को खा जाएँगे इन्हें तो खाने से मतलब ! इसी प्रकार और भी हैं …!
   गो मांस खाने वाले राक्षसों के मानवाधिकार किस बात के ?किसी की हत्या करना या उसका मांस खाना मानवाधिकार नहीं अपितु अपराध माना जाना चाहिए !दूध दिनों दिन महँगा होता जा रहा है फिर भी राक्षस
+    करहिं अनीति जाय नहिं  बरनी ।सीदहिं विप्र धेनु सुर धरनी ॥ 
किसी कमजोर प्राणी का जीवन छीनने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए !
  इसलिए गो रक्षा की उम्मींद राक्षसों से क्यों ?कोई मनुष्य गो मांस खाएगा ही क्यों?जो मनुष्य ही नहीं उसके मानवाधिकार कैसे?गोमांस पर प्रतिबंध से परेशान मनुष्यों के शरीरों में घुसे भेड़ियों को भारी दुःख ऐसे पापियों को आज मानवाधिकारों की चिंता सता रही है !धिक्कार !!

एक ओर गौ माता की जयकारों के नारे लग रहे हैं तो दूसरी ओर गऊओं की गर्दनों पर आरे चल रहे हैं !धिक्कार है हमारे ऐसे गौ प्रेम को ! 

     हममें से बहुत लोग ऐसे हैं जो गौ रक्षा के नाम पर बड़े बड़े संस्थान या संस्थाएँ आदि चलाते हैं इसके नाम पर चंदा इकठ्ठा करते हैं उस चंदे से अपने लिए कारें खरीदते हैं आश्रमों के लिए जमीनें खरीदते हैं उसी पैसे से आश्रम बनते हैं संगमरमर लग रहा होता है उच्च कुटी की सारी सुख सुविधाओं की व्यवस्थाएँ होती हैं गो रक्षा के नाम पर बैनर पोस्टर बनते हैं प्रचार प्रसार होता हैं कार्यक्रम किए जाते हैं नेता खूँटा बोलाए जाते हैं वो भी कुछ बोल बककर चले जाते हैं दस बीस गौएँ आश्रमों में रख लेते हैं उन्हें दिखा दिखाकर भीख माँगने के लिए जिन्हें किसी दाता को देखकर गुड़  खिलाया जाता है । क्या यही हमारी गो सेवा है !आखिर ये मक्कारी क्यों ?गायों की गर्दनों पर आरे चलाने वालों से हम कम दोषी नहीं हैं यदि गो रक्षा के नाम पर धन माँग माँग कर और उसे अपनी एय्याशी पर खर्च करते हैं !यदि चंदा इकठ्ठा करते हैं तो आखिर ऐसा जन समुदाय क्यों नहीं तैयार किया जाता है जिससे सरकार पर दबाव बनाया जा सके और बंद कराई जा सकें गोहत्याएँ !

      यदि हम सनातन धर्मी हिन्दू हैं और हम लोग गाय को माता मानते हैं तो  हिन्दुओं की वही गौ माता वर्षों से काटी जा रही है,यह हम सबको पता है  हमें यह भी पता है कि हम संगठित होकर बहुत कुछ कर सकते हैं किन्तु हम न जाने किस भय से मौन हैं ,हम सह रहे हैं, फिर भी हम न केवल जिन्दा हैं अपितु हम स्वस्थ हैं प्रसन्न भी हैं, हम सब सुख भी भोग रहे हैं, धिक्कार है हमारे ऐसे गौ प्रेम को ! क्या हमारे अपने सगे सम्बन्धियों के साथ इसीप्रकार का दुर्व्यवहार हो रहा होता तो भी हम ऐसे ही कायरता पूर्वक सह जाते !यदि हाँ तो लानत है हमारे पौरुष को, और यदि नहीं तो बंद कर देना चाहिए हमें गाय को माता कहना अन्यथा समाज हमारी इस कायरता पर न केवल लज्जित होगा अपितु हँसेगा भी कि जो हिन्दू माता मानी जाने वाली अपनी गायों की रक्षा नहीं कर सका उससे भारत माता और धरती माता क्या आशा करे !

   कई संगठन और लोग गौ  नाम पर विभिन्न मंत्रालयों और सरकारों के लिए केवल पत्र लिखा करते हैं और उनकी कापियाँ लोगों को दिखा दिखाकर वसूला करते हैं समाज से चंदा ,जनता और यजमानों को देखकर खिलाने लगते हैं गायों को गुड़ ताकि दोबारा चंदा माँगने जाएँ तो वो लोग मना न करें क्योंकि गुड़  खिलाते देखा जो है। 

     एक गौ भक्त सज्जन हमारे पास आए गायों की रक्षा पर कहीं संगोष्ठी करने जा रहे थे तो हम से कहने लगे कि आपको भी चलना है मैंने पूछा अभी तक गो रक्षा के विषय में आपने क्या क्या किया है उन्होंने कई संगोष्ठियां गिनाईं साथ ही बताया कि उन्होंने गौ रक्षा के लिए प्रधान मंत्री जी को पत्र भी लिखा है तो हमने कहा कि पत्र तो उन लोगों ने भी लिखे होंगे  जो गो हत्या में सम्मिलित होंगें क्योंकि उनकी भी कुछ समस्या होगी तभी तो काटते हैं गौएँ और मोदी जी को प्रधान मंत्री होने के नाते सुननी उनकी भी पड़ेगी । 

    इसलिए अब गौ भक्त सनातन हिन्दुओं की ओर से सामूहिक रूप से कोई ऐसा कदम उठाना पड़ेगा  जिससे सरकारों को ये समझ में भी आना चाहिए कि गो हत्या से हिन्दू बेचैन हैं । गायों की सुरक्षा के लिए कोई संस्था या संस्थान बना लेना , कुछ बैनर पोस्टर बनाकर गोरक्षक के रूप में अपनी पहचान बना लेना , कुछ लोगों से चंदा इकठ्ठा करने लग जाना,वर्ष में एक दो बड़े सम्मलेन करके कुछ बड़े बड़े लोगों के भाषण करवा देना, कुछ मंत्रियों के साथ फोटो खिंचवा लेना आदि सब कुछ किया जा सकता है किन्तु इस सारी  गौ सेवा की पोल तब खुल जाती है जब कोई बड़ा दानी आया हुआ देखकर वो तथाकथित गो भक्त गायों को गुड़ खिलाने लग जाते हैं वो सम्पन्न व्यक्ति भी यह समझ जाता है कि यह सारा प्रदर्शन मेरे लिए किया जा रहा है आखिर वो भी व्यापारी आदमी हैं उन्हें भी ऐसी गतिविधियों से दिन में कई बार गुजरना पड़ता है । 

           इसलिए मेरा निवेदन मात्र इतना है कि गो रक्षा के लिए समर्पित भावना से प्रयास किया जाना चाहिए !

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