पहले राक्षसों के राज्य में सताया जाता था गायों को तब गायों की रक्षा के लिए ही तो भगवान अवतार लिया करते थे और राक्षसों का संहार किया करते थे ऐसा शास्त्रों में लिखा हुआ है भगवान कृष्ण की गौ सेवा सारा विश्व जनता है गोपालन या गौशालाएँ गो दुग्ध के लिए बनाई जाती थीं न कि गोमांस के लिए । गो सेवा जैसे शब्द अनंत काल से भारतीय संस्कृति की धरोहर बने हुए हैं इसके बाद भी उन दुलारी पियारी गउओं को खाने वाले राक्षस आज हमें समझा रहे हैं कि पुराने जवाने में ऋषि मुनि भी गौएँ खाया करते थे !कितना बड़ा झूठ है यह ऐसे लोगों पर गोहत्या के लिए उकसाने जैसा केस दायर किया जाना चाहिए और होनी चाहिए कठोर कानूनी कार्यवाही !
दूसरी बात कुछ गोभक्षी राक्षस तर्क देते हैं कि कोई क्या खाएगा ये उसका अपना विषय है किसी से पूछ के खाएगा क्या !
बंधुओ !क्या खाएगा ये तो नहीं पूछना पड़ेगा किंतु किसे खाएगा ये तो चिंतनीय है ऐसे कैसे कोई किसी को खा जाएगा !कल कोई किसी मनुष्य को मार के खा जाएगा तो भी क्या यही नियम लागू होगा !हिंदू जब चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि गाय हमारी माता है फिर भी ये बात गो भक्षी राक्षसों को समझ में क्यों नहीं आ रही है आखिर कोई तो कारण होगा जब हिन्दू ऐसा कह रहे हैं अगर गाय पशु ही होती तो हिन्दू उसे माँ क्यों कहने लगते !
गोभक्षक भेड़िया संस्कृति बंद होनी चाहिए !अन्यथा कैसे सुरक्षित रख पाओगे अपनी अपनी बहू बेटियों को !
जो स्वेच्छाचारी राक्षस लोग आज गायों को मनमाने ढंग से खाने की वकालत करते दिख रहे हैं ऐसे ही निरंकुश लोग कल सेक्स के विषय में भी स्वेच्छाचारी हो जाएँगे आखिर वो भी तो उनकी ईच्छा है यदि भोजन संबंधी स्वाद के शौकीन लोग अपनी सेक्स भावना पर लगाम लगाना क्यों पसंद करेंगे ! ऐसी स्वतंत्र प्रवृत्ति के लोग जिसे देखेंगे अच्छा लगा या लगी ये भेडिए उसी के चिपक लेंगे आखिर तब कैसे रोका जा सकेगा उन्हें !
गो दूध पीने वाले देवताओं ने गोमांस खाने वाले राक्षसों का मान मर्दन हमेंशा किया है !आज फिर राक्षस खाए जा रहे हैं गउएँ और संस्कृति रक्षा के नाम पर हम रावण के पुतले ही जलाते रहेंगे क्या ?इन राक्षसों से आखिर कब निपटेंगे !
दूसरी बात कुछ गोभक्षी राक्षस तर्क देते हैं कि कोई क्या खाएगा ये उसका अपना विषय है किसी से पूछ के खाएगा क्या !
बंधुओ !क्या खाएगा ये तो नहीं पूछना पड़ेगा किंतु किसे खाएगा ये तो चिंतनीय है ऐसे कैसे कोई किसी को खा जाएगा !कल कोई किसी मनुष्य को मार के खा जाएगा तो भी क्या यही नियम लागू होगा !हिंदू जब चिल्ला चिल्ला कर कह रहा है कि गाय हमारी माता है फिर भी ये बात गो भक्षी राक्षसों को समझ में क्यों नहीं आ रही है आखिर कोई तो कारण होगा जब हिन्दू ऐसा कह रहे हैं अगर गाय पशु ही होती तो हिन्दू उसे माँ क्यों कहने लगते !
गोभक्षक भेड़िया संस्कृति बंद होनी चाहिए !अन्यथा कैसे सुरक्षित रख पाओगे अपनी अपनी बहू बेटियों को !
जो स्वेच्छाचारी राक्षस लोग आज गायों को मनमाने ढंग से खाने की वकालत करते दिख रहे हैं ऐसे ही निरंकुश लोग कल सेक्स के विषय में भी स्वेच्छाचारी हो जाएँगे आखिर वो भी तो उनकी ईच्छा है यदि भोजन संबंधी स्वाद के शौकीन लोग अपनी सेक्स भावना पर लगाम लगाना क्यों पसंद करेंगे ! ऐसी स्वतंत्र प्रवृत्ति के लोग जिसे देखेंगे अच्छा लगा या लगी ये भेडिए उसी के चिपक लेंगे आखिर तब कैसे रोका जा सकेगा उन्हें !
गो दूध पीने वाले देवताओं ने गोमांस खाने वाले राक्षसों का मान मर्दन हमेंशा किया है !आज फिर राक्षस खाए जा रहे हैं गउएँ और संस्कृति रक्षा के नाम पर हम रावण के पुतले ही जलाते रहेंगे क्या ?इन राक्षसों से आखिर कब निपटेंगे !
बंधुओ !गायों का दूध संपूर्ण आहार भी है और औषधि भी !उसे नष्ट किए दे रहे हैं आज राक्षस !
इस सृष्टि का सञ्चालन करने के
लिए गो दुग्ध की बहुत बड़ी भूमिका है आदिकाल में जब सृष्टि बनी थी तब
दुनियाँ में खाने पीने का सामान नहीं था उस समय गायों ने ही अपना दुग्ध
पिलाकर सभी जीवों को जीवन दान दिया था तब केवल गउओं का ही सहारा था उस समय
किसी और के दूध की व्यवस्था भी नहीं थी इसीलिए गायों को न केवल माता कहा
जाने लगा अपितु उन्हें पूजा भी जाने लगा !गायों ने अन्न उपजाने के लिए अपने
बछड़ों को लगाया वो न केवल खेत जोतते थे अपितु जरूरी सामान इधर उधर ले जाने
में बड़ी मदद करने लगे !इससे धीरे धीरे जिंदगी आसान होते चली गई !
उसी समय से मानवता के शत्रु
राक्षसों ने मनुष्य जाति को समाप्त करने के लिए संकल्प सा ले लिया है उनका
कहना है कि अपने धर्म की रक्षा करो और उनका अपना धर्म क्या है रावण ने
अपने प्रजाजनों को समझाते हुए तीन काम करने को कहे -
दूसरों की स्त्रियों से बलात्कार करो -'गमनं व परस्त्रीणां '
जीवित पशुओं को आग में फ़ेंक दो -'गलं जग्राह जीवतः'
दूसरों का धन छीन लो -'पर द्रव्यं प्रमथ्य च'
उसी रावण के द्वारा समझाई हुई इन्हीं तीनों बातों का पालन आज भी रावण के
अनुयायी करते चले आ रहे हैं तथाकथित प्यार के जाल में फँसा कर बहू
बेटियों से बलात्कार कर रहे हैं मानवाधिकारों की रक्षा का हवाला देकर गउएँ
खाये जा रहे हैं ,लूट घसोट और भ्रष्टाचार के द्वारा भले लोगों से धन छीन
रहे हैं ये लोग ! रावण भी यही तीनों काम करता था !
इन्हीं अत्याचारों का अंत करने के लिए प्रभु श्री राम ने अवतार लिया था - 'विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार।
उन राक्षसों के अनुयायियों ने
आज भी तीन काम चला रखे हैं पहला काम गायों की हत्या करो उससे बैल नहीं
मिलेंगे खेती नहीं हो पाएगी तो मनुष्य भूख से ब्याकुल होंगे उस समय गौएँ
अपने दूध से उनका पोषण न कर सकें इसलिए गौओं को पहले ही मार कर खा जाओ
!इससे मनुष्यों को दूध दही मिलेगा ही नहीं वो स्वतः ही मर जाएँगे !बंधुओ
!आज भी राक्षसी संस्कृति के लोग उसी काम में लगे हैं आप कल्पना कीजिए कि
यदि किसी कारण से प्रकृति प्रदत्त डीजल पेट्रोल नहीं मिल सका तब कैसे होगी
खेती कहाँ से मिलेगा अन्न और क्या खाएँगे लोग और बिना खाए जिएँगे कब तक !
राक्षसीवृत्ति के लोग तो फिर भी कुछ समय पार कर लेंगे उनका क्या इमान धर्म
उन्हें खाने के लिए गउएँ नहीं मिलेंगी किसी जीव को खाएँगे वो भी नहीं मिला
तो राक्षस लोग आदमियों को खा जाएँगे इन्हें तो खाने से मतलब ! इसी प्रकार
और भी हैं …!
गो मांस खाने वाले राक्षसों के मानवाधिकार किस बात के ?किसी की हत्या करना
या उसका मांस खाना मानवाधिकार नहीं अपितु अपराध माना जाना चाहिए !दूध
दिनों दिन महँगा होता जा रहा है फिर भी राक्षस
+ करहिं अनीति जाय नहिं बरनी ।सीदहिं विप्र धेनु सुर धरनी ॥
किसी कमजोर प्राणी का जीवन छीनने का अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए !
इसलिए गो रक्षा की उम्मींद राक्षसों से क्यों ?कोई मनुष्य गो मांस खाएगा ही क्यों?जो मनुष्य ही नहीं उसके मानवाधिकार कैसे?गोमांस पर प्रतिबंध से परेशान मनुष्यों के शरीरों में घुसे भेड़ियों को भारी दुःख ऐसे पापियों को आज मानवाधिकारों की चिंता सता रही है !धिक्कार !!
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