रविवार, 6 सितंबर 2015

साधक संतों एवं जन सेवकनेताओं के दर्शन दुर्लभ ! पाखंडयुक्त धर्म और भ्रष्टाचारयुक्त राजनीति खाए जा रही है देश !

ईश्वरभक्त संत और देशभक्त नेताओं को पाखंडियों  एवं भ्रष्टाचारियों ने पीछे धकेल दिया है ! अब समाज  एवं देश की सेवा कौन करे ?
 भ्रष्टनेता यदि संन्यास लेता है तो भ्रष्ट संन्यासी....   आधुनिक संतों और आधुनिक नेताओं में बहुत सारी समानताएँ  होती हैं जैसे रैलियॉं दोनों के लिए बहुत जरूरी होती हैं।अपनी अच्छी बुरी कैसी भी बात को समाज पर जबरदस्ती थोपने के लिए भीड़ का सहारा दोनों को लेना पड़ता है।भीड़ को बुलाया तो कुछ और समझाकरके जाता है, भाषण किसी और बात के दिए जा रहे होते हैं, उद्देश्य  कुछ और होता है,परिणाम कुछ और होता है। इसीप्रकार रैली में सम्मिलित होने वाले लोग भी समझने कुछ और आते हैं किंतु समझकर कुछ और चले जाते हैं।जहॉं तक भीड़ की बात है। भीड़ तो पैसे देकर भी इकट्ठी की जा रही है वो समाज का प्रतिनिधित्व तो नहीं कर सकती।जो पैसे देकर भीड़ बुलाएगा वो भीड़ से ही पैसे कमाएगा भी। तो राजनीति या धर्म में भ्रष्टाचार तो होगा ही। किसी भी प्रकार का आरक्षण या छूट के लालची लोग अथवा कर्जा माफ करवाने के शौकीन लोग भ्रष्ट नेताओं को जन्म देते  हैं।इसी प्रकार बहुत सारा पाप करके  पापों से मुक्ति चाहने वाले चतुर लोग ही कुछ भ्रष्ट बाबाओं को जन्म देते हैं।ऐसी परिस्थिति में धर्म और राजनैतिक भ्रष्टाचार के लिए जिम्मेदार आखिर है कौन ?
    उसे पकड़े और सुधारे  बिना भ्रष्टाचार के विरुद्ध खोखले नारे लगाने, नेताओं की तथाकथित पोल खोलने से कुछ नहीं होगा।जब तक भ्रष्ट नेताओं और भ्रष्ट बाबाओं के विरुद्ध संयुक्त जनजागरण अभियान नहीं चलाया जाएगा।तब तक इसे मिटा पाना संभव नहीं है,क्योंकि भ्रष्टाचार सोचा मन से और किया तन से जाता है।सोच पर लगाम लगाने के लिए धर्म एवं उसकी क्रिया पर लगाम लगाने के लिए कानून होता है।धर्म तो धार्मिक लोगों एवं धर्मशास्त्रों के आधीन एवं कानून नेताओं के आधीन हो गया है। ऐसे में किसी एक पर लगाम लगाने पर भी अपराध पर अधूरा नियंत्रण हो पाएगा जो उचित नहीं है।     नेता और तथाकथित संतों में बहुत सारी समानताएँ  होती हैं इन संतों के पास ईश्वर भक्ति नहीं होती है। इन नेताओं में देश  भक्ति नहीं होती है।दोंनों अपने  अनुयायिओं की भीड़ के बल पर फूलते हैं। भीड़ देखकर दोनों  ही पागल हो जाते हैं चाहें वह किराए की ही क्यों न हो । दोनों अनाप सनाप कुछ भी बोलने बकने लगते हैं।दोनों को लगता है कि सारा देश  उनके पीछे ही खड़ा है।दोनों की गिद्धदृष्टि  पराई संपत्ति सहित पराई सारी चीजों को भोगने की होती है।दोनों वेष  भूषा  का पूरा ध्यान रखते हैं एक नेताओं की तरह दिखने की  दूसरा महात्माओं की तरह दिखने की पूरी कोशिश   करता है। दोनों रैलियॉं करने के आदी होते हैं।दोनों मीडिया प्रेमी होते हैं इसलिए पैसे देकर भी दोनों टी.वी.टूबी पर खूब बकते बोलते देखे जा सकते हैं।बातों विद्या तपस्या अादि में दम हो न हो किन्तु दोनों में पैसे का दम जरूर दिखता है पैसे के ही बल पर बोलते हैं। नेता जब भ्रष्ट  होता है तो कहता कि यदि ये आरोप सही साबित हुए तो संन्यास ले लूँ गा।जैसे उसे पता हो कि भ्रष्ट लोग ही संन्यासी होते हैं।मजे की बात यह है कि संन्यासी चुप करके सुना करते हैं कोई विरोध दिखाई सुनाई नहीं पड़ता।इसी प्रकार कोई संन्यासी नेता बन जाता है ,क्योंकि  बिना पैसे ,बिना परिश्रम और बिना जिम्मेदारी के उत्तमोत्तम सुख सुविधाओं का भोग इन्हीं दो जगहों पर संभव है।   
      इसप्रकार धार्मिक लोगों की गतिविधियों को भी शास्त्रीय संविधान की सीमाओं के दायरे में बॉंधकर रखने की भी कोई तो सीमा रेखा होनी ही चाहिए। स्वामी जी रैलियॉं कर रहे हैं, आज स्वामी जी साड़ी बॉंट रहे हैं।स्वामी जी स्वदेशी  के नाम पर सब कुछ बेच रहे हैं , स्वामी जी उद्योगधंधे लगा रहे हैं, स्वामी जी चुनाव लड़ रहे हैं, स्वामी जी मंत्री भी हैं।ऐसे लोगों के पर्दे के पीछे के भी बहुत सारे अच्छे बुरे आचरण देखने सुनने को मिला करते हैं।ये सब गंभीर चिंता के बिषय हैं ।
    इनकी दृष्टि में  क्या सारे पापों का कारण केवल विवाहिता पत्नी ही होती है?केवल विवाहिता पत्नी का परित्याग करके या अविवाहित रह कर हर कुछ कर सकने का परमिट मिल जाता है क्या  इन्हें ?वो कितना भी बड़ा पाप ही क्यों न हो? मन पर नियंत्रण न करने पर कैसे विरक्तता संभव  है?
    साधुत्व के अपने अत्यंत कठोर नियम होते हैं उन्हें हर परिस्थिति में नहीं निभाया जा सकता है जबकि राजनीति हर परिस्थिति में निभानी पड़ती है। अपने सदाचारी तपस्वी संयमी जीवन से सारी समाज को ठीक रखने की जिम्मेदारी संतों की ही है।ऐसे में शास्त्रों एवं संतों की गरिमा रक्षा के लिए शास्त्रीय विरक्त संतों को ही आगे आकर यह शुद्धीकरण करना होगा। साथ ही तथाकथित बाबाओं  पर लगाम कैसे लगे?यह संतों को ही सोचना होगा।जो धार्मिक व्यवसायी लोग कहते हैं कि हमारा गुरुमंत्र जपो सारे पाप नष्ट हो जाएँगे इसका मतलब क्या यह नहीं निकाला जा सकता है कि ये पाप करने का परमिट बाँट रहे हैं ?कितना अभद्र है यह बयान ?               जैसे स्वामी जी के किसी प्रवचन में एक पति पत्नी सतसंग करने गए थे पैसे पास नहीं थे काम धाम चलता नहीं था।सोचा चलो सतसंग से ही शांति मिलेगी। वहॉं जाकर सजे धजे मजनूँ टाइप के बाबा को मुख मटका मटका कर नाचते गाते बजाते या था कथित भोगवत कहते और प्रवंचन करते देखा, बहुत सारा सोना पहने बाबाजी और बहुत सारा ताम झाम देखकर उसने सोचा बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं ,बाबा जी ने  समझादारी से काम लिया है।इस देश  की जनता धर्म केवल सुनना चाहती है सुनाओ दिखाओ अच्छा अच्छा करो चाहे कुछ भी! जो इस देश की जनता को पहचान सका उसने पेट हिलाकर पैसे बना लिए कौन पूछता है कि बाबाजी योग के विषय में आप खुद क्या जानते हैं?बाबाजी को धर्म की बात बताना आता है करते चाहें जो कुछ भी हों इस पर जनता का ध्यान नहीं जाता है। जब बाबाजी का भी कोई उद्योग धंधा तो है नहीं तो बाबा जी ने भी कुछ किया नहीं तो धन आया कहॉं से?आखिर जनता को भी पता है।वैसे भी जो लोग हमारा पेमेंट नहीं देते वो बाबा जी को फ्री में क्यों दे देगें?अब मैं भी वही करूँगा और उसने भी बाबा बनने की ठानी इसप्रकार वह भी अच्छा खासा व्यक्ति धन लोभ  से बाबा बन गया ! क्योंकि अब उसका लक्ष्य धन कमाना ही हो गया था।इसी प्रकार तथाकथित सतसंगों के कई और भी कुसंग होते हैं। इसी जगह यदि किसी चरित्रवान संत का संग होता है तो कई जन्म के कुसंगों का दोष  नष्ट भी हो जाता है किन्तु ऐसे कुसंगों के कारण ही बसों में बलात्कार हो रहे हैं।यदि इन्हें सत्संग माना जाए तो बढ़ रही सतसंगों की भीड़ें आखिर  सतसंगों से सीख क्या रही हैं ?अपराधों का ग्राफ दिनों दिन बढ़ता जा रहा है इसका कारण आखिर क्या है ?      इसी प्रकार नेताओं की एक बार की चुनावी विजय के बाद हजारों रूपए के नेता करोड़ों अरबों में खेलने लगते हैं।इन्हें देखकर भी लोग सतसंगी लोगों की तरह ही बहुत बड़ी संख्या में प्रेरित होते हैं।ईश्वर भक्त संतों एवं देश भक्त नेताओं के दर्शन दिनों दिन दुर्लभ होते जा रहे हैं।बाकी राजनेताओं की बिना किसी बड़े व्यवसाय के दिनदूनी रात चैगुनी बढ़ती संपत्ति सहित सब सुख सुविधाएँ  बढ़ते अपराधों की ओर मुड़ते युवकों के लिए संजीवनी साबित हो रही हैं ।
राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान की सेवाएँ
यदि आप ऐसे किसी बनावटी आत्मज्ञानी, बनावटी ब्रह्मज्ञानी, ढोंगी,बनावटी तान्त्रिक,बनावटी ज्योतिषी, योगी उपदेशक या तथाकथित साधक आदि के बुने जाल में फँसाए जा  चुके हैं तो आप हमारे यहाँ कर सकते हैं संपर्क और ले सकते हैं उचित परामर्श ।
       कई बार तो ऐसा होता है कि एक से छूटने के चक्कर में दूसरे के पास जाते हैं वहाँ और अधिक फँसा लिए जाते हैं। आप अपनी बात किसी से कहना नहीं चाहते। इन्हें छोड़ने में आपको डर लगता है या उन्होंने तमाम दिव्य शक्तियों का भय देकर आपको डरा रखा है।जिससे आपको  बहम हो रहा है। ऐसे में आप हमारे संस्थान में फोन करके उचित परामर्श ले सकते हैं। जिसके लिए आपको सामान्य शुल्क संस्थान संचालन के लिए देनी पड़ती है। जो आजीवन सदस्यता, वार्षिक सदस्यता या तात्कालिक शुल्क  के रूप में  देनी होगी, जो शास्त्र  से संबंधित किसी भी प्रकार के प्रश्नोत्तर करने का अधिकार प्रदान करेगी। आप चाहें तो आपके प्रश्न गुप्त रखे जा सकते हैं। हमारे संस्थान का प्रमुख लक्ष्य है आपको अपनेपन के अनुभव के साथ आपका दुख घटाना,बाँटना  और सही जानकारी देना।

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