बुधवार, 6 सितंबर 2023

आर्यावर्त


 
 'सनातन 'पर 'साईंजेहादियों ने किया कब्ज़ा , तब क्यों नहीं याद आया 'सनातन' !
    
     तमिलनाडु के किसी मंत्री ने सनातन धर्म को मिटाने की केवल बात ही कही है |साईं जेहादी तो दिनों दिन मिटाते जा रहे हैं सनातन धर्म को उस पर कोई आवाज क्यों नहीं उठाता है |
    याद रहे कि साईं का नाम तीन बार कहने से दो बार ईसा ईसा (साईंसाईंसाईं) निकलता है ?दूसरीबात साईं सिरडी में उस समय ही क्यों भेजे गए जब अंग्रेज सरकार के विरुद्ध सबसे बड़े आंदोलन 1857 की तैयारी की जा रही थी | उस आजादी के आंदोलन में साईंबाबा की क्या भूमिका थी !सिरडी में साईं को किसने भेजा था ! गरीबों में खिचड़ी बाँटने के काम में साईं को किसने लगाया था इसके लिए पैसे कौन देता था और क्यों देता था ?कोई 16 साल का बच्चा घर छोड़कर कहीं चला जाएगा तो उसके घर वाले उसे खोजेंगे नहीं !उनके माता पिता भाई भतीजे परिवार एवं गॉंव के लोग उनसे मिलने कभी क्यों नहीं आए !ऐसे प्रश्नों का उत्तर खोजना आवश्यक है |
     साईं के गाँव माता पिता धर्म कर्म आदि का पता लगे बिना उन्हें देवता कैसे और किसने बना दिया ! किसी भी धर्म के व्यक्ति के लिए अनिवार्य है कि वो अपने धर्मग्रंथोंकी शिक्षा का परंपराओं का पालन करे साईं ऐसा नहीं करते थे !साधू संत बनने से पहले ही खाने पीने का संयम कर लेना होता है |साईं तो मांस, मछली, तम्बाकू, धूम्रपान आदि सब कुछ करते थे |साईं सनातन धर्म के वेदों पुराणों रामायणों तीर्थों मंदिरों साधूसंतों को नहीं मानते थे |गंगा यमुना में स्नान नहीं करते  थे | मंदिरों में दर्शन पूजन नहीं करते थे! श्री राम जी एवं श्री कृष्ण जी का नाम संकीर्तन न खुद करते थे और न ही इसकी प्रेरणा देते थे | साईं ऐसा कुछ नहीं करते थे जिससे उनका सनातन धर्म से संबंध पता लगे | साईं जिस धर्म के एक भी नियम का पालन नहीं करते थे उस धर्म के मंदिरों में साईं की मूर्तियाँ रखने का औचित्य क्या है ? 
 सनातन के हजारों मंदिरों में 'साईंजेहादियों 'ने कब्ज़ा कर लिया !अब याद आया 'सनातन' !
     साईं या साईंजेहादियों  का हिंदूधर्म से जब कुछ लेना देना ही नहीं है तो साईं प्रतिमाएँ हिंदू मंदिरों में लगवा कौन रहा है ?मंदिरों पर कब्ज़ा करने की साजिश कौन रच रहा है |हजारों हिंदू मंदिरों को गुलाम बनाने का षड्यंत्र किसने रचा है ?सनातन मंदिरों में साईंमूर्तियों को किसने रखवाया और क्यों रखवाया !सनातन धर्म में अपने देवी देवता कम थे क्या !आखिर साईं को बुढ़ापे में गोद लेने की आवश्यकता क्या थी ?
  साईं को श्री राम बनाने की तैयारी है !क्या अयोध्या के श्री राम मंदिर में भी लगेगी साईंमूर्ति !
  सनातन के त्योहार छीन लिए साईंजेहादियों ने तब याद आ रहा है 'सनातन' !  
 साईंराम : जिस साईं का श्री राम और सनातन से कोई संबंध ही नहीं था !उनके नाम के पीछे राम नाम जोड़ने का उद्देश्य क्या है ?
 श्री रामनवमी : जिस साईं का जन्म कब हुआ ये किसी को पता ही नहीं है उसका जन्मदिन श्री रामनवमी को मनाने का उद्देश्य क्या है ?दशहरा ,गुरुपूर्णिमा,दीपावली जैसे सनातन त्योहारों पर साईं जेहादियों के द्वारा कब्ज़ा क्यों किया जा रहा है |अब सनातन याद आ रहा है  !
    साईंजेहादियों ने हिंदुओं से धार्मिक चिन्ह छीन लिए !
      साईं ने तिलक कभी लगाया नहीं अब उनके तिलक लगाने का उद्देश्य क्या है ?साईं ने माला कभी पहनी नहीं फिर  उन्हें माला क्यों  पहना दी गई !साईंबाबा  जब सनातनमंदिरों में कभी गए ही नहीं तो वहाँ  साईंमूर्तियाँ क्यों रखवा  दी गईं !
 क्या आजादी की लड़ाई से घबराकर विदेशियों ने रचाया था साईं षड्यंत्र !
     बताया जाता है कि समूचे भारत वर्ष में 1857 का विद्रोह जैसे ही शुरू हुआ तो अंग्रेज काफी घबरा गए थे,अपनी जमीनी पकड़ बनाए रखने के लिए उन्होंने शिक्षा और दीक्षा अर्थात धर्म को हथियार बनाया था |अंग्रेजी सरकार के पक्ष में वातावरण बनाने के लिए अनेकों गरीब बस्तियों में स्कूल खोले गए और साधू बना बनाकर लोग भेजे गए | जहाँ फ्री में भोजन बँटवाया जाता था और गुप्त रूप से अंग्रेजी सरकार के पक्ष में वातावरण तैयार किया जाता था | जिसका खर्च सरकार बहन किया करती थी | इन स्कूलों और बाबाओं के विषय में किसी को कुछ पता नहीं लगने दिया जाता था | 
    अब सनातन को बचाने के नाम पर सारा ध्यान अयोध्या काशी मथुरा के मंदिरों की मुक्ति की ओर है यह अच्छी बात है,किंतु साईं जेहादियों के द्वारा गुलाम बनाए गए उन लाखों मंदिरों को मुक्त कब कराया जाएगा !हिंदू मंदिरों में श्री राम,कृष्ण,शिव, दुर्गा, गणेश आदि हमारे आराध्य देवी देवताओं की उपस्थिति में साईं को पूजवाया जाता है |   तमिलनाडु के उस मंत्री को तो आज नहीं कल हटाया जा सकता है किंतु सनातन मंदिरों से हटाना साफ करना भविष्य में आसान नहीं होगा ! आखिर ये धार्मिक गुलामी के निशान आखिर कब मिटाए जाएँगे |
 
 
 'सनातन'धर्म  का  हिंदी हिंदू और हिंदुस्तान शब्दों से हुआ है बहुत नुक्सान - ज्योतिष !
     भारत देश और सनातनधर्म हमेंशा धर्मशास्त्रों के हिसाब से चलता रहा है !धर्म शास्त्र संस्कृत भाषा में लिखे हुए थे | इसलिए अपने देश का नाम जब तक भारत और अपने धर्म का नाम सनातन एवं अपनी भाषा संस्कृत जब तक रही है तब तक अपने देश धर्म और भाषा पर कोई आँच नहीं आई |अपने धर्म को जब तक 'सनातनधर्म' कहा जाता रहा तब तक सनातनधर्मियों का बाल भी बाँका नहीं हुआ ! न तो काशी अयोध्या मथुरा के मंदिर तोड़े गए और न ही अपना देश परतंत्र हुआ !इसके बाद योजनाबद्ध ढंग से पहले 'हिंदू' शब्द सनातनधर्मियों के साथ जोड़ा गया, फिर उसी शब्द से भाषा धर्म और देश सबके नाम बदल दिए गए !सनातनधर्मियों का नाम 'हिंदू' और सनातन देश का नाम 'हिंदुस्तान' पड़ते ही सब कुछ बदल गया !
    ज्योतिष की दृष्टि से ह अक्षर बहुत कमजोर प्रजाति का माना जाता है | किसी बहुत तेज तर्रार आदमी का नाम भी ह अक्षर से रख दिया जाए तो वो भी आत्मसम्मान पूर्वक निर्णय करने की क्षमता खो देता है |
     भगवान राम के जन्म का नाम 'ह' अक्षर से ही निकला था किंतु वशिष्ठ जी ने ह अक्षर से उनका नाम न रखते हुए र अक्षर से राम रखा था !राम नाम चित्रा नक्षत्र के तृतीय चरण का है जबकि भगवान् राम का जन्म पुनर्वसु नक्षत्र में हुआ था |ह अक्षर वाले हनुमान जी इतने विद्वान और बलवान होने के बाद भी आजीवन सेवक बने रहे | हर निर्णय दूसरों से पूछ कर लेना पड़ता था | इसीलिए ह अक्षर वाले लोग प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री मंत्री जैसे निर्णायक पदों पर अपने बल पर पहुँच नहीं पाते हैं और यदि पहुँच भी जाएँ तो टिक नहीं पाते हैं |टिकते वही हैं जिनके पास  सक्षम समझदार एवं समर्पित सलाहकार होते हैं !जैसे- सम्राटहर्षबर्द्धन|अच्छे सलाहकारों के अभाव में उसी 'हर्षबर्द्धन' नाम वाले लोग प्रतिष्ठित पदों पर बैठा भी दिए जाएँ तो लंबे समय तक टिक नहीं पाते हैं | कश्मीर समस्या के पीछे ह अक्षर वाले 'हरीसिंह जी "का निर्णय ही तो है | देखो -हस्तिनापुर ! कुल मिलाकर ह अक्षर ज्योतिष की दृष्टि से बहुत कमजोर होता है |इसीलिए हिंदी हिंदू और हिंदुस्तान जैसे शब्दों से अपना बहुत नुक्सान हुआ है | 
 
             हिंदुओं ने चोटी कटवा डाली !किससे पूछकर ?
      हिंदुओं ने अपनों के जन्म मृत्यु दिन तिथियों को छोड़कर तारीखों में मनाना शरू कर दिया ! अपनी आयु के वर्षों में एक गाँठ और लगाकर वर्ष गाँठ मनाने की जगह केक काटनाशुरू कर दिया !दीपक जलाना छोड़कर  मोमबत्ती बुझाना शुरू कर दिया | विवाह के बाद कुल परंपराओं पितृपूजाओं को छोड़कर हनीमून पर जाना शुरू कर दिया | ये सनातन परंपरा में कहा लिखा है फिर भी लोग ख़ुशी ख़ुशी ऐसा कर रहे हैं | उन्हें अपनी छोड़कर दूसरों की परंपराओं का पालन करना अच्छा लगता है |किसी पति या पत्नी को किसी दूसरे की पत्नी या पति पसंद आने लगे तो उसके जो परिणाम होते हैं वही तो हो रहे हैं |
     सनातनधर्मियों के बच्चे अपने धर्म पर अडिग रहते थे ,जबकि हिंदूधर्मियों की कुछ लड़कियाँ लवजेहाद के नाम पर दूसरे धर्मों की ओर रुख करने लगी हैं | हिंदुओं का धर्मपरिवर्तन होने लगा है | प्रश्न ये उठता है कि ऐसे हिंदुओं  का हिंदूधर्म से मोहभंग हो क्यों रहा है ? जो हिंदू धर्म बदलकर किसी दूसरे धर्म में चले गए या जिन लड़कियों ने जेहादियों से विवाह कर लिया हमें केवल वही क्यों दिखाई पड़ रहे हैं| हमें अपने आचरण क्यों नहीं दिखाई दे रहे हैं | हमें अपने परिवारों में सनातन परंपराओं का पालन करना बंद क्यों कर दिया !हमने ऐसा न किया होता तो हमारे बच्चे भी वैसा नहीं करते !
   हिंदुवों को छोड़कर अन्य सभी धर्मों के लोग अपने अपने धर्मग्रंथों की शिक्षा मानते हैं |अपने धार्मिक ग्रंथों एवं चिन्हों के विरुद्ध एक शब्द भी सुन नहीं सकते हैं |इसी का प्रभाव उनके परिवारों पर भी पड़ता है | इससे वह धर्म सुरक्षित रहता है |उनके बच्चे धर्मपरिवर्तन और उनकी बच्चियाँ लवजेहाद में रुचि नहीं लेती हैं |उनके बच्चे अत्यंत गरीबी का जीवन जीकर मलिन बस्तियों में रहकर भी अपने धर्म और वेशभूषा से चिपके रहते हैं |
     हिंदू शब्द आया कहाँ से -
      मोहम्मद गजनी ताकत के बल पर भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार करना और भारत की संपत्ति लूट कर ले जाना चाहता था ।उसने भारत पर पहला आक्रमण सन 1001 में किया था !उसके बाद प्रतिवर्ष भारत पर आक्रमण करने की शपथ ली थी। इसीक्रम में 1015 ईस्वी में उसने कश्मीर पर आक्रमण किया किंतु असफल हुआ  !इसके बाद 1017 ईस्वी में वो अलबरूनी को अपने साथ लेकर आया था !वह भारतीय दर्शन, ज्योतिष, इतिहास, आदि का उत्कृष्ट विद्वान् था ! 1017 से 1020 तक भारत में रहकर अलबरूनी ने भारतीय विद्याओं का न केवल गंभीर अध्ययन किया ,अपितु उसी ने अपनी पुस्तक किताब -उल -हिंद में पहली बार लिखित रूप से हिंदू शब्द का प्रयोग किया था |
 
'सनातनधर्म' को गंगाजमुनीतहजीब के नाम पर बहुत खोखला किया गया है !
     हिंदू लोग धर्मशास्त्रों से ज्यादा गंगाजमुनी तहजीब के हिसाब से चलते हैं |सुनने में यह शब्द बहुत अच्छा लगता है कि गंगाजमुनी तहजीब का मतलब गंगाजमुना की तरह आपस में मिलजुल कर चलना होता होगा ! किंतु वास्तविकता में इसका मतलब ये होता है दूसरे धर्म के लोग अपने धर्म से समझौता नहीं करेंगे तुम अपनी मान्यताएँ छोड़ते चले जाओ ! गंगाजमुनी तहजीब  बस इसी का नाम है | वे अपनी धार्मिक किताब का पालन इस स्तर तक करते हैं कि उनसे कहा जाए कि आप संविधान और अपनी धार्मिक किताब में किसको अधिक मानते हो !वो बिना बिचारे अपनी किताब का नाम लेते हैं |यही बात हिंदुओं से पूछी जाए तो वे बिना बिचारे संविधान का नाम लेते हैं | वे अपनी किताब में बताए गए ईश्वर के अलावा किसी के सामने सिर नहीं झुकाते ! 'वंदेमातरम्' "भारतमाताकीजय" नहीं बोलते हैं सूर्य नमस्कार नहीं करते हैं | हिंदू अपनी शास्त्रीय शिक्षा का पालन इतनी कड़ाई से नहीं करते हैं |
    हिंदू अपनी चोटी कटवा लेते हैं !अपने मंदिरों में रखकर साईंबुड्ढे को पूज लेते हैं |अपना जन्मदिन तिथियों को छोड़कर तारीखों में मना लेते हैं |हिंदुओं ने अपनी आयु के वर्षों में एक गाँठ और लगाकर वर्षगाँठ मनाने की जगह केक काटनाशुरू कर दिया है !दीपक जलाना छोड़कर  मोमबत्ती बुझाना शुरू कर दिया है | विवाह के बाद कुल परंपराओं पितृपूजाओं को छोड़कर हनीमून पर जाना शुरू कर दिया है | ये सनातन परंपराओं में नहीं है और न ही शास्त्रों में कहीं लिखा है फिर भी ऐसा सबकुछ कर लेते हैं |किंतु दूसरे धर्म वाले लोग ऐसा नहीं करते हैं |
   कुल मिलाकर गंगाजमुनी तहजीब के नाम पर ही हिंदू लोग तो उर्दू को अपनी 'मौसी' बताकर उसके शब्द अर्थात अपनी मौसी के लड़के बच्चे अपनी  हिंदीमाता जी के घर में घुसा लाते हैं किंतु उनसे कभी नहीं पूछ पाए कि आपने अपने मौसी हिंदी के कितने शब्द अपनी उर्दू में सम्मिलित किए हैं !उर्दू भाषा के तो बहुत शब्द आज भी अपनी मौसी के यहाँ आराम से रह रहे हैं किंतु हिंदी शब्दों को अपनी मौसी के यहाँ रहने का वो सुख नहीं मिला !इससे हिंदी भाषा पर तो उर्दू का कब्ज़ा बढ़ता जा रहा है किंतु उर्दू में हिंदी नहीं है | 
     मौसी के प्रति हिंदुओं का इतना समर्पण है कि इसे भाषाजेहाद नहीं मानते !इसे उदारता पूर्वक सहते हैं |वही मौसी के लड़के मौसी मौसी करते करते मौसी की बेटियों से विवाह कर लें तो 'लवजेहाद' कहते हैं |उनके यहाँ मौसी की बेटियों से विवाह किया जा सकता है |हिंदू मौसी की बेटी को बहन मानते हैं इसलिए  हिंदुओं में ऐसा नहीं होता है |
    पहले जब सनातन धर्म था तब हमारा देश अखंड भारत था और जबसे  हिंदुस्तान बना तब से हिंदी भाषा में उर्दू शब्दों की तरह 'हिंदुस्तान' में भी मौसी प्रेम भारी पड़ा और मौसी के लड़के धीरे धीरे घुसते चले आए और अफगानिस्तान, पाकिस्तान, ईरान, नेपाल, भूटान, तिब्बत, म्यांमार बांग्लादेश कंबोडिया, मलेशिया थाइलैंड और इंडोनेशिया आदि देश बनते चले गए ! पहले जब सनातन धर्म था तब ये सभी देश अपने भारत के ही अंग थे  |
    हिंदी भाषा में बहुत शब्द दूसरी भाषाओं के हैं|हिंदू धर्म में बहुत लोग दूसरे धर्मों के तिथि त्यौहार मना लेते ,उनकी वेश भूषा धारण कर लेते हैं | उनके  धर्मों की धार्मिक प्रार्थनाओं में सम्मिलित हो लेते हैं | उनका खानपान कर लेते हैं किंतु वे ऐसा नहीं करेंगे ,क्योंकि उनकी धार्मिक किताब इसकी इजाजत नहीं देती जबकि हिंदुओं की  अपने वेदों शास्त्रों के प्रति  ऐसी निष्ठा नहीं है | हिंदूधर्म अपने अपने हिसाब से चलता है | जिसको जब जो अच्छा लगता है वो वही करने लगता है | 
      'र्यावर्त' हो अपने देश का नाम तो 'पराक्रम' से  विश्व प्रशासक होगा देश !-ज्योतिष

     'र्यावर्त'  नाम का पहला अक्षर  है |ऐसे ही  अमेरिका का पहला अक्षर है |जैसे  अक्षर वाला मेरिका अब सुपरपावर है वैसे ही अपने देश का नाम जब 'आर्यावर्त' था तब अपना देश भी विश्व प्रशासक होगा |

    अ अक्षर से जिस देश या व्यक्ति का नाम होता है | वो पराक्रम से अपनी प्रतिष्ठा बनाता है | इसीलिए भारत का नाम जब र्यावर्त था तब  अपना देश अपने पराक्रम से विश्व प्रशासक था |  अब यदि भारत का नाम र्यावर्त रखा जाए तो भारत के पराक्रम का विश्व में विस्तार होगा किंतु अक्षर वाला मेरिका इसे सह नहीं पाएगा !जबकि भारत नाम रखने से अमेरिका से भी अपने स्नेह पूर्ण संबंध बने रहेंगे | 

 अक्षर का प्रभाव ज्योतिष की दृष्टि से -

     जिसका नाम अक्षर से प्रारंभ होता है वह जहाँ होता है वहाँ का प्रमुख ही होता है | जैसे -टल जी,मिताभबच्चन जी,शोक सिंहल जी,लोक जी ,जीत सिंह जी ,जीत डोभाल जी हैं !(सम्राट अशोक, अकबर )आदि !

उत्तरप्रदेश में - भाजपा में दित्यनाथ,सपा में खिलेश यादव,बसपा में काश आनंद और  कांग्रेस में जय राय !

  दिल्ली में -अरविन्द केजरीवाल,रविंदर सिंह लवली,देश गुप्ता जी(पूर्वअध्यक्ष)  आदि | 

  महाराष्ट्र में - जित पवार जी अपने पराक्रम से उपमुख्यमंत्री बन ही गए हैं |अब 'उप' ही तो हटाना है 'मुख्यमंत्री' बने बनाए हैं | ऐसा किए बिना वे रह नहीं सकते ! 

    जिस संगठन में अक्षर वाले व्यक्ति की जगह यदि कोई दूसरा व्यक्ति प्रमुख होता है तो वो पद पर भले ही बैठा  रहे ,बाक़ी अक्षर वाले लोग नंबर दो पर होते हुए काम नंबर एक कही करते हैं | अर्थात उस संगठन का नियंत्रण अपने हाथ में ही रखते  हैं !  जैसे-    मितशाह ,खिलेश यादव,जितपवार,भिषेकबनर्जी,काशआनंद,दित्यठाकरे, मितठाकरे ,मरसिंह आदि | 

  किसी संगठन में एक स्तर के एक  से अधिक लोग अक्षर से नाम वाले हुए तो  उनमें आपस में ही बर्चस्व की लड़ाई छिड़ जाती है जिससे या तो संगठन समाप्त होता है या फिर उनमें से कोई एक व्यक्ति ही अक्षर वाला बचता है |जैसे - न्ना आंदोलन समाप्त हो गया !आम आदमी पार्टी में केवल रविंद केजरी वाल ही अ अक्षर वाले बचे |और समाज वादी पार्टी एवं परिवार में अ अक्षर वाले खिलेश यादव को भारी राजनैतिक मूल्य चुकाना पड़ा ! 

    अब देखिए विस्तार से -  

न्ना आंदोलन - न्नाहजारे,रविंद केजरी वाल ,ग्निवेश और मितत्रिवेदी से सहमति नहीं रही ! 

दिल्ली सरकार में - दिल्ली के उस समय के उपराज्यपाल निलबैजल जी,मुख्यमंत्री रविंद केजरीवाल जी,उस समय के  पुलिस कमिश्नर लोक कुमार वर्मा जी एवं मूल्य कुमार पटनायक जी के साथ चली सरकार में कलह काफी रही | 

  मआदमीपार्टी में रविंद केजरी वाल जी की अक्षर वाले सभी नेताओं से तब तक विवाद चलता रहा जब उन्हें निकाल नहीं  दिया या वे निकल नहीं गए !-  श्वनीउपाध्याय,  आशुतोष ,जीत झा,  अलकालांबा,शीष खेतान, अंजलीदमानियाँ , आनंदजी,दर्शशास्त्री, सीमअहमद, जेश, वतार,जय,खिलेश,निल,आदि !मानतउल्ला खान अल्प संख्यक चेहरा होने के कारण हैं | अब बड़ा प्रश्न यह है कि  अक्षर वाली मआदमीपार्टी में अक्षर वाले रविंद केजरी वाल जी कब तक रह पाएँगे ?

  

समाजवादी पार्टी में -  अक्षर वाले मरसिंह, मिताभ बच्चन,निलअंबानी, जमखान आदि लोग  अक्षर वाले अखिलेश जी के साथ नहीं रह पाए !

समाजवादी परिवार में - पर्णा यादव,अंशुल यादव , दित्य यादव ,भय राम सिंह यादव, क्षय यादव,रविन्द प्रताप यादव आदि अक्षर वालों की नाराजगी का अक्षर वाले खिलेश यादव को भारी राजनैतिक मूल्य चुकाना पड़ा !किसी ने प्रत्यक्ष तो किसी ने अप्रत्यक्ष रूप से खिलेश यादव की राजनीति को प्रभावित किया है | इसीकारण इनकी तब से प्रदेश में सरकार नहीं बन सकी है |

काँग्रेस : काँग्रेस के शीर्ष में कोई प्रभावी अक्षर न होने के कारण काँग्रेस प्रभाव हीं बनी हुई है |काँग्रेस को चाहिए कि वो किसी प्रभावी नाम को शीर्ष पर लावे !

    कुल मिलाकर प्रशासन के मामले में अ अक्षर  सर्व श्रेष्ठ है | इसीलिए जन्म देने वाली मैया को 'अम्मा' कहा जाता था | अपनी माँ को अम्मा कहने वाले बच्चे अन्य बच्चों की अपेक्षा अधिक अनुशासित रहते हैं |

           'हिंदुस्तान ' अपने देश का नाम  होने से होता है बड़ा नुक्सान! -ज्योतिष

  ''हिंदुस्तान' नाम अक्षर से शुरू होता है | अक्षर से जिस देश या व्यक्ति का नाम होता है वो दूसरों के पीछे चले वाला सेवक ही रहता है |कठोर निर्णय लेना इनके बश का नहीं होता है | हरीसिंह जी के भ्रमित निर्णय के कारण ही कश्मीर समस्या अभी तक चली आ रही है |इसलिए हिंदुस्तान नाम देश को दुर्बल बना सकता है |भारत के कमजोर रहने से  जिनका भला होता है |उन्होंने भारत और आर्यावर्त जैसे पवित्र और पराक्रमी नामों की जगह हमारे देश का नाम हिंदुस्तान रखा था | ताकि वे और उनकी संतानें हम सनातन धर्मियों को गुलाम बनाकर रख सकें |हिंदुस्तान नाम का प्रयोग जैसे जैसे बढ़ता गया वैसे वैसे भारत वर्ष अपनी संस्कृति संस्कार स्वाभिमान भूलता गया और गुलामी की मानसिकता को स्वीकारता चला गया | जिससे भारत वर्ष की सीमाएँ समिटती चली गईं !ह अक्षर की कमजोरी के कारण ही संपूर्ण विश्व में आज कोई हिंदूराष्ट्र नहीं बचा है |'हिंदूराष्ट्र' कभी हो भी नहीं सकता है | यदि बन भी जाए तो 'नेपाल' की तरह टिक नहीं पाएगा !

  ह अक्षर :  ह अक्षर की कमजोरी के कारण ही ह अक्षर से नाम वाले लोग अपने बलपर प्रधानमंत्री मुख्यमंत्री या मंत्री नहीं बन पाते हैं |कोई सहारा देकर इन्हें कुछ बना दे या हटा दे वो उसकी मर्जी ! जिन अक्षर वालों के सलाहकार समर्पित सक्षम एवं समझदार होते हैं वही अक्षर वाले लोग कुछ  चमत्कार कर पाते हैं | जैसे सम्राट र्ष  !अक्षर वाले सम्राट हर्षबर्द्धन बहुत बड़े विद्वान कलाकार एवं संगीतज्ञ होने के कारण अत्यंत प्रभाव शाली थे !इसके साथ ही अवन्ति, सिंहनाद, स्कन्दगुप्त जैसे समर्पित मजबूत सलाहकारों के सहयोग से उन्होंने बड़े यशस्वी ढंग से लंबे समय तक राजकाज संचालित किया ! 

 हनुमान जी -    वर्णविज्ञान की दृष्टि से ह अक्षर शासन प्रशासन में अत्यंत कमजोर प्रजाति का है !इसीलिए ह अक्षर से नाम वाले लोग किसी दूसरे की प्रेरणा से ही शासन प्रशासन संबंधी कठोर निर्णय ले पाते हैं | स्वतंत्ररूप से मजबूत निर्णय लेना इनके लिए बहुत कठिन होता है | इसीलिए हनुमान जिसे कहा गया था - इतनहि करेउ तात तुम जाई !सीतहि देखि कहेउ सुधि आई ||हनुमानजी का नाम ह अक्षर से होने के कारण ही वे आजीवन सेवक बनकर ही रहे !जबकि सुग्रीव अंगद विभीषण आदि राजा बने !

 राम जी- श्री राम जी के जन्म का नाम ज्योतिष के अनुशार 'ह' अक्षर से ही निकला था !किंतु वशिष्ठ जी ने इसे कमजोर अक्षर मान कर ही श्री राम जी का नाम ह अक्षर से न रखकर अपितु 'र' अक्षर से राम रखा था |उनके राम नाम रखने का कोई ज्योतिषीय आधार नहीं है | इसीलिए लिखा गया  - "धरेउ नाम गुरु हृदय बिचारी !"

 'हस्तिनापुर'- 'आसंदीवत' नामक अत्यंत विकसित नगर में हाथियों की संख्या अधिक बढ़ जाने से उसे हस्तिनापुर कहा जाने लगा | 'ह' की कमजोरी के कारण ही तो उसे सात बार गंगा जी बहा ले गईं !एक बार बलराम जी ने हल से इस नगर को खींच कर गंगा जी में लटका दिया था !

 हिंदी - हिंदीभाषी लोगों की जो रूचि या आदर अंग्रेजी के प्रति है वो हिंदी के प्रति क्यों नहीं है |

हिंदू - हिंदू नाम मिलने के बाद ही तो हिंदुओं के प्रमुख तीर्थ अयोध्या मथुरा काशी के प्रमुख मंदिर तोड़े गए !

हिंदुस्तान- देश का नाम हिंदुस्तान पड़ने के बाद ही तो यह देश सैकड़ों वर्षों तक परतंत्र रहा और देश के टुकड़े टुकड़े हो गए !पहले तो ऐसा नहीं हुआ था ! 

हिंदूकुश -'पारियात्र' पर्वत का नाम हिंदूकुश कर दिया गया !

 हिंदमहासागर- रत्नाकर समुद्र का नाम 'हिंदमहासागर' रख दिया गया |

शत्रुओं ने हमें हमारे इतिहास से अलग करने के लिए हमारे हमारे देश धर्म ,भाषा,समुद्र,पर्वत आदि सबके नाम ह अक्षर पर रख लिए !ऐसा करने से ये कमजोर हो गए !इसलिए इनका कोई इतिहास नहीं बचा | हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान, हिंदूकुश एवं हिंदमहासागर जैसे नाम भारत के प्राचीन वांग्मय में कहीं मिलते ही नहीं हैं | इसलिए इनकी प्राचीन जड़ें अपने साहित्य में कैसे खोजी जाएँगी !ये हमें हमारी जड़ों से काटने का एक कुचक्र रचकर पवित्र भारतवर्ष को टुकड़ों टुकड़ों में बाँट दिया गया !पहले तक विस्तार था और अब कहाँ तक है |  

  हिंदूशब्द : अलबरूनी 1017 से 1020 ईस्वी तक भारत में रहकर भारत के ज्ञानविज्ञान का अध्ययन करके उसने निश्चय किया कि सनातनधर्मियों को हिंदू और भारत वर्ष को हिंदू नाम से प्रचारित किया जाए तो ये दुर्बल हो जाएँगे !इसी उद्देश्य से उसने अपनी 'किताब-उल-हिंद' ने पहली बार  लिखित रूप में हिंदू शब्द का प्रयोग किया था ! ये शब्द भारतीय भाषाओं का न होकर अपितु उन्हीं की भाषा का है |इसलिए  इसका मोह भारतीयों को तुरंत छोड़ देना चाहिए !जिससे इसके कारण भविष्य में होने वाले संभावित नुक्सान से बचा जा सके !

                                                 वर्ण विज्ञान की दृष्टि से  विशेष निवेदन :

    आपके घर परिवार में भी किसी सदस्य का नाम जिस अक्षर से प्रारंभ होता है या होने वाली बहू का नाम जिस अक्षर से प्रारंभ होता है, उसके संबंध आपके घर के अलग अलग नाम वाले अलग अलग सदस्यों में से किसके साथ कैसे रहने की संभावना है |उसके लिए क्या सावधानी बरती जानी चाहिए !जिससे उसके साथ मधुर संबंध बनाकर रखे जा सकें ! यह पता करने के लिए आप हमारे यहाँ संपर्क कर सकते हैं | 

    आपके व्यापार में ,संस्था में ,संगठन में, राजनैतिकदल या सरकार में किसी सदस्य या अधिकारी का नाम जिस किसी अक्षर से प्रारंभ होता है तो वो वहाँ अपने साथ कार्यरत अन्य सदस्यों अधिकारियों कर्मचारियों आदि में से किस नाम वाले व्यक्ति के साथ उस व्यक्ति का कैसा वर्ताव रहेगा |उन सभी को आपसे में मिलजुलकर काम करने के लिए उनमें से किसको किस प्रकार की सावधानी बरतनी पड़ेगी !यह पता करने के लिए आप हमारे यहाँ संपर्क कर सकते हैं |

    किसी व्यक्ति से, अधिकारी से, राजनेता या व्यापारी से  हमें कोई काम करवाने के लिए मिलने जाना है तो उसे अपनी बात मनवाने के लिए उसके और अपने नाम के पहले अक्षरों पर बिचार किया जाना बहुत महत्त्व पूर्ण होता है | 

    कई बार मंत्रियों और उनके साथ काम करने वाले निर्णायक अधिकारियों के नाम के पहले अक्षरों का ठीक ताल मेल नहीं बैठता है,तो वो उस मंत्री के अच्छे काम काज को भी बुरी तरह प्रस्तुत करके बार बार मंत्री को तनाव देते रहते हैं जिससे उसकी प्रतिष्ठा समाप्त होती है |

    यदि आप कोई रसोइया, ड्राइवर आदि विश्वसनीय कर्मचारी नियुक्त करना चाहते हैं ,तो उसका व्यवहार आपके पारिवारिक सदस्यों के प्रति कैसा रहेगा |  

    यदि किसी देश की ओर से आपके पास कोई प्रतिनिधि मंडल मिलने आता है |उसके साथ परिचर्चा करके कुछ महत्वपूर्ण निणय लिए जाने हैं या कुछ समझौते अपने हित में करवाए जाने हैं या अपनी बात उन्हें मनवानी है ,तो उस प्रतिनिधि मंडल में आए सभी सदस्यों के नाम का  पहला अक्षर पता करके उसी के अनुशार अपने सदस्यों का चयन किया जाना चाहिए | जिससे अपने सदस्यों की बातों का अच्छा प्रभाव उस प्रतिनिधि मंडल के सदस्यों पर पड़े और हमारी बातों से वे सहमत होते चले जाएँ |ऐसा करने के लिए उनके सदस्यों के अनुशार अपने सदस्यों का चयन  करने के लिए आप हमारे यहाँ संपर्क कर सकते हैं |

 'भारत'  नाम रहने से देश को होगा बहुत लाभ !और बनेगा विश्वगुरु ! - ज्योतिष 

 'देर आए दुरुस्त आए  अच्छा है ! भारत नाम को अधिक व्यवहार में लाने का 'मेरा निवेदन प्रधानमंत्री जी ने स्वीकार कर लिया है इसके लिए उन्हें बहुत बहुत बधाई !

     Make in India 2014 , Digital India 2015, Skill India 2015, Stand up india  2016  Khelo India 2018 जैसी योजनाओं के नाम करण में 'भारत' और 'आर्यावर्त' जैसे नामों की उपेक्षा से आहत होकर 20 अक्टूबर 2018 को मैंने प्रधानमंत्री जी एवं संघप्रमुख से पत्र के माध्यम से विनम्र निवेदन किया था कि अपने देश का  'भारत' या फिर 'आर्यावर्त' नाम ही विशेष व्यवहार में लाया जाए !देखें प्रधानमंत्री  जी को भेजा गया वह मेल और उसमें संलग्न पीडीएफ का चित्र -

20 अक्टूबर 2018 को ही संघ प्रमुख जी  से किया गया विनम्र निवेदन !कि अपने देश के भारतवर्ष  या फिर 'आर्यावर्त'नामो  को ही अधिक व्यवहार में लाया जाए !देखें वह मेल और उसमें संलग्न पीडीएफ का चित्र -

    अब बात बिस्तार से समझिए कि भारतवर्ष एवं आर्यावर्त जैसे नामों को अधिक व्यवहार में लाने के लिए कहने का एक कारण तो ये है कि दोनों नाम भारत की अपनी प्राचीनता से जुड़े हुए हैं | दूसरा सबसे बड़ा ज्योतिष संबंधी कारण यह है कि इन नामों का व्यवहार जैसे जैसे बढ़ाया जाएगा वैसे वैसे देश का सम्मान आर्थिक विकास एवं विश्वसनीयता बढ़ती चली जाएगी !विगत कुछ वर्षों मोदी जी के भाषणों में भारत शब्द का व्यवहार जैसे जैसे बढ़ता जा  रहा है वैसे वैसे विश्व का भारत पर भरोसा बढ़ता जा रहा है |

   मैंने 'ज्योतिष' एवं 'वर्णविज्ञान' से संबंधित विषय में ही BHU से पीएचडी की है |इसलिए किसके किस नाम को पुकारने का किस पर क्या प्रभाव पड़ेगा !ये मुझे ये अच्छी प्रकार से पता है| लोगों के बनते बिगड़ते आपसी संबंधों में भी इसका बहुत प्रभाव पड़ता है |

    मैंने ज्योतिष की दृष्टि से भारत, आर्यावर्त हिंदुस्तान और इंडिया जैसे प्रचलित चारों नामों पर बिचार किया !कि इनमें से किस नाम का देश पर क्या प्रभाव पड़ेगा !इस अनुसंधान में मैंने पाया -

इंडिया नाम रखना कैसा रहेगा ? 

   इंडिया का पहला अक्षर इ है !इ अक्षर व्यापार से प्रतिष्ठा बढ़ाता है | इसलिए वर्णविज्ञान की दृष्टि से इंडिया शब्द भारतवर्ष को केवल व्यापार का केंद्र बना सकता है | इससे अधिक और कुछ नहीं !इससे अपने देश की कोई पहचान नहीं बन पाएगी और न ही कोई सम्मान बन पाएगा !

 भारत :   भारत का पहला अक्षर भ है |भ अक्षर से जिसका नाम होता है वह सदाचरण से विद्या से पवित्रता से प्रेम से प्रतिष्ठा प्राप्त करता है |इसलिए  'भारत' नाम  का  प्रभाव बढ़ने से अपना देश विश्वगुरु का सम्मान पाएगा ! विश्व मंच पर भारत की बात बड़ी शृद्धा और सम्मान से  सुनी जाएगी | भारत की विश्वसनीयता  बहुत अधिक बढ़ जाएगी |


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