महाविज्ञान की खोज :
किसी
नदी की धारा में बहते चले जा रहे बहुत सारे
लकड़ी के टुकड़े कभी तेजी बहे जा रहे होते हैं ,तो कभी धीमे चलते या ठहर जाते
हैं | कभी एक दूसरे के पास आ जाते हैं तो कभी दूर चले जाते हैं |कभी एक
दूसरे से टकरा जाते हैं और कभी किसी भँवर में पढ़कर गोल गोल घूमने लग जाते हैं | उन काष्ठखंडों की जितनी भी गतिविधियाँ दिखाई दे रही होती हैं |इसमें काष्ठखंडों की कोई भूमिका नहीं होती है | सब कुछ नदी की धारा के अनुशार ही घटित
हो रहा होता है| इसलिए नदी की धारा न दिखाई पड़ने पर भी केवल काष्ठखंडों को देखकर ही नदी के प्रवाह का अंदाजा लगा लिया जाता है |
ऐसे ही हवा के न दिखाई पड़ने पर भी उसमें उड़ रहे तिनके धूल पत्तियाँ आदि दिखाई देती हैं,वे
तिनके धूल पत्तियाँ आदि उड़कर कहाँ तक जाएँगे ! कितने वेग से उड़ेंगे, कहाँ
रुकेंगे ये सब कुछ उस हवा के आधीन होता है जिसमें वे सब उड़ रहे होते हैं
| जिन्हें देखकर हवा के वेग आक्रामकता आदि का अनुमान लगा लिया जाता है |
नदी की धारा में बहते काष्ठखंडों एवं हवा में उड़ते तिनके धूल पत्तियों आदि की तरह ही प्रकृति और जीवन से संबंधित समस्त घटनाएँ समय के अनुशार घटित हो रही होती हैं| समय
के प्रत्यक्ष दिखाई न पड़ने पर भी समयशक्ति से घटित हो रही घटनाएँ दिखाई
पड़ा करती हैं
| उन घटनाओं को देखकर अच्छे या बुरे समय का अंदाजा लगा लिया
जाता है |अच्छे समय में अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं जबकि बुरे समय में
बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | जिस प्रकार से हवा में उड़ता हुआ एक छोटा सा
तिनका हवा का रुख बता देता है, उसी प्रकार से प्रकृति और जीवन में घटित हो
रही छोटी छोटी घटनाओं को देखकर भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं के
विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
समय का प्रभाव विस्तार !
संपूर्ण ब्रह्मांड में सभीप्रकार की घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है | पाताल से लेकर आकाश तक प्रकृति से लेकर जीवन तक समय सब
कुछ प्रभावित करता है|
प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान देश प्रदेश शहर गाँव घर मकान दूकान संस्था संगठन सरकार घटना परिस्थिति संबंध आदि के शुरू और समाप्त होने का अपना अपना समय होता है | वे अपने अपने समय से ही शुरू और समाप्त होते देखे जाते हैं|कुछ लोग बहुत सारे स्थानों निर्माणों संगठनों घटनाओं परिस्थितियों संबंधों और कार्यों का श्रेय स्वयं लेने लगते हैं कि इन्हें उन्होंने बनाया या शुरू किया है |वे ऐसा न करते तो ये सब कुछ नहीं होता | ऐसी कुछ घटनाओं का कर्ता यदि उन्हें मान भी लिया जाए तो इस ब्रह्मांड में असंख्य घटनाएँ ऐसी भी घटित होती हैं जिनका कर्ता कोई प्रत्यक्ष तो दिखाई नहीं दे रहा होता है फिर भी वे घटनाएँ घटित हो रही होती हैं| प्रत्यक्ष कर्ता के बिना यदि उतनी बड़ी बड़ी घटनाएँ घटित हो सकती हैं तो जिन घटनाओं का कर्ता मनुष्य अपने को मान रहा है संभव है कि उन घटनाओं के घटित होने का कारण भी मनुष्य न होकर वह अप्रत्यक्ष कर्ता ही हो | जिसे समय कहते हैं | कर्ता होने की क्षमता यदि मनुष्य में होती तब तो मनुष्य जब जो जैसा करना चाहता वो वैसा कर ही लेता किंतु मनुष्य बहुत सारी कार्ययोजनाएँ बनाता है उसमें से कुछ कार्य शुरू कर पाता है उसमें भी कुछ कार्य पूर्ण हो पाते हैं कुछ नहीं होते हैं | कुछ कार्य जैसे सोच कर किए जाते हैं वैसे नहीं होते हैं |
समय ही समस्त परिवर्तनों का कारण है !
ब्रह्मांड में सबकुछ बदलता रहता है जो जैसा अभी है वैसा कुछ समय बाद नहीं रहेगा उसमें अंतर आ जाएगा ! परिवर्तनशील समय के प्रभाव से ही तो सर्दी(शिशिर) गरमी(ग्रीष्म) वर्षा आदि प्रमुख ऋतुएँ आती जाती रहती हैं |सूर्य का उत्तरायण दक्षिणायन आदि क्रम बना हुआ है | समय के अनुशार ही चंद्रमा बढ़ता घटता है | अमावस्या पूर्णिमा आदि तिथियाँ तथा सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ भी समय संबंधी परिवर्तनों का ही तो परिणाम हैं |सभी पदार्थों घटनाओं परिस्थितियों संबंधों में होने
वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों का कारण समय ही
है | बचपन जवानी बुढ़ापा स्वस्थ अस्वस्थ सुखी दुखी सफल असफल होना आदि सभी समय जनित
परिवर्तन ही तो हैं |
प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान देश प्रदेश शहर गाँव घर मकान दूकान
संस्था संगठन सरकार घटना परिस्थिति संबंध आदि के शुरू से लेकर समाप्त होने तक जितने भी परिवर्तन होते हैं उन सब का कारण उनका अपना अपना समय होता है |समय निरंतर आगे बढ़ता जा रहा है | परिवर्तन समय का स्वभाव है इसलिए समय जैसे जैसे आगे बढ़ता जाता है वैसे वैसे संपूर्ण ब्रह्मांड में परिवर्तन होते रहते हैं | ऐसे परिवर्तनों को देखकर ही समय के बीतने का पता लग पाता है|
परिवर्तन समय का ही स्वरूप है| समयजनित परिवर्तन जहाँ जहाँ दिखाई पड़ते हैं वे सभी समय के परिवर्तन के ही चिन्ह हैं | उन परिवर्तनों को समझने के लिए समय को ही समझना पड़ेगा !जिस प्रकार से नदी की धारा में बहने वाले काष्ठखंडों की गतिविधि समझने के लिए नदी के प्रवाह को समझना होगा | ऐसे ही हवा में उड़ रहे तिनके धूल पत्तियों आदि को समझने के लिए वायु के संचार को समझना होगा | इसीप्रकार से ब्रह्मांड में घटित होने वाली प्रकृति और जीवन से संबंधित किसी भी घटना को समझना है तो समय के संचार को समझना होगा | प्रत्येक व्यक्ति वस्तु स्थान देश प्रदेश शहर गाँव घर मकान दूकान
संस्था संगठन सरकार घटना परिस्थिति संबंध आदि के शुरू और समाप्त होने को समझना है या इनके विषय में भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना है तो इसके लिए भी समय के संचार को ही समझना होगा |
भूकंप आँधी तूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात आदि जितनी भी घटनाएँ हैं | वे सभी समय संबंधी प्राकृतिक परिवर्तन ही तो हैं | इन्हें भी समझने के लिए समय के संचार को ही समझना होगा |
किसी महामारी का पैदा होना उसके वेग का घटना बढ़ना या महामारी का स्वरूप परिवर्तन होना आदि ऐसी सभी घटनाएँ समय से संबंधित हैं|महामारी एवं उसके परिवर्तित स्वरूपों को समय के आधार पर ही आगे से आगे समझा जा सकता है |
जलवायु परिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन में नया क्या है !
प्रकृति या जीवन से संबंधित जिन जिन घटनाओं का आपसी अंतराल एवं समयक्रम समझ लिया जाता है |उसके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने में कठिनाई नहीं होती है| जिनके विषय में पहले से कुछ पता नहीं होता है उन्हें समझना एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं होता है |
ऋतुओं के विषय में सबको पता ही है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी! वह कितने समय तक रहेगी उस समय प्राकृतिक वातावरण कैसा होगा! उससे स्वास्थ्य को किस किस प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है | उससे बचाव के लिए उपाय आगे से आगे करके चला जाता है |
कल्पना कीजिए कि जब सर्दी सबसे पहली बार आई होगी तब इसके विषय में भी किसी को पता नहीं होगा | सर्दियों में भी बहुत लोगों की मृत्यु हो गई होगी | उस समय सर्दी भी किसी प्राकृतिक आपदा से कम नहीं रही होगी ! अब सबको पता है कि सर्दी कब आएगी ! उससे बचाव के लिए आगे से आगे तैयारियाँ करके रख जाती हैं |इसलिए कोई कठिनाई नहीं होती है |
ऐसे परिवर्तन सभी जीवों में ,पदार्थों में, प्राकृतिक घटनाओं में तथा प्राकृतिक परिस्थितियों में देखने को मिलते हैं | उन परिवर्तनों के क्रम प्रकार आपसी अंतराल एवं उन घटनाओं के पारस्परिक संबंधों को अच्छी प्रकार से समझे जाने की आवश्यकता है |
एक आम का फल जब फलता है, तब देखने में हरा और स्वाद में खट्टा होता है, उसकी गुठली मुलायम होती है, किंतु वही आम जब पकता है तब उसका रंग बदल जाता है स्वाद बदल जाता है और उसकी गुठली कड़ी हो जाती है | उस आम में ऐसे ऐसे परिवर्तन आएँगे ये सबको पहले से पता होता है | इसलिए उन परिवर्तनों से किसी को आश्चर्य नहीं होता है, किंतु इन संभावित परिवर्तनों के विषय में किसी को कुछ पता ही न होता तब उस आम में हुए सभी परिवर्तनों को स्वरूपपरिवर्तन मानकर बहुत सारी आशंकाएँ की जा सकती थीं| वस्तुतः ये केवल स्वरूप परिवर्तन है या स्वभाव परिवर्तन ! इस अंतर को भी समझा जाना आवश्यक है |
ऐसे परिवर्तन केवल आम में ही नहीं अपितु सभी पेड़ों पौधों फूलों फलों समेत समस्त चराचर प्रकृति में हमेंशा से होते देखे जाते रहे हैं | मनुष्य को ही देखा जाए तो उसमें भी जन्म से मृत्यु तक न जाने कितने परिवर्तन होते हैं | ये केवल वस्तुओं जीवों में ही नहीं अपितु संबंधों परिस्थितियों में भी होते देखे जाते हैं | किसी से संबंध एक जैसे नहीं रहते हैं | किसी की परिस्थितियाँ एक जैसी नहीं रहती हैं | उनमें भी परिवर्तन होते रहते हैं |
कुल मिलाकर समय परिवर्तनशील है|इसलिए जो समय जनित परिवर्तन प्रकृति के कण कण में हो रहे हैं | उसी समय के प्रभाव से महामारी का स्वरूपपरिवर्तन होना या जलवायुपरिवर्तन होना भी स्वाभाविक ही है ? ऐसे परिवर्तनों के विषय में पूर्वानुमान लगाना एवं इनके प्रभावों का अध्ययन अनुसंधान आदि करना ही तो विज्ञान का काम है |
जलवायुपरिवर्तन या महामारी का स्वरूपपरिवर्तन कितना संभव है ?
महामारी के स्वरूप में परिवर्तन हुआ या कि बिषाणुओं का दुष्प्रभाव सहते सहते लोगों के शरीरों में उस प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता बची ही नहीं थी जो पहले जैसा प्रतीकार कर पाती |इसी शारीरिक दुर्बलता के कारण महामारीपीडित लोगों में पहले की अपेक्षा कुछ अलग लक्षण दिखने लगे !जिन्हें महामारी का स्वरूप परिवर्तन समझा जाने लगा |
जल का स्पर्श शीतल पहले भी होता था अभी भी होता है ,उसे कितना भी गर्म करो कुछ देर बाद ठंढा हो ही जाएगा | इसमें बदला क्या है ?
ऐसे ही वायु है बिना स्वरूप धारण किए ही स्पर्श करने का गुण वायु में पहले भी था अभी भी है | इसमें बदला क्या है ?
कुल मिलाकर जल और वायु के गुणों में किसीप्रकार का परिवर्तन हुए बिना ही जलवायुपरिवर्तन की परिकल्पना किस आधार पर की जा सकती है |
जलवायुपरिवर्तन का मतलब यदि जल और वायु के गुणों में परिवर्तन है तो इनके मूल गुणों में तो परिवर्तन होना संभव ही नहीं है | ऐसे काल्पनिक परिवर्तनों को प्रकृति और जीवन सह दोनों ही नहीं सह पाएँगे !
पृथ्वी जल अग्नि आकाश वायु आदि पंचतत्व हैं| ऐसा कोई परिवर्तन होगा तो इन पाँचों में ही होगा | इनमें से जल और वायु दो में ही क्यों होगा !ऐसा होने के लक्षण क्या हैं !इन पंचतत्वों में से दो में परिवर्तन होने का एवं तीन में परिवर्तन न होने का कारण क्या हो सकता है | परिवर्तित जल और वायु की निश्चित पहचान क्या है और उसके निश्चित प्रभाव क्या हैं ? ऐसे संभावित परिवर्तनों के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | इस प्रकार के परिवर्तनों से किस किस प्रकार के दुष्प्रभाव कितने समय बाद दिखाई दे सकते हैं |
वर्तमान समय में जो प्राकृतिक घटनाएँ अधिक घटित होते देखी जा रही हैं जिन्हें देखकर जलवायु परिवर्तन का भ्रम हो रहा है | वे पहले भी तो घटित होती रही हैं | उन्हीं प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण अब जलवायु परिवर्तन मान लेने का वैज्ञानिक आधार क्या है ?
प्राकृतिक घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन
प्रत्येक अनुसंधान की प्रारंभिक अवस्था में कोई भी वैज्ञानिक बाल भावना से भावित होता है | उसे भी अनुसंधानों को आगे बढ़ाने के लिए बच्चों की तरह ही सही गलत कुछ कल्पनाएँ करनी पड़ती हैं | धीरे धीरे गलत कल्पनाएँ छूटती चली जाती हैं और सही कल्पनाएँ शोधसिद्धांत बनती चली जाती हैं | अनुसंधानों के इसी क्रम में कई बार ऐसी कुछ कठिन परिस्थितियाँ पैदा हो जाती हैं| जहाँ अनुसंधानों को आगे बढ़ाने के लिए की गई अधिकाँश कल्पनाएँ गलत निकलती जा रही होती हैं | ऐसी अज्ञानता को रहस्य बनाए रखने के लिए इसे जलवायु परिवर्तन जैसा कोई नाम दे दिया जाता है |जिसका मतलब ये निकलता है कि हम सही हैं !हमारा विज्ञान सही है | हमारी अनुसंधान पद्धति सही है ,किंतु वे घटनाएँ सही तरीके से नहीं घटित हो रही हैं | इन्हें हमारे बनाए हुए नियमों के अनुशार घटित होना चाहिए !किंतु ऐसा नहीं हो रहा है |
ये बिल्कुल उस प्रकार की बात है जैसे कोई दर्जी किसी के लिए कोई कुर्ता सिल कर लावे ! पहन कर देखने पर वह कुर्ता नाप के अनुशार न सिला गया हो ! छोटा बड़ा हो जाए !जिसे देखकर दर्जी कहे कि कुर्ता तो ठीक है उसकी नाप भी ठीक है सिलाई भी ठीक है किंतु आपके अंग ही छोटे बड़े हो गए हैं | इसका कारण आपके शरीर का जलवायु परिवर्तन है | वस्तुतः दर्जी को जिस शरीर की नाप देकर कुर्ता सिलने के लिए दिया है उस शरीर की नाप का कुर्ता सिल जाता तो कोई समस्या ही नहीं होती |उसकी अयोग्यता के कारण ऐसा नहीं हो पाया जिसे जलवायु परिवर्तन के मत्थे मढ़ा जा रहा है |
इसी प्रकार से जिन प्राकृतिक घटनाओं को समझने एवं उनका कारण पता लगाने का काम जिन वैज्ञानिकों को सौंपा गया है वे उनके विषय में अनुसंधान करें | अनुसंधान में यदि सफलता न भी मिले तो मना कर दें या पुनः प्रयास करें,किंतु ये ढंग ठीक नहीं है कि पहले मौसम के विषय में भविष्यवाणी की जाए | यदि वे सही निकले तब तो भविष्यवाणी और गलत निकल जाए तो उसका कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जाए |
ऐसा ही महामारी संबंधी घटनाओं में होता है | वहाँ ऐसी अवस्था को महामारी का स्वरूप परिवर्तन कहा जाता है | ऐसा अन्य प्राकृतिक घटनाओं में भी होते देखा जाता है | वैज्ञानिक कठिनाइयों से भयभीत होकर ऐसे अनुसंधानों को बीच में ही छोड़ देने के कारण भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण और महामारी समेत सभी अनुसंधान अधूरे पड़े हैं | इनमें से किसी के विषय में भी सही पूर्वानुमान लगाया जाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है न ही ऐसी घटनाओं के घटित होने का वास्तविक कारण ही चिन्हित किया जा सका है |इसीलिए कोई भी प्राकृतिक आपदा कभी भी घटित होने लगती है उसके विषय में पूर्वानुमान पता न होने के कारण उसमें जो जनधनहानि होनी होती है वो हो जाती है ,जबकि ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए अनुसंधान होते चले आ रहे हैं |
समयचक्र और जलवायुपरिवर्तन !
समय
चक्र बारह हैं |इनमें से कुछ चक्र छोटे और कुछ बड़े हैं | छोटे चक्रों में कम समय एवं बड़े चक्रों के पूरा होने में अधिक समय लगता है |इसीलिए कुछ का एक चक्कर एक दिन में ही पूरा हो जाता है तो कुछ का एक महीने
में ,कुछ का एक वर्ष में तथा कुछ का एक चक्र बारह वर्ष में पूरा होता है | ऐसे ही कुछ का सौ वर्ष में एवं कुछ का
हजार तथा बारह हजार वर्ष में भी एक चक्र पूरा होता है | सभी चक्रों की अपनी
अपनी ऋतुएँ होती हैं | जो चक्र जितना बड़ा होता है उसका चक्कर भी उतने अधिक
वर्षों में लगता है | उसकी ऋतुएँ भी उतने ही अधिक वर्षों की होती हैं | जिस
समय का चक्र एक वर्ष में पूरा होता है उसकी एक ऋतु की अवधि 60 दिनों की
होती है,किंतु जिस समय का एक चक्र बारह हजार वर्षों में पूरा होता है |
उसकी एक एक ऋतु का समय दो दो हजार वर्ष होता है | इसके अनुशार हेमंत और शिशिर
ऋतु दो मिलकर चार हजार वर्षों की होंगी !इन चार हजार वर्षों में अन्य समय की
अपेक्षा सर्दी अधिक होगी !इससे बड़े बड़े ग्लेशियर बन जाते हैं | नदियाँ तालाब झीलें आदि बन जाती हैं | स्वेच्छा आकाश होता है ऐसे समय में शरीर पुष्ट एवं चिंतन सात्विक होता है | ऐसे ही गर्मी संबंधी दो ऋतुओं के चार हजार वर्ष होते हैं | ऐसे समय में अन्य समय की अपेक्षा इन चार हजाए वर्षों तक गर्मी अधिक होती रहती है | इसमें पूर्व संचित नदियों तालाबों का जल अधिक सूखने लगता है | भूमिगत जलस्तर घटने लगता है | पहाड़ों पर जमी बर्फ पिघलने लगती है | आकाश मलिन हो जाता है | शरीर दुर्बल होने लगते हैं मनुष्य क्रोधी कलही युद्ध एवं अपराध प्रिय होने लग जाते हैं | देशों प्रदेशों समाजों परिवारों वैवाहिकजीवनों आदि में आपसी तनाव बढ़ने लगता है |उष्णता की अधिकता से बिषय बासना अधिक बढ़ने लगती है | गर्मी संबंधी रोगों की अधिकता होने लगती है | पाचन शक्ति दुर्बल होने लगती है | बनस्पतियाँ विकृत होने लगती हैं | ऐसे ही अन्य ऋतुओं का समय भी चार चार हजार
वर्ष का होता है !उनका भी ऋतु प्रभाव पड़ता है |
कुल मिलाकर बारहों समयचक्रों में सबकी अपनी अपनी अलग अलग समयावधि होती
है |उसी के अनुरूप सबका अपना अपना आपसी अंतराल होता है |इस रहस्य को
समझने के लिए बारहों समय चक्रों के विषय में अनुसंधान भी सबका अलग अलग समय
चक्र के अनुसार ही करना होगा | समय के चक्र यदि बारह हैं तो अनुसंधानों के लिए भी बारहों प्रकार की अनुसंधान पद्धतियाँ अपनानी होंगी |
ऐसी
स्थिति में केवल वार्षिक समय चक्र को ही समझना पर्याप्त नहीं होगा | केवल इसी आधार पर छहों
ऋतुओं ,उनके क्रम और आपसी अंतराल ,प्रभाव आदि को समझकर समय के बारहों चक्रों के रहस्य को कैसे सुलझाया जा सकता है | उन शेष 11 समय चक्रों को समझ पाने
की क्षमता के अभाव में उसे जलवायुपरिवर्तन के हवाले करना अनुसंधान भावना के हित में नहीं है |
पिछले कुछ सौ वर्षों से महामारियाँ हर सौ वर्ष बाद घटित होते देखी जा
रही हैं|वे शतवर्षीय समय चक्र के अनुशार घटित हो रही हैं | इस रहस्य को वार्षिक समय चक्र के अनुशार कैसे समझा जा सकता है | इससमय जो ग्लोबलवार्मिंग बढ़ने की बात कही जा रही है| संभव है कि ऐसा कुछ आकस्मिक न हो | इसके लिए मनुष्यकृत कोई कारण जिम्मेदार न भी हों | संभव यह भी है कि किसी समयचक्र के
अनुशार ग्रीष्मऋतु ही चल रही हो| इसीलिए पृथ्वी का तापमान कुछ बढ़ रहा हो या
ग्लेशियर पिघलते देखे जा रहे हों | इस वृहद् समय चक्र को समझ न पाने के
कारण हम जलवायुपरिवर्तन का भ्रम पाले बैठे हों जबकि ऐसी घटनाएँ अपने दीर्घावधि
समय चक्र के अनुशार ही घटित हो रही हों |
कुल मिलाकर प्रत्येक प्राकृतिक घटना समय चक्र से से बँधी हुई है प्रकृतिचक्र के किसी
विशेष समय के आ जाने पर यदि लीक से हटकर कुछ विशेष प्राकृतिक घटनाएँ घटित
होने लगती हैं तो उसे अनुसंधानपूर्वक समझे जाने की आवश्यकता होती है | ऐसे काल्पनिक जलवायु परिवर्तन से
कुछ प्राकृतिक आपदाओं को जोड़ दिया जाना बिल्कुल उचित नहीं है | इसके आधार पर
भविष्य के लिए कुछ भयानक भविष्यवाणियाँ जिस प्रकार से कर दी जाती हैं उनका वैज्ञानिक आधार क्या है |
समय और घटनाएँ
वस्तुतः कोई भी प्राकृतिक घटना घटित होने के लिए इतनी स्वतंत्र नहीं होती है कि वह कभी भी घटित होने लगे |प्रकृति में प्रत्येक कार्य संपन्न होने का समय निश्चित होता है|वह समय पता न होने के कारण उसके लिए सतर्कता पूर्वक हमेंशा प्रयास करते रहना पड़ता है ताकि होने वाला समय यूँ ही न निकल जाए |
ऐसे ही किसी प्राकृतिक घटना के घटित होने का समय आता है तो वो घटना घटित हो जाती है| प्रत्येक घटना अपने अपने समय चक्र से बँधी हुई है और अपने समय से ही घटित होती है |भूकंप वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण और महामारी समेत सभी घटनाओं के घटित होने का कारण एवं पूर्वानुमान खोजे जाने की आवश्यकता है | इसके बिना इनके विषय में सही पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | पूर्वानुमान का पता लगाए बिना ऐसी घटनाओं में होने वाली जनधन हानि को तुरंत की तैयारियों के बलपर कम किया जाना संभव ही नहीं है | ऐसी घटनाओं में अधिकाँश नुक्सान पहले झटके में ही हो जाता है | ऐसे में इनसे बचाव के लिए समय ही कहाँ मिल पाता है |
महामारी और अनुसंधान
महामारी
पैदा होने का कारण क्या है लोगों के संक्रमित होने का कारण क्या है !
महामारी से वायु प्रदूषण का संबंध क्या है ?महामारी पर मौसम का प्रभाव कैसा
पड़ता है आदि बातों का कोई संतोषजनक तर्कसंगत उत्तर अभी तक नहीं खोजा जा
सका है |
इसके बिना भी कई बार
किसी की मृत्यु होने का कारण क्या होता है !
जिन जिन घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार जिन कारणों को माना गया है अभी वे केवल कल्पना तक ही की गई है जिसे अनुसंधान
प्रकृति और जीवन पर समय का प्रभाव !
प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली बहुत सारी घटनाओं में समय का प्रभाव प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है कुछ में अप्रत्यक्ष होता है | समय का प्रभाव पड़ता सभी जगह है | माँ के गर्भिणी होने के बाद उस गर्भ के बढ़ने या सुपुष्ट होने में जितना समय लगता है वो तो लगता ही है | यदि समय की भूमिका न होती तो रजवीर्य का संयोग होते ही शिशु का जन्म हो जाता लेकिन ऐसा नहीं होता है |
किसी रोगी को औषधि दे दिए जाने पर उसे तुरंत स्वस्थ हो जाना चाहिए था | एक महीने में जो औषधि दी जानी है उतनी मात्रा एक बार में ही देकर रोगी को स्वस्थ नहीं किया जा सकता है | किसी घाव में जो औषधि बीस दिन में लगाई जानी है उसे यदि एक बार में ही लगा दिया जाए तो घाव तुरंत ठीक नहीं हो सकता | उसमें समय तो लगेगा ही यही उसकी भूमिका है |
कोई घाव या रोग औषधि से ठीक होता है या समय से इस अंतर को समझा जाना भी अत्यंत कठिन है !क्योंकि बिना औषधि के भी समय के साथ साथ कई रोग या घाव ठीक हो जाते हैं | जंगलों में रहने वाले लोग या पशु पक्षी एक दूसरे से लड़ते हैं घायल होते हैं कुछ समय बाद बिना किसी औषधि के स्वस्थ भी हो जाते हैं | इसमें औषधि के बिना तो स्वस्थ होते तो देखा गया किंतु केवल औषधि के बलपर बिना समय लगे किसी घाव को तुरंत नहीं ठीक किया जा सकता है | ये जीवन में समय के प्रभाव का ही परिणाम है |
कोई नया कपड़ा गाड़ी आनाज भोजन आदि जितनी भी वस्तुएँ हैं वो केवल उपयोग किए जाने से ही नष्ट नहीं होती हैं ,प्रत्युत उपयोग न करने पर भी ये अपने अपने समय पर नष्ट हो ही जाती हैं | यह स्थिति संपूर्ण चराचर जगत की है समय की भूमिका के कारण ही ब्रह्मांड को भी एक दिन नष्ट होना होता है |
ऐसे
परिवर्तन सभी जीवों में ,पदार्थों में, प्राकृतिक घटनाओं में तथा
प्राकृतिक परिस्थितियों में देखने को मिलते हैं | इनका कारण भी तो समय ही होता है |
उन्हें अच्छी प्रकार से समझना उनके विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाना ही वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य है | जिस भी ज्ञानराशि के द्वारा ऐसी घटनाओं के रहस्य को सुलझाया जा सके वही इनका विज्ञान है |
समय परिवर्तनशील है | इसलिए समय के आधार पर घटित होने वाली घटनाओं
में परिवर्तन होना स्वाभाविक ही है | सभीप्रकार की घटनाओं का अपना अपना समय होता है |
अपने अपने समय के अनुशार ही सभी का जन्म और मृत्यु निश्चित होता है |
इसलिए समय समय पर प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली समस्त घटनाओं को समझने के लिए समय को समझना पड़ेगा | प्रकृति और जीवन में होते
रहने वाले समस्त परिवर्तनों का कारण समय ही है| जलवायुपरिवर्तन और
महामारी स्वरूप परिवर्तन जैसी घटनाएँ भी परिवर्तनशील समय के बदलाव का ही
परिणाम है |
प्राकृतिक परिवर्तनों को समझने का नाम है विज्ञान !
के बाद भी स्वयं दिखाई नहीं पड़ता है ,जबकि समय से प्रेरित होकर घटित होने वाली घटनाएँ
दिखाई पड़ती हैं ,जिन्हें देखकर यह अंदाजा लगा लेना पड़ता है कि कब कैसा समय
चल रहा है उसके प्रभाव से निकट भविष्य में कैसी कैसी घटनाएँ घटित हो सकती
हैं |
बिल्कुल उसी तरह दिखाई पड़ा करती हैं | जिसप्रकार से
उसीप्रकार से समय के न दिखने पर भी
को समझ लिया अच्छे या याँ आदि जाने वाले तिनके इ कर ले जाए छोटे छोटे तिनके हवा का रुख बता देते हैं ,इसी प्रकार से
ऐसे ही
प्रकृति एवं जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में वह शक्ति एक नदी बह वह जैसा सभी को
जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक आपदाएँ
प्राकृतिक समस्याएँ और विज्ञान !
वैज्ञानिकों ने अपने प्रयासों से मानवजीवन की कठिनाइयाँ कम करके जीवन को आसान
बनाया है | कई सुख सुविधाएँ उपलब्ध करवाई हैं|यातायात दूरसंचार एवं चिकित्सा आदि को काफी सुगम एवं प्रभावी बनाया है |
यह सब तो ठीक है किंतु मनुष्यों को इसका लाभ तभी मिल पाएगा जब उनका जीवन
सुरक्षित रहेगा | मनुष्य ही जीवित नहीं रहेंगे तो ये सारे अनुसंधान
मनुष्यों के किस काम आ पाएँगे |
उन्हीं के प्रयासों से सुदूर आकाश में उठे बादलों या चक्रवातों को कुछ पहले से देख लिया जाता है|जिनके आधार पर कुछ मौसमी अंदाजे लगा लिए जाते हैं जो कभी कभी सही भी
निकल जाते हैं| वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए ऐसे सभी प्रयत्न प्रशंसनीय
तो हैं किंतु उनसे ऐसी कोई भी मदद मिलनी संभव नहीं हो पाई है जिसके
द्वारा प्राकृतिक आपदाओं के समय जनधन की सुरक्षा की जानी संभव हो सके |
दुर्भाग्यवश भारत को अपने पड़ोसी देशों के साथ तीन युद्ध लड़ने पड़े हैं | उन तीनों युद्धों में जितने देशवासियों की मृत्यु हुई थी उनसे बहुत अधिक संख्या में लोग केवल कोरोना महामारी में ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं | ये
तो मात्र कोरोना महामारी के विषय की बात है | इसके अतिरिक्त भूकंप आँधी
तूफानों बाढ़ों बज्रपातों चक्रवातों में भी न जाने कितने लोग प्रतिवर्ष
मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं और न जाने कितनी संपत्तियाँ नष्ट हो
जाती हैं |
ऐसी दुर्घटनाओं के घटित होते समय जनधन का उतना नुक्सान पहले ही झटके में
हो जाता है जितना होना होता है | इसलिए पहला झटका लगने ही न पाए उससे
पहले ही बचाव के लिए कुछ प्रभावी उपाय कर लिए जाएँ तो संभव है कि कुछ बचाव
हो जाए और इतना
अधिक नुक्सान न होने पाए | इसके लिए ऐसी घटनाओं के घटित होने के विषय में
पूर्वानुमान पहले से पता होने चाहिए | ऐसे पूर्वानुमान लगाने में सक्षम
वैज्ञानिक कितने और कहाँ हैं |
भविष्य में घटित होने वाली ऐसी किसी भी संभावित घटना के विषय में पहले से
पूर्वानुमान लगाया जाना तभी संभव है जब भविष्य में झाँकने के लिए कोई
ऐसा विज्ञान हो जिसके द्वारा भविष्य में घटित वाली घटनाओं को देखा जा सके !
ऐसे विज्ञान के अभाव में भविष्य की घटनाओं को न देखा जाना संभव है और न
ही उनके विषय में पूर्वानुमान लगाया जाना ही संभव है |
पूर्वानुमान की आवश्यकता क्या है ?
भूकंप आँधीतूफान बाढ़ बज्रपात एवं चक्रवात जैसी प्राकृतिक आपदाओं से बचाव या जनधन हानि को कम करने के लिए हम मनुष्यों के पास ऐसा कुछ भी नहीं है| जिससे अपनी सुरक्षा सुनिश्चित समझी जा सके | प्राकृतिक घटनाएँ तो अपने समय पर ही घटित होंगी | इन्हें मनुष्यकृत प्रयासों से रोका जाना संभव नहीं है | इनसे बचाव के लिए ही परिणामप्रद प्रयत्न किए जा सकते हैं |
हमारे परिणामप्रद कहने का अभिप्राय यह भी है कि उनका ऐसा कुछ प्रभाव दिखाई
भी पड़ना चाहिए जिससे यह लगे कि यदि ऐसा न किया गया होता तो इससे भी अधिक
नुक्सान हो सकता था |
संभवतः
बचाव के लिए तरह तरह के अनुसंधान किए जाते हैं ,किंतु उन अनुसंधानों के
द्वारा अभी तक ऐसा कुछ किया नहीं जा सका है| जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं में
होने वाली जनधन हानि को घटाया जा सके | इसीलिए जिन घटनाओं के विषय में एक
तरफ अनुसंधान चला करते हैं उन्हीं घटनाओं से दूसरी ओर जनधन का नुक्सान हुआ करता है | अनुसंधानों के द्वारा बचाव होना दूर थोड़ी मदद नहीं मिल पाती है |
वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अभी तक जो प्रयत्न किए भी जाते रहे हैं
उनके द्वारा उन घटनाओं के रहस्य को समझा जाना अभी तक संभव नहीं हो पाया
है |
बहुत बड़ी जनधन हानि होती है| ऐसे ही कोरोना जैसी प्राकृतिक महामारियों में
भी भारी जनधन हानि होते देखी जाती है|ऐसी जितनी भी हिंसक प्राकृतिक
घटनाएँ घटित होती हैं | उनमें होने वाली जनधन हानि को कम करने के लिए
प्रभावी प्रयत्न किए जाने की आवश्यकता है |
ऐसी सभी किसी
भी वैज्ञानिक प्रयत्न के द्वारा भूकंप आँधी तूफानों बाढ़ों बज्रपातों
चक्रवातों महामारियों आदि को रोका जाना तो संभव है नहीं ,यदि इनके विषय में
पूर्वानुमान लगाया जाना भी संभव नहीं है तो ऐसी घटनाओं के विषय में किए जाने वाले वैज्ञानिक
अनुसंधानों की भूमिका ही क्या बचती है | ऐसे अनुसंधानों से जनधन हानि को
कम किया जाना कैसे संभव है | इनसे किसी विशेष लक्ष्य की पूर्ति की आशा कैसे
की जा सकती है |
ऐसे ही आँधी तूफानों बाढ़ों बज्रपातों चक्रवातों आदि मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में यदि पूर्वानुमान
लगाना ही संभव नहीं है तो इनसे संबंधित वैज्ञानिक अनुसंधानों का योगदान
ही आखिर क्या है | करने के लिए दूसरा कुछ बचता ही नहीं है |
छोटे-से विवाद पर पुरानी दोस्ती कुर्बान मत करो।
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