विज्ञान खंड
महामारीमुक्तसमाज की संरचना का लक्ष्य कैसे पूरा हो !
महामारी ही हिंसक थी या बचाव की तैयारी नहीं थी !
पूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है ?
गलत मानकों से निकलते हैं गलत पूर्वानुमान (दृष्टांत)
प्राकृतिक घटनाओं के कारणों में संशय
महामारी संबंधी कारणों के गलत होने पर गलत निकले पूर्वानुमान !महामारियों को समझने हेतु गंभीर प्रयत्न किए जाएँ !
भूकंपों के कारण पैदा हुई महामारी !
महामारी का कारण है वायुप्रदूषण !
तापमान बढ़ने घटने से पैदा हुई महामारी !
मौसम के कारण पैदा हुई महामारी !
जलवायु परिवर्तन का विज्ञान क्या है ?
जीवनसंबंधी घटनाओं के कारणों में संशय !
किसी के रोगी होने या मृत्यु होने का कारण क्या होता है ?
महामारी आने वाली है ! ये कैसे पता लगे ?
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महामारी भी प्राकृतिक घटना है !वस्तुतः सर्दी ,गर्मी वर्षा आँधी तूफ़ान भूकंप महामारी आदि प्राकृतिक घटनाएँ हमेंशा से घटित होती रही हैं| इन्हें रोकना या इनके प्रभाव को कम किया जाना मनुष्यों के बश की बात ही नहीं है | मनुष्यों के द्वारा ऐसी घटनाओं से अपना बचाव करने के लिए ही केवल प्रयत्न किए जा सकते हैं |
सर्दी ,गर्मी वर्षा आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाओं की तरह ही महामारी आदि प्राकृतिक घटनाओं से बचाव के लिए प्रयत्न किए जाने चाहिए | आदिकाल में जब सर्दी की ऋतु (पौष - माघ) के विषय में किसी को पता नहीं था !उसकी आवृत्तियों के विषय में पता नहीं था !उससे होने वाले रोगों उनसे मुक्ति दिलाने वाली औषधियों के विषय में जानकारी नहीं रही होगी !इससे बचाव के उपाय भी पता नहीं रहे होंगे | इसलिए उस समय सर्दी से बचाव के लिए कोई व्यवस्था भी नहीं रहती होगी |ऐसी स्थिति में उस समय सर्दी लगने से भी बहुत लोग अस्वस्थ होते रहे होंगे ! उनमें से कुछ लोगों की मृत्यु भी हो जाती रही होगी |जिससे सर्दी जैसी ऋतु से भी डर लगता होगा | उस समय सर्दी की ऋतु भी किसी महामारी की तरह ही डरावनी लगती रही होगी |
समय के साथ साथ सर्दी के विषय में धीरे धीरे जानकारी बढ़ती गई ,लोग सर्दी से बचाव के लिए आगे से आगे उपाय करके रखने लगे | उनके प्रभाव से सर्दी लगने के बाद भी लोग रोगी कम होने लगे ! जो लोग बचाव करने में असफल रहे ऐसे कुछ लोग रोगी हुए भी तो उन्हें चिकित्सा सुलभ हो जाने के कारण रोगमुक्त कर लिया जाने लगा | इस प्रक्रिया से क्रमशः सर्दी का भय समाप्त होते होते अब तो लोग सर्दियों का भी आनंद मनाने लगे हैं | उन्हीं उपायों के बलपर अब तो बहुत लोग सर्दियों में भी बर्फीली जगहों की यात्रा का आनंद लेते देखे जा रहे हैं |
इससे गर्मी वर्षा
बाढ़ आँधी तूफ़ानों एवं भूकंप जैसी घटनाओं से संबंधित भय को भी कम किया जा सकता है | अब तो भूकंपरोधी घर भी बनाए जाने लगे हैं इससे भूकंपों का भय और कम होने लगा है | ऐसे ही सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित कठिनाइयों को कम किया जा सकता है |
प्राकृतिक घटनाएँ बचाव प्रधान होती हैं |
कोरोना
जैसी महामारी का प्रकोप भी जानकारी और बचाव के ही आधीन था !महामारी आने के
विषय में जानकारी यदि पहले से कर ली गई होती और उससे बचाव के लिए उचित
उपाय समय से किए जा सके होते तो संभव है कि महामारी से जनधन का नुक्सान उतना नहीं होने पाता, जितना कि हो चुका है |
महामारी हो या अन्य प्राकृतिक घटनाएँ जहाँ कहीं भी घटित होती हैं | वहाँ
के अधिकाँश लोग उन
घटनाओं से प्रभावित या पीड़ित होते हैं |उनमें से कुछ लोग कुछ अधिक पीड़ित
होते हैं तो कुछ
लोग कम पीड़ित होते हैं ,किंतु ऐसा नहीं होता है कि कुछ लोग बहुत अधिक
पीड़ित
हों और कुछ लोग बिल्कुल न हों | महामारी में ही देखा जाए तो जहाँ एक ओर
कुछ लोग संक्रमित भी नहीं हुए वहीं कुछ लोगों की मृत्यु होते देखी गई | लोगों
की मृत्यु होने के लिए यदि महामारी को जिम्मेदार माना जाए ,तो जो संक्रमित
ही नहीं हुए ,उनका बचाव कैसे हुआ |बचाव के लिए उन्होंने स्वयं कोई प्रयत्न
किया या प्राकृतिक रूप से उनका बचाव हुआ ये पता लगाए जाने की आवश्यकता है
|उनका बचाव यदि उनके अपने प्रयत्न से हुआ तो उन्होंने ऐसा प्रयत्न क्या किया था | जिनका बचाव प्राकृतिक रूप से ही हुआ तो उनमें बचाव होने लायक ऐसा विशेषगुण क्या था | जिससे महामारीकाल में भी वे संक्रमित होने से बचे रहे |
जो संक्रमित ही नहीं हुए या जो लोग संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त हुए
इतने बड़े अंतर के लिए केवल महामारी ही दोषी नहीं है ,अपितु ऐसा होने के
लिए मनुष्यों की अपनी व्यक्तिगत परिस्थितियाँ भी जिम्मेदार होती हैं | उन
भिन्न भिन्न परिस्थितियों की जानकारी अवश्य जुटाई जानी चाहिए जिनका प्रभाव
महामारी से संक्रमित होने या न होने पर पड़ा है |
प्राकृतिक घटनाओं का मनुष्यों पर प्रभाव भिन्न भिन्न पड़ने का कारण क्या है !
वर्षा जिस जगह होती है वहाँ स्थित सभी लोग बराबर भीगते हैं | ये वर्षा का स्वभाव है,वर्षा में भीगने से बचाव उन्हीं का हो पाता है | जिनके पास बचाव के साधन होते हैं|वर्षा से बचाव के साधन जिसके पास जैसे होते हैं उसका वैसा और उतना ही बचाव हो पाता है |ये साधन प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं ही तैयार करके रखने होते हैं |
ऐसे ही सर्दी या गर्मी संबंधी ऋतुओं का प्रभाव सभी पर एक समान पड़ता है| इससे कष्ट तो सभी को होता है,किंतु उस सर्दी गर्मी से पीड़ित होकर भी बहुत लोग स्वस्थ बने रहते हैं तो कुछ लोग बीमार हो जाते हैं और कुछ लोगों की मृत्यु भी होते देखी जाती है |
इस प्रकरण में विशेष ध्यान देने लायक बात यह है कि सर्दी - गर्मी का प्रभाव जब सभी पर एक जैसा पड़ता है तो परिणाम भी सभी लोगों पर एक जैसे ही दिखने चाहिए ,किंतु ऐसा नहीं होता है |सर्दी - गर्मी से पीड़ित होकर भी कुछ लोगों का पूरी तरह से स्वस्थ बना रहना और कुछ लोगों का अस्वस्थ हो जाना तथा कुछ लोगों की मृत्यु होने जैसे तीन परस्पर विरोधी परिणाम निकलने से यह निश्चित होता है कि सर्दी - गर्मी का प्रभाव तो सब पर एक जैसा ही पड़ा है किंतु उन सब की सहनशक्ति के अनुशार लोग अलग अलग मात्रा में पीड़ित हुए हैं | इसके लिए प्रत्येक मनुष्य के अपने अपने शरीर ही जिम्मेदार हैं |ऐसे ऋतुजनित प्रकोपों से सुरक्षा के लिए शरीर को किस प्रकार की क्षमता की आवश्यकता होती है | यह पता लगाया जाना चाहिए |
ऐसे प्रकरणों में अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाना चाहिए कि सर्दी - गर्मी का प्रकोप सहकर
भी जो शरीर पूरी तरह स्वस्थ बने रहे, उनमें स्वास्थ्य संबंधी ऐसा विशेष
गुण क्या रहा जिससे उनमें इस प्रकार की क्षमता निर्मित हुई !उसी सर्दी - गर्मी के प्रकोप को जो सह न पाए जिससे वे अस्वस्थ हुए या मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | उन लोगों के शरीरों में ऐसी कमी क्या रही कि जिसकी पूर्ति कर देने से भविष्य में वे भी सर्दी गर्मी के दुष्प्रभाव से मुक्त रह सकते थे |
ऐसे ही किसी क्षेत्र में भूकंप आने पर वहाँ के मकानों की कुल संख्या के अनुपात में अधिकाँश मकान क्षतिग्रस्त हो जाएँ तो इसके लिए भूकंप की तीव्रता को दोषी माना जा सकता है किंतु यदि भूकंप आने पर वहाँ अधिकाँश मकान सुरक्षित बने रहें और उस अनुपात में कुछ मकान ही क्षतिग्रस्त हों | इसका मतलब क्षतिग्रस्त हुए मकान ही कमजोर थे |ऐसी स्थिति में वैज्ञानिक अनुसंधानों का उद्देश्य यदि जनहित है तो जनसुरक्षा ही पहली प्राथमिकता होनी चाहिए |इसलिए भूकंपों से अधिक मकानों को मजबूत करने के विषय में अनुसंधान किए जाने चाहिए जो भूकंपों के धक्के झेलने लायक हों |
इसके अतिरिक्त भूकंप का केंद्र कहाँ था, उसकी तीव्रता कितनी थी,वह कितनी गहराई में आया था और किस जोन में भूकंप आया था !कितनी गहराई पर आया था ,जमीन के अंदर लावे पर कौन कौन प्लेटें तैरती हैं या धरती के गर्भ में संचित गैसों के दबाव के कारण यह भूकंप घटित हुआ है आदि बातें अनुसंधानों के लिए आवश्यक हो सकती हैं किंतु ऐसी बातों का जनहित से कोई सीधा संबंध नहीं जुड़ता है,किंतु भूकंप आने पर होने वाली ऐसी चर्चाओं में जनहित से संबंधित वे आवश्यक बिंदु दब जाते हैं जिनकी चर्चा होनी आवश्यक है |
इसीप्रकार से कोरोना महामारी में कुछ लोगों के संक्रमित होने और कुछ के संक्रमित न होने का कारण महामारी कैसे हो सकती है |महामारी तो सभी को संक्रमित करेगी | इसमें तो उन लोगों का कोई व्यक्तिगत कारण हो सकता है|
महामारी आने पर कुछ लोग संक्रमित हुए ! इसका कारण महामारी कम और संक्रमितों में महामारी सहने की क्षमता का अभाव अधिक है | इसी कारण से वे संक्रमित हुए हैं | संक्रमितों की उस कमजोरी को पहचाना जाए एवं उसका पता लगाया जाए !उसी की चिकित्सा के लिए प्रभावी औषधि खोजी जाए ,ताकि महामारी से संक्रमित न होने वाले बहुसंख्य लोगों की तरह ही संक्रमित होने वाले उन लोगों को भी संक्रमित होने से बचाया जा सके | यदि कोई संक्रमित ही न हुआ होता तब तो महामारी आने के बाद भी समाज महामारी मुक्त बना रहता | जिससे महामारी मुक्त समाज की संस्थापना संभव थी |
प्रतिरोधक क्षमता मतलब क्या ?
जिस प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता के अभाव में किसी समय विशेष पर बहुत
सारे लोग एक साथ अस्वस्थ होने लगते हैं | इसलिए उसे महामारी मान लिया जाता
है या उस महामारी के कुछ घोषित लक्षण भी होते हैं |
महामारी में होने वाली जनधन हानि का कारण महामारी होती है या फिर मनुष्यों में होने वाली प्रतिरोधक क्षमता का अभाव !इसका कारण यदि महामारी को माना जाए तब तो जितने क्षेत्र में महामारी आई वहाँ रहने वाले सभी को संक्रमित होना चाहिए था किंतु ऐसा तो नहीं हुआ !इतनी बड़ी महामारी आने के बाद भी संपूर्ण जनसंख्या के अनुपात में बहुत छोटा सा वर्ग ही महामारी से संक्रमित हुआ है |
इसलिए महामारी को समझ पाना यदि वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा अभी नहीं भी संभव है तो संक्रमित नहीं हुए लोगों की अपेक्षा संक्रमित हुए लोगों के शरीरों में ऐसी क्या कमी थी ,जिसके कारण वे संक्रमित हुए वह अवश्य खोजा जाना चाहिए |भविष्य के लिए यह पता लगाया जाना बहुत आवश्यक है |
इसके साथ ही जो वर्ग संक्रमित होने से बचा रहा !या जो वर्ग वैक्सीन लगवाने के बाद संक्रमित होने से बचा रहा अथवा जो वर्ग कोरोना नियमों का पालन करने के बाद संक्रमित होने से बचा रहा | ऐसे लोग अपने शरीर की किस विशेष क्षमता के कारण संक्रमित होने से बचे रहे |यह पता होना भविष्य के लिए आवश्यक है | इसके साथ ही साथ जिस वर्ग ने न वैक्सीन लगवाई न कोरोना नियमों का पालन किया न बचपन से टीके लगवाए न टॉनिक,बिटामिन या पौष्टिक आहार लिया | इसके बाद भी वे अपनी किस क्षमता के कारण संक्रमित नहीं हुए | यह खोज संक्रमित हुए लोगों को भविष्य के लिए संजीवनी सिद्ध हो सकती है |
महामारी भयंकर थी या बचाव के लिए तैयारी नहीं थी !
महामारी से बचाव के लिए भारी भरकम तैयारी बहुत पहले से करके रखनी होती है |इसलिए महामारी के आने के विषय में पहले से पूर्वानुमान पता लगाना होता है |महामारी की लहर आने के विषय में भी पहले पता करके रखना होता है | महामारी का प्रसार माध्यम क्या है ?उसका विस्तार कहाँ तक है ?उसमें अंतर्गम्यता कितनी है ? उस पर तापमान बढ़ने या कम होने का प्रभाव पड़ता है या नहीं | वायुप्रदूषण बढ़ने का प्रभाव पड़ता है या नहीं ? वर्षा होने या न होने का प्रभाव कितना पड़ता है आदि बातें तो बहुत पहले पता लगाई जानी चाहिए थीं !
तापमान,वायुप्रदूषण या वर्षा आदि में से जिस भी प्राकृतिक घटना का प्रभाव महामारी पर पड़ता है ऐसा पता लगता उस प्राकृतिक घटना के विषय में पहले से पूर्वानुमान करके रखना होता ! उसी के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाकर रखना संभव हो पाता | इसके लिए ऐसे विज्ञान की आवश्यकता है जिसके आधार पर मौसम के विषय में दीर्घावधि पूर्वानुमान पहले से लगाया जाना संभव होता |
इसप्रकार से महामारी के विषय में पता लगा लिए जाने के बाद, उस पर मौसम संबंधी प्रभाव के विषय में निश्चय हो जाने के बाद यदि पूर्वानुमान लग जाने के बाद यदि मौसम संबंधी दीर्घावधि पूर्वानुमान पहले से लगाने में सफलता मिल जाती है |
इसके बाद महामारी संबंधी रोग और उसके लक्षणों को अच्छीप्रकार से पहचानकर उसकी औषधि का ,निर्णय लेना ! औषधि निर्माण करके उसका परीक्षण करना |एक बार सफलता मिल जाने के बाद भारी भरकम मात्रा में औषधीय द्रव्यों का संग्रह करके अधिक मात्रा में औषधि का निर्माण करना फिर उसे जन जन तक पहुँचाने की प्रक्रिया पूरी करना आदि महामारी बचाव के लिए प्रयत्न किए जाने की आवश्यक प्रक्रिया है |
महामारी से किसे कितना ख़तरा है !
कोरोना महामारी के समय में भी कुछ
लोगों के शरीरों पर महामारी का प्रभाव बिल्कुल नहीं पड़ता है और वे पूरी
तरह स्वस्थ बने रहते हैं | कुछ लोग संक्रमित तो होते हैं लेकिन स्वस्थ हो
जाते हैं जबकि कुछ लोग संक्रमित होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | इन
तीनों प्रकार के शरीरों में किस प्रकार का कितना अंतर है उनके बचाव के लिए
यह समझा जाना बहुत आवश्यक है कि जब महामारी एक है और मनुष्य शरीरों की बनावट भी लगभग एक जैसी ही है, तो उन पर पड़ने वाले महामारी के प्रभाव का परिणाम भी सभी लोगों पर लगभग एक जैसा ही दिखना चाहिए, किंतु भिन्न भिन्न लोगों के शरीरों पर महामारी का प्रभाव अलग अलग पड़ने का कारण क्या हो सकता है ? यह प्रभाव किस प्रकार के व्यक्ति पर कैसा पड़ सकता है या महामारी से किस व्यक्ति को कितना नुक्सान हो सकता है |
महामारी आते पहले से तो दिखाई पड़ती नहीं है,
लोगों के बड़ी संख्या में संक्रमित हो जाने के बाद पता लग पाता है कि
महामारी आ गई है |उस समय उसका वेग इतना अधिक होता है कि उसे रोकने या उससे
बचाव के लिए ऐसे कुछ प्रभावी प्रयत्न किए जाने संभव नहीं हो पाते हैं
जिनके उद्देश्यों के अनुरूप जनहित में कुछ ऐसे परिणाम निकलें |जो महामारी
से जूझती जनता के लिए लाभप्रद सिद्ध हों |
ऐसा अनुभव किया जाता है कि योगिकक्रियाएँ पूजा पाठ यज्ञ हवन आदि करने वाले योगी लोग स्वस्थ होते हैं उनकी आयु भी लंबी होती है ! उन्हें शुगर बीपी घबड़ाहट जैसे रोग नहीं होते हैं| ऐसे लोगों को महामारी से भी कोई परेशानी नहीं हुई | इसका कारण यदि उनका धर्म कर्म पूजा पाठ योगासन आदि को माना जाए तो उसी श्रेणी के कुछ दूसरे साधू महात्मा आदि लोग भी उसी प्रकार से योगासन पूजा पाठ यज्ञ हवन आदि करते देखे जाते हैं किंतु उनमें उसप्रकार की प्रतिरोधकक्षमता नहीं होती है | उन्हें अक्सर रोगी होते हुए देखा जाता है|शुगर बीपी घबड़ाहट जैसे रोग भी उन्हें गृहस्थों की तरह ही होते देखे जाते हैं | उनकी आयु भी उतनी लंबी होते नहीं देखी जाती है |इसीलिए तो हरिद्वार में हुए कुंभ मेले को समय से पूर्वबिसर्जित करना पड़ा था |
इसी प्रकार से जो आर्थिक रूप से संपन्न वर्ग है, उसके यहाँ तो गर्भावस्था से ही चिकित्सकों की सेवा शुरू हो जाती है |जन्म होने के बाद बहुत सारे टीके लगाए जाते हैं | चिकित्सकों की सलाह के अनुशार पौष्टिक आहार बिहार बिटामिन आदि समय समय पर दिए जाते हैं | उनका रहन सहन खान पान स्वच्छता पूर्ण एवं स्वास्थ्य के अनुकूल रखा जाता है,ताकि भविष्य में संभावित रोगों से बचाव हो सके !ऐसे सक्षम लोग सुख सुविधानुसार वातानुकूलित जीवन जीते रहे|कोरोना नियमों का संपूर्ण पालन करते रहे ! ऐसा सब कुछ करने के बाद भी वे कोरोना संक्रमित हुए !आखिर उनके जीवन में ऐसी क्या कमी रह गई कि उन्हें कोरोना से संक्रमित होना पड़ा | ऐसे लोगों में प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने का कारण क्या है |
इसी प्रकार से गरीब मजदूर बनबासी आदि योगी तपस्वी तो नहीं ही होते हैं |यह भी आवश्यक नहीं है कि उनका जीवन धार्मिक ही हो !उनका रहन सहन खान पान आदि सात्विक हो ऐसा भी निश्चित नहीं है | महानगरों की मलिन बस्तियों में रहने वाले उन गरीबों मजदूरों आदि के खान पान रहन सहन आदि में उतनी स्वच्छता भी नहीं हो पाती है | खुले में रहने के कारण वायुप्रदूषण की परेशानी भी इन्हें औरों की अपेक्षा अधिक सहनी पड़ती है | इन्हें पीने के लिए जो जल मिलता है वह भी उतना स्वच्छ नहीं होता है | जो भोजन मिलता है वह भी उतनी स्वच्छता से नहीं बनाया जा सका होता है !वह स्वाद के अनुकूल होता है और न ही स्वास्थ्य के !पर्याप्त भी नहीं होता है | ऐसे लोगों के बचपन में स्वास्थ्य सुरक्षक टीके भी नहीं लगे होते हैं | बिटामिन आदि का सेवन नहीं किया होता है | उनका रहन सहन खान पान आदि संघर्षपूर्ण अभावग्रस्त आधा अधूरा रहा होता है | इसके बाद भी उनमें प्रतिरोधक क्षमता इतनी मजबूत होने का कारण क्या होता है ?
ऐसे लोग भयंकर कोरोनाकाल में भी कोविड नियमों की परवाह किए बिना महानगरों से मजदूरों के रूप में निर्भीक होकर निकल पड़ते हैं ! दिल्ली में संक्रमित हुए बिना किसानों
के रूप में आंदोलन करते रहते हैं | भोजन लेने के लिए लाइनों में खड़े रहते
हैं ! घनी बस्तियों में, फैक्ट्रियों में सामूहिक रूप से रहते रहे
!परिस्थिति वश उन्हें कई बार संक्रमितों के साथ भी रहना पड़ा !संक्रमितों का
छुआ खाना तथा उनके पहने हुए कपड़े भी पहनने पड़े !इसके बाद भी वे जिस प्रतिरोधक क्षमता के बलपर महामारी से संक्रमित हुए बिना बचे रहते हैं | वह प्रतिरोधक क्षमता कैसे बनती है |
योगियों और साधू संतों में धार्मिक दोनों हैं पूजा पाठ हवन यज्ञ आदि दोनों करते हैं,किंतु योगियों में जैसी रोग प्रतिरोधक क्षमता होती है, संभवतः वैसी आम साधू संतों में नहीं होती है इसका कारण क्या है ?जबकि धर्म कर्म सदाचरण आदि में दोनों ही एक जैसे हैं |योगियों में प्रतिरोधक क्षमता अच्छी होने का कारण यदि उनके धर्म कर्म को मान लिया जाए,तो इससे अलग जो लोग प्रतिकूल परिस्थितियों में अभावग्रस्त जीवन जीते हुए भी संक्रमित होने से बचे रहे, उनमें इतनी मजबूत प्रतिरोधक क्षमता होने का कारण क्या है !अन्य लोगों की अपेक्षा उनमें ऐसा विशेष क्या है ?
इसमें विशेष बात यह है कि यदि धर्म कर्म पूजापाठ हवन आदि से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती होती तो उन सहज सामान्य साधू संतों में भी प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाती | यदि अच्छे पौष्टिक खान पान से प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती होती तो उस साधन संपन्न वर्ग की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जानी चाहिए थी | जिसका सारा खान पान रहन सहन आदि स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर ही व्यवस्थित किया जाता है | ऐसे दोनों प्रकार के लोगों को महामारी में संक्रमित होते देखा गया है | दूसरे योगक्रियाओं में निरत या फिर अभावग्रस्त वर्ग में ऐसी कौन सी विशेषता थी जिसके कारण वह औरों की अपेक्षा संक्रमित होने से बचा रहा !उसका कारण खोजे जाने की आवश्यकता है |
ऐसी परिस्थिति में सभी लोग यदि वैसी ही मजबूत प्रतिरोधक क्षमता पाना चाहें तो उसके लिए उन्हें क्या करना चाहिए ?कैसे रहना चाहिए किस प्रकार का आहार बिहार अपनाना चाहिए !जिससे महामारी के समय में भी समाज महामारी से संक्रमित होने से बचा रहे और महामारी मुक्त समाज की स्थापना की जा सके !
परिवर्तन होने का कारण समय है या कुछ और !
प्रकृति में होने वाले समस्त परिवर्तनों के लिए जिम्मेदार कारण क्या है | मौसम में बदलाव , प्राकृतिक आपदाएँ ,महामारियों का आना जाना या स्वरूप परिवर्तन या समाज का स्वस्थ रहना या रोगी होना या रोगी होकर स्वस्थ होना ,सुखी या दुखी होना आदि के लिए जिम्मेदार कारण क्या है ?
समय का प्रभाव समस्त ब्रह्मांड पर पड़ता है समय परिवर्तनशील इसलिए ब्रह्मांड भी परिवर्तनशील है !इसलिए प्रकृति के प्रत्येक अंश में प्रतिपल छोटे या बड़े परिवर्तन होते ही रहते हैं |जो लोग प्रकृति के जितने समीप रहते हैं उन्हें उतनी ही जल्दी ऐसे परिवर्तनों के विषय में पूर्वाभाष हो जाता है| मनुष्यों का मन विभिन्न ब्यवहारों में उलझा रहता है इसलिए उन्हें ऐसे परिवर्तनों का अनुभव उतनी आसानी से नहीं हो पाता है,जबकि पशु पक्षियों को हो जाता है |इसीलिए भूकंप या किसी भी प्रकार की प्राकृतिक आपदा आने से पहले विभिन्न पशुओं पक्षियों समेत समस्त जीव जंतुओं के व्यवहार बदलाव होते देखे जाते हैं |
जिस प्रकार से कोई वाहन कितनी भी तेज चलता जा रहा हो उस पर बैठा हुआ व्यक्ति उस बाहन के साथ साथ चलता जाता है लेकिन उस वाहन से एक बार उतर जाने के बाद यदि उसी वाहन में कोई पुनः बैठना चाहे तो उसे चोट लग सकती है !
इसीप्रकार से गर्मी या सर्दी बढ़ने पर साधन संपन्न लोग वातानुकूलित स्थानों में रहकर अपने को कुछ समय के लिए प्रकृति से अलग कर लेते हैं |जिससे वे प्रकृति की गति(रफ़्तार) से अपने को अलग कर लेते हैं |सुख सुविधा भोग चुकने के बाद उसी प्राकृतिक वातावरण में उन्हें भी सम्मिलित होना होता है | जिसे वे सह नहीं पाते हैं और रोगी हो जाते हैं ,जबकि केवल प्राकृतिक वातावरण में रहने वाले आदिवासी बनबासी किसान गरीब मजदूर आदि साधन विहीन लोग प्रकृति की गति(रफ़्तार) के साथ चला करते हैं उन पर ऐसे परिवर्तनों का उतना अधिक प्रभाव नहीं पड़ता है |संपन्न वर्ग के कुछ लोग अपना रहन सहन खान पान वाहन आदि सब कुछ वातानुकूलित कर लेते हैं,किंतु उन्हें भी साँस तो उसी प्राकृतिक हवा में लेनी होती है और भोजन में उपयोग किए जाने वाले फल फूल शाक सब्जियाँ आदि तो वातानुकूलित वातावरण में नहीं पैदा होती हैं | इसलिए उन्हें केवल वही पचा सकते हैं जो जीवन में केवल प्राकृतिक वातावरण का ही सेवन करते हैं |
इसीलिए सभी साधनों से संपन्न लोग कोरोना नियमों का संपूर्ण पालन करने के बाद भी आदिवासियों बनबासियों किसानों गरीबों मजदूरों आदि साधन विहीन लोगों की अपेक्षा अधिक संक्रमित होते देखे गए ,जबकि ऐसा साधनविहीन वर्ग कोरोना नियमों का पालन भी नहीं कर पाया !इसके बाद भी वह परिवर्तित प्रकृति को पचा गया किंतु साधन संपन्न वर्ग नहीं पचा पाया | साधन विहीन वर्ग केवल प्रकृति के साथ ही छिपका रहा !जैसे माँ का दूध संतान के लिए हितकर होता है है वैसे ही प्रकृति से चिपके लोग समस्त प्राकृतिक परिवर्तनों को सहते हुए भी स्वस्थ रह लिया करते हैं |जलवायु परिवर्तन या महामारी का स्वरूप परिवर्तन जैसी घटनाओं में भी प्राकृतिक जीवन जीने वाले लोग अधिक पीड़ित नहीं होते हैं |सारी समस्या प्रकृति से अलग हटकर जीवन जीने वाले लोगों को होती है |
प्रकृति में जो चीज जैसी पैदा होती है वैसी ही खाने वाले जीव बहुत कम रोगी होते हैं वर्षा से मिलने वाला जल विकार रहित निर्मल होता है | उसे पीने से रोग नहीं होते हैं | पशु बिना पकाए प्रकृति से प्राप्त वस्तुओं का सेवन करते हैं | वे स्वस्थ रहते हैं कोरोना से संक्रमित वे भी हुए किंतु वे सहज ही स्वस्थ हो गए !वे वस्त्र नहीं पहनते तो भी उन्हें सर्दी गर्मी से भय नहीं होता है | प्रकृति से चिपके रहने का अपना आनंद है !प्रकृति में जैसे जैसे बदलाव होते जाते हैं शरीर भी वैसे वैसे ही बदलते जाते हैं |
प्रकृति की बनावट को समझना होगा !
परिवर्तन प्रकृति 'यत्पिंडे तत्ब्रह्मांडे' प्रकृति और शरीर दोनों साथ साथ बदलते हैं | संपूर्ण ब्रह्मांड में जब जिस प्रकार के परिवर्तन होते हैं ! वृक्ष बनस्पतियों समेत समस्त जीव जंतुओं यहाँ तक कि मनुष्यों में भी वैसे वैसे परिवर्तन होते जाते हैं | ग्रीष्मऋतु में प्राकृतिक वातावरण जब गरम होता है तब हवाएँ भी गरम चलती हैं समस्त वस्तुओं के साथ शरीर भी गरम होते हैं ,ऐसे शरीरों को गरमी या लू लगने से उतनी परेशानी नहीं होती है जितनी उन्हें होती है | जो एक बार प्राकृतिक वातावरण से अलग हटकर दुबारा उस वातावरण में सम्मिलित होते हैं | ऐसा सर्दी की ऋतु में भी होता है |
कोई व्यक्ति कुछ दिन स्कूल न जाए तो उसका बहुत सारा काम छूट जाता है जिसके लिए उसे परेशान होना पड़ता है | उसी प्रकार से एक बार प्रकृति से अलग होकर दोबारा प्राकृतिक वातावरण में सम्मिलित होने पर परेशानी तो उठानी ही पड़ती है |ऐसे ही प्राकृतिक जीवन जीने वाले लोगों की अपेक्षा प्राकृतिक वातावरण से अलग हटकर सुख सुविधापूर्ण जीवन जीने वाले लोग अधिक रोगी होते हैं ,एवं महामारी जैसे प्राकृतिक रोगों से वे अधिक संक्रमित होते हैं |
कोई व्यक्ति यदि सूर्योदय से पहले जग जाता है तो सूर्योदय होने से लेकर दोपहर तक बढ़ते सूर्य तेज को आँखें क्रमशः सहती जाती हैं |जिससे उनकी आँखें उन लोगों की अपेक्षा कम खराब होती हैं जो लोग सुबह सोकर देर से उठते हैं | उनकी आँखें सूर्य के बढ़े हुए तेज को सह नहीं पाती हैं |
ये संसार ईश्वर का स्वरूप है | इसमें प्रकृति की बनावट ही कुछ ऐसी है कि प्रत्येक जीव को कब जन्म लेना है कैसे परिवार में जन्म लेना है कितनी उम्र तक जीवित रहना है उसमें कितनी सासें लेना है,कब किस प्रकार का भोजन कितना लेना है |किस प्रकार का सुख कितना भोगना है | वो सब कुछ निश्चित है | केवल सेवाकार्य अनिश्चित है | किसको किस क्षेत्र में कितनी सेवा देनी है वो सबकुछ उसे स्वयं चुनना और करना है |
किसी कुर्ता या शर्ट को सिलने में जितना कपड़ा लगना होता है उससे अधिक कपड़ा लेकर दरजी के पास जाना पड़ता है,ताकि दरजी जरूरत भर के लिए कपड़ा ले ले ,उसमें से कुछ कपड़ा काटने में बेकार भी निकल जाता है |किसी विद्यार्थी को परीक्षा में जितने प्रतिशत नंबर लाने होते हैं उससे अधिक लिखना होता है किंतु लिखने की अपेक्षा नंबर कम मिलते हैं |ऐसे ही प्रत्येक व्यक्ति जितनी बड़ी सफलता चाहता है,उसे प्रयास परिश्रम आदि उससे अधिक करना पड़ता है |
सृष्टि में सुख सुविधा के जितने संसाधन हैं उन्हें भोगने के लिए उतने ही जीव हैं | सभी लोग यदि अपनी अपनी आवश्यकता भर के लिए उपयोग करेंगे, उन्हें अनावश्यकरूप से बर्बाद नहीं करेंगे तो वो सभी को पर्याप्त मात्रा में मिल पाएगा,किंतु यदि ऐसा नहीं होगा तो बहुत लोगों को उतना भी नहीं मिल पाएगा जितनी उनके लिए आवश्यक है | इससे उनके द्वारा किया जाने वाला संसार की सेवा का कार्य रुकेगा |परीक्षा हाल में परीक्षा लेने के लिए उतने ही पेपर कापी आदि भेजे जाते हैं जितने परीक्षार्थी होते हैं |उनमें से यदि कोई परीक्षार्थी यदि पेपर कापी आदि को अनावश्यक रूप से बर्बाद कर देता है तो उसका प्रभाव किसी दूसरे छात्र की परीक्षा पर पड़ता है | इससे प्रकुपित होकर परीक्षक कुछ अन्य ऐसे कठोर नियम लागू करता है | जिससे दंडित तो केवल वही विद्यार्थी किए जाते हैं जिन्होंने परीक्षोपयोगी सामग्री निरर्थक रूप से बर्बाद की होती है, किंतु परीक्षा व्यवस्थापकों के द्वारा उसके बाद जो कठोरता बरती जाती है उसका सामना उन समस्त परीक्षार्थियों को करना होता है |
रोगी क्यों होते हैं ?
भोगेरोगभयं - प्रत्येक व्यक्ति के शरीर की बनावट अलग अलग होती है सबके शारीरिक अंगों की क्षमता भी अलग अलग होती है |जो सुख जितना भोगना जिसके भाग्य में निर्धारित होता है वो सुख उतना भोगने लायक ही उसे शारीरिक अंग मिलते हैं |उतना भोगने लायक ही उस शरीर की बनावट होती है | इसलिए वे उन सुखों का उतना ही भोग कर सकते हैं उससे अधिक नहीं !उससे अधिक भोगते ही शरीर में उस प्रकार के रोग होने शुरू हो जाते हैं |
जिसे जितना घी तेल मीठा नमकीन आदि भोज्य पदार्थ भाग्य के द्वारा
प्रदान किए जाते हैं वह उन भोज्य पदार्थों का उतना ही सेवन कर सकता है |
उससे अधिक अंश को पचाने लायक पाचन क्षमता उनके शरीरों में होती ही नहीं है | उस अतिरिक्त भोजन को न पचा पाने के कारण ही उसके शरीर में उससे संबंधित रोग होने लग जाते हैं |
कुछ लोग ब्यभिचार भ्रष्टाचार घूसखोरी मिलावट या धोखाधड़ी आदि के द्वारा सुख सुविधा के साधन कुछ अधिक प्राप्त कर लेते हैं |उस अतिरिक्त भाग को भोगते ही वे रोगी होने लगते हैं,क्योंकि उस अतिरिक्त भाग को भोगने लायक क्षमता उनके शारीरिक अंगों में होती ही नहीं है | इसीलिए उनके उस प्रकार के अंग बेकार होने लगते हैं | जिससे वे रोगी होने लगते हैं |ऐसे लोग अपनी भाग्यसीमा से अधिक मात्रा में जिस रस का सेवन करते हैं इसलिए उन्हें उस रस से संबंधित रोग होने लग जाते हैं | शुगर वीपी जैसे रोग उन रसों को भाग्य से अधिक भोगने का ही परिणाम होता है |
भ्रष्टाचार घूसखोरी मिलावट या धोखाधड़ी आदि के द्वारा
अर्जित धन से कितने भी पौष्टिक पदार्थ खाए जाएँ ! ऐसे शरीरों पर उनका
प्रभाव विषैला ही होता है | ऐसे लोग रोगी होकर कितने भी बड़े चिकित्सक से
चिकित्सा करवाने जाएँ या उन पैसों से औषधि लेकर अपने शरीरों पर प्रयोग करें
तो उन पैसों को देकर ली गई चिकित्सकीय सलाह या अच्छी औषधियों का प्रभाव भी ऐसे लोगों के शरीरों पर प्रतिकूल ही पड़ता है |
इसी प्रकार से जो लोग जिस प्रकार के भोजन को जितना बर्बाद करते हैं उस
प्रकार का उतना भोजन उनके भाग्यप्रदत्त कोष से कट जाता है | इसका मतलब ये
होता है कि उनके भाग्य में जो भोजन जितना बदा होता है उसी में से बर्बाद
किए हुए भोजन की कटौती हो जाती है |जितना भोजन जिसने बर्बाद किया होता है
उतना काटकर जो बचता है उतना ही भोजन पचाने लायक उनका शरीर रह जाता है |
सुख भोग की इसी श्रेणी में कुछ ब्यभिचारी लोग अपना विवाह होने से पहले या बाद में अपने पति या पत्नी से बासनात्मक सुख भोग लेने के पहले या बाद में कुछ विवाहेतर संबंध बनाकर उनसे जितना ऐसा सुख प्राप्त कर लेते हैं,उनके बासनात्मक सुख भोगने की प्रकृति प्रदत्त क्षमता में उतनी कटौती हो जाती है !उससे अधिक सुख भोगने का प्रयास यदि ऐसे लोग करते हैं तो उनके शरीरों में प्रकृति कुछ ऐसे रोग दे देती है | जिससे उनके शरीर उस प्रकार के सुख भोगने लायक ही नहीं रह जाते हैं|
कठिनाइयाँ लंबी आयु पाने के लिए प्राणायाम करके स्वाँसें बचाया करते थे !निराहार रहकर भोजन बचा लिया करते थे और सुख सुविधाओं का परित्याग करके उन्हें भोगने से भी अपने को बचा ले जाते थे | जिससे उनके हिस्से का यहाँ सबकुछ ही बचा रहता था !इसीलिए उनके सारे अंग अंत तक काम किया करते थे और वे जितनी आयु चाहते थे उतने वर्षों तक वे जीवित रहा करते थे | सभी प्रकार के रोगों महारोगों आपदाओं, दुर्घटनाओं या महामारियों से उन्हें कोई भय नहीं होता था | ऐसे योगियों को मृत्यु छू भी नहीं पाती थी | वे अपनी इच्छा के अनुशार ही अपने शरीर का विसर्जन किया करते थे | योगियों के विषय में यह सब कुछ देख सुन कर ऐसा लगता है कि संभवतः योगी लोग प्राणायाम आसन व्यायाम तपस्या आदि करने के कारण स्वस्थ एवं दीर्घायु हुआ करते थे |
किसी की मृत्यु होने के लिए कुछ रोगों ,आपदाओं, दुर्घटनाओं या कुछ महामारियों को जिम्मेदार मान लिया गया है| इसलिए जब जब उस प्रकार की घटनाएँ घटित होते दिखाई पड़ती हैं ,तब तब उनसे डर लगने लगता है कि इनसे मृत्यु हो सकती है,जबकि ऐसा होता नहीं है | यदि ऐसा होता तब तो मृत्यु के लिए जिम्मेदार जितनी घटनाएँ मानी जाती हैं उनके चपेट में आए बिना किसी की मृत्यु नहीं होनी चाहिए !किंतु होती है | नहाते धोते खाते पीते या पूजा करते आराम करते हँसते खेलते नाचते कूदते लोगों की भी मृत्यु होते देखी जाती है ,जबकि ब्यवहार में इस प्रकार की सहज घटनाओं को किसी की मृत्यु के लिए जिम्मेदार नहीं माना जाता है ,फिर भी कुछ लोगों की मृत्यु ऐसे भी होते देखी जाती है |उसका कारण क्या हो सकता है |
वस्तुतः किसी व्यक्ति के पैदा होने के साथ ही दो घटनाएँ घटित होती हैं |पहली यह है कि उसके लिए भोजन एवं सुख सुविधा की सामग्रियाँ तुरंत पहुँचा दी जाती हैं | दूसरी बात जितना भोजन एवं सुख सुविधा की सामग्रियाँ भेजी जाती हैं उनका सुख भोगने लायक उनके शारीरिक अंग बना दिए जाते हैं |इसमें विशेष बात यह है कि उसके हिस्से का भोजन आदि सुख सुविधा जब तक बची रहती है तब तक वह व्यक्ति स्वस्थ एवं जीवित रहता है | जैसे ही उसके भाग्य प्रदत्त भोजन एवं सुख सुविधा की सामग्रियाँ एक एक कर समाप्त होने लगती हैं |वैसे वैसे उसके वे वे अंग बेकार होने लगते हैं | जिनसे उनका स्वाद लिया जाता है या सुख भोगा जाता है |उन अंगों को पुनः करने के लिए हम चिकित्सक के पास जाते हैं वे कुछ समय तक चिकित्सा करते हैं फिर भी उन अंगों के काम न करने पर चिकित्सक उन उन चीजों को खाने आदि पर प्रतिबंध लगा देते हैं | ऐसे ही उसके हिस्से की अन्य सुख सुविधा की सामग्रियाँ भी एक एक कर समाप्त होती जाती हैं उन्हें भी खाना भोगना आदि धीरे धीरे छोड़ते जाना पड़ता है| इस क्रम में एक एक करके अंग बेकार होते चले जाते हैं | जिस क्षण उसका भाग्य प्रदत्त भोजन एवं सुख सुविधा प्रदान करने वाली सामग्रियाँ समाप्त होते ही उसका जीवन पूरा हो जाता है |
लंबी आयु प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि अपने अपने हिस्से के भाग्य प्रदत्त भोजन एवं सुख सुविधाओं को कम कम या बचा बचाकर खर्च किया जाए !जितने लंबे समय तक वे चलती रहेंगी उतने समय तक वो मनुष्य स्वस्थ एवं सुखी जीवन जीता रहेगा |
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मृत्यु होने का कारण क्या है ?
इस प्रकार का भोगवाद जब बहुत अधिक एक साथ बढ़ जाता है तब बहुत लोग एक साथ अपनी अपनी आयु खो चुके होते हैं और वे मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं |जिनकी मृत्यु का कारण पता नहीं चलता है!यही महामारी होती है |
ऐसे समय रोग लक्षण पहचानना इसलिए कठिन होता है ,क्योंकि जो रोग प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहे होते हैं उनके अनुशार की गई औषधि से कोई लाभ नहीं होता है आयु खो चुकने के कारण उन पर अच्छी से अच्छी औषधि का भी कोई प्रभाव नहीं पड़ता है |
ऐसे लोगों के द्वारा जिसके हिस्से की सुख सुविधाएँ भोगी गई होती हैं उन्हें वे नहीं मिल पाती हैं जो प्रकृति के द्वारा उनके लिए भेजी गई होती हैं | ऐसी स्थिति में उनके वे अंग आजीवन स्वस्थ बने रहते हैं | उन्हें मीठा, घी, तेल को न खाने जैसे प्रतिबंध कभी नहीं सहने पड़ते हैं | वो सब कुछ खाकर भी वे आजीवन स्वस्थ बने रहते हैं |
कुछ साधन विहीन गरीब लोग अपना भाग्य प्रदत्त मानक (कोटा) ही पूरा नहीं भोग पाते हैं | इसलिए प्रकृति स्वयं उनके साथ न्याय करना शुरू करती है |
ऐसे दीन हीन अकिंचन साधन विहीन लोग उन अल्प सुखों को पाकर भी उनसे पूर्ण संतुष्ट होते हैं | घास फूस फूल पत्ते खाकर भी स्वस्थ एवं बलिष्ठ बने रहते हैं | ऐसे लोग साधारण औषधियों के द्वारा बड़े बड़े रोगों से मुक्ति पा लिया करते हैं |साधारण प्रयासों से बड़ी बड़ी समस्याओं से मुक्ति पा लिया करते हैं |
किसी भी व्यक्ति के भाग्य में सभी प्रकार की सुख सुविधाएँ भोजन आदि जितने निर्धारित होते हैं उतने यदि कम समय में ही प्राप्त कर लिए जाएँ तो उनके लिए यहाँ कुछ बचता ही नहीं है |इसलिए उन्हें सभीप्रकार का भोजन पचना बंद हो जाता है और मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं |
जब दूसरे के हिस्से के स्त्री या पुरुष का शारीरिक उपभोग किया जाने लगता है जब को दूसरों समाज जब दूसरों सी घटनाएँ जब दिनोदिन बढ़ने लगती हैं
तब ऋतुओं का संतुलन बिगड़ने लगता है ! सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं की समयावधि असंतुलित रूप से घटने बढ़ने लगती है ! सर्दी गर्मी वर्षा आदि का समय कम या अधिक होने लगता है ! इसका प्रभाव अनियंत्रित होने लगता है ! जिससे प्राकृतिक वातावरण बिगड़ने लगता है !
मृत्यु से मित्रता करो डरो मत !
गणित विज्ञान और महामारी !
विज्ञान की सभी अनुसंधान विधाओं की अपनी अपनी सीमाएँ हैं | संपूर्ण कोई नहीं है | इसीलिए किसी भी क्षेत्र में विज्ञान के आधार पर यह कहा जाना संभव नहीं हो पाता है कि यह इतना ही है | इसमें संभावनाएँ कभी समाप्त नहीं होती हैं |
गणितविज्ञान की सीमाओं का विस्तार बहुत अधिक है | संसार में जो कुछ सजीव है या जो कुछ निर्जीव तथा जो कुछ साकार है या जो कुछ निराकार ! गणितविज्ञान के द्वारा उन सब के रहस्यों अनुसंधान पूर्वक उद्घाटित किया जा सकता है |जिस विषय का केवल अनुभव किया जा सकता है या जिसके विषय में अनुभव किया जाना भी संभव नहीं है | ऐसे विषयों वस्तुओं को भी गणितविज्ञान के द्वारा समझना संभव है|
गणित के बिना प्रकृति और जीवन से संबंधित कुछ भी समझना संभव नहीं है !गणित ही वह विशेष विज्ञान है जिसके आधार पर संसार रूपी महान पुस्तक लिखी गयी है। गणित इस जगत को देखने और इसका वर्णन करने के लिए है ताकि हम उन समस्याओं को हल कर सकें जो अर्थपूर्ण हैं।
इसीलिए अत्यंत प्राचीनकाल से ही प्रकृति एवं जीवन के रहस्य को सुलझाने तथा इनसे संबंधित घटनाओं के स्वभाव संभावनाओं को समझने के लिए एवं इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितविज्ञान को ही विश्वसनीय माना जाता रहा है |
इसकी प्रमुख विशेषता यह है कि प्रकृति या मानव जीवन से संबंधित किसी भी घटना के रहस्य को समझने के लिए उस घटना से दूर रहते हुए या घटना घटित होने के बहुत पहले गणितविज्ञान के आधार पर उस घटना को अच्छीप्रकार से समझा जा सकता है | उसके विषय में सभी प्रकार से अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं |
जिस प्रकार से सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी खगोलीय प्राकृतिक घटनाओं को समझने के लिए सूर्य चंद्र मंडलों के पास न जाना होता है और न ही उन्हें देखना आवश्यक होता है |किसी गणितज्ञ को ऐसे स्थान पर महीनों के लिए बंद कर दिया जाए जहाँ से सूर्य चंद्र को देखा जाना संभव ही न हो |बिना किसी यंत्र की सहायता से वह गणितज्ञ केवल कलम कागज लेकर बड़ी बड़ी प्राकृतिक एवं जीवन संबंधी घटनाओं के रहस्यों का आगे से आगे पता लगा लेता है | सूर्य चंद्र मंडलों को प्रत्यक्ष रूप से देखे बिना भी सूर्य चंद्र ग्रहणों को अच्छी प्रकार से समझ लेता है |आज के सैकड़ों वर्ष बाद कौन ग्रहण किस दिन किस समय पड़ेगा, कितना समय तक पड़ेगा , कितना मंडल आच्छादित करेगा !कहाँ दिखाई देगा कहाँ नहीं दिखाई देगा |यह सब कुछ वह गणितज्ञ केवल गणित के द्वारा ही पता लगा लेता है |
जिसप्रकार से
गणित विज्ञान के द्वारा सूर्य या चंद्र ग्रहणों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए सूर्य चंद्र को देखे बिना उनके मंडलों की नाप जोख किए बिना सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है | उसी प्रकार से भूकंप वर्षा आँधी तूफानों महामारियों आदि के विषय में महीनों वर्षों दशकों शतकों पहले सही सही अनुमान पूर्वानुमान आदि अनुसंधान पूर्वक लगाया जा सकता है |इसके लिए बादलों ,आँधी तूफानों आदि को उपग्रहों रडारों की मदद से देखे बिना भी केवल गणित के माध्यम से अनुसंधान पूर्वक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाता है | जलवायुपरिवर्तन के रहस्य को सुलझाया जा सकता है | इसके प्रभाव से संभावित घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
कोरोना जैसी महामारियों के पैदा होने से वर्षों दशकों पहले केवल गणित के माध्यम से महामारी को समझा जा सकता था !उसमें कब कब किस किस प्रकार के स्वरूप परिवर्तन होंगे ! इसके विषय में भी अनुसंधान पूर्वक अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता था |
महामारी प्राकृतिक है या मनुष्यकृत ! इसके पैदा होने का कारण क्या है ?ये पैदा कहाँ हुई थी ? इसका प्रसार माध्यम क्या है ?इसका विस्तार कितना है? इसमें अंतर्गम्यता कितनी है ?ये एक दूसरे को छूने से बढ़ती है या नहीं !इसपर वायुप्रदूषण ,तापमान आदि बढ़ने का कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं !वर्षा होने का इस पर क्या प्रभाव पड़ता है | संक्रमण का स्वभाव क्या है लक्षण क्या हैं | किस प्रकार की औषधियों के पूर्वसेवन से बचाव हो सकता है | किस प्रकार की औषधियाँ संक्रमण से मुक्ति दिला सकती हैं | इससे बचाव के लिए संक्रमितों पर चिकित्सा का कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं !आदि महामारी विषयक आवश्यक जानकारियाँ महामारी आने से बहुत पहले जुटाई जा सकती थीं | जिसके आधार पर महामारी आने से बहुत पहले महामारी से बचाव के लिए प्रभावी एवं पर्याप्त तैयारियाँ करके रखी जा सकती थीं |महामारी से मुक्ति दिलाने के लिए बृहद स्तर पर औषधि निर्माण करके रखा जा सकता था | केवल गणित विज्ञान के आधार पर किए गए अनुसंधानों की मदद से कोरोना जैसी हिंसक महामारी का सामना और अधिक सुरक्षित ढंग से किया जा सकता था |जिससे संभव है कि महामारी इतना भयंकर रूप न ले पाती ! गणित विज्ञान की मदद से सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली जनधन हानि को भी कम किया जा सकता है |
अनुसंधानों के लिए आवश्यक है गणितविज्ञान !
वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ानों या चक्रवातों आदि का निर्माण किन किन दिनों में हो सकता है |तापमान के बढ़ने घटने की संभावना किन किन दिनों में है,आदि बातों का अनुमान पूर्वानुमान गणित के द्वारा लगाया जा सकता है | इसके द्वारा प्राकृतिक रोगों महारोगों को समझा जा सकता है| इनके कारणों को खोजा जा सकता है | उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है | ऐसी कोई भी प्राकृतिक घटना घटित होने के वर्षों महीनों पहले ऐसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं |
प्रकृति या जीवन से संबंधित घटनाओं के घटित होने के जिम्मेदार कारण खोजे बिना उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव ही नहीं है |ऐसे वास्तविक कारणों को समझना गणितविज्ञान के बिना संभव नहीं है | ऐसे कारण प्रायः अप्रत्यक्ष होते हैं | किसी घटना से संबंधित अप्रत्यक्षकारणों को पहचानना गणितविज्ञान के बिना संभव नहीं होता है | दो या दो से अधिक ऐसे अप्रत्यक्ष कारणों की एक दूसरे के साथ संगति बैठाकर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना गणित विज्ञान के बिना काफी कठिन होता है | इसके अभाव में अनुसंधानों को अधूरा छोड़ दिया जाता है | इसीलिए ऐसी घटनाओं को समझने में उन अनुसंधानों का कोई योगदान नहीं हो पाता है |
जिसप्रकार से मौसम संबंधी बदलाव होने के लिए अलनीनो,लानिना जैसी घटनाओं को जिम्मेदार मान लिया गया , किंतु अलनीनो,लानिना जैसी घटनाओं के पैदा होने का भी तो कोई जिम्मेदार कारण होगा ! उसे भी खोजे जाने की आवश्यकता है , तभी तो यह पता लगाना संभव हो पाएगा कि अलनीनो,लानिना जैसी घटनाएँ घटित होने का कारण क्या है और ये घटित किन किन वर्षों में होती हैं |
ऐसे ही मौसम संबंधी दीर्घावधि बदलावों का कारण तो जलवायुपरिवर्तन को मान लिया गया किंतु जलवायु परिवर्तन होने के लिए भी तो कुछ जिम्मेदार कारण होंगे ! उन्हें खोजे बिना इस बात का अनुमान या पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण कहाँ कैसे परिवर्तन हो सकते हैं| किस किस प्रकार के प्राकृतिक बदलाव कितने कितने समय के बाद दिखाई देंगे |
इसी प्रकार से कोरोना महामारी का संक्रमण बढ़ने का कारण तो महामारी के स्वरूप परिवर्तन को मान लिया गया किंतु महामारी के स्वरूप परिवर्तन का वास्तविक कारण क्या है !वह खोजे बिना महामारी के स्वभाव संक्रामकता प्रसार माध्यम अंतर्गम्यता एवं उसके घटने बढ़ने समाप्त होने आदि के विषय में कोई सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना कैसे संभव है |
ऐसी सभी घटनाओं के कारणों के कारण खोजे बिना प्रकृति या जीवन से संबंधित घटनाओं को समझा जाना संभव ही नहीं है |अनुसंधानों का उद्देश्य उन जिम्मेदार कारणों को खोजना ही है ! उन्हें न खोज पाना या घटनाओं के स्वभाव क्रम आवृत्तियों अंतराल आदि को न समझ पाना अनुसंधानों की कमजोरी है इसके लिए प्राकृतिक घटनाओं को जिम्मेदार नहीं ठहराकर अपनी जिम्मेदारी से बचा नहीं जा सकता है |
ऐसे अनुसंधानों के लिए गणित विज्ञान सशक्त माध्यम है| जिसके द्वारा उन जिम्मेदार कारणों को खोजा जा सकता है|जिनके कारण ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं|उन कारणों के अनुशार घटनाओं के विषय में समस्त जानकारी जुटाकर उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
प्राकृतिक घटनाएँ देने आती हैं भविष्य की कुछ सूचनाएँ
जिस प्रकार से सब्जी हलुआ खीर आदि कोई भी व्यंजन बनाया जाए तो उसमें डाली जाने वाले प्रत्येक वस्तु की निर्द्धारित मात्रा होती है कि उसमें कौन चीज कितनी मात्रा में डाली जाएगी तब उसका स्वाद अच्छा होगा | किसी द्रव्य के कम या अधिक डाले जाने पर उसका स्वाद तो विगड़ ही जाएगा,इसके साथ ही उसका गुण धर्म भी बिगड़ जाएगा !
जिसप्रकार से किसी रोग से मुक्ति पाने के लिए कुछ द्रव्यों को उचित मात्रा में मिलाकर किसी औषधि का निर्माण किया जाता है तो वो औषधि उस रोग से मुक्ति दिलाती है ,किंतु इन्हीं द्रव्यों का सम्मिश्रण करते समय कोई द्रव्य यदि निर्द्धारित मात्रा से कम या अधिक डाल दिया जाए तो उसका स्वाद तो बिगड़ेगा ही इसके साथ ही साथ उसके गुणधर्म भी बिगड़ जाएँगे | ऐसी स्थिति में जो औषधि जिस रोग से मुक्ति दिलाने के लिए बनाई जा रही थी ! उसके गुणधर्म में अंतर हो जाने से संभव है कि वह औषधि रोगमुक्ति दिलाने के बजाए रोग को और अधिक बढ़ा देने वाली तैयार हो जाए |
ऐसी परिस्थिति में किसी औषधीय द्रव्य के कम या अधिक होते ही इस बात का अंदाजा लगा लिया करते हैं कि इसके गुण धर्म में किस प्रकार का कितना अंतर आ जाएगा !इससे निर्मित औषधि का उपयोग किस प्रकार से करना होगा |
ऐसे ही सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ एवं सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ किसी न किसी प्रकार से प्रकृति कार्यों में सहयोगी होती हैं | प्राकृतिक घटनाएँ जब तक अपनी उचित मात्रा में घटित होती जाती हैं तब तक सभी वृक्ष बनस्पतियाँ फल फूल अन्न आदि खाद्यपदार्थ मनुष्यादि जीव जंतुओं के लिए हितकर होते हैं | ऋतुओं के प्रभाव के कम या अधिक होते ही खाद्यपदार्थों में तो विकार आते ही हैं मनुष्यादि जीव जंतुओं में भी कुछ रोग फैलने लग जाते हैं | यह सामंजस्य बिगड़ते ही वर्षा भूकंप आँधी तूफ़ान आदि कुछ प्राकृतिक घटनाएँ अपनी निर्धारित मात्रा से कुछ कम या अधिक घटित होने लगती हैं | इसके आधार पर कुशल समय वैज्ञानिक इस बात का अनुमान लगा लिया करते हैं कि निकट भविष्य में किस प्रकार की प्राकृतिक घटना घटित होने वाली है या किस प्रकार की महामारी तैयार होने वाली है |
प्राचीनकाल से ही प्राकृतिक घटनाओं से कुछ भविष्यसंबंधी सूचनाएँ मिलती रही हैं | उस समय ऐसे संकेतों को समझने वाले बड़े बड़े विद्वान थे |इसी विज्ञान को प्राचीन काल में आकाशवाणियों या शकुनों अपशकुनों के नाम से जाना जाता था | प्रकृति के स्वभाव को समझने वाले प्रकृतिमित्र महाकवि घाघ तो मानो प्रकृति से बातें करते थे ! उन्हें प्राकृतिक घटनाओं एवं संकेतों के विश्लेषण का अद्भुत अभ्यास था !ऐसे संकेतों के आधार पर वे प्रकृति एवं जीवन से संबंधित न केवल सटीक ही भविष्यवाणियाँ कर दिया करते थे अपितु उन सिद्धांतों को नियमों में बाँधकर कविताबद्ध कर दिया करते थे |
वर्तमान समय में वैज्ञानिकों के द्वारा कल्पित अलनीनो -लानिना जैसी घटनाओं को ही लें तो ये भी प्राचीन विज्ञान की भाषा में शकुन अपशकुन ही हैं | प्रकृति एवं जीवन से संबंधित ऐसे असंख्य संकेत हमेंशा मिला करते हैं जिनके अभिप्राय को समझकर प्रकृति ,जीवन एवं समाज में घटित होने वाली असंख्य दुर्घटनाओं से बचा जा सकता है | स्वास्थ्य समस्याओं से सावधान हुआ जा सकता है | कुछ आत्मीय संबंधों के बिगड़ने से बचा जा सकता है |ऐसे ही प्राकृतिक संकेतों को समझकर वर्षा संबंधी पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं | वार्षिक प्रकृति संकेतों को समझकर भूकंप जैसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | दस वर्षॉं के संग्रहीत प्राकृतिक संकेतों से भविष्य में घटित होने वाली कोरोना महामारी जैसी बड़ी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |
कुलमिलाकर प्रकृति में घटित होने वाली घटनाएँ स्वयं तो घटित हो ही रही होती हैं उसी स्वभाव की कुछ और घटनाएँ उन मुख्य घटनाओं के आगे पीछे घटित हो रही होती हैं | इनमें से कुछ प्राकृतिक जबकि कुछ जीवन से संबंधित घटनाएँ होती हैं |कुछ स्वास्थ्य से और कुछ समाज से संबंधित होती हैं | ऐसी विभिन्न प्रकार की घटनाओं का स्वभाव एक जैसा ही होता है |इसलिए ये संकेत भी एक ही प्रकार का दे रही होती हैं |जिनका उद्देश्य भविष्य में घटित होने वाली किसी दूसरी घटना के विषय में कुछ सूचना देना होता है| भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ बज्रपात जैसी प्राकृतिक घटनाएँ उन्हीं परिवर्तनों की अंग एवं भविष्य की सूचनाएँ होती हैं |
उदाहरण स्वरूप में देखें तो नेपाल में 25 अप्रैल 2015 को 7.8 तीव्रता का भूकंप भावी कोरोना महामारी के विषय में अग्रिम सूचना देने आया था | इसी स्थान पर 22 अप्रैल 2015 को एक भीषण तूफ़ान आया था जिसमें भारत और नेपाल के सैकड़ों लोगों की मृत्यु हुई थी | वह तूफ़ान 25 अप्रैल 2015 को आने वाले भूकंप की अग्रिम सूचना दे रहा था | विशेष बात यह है कि तूफ़ान और भूकंप दोनों का केंद्र एक ही था | इसी स्थान पर एक सप्ताह से सूखी खाँसी उलटी दस्त एवं चक्कर आने के रोग काफी तीव्रता से बढ़ते जा रहे थे | इस बीच वायु प्रदूषण बढ़ा हुआ था | ऐसे सभीप्रकार के प्राकृतिक विकार भावी माहमारी सूचना उसी समय से देने लगे थे | ऐसी सभी घटनाओं का संयुक्त अनुसंधान करके यह पता लगाया जा सकता था कि निकट भविष्य में कोई महामारी जैसी घटना कब घटित होने वाली है |
भूकंप :घटनाऍं या सूचनाएँ !
सन 2014 के बाद भारत एवं पडोसी देशों में भूकंपों की घटनाएँ पहले की अपेक्षा कुछ अधिक घटित होते देखी जा रही हैं | कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ अधिक मात्रा में भूकंप घटित होते देखे जाते हैं |ऐसे समय एवं भौगोलिक स्थलों में अन्य समय एवं स्थानों की अपेक्षा कुछ तो विशेषता होती होगी | पहले दिल्ली में इतने भूकंप तो नहीं आते थे जितने आजकल आते देखे जा रहे हैं |
इसमें विशेष बात यह है कि कुछ भूकंप प्राकृतिक या मनुष्यकृत बड़ी घटनाओं के घटित होने से पहले बाद में घटित होते देखे जाते हैं |कुछ भूकंपों के आने के बाद वर्षा होनी शुरू होती है जबकि कुछ भूकंपों के आने के बाद लंबे समय से होती आ रही वर्षा बंद हो जाती है | कुछ भूकंपों के आने से पहले आँधी तूफ़ान आते हैं जबकि कुछ के बाद आँधी तूफ़ान आते हैं | कुछ भूकंपों के आने के बाद फसलें या पेड़ पौधे हरे भरे हो उठते हैं जबकि कुछ भूकंपों के आने के बाद वातावरण में रूक्षता बढ़ने लगती है | कुछ भूकंपों के आने के पहले कुछ रोग फैलने लगते हैं !आतंकी घटनाएँ घटित होने लगती हैं!बम विस्फोट होते हैं |समाज में दंगे भड़कने लगते हैं ! हिंसक गतिविधियाँ शुरू होती हैं | चुनाव होते या सरकारें बनते बिगड़ते देखी जाती हैं| कुछ भूकंपों के आने से पहले भी यह सब घटित होते देखा जाता है | ऐसी घटनाओं से उन भूकंपों का कोई संबंध होता है
कुछ भूकंपों में जनधन हानि होती है कुछ में नहीं होती है | कुछ भूकंपों के बाद झटके लगते रहते हैं कुछ में नहीं लगते हैं |
भूकंपों के आने का कारण यदि यदि भूगर्भगत प्लेटों का आपस में टकराना या संचित ऊर्जा का बाहर निकलना ही है तो ये दोनों प्राकृतिक कारण अनियंत्रित भी तो हो सकते हैं किंतु क्यों नहीं होते हैं | भूकंपों की तीव्रता दस डिग्री से अधिक न होने का कारण क्या है ?_______________________________________________________
पृथ्वी तत्व -
कोरोना महामारी के समय एक वर्ष में वैश्विक स्तर पर 38,816 बार आ चुके हैं | डेढ़ वर्ष में केवल भारत में ही 1000 से अधिक भूकंप आए हैं | मार्च -अप्रैल 2020 के मात्र डेढ़ महीने में दिल्ली-एनसीआर में 10 बार भूकंपआया | 23 नवम्बर 2020 को पूरी दुनिया में कुल 95 स्थानों पर भूकंप आए थे | एक सप्ताह में 700 जगहों पर भूकंप आये। एक महीने में 3105 भूकंप पूरी दुनिया में आये। इसी समय ऐसा क्यों हुआ ?
17\18जुलाई 2020 को अनेकों स्थानों पर अधिक संख्या में भूकंप आए हैं |19 Jul 2020 से भारत में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रेड शुरू हो गया था !
क्या इन भूकंपों से महामारी का कोई संबंध है | यदि ऐसा नहीं है तो इसी समय इतने अधिक भूकंपों के आने का कारण क्या है |इस संबंध को खोजना अनुसंधानों की जिम्मेदारी है |
2020 की जनवरी इतिहास की सबसे गर्म जनवरी रिकॉर्ड की गई थी ! कुल मिलाकर सर्दी के सीजन सर्दी बहुत कम हुई एवं गर्मी के सीजन में गर्मी कम हुई ! यूरोप में जनवरी का तापमान औसत से 3 डिग्री सेल्सियस अधिक दर्ज किया गया, जबकि पूर्वोत्तर यूरोप के कई हिस्सों में औसत से 6 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया !जनवरी माह का वैश्विक तापमान अपने चरम पर पहुँच गया था।
भारत में लगातार वर्षा होते रहने के कारण अप्रैल 2020 सबसे ठंडा बीत रहा था,जबकि ब्रिटेन में लू चल रही थी !बताया जाता है कि ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है.|अप्रैल 2020 में कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका की हालत दिनोंदिन बिगड़ रहे थे | में बारिश-बाढ़ और भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाओं से चीन का बुरा हाल हुआ जा रहा था ! सितंबर 2020 में दिल्ली बासियों को मई-जून जैसी तपिश झेलनी पड़ रही थी ।मॉनसून की विदाई देर से होने लगी है | जो पहले 1 सितंबर से होनी शुरू हो जाती थी, वो अब 17 सितंबर के करीब विदा होने लगा है|
कुल मिलाकर कोरोना काल में एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है| दुनिया के कई देशों में मौसम के बदलते मिजाज को देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के देश , नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव, कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है. रूस, चीन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी आग से परेशान हैं |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही है कहा जा रहा है कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है. बेल्जियम, जर्मनी, लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई 2020 को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो माह में होती है. नॉर्थ यूरोप में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. फिनलैंड जहां गर्मी कभी नहीं पड़ती, वहां पर लोग पसीना पोंछने को मजबूर हो रहे हैं. देश के कई हिस्सों में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया है| रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्यादा जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं पश्चिमी-उत्तरी अमेरिका में अत्यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं | कैलिफोर्निया, उटा और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया है. कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्प्रेचर 54.4 डिग्री सेंटीग्रेट तक पहुंच गया था. यह दूसरा मौका था जब इस हिस्से में इस कदर तापमान रिकॉर्ड किया गया. इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्सों में बारिश का इंतजार है |
मौसम में जब इतने बड़े बड़े बदलाव होते जा रहे थे !तो उसका प्रभाव भी उसी प्रकार का होगा ऐसा निश्चय था |भोजन बनाते समय अनेकों तेल मशालों आदि को उचित अनुपात में डालकर पकाने से यदि स्वादिष्ट पकवान तैयार होते हैं | इससे यह भी समझा जाना चाहिए कि यह अनुपात यदि बिगड़ा अर्थात असंतुलित हुआ तो भोजन का स्वाद उतना ही बिगड़ भी सकता है |
किसी भी विमान का पायलट जब देखता है कि विमान संचालन में कुछ घटनाएँ उसके अनुमान से अलग हटकर या विरोधी दिशा में भटकती दिखने लगती हैं तो पायलट इसकी सूचना तुरंत कंट्रोलरूम को इस आशंका के साथ दे देता है कि कुछ गड़बड़ होने वाला है |
इसी प्रकार से मसम संबंधी घटनाओं का काल,क्रम ,अनुपात आदि जब इतनी तेजी से बिगड़ने लगा था | भूकंप आँधी तूफान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात वायु प्रदूषण तापमान आदि जब दिनोंदिन घटित होते देखे जा रहे थे | मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं का संतुलन बिगड़ता जा रहा था | इससे महामारी जैसी स्वास्थ्यविरोधी बड़ी दुर्घटनाओं का घटित होना स्वाभाविक ही था |
मौसम संबंधी अनुसंधानों में लगे विद्वानों को प्रकृति के संकेत समझने चाहिए थे और समाज को इतनी बड़ी महामारी के विषय में सतर्क किया जाना चाहिए था |
पशु-पक्षियों को हो गया था महामारी का आभाष !
टिड्डियों का आतंक :मई - जून 2020 में पाकिस्तान से आए टिड्डी दल ने देश के कई राज्यों की मुसीबत बढ़ा दी थी । राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु और पश्चिम बंगाल जैसे राज्य देश के नौ राज्यों पर टिड्डियों का खतरा मंडराने लगा था!
चूहों का आतंक :कोरोना काल में ऑस्ट्रेलिया में चूहों से हाहाकार मचा रहा,ऑस्ट्रेलिया के कृषि मंत्री एडम मार्शल ने कहा है कि 'अगर हम वसंत तक चूहों की संख्या को कम नहीं कर पाते हैं तो ग्रामीण और क्षेत्रीय साउथ वेल्स में आर्थिक और सामाजिक संकट का सामना करना पड़ सकता है।'यूके में डेढ़ फुट लम्बे गुस्सैल चूहों का आतंक; भूख ऐसी कि एक-दूसरे को खा रहे, इन पर जहर भी बेअसर हो रहा है | मैनचेस्टर के रैट कैचर मार्टिन किर्कब्राइड ने टेलीग्राफ को बताया कि, ब्रिटेन में चूहे इतने बढ़ गए हैं जितने कि 200 साल पहले की औद्योगिक क्रांति के दौरान भी नहीं थे। ब्रिटेनवासी कोरोना के साथ-साथ बड़े चूहों से बेहद परेशान और खौफ में हैं। 18 इंच तक लम्बे इन चूहों को जाइंट रेट कहा जाता है| चूहों का व्यवहार अधिक आक्रामक हो गया है | ब्रिटिश पेस्ट कंट्रोल एसोसिएशन के एक सर्वे से पता चला है कि ब्रिटेन में बड़े चूहों के उपद्रव की घटनाओं में 50 फीसदी का इजाफा हुआ है। भारत में भी मध्य प्रदेश, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान समेत कई राज्यों से चूहों के आतंक और करोड़ों के माल की नुकसान की खबरें मिली हैं, हालांकि हमारे यहाँ के चूहे ब्रिटेन के चूहे जितने बड़े नहीं हैं। भारत में यूपी के कानपुर में चूहों ने करीब 40 करोड़ की पुल को कुतर दिया है. कानपुर में 4 साल पहले राज्य सेतु निगम की ओर से खपरा मोहाल रेलवे ओवरब्रिज बनाया गया था. चूहों की वजह से पुल का एक हिस्सा भरभरा कर गिर गया है |झांसी से लेकर नागपुर तक इन चूहों को मारने के लिए रेलवे द्वारा बड़ी रकम खर्च की जा चुकी है. लेकिन चूहों के आतंकसे मुक्ति नहीं मिल सकी है |
आवारा पशुओं की संख्या बढ़ने से किसान परेशान हैं | दुनियाभर में कोरोना काल में जानवरों के नए रूप अधिक आक्रमक देखने को मिल रहे हैं। महामारीजनित प्रभाव से जीव जंतुओं का स्वभाव आहार विहार आदि बदलगया है |टिड्डियों पक्षियों पशुओं तथा चूहों का प्रजनन अधिक होने से इनकी संख्या अचानक बहुत अधिक बढ़ गई है |
कोरोना काल में अनेकों देश एक दूसरे से युद्ध लड़ते देखे जा रहे हैं आतंकी घटनाएँ हिंसक विस्फोट आदि अधिक मात्रा में होते देखे जा रहे हैं |कुछ देशों में हिंसक आंदोलन हो रहे हैं |छोटी छोटी बातों में लोग एक दूसरे की हत्या करते देखे जा रहे हैं | कुल मिलाकर कोरोनाकाल में मनुष्यों पशुओं पक्षियों आदि में बेचैनी काफी अधिक बढ़ गई है |
कुछ वृक्षों को बिना ऋतु के भी फूलते फलते देखा जा रहा है !कुछ फलों का आकार प्रकार रंग रूप स्वाद आदि बदला बदला सा लग रहा है | कुल मिलाकर कई बार दो या दो से अधिक प्राकृतिक घटनाएँ एक साथ घटित
होती हैं या बार बार घटित होने लगती हैं | वे केवल घटनाएँ मात्र ही होती
हैं या उनका अभिप्राय कोई ऐसा सँदेशा देना होता है जिसके विषय में किसी को
कुछ पता नहीं होता है |
इसी गणित विज्ञान के द्वारा मैंने अपने सीमित संसाधनों के बल पर जो महामारी विषयक अनुसंधान किए वे सार्थक हुए हैं| उन अनुसंधानों के आधार पर महामारी एवं उसकी लहरों के आने के विषय में गणितविज्ञान के द्वारा मैंने जो जो पूर्वानुमान लगाए वे सही निकलते रहे हैं|वे सभी पूर्वानुमान मैं आगे से आगे पीएमओ की मेल पर भेजता रहा हूँ |
प्रत्येक अनुसंधान के बाद उसके परीक्षण की आवश्यकता होती है |महामारियाँ चूँकि लंबे अंतराल के बाद आती हैं| इसलिए उनसे संबंधित अनुसंधानों के परीक्षण का अवसर नहीं मिल पाता है | ऐसे में परीक्षणजनित अनुभवों का भी सहयोग नहीं मिल पाता है केवल गणित विज्ञान पर ही निर्भर रहकर आगे बढ़ना होता है |इसमें कुछ गणित विज्ञान एवं उनके परीक्षण के लिए उस समय घटित हो रही विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं का मिलान करना होता है | जिससे सही निष्कर्ष निकालने में सुविधा हुई |जिससे महामारी संबंधी गणितागत पूर्वानुमान सही निकले हैं |
महामारी विज्ञान क्या है ?
महामारीमुक्तसमाज की संरचना का लक्ष्य !
किसी को पहले महामारी जनित संक्रमण हो फिर उस रोग का परीक्षण हो फिर उस रोग के लक्षणों स्वभाव आदि को पहचाना जाए इसके बाद उसकी औषधि पर विचार विमर्श पूर्वक निर्णय लिया जाए इसके बाद उस औषधि का निर्माण किया जाए फिर उसका परीक्षण किया जाए !जब वो परीक्षण में सफल हो तब उसका प्रयोग रोगी पर करना शुरू किया जाए , तब तक बहुत देर हो चुकी होती है महामारी जैसे भयंकर संकटकाल में संक्रमितों के पास इतना समय कहाँ होता है | रोगी पर प्रयोग करने के बाद भी परिणामों की प्रतीक्षा करनी पड़ती है जो अच्छे या बुरे कैसे भी निकल सकते हैं |
ऐसी स्थिति में जब रोगियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ती जा रही हो बड़ी संख्या में लोगों की मृत्यु भी हो रही हो | स्वाभाविक है उस समय बहुत बड़ी व्यवस्था की आवश्यकता होगी |
कोरोनामहामारी भयंकर है या महामारी को समझने के लिए विज्ञान ही है !
भारत वर्ष को पड़ोसी देशों के साथ तीन बड़े युद्ध लड़ने पड़े उनमें बहुत देशभक्तों की दुर्भाग्यपूर्ण मृत्यु हुई थी | अपने उन प्रियजनों के वियोग की पीड़ा देश आज तक भूला नहीं है| भविष्य में कोई शत्रु ऐसा दुस्साहस न कर सके न कर सके | इसके लिए देश ने अपनी जल थल एवं वायु सेना को इतना अधिक शक्ति एवं साधन संपन्न बना लिया है कि ईश्वरकृपा से अब अपने दुलारे देश वासियों को शत्रुकृत षड्यंत्रों का शिकार होकर अपना बहुमूल्य जीवन नहीं खोना पड़ेगा !
जिस प्रकार से देश ने सैन्य सामर्थ्य जुटाकर शत्रुओं को शांत बैठने को विवश कर दिया है ,उसीप्रकार से महामारी जैसे अप्रत्यक्ष शत्रुओं से भी अपने देशवासियों की सुरक्षा की जानी चाहिए | महामारीमुक्त समाज की संकल्पना साकार करनी चाहिए | हमें इस पीड़ा को भी नहीं भूलना चाहिए कि पड़ोसी देशों के साथ लड़े गए तीनों युद्धों में मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई थी उससे अनेकों गुणा अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | ये पीड़ा भी भूले जाने लायक नहीं है | भविष्य में ऐसे दुर्दिन दोबारा न देखने पड़ें इस उद्देश्य से कोई बड़ा संकल्प लेने का समय समीप आ गया है | जिस प्रकार से शत्रुओं से सुरक्षा के लिए अपनी जल थल एवं वायुसेना को सक्षम बना लिया गया है |उसी प्रकार से महामारियों से सुरक्षा के लिए भी तैयारियों को किया जाना आवश्यक हो गया है |
जिस प्रकार से शत्रु के द्वारा आक्रमण कर दिए जाने के बाद केवल तुरंत की तैयारियों के बल पर उस युद्ध को जीता जाना कठिन होता है |इसीलिए खुपिया एजेंसियों को पहले से सतर्क करके रखना पड़ता है | जो आगे से आगे इस बात की जानकारी जुटाकर रखती हैं कि शत्रु कोई ऐसा षड्यंत्र तो नहीं रच रहा है | उसी के अनुशार तैयारियाँ करके पहले से रख ली जाती हैं | जिनके बलपर शत्रु को खदेड़कर अपनी सुरक्षा की जानी आसान होती है|
इसीप्रकार से तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारी को जीतना भी संभव नहीं
होता है| वो तो जैसे ही हमला करती हैं वैसे ही बड़ी संख्या में लोग संक्रमित
होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं वहीं दूसरी ओर इतने कम समय में
महामारी से बचाव एवं सुरक्षा किया जाना कैसे संभव है| इतनी बड़ी महामारी से
सुरक्षा प्रदान करने के लिए महारोग को पहचानने से लेकर रोग लक्षण समझना
एवं संक्रमण का स्वभाव पता लगाना उसके अनुशार औषधि का निर्णय करना,परीक्षण
करना,इसके बाद इतनी बड़ी तादाद में औषधीय द्रव्यों का संग्रह करना ,इतनी
बड़ी मात्रा में औषधि निर्माण करना फिर इतनी विशाल संख्या तक पर्याप्त
मात्रा में औषधि पहुँचाना आदि कैसे संभव है |
इसके लिए पहले से बहुत मजबूत तैयारियाँ करके रखने की आवश्यकता होती है | इसके बिना महामारियों का सामना किया जाना कैसे संभव है | पहले से सतर्क रहकर तैयारी करके रखा जाना तभी संभव हो पाता है जब खुपिया एजेंसिंयों की तरह ही महामारी पैदा होने या उसका वेग बढ़ने की पूर्वसूचना उन वैज्ञानिकों को पहले से पता हो !तब तो अग्रिम तैयारियों के बलपर महामारी से मनुष्यों की सुरक्षा की जानी संभव है| इसके अलावा महामारी से बचाव करना एवं मुक्ति दिलाना किसी दूसरे विकल्प के द्वारा संभव नहीं लगता है |
महामारी ही हिंसक थी या बचाव के लिए तैयारी नहीं थी !
वर्षा यदि अचानक होने लगे तो भीगना स्वाभाविक ही है ,किंतु वर्षा होने के
विषय में यदि पहले से पता हो तो घर से छाता लेकर निकला जाएगा | जिससे
वर्षा तो होगी किंतु उससे बचाव हो जाएगा | इसमें तीन प्रमुख बातें हैं ! एक
तो वर्षा होने के विषय में पहले से पता होना ! दूसरे वर्षा से बचाव के लिए
पहले से मजबूत छतरी बनाकर तैयार रखना और तीसरे घर से छतरी को साथ लेकर निकलना और वर्षा होने पर अपना बचाव करने से वर्षा होने पर भी भीगने से बचाव हो जाता है |
वर्षा की तरह ही तो महामारी भी एक प्राकृतिक घटना है |जैसे वर्षा होते समय भीगना स्वाभाविक ही है वैसे ही महामारी आने के बाद संक्रमित होना आदि स्वाभाविक ही है | वर्षा की तरह ही यदि महामारी आने के विषय में हमें पहले से पता हो !उससे बचाव के लिए मजबूत तैयारियाँ करके पहले से रखी गई हों ! महामारी आने पर उन तैयारियों के द्वारा समय पर अपने बचाव के लिए प्रयत्न किए जाएँ तो संक्रमित होने से बचा जा सकता है |
कोरोना महामारी में बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए एवं बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को भी प्राप्त हुए हैं | इसका कारण महामारी का हिंसक होना है या कि महामारी को पहचानने की क्षमता का अभाव और उससे बचाव के उपायों का न होना ! महामारी आने का पूर्वानुमान पहले से पता न होना रहा है | आखिर क्या कारण रहा है जिससे महामारी से जूझते समाज को ऐसी कोई विशेष मदद नहीं पहुँचाई जा सकी !जिसके लिए यह कहा जाना संभव हो कि यह मदद न मिली होती तो इससे भी अधिक दुर्दशा हो सकती थी | तैयारियाँ इतनी कमजोर थीं !
महामारी के पैदा होने का कारण क्या है ?ये पैदा कहाँ हुई ? ये प्राकृतिक
है या मनुष्यकृत !इसका प्रसार माध्यम क्या है ?इसका विस्तार कितना है?
इसमें अंतर्गम्यता कितनी है ?ये एक दूसरे को छूने से बढ़ती है या नहीं
!इसपर वायुप्रदूषण ,तापमान आदि बढ़ने का कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं !वर्षा
होने का इस पर क्या प्रभाव पड़ता है | इस रोग को कितना पहचाना जा सका ! रोग
की पहचान किए बिना इससे मुक्ति दिलाने के लिए औषधि निर्माण किया जाना संभव
था क्या ? संक्रमण का स्वभाव क्या है लक्षण क्या हैं | किस प्रकार की
औषधियों के पूर्वसेवन से बचाव हो सकता है | किस प्रकार की औषधियाँ संक्रमण
से मुक्ति दिला सकती हैं | इससे बचाव के लिए संक्रमितों पर चिकित्सा का
कोई प्रभाव पड़ता है या नहीं !ऐसे महारोग का वर्णन पहले की चिकित्सा पद्धति
में मिलता है या नहीं | इन्हें किस रूप में पहचाना जा सका और इनसे बचाव के
लिए उपाय किन लक्षणों के आधार पर किए गए !
इस प्रकार से महामारी का पूर्वानुमान लगाने उसे पहचानने एवं उससे बचाव के
उपाय करने तथा औषधि तैयार करने की यदि कोई व्यवस्था थी तब तो ठीक है और यदि
नहीं थी ,तो ऐसी कौन सी तैयारियाँ पहले से करके रखी गई थीं जो महामारी से
जूझती जनता के कुछ तो आम आ सकीं | यदि ऐसी कोई तैयारियाँ पहले से करके नहीं
रखी जा सकी थीं तब तो ये सब होना ही था | उसके लिए किसी महामारी को दोषी
क्यों ठहराना !ऐसी परिस्थिति में नुक्सान होना स्वाभाविक ही है |
पूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है ?
किसी भी घटना के विषय में सही पूर्वानुमान लगाने के लिए उस घटना के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजने होंगे ! जिनसे प्रेरित होकर
प्राकृतिक परिवर्तन होते रहते हैं | घटनाओं के सही कारणों के पता लगाकर उन्हीं के आधार पर घटनाओं के विषय में सही पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं |
मौसमसंबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के विषय में सही पूर्वानुमान
लगाने के लिए मौसम संबंधी उन वास्तविक कारणों को खोजना होगा |जिनसे प्रेरित होकर मौसम संबंधी घटनाएँ घटित होती हैं |
किसी को कमल खिलने के विषय में पूर्वानुमान
लगाना है कि "कमल कब खिलेगा ?" जब सूर्योदय होगा तब ! सूर्योदय कब होगा ! सूर्य के उदय होने का समय जब आएगा ! सूर्योदय होने का समय कब आएगा वो ज्योतिषीय गणित से पता लगेगा उसी सूर्योदय के
आधार पर यह बताया जा सकता है कि कमल कब खिलेगा ! ऐसे ही प्रायः प्रत्येक
प्राकृतिक घटना के घटित होने का अपना अपना समय होता है उस समय को खोज लिया
जाए तो पूर्वानुमान लगाना सरल हो सकता है | जैसे सूर्योदय होने का पता लगने
से कमल के खिलने का समय पता लग गया !यह तब संभव हो पाया जब कमल के खिलने
का सही कारण खोजा जा सका है | यदि ये सही कारण पता न लग पाता तो उसके आधार पर कमल के खिलने का सही समय भी पता न लग पाता |
इस प्रकरण में कमल के खिलने का कारण सूर्योदय ही है यह पता लगने के बाद होगा तब कमल खिलेगा !ऐसी स्थिति में कमल कब खिलेगा ?यह पता करना हो तो कमल के खिलने का समय पता लगाने की अपेक्षा सूर्योदय होने के समय का पूर्वानुमान लगाना होगा |
ऐसे ही कोरोना महामारी के विषय में कोई भी पूर्वानुमान लगाने के लिए
महामारी पैदा होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण खोजना होगा | उस प्रभावी
कारण के पता लगते ही न केवल महामारी का रहस्य उद्घाटित हो जाएगा अपितु
महामारी एवं उसकी आगामी लहरों के विषय में भी पूर्वानुमान लगाना आसान हो जाएगा |
महामारियों को समझने हेतु गंभीर प्रयत्न किए जाएँ !
महामारी जैसे बड़े संकट को गंभीरता से लेते हुए अब यह पता लगाया जाना अनिवार्य हो गया है कि महामारी पैदा होने का कारण क्या है और समाप्त कैसे होती हैं | बार बार आने वाली लहरों के रूप में महामारी का वेग बढ़ता घटता क्यों रहता है | महामारियों के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया सकता है ?
महामारियों के पैदा होने के लिए जिम्मेदार उन वास्तविक कारणों की खोज की जानी चाहिए ! जिनके बढ़ने घटने पर महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने और घटने लगता हो ,तथा उन कारणों के समाप्त होते ही महामारी समाप्त हो जाती हो | उन कारणों के आधार पर महामारी एवं उसकी लहरों के विषय में सही सही पूर्वानुमान लगाया जा सकता हो |
महामारी को पैदा होने के लिए जिम्मेदार दो मत माने जाते रहे हैं | एक
तो महामारी मनुष्यकृत है तो दूसरा प्राकृतिक है | महामारी को यदि
मनुष्यकृत माना जाए तो महामारी को किसने बनाया , कब बनाया ,कहाँ बनाया
,कैसे बनाया आदि प्रश्नों के सटीक एवं प्रमाणित उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा
सके हैं |इसलिए महामारी मनुष्यकृत है या नहीं अभी तक निश्चित नहीं है |
महामारी को यदि प्राकृतिक माना जाए तो इसका प्रकृतिक्रम एवं प्राकृतिक
लक्षणों का पता लगना चाहिए ,कि महामारी कब आती है?कैसे आती है? उसके आने
से पहले और जाते समय ऐसे कौन कौन से लक्षण प्रकट होते हैं ? जिनसे ये पता
लगता है कि महामारी कब आने या जाने वाली है एवं संक्रमण कब बढ़ने या घटने
वाला है |
महामारी आने वाली है यह पता लगाने की वैज्ञानिक क्षमता विकसित की चाहिए
ताकि महामारी आने से पहले ही महामारी से बचाव संबंधी आहार व्यवहार का
अनुपालन किया जाने लगे एवं जीवन के लिए उपयोगी आवश्यक वस्तुओं का संग्रह
पहले से ही करके रखा जाए !महामारी में काम आने वाले औषधीय द्रव्यों का पहले
से संग्रह किया जाना शुरू कर दिया जाए ताकि महामारी आने पर बचाव के लिए
बड़े स्तर पर प्रयत्न पहले से ही शुरू कर दिए जाएँ |
लोग जब बड़ी संख्या में संक्रमित होने या मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं तब यह पता लग पाता है कि महामारी आ गई है |उस समय तुरंत ऐसे प्रभावी प्रयास किए जाने संभव नहीं होते जिससे जनता को कुछ मदद पहुँचाई जा सके ! इसलिए महामारी को पहचानने के लिए कोई वैज्ञानिकविधि भी होनी चाहिए जिसके द्वारा महामारी को प्रारंभिक अवस्था में ही पहचाना जा सके ,तब तक भले एक व्यक्ति भी महामारी से संक्रमित न हुआ हो |महामारी को पहचानने का आधार लोगों का संक्रमित होना या मृत्यु को प्राप्त होना न होकर वैज्ञानिक होना चाहिए |
भूकंपों के कारण पैदा हुई महामारी !
महामारी का कारण है वायुप्रदूषण !
मौसम का प्रभाव महामारी पर पड़ता है ऐसा कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा कहा गया ! यदि ऐसा है तब तो महामारी के पैदा होने या उसके घटने बढ़ने का कारण खोजने एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए मौसमसंबंधी घटनाओं को ठीक ठीक से समझना होगा | उनके विषय में सही सही दीर्घावधि अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने होंगे | मौसमसंबंधी पूर्वानुमान सही सही पता लगते ही उसी के आधार पर महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाएगा |
महामारी का कारण यदि मौसम ही है समझ में आ गया तो महामारी भी समझ में आ ही जाएगी |
जलवायु परिवर्तन का विज्ञान क्या है ?
परिवर्तन तो प्रकृति का नियम है | जलवायुपरिवर्तन
उससे अलग कुछ है क्या ? इसके होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण क्या हैं ?उसके लक्षण
क्या हैं ?ये हो कब से रहा है ? इसके प्रभाव से दूसरी और कौन कौनसी
घटनाएँ घटित होती हैं ?क्या ऐसे परिवर्तन प्रकृति के अन्य क्षेत्रों
में भी हो रहे सहज परिवर्तन हैं या कुछ और !
जिन प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए जिम्मेदार वास्तविक कारण नहीं खोजे जा सके ! अभाव में कुछ ऐसे काल्पनिक कारण मान लिए गए, जो सच नहीं थे ,जिनका उन घटनाओं से कोई संबंध ही नहीं था | उनके आधार पर लगाए गए पूर्वानुमान गलत निकल गए | ये तो वैज्ञानिक अनुसंधानों के लिए चुने गए काल्पनिक प्रतीकों के परीक्षण की कमी है,जबकि पूर्वानुमान गलत निकल जाने का कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जाता है |
जिन प्राकृतिक घटनाओं के वास्तविक कारणों को खोजा नहीं जा सका !काल्पनिक रूप से कुछ दूसरी घटनाओं को कारण मान लिया गया जबकि वे कारण उन घटनाओं के हो ही नहीं सकते ! जैसे अलनीनों लानिना जैसी घटनाओं को कारण मानकर उनके आधार पर भावी वर्षा के विषय में भविष्यवाणी कर दी जाती है ,किंतु अक्सर वो सही नहीं निकलती है | वस्तुतः ऐसी घटनाएँ मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने की कारण नहीं हो सकती हैं |
इसी प्रकार कोरोना महामारी के समय ऐसा मानक चुना गया कि एक दूसरे व्यक्ति के स्पर्श से कोरोना संक्रमण बढ़ता है | देश ने इसे सच मानकर ऐसे मानकों का पालन किया | दूसरी ओर पश्चिम बंगाल बिहार आदि में चुनावी रैलियों में भीषण भीड़ें उमड़ती रहीं,दिल्ली मुंबई सूरत आदि से मजदूरों का पलायन हुआ ,दिल्ली में किसान आंदोलन चलता रहा और भी अनेकों अवसरों पर संक्रमितों के साथ लोग रहते खाते पीते सोते जागते रहे जिनके विषय में आशंका थी कि अधिसंख्य लोग संक्रमित होंगे किंतु ऐसा नहीं हुआ !इससे ये स्पष्ट हुआ कि इस मानक का चयन सही नहीं था | इसीलिए इस आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान गलत निकलता चला गया |
ऐसा ही वायु प्रदूषण बढ़ने से संक्रमण बढ़ता है ऐसा मानक निर्धारित किया गया !किंतु सन 2020 के अक्टूबर नवंबर में वायु प्रदूषण तो भयंकर बढ़ा किंतु महामारी जनित संक्रमण कम होता चला जा रहा था | इसके विपरीत अप्रैल 2021 में वायुप्रदूषण लगभग बिल्कुल नहीं था किंतु महामारी ने उसी समय सबसे अधिक हिंसक स्वरूप धारण किया था | वायुप्रदूषण संबंधीमानक भी सही नहीं निकला | इसको आधार मानकर की गई भविष्यवाणियाँ गलत निकलती चली गईं |
ऐसे
ही अनेकों काल्पनिक मानक बना लिए गए जिनका वास्तविक घटनाओं से कोई संबंध न
होने के कारण उनके आधार पर की गई भविष्यवाणियाँ सही नहीं निकलीं | भविष्यवाणियाँ गलत करने की जिम्मेदारी लेकर सुधार करने के बजाए इसका कारण ने निकलने का कारण जलवायुपरिवर्तन को बता दिया जाना कितना तर्कसंगत है |
मनुष्य की कुछ समस्याएँ होती हैं उनका वो समाधान पाना चाहता है ऐसे ही मनुष्य की कुछ इच्छाएँ होती हैं जिन्हें वो पूर्ण कर लेना चाहता है |प्रायः प्रत्येक स्त्रीपुरुष समस्यामुक्त एवं सुखसुविधायुक्त जीवनजीने के लिए हमेंशा लगा रहता है |कुछ सफल भी होता है | समस्याएँ कभी समाप्त नहीं होती हैं और सुख सुविधा पाने की इच्छा बढ़ती जाती है | इसलिए प्रयास हमेंशा ही चलते रहते हैं और जीवन पूरा हो जाता है |
समस्यामुक्त एवं सुखसुविधायुक्त जीवन उपलब्ध कराने के संकल्प के साथ विज्ञान का प्रवेश हुआ | वैज्ञानिकों के प्रयास से सुखसुविधा प्रदान करने वाली बहुत सारी चीजों को पाने में सफलता भी मिली है | स्वास्थ्य आदि जीवन के विविध क्षेत्रों से जुड़ी कठिनाइयों को कम करने में भी वैज्ञानिकों ने महत्वपूर्ण कार्य किया है ,किंतु प्राकृतिक कठिनाइयाँ कम करने में अभी तक कोई विशेष सफलता मिलते नहीं दिख रही है | वैज्ञानिकों के द्वारा किए जा रहे अनुसंधानों का लक्ष्य यदि प्राकृतिक आपदाओं से जूझती जनता की मदद करना ही है तो ऐसे संकटों से जूझती जनता को इनसे क्या मदद मिल पा रही है | यह सोचा जाना आवश्यक है | भूकंप आँधीतूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात तथा
महामारियों में सबसे अधिक जनधन हानि होती है | कोरोना महामारी में बहुत बड़ी संख्या में लोग संक्रमित हुए या मृत्यु को प्राप्त हुए हैं| इसीलिए लोग ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से बहुत भयभीत रहते हैं | इस
भय को समाप्त करने के लिए ऐसी समस्याओं का समाधान निकाला जाना या ऐसी
घटनाओं से जीवन को सुरक्षित बचाया जाना बहुत आवश्यक है जो अभी तक संभव नहीं
पाया है| जितनी जनधन हानि पहले होती थी उतनी ही अभी भी होते देखी जा रही है,जबकि
उन्हीं घटनाओं के विषय में अनुसंधान लगातार होते ही रहते हैं| उन
अनुसंधानों से लक्ष्यपूर्ति कितनी हो पा रही है | ये ध्यान देने वाली बात
है |
ऐसी सभीप्रकार की प्राकृतिक आपदाओं से बचाव किया जाना तुरंत की तैयारियों के बल पर संभव नहीं है | इसके लिए आवश्यक है कि इनके विषय में सही पूर्वानुमान काफी लगाया जाए | उसी के अनुशार बचाव के लिए पहले से तैयारियाँ करके रखी जाएँ |
ऐसा न हो पाने का कारण यदि भविष्य में झाँकने के लिए किसी विज्ञान का न होना है तब तो पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |इसके बिना ऐसी आपदाओं से
बचाव की प्रभावी तैयारियाँ पहले से कैसे की जा सकती हैं |इनमें जो नुक्सान होना होता है वो पहले झटके में ही
हो जाता है |ऐसा होते ही उस घटना में वैज्ञानिक अनुसंधानों की भूमिका स्वतः
समाप्त हो जाती है |
प्राचीन काल में ऐसी बड़ी घटनाओं के विषय में अनुसंधान करने के लिए आधुनिकविज्ञान नहीं था | उस समय इतने विकसित यंत्र नहीं थे | ऐसे संचार माध्यम नहीं थे | उपग्रहों रडारों के माध्यम से प्राकृतिक घटनाओं को दूर से देख लेने की सुविधा नहीं थी|इसलिए उस समय ऐसी प्राकृतिक आपदाओं से जनधन हानि होती थी | ये बात समझ में आती है,किंतु वर्तमान समय में तो विज्ञान बहुत उन्नत है | इसलिए इससे अपेक्षाएँ भी अधिक होनी स्वाभाविक ही हैं,किंतु क्या कारण है कि भूकंप आँधीतूफ़ान बाढ़ बज्रपात चक्रवात तथा कोरोना जैसी महामारियों में प्राचीन काल में जितनी जनधनहानि होती रही होगी उतनी ही अभी भी होते देखी जा रही है | ऐसे उन्नत विज्ञान का लाभ प्राकृतिक आपदाओं या महामारियों से जूझती जनता को मिलता तो ऐसी आपदाओं में इतनी जनधन हानि नहीं होती !
जीवनसंबंधी घटनाओं के कारणों में संशय !
महामारी और लोगों की मृत्यु दोनों एक दूसरे से संबंधित घटनाएँ हैं या अलग अलग !इन दोनों घटनाओं का आपस में कोई संबंध होगा ही क्या ऐसा आवश्यक है | अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया जाना चाहिए कि इन दोनों घटनाओं का आपस में कोई संबंध है या नहीं ? क्योंकि वैसे भी जिन लोगों की मृत्यु होती है उस समय महामारी तो नहीं होती है |बहुत लोग तो रोगी भी नहीं रहे होते हैं स्वस्थ अवस्था में ही उनकी मृत्यु होते देखी जाती है | कुछ लोग तो हँसते खेलते खाते पीते पूजा पाठ आदि करते समय मृत्यु को प्राप्त होते देखे जाते हैं |ऐसे लोगों की मृत्यु होने का कारण यदि उनके हँसने खेलने पूजा पाठ आदि करने को नहीं माना जाता है, तो जिन लोगों की मृत्यु महामारी के समय हो जाती है उनकी मृत्यु होने के लिए महामारी को जिम्मेदार ठहराने का वैज्ञानिक आधार क्या है ? उसे खोजा जाना चाहिए |
किसी की मृत्यु के लिए किसी दुर्घटना का शिकार होना भी आवश्यक नहीं है |जिस दुर्घटना में कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं उसी दुर्घटना में उन्हीं के साथ शिकार हुए बहुत लोगों को खरोंच भी नहीं लगती ! इसलिए किसी की मृत्यु होने को महामारी या अन्य सभी प्रकार की प्राकृतिक या मनुष्यकृत दुर्घटनाओं से जोड़कर देखा जाना चाहिए या नहीं | आम जनधारणा है कि किसी की मृत्यु होने के लिए उसे न तो रोगी होना आवश्यक है और न ही दुर्घटनाग्रस्त होना ही आवश्यक है |ऐसी स्थिति में लोगों के रोगी होने या मृत्यु होने को महामारी आने का लक्षण माना जाना चाहिए या नहीं !
लोग जब संक्रमित होने और मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं तभी यह पता लग पाता है कि या फिर महामारी को पहचानने की कोई अन्य वैज्ञानिक प्रक्रिया भी है जिससे लोगों के संक्रमित हुए या मृत्यु को प्राप्त हुए बिना भी महामारी आने के विषय में पता लगाया जा सकता हो | ऐसा कहने के पीछे हमारा अभिप्राय यह है कि लोगों के रोगी होने या मृत्यु को प्राप्त होने की घटनाएँ तो हमेंशा घटित होती रहती हैं,जबकि महामारियाँ तो अत्यंत लंबे अंतराल के बाद कभी कभी आती हैं | इसलिए लोगों के रोगी होने या मृत्यु को प्राप्त होने का कारण महामारी ही होगी ऐसा मान लेना तर्कसंगत नहीं है | महामारी आना,किसी का रोगी होना एवं किसी की मृत्यु होना ये तीनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग अलग घटनाएँ हैं या फिर एक दूसरे से संबंधित हैं ये पता लगाया जाना चाहिए , क्योंकि सभी रोगियों की मृत्यु ही हो जाती हो ऐसा नहीं है बहुत लोग रोगी होकर भी स्वस्थ हो जाते हैं |
कुछ विशेषज्ञों का ऐसा मत है कि महामारी या मृत्यु को प्रतिरोधक क्षमता के द्वारा टाला जाना संभव
है ! यदि ऐसा है तो किसी की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने का निश्चित कारण क्या
है यह पता लगाना इसलिए आवश्यक समझा जा रहा है क्योंकि आर्थिक रूप से संपन्न
बहुत लोग जिनका रहन सहन खान पान जन्म से ही चिकित्सा विशेषज्ञों की सलाह
के अनुशार ही चलता रहा है उन्हीं की देखरेख में उनका बचपन बीता युवावस्था
बीती सबकुछ स्वास्थ्य के अनुकूल ही चलता रहा,महामारी आते ही उन्होंने
संपूर्ण कोरोना नियमों का पालन किया इसके बाद भी उनमें से काफी लोग
संक्रमित हुए और कुछ लोग मृत्यु को भी प्राप्त हो गए थे | दूसरी ओर
बहुतगरीबों के बच्चे एवं मजदूर आदि जिनका बचपन ही कुपोषित बीता संपूर्ण
कोरोना काल में भोजन के लिए दिन दिन भर भटकते रहे जिसने जैसे हाथों से
जितना जो कुछ दिया वो पीते पीते रहे !जहाँ जगह मिली वहाँ रहते रहे |
परिस्थिति बशात कोरोना नियमों का पालन उनसे नहीं किया जा सका | वे संक्रमित
भी नहीं हुए |
ऐसा होने का कारण उनकी प्रतिरोधक क्षमता मजबूत मानी जाए या कुछ और !यदि प्रतिरोधक क्षमता मजबूत है तो उनमें ऐसा होने का कारण क्या है ?जो उन साधन संपन्न लोगों में नहीं है | ये वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा पता किया जाना चाहिए |
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