महामारी को समझने का महाविज्ञान
परोक्षविज्ञान
दो शब्द
कोरोना जैसी महामारियों का सामना अपने बल पर किया जाना आसान नहीं होता है |इसलिए अपनी क्षमता के अनुसार चिकित्सकों की बातों पर विश्वास करके चलना पड़ता है |यद्यपि गरीबदेशों नगरों गाँवों बनों आदि में रहने वाले साधन विहीन लोगों को तथा नगरों महानगरों में गरीबी का जीवन जीने वाले अभावग्रस्त लोगों को चिकित्सकों की सलाह का पालन करने में कठिनाई होती है ,क्योंकि धन के अभाव में उनके पास उतने अच्छे संसाधन नहीं होते हैं, कि संक्रमितों को तुरंत अच्छे अस्पतालों में भर्ती किया जा सके |प्लाज्मा थैरेपी या रेमडेसिविर जैसे इंजेक्शनों की भारी भरकम कीमत चुकाई जा सके |इसलिए कोरोना महामारी में
वे अधिक संक्रमित हुए होंगे|
ऐसे गरीब मजबूर लोगों को भोजन औषधि एवं अन्य आवश्यक कार्यों के लिए घर से बाहर निकलना भी पड़ता है ! सामूहिक रहन सहन अपनाना पड़ता है | इसलिए कोविड नियमों का पालन भी इनके लिए आसान नहीं होता है | बचपन से उनके पूरे टीके भी नहीं लगे होते हैं |स्वास्थ्य के
अनुकूल खान पान चिकित्सा टॉनिक टीकों विटामिनों आदि की व्यवस्था भी नहीं
मिली होती है |इसलिए प्रतिरोधक क्षमता उन गरीबों में तो कम हो ही सकती है | इसलिए उनका संक्रमित होना भी स्वाभाविक ही है |
विशेष बात यह है कि चिकित्सा की दृष्टि से सभी संसाधनों से संपन्न विकसित देशों तथा विकसित नगरों या दिल्ली मुंबई जैसे महानगरों में
अत्याधुनिक संसाधनों से संपन्न चिकित्सालय होते हैं | ऐसे विकसित स्थानों पर रहने वाले साधन संपन्न लोग उन चिकित्सकीय सुविधाओं का संपूर्ण लाभ लेकर स्वस्थ बने रह सकते हैं | चिकित्सा के अत्यंत उन्नत संसाधन होने के बाद भी ऐसे स्थानों के विशेषकर साधन संपन्न लोग अन्य स्थानों से अधिक संक्रमित हुए हैं |कसित देशों और विकसित नगरों महानगरों में जितने अच्छे चिकित्सकीय संसाधन थे | वहाँ उतना अधिक नुक्सान होते देखा गया है |जो जितने साधन संपन्न लोग थे वे उतने अधिक संक्रमित हुए हैं | ऐसे ही कोविड नियमों का पूर्ण पालन करने वाले लोग औरों की अपेक्षा अधिक संक्रमित हुए हैं |
कुल मिलाकर गरीबों को स्वास्थ्य के अनुकूल पौष्टिक खान पान रहन सहन का भी अभाव रहा | जब जहाँ जो कुछ जैसा मिला वही खा पी लेते रहे |चिकित्सा संबंधी उन्नत संसाधनों के अभाव में उनका संक्रमित होना तो समझ में आता है !किंतु चिकित्सकों
की गोद में पैदा होकर उन्हीं की देख रेख में पले बढ़े एवं उन्हीं की सलाह के
अनुशार खाने पीने वाले लोगों के संक्रमित होने का क्या कारण है | वे तो समय से टॉनिक टीके विटामिन्स दूध दही घी मक्खन मेवा
आदि पौष्टिक खाद्यपदार्थों का सेवन करते रहे |स्वास्थ्य के अनुकूल रहन सहन आदि अपनाते रहे | उनमें प्रतिरोधक क्षमता कम कैसे हुई !संक्रमित होने से पहले इस बात का पता क्यों नहीं लग सका |
महामारी हो या प्राकृतिक आपदाएँ इनमें सबसे अधिक जनधन की हानि होती
है |इनका वेग इतना अधिक होता है कि तुरंत के प्रयासों के बल पर ऐसी से
घटनाओं से मनुष्यों को सुरक्षित रखा जाना संभव ही नहीं है| बचाव के उपाय
पहले से करके तभी रखे जा सकते हैं जब पहले से पूर्वानुमान पता हो कि ऐसी
घटनाएँ घटित होने वाली हैं |पूर्वानुमान तभी लगाया जा सकता है जब भविष्यदर्शन के
लिए कोई विज्ञान हो | ज्योतिष के अलावा भविष्य में झाँकने के लिए कोई
दूसरा विज्ञान ही नहीं है|वर्तमान वैज्ञानिक व्यवस्था में ज्योतिष को
विज्ञान माना नहीं जाता है | ऐसी स्थिति में महामारी तथा उसकी लहरों के
विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है |इसके बिना महामारी में विज्ञान की भूमिका बचती है |ऐसी स्थिति में कोरोना महामारी ने परोक्ष शक्तियों के प्रभाव को पहचानने के लिए विवश कर दिया
है |
भूमिका
प्रायः जब किसी को कोई रोग होता है या अचानक कोई स्वास्थ्य संबंधी संकट उपस्थित होता है | उस समय लोग चिकित्सकों के यहाँ इस विश्वास के साथ पहुँचते हैं कि वहाँ चिकित्सक लोग स्वस्थ कर ही देंगे ! प्रायः लोग स्वस्थ हो भी जाते हैं | इसलिए चिकित्सकों के प्रति यह विश्वास और अधिक बढ़ जाता है |दूसरी ओर चिकित्सकों के द्वारा भी यही समझाया जाता है कि स्वास्थ्य संबंधी किसी भी संकट के समय चिकित्सकों से तुरंत संपर्क किया जाना चाहिए | चिकित्सक उस स्वास्थ संकट को कम करने का प्रभावी प्रयत्न करेंगे !जिससे स्वास्थ्य में सुधार होगा |
महामारियाँ भले ही कभी कभी आती हैं किंतु रोगों महारोगों के विषय में वैज्ञानिक लोग अनुसंधान तो हमेंशा ही करते रहते हैं |जिसका उद्देश्य भविष्य में होने वाले ऐसे रोगों के विषय में आगे से आगे अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना,प्रतिकूल परिस्थिति पैदा होने पर उससे समाज को सावधान करना !बचाव के लिए आगे से आगे उपाय खोजना समाज को उनसे अवगत कराना ! ऐसे रोगों महारोगों से मुक्ति दिलाने के लिए चिकित्सा खोजना,औषधीय द्रव्यों का संग्रह करना औषधियों का निर्माण किया जाना ,जन जन पहुँचाने की व्यवस्था सोचना आदि जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए अग्रिम तैयारियाँ करके हमेंशा रखनी होती हैं |
इसीलिए कोरोना के समय चिकित्सकों पर बहुत भरोसा किया गया | महामारी के विषय में चिकित्सकों ने जो कहा उसे सच मानकर अपना लिया गया !उनके द्वारा महामारी के विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि बताए गए उन पर भरोसा किया गया |उन्होंने संक्रमितों को तुरंत अस्पताल ले जाने के लिए कहा वैसा ही किया गया | उन्होंने प्लाज्मा थैरेपी को महामारी से मुक्ति दिलाने में सक्षम बताया !यह सुनकर महामारी से पीड़ित लोग प्लाज्मा थैरेपी को अपनाने लगे | ऐसे ही रेमडेसिविर इंजेक्शन को लाभप्रद बताया गया | जिसे सुनकर हैरान परेशान लोग रेमडेसिविर के लिए लालायित हो उठे |
कोविड नियमों के पालन के लिए प्रेरित किया गया तो चिकित्सकों की बात मान
कर अधिकाँश समाज बड़ी निष्ठा के साथ उन नियमों को पालन करने लगा !
कुल मिलाकर जिन जिन औषधियों आहारों व्यवहारों आदि को लाभप्रद बताया जाता रहा समाज उतने ही विश्वास के साथ उसे अपनाता चला जा रहा था | इसके बाद भी वैश्विक स्तर पर कोरोना महामारी से जनधन का बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है|अस्पतालों से लेकर श्मशानों तक कहीं जगह नहीं थी! चिकित्सा संबंधी अत्यंत सक्षम अस्पतालों में साधन संपन्न लोग अत्यंत उन्नत चिकित्सा सेवाओं का लाभ लेते हुए वेंटीलेटरों पर पड़े पड़े प्राण छोड़ रहे थे |
वर्तमान समय में इतना उन्नत विज्ञान है, इतने ज्ञान विज्ञान से युक्त वैज्ञानिक हैं ,ऐसे विषयों पर सदियों से अनुसंधान करने का अनुभव है |सदियों के अनुभव संपन्न वैज्ञानिकों ने महामारी के विषय में जो जो कुछ करने को कहा वो सब कुछ किया गया | इसके बाद भी महामारी में जन धन के लिए हुए इतने बड़े नुक्सान के लिए कौन कितना जिम्मेदार है |इसके लिए चिकित्सक स्वयं कितने जिम्मेदार हैं और जनता या सरकारों को वे कितना जिम्मेदार मानते हैं | जनता और सरकारों से उन्हें ऐसी क्या अपेक्षा थी जो सहयोग मिला होता तो महामारी से अनुसार जनधन का नुक्सान इतना अधिक न हुआ होता |महामारी से सुरक्षित रहने के लिए जनता को ऐसा क्या करना चाहिए था,जो जनता के द्वारा नहीं किया जा सका या सरकारों को ऐसा क्या करना चाहिए था जिसे करने में सरकारें असफल रहीं ,जिसके कारण महामारी से इतना बड़ा नुक्सान हुआ है |
बिचारणीय विषय यह है कि कोरोना महामारी के विषय में क्या किया जा सका और क्या नहीं वो बात बीत गई उससे जनधन को जो नुक्सान होना था वो हो गया ,अब वो तो वापस लौटेगा नहीं,कोरोना महामारी के समय ऐसे क्या वैज्ञानिक अनुभव हुए जिनसे भविष्य की महामारियों में मदद मिल सकती है |जिन अनुसंधानों से वर्तमान में तो लाभ मिल ही न पा रहा हो और उससे प्राप्त अनुभवों से भविष्य में संभावित रोगों महारोगों से पीड़ित समाज को मदद करने लायक अनुभव भी न मिले हों तो ऐसे अनुसंधानों के भरोसे भविष्य को छोड़ना जनधनहित में नहीं होगा !ऐसे विज्ञान एवं अनुसंधान पद्धति का विकल्प खोजना तुरंत शुरू कर दिया जाना चाहिए |
अपनी बात
जिस
विज्ञान की सफलता से अभिभूत विश्व ये मानने लगा है कि वर्तमान समय में
विज्ञान सफलता के शिखर पर है |ये वैश्विक समाज के लिए गौरव की बात है कि
वैज्ञानिकों ने मानव जीवन को सुख सुविधा संपन्न बना लिया है| उसी शिखरस्थ वैज्ञानिक उपलब्धियों के रहते हुए ही कोरोना महामारी में बहुतों ने बहुत कुछ खोया है जिसकी भरपाई आज किसी भी प्रयत्न से नहीं की जा सकती है | कुछ लोगों का अपना जीवन समाप्त हुआ कुछ लोगों ने अपनों को खोया है |आजीविका के संसाधन सारे ठप्प पड़े रहे | कुल मिलाकर महामारी में सभी प्रकार से अपूरणीय क्षति हुई है |
जिस विज्ञान के द्वारा अनेकों कठिनाइयों को सरल किया गया है | वही विज्ञान कोरोना महामारी से रौंदे जा रहे मनुष्यजीवन की मदद कर पाने में तो असफल रहा ही है,इसके साथ ही महामारी को समझने में भी असफल हुआ है | इस वैज्ञानिक असफलता की कीमत समाज को अपना एवं अपनों का जीवन दाँव पर लगाकर चुकानी पड़ी है |वैज्ञानिकों के द्वारा जिस जीवन की कठिनाइयों को कम करने के लिए अत्यंत तपस्यापूर्वक जितने भी सुख सुविधा के साधन खोजे गए हैं | वह जीवन सुरक्षित रहेगा तभी तो ऐसे अनुसंधानों से प्राप्त सफलताओं का उपयोग हो सकेगा !
प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों से उस मनुष्य जीवन को सुरक्षित रखने के लिए क्या किया गया है | इस विषय में गंभीरता पूर्वक सोचे जाने की आवश्यकता है | महामारी में जन धन दोनों का ही बहुत बड़ा नुक्सान हुआ है | जिनमें वैज्ञानिक अनुसंधानों से मदद नहीं मिल सकी है |
बिचार किया जाना चाहिए कि महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाएँ तो हमेंशा से घटित होती रही हैं | कोरोना महामारी की तरह ही यदि प्राचीनकाल में भी लोगों की मृत्यु होती रही होती तो सृष्टि का क्रम आगे कैसे बढ़ पाता ! उससमय तो जनसंख्या भी बहुत कम होती थी | उससमय विज्ञान भी इतना विकसित नहीं था !यातायात और दूरसंचार के साधन इतने अच्छे नहीं थे ! औषधियों के परीक्षण के लिए अत्याधुनिक संसाधन नहीं थे | इतने सारे अभावों के बाद भी उस समय ऐसा कुछ अवश्य था जिसके बल पर महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य अपनी सुरक्षा कर लिया करता था |जिससे यह सुरक्षित सृष्टिक्रम यहाँ तक चलकर आ पाया है |आधुनिक विज्ञान तो अभी आया है | प्राचीनकाल में ऐसा क्या था जिससे महामारी जैसी प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य अपनी सुरक्षा कर लिया करता था |
वर्तमान समय में विकसित देशों एवं विकसित नगरों महानगरों में वहाँ की चिकित्सा व्यवस्था बहुत अच्छी मानी जाती है,फिर भी वहाँ अधिक नुक्सान हुआ है | कारण जो भी रहा हो किंतु अभी तक के अनुभवों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि महामारी
को समझने में विज्ञान असफल हुआ है | इस सच्चाई को स्वीकार करते हुए सभी वैज्ञानिकों के साथ साथ सभी
चिकित्सा पद्धतियों परंपराओं धर्माचार्यों योगियों
साधकों समेत समस्त विश्व को एक परिवार की तरह
मिल बैठकर ऐसे संकटों का समाधान खोजना चाहिए |उन्नत वैज्ञानिकों के साथ साथ उन्नत आध्यात्मिक अनुभव संपन्न साधकों को भी
ऐसे अनुसंधानों में सम्मिलित किया जाना चाहिए |महामारी या प्राकृतिक
आपदाओं के पैदा होने के कुछ प्रत्यक्ष कारण होते हैं तो कुछ परोक्ष कारण भी
होते हैं | प्रत्यक्ष कारणों को समझने के लिए तो विज्ञान है किंतु
परोक्षकारणों को इस विज्ञान के द्वारा समझा जाना संभव नहीं है |उसके लिए परोक्ष विज्ञान की ही आवश्यकता है |
कोरोना महामारी के बाद भविष्य में किसी दूसरी महामारी के पैदा होने की
संभावना है या नहीं है और यदि है तो कब तक है |उसके विषय में अभी से कोई
अनुमान पूर्वानुमान आदि पता है या नहीं है| वर्तमान महामारी से प्राप्त अनुभवों
के आधार पर भविष्य में संभावित महामारियों को समझना कितना आसान हो पाएगा |
कोरोना महामारी से संबंधित बहुत सारे रहस्यों को अभी तक सुलझाया नहीं जा
सका है |इसके कारण भविष्य में पैदा होने वाली महामारियों का भी रहस्य ही
बना रहना स्वाभाविक है | इसलिए उन रहस्यों को अभी सुलझा लिया जाना अभी के
लिए तो अच्छा होगा ही भविष्य की संभावित महामारियों को भी समझने की
दृष्टि से सहयोगी रहेगा |
इसलिए
सभीप्रकार की चिकित्सा पद्धतियों के साथ साथ सभी श्रेष्ठ बिचारकों के
अनुभवों अनुसंधानों तथा आध्यात्मिक अनुभवों से संपन्न साधकों से भी ऐसे
संकटों से सुरक्षा में अपना योगदान देने का आग्रह किया जाना चाहिए | महामारी
या प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पिछले तीस वर्षों से मैं जो अनुसंधान
करता आ रहा हूँ | उनसे प्राप्त अनुभवों के आधार पर ही मैं न केवल महामारी की सभी लहरों के विषय में सही पूर्वानुमान लगाने में सफल हुआ हूँ प्रत्युत साधनात्मक प्रयासों से महामारी की दूसरी लहर को नियंत्रित करने के प्रयासों में भी प्रामाणिक रूप से सफलता मिली है |
इसलिए मैं विश्वास पूर्वक कह
सकता हूँ कि प्रत्यक्ष और परोक्ष विज्ञान के संयुक्त अनुसंधान के आधार पर सभीप्रकार की प्राकृतिक घटनाओं आपदाओं एवं महामारियों
के रहस्य को न केवल सुलझाया जा सकता है प्रत्युत ऐसी घटनाओं से मनुष्य
समाज की सुरक्षा के लिए भी सार्थक प्रयत्न किए जा सकते हैं |
महामारी को पराजित करने के दावों में कितना दम था !
संपूर्ण महामारी काल में
महामारी को पराजित
करने या खदेड़ देने या उसे
पराजित कर देने या उस पर विजय प्राप्त कर लेने के लिए दावे तो बड़े बड़े किए
जाते रहे किंतु कभी ये नहीं बताया गया कि पहले से ऐसी कौन सी वैज्ञानिक
तैयारियाँ करके रखी गई हैं | जिन पर इतना भरोसा है कि उनके द्वारा महामारी
पर विजय प्राप्त कर ली जाएगी !
महामारी पैदा होने के लिए जो कारण बताए जाते रहे वो गलत निकलते रहे ,जो
कोविड नियम बनाए उनका प्रभाव स्पष्ट नहीं था,जिन औषधियों को प्रभावी समझकर
प्रयोग किया गया, उनका वैसा प्रभाव देखने को नहीं मिला | इसलिए उनसे
संबंधित निर्णय बदलने पड़े !महामारी विषयक जितने भी प्रकार के अनुमान लगाए जाते रहे वे सही नहीं निकल रहे थे | जितने प्रकार के पूर्वानुमान महामारी या उसकी लहरों के विषय में लगाए
जा रहे थे वे बार बार बदलने पड़ रहे थे,फिर भी गलत निकलते जा रहे थे |ऐसा
होने पर भी किस वैज्ञानिक आधार पर कहा जा रहा था कि हम महामारी पर विजय
प्राप्त कर लेंगे |
महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने घटने के लिए जहाँ एक ओर
वर्षा, तापमान और वायुप्रदूषण घटने बढ़ने जैसी मौसम संबंधी प्राकृतिक
घटनाओं को जिम्मेदार बताया जाता रहा
है |वहीं दूसरी ओर महामारी पैदा होने के लिए किसी देश विशेष को जिम्मेदार बताया जा रहा
है और संक्रमण बढ़ने के लिए कोविड नियमों के पालन न करने को
जिम्मेदार बताया जाता रहा है |ऐसी स्थिति में संक्रमण बढ़ने के लिए प्राकृतिक
कारण जिम्मेदार हैं या मनुष्यकृत ! इसका पता लगाया जाना अभी तक संभव नहीं हो
पाया है |
महामारीजनित
संक्रमण यदि मनुष्यकृत छुआछूत के
कारण बढ़ता था, तो महामारी प्रारंभ होने
से पहले भी लोग एक दूसरे को छूते थे और महामारी समाप्त होने के बाद भी
छूते हैं !ऐसे समय में छूने से संक्रमण क्यों नहीं बढ़ा और महामारी के समय
एक दूसरे को छूने
में ऐसा
क्या विशेष हो जाता था जिससे संक्रमण बढ़ जाता था | मनुष्यकृत छुआछूत को यदि संक्रमण बढ़ने का कारण मान भी लिया जाए तो हरिद्वार का कुंभ मेला हो हो या बिहार और बंगाल की चुनावी रैलियाँ हों या दिल्ली का किसान आंदोलन हो या दिल्ली
मुंबई सूरत आदि से श्रमिकों का पलायन हो या घनी बस्तियों फैक्ट्रियों आदि
में सामूहिक रहन सहन हो !उसी कोरोना काल में ऐसे
स्थानों पर लोग एक दूसरे को छूते रहे, ऐसे स्थानों पर एक दूसरे को छूने
में एवं आम समाज में एक दूसरे के छूने में ऐसा क्या अंतर था कि एक जगह छूने
से संक्रमण बढ़ जा रहा था जबकि दूसरी जगह छूने में ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा
था |
कुलमिलाकर महामारी पैदा या समाप्त होने तथा
संक्रमण घटने और बढ़ने का कारण प्राकृतिक परिस्थिति में हुए कुछ बदलाव थे
या कि मनुष्यों के आहार व्यवहार खान पान आदि में अचानक हुए कुछ परिवर्तन या चिकित्सकीय प्रयास रहे हैं या फिर इसमें मनुष्यकृत प्रयत्नों की कोई भूमिका ही नहीं रही है
|
महामारी पैदा होने के लिए जिस कोरोनावायरस को जिम्मेदार बताया जा रहा था | वो
वायरस महामारी पैदा होने से पहले कहाँ था बाद में कहाँ गया !अभी भी प्राकृतिक वातावरण में विद्यमान है या अब समाप्त हो गया है या
फिर कहीं दूसरी जगह चला गया है | कोरोनावायरस के उसी
समय अचानक आकर सबको संक्रमित करने लगने का क्या कारण था | वह वायरस
ऐसा करने वाला है|इसका अनुमान पहले से नहीं लगाया जा सका,इसका क्या कारण है |
कोरोना महामारी को पहचाना कैसे गया !महामारी सर्व प्रथम प्राकृतिक वातावरण को प्रभावित करती है या मनुष्य शरीरों को इसका पता आखिर कैसे लगाया जाए ! महामारी सर्व प्रथम प्राकृतिक वातावरण में
दिखाई देती है या फिर तेजी से संक्रमित होते एवं मृत्यु
को प्राप्त होते लोगों में ! उन्हें ही देखकर
यह अंदाजा लगाया जाता है कि महामारी आ गई है |
महामारी के जिस स्वरूप को देखकर महामारी को पहचाना जाता है वो स्वरूप कैसा
होता है | उसमें किस प्रकार के बदलाव आ जाने पर उसे
महामारी का स्वरूप परिवर्तन समझा जाता है | लोगों के संक्रमित होकर मृत्यु
को प्राप्त होते देखकर यदि महामारी आने के विषय में अंदाजा लगाया जाता है
!जो लोग कोरोना काल में मृत्यु को प्राप्त हुए उनकी मृत्यु का कारण महामारी
है या कुछ और है ! क्योंकि इसी समय में बहुत लोग महामारी से संक्रमित हुए बिना ही हँसते खेलते बात करते नाचते कूदते
समय अचानक ही मृत्यु को प्राप्त होते देखे जा रहे थे | ऐसी मौतें महामारी से संबंधित
थीं या नहीं थीं ! कुलमिलाकर महामारी के समय प्राकृतिक वातावरण में बिषाणुओं की अचानक अधिकता हो गई थी या मनुष्य
शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता अचानक कम होने लगी थी |
महामारी पैदा होने के लिए ऐसा कौन सा कारण जिम्मेदार था | जो कई दशकों बाद
कभी कभी ही घटित होते दिखाई देता है |ऐसे प्रश्नों के निश्चित उत्तर अभी तक खोजे नहीं जा सके हैं |
कुछ दशकों के
बाद कोई कोई वर्ष ऐसा होता है, जिसमें महामारी पैदा होती है | उसके कुछ
महीने या वर्ष बाद कोई समय ऐसा भी आता है जब महामारी स्वतःअर्थात बिना किसी
चिकित्सा के समाप्त हो जाती है |ऐसे ही महामारी के समय ही कुछ महीने ऐसे
आते हैं जब महामारीजनित संक्रमण बहुत अधिक बढ़ जाता है | कुछ महीनों या दिनों
आदि में वही संक्रमण अपने आप से ही कम हो जाता है|महामारी पैदा होने और समाप्त होने के कारण क्या होते हैं और महामारीजनित
संक्रमण घटने बढ़ने के कारण क्या होते हैं | किन प्राकृतिक परिस्थितियों में ऐसी घटनाओं का
निर्माण होता है | इसे अभी तक खोजा नहीं जा सका है |
महामारी भयंकर थी या महामारी का विज्ञान ही नहीं है !
कोरोना
महामारी से वैश्विक समाज पूरी तरह हिल गया है और मनुष्यकृत कोई भी उपाय
जनता की सुरक्षा करने में सफल नहीं हो सका है | इससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि कोरोना महामारी से हुए जनधन के नुक्सान के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए |महामारी
इतनी भयंकर थी इसलिए बहुत लोग संक्रमित हुए और बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं अथवा विज्ञान ही इतना सक्षम नहीं था जिससे महामारी को समझना संभव हो पाता !इसलिए अब ये प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि विज्ञान महामारी से मनुष्यों की सुरक्षा करने में सक्षम है या नहीं है |
बिचारणीय यह है कि इतने सारे अनुसंधानों के लगातार होते रहने के बाद भी मनुष्यों को यदि वही
सबकुछ सहना है ,जो अनुसंधानों के न होने पर सहना पड़ता था या जो उससमय सहना
पड़ता था जब विज्ञान नहीं था या जब विज्ञान इतना विकसित नहीं था | इसलिए उस समय तो सहने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं था |अब तो सक्षम माना जाने वाला विज्ञान भी है,उसने उन्नति भी बहुत कर ली है | विज्ञान के द्वारा आकाश से लेकर पाताल तक बड़ी बड़ी समस्याओं के समाधान खोजे जा चुके हैं | दूर संचार ,यातायात एवं वातानुकूलित
जीवन ऐसी बहुत सारी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ गिनाई जा सकती हैं | जिन मनुष्यों के जीवन की कठिनाइयाँ कम करके सुख
सुविधा तथा सुरक्षा संपन्न बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने बड़े बड़े
अनुसंधान किए हैं |उन्हीं मनुष्यों को महामारी इतनी निर्ममता पूर्वक निगलती जा रही थी और विज्ञान मूकदर्शक बना हुआ था| मनुष्यों की यह दुर्दशा दुनियाँ ने देखी है |
महामारी
में जितने लोगों को संक्रमित होना था या जितने लोगों की मृत्यु होनी थी |
वो सबकुछ होते देखा जा रहा था | उसे वैज्ञानिक अनुसंधानों के बल पर थोड़ा भी
नियंत्रित नहीं
किया जा सका है |जिस प्रकार से मदारी बंदरों को नचाता है उसी प्रकार से
विज्ञान को महामारी भ्रमित किए जा रही थी | महामारी आगे आगे भाग
रही थी विज्ञान उसका अनुगमन करते हुए देखा जा रहा था |
कुलमिलाकर
महामारी के हिंसक तांडव और विज्ञान की बेवशी जिस जिस ने अपनी आँखों से
देखी है | उनके मन में एक प्रश्न तो बार बार कौंध ही रहा है कि विज्ञान ने
चाहें जितनी उन्नति कर ली हो और अपने अनुसंधानों से चाहें जितने सुख सुविधा के साधन जुटा लिए गए हों ,किंतु उसका उपभोग करने के लिए यदि मनुष्य ही नहीं बचेंगे तो ये वैज्ञानिक उपलब्धियाँ किसके काम आएँगी |आखिर ये सब मनुष्यों को ही सुख सुविधाएँ प्रदान करने के लिए किया गया है और महामारियाँ या प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्यों को ही पीड़ित प्रताड़ित करती हैं | ऐसे में महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए मजबूत उपाय खोजे बिना मनुष्यों के जीवन की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुख
सुविधा एवं सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्यों की पूर्ति होनी कैसे संभव है |
महामारियाँ
आवें और मनुष्यों को मार कर चली जाएँ !भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएँ आवें वे भी
मनुष्यों को मार कर चली जाएँ |ऐसी आपदाओं से जितना नुक्सान होना
हो वो हो ही जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों का औचित्य ही क्या बचता है | महामारियाँ इतनी तेजी से आती हैं और लोगों को संक्रमित करने एवं मारने लगती हैं | इतने कम समय में तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारी से मनुष्य समाज की सुरक्षा की जानी संभव नहीं हो पाती है |महामारी से बचाव की अग्रिम तैयारियों के अभाव में बड़ी संख्या में
लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं |मजबूत तैयारियाँ करके यदि पहले से रखी गई होतीं तब तो मनुष्य समाज की सुरक्षा एक सीमा तक की भी जा सकती थी |
पहले से तैयारियाँ करने के लिए महामारी के विषय में
पहले से सही पूर्वानुमान पता होने चाहिए थे | ऐसा करने के लिए कोई इस
प्रकार का विज्ञान होना चाहिए था | जिसके द्वारा भविष्य में झाँककर संभावित
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके |
ऐसा कोई सक्षम विज्ञान होता तो उसके द्वारा महामारी के किसी पक्ष को समझना तो संभव हो पाता | महामारी के स्वभाव को अभी
तक समझा नहीं जा सका है |महामारी
का प्रभाव पता नहीं है | महामारी का विस्तार कितना था प्रसार माध्यम क्या
था ?अंतर्गम्यता कितनी थी | महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं
!तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता था या नहीं !वायुप्रदूषण के प्रभाव से
महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ता था या नहीं !
महामारी के विषय में वैज्ञानिक लोग जितने भी अनुमान बता
रहे थे वे बार बार गलत निकलते देखे जा रहे थे | इसका कारण महामारी
को समझने के लिए किसी विज्ञान का न होना था या कुछ और !यदि ऐसा कोई सक्षम
विज्ञान ही नहीं था तो वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जा रहे महामारी विषयक
अनुमान आम लोगों के द्वारा लगाए जाने वाले अंदाजों से कितने अलग थे |
महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने या घटने के विषय में एक ओर वैज्ञानिक लोग
पूर्वानुमान लगाते जा रहे थे,दूसरी ओर वे गलत निकलते जा रहे थे | उनके गलत
निकलने का कारण यदि भविष्य में झाँकने के लिए किसी विज्ञान का न होना था,तो
लगाए जा रहे पूर्वानुमानों का आधार क्या था और कितना विश्वसनीय था | महामारी हों या प्राकृतिक आपदाएँ इन्हें रोका जाना संभव
भले न हो किंतु प्रयत्न पूर्वक अपना बचाव कुछ तो किया ही जा सकता था | इनके
विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | उनके शतप्रतिशत सही
निकलने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए ,फिर भी उनके सही या
गलत निकलने की कोई तो लक्ष्मण रेखा होनी ही चाहिए कि
ये इससे अधिक गलत नहीं निकलेंगे | यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो ऐसे
पूर्वानुमान विश्वसनीय कैसे हो सकते हैं | पूर्वानुमानों के नाम पर कोई
कुछ भी बोल देगा वो गलत निकल जाएगा तो कुछ और दूसरा बोल देगा | ऐसे संदिग्ध
पूर्वानुमान जनसुरक्षा की दृष्टि से कैसे सहायक हो सकते हैं |
ऐसी स्थिति में ये बिचार
किया जाना आवश्यक है कि इतना उन्नत विज्ञान होते हुए भी महामारी में जनधन
का इतना अधिक नुक्सान कैसे हो गया | बताया जाता है कि वर्तमान समय विज्ञान बहुत बड़े बड़े कीर्तिमान स्थापित कर चुका है, किंतु प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से जनता के जीवन की सुरक्षा यदि सुनिश्चित नहीं की जा सकी तो वे वैज्ञानिक कीर्तिमान मान जनता के किस काम के !जनता के लिए उसके जीवन को सुरक्षित बचाया जाना पहले आवश्यक है बाक़ी सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों का आनंद लेने के लिए सारा जीवन ही पड़ा है |
प्रत्यक्षविज्ञान की क्षमता !
वर्तमान समय में प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा मनुष्य जीवन की बहुत सारी
कठिनाइयाँ कम करके उनके जीवन को सुख सुविधा संपन्न बनाया जा सका है |
बहुत सारी समस्याओं के समाधान खोजे जा सके हैं | जहाँ एक ओर ऐसी बहुत सारी
सफलताओं पर गर्व होता है,वहीं दूसरी ओर प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली
बहुत सारी ऐसी घटनाएँ भी हैं जिनके विषय में कुछ भी पता नहीं लगाया जा सका
है | उन रहस्यों को अभी तक सुलझाया जाना संभव नहीं हो पाया है |
भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात महामारी
जैसी अधिकाँश
प्राकृतिक घटनाओं के विषय में कोई ऐसी मजबूत जानकारी नहीं जुटाई जा सकी है
जिसके विषय में विश्वासपूर्वक कहा जा सके कि यह ऐसा ही है | इसीलिए ऐसी घटनाओं के विषय में लगाए जाने वाले अनुमान
पूर्वानुमान आदि सही नहीं निकल पाते हैं |ये रहस्य तब और अधिक उलझ
जाता है जब महामारी जैसी घटनाओं के घटने बढ़ने एवं पैदा और समाप्त होने के
लिए मौसम को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है |ऐसा करने से एक और बड़ी समस्या ये पैदा हो जाती है कि
जब मौसम को समझने के लिए ही कोई विज्ञान नहीं है तो मौसम के आधार पर महामारी को
समझना कैसे संभव हो सकेगा |
इसमें विशेष चिंता की बात यह है कि ऐसी प्राकृतिक घटनाओं
को प्रत्यक्ष लक्षणों के आधार पर समझना इसलिए संभव
नहीं है,क्योंकि ऐसी घटनाओं के घटित होने के लिए जिन काल्पनिक कारणों को
जिम्मेदार बनाया जाता है |वे जिम्मेदार होते नहीं हैं क्योंकि उनकी घटनाओं
के साथ सीधी श्रृंखला जुड़ती दिखाई नहीं देती है | इसलिए प्रत्यक्ष
विज्ञान की इसमें कोई भूमिका बन नहीं पाती है| इसके अतिरिक्त कोई दूसरा
विज्ञान नहीं है | विज्ञान के बिना अनुसंधान कैसे किए
जा सकते हैं| अनुसंधानों के बिना किसी घटना के घटित होने के कारण खोजना
कैसे संभव है |उन घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि कैसे लगाए जा सकते हैं | यही कारण है कि भूकंप आँधी तूफ़ान वर्षा बाढ़ चक्रवात बज्रपात महामारी जैसी अधिकाँश प्राकृतिक घटनाओं के विषय लगाए गए अनुमान
पूर्वानुमान आदि गलत निकलते रहते हैं|
किसी किसी वर्ष के किसी किसी महीने के किसी दिन विशेष में ऐसी घटनाओं के
घटित होने तथा उनके वेग के कम या अधिक होने का कारण क्या होता है |किसी
वर्ष महीने आदि में ऐसी घटनाएँ बार बार क्यों घटित होती हैं | कुछ दूसरे वर्षों
में ऐसा होते नहीं देखा जाता है | सभी घटनाओं के विषय में ऐसा संशय बना रहता है |जिसका उत्तर उपग्रहों रडारों
की मदद से मिलना संभव नहीं है |
बादलों आँधी तूफानों को उपग्रहों रडारों
से प्रत्यक्ष देखकर उनकी गति एवं दिशा के आधार पर उनके विषय में अंदाजा लगा लिया
जाता है कि ये कब कहाँ पहुँच सकते हैं|इस जुगाड़ से बादलों आँधी तूफानों के
वर्तमान स्वरूप गति एवं दिशा को प्रत्यक्ष देखकर उसीप्रकार से अंदाजा लगा
लिया जाता है ! जैसे नहरों में छोड़ा गया पानी या नदियों में आया बाढ़ का
पानी कब कहाँ पहुँचेगा | इसका अंदाजा लगाया जाता है |इस प्रक्रिया में सब
कुछ प्रत्यक्ष दिखाई दे रहा होता है |इसलिए इसमें प्रत्यक्ष साक्ष्यों का
विश्लेषण करके उसी के आधार पर अनुमान लगाया जाता है |ऐसी स्थिति में हवा का रुख यदि न बदला तो कभी कभी ऐसा अंदाजा सही भी निकल जाता है | जिससे जनधन के
संभावित नुक्सान को कम कर लिया जाता है ,किंतु इस जुगाड़ से केवल बादलों आँधी तूफानों के
विषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है | भूकंप महामारी आदि के विषय में नहीं,क्योंकि ऐसी घटनाएँ उपग्रहों रडारों
से दिखाई नहीं देती हैं |
जिन घटनाओं को घटित होने से पहले उपग्रहों रडारों के द्वारा देख लिया जाता
है | उनके विषय में अंदाजे लगा लेने से बचाव करने में कभी कभी कुछ मदद मिल
जाती है ,किंतु यह प्राकृतिक घटनाओं का ऐसा विज्ञान नहीं है| जिसके द्वारा
ऐसी घटनाओं के महामारी पर पड़ने वाले प्रभाव को समझा जा सके या ऐसी
घटनाओं की प्रकृति को समझकर निश्चिंत बैठा जा सके | उसके आधार पर उनके पैदा
होने या घटित
होने की उन परिस्थितियों को समझा जा सके कि किस कारण ऐसी घटनाएँ घटित होती
हैं |
कई बार उपग्रहों रडारों से बादलों या आँधी तूफानों का वर्तमान स्वरूप देखकर उसकी गति एवं दिशा के आधार पर जो अंदाजा लगाया जाता है | वो उन्हीं बादलों
तक सीमित होता है| जो प्रत्यक्ष दिखाई पड़ रहे होते हैं |उसके आधार पर केवल
इतनी ही जानकारी मिल पाती है कि ये इस दिन वहाँ पहुँच सकते हैं !किंतु वे
वहाँ पहुँचकर कम
बरसेंगे अधिक बरसेंगे या बिल्कुल नहीं बरसेंगे ऐसे ही वे वहाँ दो दिन
बरसेंगे या दस दिन बरसेंगे बहुत कम या बहुत अधिक बरसेंगे इसके विषय में उस
दिन की प्रत्यक्ष परिस्थिति के आधार पर कुछ भी पता नहीं लग पाता है |यही
कारण है कि कई बार प्रत्यक्ष परिस्थिति के अनुसार जहाँ जहाँ 48 घंटे वर्षा होने की भविष्यवाणी की जाती है |वहाँ 48 घंटे के बाद भी वर्षा न रुकने पर 72 घंटे और बरसने की भविष्यवाणी कर दी जाती है
| ऐसे दो दो दिन बढ़ते बढ़ते दस बारह दिनों तक वर्षा होती रहती है | इससे
उस क्षेत्र को भीषण बाढ़ का सामना करना पड़ जाता है |जिसके विषय में मौसम
वैज्ञानिकों के द्वारा कोई स्पष्ट पूर्वानुमान नहीं लगाया जा पाता है |
ऐसे ही कई बार उपग्रहों रडारों से जो आँधी तूफ़ान या चक्रवात दिखाई पड़ रहा होता है | उसकी गति और दिशा के आधार पर केवल इतनी ही जानकारी मिल पाती है कि ये इस दिन वहाँ पहुँच सकते हैं!किंतु इसके पीछे कोई दूसरा भी आँधी तूफ़ान आने वाला है या अभी कुछ दिनों के अंतराल में कितने तूफ़ान और आने वाले हैं या आगामी 15 दिनों या एक महीने में कितने आँधी तूफ़ान या चक्रवात आदि और भी
आ सकते हैं | इसकी जानकारी उस प्रत्यक्ष विज्ञान से इसलिए नहीं मिल पाती
है ,क्योंकि उपग्रहों रडारों से केवल प्रत्यक्ष की घटनाएँ ही दिखाई दे सकती
हैं भविष्य की नहीं |
किसी किसी वर्ष वर्षाऋतु में वर्षा बहुत अधिक होती है तो किसी वर्ष कम होती है या सूखा पड़ता है| कई बार वर्षाऋतु के अतिरिक्त दूसरी ऋतुओं में भी अधिक वर्षा या बाढ़ जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | ऐसे
ही किसी वर्ष आँधी तूफ़ान बहुत अधिक आते हैं तो किसी वर्ष कम आते हैं|किसी
वर्ष सर्दी या गर्मी बहुत अधिक तो किसी वर्ष बहुत कम होती है|किसी वर्ष
भूकंप बिल्कुल कम तो किसी वर्ष बहुत अधिक आते हैं | ऐसी घटनाओं के विषय में
अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाना संभव नहीं होता है | इसीलिए मध्यावधि
और दीर्घावधि पूर्वानुमान सही नहीं निकल पाते हैं |अल्पावधि के लिए लगाए
गए अंदाजे कभी कभी सही निकल जाते हैं,किंतु ऐसी घटनाओं के घटित होने के
आधार भूत कारण तब भी नहीं पता लग पाते हैं |
महामारी बनी विज्ञान के लिए चुनौती !(आरंभ)
महामारी को समझने के लिए, इसका स्वभाव प्रभाव वेग आदि जानने के लिए, इससे संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए वैज्ञानिकों ने बड़े बड़े प्रयत्न किए हैं किंतु महामारी के विषय में ऐसा कुछ भी हासिल नहीं किया जा सका है | जिसके लिए विश्वासपूर्वक यह कहा जा सके कि अनुसंधानों के बिना ऐसा किया जाना संभव न था |
महामारी का विस्तार कितना था,प्रसार माध्यम क्या था,अंतर्गम्यता कितनी थी | तापमान या वायुप्रदूषण का प्रभाव महामारी पर पड़ता था या नहीं आदि प्रश्नों का कोई तर्कसंगत उत्तर नहीं खोजा जा सका है | महामारी पैदा होने या उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में आज तक न तो वास्तविक कारण खोजा जा सका है और न ही सही अनुमान पूर्वानुमान ही लगाए जा सके हैं |जो लगाए जाते रहे वे भी निरंतर गलत निकलते रहे |
महामारी को किसी देश विशेष के द्वारा निर्मित बताया जाता रहा है तो बाकी देशों ने अपने यहाँ ऐसी वैज्ञानिक क्षमता विकसित करके क्यों नहीं रखी थी कि यदि कभी ऐसा हो तो वे अपने देश वासियों की सुरक्षा तो कर सकें | वैसे तो ये ऐसी आशंका मात्र है,जिसे प्रमाणित नहीं किया जा सकता है |यदि मान भी लिया जाए कि किसी देश में मनुष्यकृत प्रयासों से ही महामारी का जन्म हुआ होगा,तो हमें यह भी सोचना चाहिए कि माचिस की तीली जलाकर तो कोई कहीं भी फ़ेंक सकता है, किंतु आग वहीं लगती है जहाँ ईंधन मिलता है | महामारी रूपी आग भड़काने के लिए यदि किसी देश विशेष ने कोई चिंगारी फ़ेंक ही दी तो उससे आग को भड़कने लायक इतना ज्वलन शील ईंधन क्यों मिला कि सारा विश्व महामारी की चपेट में आता चला गया | जिन देशों प्रदेशों में महामारी का प्रकोप कम भी रहा है | उसका श्रेय किसी मनुष्यकृत प्रयास को नहीं दिया जा सकता है,क्योंकि प्रयास करना क्या है जब यही नहीं पता था तो प्रयास किया क्या गया होगा इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है |
विश्व की बहुत बड़ी जनसंख्या बिना कोविड नियमों का पालन किए तथा बिना कोई
उपाय अपनाए भी संक्रमित नहीं हुई |उसके संक्रमित न होने का कारण यदि उसकी
प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती थी तो इसमें ऐसी शक्ति कैसे आई क्योंकि यह जब
जो मिल जाए वही खाकर रह जाने वाला साधनविहीन वर्ग
है| इसके खाने पीने रहन सहन आदि इनकी रुचि के अनुशार नहीं होते ! साधन
संपन्न वर्ग जो जन्म से ही स्वास्थ्य सलाहकारों के अनुशार ही जीवन जीता है |
वो सबसे अधिक संक्रमित हुआ है उनमें प्रतिरोधक क्षमता की मजबूती क्यों नहीं हुई !
वैसे भी अब यह कहने का औचित्य ही क्या बनता है कि प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर संक्रमित होने की संभावना अधिक होती है| यदि ऐसा होता है और ये पहले से पता था, तो विश्व की इतनी बड़ी जनसंख्या एक साथ अपनी प्रतिरोधक क्षमता खोती जा रही थी तब किसी को क्यों पता नहीं लगा | बाद में तो किसी भी घटना के लिए किसी को भी कारण बताकर जिम्मेदार ठहरा दिया जाना तर्कसंगत नहीं है | इसे प्रमाणित कैसे किया जाएगा | प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान न लगा पाने के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया जाता है | यदि हम घटना को न समझ पावें तो ये हमारी अयोग्यता है इसमें घटना का कोई दोष नहीं है |
प्रायः देखा जाता है कि मौसम को हम न समझ पावें तो जलवायुपरिवर्तन का दोष देने लगते हैं और महामारी को हम न समझ पावें तो महामारी के स्वरूप परिवर्तन का दोष दे दिया जाता है ! प्राकृतिक घटनाएँ तो स्वतंत्र होती हैं | हम उनसे किसी एक नियम में बँधकर चलने की अपेक्षा कैसे रख सकते हैं | उन्हें समझने के उद्देश्य से अनुसंधान हम करते हैं | इसलिए उन्हें उन्हीं के स्वरूप में समझने की योग्यता हमें अपने अंदर विकसित करनी होगी यही तो अनुसंधान है |ऐसा न करके विभिन्न प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अक्सर कल्पित कारण उछालकर अनुसंधान संबंधी कुछ बड़ी जिम्मेदारियों से बच लिया जाता है | जिससे उस प्रकार की घटनाएँ हमेंशा रहस्य ही बनी रहती हैं | महामारी जैसी घटनाओं में होने वाला जनधन का नुक्सान उसी प्रकार की प्रवृत्ति का परिणाम है |
प्रायः देखा जाता है कि अनुसंधानों
के नाम पर ऐसी कई बातें उछाल तो दी जाती रही हैं किंतु उन्हें निष्कर्ष तक
नहीं पहुँचाया जाता है| इससे जनता का ध्यान तो भटकता ही है | समय भी बर्बाद
होता है और अनुसंधानों पर से विश्वास भी उठता है | ऐसा कोरोना जैसे बड़े
स्वास्थ्य संकट के समय हो रहा हो तो चिंता तो होती है |ऐसे समय महामारी
पीड़ित समाज अपने अनुसंधानकर्ता वैज्ञानिकों की ओर बड़ी आशा से देख रहा होता
है | अब बताया
जा रहा है कि महामारी जैसी घटना के लिए मौसमसंबंधी वर्षा तापमान वायु
प्रदूषण बढ़ने जैसी घटनाएँ जिम्मेदार हैं | यदि वास्तव में ऐसा है तो मौसमसंबंधी
घटनाओं में आ रही अनियमितता या जलवायुपरिवर्तन को देखकर महामारी के विषय
में पहले ही पूर्वानुमान क्यों नहीं लगा लिया गया |
महामारी
पैदा होने या उसके संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसमसंबंधी
घटनाएँ जिम्मेदार हैं,किंतु किस प्रकार से जिम्मेदार हैं ये नहीं बताया
गया और न ही सिद्ध करके दिखाया गया !ऐसे ही तापमान बढ़ने से कोरोना
समाप्त होने की बात कही गई किंतु गर्मी आई तापमान बढ़ा तब कोरोना कम होना तो
दूर प्रत्युत बढ़ गया था | पहली दूसरी चौथी लहर तब आई जब तापमान बढ़ा हुआ ही
था !
वैज्ञानिकों का एक समूह ऐसा भी
था| जिसने महामारी पैदा होने एवं उसके संक्रमण बढ़ने घटने के लिए वायुप्रदूषण
को जिम्मेदार बताया था ,किंतु 2020 के अक्टूबर नवंबर में वायुप्रदूषण बहुत
बढ़ा हुआ था जबकि कोरोना दिनोंदिन कम होता जा रहा था |ऐसे में प्रश्न उठना
स्वाभाविक ही है कि वायुप्रदूषण बढ़ने से कोरोना संक्रमण बढ़ेगा ऐसा कहने के पीछे वैज्ञानिक आधार क्या था ?
कुछ वैज्ञानिकों ने वर्षा होने से कोरोना के समाप्त होने की बात कही
थी,किंतु भारत में पहली लहर 18 सितंबर 2020 को उच्चतम स्तर पर पहुँची थी | उस समय वर्षा ऋतु ही चल रही थी | अब प्रश्न उठता है कि वर्षा होने से कोरोना के समाप्त होने की बात कहे जाने के पीछे किस प्रकार की वैज्ञानिकता थी !
ऐसे ही वैज्ञानिकों
ने बड़े विश्वास पूर्वक कहा कि एक दूसरे को या संक्रमितों को छूने से
कोरोना संक्रमण बढ़ता है ,किंतु व्यवहार में इसके विपरीत देखा गया | दिल्ली
में किसान आंदोलन हो या बिहार बंगाल की चुनावी रैलियाँ,दिल्ली मुंबई सूरत
आदि से पलायित
श्रमिक हों या महानगरों में भोजन की तलाश में सबको छूते घूम रहे ग़रीबों के
बच्चे आदि ऐसे सभी लोग मजबूरी में ही सही उन्हें सबको छूना पड़ता रहा किंतु
इनमें से कहीं कोरोनासंक्रमण बढ़ते हुए नहीं देखा गया | ऐसी स्थिति में यह
पूछ जाना स्वाभाविक ही है कि संक्रमितों को छूने से कोरोना संक्रमण बढ़ने की बात कैसे पता लगी थी |
महामारी को कितना समझ सका विज्ञान !
कोरोना महामारी पैदा होने या संक्रमितों की संख्या बढ़ने घटने के लिए
जिन जिन मनुष्यकृत कारणों को जिम्मेदार बताया जा रहा था |उन कारणों के वैसा
ही बने रहने पर भी बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के अपने आप से ही संक्रमितों
की संख्या तेजी से घटने लग जाती थी |जिसका कारण कोविड नियमों के पालन एवं
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ जाने को बताया जाता था और जब अपने आप से संक्रमितों की
संख्या बढ़ने लग जाती थी तो उसका कारण कोविड नियमों के पालन में लापरवाही
एवं प्रतिरोधक क्षमता कम होने को बताया जाता था|
कोरोना वायरस अब कहाँ चला गया ,कब तक के लिए गया है ! दोबारा आएगा या
नहीं आएगा और आएगा तो कब आएगा | इस विषय में कोई अनुमान पूर्वानुमान आदि
नहीं है | वर्तमान समय में किसी ने किसी को छूना बंद नहीं किया है सब
लोग सब को छू रहे हैं | वायु प्रदूषण घटा नहीं है उसी में लोग रह रहे हैं
|शिशिर ग्रीष्म वर्षा जैसी ऋतुएँ और ऋतुओं के प्रभाव अभी भी कोरोना काल
जैसा ही है | लोगों के शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता अभी भी पहले जैसी है
| बहुत लोगों ने अभी तक वैक्सीन नहीं लगवाई है | कोरोनाकाल के जैसा ही सब
कुछ होने के बाद भी उस समय महामारी क्यों पैदा हुई थी अब क्यों समाप्त हो
गई | उससमय लहरों के आने जाने के लिए जिन मनुष्यों के जिन व्यवहारों या
आचरणों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा था | अब वो व्यवहार बंद तो नहीं कर दिए
गए हैं |अभी भी तो वही होते देखे जा रहे हैं
| उस समय महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ता था अब वैसा क्यों नहीं हो रहा है
| इसका कुछ तो वैज्ञानिक कारण होगा !वह खोजा जाना चाहिए |
विशेष बात यह है कभी कभी बिना किसी प्रयत्न के प्राकृतिक रूप से ही
संक्रमितों के स्वस्थ होने की संख्या अचानक बढ़ने लगती थी |ऐसा होने का किसी
को कोई तर्कसंगत वैज्ञानिक कारण पता नहीं होता था | ऐसा सुधार सभी देशों
प्रदेशों के सभी संक्रमितों में देखा जाता था | उन्होंने कोई औषधि वैक्सीन
आदि ली हो या न ली हो,कोविड नियमों का पालन किया हो या न किया हो समय के
प्रभाव से सुधार सभी में होने लगता था | संक्रमण
जब प्राकृतिक रूप से स्वयं
ही घटने लगता था | उसीसमय चिकित्साजगत अपने कुछ चिकित्सकीय प्रयोगों,
सावधानियों, टीकों का संक्रमितों पर प्रयोग करके उन्हें सफल मान लेता रहा
है |संक्रमितों पर बहुत सारी औषधियों के प्रयोग करके उन्हें परीक्षण में
सफल मान लिया जाता रहा है |प्लाज्मा थैरेपी या रेमिडीसिविर इन्हें कोरोना
से मुक्ति दिलाने वाली औषधियों के रूप में इसी आधार पर स्वीकार कर लिया गया
था |वैक्सीनों के ट्रायल को भी संयोगवश उसी समय सफल मान लिया गया था |
कोरोना महामारी से संक्रमितों की संख्या जब अपने आपसे अचानक बढ़ने लग
जाती थी | उस समय संक्रमितों पर जिन औषधियों का प्रयोग किया जा रहा होता था
उन्हें निष्प्रभावी मान लिया जाता था |
पहली लहर के बाद जैसे जैसे संक्रमितों की संख्या कम होती जा रही थी वैसे वैसे इसका श्रेय कुछ
औषधियों टीकों आदि को दिया जाने लगा कि इन्हीं के प्रभाव से महामारी
संक्रमितों के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है | जैसे ही दूसरी लहर में संक्रमितों की संख्या अपने आपसे बढ़नी शुरू हो गई तो संक्रमितों पर उन्हीं
औषधियों टीकों या प्लाज्मा आदि का प्रयोग करके देखा गया उसका कोई प्रभाव न
पढ़ते देख उन्हें कोरोना की चिकित्सा प्रक्रिया से अलग कर दिया गया |
पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान नहीं है !
किसी भी व्यक्ति वस्तु घटना आदि के विषय में तभी पूर्वानुमान लगाना संभव होता है जब भविष्य में झाँकने का विज्ञान पता हो और दूसरा उस व्यक्ति वस्तु घटना आदि का स्वभाव पता हो | इसके अतिरिक्त भविष्य में झाँकने
के लिए कुछ आध्यात्मिक प्रक्रियाएँ होती हैं जो योगियों साधकों के पास
होती हैं | इसके लिए प्राचीन गणित विज्ञान भी है जिसके आधार पर आकाश में
बिचरण करने वाले ग्रहों एवं सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में तो पूर्वानुमान लगाया ही जाता है | इसके साथ ही साथ प्रकृति से लेकर जीवन तक की संभावित परिस्थितियों के विषय में भी पूर्वानुमान
लगाया जाता है |
स्वभाव के आधार पर लगाया हुआ पूर्वानुमान भी सच निकलता है | सर्दी(शिशिरऋतु) के समय के बाद गर्मी (ग्रीष्म ऋतु ) आती है उसके बाद वर्षाऋतु आती है | सर्दी गरमी वर्षा आदि प्रमुख ऋतुओं का समय कितना कितना होता है उनका क्रम क्या है | ये सब कुछ पता होने के कारण इनके स्वभाव के अनुशार इनके विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |ऐसे ही आम के छोटे छोटे कच्चे फलों का रंग हरा गुठली नरम स्वाद खट्टा होता है | इन्हीं पकने पर इनका रंग लाल गुठली कठोर एवं स्वाद मीठा होता है | ये इसका स्वाभाविक सच है | इससे परिचित लोग छोटे कच्चे आम को देखकर उसकी भविष्य की अवस्थाओं का पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं | ऐसे अधिकाँश प्राकृतिक पेड़ों पौधों फूलों फलों आदि में संभावित परिवर्तन सुनिश्चित होते हैं |उसके आधार पर पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं |
इसके अतिरिक्त कुछ प्राकृतिक घटनाओं को घटित होते देखकर उनसे संबंधित कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के भविष्य में घटित होने के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | पूर्वी आकाश में अरुणिमा दिखाई देने का मतलब सूर्योदय होने वाला है !बादल आने का मतलब वर्षा होने वाली है | ऐसे ही बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ एक दूसरे से संबंधित होती हैं जिनमें से किसी एक घटना को देखकर उससे संबंधित दूसरी घटना के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाता है |
कोरोना महामारी एवं उसकी लहरों के आने जाने के विषय में वैज्ञानिकों ने जिस भी प्रक्रिया को अपना कर जितने भी पूर्वानुमान लगाए ! उनमें निश्चितता नहीं थी और उनमें से कोई पूर्वानुमान सच निकला भी नहीं | आखिर किस वैज्ञानिक आधार पर वे पूर्वानुमान लगाए जा रहे थे जो सच नहीं निकले |
महामारी में एकप्रकार की परिस्थितियों में रहने वाले बहुत
लोगों में से कुछ संक्रमित हुए बाक़ी नहीं हुए इसका वास्तविक कारण क्या रहा
होगा !पता नहीं है | अब कहा जा रहा है कि जिनकी प्रतिरोधक क्षमता जितनी कमजोर है | वे
उतने अधिक संक्रमित हुए हैं! यदि ऐसा है तो अनुसंधान पूर्वक यह पता लगाया
जाना चाहिए कि लोग महामारी के कारण संक्रमित हुए हैं या प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण ! संक्रमित होने का कारण यदि प्रतिरोधक क्षमता की कमी ही है तो उसका प्रभाव सभी लोगों पर एक जैसा ही पड़ा होगा फिर कुछ लोगों के संक्रमित होने तथा कुछ लोगों के स्वस्थ बने रहने का कारण क्या है ?
विश्व की इतनी बड़ी जनसंख्या जब अपनी प्रतिरोधक क्षमता खोती जा रही थी तो उसके आधार पर भावी महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया जाना चाहिए था | बहुत लोग नियमित रूप से अपना
चेकअप करवाते रहते हैं उनकी संख्या करोड़ों में होगी | उनके
स्वास्थ्य संबंधी जाँचों के आधार पर या उन लोगों के शरीरों को देखकर यह
अंदाजा क्यों नहीं लगाया जा सका कि मनुष्य शरीर अचानक ऐसे होते जाने के कारण भविष्य में आसानी से महारोगों के शिकार हो सकते हैं |
मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाता रहा वो गलत निकलता चला गया !तापमान बढ़ने पर कोरोना समाप्त होगा!वर्षा होने पर कोरोना समाप्त होगा ! वायुप्रदूषण बढ़ने पर कोरोना समाप्त होगा !ऐसे जितने भी पूर्वानुमान लगाए जाते रहे वे सब के सब गलत निकलते रहे | भविष्यदर्शन के लिए जब तक कोई घोषित विज्ञान नहीं है तब तक पूर्वानुमान लगाने के लिए आखिर किस वैज्ञानिक पद्धति को आधार बनाया जा रहा था |
महामारी को समझने में मदद पहुँचा सकता है परोक्षविज्ञान !
प्रकृति होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तन एवं प्राकृतिक घटनाएँ अपने आपसे ही घटित होती हैं |सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाओं के घटित होने में मनुष्यकृत प्रयासों का दूर दूर तक कोई योगदान नहीं होता है | ऐसी घटनाएँ घटित क्यों होती हैं ?इसका कारण क्या है यह समझने के लिए कोई विज्ञान नहीं है | वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो अंदाजे लगाए जाते हैं | उनके आधार इतने हल्के होते हैं | इसीलिए उनके सही होने की आशा उतनी ही की जा सकती है, जितनी गलत होने की होती है |
इसके अतिरिक्त जिन कार्यों को करता हुआ मनुष्य दिखाई भी देता है | उन कार्यों के होने या न होने में उस मनुष्य का कोई योगदान नहीं होता है |जो कि उन्हें करता हुआ दिखाई देता है |मनुष्यों में यदि कार्य करने की क्षमता होती तो वे अपना प्रत्येक कार्य वैसा कर लेते जैसा कि वे चाहते हैं ,किंतु ऐसा नहीं हो पाता है | उनके द्वारा किए हुए कुछ कार्य तो संपन्न हो जाते हैं | कुछ कार्य वैसे नहीं भी होते हैं,जबकि कुछ कार्य बिगड़ भी जाते हैं |
इस प्रकार से मनुष्य के द्वारा किए हुए कार्यों का होना या कार्यों का न होना या कार्यों का बिगड़ जाना | इन तीनों परिणामों में मनुष्य का लक्ष्य तो केवल कार्य का होना ही था | कार्यों का न होना या कार्यों का बिगड़ जाना ये दो घटनाएँ तो अपने आपसे घटित हुई हैं | यदि ये दो घटनाएँ अपने आपसे घटित हो सकती हैं तो संभव है कि वो तीसरी घटना भी अपने आपसे ही घटित हुई हो जिसे कार्य का किया जाना मानते हैं | करता उस कार्य को जैसा करना चाहता था वो कार्य चूँकि वैसा ही हो गया है | केवल इसलिए उसे कार्य को करने वाला मान लिया जाना उचित न तो उचित है और न ही तर्कसंगत है |उसे कर्ता तभी माना जा सकता था जब उसने जितने कार्य जैसे करने का लक्ष्य लेकर कार्य करना प्रारंभ किया हो वो सभी कार्य वैसे ही संपन्न हो गए हों | इससे उसका कर्तापन प्रमाणित होता है,किंतु केवल एक बार में नहीं प्रत्युत वह जब जब ऐसे प्रयत्न करता हो तब तब उनमें वैसी सफलता मिल जाती हो जैसी कि वह चाहता हो तो यह उसका कर्तापन हो सकता है |
किसी चिकित्सक ने दस रोगियों का आपरेशन किया हो, उसमें से 6 स्वस्थ हो गए हों, तीन अस्वस्थ बने रहे हों जबकि एक की मृत्यु हो गई हो | इन तीनों घटनाओं में से लिए प्रयास तो चिकित्सक ने किया है किंतु परिणाम उसकी इच्छा के अनुरूप नहीं आया है | तीन रोगी अस्वस्थ बने रहें एक की मृत्यु हो जाए ये उस चिकित्सक के लक्ष्य में सम्मिलित नहीं था |यद्यपि उन रोगियों को स्वस्थ करने के उद्देश्य से ही चिकित्सक ने आपरेशन आदि चिकित्सा प्रारंभ की थी| आपरेशन आदि चिकित्सा किए जाने के बाद जो 6 रोगी स्वस्थ हुए हैं यदि वे भी स्वस्थ न हुए अस्वस्थ बने रहते या उनकी भी मृत्यु हो जाती तो चिकित्सक का कोई वश नहीं था कि वो ऐसा नहीं होने देगा | इसलिए चिकित्सक केवल उस कार्य के लिए प्रयत्नकर्ता मात्र है| उस कार्य का कर्ता वही है जिसकी योजना के अनुशार उन रोगियों को स्वस्थ होना था इसलिए वे स्वस्थ हुए हैं जिन्हें नहीं होने था |आपरेशन आदि चिकित्सा तो उन्हें भी मिली किंतु वे नहीं स्वस्थ हुए | चिकित्सक के द्वारा प्रयत्न तो सभी के लिए एक सामान ही किया गया था |
कुल मिलाकर जिस परोक्ष शक्ति की योजना के अनुशार सभी कार्य संपन्न होते हैं उनके करने का श्रेय मनुष्यों को मिल जाता है|उसी परोक्षशक्ति के प्रभाव से वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं | वही परोक्ष कारण कोरोना जैसी महामारियों के पैदा होने समाप्त होने तथा उससे संबंधित संक्रमण के बढ़ने और कम होने के लिए जिम्मेदार होता है |उस परोक्ष कारण को समझे बिना न तो कोरोना महामारी के स्वभाव प्रभाव वेग विस्तार अंतर्गम्यता आदि को समझना संभव है और न ही महामारी के पैदा या समाप्त होने तथा उसका वेग कम या अधिक होने के विषय में पूर्वानुमान लगाना ही संभव है | उसपरोक्ष कारण को समझे बिना महामारी के वास्तविक स्वरूप को समझना ही संभव नहीं है |जिसका सहज स्वरूप ही न पता हो उसके स्वरूप परिवर्तन को कैसे पहचाना जा सकता है |
महामारी के स्वभाव प्रभाव वेग विस्तार आदि को समझने के लिए परोक्ष विज्ञान सर्वोत्तम विकल्प है | इसके बिना महामारी क्या प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली किसी भी घटना के स्वभाव को नहीं समझा जा सकता है केवल अंदाजे ही लगाए जा सकते हैं | अंदाजे सही या गलत कुछ भी निकल सकते हैं | उन अंदाजों को आधार बनाकर ये कैसे समझा जा सकता है कि किस प्रकार की प्रतिरोधक क्षमता की आवश्यकता है | ऐसे अनिश्चित अंदाजों के आधार पर प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाली किसी औषधि या टीके आदि का निर्माण कैसे किया जा सकता है |यदि कर भी लिया जाए तो वो कितने प्रभावी होंगे | इसकी सहज ही कल्पना की जा सकती है |
परोक्ष विज्ञान मतलब अच्छे बुरे समय का ज्ञान !
समय प्रकृति और जीवन दोनों को प्रभावित करता है | उन्हें एक दूसरे के अनुरूप बनाता है तब कोई घटना घटित होती है|समय के प्रभाव से प्रेरित होकर यदि कोई व्यक्ति गोली चलाता है तो उसीसमय की प्रेरणा से उस गोली सामने वही व्यक्ति पड़ता है जिसकी आयु पूरी हो चुकी होती है |ये दोनों घटनाएँ पूर्वनिर्धारित प्रकृतियोजना के अनुसार घटित हो रही होती हैं|जिसे परोक्षविज्ञान के अनुसार तो समझा जा सकता है किंतु प्रत्यक्ष विज्ञान के अनुशार ये अचानक घटित हुई घटना लगती है | ऐसा लगता है कि गोली लगने से ही उसकी मृत्यु हुई है | कई बार जिसे गोली मारी जाती है उसे न लगकर गोली उसके पास से निकल जाती है | कई बार उसी जगह किसी दूसरे को लग जाती है | जिससे उसकी मृत्यु हो जाती है जबकि वह बच जाता है जिसे लक्ष्य करके गोली चलाई गई थी |
जिस प्रकार से सूर्य या चंद्र ग्रहण लगना होता है तो सूर्य चंद्र और पृथ्वी को उस रूप में उस समय पर व्यवस्थित करने का कार्य समय करता है,क्योंकि समय ही इन तीनों को संचालित कर रहा होता है और इन तीनों को सम्मिलित किए बिना ये घटना घटित नहीं हो सकती है |गणितज्ञ लोग समय की गणना करके ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगा लिया करते हैं | सभी घटनाओं के घटित होने का कारण समय ही है | जो प्रत्यक्ष आँखों से दिखाई नहीं पड़ता है उसे परोक्ष विज्ञान के अनुशार ही अनुभव करना पड़ेगा |
किसी भी घटना को समझने के लिए उससे संबंधित सभी तत्वों को समझे बिना उस घटना के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है |जिस प्रकार से सूर्य या चंद्र ग्रहण को समझने या इनके विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए सूर्य चंद्र और पृथ्वी तीनों के विषय में अनुसंधान करना पड़ता है | उसी प्रकार से महामारी को समझने के लिए महामारी ,मौसम, मनुष्य मनुष्यों की आयु तथा औषधियों के प्रभाव को समझे बिना महामारी को समझना संभव नहीं है |
महामारी आनी है तो उसके अनुशार ही मौसम संबंधी घटनाओं को घटित होना होगा ताकि रोग पैदा होने लायक वातावरण बन सके | बड़ी संख्या में ऐसे मनुष्यों की आवश्यकता होगी उस समय जिनके रोगी होने का समय आ चुका हो | ऐसे मनुष्यों की भी आवश्यकता होगी जिनकी आयु पूरी हो चुकी हो | उस समय ऐसी आवश्यकता होगी समय के प्रभाव से जो अपने गुणों को खो चुकी हों |महामारी से संबंधित ऐसे सभी घटकों के एक दूसरे के अनुरूप बनने के बाद ही महामारी घटित होती है | इनका सबको एक ही साथ आपस में जोड़ने का काम समय करता है | समय के संचार को केवल गणित के द्वारा ही समझा जा सकता है | इसलिए गणित के द्वारा समय की गणना करके मौसम एवं महामारी के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
समय जहाँ एक ओर प्राकृतिक वातावरण को अपने अनुशार बदलते रहता है| वही समय दूसरी ओर मनुष्य के प्रारब्ध के प्रभाव से उसके शरीरों में छोटे बड़े बदलाव हमेंशा करते रहता है| प्राकृतिक वातावरण में बदलाव होने से कुछ प्राकृतिक घटनाएँ घटित होती हैं |ऐसे ही प्रत्येक मनुष्य के प्रारब्ध रूपी समय के बदलने से जीवन में कुछ घटनाएँ घटित होती हैं | प्रकृति और जीवन में अच्छे समय के प्रभाव से अच्छी घटनाएँ घटित होती हैं और बुरे समय के प्रभाव से बुरी घटनाएँ घटित होती हैं | प्राकृर्तिक रूप से बुरा समय आने पर बाढ़ तूफान चक्रवात बज्रपात जैसी घटनाएँ घटित होनी होती हैं |
ऐसी घटनाओं के घटित होते समय जिन जिन मनुष्यों का अपना अच्छा समय होता है वो उन प्राकृतिक आपदाओं में फँसकर भी सुरक्षित बने रहते हैं | जिनका अपना समय बुरा चल रहा होता हैं उन्हें अपने उस बुरे समय के प्रभाव से रोग पीड़ा परेशानी तनाव आदि होता है | उसी समय प्राकृतिक परेशानियों के आ जाने से उनकी समस्याएँ कुछ अधिक बढ़ जाती हैं | जिनका अच्छा समय चल रहा होता है वे प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों के समय में भी स्वस्थ सुरक्षित एवं प्रसन्न बने रहते हैं |उन्हें कोई विशेष नुक्सान नहीं हो पाता है |
प्राचीन पूर्वानुमान विज्ञान
संसार में घटित होने वाली महामारी जैसी किसी एक घटना का अध्ययन दो
प्रकार से किया जाता है | पूर्वानुमान भी दो प्रकार से ही लगाने पड़ते हैं |पहला ये कि कोई महामारी तो नहीं आने वाली है और दूसरा पूर्वानुमान ये लगाना होता है | इस महामारी में किस किस को संक्रमित होने की कितनी कितनी संभावना है | उसी के अनुशार बचाव के उपाय करने होते हैं |जिसके संक्रमित होने की संभावना बहुत कम होती है वो यदि स्वतंत्र रूप से पहले की तरह ही रहते रहें तो भी प्रायः स्वस्थ बने रहते हैं | थोड़ी बहुत परेशानी हुई भी तो आसानी से स्वस्थ हो जाते हैं | समस्या उन्हें अधिक होती है जिनका अपना बुरा समय चल रहा होता है | उनके संक्रमित होने की संभावना बहुत अधिक होती है|यदि समय बहुत बुरा होता है तो विशेष अधिक चिकित्सकीय सतर्कता बरतनी होती है |
प्रकृति या जीवन से संबंधित किसी भी घटना को समझने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के विज्ञानों की आवश्यकता होती है |प्रत्यक्षविज्ञान से हम आकाश में उठे हुए बादलों आँधी तूफानों को देख तो सकते हैं ,किंतु इससे यह पता लगाना संभव नहीं होता है कि ऐसी घटनाओं के निर्मित होने का कारण क्या है| इसी समय ऐसा क्या हुआ कि ऐसी घटनाएँ निर्मित हुई हैं | विशेष बात ये कि बादल वर्षा आँधी तूफान आदि यहीं से समाप्त हो जाएँगे या इसके बाद भी चलते रहेंगे और कब तक चलेंगे | इनका वेग बहुत अधिक होगा या कम होगा आदि संभावित प्रश्नों के उत्तर परोक्षविज्ञान के द्वारा ही अनुसंधान पूर्वक खोजे जा सकते हैं | कुछ लोग किसी दुर्घटना या महामारी के शिकार होते हैं | ये तो प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है किंतु उस दुर्घटना या महामारी के प्रभाव से उनमें से किसका शरीर कितना क्षतिग्रस्त हो सकता है | ये उसके व्यक्तिगत आधार पर परोक्ष विज्ञान के द्वारा ही खोजा जा सकता है | किसी रोगी की चिकित्सा की जाती है या ऑपरेशन किया जाता है | ये तो प्रत्यक्ष है किंतु इसके बाद वो स्वस्थ होगा अस्वस्थ रहेगा या मृत्यु को प्राप्त होगा ! इसका पूर्वानुमान तो परोक्षविज्ञान के द्वारा ही लगाया जा सकता है |
महामारी आना एक घटना है | महामारी में कुछ लोगों का संक्रमित होना दूसरी घटना है | संक्रमित लोगों में कुछ लोगों की मृत्यु हो जाना तीसरी घटना है | महामारी प्राकृतिक घटना है ये हमेंशा तो नहीं रहती है ये कभी कभी आती है कुछ महीनों या वर्षों तक रहती है, किंतु कौन महामारी कब आती है कितने समय तक रुकती है| इसके आने का कारण क्या होता है | ऐसे प्रश्नों का उत्तर केवल परोक्षविज्ञान के द्वारा ही खोजा जा सकता है |
वर्षा की तरह ही महामारी भी एक घटना है वर्षा में सभी नहीं भीगते हैं ऐसे ही महामारी में सभी संक्रमित नहीं होते हैं|छतरी लेकर भीगने से बचाव हो जाता है| ऐसे ही प्रभावी उपायों को अपना कर संक्रमित होने से एक सीमा तक बचा जा सकता है |किस संक्रमित रोगी को संक्रमण से मुक्ति मिल सकती है किसको नहीं इसका पूर्वानुमान परोक्ष विज्ञान के द्वारा लगाया जा सकता है |
परोक्ष विज्ञान के द्वारा सुलझाए जा सकते हैं कुछ गंभीर रहस्य |
मृत्यु एक घटना है जो अपने निश्चित समय पर घटित होती है ऐसी मान्यता है |कई बार किसी की मृत्यु का समय आने पर उसके साथ कोई दुर्घटना घटित हो जाती है | उसी दुर्घटना के समय ही उसकी मृत्यु हो जाती है ,तो उस व्यक्ति की मृत्यु दुर्घटना में हुई है ऐसा इसलिए मान लिया जाता है,क्योंकि प्रत्यक्ष रूप से देखने पर दोनों घटनाएँ एक साथ घटित होते दिखाई दे रही हैं ,जबकि मृत्यु उसके अपने समय से हुई है और दुर्घटना अपने कारण घटित हुई है | उन दोनों का आपस में कोई संबंध ही नहीं है | कुछ लोग उठते बैठते हँसते गाते पूजा पाठ करते विश्राम करते भी तो मृत्यु को प्राप्त होते हैं |किसी की मृत्यु होने के लिए कोई दुर्घटना घटित हो ही ऐसा आवश्यक तो नहीं है |
किसी व्यक्ति की मृत्यु का समय उसके जन्म के समय ही निश्चित हो जाता है | किसी भवन के गिरने का समय उस भवन के निर्मित होने के समय निश्चित हो जाता है | भूकंप आदि प्राकृतिक घटनाएँ अनादि काल से निश्चित हैं | जो अपने अपने समय पर घटित होती जा रही हैं | ऐसा परोक्ष विज्ञान का मत है |
ऐसी स्थिति में अनादि काल से निर्धारित कोई भूकंप अपने समय से आता है |भूकंप के आने के सैकड़ों हजारों या लाखों वर्ष बाद एक भवन का निर्माण होता है | उसके कुछ दशक के बाद किसी बच्चे का जन्म होता है |इसमें देखा जाए तो जो भूकंप वर्तमान समय में आया है | उसके आने का निश्चय जब हुआ था उस समय उस मकान के के बनने की चर्चा तक नहीं थी जो मकान वर्तमान समय में आए भूकंप के झटकों में गिरा है | उसमकान के मलबे में दबकर जिस व्यक्ति की मृत्यु हुई है | भवननिर्माण होते समय उस व्यक्ति का जन्म भी नहीं हुआ था | इतने लंबे अंतराल में निर्मित हुई घटनाओं का संयोग ही है कि वे एक साथ घटित हुई हैं, किंतु एक साथ घटित हुई इन तीनों घटनाओं का आपस में कोई संबंध नहीं है | ये परोक्ष विज्ञान के आधार अनुसंधान पूर्वक पता लगाया जा सकता है | कोई भवन सैकड़ों वर्ष पहले निश्चित किए गए अपने गिरने के समय पर ही गिरता है | जन्म के समय ही निश्चित हुए मृत्यु के समय के अनुशार किसी मनुष्य की अपने समय से मृत्यु हो जाती है |
इस घटना को प्रत्यक्षविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो भूकंप आने से भवन
गिरा है और भवन के मलबे में दब कर उसकी मृत्यु हो गई है ऐसा लगता है |
इससे मन में कई आशंकाएँ पैदा होती हैं कि भूकंप न आता तो शायद वो मकान न
गिरता और वो मकान न गिरता तो शायद उसकी मृत्यु न हुई होती !पता होता तो वो
व्यक्ति उस समय वहाँ न गया होता तो शायद उसकी मृत्यु न हुई होती आदि आदि !
इसी घटना को परोक्ष विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो सभी घटनाओं के घटित होने का स्थान और समय
अपना अपना पहले से निश्चित है | उसके घटित होने के अपने अपने कारण हैं |इन घटनाओं का आपस में कोई संबंध नहीं होता है |संयोगवश ये सारी घटनाएँ एक ही समय पर एक ही स्थान पर घटित हो गई हैं | कई बार ऐसी घटनाएँ अलग अलग भी घटित होती हैं | भूकंप कहीं आता है,मकान कहीं दूसरी जगह गिरता है और मृत्यु कहीं तीसरी जगह होती है |मकान बिना भूकंप के भी गिरते हैं | मृत्यु बिना दुर्घटनाओं के भी होती है |
भूकंप आने पर हमेंशा कोई मकान गिरता ही हो ऐसा निश्चित तो होता नहीं है, क्योंकि उस मकान ने अपने जीवन में न जाने कितने भूकंप झेले होंगे तब नहीं गिरा भूकंप से गिरना होता तो तभी गिर जाता किंतु उसे भूकंप से नहीं प्रत्युत अपने गिरने के समय पर गिरना था | ऐसे ही मनुष्यों की मृत्यु किसी मकान के मलबे में दबकर या दुर्घटना का शिकार होकर होती हो ऐसा भी निश्चित नहीं है |कुछ लोग सोते जागते खाते पीते पूजा करते आराम करते भी मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | वह व्यक्ति जीवन में कई बड़ी दुर्घटनाओं का शिकार हुआ होगा | उसे दुर्घटनाओं में मरना होता तो उसी समय उसकी मृत्यु हो गई होती | उसकी मृत्यु तो समय से होनी थी | इसलिए जब मत्यु का समय आया तब मृत्यु हुई है | इसका मतलब किसी की मृत्यु दुर्घटना के आधीन नहीं होती है |
इससे ये निश्चित होता है कि महामारी के समय मृत्यु को प्राप्त हुए लोगों की मृत्यु महामारी से हुई ऐसा प्रत्यक्ष विज्ञान मानता है ,जबकि परोक्ष विज्ञान की मान्यता है कि इतने सारे लोगों की मृत्यु उनके अपने अपने मृत्यु के समय से हुई थी | इतने लोगों की मृत्यु का समय एक साथ ही क्यों आ गया था | इसके कारणों की खोज होनी चाहिए | इसी समय महामारी के अतिरिक्त दूसरी भी बहुत सारी ऐसी घटनाएँ घटित हुई हैं जिनका महामारी से कोई संबंध न होने के बाद भी उन घटनाओं के घटित होते समय भी बहुत लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं |
इसलिए किसी घटना के घटित होने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के कारण खोजे जाते हैं और दोनों प्रकार के विज्ञान के द्वारा संयुक्त रूप से अनुसंधान किया जाता है | जिसके द्वारा उस घटना के स्वभाव को समझना संभव हो पाता है और इसी प्रक्रिया के द्वारा सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो पाता है | ऐसी घटनाओं से संबंधित संकटों का समाधान खोजने के लिए प्रत्यक्ष और परोक्ष दोनों प्रकार के उपायों की मदद ली जाती है |इससे महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं से जूझती जनता को बहुत मदद मिल जाती है |
परोक्ष विज्ञान के आधार पर मेरे पूर्वानुमान !
महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं ?
किसी स्कूल की कक्षा में अचानक शोर होने लगने से व्यवधान होता था !इसलिए पता किया गया कि शोर क्यों होता है | कुछ लोगों ने कहा कि ट्रेन अचानक बहुत तेजी से आती है | इस कारण शोर होता है| कुछ दूसरे लोग इससे असहमत दिखे !किंतु | ट्रेन आने के कारण शोर होता है ऐसा मानने वालों ने अपनी रिसर्च जारी रखी और पता किया कि ट्रेन कब कब आती है तो कुछ लोगों ने अंदाजा लगाया कि लगभग इतनी इतनी देर के अंतराल में आती है !किंतु ट्रेनों के आवागमन के अंतराल का समय निश्चित नहीं था | कुछ ट्रेनों का आपसी अंतराल बहुत कम था जबकि कुछ का कुछ अधिक था |इसलिए इस अंदाजे से काम नहीं चला और ट्रेनों के आवागमन की समय सारिणी खोजी गई | जिससे ट्रेनों के आवागमन का निश्चित समय पता लग गया |उसी के अनुशार अग्रिम तैयारियाँ करके कक्षाओं को व्यवस्थिति कर लिया गया !जिससे समस्या समाप्त हो गई |
जिस प्रकार से ट्रेनों के आवागमन के विषय में पूर्वानुमान लगाकर शोर होने वाली समस्या का समाधान कर लिया गया और ट्रेनों को रोके बिना ट्रेनों के आवागमन के हिसाब से कक्षाओं को व्यवस्थित कर लिया गया |उसी हिसाब से सभी प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं के समय में जीवन को व्यवस्थित करते हुए सुरक्षित रखने के लिए ही अनुसंधान किए जाते हैं | जिससे जीवन को समस्या मुक्त रोग मुक्त तनाव मुक्त बनाया जा सके |
ऐसी प्राकृतिक घटनाओं या आपदाओं को समझने के लिए इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाने के लिए हमारे पास न कोई विज्ञान है और न ही वैज्ञानिक अनुसंधान ! फिर भी हम सपने इतने बड़े देखते हैं कि उन्हें पूरा करना असंभव हो जाता है | अगर कक्षाओं में अचानक होने वाले शोर के विषय में वर्तमान पद्धति से अनुसंधान करने होते तो हम कक्षाओं का शोर शांत करने की अपेक्षा हम अनुसंधान यहाँ से शुरू करते हैं कि ट्रेन यहाँ से आती क्यों है ! कुछ ट्रेनें कम समय के अंतराल में आती हैं कुछ अधिक समय के अंतराल में आती हैं | इनके आने के समय का अंतराल एक समान नहीं है | इसका कारण जलवायुपरिवर्तन हो सकता है |इसके बाद लक्ष्य को प्राप्त किए बिना ही अनुसंधानों को पूर्ण मान लिया जाता है |
इसी भावना के परिणाम हैं कि प्राकृतिक आपदाएँ हों या महामारियाँ इनसे संबंधित अनुसंधान लगातार चला ही करते हैं ,फिर भी ऐसी घटनाओं में उतने नुक्सान होते ही रहते हैं जितने होने होते हैं | कुछ चक्रवातों को छोड़कर सभी प्राकृतिक आपदाओं तथा महामारियों में संभावित जनधन हानि को रोका जाना संभव नहीं होता है | इनसे संबंधित समस्याएँ,रोग तनाव आदि दिनोंदिन बढ़ते ही जा रहे होते हैं ,फिर ऐसे अनुसंधानों को करने कराने का औचित्य ही क्या बचता है |
जिस प्रकार से स्कूल की कक्षा में अचानक शोर होने के लिए जिम्मेदार पहले उसके कारण को खोजा गया | बाद में उसके आने और जाने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए उसकी समय सारिणी खोजी गई | उसके अनुसार कक्षा को व्यवस्थित कर लिया गया |
इसीप्रकार से महामारी संबंधी अनुसंधानों को सफल करने के लिए पहले सबसे पहले महामारी पैदा होने या उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसम संबंधी जिस घटना को जिम्मेदार माना गया |उसके घटित होने के लिए जिम्मेदार कारण को खोजकर उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होगा |
विज्ञान के बिना कैसे अनुसंधान !
जिस प्रकार से गहरे तालाब में पड़ी किसी वस्तु को खोजने के लिए किसी ऐसे
चश्मे आदि की आवश्यकता होती है | जिससे पानी के अंदर तक देखा जा सके | ऐसे
ही भविष्य में घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को पहले से देखने के लिए
ऐसे विज्ञान की आवश्यकता होती है | जिसके द्वारा भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं को पहले
से देखा जा सके | ऐसे ही भविष्य में झाँकने के लिए कोई विज्ञान नहीं है
|विज्ञान के बिना अनुसंधान किया जाना कैसे संभव है और अनुसंधानों के बिना न तो मौसम के विषय में पूर्वानुमान लगाए जा सकते हैं और न ही महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव है |
वैज्ञानिकों के एक बड़े वर्ग
ने महामारी
पैदा होने या उसके संक्रमण बढ़ने घटने के लिए मौसमसंबंधी घटनाओं को जिम्मेदार माना है|दूसरे समुदाय ने तापमान बढ़ने से कोरोना समाप्त होने का अनुमान व्यक्त किया था | वैज्ञानिकों का एक समूह ऐसा भी था|जिसने महामारी पैदा होने एवं उसके संक्रमण बढ़ने घटने के लिए वायुप्रदूषण को जिम्मेदार बताया था | कुछ वैज्ञानिकों ने वर्षा होने से कोरोना के समाप्त होने की बात कही
थी|
कुल मिलाकर मौसम संबंधी जिस भी कारण को महामारी
पैदा होने एवं उससे संबंधित संक्रमण बढ़ने घटने के लिए जिम्मेदार माना जाएगा |उसके विषय में पूर्वानुमान लगाए बिना महामारीजनित संक्रमण बढ़ने घटने के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं होगा !
ऐसा कोई विज्ञान ही नहीं है जिसके द्वारा तापमान बढ़ने घटने या वायु प्रदूषण बढ़ने घटने या वर्षा
होने न होने के विषय में सही पूर्वानुमान लगाया जा सके |इसी कारण मौसम संबंधी घटनाओं का प्रभाव महामारी पैदा होने या उसके संक्रमण बढ़ने घटने पर पड़ता है या नहीं | इसका निर्णय किया जाना अभी तक संभव नहीं हो पाया है | संपूर्ण कोरोना काल में यह प्रश्न अनुत्तरित ही बना रहा कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं | ऐसी स्थिति में मौसम हो या महामारी दोनों ही विषयों में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है |पूर्वानुमान लगाए बिना महामारी से सुरक्षा की जानी कैसे संभव है | महामारी जैसे भयंकर महारोगों का सामना तुरंत की
तैयारियों के बल पर नहीं किया जा सकता है |अग्रिम तैयारियाँ करके रखने के
लिए ऐसे महारोगों के आने के विषय में पूर्वानुमान पहले से पता होने चाहिए
|
महामारियाँ बहुत तेजी से हमला अचानक करती हैं| जिससे बहुत लोग संक्रमित होने एवं कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं |उस समय महामारी का वेग इतना अधिक होता है कि तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारी का सामना किया जाना संभव नहीं होता है |महामारी
से समाज की सुरक्षा करने तथा संक्रमितों को रोग से मुक्ति दिलाने जैसा अत्यंत कठिनकार्य तुरंत
की तैयारियों के बल पर कैसे किया जा सकता है|ऐसी स्थिति में महामारियों से सुरक्षा के लिए महारोगनिरोधी (preventive) प्रभावी तैयारियों की आवश्यकता तुरंत होती है|उन्हीं से कुछ मदद मिल सकती है| इसके अतिरिक्त बचाव के लिए प्रभावी रूप से कुछ किया जाना संभव ही नहीं है |ऐसी स्थिति में चिकित्सा के नाम पर किए जाने वाले प्रयत्नों को सार्थक कैसे माना जा सकता है |
महारोगनिरोधी अग्रिम तैयारियाँ
करके रखी जानी तभी संभव हैं जब महामारियों तथा उसकी लहरों के आने के विषय में पहले से पता हो कि कब किस प्रकार की महामारी आने वाली है | महामारी से सुरक्षा के लिए प्रयत्न भी तभी किए जा सकते हैं जब महामारी आने के विषय में पूर्वानुमान पहले से पता हों | पूर्वानुमान लगाने का कोई विज्ञान होना चाहिए |पूर्वानुमान विज्ञान से अभिप्राय किसी ऐसे विज्ञान से है,जिसके द्वारा भविष्य में झाँकना संभव हो |
कोरोना महामारी की लहरों के आने के विषय में अनेकों वैज्ञानिकों के द्वारा पूर्वानुमान लगाए जाते रहे जो गलत निकलते रहे |इसके लिए सूत्र मॉडल बनाया गया उसमें सम्मिलित वैज्ञानिकों के द्वारा बार बार पूर्वानुमान लगाए जाते रहे | वे भी हर बार गलत निकलते रहे | इनका गलत निकलना जितना चिंताजनक है |उससे अधिक आश्चर्य जनक यह है कि पूर्वानुमान लगाने के लिए किसी विज्ञान के न होने पर भी अनुसंधान कैसे किए जाते रहे और पूर्वानुमानविज्ञान के बिना पूर्वानुमान कैसे लगाए जाते रहे |
,किंतु वे गलत निकलती चली गईं !महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए जिस सूत्र मॉडल का गठन किया गया
उनके गलत निकलने का कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन बिल्कुल उसी प्रकार से मान लिया गया | जिस प्रकार से वैज्ञानिकों के द्वारा की गई मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के गलत निकलने का कारण जलवायुपरिवर्तन मान लिया जाता है | प्राचीन विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो सच्चाई न तो महामारी के स्वरूपपरिवर्तन में है और न ही जलवायुपरिवर्तन में ! पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान न कारण भविष्य को लेकर जो बातें जिस किसी भी प्रकार से कही जाती हैं उनका कोई वैज्ञानिक आधार तो होता नहीं है| ऐसी कल्पनाएँ यदि सही निकल जाती हैं तो उन्हें पूर्वानुमान बता दिया जाता है और यदि वे गलत निकल जाती हैं तो उनका कारण स्वरूपपरिवर्तन या जलवायुपरिवर्तन बता दिया जाता है |
वस्तुतः परिवर्तन तो प्रकृति का नियम ही है | उसी के अनुशार प्रकृति के प्रत्येक अंश में प्रतिपल परिवर्तन होते जा रहे हैं | कुछ स्वाभाविक परिवर्तन होते हैं जबकि कुछ अस्वाभाविक परिवर्तन होते हैं |
जो स्वाभाविक परिवर्तन हैं वे तो होंगे ही हमेंशा से होते रहे हैं |
आम का छोटा फल हरा खट्टा एवं उसकी गुठली भी नरम होती है
कुछ अस्वाभाविक होते हैं |
वर्षा होते समय छतरी लगाकर भीगने से अपना बचाव
भले कर लिया जाता हो ,किंतु इस जुगाड़ को वर्षाविज्ञान नहीं कहा जा सकता
है|किसान
लोग खेतों में खडी फसलों की सुरक्षा के लिए खेतों में मचान गाड़ लेते हैं |
उसी पर बैठ कर फसलों को रखाते हैं,उँचाई से देखने पर दूर तक
दिखाई देता है |ऐसे ही मौसम वाले लोगों के पास उँचाई से देखने के लिए उपग्रह रडार आदि होते हैं | जिनसे दूर तक के बादल आँधीतूफ़ान आदि दिखाई दे जाते हैं | वे जिस दिशा में जितनी गति से जा
रहे होते हैं उसी के अनुशार ये अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब किस देश प्रदेश आदि में पहुँच सकते हैं |उसी के अनुशार ऐसी घटनाओं के विषय में भविष्यवाणी कर दी जाती है |
ऐसे मौसमी जुगाड़ महामारी संबंधी
अध्ययनों अनुसंधानों में सहायक कैसे हो सकते हैं | उसके लिए तो उपग्रहों रडारों से अतिरिक्त केवल प्रकृति के स्वभाव के आधार पर लगाए गए मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
मौसमसंबंधी अनुसंधानों का उद्देश्य ही प्राकृतिक वातावरण की उस आतंरिक
अवस्था तक पहुँचना है | जिस स्तर पर होनेवाले छोटे बड़े प्राकृतिक
परिवर्तनों के वास्तविक कारणों से सामना होता है | वर्षा विज्ञान का मतलब
ही वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा प्रकृति की उस प्रक्रिया को खोजना है
| जिसके आतंरिक परिवर्तनों का प्रभाव वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान भूकंप आदि घटनाओं
के रूप में दिखाई पड़ता है |
वैसे भी अधिक नंबर का चश्मा लगाकर किसी पत्र को पढ़ने से छोटे अक्षर बड़े और
स्पष्ट दिखाई दे सकते हैं ,किंतु उससे दिखाई उतना ही पड़ेगा जितना पत्र
में पहले से लिखा जा चुका है |उस पत्र पर आगे और क्या क्या लिखा जाने वाला है अधिक नंबर का चश्मा लगा लेने से इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है | ऐसे ही उपग्रहों रडारों के द्वारा बादल वर्षा
आँधी तूफ़ान आदि केवल तात्कालिक दृश्य ही देखे जा सकते हैं भविष्य के नहीं | भविष्य में झाँकने के
लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो भविष्य की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान
लगाना कैसे संभव है |
ऐसे ही कंप्यूटर हो या सुपर कंप्यूटर उनसे केवल डेटा विश्लेषण ही तो किया जा सकता है | डेटा विश्लेषण की वह प्रक्रिया भविष्य में निर्मित होने वाले बादलों एवं वर्षा
आँधी तूफ़ानों आदि के विषय में सूचना कैसे दे सकती भी तब जब भविष्य देखने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं है |ऐसे में भविष्य संबंधी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है | दधि बिलोने का काम यदि बड़ी मथानी से किया जाने लगे तो क्या ज्यादा मक्खन निकलने लगेगा | मक्खन तो उतना ही निकलेगा जितना दधि में होगा |
इसी प्रकार से भविष्य में झाँकने के
लिए कोई विज्ञान होगा तब अनुसंधान उस विज्ञान के आधार पर होगा
!पूर्वानुमान भी उसी विज्ञान के आधार पर लगाए जा सकते हैं | उन वास्तविक
अनुसंधानों को करने की अत्यंत कठिन प्रक्रिया उपग्रहों रडारों एवं सुपर
कंप्यूटरों की मदद से सकती है | सुदूर आकाश में घटित होने वाली जिन
घटनाओं को खोखले बाँस से देखा जाता था !अब वे दूरबीन से देखी जा सकती हैं |
जिन बादलों
आँधी तूफ़ानों को ऊँचे स्थानों पर चढ़ के देखा जाता था | उन दृश्यों को उपग्रहों रडारों की मदद से आसानी से अब देख लिया जाएगा !जो गणित हाथ से करनी पड़ती थी ! उसे करने में कंप्यूटरों सुपर कंप्यूटरों से मदद मिल जाती है | ऐसी सभी तैयारियाँ जिस पूर्वानुमान विज्ञान की मदद करने के लिए हैं वह पूर्वानुमान विज्ञान कहाँ है !
महामारी के लिए करने होंगे मौसम संबंधी अनुसंधान!
व्यवहार
में अक्सर देखा जाता है कि कभी कभी सर्दी या गर्मी अधिक पड़ने लगती है तो
शरीर रोगी होते देखे जाते हैं |वातावरण में
अचानक होने वाले बदलावों से कई बार रोगों महारोगों को पैदा होते देखा जाता है | इसलिए यह आशंका होनी स्वाभाविक ही है कि महामारी का पैदा होना भी मौसम
संबंधी किसी परिवर्तन का ही परिणाम तो नहीं है | वैज्ञानिकों के एक बड़े समुदाय ने महामारी के लिए
मौसम संबंधी घटनाओं को जिम्मेदार माना है | उन्हें लगता है
कि महामारी को प्रभावित करने में मौसम की भूमिका हो सकती है | विशेष बात ये है कि कोरोना महामारी
के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा एक ओर तो कहा जा रहा था कि मौसम का प्रभाव महामारी संबंधी
संक्रमण पर पड़ता है
| दूसरी ओर ऐसा होता है या नहीं इसे समझने के लिए मौसम संबंधी कोई विश्वसनीय विज्ञान
नहीं था | इसीलिए मौसम संबंधी अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकलते जा
रहे थे |
इनके गलत निकलने के कारण इनके आधार पर लगाए गए महामारी संबंधी अनुमान
पूर्वानुमान आदि भी बार बार गलत निकलते देखे जा रहे थे |
पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान न होने के कारण मौसम एवं महामारी संबंधी
अनुमान पूर्वानुमान आदि गलत निकलते जा रहे थे | ऐसा हो तो वैज्ञानिक तैयारियों के न होने के कारण रहा था !किंतु इसका कारण जलवायु परिवर्तन को बताया जा रहा था | इसी प्रकार से महामारी के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं था | इसलिए महामारी के विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान आदि बार बार गलत निकलते जा रहे थे | जिसका कारण महामारी के स्वरूपपरिवर्तन को बताया जा रहा था | महामारी जैसे इतने बड़े संकट से निपटने की वैज्ञानिक तैयारियों का इतना अधिक अभाव था |
इसलिए महामारी
जैसी प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित अनुसंधानों के लिए ऐसे मौसम विज्ञान की
खोज की जानी आवश्यक है | जिससे प्राकृतिक वातावरण में घटित हो रही मौसम
संबंधी घटनाओं की निर्माण प्रक्रिया को समझा जा सके ! उसके घटित होने के
कारणों का पता लगाया जा सके | उनके स्वभाव वेग आदि को समझा जा सके |
स्वास्थ्य पर पड़ने वाले उनके संभावित प्रभावों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके | ऐसे अनुमान पूर्वानुमान आदि जितने पहले के जानने हों कि कोई नया रोग तो पैदा होने वाला
नहीं है |उतने पहले के संभावित प्राकृतिक वातावरण के विषय
में सही सही पूर्वानुमान लगाना आवश्यक होता है |
प्राचीन काल में ऐसी ही वैज्ञानिक आधार पर संभावित रोगों महारोगों(महामारियों) आदि के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगा
लिया जाता रहा है |वर्तमान समय में भी उसी सक्षम विज्ञान के आधार पर महामारी के स्वभाव का अध्ययन किया जा
सकता है ! इसके बाद मौसम एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में संयुक्त अनुसंधान आदि करके महामारी के विषय में
अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव हो सकता है | ऐसे पूर्वानुमान पहले से पता लग जाने पर अनुभवी लोग आहार बिहार रहन सहन
आदि में संयमबरत कर ऐसे रोगों से अपना बचाव कर लिया करते हैं |
प्रकृति के स्वभाव को समझना जरूरी है !इसके लिए विज्ञान कहाँ है !
आँसू ख़ुशी में आते हैं और दुःख में भी आते हैं | किसी के स्वभाव को समझे बिना ये कैसे समझा जा सकता है कि कौन आँसू सुख के हैं और कौन दुख के हैं | कैमरों में तो केवल आँसू दिखाई पड़ते हैं सुख दुःख नहीं दिखाई पड़ता है | ऐसी परिस्थिति में कैमरों से प्राप्त चित्रों का सुपर कंप्यूटरों से डेटा विश्लेषण करके भी यदि किसी के सुख दुःख का कारण निवारण आदि समझा जाना संभव नहीं है ,तो उपग्रहों रडारों से प्राप्त प्राकृतिक चित्रों से प्रकृति के स्वभाव को समझकर उसके आधार पर मौसम संबंधी पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |
मौसम के स्वभाव को समझने लायक किसी विज्ञान के न होने के कारण ही तो उपग्रहों रडारों से काम चलाया जा रहा है |इनसे बादलों आँधी तूफ़ानों आदि को देखा जा सकता है | इसलिए वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ानों आदि के विषय में भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं| भूकंप, बज्रपात या महामारी जैसी घटनाएँ उपग्रहों रडारों से दिखाई नहीं देती हैं | इसलिए उनके विषय में
पूर्वानुमान लगाने से मना कर दिया गया है | कोरोना काल में
महामारी की लहरों के विषय में बार बार पूर्वानुमान लगाए जाते रहे जो गलत
निकल जाते रहे |
वस्तुतः उपग्रहों रडारों से बादलों आँधी तूफानों चक्रवातों आदि को आकाश में दूर से ही देख लिया जाता है | वे जिस दिशा में जितनी तेजी से जा रहे होते हैं | उसी हिसाब से आगे बढ़ने का अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये कब किस देश प्रदेश आदि में पहुँच सकते हैं | उसी
अंदाजे के आधार पर भविष्यवाणी कर दी जाती है | हवाओं का रुख हमेंशा बदलते रहने के कारण बादलों
आँधी तूफानों चक्रवातों आदि का भी गंतव्य बदल जाता है | कई बार ऐसी प्राकृतिक घटनाएँ
गंतव्य तक पहुँचने से पहले ही समाप्त भी हो जाती हैं | इसीलिए अनेकों भविष्यवाणियाँ गलत निकल जाती हैं | इसलिए वायु वायुप्रवाह में अचानक होने वाले परिवर्तनों को समझना एवं उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों की मदद से कैसे संभव है |
चक्रवात जैसी कुछ घटनाएँ उपग्रहों रडारों में कुछ पहले दिखाई पड़ जाने से कई बार संभावित जनधन हानि को कम करने में मदद मिल जाती है,किंतु यह विज्ञान न होकर प्रत्युत एक जुगाड़ मात्र है|इससे केवल उन्हीं चक्रवातों को देखा जा सकता है जो बनकर किसी दिशा में चलने लगे हैं | कभी कभी कुछ समय तक बार बार चक्रवात आते देखे जाते हैं | इस वर्ष इतने अधिक चक्रवात आने का कारण क्या है ? ऐसा कब तक होता रहेगा !कितने चक्रवात अभी और आएँगे | ऐसे प्रश्नों के उत्तर उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों से कैसे खोजे जा सकते हैं | इसके लिए भी कोई तो वैज्ञानिक व्यवस्था होनी चाहिए !
कभी कभी उपग्रहों रडारों से बादलों को देखकर दो या तीन दिन वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है उस समय उपग्रहों रडारों से अधिकतम उतने ही बादल दिखाई पड़ सकते हैं | उन बादलों के पीछे और आगे आने वाले बादलों की कितनी लंबी श्रृंखलाहै | ये उस समय तो दिखाई पड़ नहीं रही होती है |इसलिए ये पता लगाना असंभव होता है कि ये बादल कितने दिनों या सप्ताहों तक बरसाने की योजना बनाकर आए हैं | ऐसी स्थिति में जैसी जैसी बादलों की श्रृंखला दिखाई पड़ती जाती है |वैसी वैसी भविष्यवाणियाँ बदलती रहती हैं | अभी तीन दिन और बरसेगा !उसके बाद अभी दो दिन और बरसेगा !फिर 72 घंटे और वर्षा होगी ऐसे जब तक बरसते रहता है तब तक भविष्यवाणियाँ खींची जाती हैं | आगे आगे वर्षा होती रहती है पीछे पीछे भविष्यवाणियाँ दौड़ाई जाती हैं | कई बार एक दो सप्ताह तक वर्षा होती रहती है | बाढ़ पीड़ितों को ऐसी भविष्यवाणियों से कितनी मदद मिल पाती है ये सोचे जाने की आवश्यकता है | वो जनता ऐसी भविष्यवाणियों पर भरोसा करके ही बाढ़ में फँसी होती है | पहले जलस्तर काम होने के कारण वहाँ से निकला भी जा सकता है,किंतु जलस्तर बढ़ जाने के कारण बाद में तो निकलने लायक भी नहीं रह जाता है | ना भी चाहे तो अब उसके बश का नहीं होता है | उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों की मदद से ऐसे लोगों मदद पहुँचाने के लिए क्या वैज्ञानिक व्यवस्था है |
कृषिकार्यों के लिए किसानों को मौसम भविष्यवाणियों की अधिक
आवश्यकता होती है| उसमें भी आगामी फसलों
के विषय में योजना बनाने या उपज का संरक्षण करने के लिए मौसम संबंधी दीर्घावधि
सही भविष्यवाणियों की आवश्यकता अधिक होती है | भविष्य में झाँकने के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो कृषि कार्यों के लिए आवश्यक ऐसी भविष्यवाणियों का किया जाना कैसे संभव है !उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों की मदद से क्या भविष्य में झाँकना संभव है ! अक्सर की जाने वाली दीर्घावधि भविष्यवाणियों का वैज्ञानिक आधार क्या है | आखिर वे सही क्यों नहीं निकल पाती हैं |
जलवायु परिवर्तन को लेकर सौ दो सौ वर्षों बाद भविष्य में कुछ भयानक प्राकृतिक घटनाएँ घटित होने की भविष्यवाणियाँ की जा रही होती हैं ! कहा जा रहा होता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण आज के सौ दो सौ वर्ष बाद अति वर्षा होगी ! बाढ़ आएगी ! सूखा पड़ेगा ! ग्लेशियर पिघल जाएँगे ! महामारियाँ फैलेंगी आदि आदि | आखिर सौ दो सौ वर्ष बाद कैसी कैसी प्राकृतिक घटनाएँ घटित होंगी ! इसका पता लगाया जाना उपग्रहों रडारों या सुपर कंप्यूटरों के बश की बात नहीं है | जिस विज्ञान के द्वारा एक दो सप्ताह पहले की प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं है | उसी विज्ञान के द्वारा सौ दो सौ वर्ष बाद की घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना कैसे संभव है | इतने पहले का भविष्य देखने के लिए विज्ञान कहाँ है |
इन दुविधापूर्ण
भविष्यवाणियों से समाज को कैसे मदद मिल सकती है |उपग्रहों रडारों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया एक जुगाड़ मात्र है |
इस प्रक्रिया में विज्ञान कहाँ है | इसलिए भविष्यवाणियाँ सच ही होंगी ऐसी अपेक्षा
नहीं की जा सकती है | दूसरी बात प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को समझना कभी
भी संभव नहीं है| ऐसी प्राकृतिक
घटनाएँ किसप्रकार की प्राकृतिक परिस्थितियों में घटित हुआ करती हैं |ये पता लगा पाना कैसे संभव है |
इसी प्रकार से उपग्रह
रडार हों या सुपरकंप्यूटर या इनके आधार पर मौसम पूर्वानुमान लगाने वाले
वैज्ञानिक इनमें से किसी के पास भविष्य में घटित घटनाओं को देखने के लिए
कोई विज्ञान ही नहीं है तो भविष्य में घटित होने वाली मौसम संबंधी घटनाओं
के विषय में जो पूर्वानुमान बताया जाता है उसका वैज्ञानिक आधार क्या है |
ऐसे ही मौसम
संबंधी भविष्यवाणियाँ करने वाले लोग ऐसे किस विज्ञान के वैज्ञानिक हैं
जिससे वे विज्ञान के बिना भी भविष्य में घटित वाली घटनाएँ देख लेते हैं
|भविष्य में झाँकने का विज्ञान कहाँ है |भविष्य विज्ञान के अभाव में उपग्रहों
रडारों ,कंप्यूटरों सुपरकंप्यूटरों में भविष्य को देखने की प्रक्रिया
क्या है ?मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ करने वाले वैज्ञानिकों के पास मौसम
भविष्यवाणी करने के लिए कौन सा विज्ञान है !आखिए वे कैसे देख लेते हैं
भविष्य में घटित होने वाली घटनाएँ |
उपग्रहों रडारों या कंप्यूटरों सुपरकंप्यूटरों तथा संबंधित वैज्ञानिकों के पास यदि भविष्य
में झाँकने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया ही नहीं है तो प्रकृति के
स्वभाव को समझना संभव कैसे है | किसी वैज्ञानिक आधार के बिना प्रकृति के
स्वभाव को न समझकर भी जो भविष्यवाणियाँ कर दी जाती हैं |ऐसे वैज्ञानिकआधार
विहीन अंदाजे सही या गलत दोनों ही निकल सकते हैं | ऐसे अंदाजे सही
निकलजाएँ तब तो पूर्वानुमान और गलत निकल जाएँ तो जलवायु परिवर्तन !अपनी
कमजोर तैयारियों के कारण मिली असफलता में जलवायु परिवर्तन कहाँ से आ गया !
विज्ञान एवं वैज्ञानिक तैयारियों के बिना किसी भी क्षेत्र में यदि ऑपरेशन
शुरू कर दिया जाए तो अपेक्षित परिणामों की आशा रखने का अधिकार ही नहीं है
|
उपग्रहों रडारों सुपरकंप्यूटरों से प्रकृति के स्वभाव को समझना संभव नहीं !
किसी गाँव में पानी से भरा एक तालाब था !उस गाँव के एक ओर जंगल था |जंगल का तालाब सूख गया था | जंगल में रहने वाले हाथियों को जब प्यास लगती तो गाँव के तालाब में पानी पीने आते और उपद्रव मचाते थे | जाते समय जंगल के तालाब सूख जाने के कारण पानी की तलाश में हाथी गाँव में घुसकर उपद्रव मचा जाते थे | गाँव वालों ने तंग होकर जंगल की ओर कैमरे लगवा दिए|अब जंगल से निकलकर हाथी जब गाँव की ओर आते जैसे ही कैमरे में दिखें तो गाँव वाले इकट्ठे होकर हाथी को खदेड़ दिया करते थे | ऐसा करने से उनका बचाव हो जाता था ,जिससे जनधन हानि नहीं होने पाती थी |कैमरों के उपयोग से गाँव के लोगों का बचाव होना भी बहुत बड़ी बात थी !किंतु इससे उत्साहित होकर इसे हाथीविज्ञान कहना उचित नहीं होगा !
हाथियों को रखाने के लिए उन्हें रात रात भर जागना पड़ता था | बार बार हाथियों से संग्राम करना पड़ता था |उनके आने जाने में रास्ते में पड़ने वाले खेतों की फसलें बर्बाद होती थीं | ऐसी समस्याओं का समाधान कैमरा प्रक्रिया से मिलना संभव न था |इसके लिए वास्तविक विज्ञान की आवश्यकता थी | जिससे ये पता लगाया जा सके कि गाँवों में हाथी आते क्यों हैं ?एक ही गाँव में बार बार आने का कारण क्या है ?
इस पर वास्तविक विज्ञान से अनुसंधान शुरू किया गया बहुत सारे कारणों की कल्पना करते हुए जंगल में तालाब सूखने के कारण जंगल में पीने के पानी का अभाव दिखा | उस गाँव में पानी भरा तालाब था आसपास के अन्य गाँवों में तालाब नहीं थे | इससे ये अनुमान लगाया गया कि यदि जंगल के तालाब को पानी से भरवा दिया जाए तो संभव है कि हाथी वहीं पानी पीना शुरू कर दें | इससे उनका गाँव में आना बंद हो सकता है | इससे उपद्रव बंद हो जाएँगे | उनके आने जाने से खेतों में होने वाला नुक्सान भी बंद हो जाएगा | ऐसा ही हुआ !जंगल के तालाब में पानी भरवा दिया गया हाथियों का गाँव की ओर आना ही बंद हो गया |
इस दृष्टांत यह स्पष्ट होता है कि गाँव के बाहर लगाए गए कैमरों हाथियों के द्वारा किया जाने वाला नुक्सान कुछ कम अवश्य हो जाता था किंतु इसके लिए ग्राम वासियों को सतर्कता पूर्वक दिन रात ध्यान रखना पड़ता था | हाथियों को खदेड़ने के लिए तैयार रहना पड़ता था | हाथी न जाने कब गाँव में घुस आवें और उपद्रव करने लगें | ये चिंता लगी रहती थी | इसलिए इन कैमरों से समस्या का समाधान नहीं हो पाता था | उसके लिए वास्तविक विज्ञान की आवश्यकता थी | उसके आधार पर जैसे ही अनुसंधान प्रारंभ किया गया तो उससे समस्या का वास्तविक कारण और उसका निवारण खोज लिया गया | जिससे ग्राम वासियों की सभी समस्या का समाधान हो गया |
बिल्कुल यदि स्थिति मौसम संबंधी अनुसंधानों की है |जितनी मदद ग्रामवासियों को गाँव के बाहर लगे कैमरों से मिल पाती थी|उतनी ही मदद मौसम वैज्ञानिकों को उपग्रहों रडारों से मिल पाती थी | वास्तविक विज्ञान संबंधी अनुसंधानों के बिना जिसप्रकार से गाँव वालों को हाथियों के आतंक से मुक्ति नहीं मिल पाई | उसी प्रकार से मौसम के क्षेत्र में उपग्रहों रडारों से तात्कालिक कुछ जानकारी तो मिल पाती है किंतु मौसमविज्ञान के अभाव में मौसम संबंधी समस्याओं का वास्तविक समाधान नहीं निकल पाता है |
हाथियों के गाँव में आकर उपद्रव मचाने का कारण यदि जलवायु परिवर्तन को मान लिया गया होता और वास्तविक विज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक यदि वास्तविक समाधान न खोजे गए होते तो जिस प्रकार से हाथियों के आतंक से मुक्ति मिलनी संभव न थी |उसी प्रकार से मौसम संबंधी वास्तविक विज्ञान को खोजे बिना न तो मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के सही पूर्वानुमान पता लगाए जा सकते हैं और न ही प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए कोई रास्ता खोजा जा सकता है | इसलिए कोरोना महामारी संकट झेलने के बाद जलवायुपरिवर्तन का आधारविहीन बहम छोड़ देने में ही भलाई है | प्राकृतिक घटनाओं के विषय में वास्तविक मौसम विज्ञान की खोज करके प्राकृतिक संकटों के वास्तविक समाधान खोजने की ओर बढ़ा जाना चाहिए | यही मानवता के हित में है |
महामारी को समझने में सहायक हो सकता है मौसमविज्ञान ! महामारी जैसे इतने बड़े संकट को समझने में मौसम संबंधी अनुसंधानों का कितना सहयोग मिल पाया होगा | ये तो उन्हें ही पता होगा ! समाज तो केवल इतना ही समझ पाया है कि महामारियों के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जा रहे पूर्वानुमान सही नहीं निकल पा रहे थे | इसी बीच पता लगा कि भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) विकसित
की जा रही है | जिससे भविष्य में संभावित रोगों महारोगों के विषय में पहले से पूर्वानुमान लगाया जा सकेगा | माना जा रहा है कि मौसम का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है | इसलिए इस अनुसंधान
प्रक्रिया में भारतीय
मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को भी सम्मिलित किया जा रहा है |
प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली जैसे बड़े संकल्प को पूरा करने के लिए इस प्रक्रिया में भारत मौसम विज्ञानविभाग
को सम्मिलित किया जाना सही दिशा में उठाया गया एक सराहनीय कदम है | इससे बनते बिगड़ते मौसम को समझकर उसके प्रभाव से पैदा होने वाले रोगों के स्वभाव वेग विषाक्तता आदि को समझने में सहायता मिलेगी |
विशेष बात यह कि महामारी जैसे हिंसक रोग बड़े वेग से आकर बहुसंख्यक लोगों को तुरंत संक्रमित करने लगते हैं |उस समय तुरंत के प्रयासों के बल पर महामारी को न तो समझना संभव होता है और न ही ऐसे प्रभावी उपाय किये जाने संभव होता है जिसके द्वारा महामारी से जूझते समाज की मदद की जानी संभव हो सके | इसलिए महामारी के आगे बेवश समाज मानसिक रूप से भी अकेला पड़ चुका होता है |
ऐसी परिस्थिति न पैदा हो इसके लिए ऐसे रोगों महारोगों से समाज की सुरक्षा की तैयारी बहुत पहले से करके रखने की आवश्यकता पड़ती है | ऐसा किया जाना तभी संभव है जब महामारी के विषय में पहले से सही पूर्वानुमान लगा लिया जाए | पूर्वानुमान लगाने के लिए दो ही प्रभावी अनुसंधान विधाएँ हैं एक परोक्ष विज्ञान और दूसरी प्रत्यक्ष विज्ञान |परोक्ष विज्ञान प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की अत्यंत प्राचीन वैज्ञानिक प्रक्रिया है |सूर्य चंद्र ग्रहणों के पूर्वानुमान इसी पद्धति से लगाए जाते हैं | प्रत्यक्ष विज्ञान आधुनिक विज्ञान की दृष्टि से प्रभावी माना जाता है | इसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं को देखकर कुछ दूसरी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जाता है |इसके लिए मौसम पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है उन्हीं के आधार पर महामारी जैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | मौसम पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सही होंगे उसके आधार पर लगाए गए महामारी संबंधी पूर्वानुमान भी उतने ही प्रतिशत सही निकल सकते हैं |
ऐसे अध्ययनों
अनुसंधानों में उपग्रहों रडारों से की जाने वाली आँधी तूफानों एवं बादलों
की जासूसी वाला विज्ञान उपयोगी नहीं होगा और न ही सुपरकंप्यूटरों से
प्राप्त गणनाएँ ही उपयोगी रहेंगी !प्राकृतिक घटनाओं के स्वभाव को
समझकर मौसम संबंधी पूर्वानुमान लगाने वाले वैज्ञानिकों के योगदान से ऐसे अनुसंधानों को आगे बढ़ाने में कुछ मदद मिल सकती है |
इसलिए प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली से संबंधित अनुसंधान
प्रक्रिया में भारतीय
मौसम विज्ञान विभाग (IMD) को केवल सम्मिलित कर लेना ही प्रर्याप्त नहीं होगा ,प्रत्युत यह देखना होगा मौसम के विषय द्वारा लगाए जाने वाले पूर्वानुमान कितने प्रतिशत सफल होते हैं | जिन वैज्ञानिकों के द्वारा पहले की गई मौसम संबंधी जितनी अधिक भविष्यवाणियाँ सही
एवं सटीक घटित हो चुकी होंगी |ऐसे अनुसंधानों में उन्हीं का योगदान उतना अधिक फलित होगा |
मौसम के आधार पर महामारी को समझने की तैयारियाँ कहाँ हैं !
ऐसी स्थिति में
वर्षा
ऋतु के चार महीनों में से किस महीने में वर्षा कैसी होगी ,इसके अतिरिक्त अन्य महीनों में कब कैसी वर्षा होगी ,कैसा तापमान रहेगा | यह पहले से पता लगना कृषि कार्यों के
लिए बहुत उपयोगी तथा महामारी संबंधी अनुसंधानों के लिए आवश्यक होता है | सभी प्रकार के मौसम संबंधी या
प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित अनुमान पूर्वानुमान आदि पहले से पता लग जाने से
मनुष्यजीवन की कठिनाइयाँ तो कम होती ही हैं | इससे भविष्य में संभावित रोगों महारोगों में विषय में आगे से आगे पूर्वानुमान लगाने में काफी सहयोग भी मिल
जाता है |
आयुर्वेदोक्त वात पित्त और कफ की आपूर्ति ऋतुओं एवं ऋतु प्रभाव के माध्यम से हो पाती है | इनके उचित अनुपात में रहने से शरीर स्वस्थ रहते हैं किंतु इनका अनुपात बिगड़ते ही शरीर रोगी होने लगते हैं | विशेष बात कि इस असंतुलन के प्रभाव केवल मनुष्य शरीरों पर ही नहीं पड़ता है प्रत्युत समस्त चराचर जगत पर पड़ता है | इसलिए ऐसे प्राकृतिक असंतुलन का प्रभाव मनुष्य शरीरों के साथ साथ वे जो जो कुछ खा पी रहे होते हैं | जिन औषधियों का सेवन कर रहे होते हैं | जिस वायु में साँस ले रहे होते हैं | ये सभी रोग महारोग आदि पैदा करने एवं बढ़ाने वाले होते हैं | ऐसी स्थिति में महामारियों के समय यदि शरीर स्वस्थ हो भी जाएँ तो खान पान आदि के दुष्प्रभाव से पुनः अस्वस्थ हो जाएँगे |
कुल मिलाकर महामारियों के स्वभाव को समझने तथा उनके एवं उनकी लहरों के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए प्रकृति के स्वभाव पर आधारित अनुसंधानों की आवश्यकता है | बताया जाता है कि 1864 में कलकत्ते में एक विनाशकारी चक्रवात आया था | इसके बाद
1866 और 1871 में मानसून की बारिश न होने से सूखा पड़ा था | ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए 1875 में भारत सरकार ने
जिस भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की थी |जिससे ऐसी प्राकृतिक घटनाओं के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए अनुसंधान किए जा सकें |लगभग 150 वर्ष बीत चुके हैं किंतु अभी
तक सही सही दीर्घावधि
मौसम पूर्वानुमान लगाया जाना संभव नहीं हो पाया है | किसान मार्च अप्रैल के महीने में रवि की फसल पूरी हो जाने के
बाद जुलाई अगस्त में बोई जाने वाली दूसरी फसलों के बिषय में योजना बनाते हैं |
वर्षाऋतु में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार
फसलों का चयन किया जाता है उसी के हिसाब से ऊँचे नीचे आदि खेतों के हिसाब
से इस वर्ष में किस प्रकार की फसल बोना हितकर होगा |इसके साथ ही वर्षाऋतु
में जिसप्रकार की वर्षा होने की संभावना होती है उसी के अनुसार ही वे एक
वर्ष के लिए आनाज भूसा आदि का संरक्षण करते हैं बाक़ी मार्च अप्रैल के महीने
में ही फसल पूरी हो जाने पर खर्चे के लिए बेच लिया करते हैं | कृषिक्षेत्र
के अतिरिक्त सैन्य आदि अन्य क्षेत्रों में भी दीर्घावधि मौसम
पूर्वानुमानों की आवश्यकता होती है |
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सन 2013 में 16 \17 जून की रात केदारनाथ जी में भयंकर सैलाव आया था | लाखों श्रद्धालुओं की आस्था के प्रतीक तीर्थस्थल केदारनाथ और इसके आसपास भारी बारिश, बाढ़ और पहाड़ टूटने से सबकुछ तबाह हो गया और हजारों लोग मौत के आगोश में समा गए थे। इसके बिषय में मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा पहले से कोई पूर्वानुमान नहीं बताया जा सका था |
जम्मू कश्मीर में आई भीषण बाढ़: सितंबर 2014 में मूसलाधार मानसूनी वर्षा के कारण भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर ने अर्ध शताब्दी की सबसे भयानक बाढ़ आई। यह केवल जम्मू और कश्मीर तक ही सीमित नहीं थी अपितु पाकिस्तान नियंत्रण वाले आज़ाद कश्मीर, गिलगित-बल्तिस्तान व पंजाब प्रान्तों में भी इसका व्यापक असर दिखा। 8 सितंबर 2014 तक, भारत में लगभग 200 लोगों तथा पाकिस्तान में 190 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। 450 गाँव जल समाधि ले चुके थे।
भीषण वर्षा के कारण बनारस में प्रधानमंत्री जी की दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं !
28 जून 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की वाराणसी में सभा होने वाली थी किंतु भीषण वर्षा के कारण उस सभा को रद्द करना पड़ा |वही सभी दूसरी बार 16 जुलाई 2015 को वर्षा से निपटने की अधिक तैयारियों के साथआयोजित की गई वो भी भीषण वर्षा के कारण रद्द करनी पड़ी |
चिंता की बात तो यह है कि भीषण वर्षा के कारण प्रधानमंत्री जी के बहुमूल्य समय का उपयोग नहीं किया जा सका | दूसरी चिंता की बात यह है कि प्रधानमंत्री जी की सभाओं का आयोजन मामूली बात नहीं होती है बड़ी व्यवस्थाएँ बनानी पड़ती हैं जिन पर भारी भरकम धनराशि खर्च की जाती है | इसके बाद भी भीषण वर्षा के कारण आगे पीछे दो दो सभाएँ रद्द करनी पड़ीं ये बहुत बड़ी चिंता की बात इसलिए भी है कि जनता के खून पसीने की कठोर कमाई से प्राप्त टैक्स के पैसे मौसम पूर्वानुमान संबंधी जिन अनुसंधानों पर व्यय किए जाते हैं वे अनुसंधान आखिर किस काम आ सके |इस घटना में मौसम विभाग की सार्थकता आखिर क्या रही | दोनों सभाओं के आयोजन पर खर्च की गई भारी भरकम धनराशि मौसम विभाग की भविष्यवाणी गलत होने के कारण निरर्थक चली गई |
मद्रास में भीषण बाढ़ : नवंबर 2015 में चैन्नई में भीषण बाढ़ एक महीने से अधिक समय तक रही थी !उसमें भी काफी जनधन की हानि हुई थी ,किंतु इनमें से किसी भी बाढ़ के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | 2016 अप्रैल मई में आग लगने की भीषण दुर्घटनाएँ : अप्रैल मई जून आदि के महीनों में गर्मी तो हर वर्ष होती है किंतु 2016 के अप्रैल मई में आधे भारत में गरमी से संबंधित अचानक अलग प्रकार की घटनाएँ घटित होने लगीं ! जमीन के अंदर का जलस्तर तेजी से नीचे जाने लगा बहुत इलाके पीने के पानी के लिए तरसने लगे | पानी की कमी के कारण ही पहली बार पानी भरकर दिल्ली से लातूर एक ट्रेन भेजी गई थी |गर्मी का असर केवल जमीन के अंदर ही नहीं था अपितु प्राकृतिक वातावरण में इतनी अधिक ज्वलन शीलता विद्यमान थी कि आग लगने की घटनाएँ बहुत अधिक घट रही थीं | यह स्थिति उत्तराखंड के जंगलों में तो 2 फरवरी 2016 से ही प्रारंभ हो गई थी जो क्रमशः धीरे धीरे बढ़ती चली जा रही थी 10 अप्रैल 2016 के बाद ऐसी घटनाओं में बहुत तेजी आ गई थी ! ऐसा होने के पीछे का कारण किसी को समझ में नहीं आ रहा था |इस वर्ष आग लगने की घटनाएँ इतनी अधिक घटित हो रही थीं इस बिषय में संबंधित वैज्ञानिक कुछ कहने की स्थिति में नहीं थे उन्हें खुद कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था | अंत में आग लगने की घटनाओं से हैरान परेशान होकर 28 अप्रैल 2016 को बिहार सरकार के राज्य आपदा प्रबंधन विभाग ने ग्रामीण इलाकों में सुबह नौ बजे से शाम छह बजे तक खाना न पकाने की सलाह दी थी . इतना ही नहीं अपितु इस बाबत जारी एडवाइजरी में इस दौरान पूजा करने, हवन करने, गेहूँ का भूसा और डंठल जलाने पर भी पूरी तरह रोक लगा दी गई थी | इस बिषय में जब वैज्ञानिकों से पूछा गया कि इसी वर्ष ऐसा क्यों हो रहा है और यदि ऐसा होना ही था तो इसका पूर्वानुमान क्यों नहीं लगाया जा सका ?तो उन्होंने कहा कि इस बिषय में हमें स्वयं ही कुछ नहीं पता है कि इस वर्ष ऐसा क्यों हुआ !ये तो रिसर्च का बिषय है इसलिए ऐसे बिषयों पर अनुसंधान की आवश्यकता है |वैसे इसका कारण ग्लोबलवार्मिंग हो सकता है | असम में भीषण वर्षा और बाढ़ : इसी वर्ष में 13 अप्रैल 2016 से असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में भीषण वर्षा और बाढ़ का भयावह दृश्य था त्राहि त्राहि मची हुई थी |यह वर्षा और बाढ़ का तांडव 60 दिनों से अधिक समय तक लगातार चलता रहा था |
इस विषय में वैज्ञानिकों के वक्तव्य : सन 2016 के अप्रैल मई में घटित हुई परस्पर विरोधी इन दोनों घटनाओं के बिषय में वैज्ञानिकों से पत्रकारों ने पूछा कि इन दोनों घटनाओं के बिषय में पहले से कोई पूर्वानुमान क्यों नहीं बताया जा सका था | इस पर वैज्ञानिकों ने कहा कि असम आदि पूर्वोत्तरीय प्रदेशों में हो रही भीषण वर्षा और बाढ़ का कारण जलवायु परिवर्तन है तथा बिहार उत्तर प्रदेश राजस्थान मध्यप्रदेश महाराष्ट्र आदि में अधिक गर्मी एवं आग लगने की अधिक घटनाओं का कारण ग्लोबल वार्मिंग है | जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता |
2018 के अप्रैल मई में हिंसक आँधी तूफानों की घटनाएँ बार बार घटित हो रही थीं 2 मई की रात्रि में आए तूफ़ान से काफी जन धन हानि हुई थी | ऐसे तूफानों के बिषय में किसी को कुछ पता ही नहीं था मौसम वैज्ञानिकों को कुछ समझ में ही नहीं आ रहा था कि ऐसे बिषयों में क्या बोला जाए !इनके बिषय में कभी कोई पूर्वानुमान बताया ही नहीं जा पा रहा था वैज्ञानिक लोगों ने भविष्यवाणियाँ करने के लिए कुछ तीर तुक्के लगाए भी किंतु वे पूरी तरह से गलत निकलते चले गए !यहाँ तक कि 7 और 8 मई 2018 को उन्होंने दिल्ली और उसके आस पास भीषण तूफ़ान की भविष्यवाणी बड़े जोर शोर से कर दी यह सुन कर कुछ प्रदेशों की भयभीत सरकारों ने अपने अपने प्रदेशों में स्कूल कालेज बंद कर दिए किंतु उन दो दिनों में हवा का एक झोंका भी नहीं आया !बताया जाता है कि इस बिषय को बाद में पीएमओ ने संज्ञान भी लिया था | इसी घटना के बिषय में एक निजी टीवी चैनल के साथ परिचर्चा में मौसम विज्ञान विभाग के महा निदेशक महोदय डॉ.के जे रमेश जी से एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न कर दिया कि क्या कारण है कि आपका विभाग इतने भयंकर आँधी तूफानों के बिषय में कोई पूर्वानुमान नहीं लगा सका और जो लगाए भी गए वे गलत निकलते चले गए !इस पर डॉ.के जे रमेश जी ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण ऐसे तूफ़ान आ रहे हैं इसीलिए इनके बिषय में पूर्वानुमान लगाना संभव नहीं हो पा रहा है और अचानक आ जा रहे हैं आँधी तूफ़ान पता ही नहीं लग पा रहा है | अगले दिन कई अखवारों में हेडिंग छपी थी -"चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !"
केरल में भीषण बाढ़ :3 अगस्त 2018 को मौसम विज्ञान विभाग की ओर से जो प्रेस विज्ञप्ति जारी की गई उसमें भविष्यवाणी की गई थी कि अगस्त और सितंबर महीने में दक्षिण भारत में सामान्य वर्षा की संभावना है !जबकि 5 अगस्त से ही भीषण बारिश प्रारंभ हो गई थी जिससे केरल कर्नाटक आदि दक्षिण भारत में त्राहि त्राहि माही हुई थी | जिसके बिषय में केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री जी ने स्वीकार भी किया कि यदि मौसम विभाग की भविष्यवाणी झूठी न निकली होती तो बाढ़ से जनता इतनी अधिक पीड़ित न हुई होती | इसके बिषय में मौसम निदेशक डॉ.के. जे. रमेश से एक टीवी चैनल ने पूछा तो उन्होंने कहा कि केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसलिए इसके बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका था | इसका कारण जलवायु परिवर्तन है जबकि दक्षिण भारत में 2018 के अगस्त महीने में हुई |
इसी भीषण वर्षा के बिषय में 2018 के अगस्त महीने का मौसम पूर्वानुमान मैंने मौसम विभाग के निदेशक डॉ.के जे रमेश जी की मेल पर 29 जुलाई 2018 को ही भेज दिया था !उसमें लिखा है कि अगस्त की एक से ग्यारह तारीख के बीच इतनी भीषण वर्षा दक्षिण भारत में होगी कि बीते कुछ दशकों का रिकार्ड टूटेगा !वर्षा का स्वरूप इतना अधिक डरावना होगा कि बचाव के लिए सरकारों के द्वारा किए जाने वाले अधिकतम प्रयास निरर्थक होंगे !"यह पूर्वानुमान हमारी मेल पर अभी भी पड़ा है जिसे उन्होंने स्वीकार भी किया था कि मेरा वर्षा पूर्वानुमान सही निकला है किंतु उसे प्रोत्साहित नहीं किया है |
बिहार में आई भीषण बाढ़ :सितंबर 2019 में बिहार में आई भीषण बाढ़ के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताने में मौसम विभाग असफल रहा था !मौसम पूर्वानुमान बताने वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा रहे थे और जो बता रहे थे वो गलत होता जा रहा था तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी ने पत्रकारों से बात करते हुए स्वीकार किया था कि मौसम विभाग वाले लोग कुछ बता ही नहीं पा रहे हैं वर्षा के बिषय में वे सुबह कुछ कहते हैं दोपहर में कुछ दूसरा कहते हैं और शाम होते होते कुछ और कहने लगते हैं | पत्रकारों ने पूछा तो इस बाढ़ के बिषय में आप जनता से क्या कहना चाहेंगे तो नीतीश जी ने कहा कि मेरा मानना है कि हथिया नक्षत्र के कारण यह अधिक बारिश हो रही है | इसीप्रकार से स्वास्थ्य राज्यमंत्री अश्विनी कुमार चौबे जी ने भी पत्रकारों के पूछने पर यही कहा था कि हथिया नक्षत्र के कारण ही बिहार में अधिक बारिश हो रही है | मौसम विज्ञान पर विश्वास न करके ज्योतिष की नक्षत्र विद्या के ही गुण गाने लगे थे |
सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की गलत हुई भविष्यवाणी : सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए । इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिए। पूर्वानुमानों में इतनी बड़ी गलती कि पूर्वानुमान सीधे सीधे इतने विपरीत चले गए |
अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी गलत हुई :2020-21 में लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु इस बार तो जनवरी माह से ही तापमान बढ़ने लग गया था | ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |
अत्यधिक बारिश हुई जिसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका !:
सन 2020 के अप्रैल मई में इतनी अधिक बारिश हुई जितनी पहले कभी नहीं हुई थी। इन दो माह में अब तक कुल 51.4 मिमी बारिश हो चुकी है।इसके बाद मौसम विभाग की ओर से और अधिक बारिश होने का अनुमान बताया गया |
13 May 2020-इस बार पड़ेगी सूरज के तपिश की मार नहीं पड़ेगी , इस वर्ष ज्यादा गर्मी के आसार नहीं हैं !ये मौसमवैज्ञानिकों के द्वारा बताया गया पूर्वानुमान तब घोषित किया गया जब गर्मी का आधा समय निकल गया था | इसमें पूर्वानुमान क्या है और ऐसे पूर्वानुमान बताने के लिए वैज्ञानिकों की आवश्यकता कहाँ है |
19 -9- 2020- सितंबर में पड़ रही अप्रैल-मई जैसी गर्मी, मौसम विभाग ने बताई आखिर क्या है वजह !प्रादेशिक मौसम विज्ञान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने बताया कि इन दिनों आसमान में बादल बहुत कम हैं। बीच में कोई अवरोधक न होने से सूरज की रोशनी सीधे भी जमीन तक पहुँच रही है।
15 Oct 2020 : इस साल पड़ेगी कड़ाके की सर्दी !मौसम विभाग के महानिदेशक मृत्युंजय मोहापात्रा ने राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण यानी एनडीएमए की तरफ से 'शीत लहर के खतरे में कमी' पर आयोजित वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि इस साल कड़ाके की ठंड पड़ सकती है। पिछले साल सर्दी के मौसम के दौरान शीत लहर अधिक लंबा खिंची थी। इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !
2020-21 में वैज्ञानिकों के द्वारा लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु इस बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था | इस साल कड़ाके की ठंड पड़ने की क्या वजह बताई कि इस साल ला नीना की स्थिति के कारण कड़ाके की ठंड पड़ सकती है।
मौसम वैज्ञानिकों के वक्तव्य :
मानसून और सर्दी संबंधी पूर्वानुमान लगातार गलत साबित होते रहने पर मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा गया कि पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ? इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी।
04 Mar 2021-साल 1901 में जब से भारतीय मौसम विभाग ने रिकॉर्ड रखना शुरू किया, तब से आज तक कुल 120 सालों में इस साल की सर्दी तीसरी सबसे गर्म सर्दी रही यानी तीसरा सबसे कम सर्दी वाला मौसम रहा। खास बात यह कि शीतलता प्रदान करने वाली भौगोलिक घटना ला-नीना के असर के बावजूद जनवरी से फरवरी के बीच सर्दी गर्म रही।
5 Jan 2021- 1901 के बाद आठवां सबसे ज्यादा गर्म साल 2020 रहा !भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) कहा कि 1901 के बाद से 2020 आठवां सबसे अधिक गर्म वर्ष रहा !
जलवायु परिवर्तन और मौसम !
वैज्ञानिकों के द्वारा स्थापित मान्यता के अनुशार जलवायुपरिवर्तन मौसम को प्रभावित करता है और मौसम स्वास्थ्य को प्रभावित करता है मौसम संबंधी बड़े उत्पात महामारियों की उत्पत्ति के कारण बनते हैं |इसलिए महामारियों से संबंधित किसी भी अनुसंधान के लिए मौसम संबंधी घटनाओं का अध्ययन अनुसंधान पूर्वक पूर्वानुमान लगाया जाना बहुत आवश्यक है | चूँकि मौसम संबंधी घटनाओं पर जलवायुपरिवर्तन का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है इसलिए जलवायु परिवर्तन के मौसम पर पड़ने वाले प्रभाव के बिषय में सही सही अनुसंधान किए बिना मौसम से प्रभावित होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सही एवं सटीक अध्ययन कैसे किया जा सकता है और महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |
विशेष बात यह है मौसम का जो सहज क्रम बना हुआ है जिसमें सर्दी के समय में उचित मात्रा में सर्दी होती है और गर्मी की ऋतु में उचित मात्रा में गरमी होती है तथा वर्षा के समय उचित मात्रा में वर्षा होती है | जब तक ऐसा क्रम अपने सहज प्रवाह में चलता रहता है तब तक न तो मौसम पूर्वानुमान लगाने की विशेष आवश्यकता होती है और न ही ऐसे समय में महामारियों के ही पैदा होने की दूर दूर तक कोई संभावना रहती है |
सर्दी की ऋतु सर्दी बहुत कम या बहुत अधिक होने लगे या उसकी समयावधि बहुत अधिक घट या बढ़ जाए !ऐसा ही वर्षाऋतु में वर्षा को लेकर हो और गर्मी के समय में ऐसा ही गर्मी के संबंध में असंतुलन देखा जाए तो वैज्ञानिक भाषा में ऐसी घटनाओं को जलवायु परिवर्तन के नाम से जाना जाता है | उन्हीं के द्वारा कहा जाता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण घटित हुई घटनाओं के बिषय में पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है और यदि सभी घटनाएँ संतुलित मात्रा में ही घटित होती रहें तो पूर्वानुमानों की आवश्यकता ही क्या है वो तो सबको वैसे ही पता है |
अनंतकाल से चला आ रहा मौसम का यह क्रम जब टूटता है और वह जिस सीमा तक टूटता है उसी स्तर के प्राकृतिक रोग प्रारंभ होने की संभावना होती है और जब बड़े प्राकृतिक विप्लव होते हैं तब महामारियों का निर्माण होने की संभावना होती है |
मौसम वैज्ञानिकों की समस्या यह है कि मौसम का क्रम टूटने या प्राकृतिक विप्लवों को वो जलवायु परिवर्तन मान चुके हैं और जलवायु परिवर्तन का पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता ऐसा पहले ही कहा जा चुका है | जलवायु परिवर्तन के कारण घटित घटनाओं का स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है | यदि उनका पूर्वानुमान वे लगा ही नहीं सकेंगे तो पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा कल्पित विशिष्ट प्रारंभिक स्वास्थ्य चेतावनी प्रणाली (Early Health Warning System) संबंधी अनुसंधान प्रक्रिया में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग को सम्मिलित किए जाने का उद्देश्य क्या होगा और उस प्रकार के अध्ययनों में उनकी सार्थक भूमिका किस प्रकार की होगी |
सामान्यतौर पर प्रत्येक वर्ष के अप्रैल मई जून तक अधिक गरमी पड़ती है इसी प्रकार से नवंबर दिसंबर जनवरी आदि में अधिक सर्दी बढ़ती है|प्रकृति के इसी समय चक्र से समाज सुपरिचित है यही हमेंशा से चला आ रहा है इसी समय क्रम को स्थायी मानकर इसी के आधार पर चिकित्सा वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया था कि सन 2020 के अप्रैल मई जून आदि में अधिक गरमी पड़ेगी और अधिक तापमान में वायरस कमजोर पड़ जाता है इसलिए सन 2020 के अप्रैल मई जून आदि में कोरोना संक्रमण समाप्त जाएगा किंतु ऐसा हुआ नहीं मई तक तो वर्षा और बर्फबारी ही होते देखी सुनी जाती रही इसलिए तापमान उतना अधिक बढ़ा ही नहीं जितने बढ़ने पर कोरोना संक्रमण समाप्त होने की संभावना थी |
इसी प्रकार से नवंबर दिसंबर जनवरी आदि में अधिक सर्दी पड़ती है|समय जनित मौसम के इसी स्वभाव से समाज सुपरिचित भी है और यही हमेंशा से चला भी आ रहा है इसे ही सच मानकर वैज्ञानिकों ने कह दिया कि 2020 की सर्दी अर्थात नवंबर दिसंबर आदि में कोरोना संक्रमण काफी अधिक बढ़ जाएगा !दिल्ली के बिषय में अनुमान लगाया गया कि 15 हजार बिस्तरों की आवश्यकता पड़ सकती है |उन्हें इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि इस वर्ष की सर्दियों में जनवरी फरवरी से ही तापमान बढ़ना प्रारंभ हो जाएगा जिससे सर्दियों के समय में भी सर्दी कम पड़ेगी |
ऐसी परिस्थिति में चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा गरमी की ऋतु में कोरोना संक्रमण घटने एवं सर्दी के समय में कोरोना संक्रमण बढ़ने के बिषय में लगाया गया पूर्वानुमान संपूर्ण रूप से गलत निकल गया | वस्तुतः चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए इस पूर्वानुमान का आधार तो मौसम था मौसम का पूर्वानुमान उन्हें पता नहीं था इसलिए चिकित्सा वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान के गलत निकल जाने का एक कारण यह भी हो सकता है | इसलिए बिना किसी सार्थक अनुसंधान के यह मान लेना उचित नहीं होगा कि सर्दी में कोरोना बढ़ा नहीं और गर्मी में कम नहीं हुआ | इसका मतलब मौसम का महामारी से कोई संबंध ही नहीं है |ऐसा निश्चय किया जाना तब संभव था जब हर वर्ष की तरह ही सर्दी के समय सर्दी पड़ी होती और गर्मी के समय गर्मी पड़ी होती | ऐसे समय यदि मौसम संबंधी अनुसंधानों का सही सहयोग मिला होता तो महामारी को समझने में और अधिक सुविधा हो सकती थी |
वर्तमान मौसम वैज्ञानिक इस परिस्थिति में चिकित्सा वैज्ञानिकों का सहयोग करने में कितने सक्षम थे इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्होंने 2019\20 की सर्दियों में कम सर्दी होने का पूर्वानुमान लगाया था जबकि 2020\21की सर्दियों में अधिक सर्दी होने का पूर्वानुमान लगाया था ,किंतु उनके द्वारा लगाए गए ये दोनों पूर्वानुमान ही न केवल गलत निकल गए अपितु अनुमानों के विरुद्ध घटनाएँ घटित होते देखी जाती रहीं | जिस वर्ष सर्दी कम होने का पूर्वानुमान लगाया गया उस वर्ष सर्दी इतनी अधिक हुई कि दशकों के रिकार्ड टूटे और जिस वर्ष सर्दी अधिक होने का पूर्वानुमान लगाया उस वर्ष आधी सर्दी से ही तापमान बढ़ने लग गया ऐसा दशकों बाद हुआ है यह उन्हीं लोगों ने बताया है जिन्होंने अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की थी |
अल्पावधि मौसम पूर्वानुमान की यह स्थिति है कि इसमें वैज्ञानिक
अनुसंधान भावना का कोई विशेष योगदान नहीं होता है इसमें तो रडारों एवं
उपग्रहों के सहयोग से जो घटना एक जगह घटित होते देख ली जाती है उसकी गति और
दिशा के हिसाब से अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये इतने दिन में उस देश
प्रदेश या जिले आदि में पहुँच सकती है | बीच में हवाओं का रुख बदल जाने से
लगाया हुआ अंदाजा गलत हो जाता है | वैसे भी जो बादल जिधर जिधर जाते हैं सभी
जगह तो नहीं बरसते हैं कुछ जगहों पर बरसकर वापस लौट जाते हैं | तूफानों
चक्रवातों में ऐसे उपग्रहों से मिली तस्बीरों से कभी कभी जनधन की हानि होने से बचाव हो जाता है | कई बार वर्षा संबंधी अल्पावधि भविष्यवाणियाँ भी गलत होती हैं जिससे नुक्सान भी होता है |
कई बार कहीं लंबे समय के लिए वर्षा होना जब शुरू होता है किंतु उपग्रहों
रडारों से तात्कालिक परिस्थिति ही दिखाई पड़ती है वो बता दी जाती है कि तीन
दिन वर्षा होगी | इसके बाद जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे दो
दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं | इसका अर्थ लोग यह समझते हैं दो दिन
और बरसेगा उसके बाद बंद हो जाएगा ,किंतु उसके बाद कह दिया जाता है कि अभी
तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं
कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं | तब तक तो घर में पानी भर
जाने के बाद
लोग घरों की छत पर रह जाते हैं | उसके बाद भी पानी बरसते रहता
है और पानी छत के करीब आ चुका होता है |
ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और
न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है
और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! 2015 के नवंबर महीने
में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था
|
प्रशांत
महासागर से चली बादलों की श्रृंखला जिस और जिस गति से जाती है उस
गति से उस दिशा के हिसाब से अनुमान लगा लिया जाता है किंतु तब तक जितने
बादल दिखाई पड़ रहे होते हैं उतने के बिषय में ही अंदाजा लगाया जा सकता है
तीन दिन बाद भी यदि बादलों की श्रृंखला टूटती नहीं है तो तीन दिन और बरसेगा
उसके बाद भी बादल दिखाई पड़ते रहें तो तीन दिन और बरसेगा ऐसे अंदाजे लगाए
जाते रहते हैं | इसमें किसी की गलती नहीं है जब जो दिखाई पड़ता है वो बताया
जाता है | भविष्य के लिए जब कोई विज्ञान ही नहीं है तो सही भविष्यवाणी की
आशा कैसे की जा सकती है |
ऐसे अनुमान यदि मौसम विज्ञान के आधार पर लगाए जा रहे होते तो बिना बादलों
को देखे ही पहले से पता होता कि बादल कितने दिनों तक बरस सकते हैं | ऐसा
विज्ञान महामारियों से संबंधित अनुसंधानों में मदद कर सकता है किंतु ऐसा
करने की योग्यता रखने वाले मौसम वैज्ञानिक हैं कहाँ जिन की योग्यता पर
भरोसा करके महामारी से संबंधित अनुसंधान प्रारंभ किए जा सकते हैं |
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समय का प्रभाव और प्राकृतिक घटनाएँ !
अलनीनो लानिना जैसी विषुवतीय प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में समुद्र के तापमान संबंधी घटनाओं का नियमित चक्र नहीं है,इसलिए न तो इनके विषय में कोई भविष्यवाणी की जा सकती है और न ही इनके आधार पर कोई भविष्यवाणी की जानी संभव है |
मौसम संबंधी घटनाओं पर यदि अलनीनो का प्रभाव पड़ता ही है,तब तो मौसम
संबंधी पूर्वानुमान लगाने के लिए पहले अलनीनो लानिना जैसी घटनाओं के विषय
में पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए !ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण क्या
है ? इनके प्रतिवर्ष घटित न होने का कारण क्या है |ऐसी घटनाओं के कुछ विशेष वर्षों में ही घटित होने का कारण क्या है ?अन्य वर्षों में क्यों नहीं घटित होती हैं |अलनीनो होने के पीछे मनुष्यकृत कारण है या प्राकृतिक ! मनुष्यकृत है तो क्या और प्राकृतिक है तो क्या ? इसे खोजा जाना चाहिए |
इसमें विशेष ध्यान देने की बात ये है कि ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का अपना कोई न कोई समय है | तापमान
सबसे अधिक बसंत और ग्रीष्म ऋतुओं में बढ़ता है ! इन ऋतुओं में भी कुछ दिनों
में तापमान बहुत अधिक बढ़ जाता है, जबकि कुछ दिनों में अपेक्षाकृत कुछ कम
बढ़ता है |रात्रि की अपेक्षा दिन में तापमान अधिक बढ़ा रहता है | दिन में भी
प्रातः सायं की अपेक्षा मध्यान्ह में तापमान अधिक बढ़ता है |
इस संपूर्ण प्रक्रिया में देखा जाए तो तापमान को बढ़ाने वाली बसंत ग्रीष्म आदि ऋतुएँ,दिन, मध्यान्हकाल आदि घटनाएँ समय का ही स्वरूप हैं | ये समय के अनुशार ही घटित होती हैं | जिनमें तापमान बढ़ा रहता है |ऐसी स्थिति में मध्य
पूर्वी प्रशांत सागर में समुद्र का तापमान सामान्य से अधिक होने का भी
कारण समय ही हो सकता है | इसका कारण यदि समय को न माना जाए तो किसी वर्ष
अलनीनों होना और किसी वर्ष न होने का कारण और दूसरा क्या हो सकता है |वह
समय क्या है ,कितने वर्षों में आता है,इसका पूर्वानुमान लगाया जाना चाहिए |
बताया जाता है कि अलनीनो की वजह से तापमान काफी बढ़ जाता है। ऐसी स्थिति
में भयानक गर्मी का सामना करना पड़ता है
और सूखे के हालात बनने लगते हैं। इसमें विशेष बात ये है कि ऐसा सबकुछ
अलनीनो के कारण होता है या जिस समय के प्रभाव से अलनीनो घटित होता है |
भयंकर गर्मी या सूखा पड़ने का वह समय ही हो |वस्तुतः अलनीनो जैसी घटना जब
स्वयं ही समय के आधीन है,तो वो कुछ घटनाओं के घटित होने का कारण कैसे बन
सकती है |
मौसम वैज्ञानिक बताते हैं कि अल–नीनो एक
अनियमित रूप से घटित होने वाली घटना है और इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया
जा
सकता है !किंतु प्राकृतिक रूप से घटित होने वाली प्रत्येक घटना नियमित ही
होती है | इसके विषय में पूर्वानुमान लगाया नहीं जा
सकता है या हम नहीं लगा सकते हैं ,क्योंकि भविष्य को देखने के लिए जब कोई
विज्ञान ही नहीं है तो अलनीनो क्या किसी भी घटना के विषय में पूर्वानुमान
लगाया जाना कैसे संभव हो सकता है |
इसी प्रकार से प्रत्येक वर्ष में वर्षा होने के लिए प्रावृट और वर्षा जैसी
ऋतुएँ हैं, वर्षा होने के लिए कुछ महीने कुछ दिन और कुछ घंटे होते हैं | कई बार
वर्षा ऋतु के अतिरिक्त सर्दी गर्मी आदि दूसरी ऋतुओं में भी वर्षा होने के दिन आने पर वर्षा होती
है | कई बार देखा जाता है कि अनेकों देशों में एक साथ ही कई कई दिनों तक वर्षा या बाढ़ जैसी घटनाएँ घटित हो रही होती हैं |
सर्दी की ऋतु में अनेकों देशों में कुछ दिनों में काफी अधिक सर्दी एवं बर्फबारी होती देखी जाती है |उसी ऋतु में उन दिनों के अलावा उतनी अधिक सर्दी नहीं होती है |
वायु प्रदूषण बढ़ने की घटनाओं को ही प्रत्यक्ष कारणों की दृष्टि से देखा जाए तो एक जैसी परिस्थिति रहने पर भी कुछ महीनों में कुछ दिनों में वायु प्रदूषण बढ़ जाता है और उसी परिस्थिति में कुछ महीनों में कुछ दिनों में वायु प्रदूषण घट जाता है |
इसी प्रकार से कुछ दशक ,कुछ वर्ष कुछ महीने या कुछ दिन ऐसे आते हैं जब भूकंप अनेकों स्थानों पर आते देखे जाते हैं ,जबकि हमेंशा ऐसा नहीं होता है |
कुछ समय के खंड ऐसे आते हैं जब अनेकों देशों में एक साथ उन्माद आंदोलन हिंसा या सरकारों के विरुद्ध उग्र प्रदर्शन हो रहे होते हैं | कुछ देश आपस में एक दूसरे के साथ युद्ध लड़ रहे होते हैं ,जबकि उसी परिस्थिति में कुछ दूसरे समयों में ऐसा होते नहीं देखा जाता है |
महामारी को ही देखा जाए तो एक ऐसा समय आता है, जब अनेकों देशों में एक साथ ही बहुत लोग रोगी होने लगते हैं !बहुतों की मृत्यु होने लगती है |उन्हीं परिस्थितियों में कुछ समय ऐसा आता है कि सभी देशों में एक साथ लोग संक्रमण मुक्त होने लगते हैं | कुछ महीने बाद फिर लोग बड़ी तेजी से संक्रमित होने एवं मृत्यु को प्राप्त होने लगते हैं | उसके कुछ समय बाद फिर लोग अपने आपसे ही संक्रमण मुक्त होने लगते हैं |ऐसा बार बार होते देखा जाता है !प्रत्यक्ष कारणों की दृष्टि से देखा जाए तो जिन देशों में वैक्सीन आदि उपाय किए गए होते हैं और जिन देशों में नहीं किए गए होते हैं तथा जिन देशों में कोविड नियमों का पालन किया गया होता है और जिन देशों में नहीं किया गया होता है | समय प्रभाव से प्रायः सभी जगह एक जैसी घटनाएँ घटित होते देखी जा रही होती हैं | समय ही वो विशेष कारण है !जब महामारियाँ पैदा होती हैं !समयप्रभाव से ही महामारियाँ समाप्त होती हैं | समय प्रभाव से ही संक्रमण बढ़ता घटता है जिसे लहरों का आना जाना कहा जाता है |
कुल मिलाकर ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं में समय के प्रभाव से घटनाओं का निर्माण एवं समाप्ति होते देखा जाता है | घटनाओं का बढ़ना घटना आदि भी समय जनित ही होता है | समय के अतिरिक्त दूसरा कोई ऐसा कारण नहीं है जिसे ऐसे प्राकृतिक परिवर्तनों के लिए तर्कसंगत ढंग से जिम्मेदार बताया जा रहा था| वो वायरस महामारी समाप्त होने के बाद अचानक कहाँ चला गया है ! ऐसे ही कोरोना संक्रमण अचानक बढ़ने के लिए जिन कोविड नियमों के न पालन करने को जिम्मेदार बता दिया जाता था |उन्हीं कोविड नियमों के न पालन करने पर भी अब तो संक्रमण बढ़ते नहीं देखा जाता है | इससे ऐसा निश्चित होता है कि संक्रमण बढ़ने के लिए कोविड नियमों का पालन करना या न करना जिम्मेदार नहीं था ,प्रत्युत वह समय ही जिम्मेदार था | जिन देशों में वैक्सीन लगी और जिनमें नहीं लगी ऐसे ही जिन लोगों ने वैक्सीन लगवाई और जिन्होंने नहीं लगवाई वे सभी एक साथ ही संक्रमण मुक्त हुए हैं |
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जिसप्रकार से कोई व्यक्ति सर्दी की ऋतु में शाम के समय दही
खाता हो, उससे उसे जुकाम खाँसी ज्वर आदि हो गया हो !ऐसी स्थिति में वह
किसी चिकित्सक के पास जाए चिकित्सक उसकी जाँच करावे तो उस जाँच रिपोर्ट में
जुकाम
खाँसी ज्वर आदि है यह तो पता लग जाएगा | इसके आधार पर चिकित्सा की जाएगी
तो वह स्वस्थ भी हो सकता है किंतु उसे दुबारा वही परेशानी हो सकती है
|दुबारा फिर जाँच कराई जाएगी तो उससे उसी समस्या का पता फिर लग सकता है
,फिर चिकित्सा कर ली जाएगी फिर वह स्वस्थ हो जाएगा | ऐसा बार बार होता
रहेगा तो उसका समाधान खोजा जाएगा कह दिया जाएगा कि आजकल बार बार जुकाम
खाँसी आदि होने लगा है | इसका कारण जलवायुपरिवर्तन है क्योंकि पहले तो ऐसा
नहीं होता था | ऐसे ही मौसम के क्षेत्र में जलवायुपरिवर्तन का भ्रम होता है | इस भ्रम का निवारण तब होगा जुकाम
खाँसी आदि होने के वास्तविक कारण खोजे जाएँगे | उन कारणों में पता लगेगा
कि दही शाम को खाने के कारण जुकाम खाँसी हो रहा है |पहले जब
वस्तुतः पहले गरमी की
श्रम की प्रतिक्रिया ही होता है।
यदि
चिकित्सक के पास जाएगा तो चिकित्सक तात्कालिक परिस्थिति समझने के लिए ज्वर
नाप लेगा और जुकाम को समझ लेगा और औषधि दे देगा !ये उपग्रहों रडारों
सुपरकंप्यूटरों के द्वारा पूर्वानुमान लगाने जैसा है ,किंतु यदि यह पता
लगाया जाए कि कल खाया क्या था कब खाया था आदि का तो पता लग जाएगा !यही
विज्ञान है|
जिसप्रकार ट्रेनों के संचालन के लिए उनकी अपनी समयसारिणी होती है जिसके
आधार पर महीनों पहले यह पता लगा लिया जाता है कि कौन ट्रेन कब कहाँ से
चलेगी,किस किस रूट से होकर निकलेगी, किन किन स्टेशनों पर कितने कितने बजे
पहुँचकर कहाँ तक जाएगी !यही जानकारी किसी रूट पर जाती हुई ट्रेन को देखकर
पता करनी हो तो कैसे संभव है | ये वही प्रक्रिया है जिसके आधार पर उपग्रहों
रडारों के द्वारा किसी एक स्थान पर बादलों या आँधी तूफानों को देखकर उनकी
गति एवं दिशा के आधार पर उसके दूसरे स्थान पर पहुँचने के विषय में अंदाजा
लगाया जाता है | जो सही गलत कुछ भी हो सकता है किंतु समय सारिणी वह विज्ञान
है जिसके आधार पर लगाया गया पूर्वानुमान प्रायः सही ही निकलता है |
महामारी
संबंधी स्वभाव को समझने के लिए किसी ऐसे विज्ञान की आवश्यकता है जिससे
मौसम संबंधी प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने का कारण खोजा जा सके | उसके
आधार पर ऐसी घटनाओं के बनने की प्रक्रिया समझी जाए कि भूकंप आँधी तूफानों
वर्षा बाढ़ महामारी आदि का निर्माण किस प्रकार की प्राकृतिक परिस्थितियों
में होता है | ऐसी परिस्थितियाँ कब कब आती हैं | किन किन वर्षों महीनों
दिनों में आती हैं | उनमें ऐसा विशेष क्या होता है और वह प्रकृति के किस
स्तर पर होता है |प्रकृति के किस अंग में किस प्रकार के बदलाव दिखते हैं तब
किस प्रकार की घटनाएँ जन्म लेती हैं |
इस प्रकार की स्वाभाविक जानकारी जुटाकर उसके आधार पर महामारी संबंधी
अनुसंधान किए जा सकते हैं उसके बिना ऐसा कोई निश्चित निर्णय लिया जाना संभव
ही नहीं है कि महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता है या नहीं |
इसके लिए मौसमसंबंधी
घटनाओं के स्वभाव को समझने में सक्षम वास्तविक मौसमविज्ञान की आवश्यकता
है|जो उपग्रहों रडारों सुपरकंप्यूटरों के बिना प्राकृतिक वातारवरण को न
केवल समझने में सक्षम हो प्रत्युत मौसम संबंधी घटनाओं के विषय में उतने
पहले का पूर्वानुमान लगाने में सक्षम हो जितने पहले महामारी के पैदा होने
की प्रक्रिया प्रारंभ होती है | एक अनुमान के अनुशार यह कहा जा सकता है कि
वर्तमान समय जिस महामारी को देखा जा रहा है | वो मौसम संबंधी वर्तमान
घटनाओं के प्रभाव का परिणाम नहीं हो सकता है |महामारी के पैदा होने की
प्रक्रिया तो वर्षों पहले प्रारंभ हुई होगी !उसी समय ऐसे अनुसंधानों को
करके महामारी के विषय में अनुमान या पूर्वानुमान लगा लेने की आवश्यकता थी |
उसी के आधार पर भावी महामारी से बचाव एवं मुक्ति दिलाने लायक सावधानियाँ
बरती जानी चाहिए थीं और अनुमानित आवश्यक औषधि निर्माण के लिए बृहद स्तर पर
उपयोगी द्रव्य संग्रह करके रखा जाना चाहिए था | जो भविष्य में औषधि निर्माण
के काम आ सकता था |
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