: पुरुषस्तस्मिन् को जातु विश्वसेत्।[2]
मनुष्य का चित चंचल है अत: सदा किसी पर कोइ कैसे विश्वास करे?
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साभार krishnakosh.org
महामारी भयंकर थी या महामारी का विज्ञान ही नहीं है !
कोरोना महामारी से वैश्विक समाज पूरी तरह हिल गया है और मनुष्यकृत कोई भी उपाय जनता की सुरक्षा करने में सफल नहीं हो सका है | इससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि कोरोना महामारी से हुए जनधन के नुक्सान के लिए जिम्मेदार किसे माना जाए |महामारी
इतनी भयंकर थी इसलिए बहुत लोग संक्रमित हुए और बड़ी संख्या में लोग मृत्यु को प्राप्त हुए हैं !अथवा विज्ञान ही इतना सक्षम नहीं था जिससे महामारी को समझना संभव हो पाता ! जिन अनुसंधानों के द्वारा महामारी से
बचाव के लिए अग्रिम तैयारियाँ पहले से करके रखी जानी चाहिए थीं वो अनुसंधान उस लायक थे ही नहीं और न ही उसमें ऐसा कोई सक्षम विज्ञान ही था | जो मनुष्य की सामान्य दृष्टि के अतिरिक्त ऐसी कोई विशेषता हो |जिससे महामारी में मदद की अपेक्षा की जा सके | इसीलिए विज्ञान से बचाव के लिए जनता को बहुत अपेक्षा थ,किंतु मदद बिल्कुल नहीं मिल पाई है| इसलिए अब ये प्रश्न उठना स्वाभाविक ही है कि विज्ञान महामारी से मनुष्यों की सुरक्षा करने में सक्षम है या नहीं है |
बिचारणीय यह है कि इतने सारे अनुसंधानों के लगातार होते रहने के बाद भी मनुष्यों को यदि वही
सबकुछ सहना है ,जो अनुसंधानों के न होने पर सहना पड़ता था या जो उससमय सहना
पड़ता था जब विज्ञान नहीं था या जब विज्ञान इतना विकसित नहीं था | इसलिए उस समय तो सहने के अतिरिक्त कोई विकल्प ही नहीं था |अब तो सक्षम माना जाने वाला विज्ञान भी है उसने उन्नति भी बहुत कर ली है | विज्ञान के द्वारा आकाश से लेकर पाताल तक बड़ी बड़ी समस्याओं के समाधान खोजे गए हैं | दूर संचार ,यातायात एवं वातानुकूलित
जीवन ऐसी बहुत सारी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ गिनाई जा सकती हैं |जिन मनुष्यों के जीवन की कठिनाइयाँ कम करके सुख
सुविधा तथा सुरक्षा संपन्न बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने बड़े बड़े
अनुसंधान किए हैं |उन्हीं मनुष्यों को महामारी निर्ममता पूर्वक निगलती जा रही थी और विज्ञान मूकदर्शक बना हुआ था| मनुष्यों की यह दुर्दशा दुनियाँ ने देखी है |
महामारी
में जितने लोगों को संक्रमित होना था या जितने लोगों की मृत्यु होनी थी | वो सबकुछ होते देखा जा रहा था | उसे वैज्ञानिक अनुसंधानों के बल पर थोड़ा भी नियंत्रित नहीं
किया जा सका है |जिस प्रकार से मदारी बंदरों को नचाता है उसी प्रकार से
महामारी विज्ञान को भ्रमित किए जा रही थी | महामारी आगे आगे भाग
रही थी विज्ञान उसका अनुगमन करते देखा जा रहा था |
कुलमिलाकर महामारी के हिंसक तांडव और विज्ञान की बेवशी जिस जिस ने अपनी आँखों से देखी है | उनके मन में एक प्रश्न तो बार बार कौंध ही रहा है कि विज्ञान ने चाहें जितनी उन्नति कर ली हो और अपने अनुसंधानों से चाहें जितने सुख सुविधा के साधन जुटा लिए गए हों ,किंतु उसका उपभोग करने के लिए यदि मनुष्य ही नहीं बचेंगे तो ये वैज्ञानिक उपलब्धियाँ किसके काम आएँगी |आखिर ये सब मनुष्यों को ही सुख सुविधाएँ प्रदान करने के लिए किया गया हऔर महामारियाँ या प्राकृतिक आपदाएँ मनुष्यों को ही पीड़ित प्रताड़ित करती हैं | ऐसे में महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए मजबूत उपाय खोजे बिना मनुष्यों के जीवन की कठिनाइयाँ कम करके उन्हें सुख
सुविधा एवं सुरक्षा प्रदान करने के उद्देश्यों की पूर्ति होनी कैसे संभव है |
महामारियाँ
आवें और मनुष्यों को मार कर चली जाएँ !भूकंप आदि प्राकृतिक आपदाएँ आवें वे भी
मनुष्यों को मार कर चली जाएँ |ऐसी आपदाओं से जितना नुक्सान होना
हो वो हो ही जाए तो वैज्ञानिक अनुसंधानों का औचित्य ही क्या बचता है | महामारियाँ इतनी तेजी से आती हैं और लोगों को संक्रमित करने एवं मारने लगती हैं | इतने कम समय में तुरंत की तैयारियों के बलपर महामारी से मनुष्य समाज की सुरक्षा की जानी संभव नहीं हो पाती है |महामारी से बचाव की अग्रिम तैयारियों के अभाव में बड़ी संख्या में
लोग मृत्यु को प्राप्त होते हैं |मजबूत तैयारियाँ करके यदि पहले से रखी गई होतीं तब तो मनुष्य समाज की सुरक्षा एक सीमा तक की भी जा सकती थी |
पहले से तैयारियाँ करने के लिए महामारी के विषय में
पहले से सही पूर्वानुमान पता होने चाहिए थे | ऐसा करने के लिए कोई इस प्रकार का विज्ञान होना चाहिए था | जिसके द्वारा भविष्य में झाँककर संभावित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सके |
ऐसा कोई सक्षम विज्ञान होता तो उसके द्वारा महामारी के किसी पक्ष को समझना तो संभव हो पाता | महामारी के स्वभाव को अभी
तक समझा नहीं जा सका है |महामारी का प्रभाव पता नहीं है | महामारी का विस्तार कितना था प्रसार माध्यम क्या था ?अंतर्गम्यता कितनी थी | महामारी पर मौसम का प्रभाव पड़ता था या नहीं !तापमान बढ़ने घटने का प्रभाव पड़ता था या नहीं !वायुप्रदूषण के प्रभाव से महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ता था या नहीं !
महामारी के विषय में वैज्ञानिक लोग जितने भी अनुमान बता
रहे थे वे प्रायः गलत निकलते जा रहे थे | इसका कारण महामारी को समझने के लिए किसी विज्ञान का न होना था या कुछ और !यदि ऐसा कोई सक्षम विज्ञान ही नहीं था तो वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जा रहे महामारी विषयक अनुमान आम लोगों के द्वारा लगाए जाने वाले अंदाजों से कितने अलग थे |
महामारी संबंधी संक्रमण बढ़ने या घटने के विषय में एक ओर वैज्ञानिक लोग पूर्वानुमान लगाते जा रहे थे,दूसरी ओर वे गलत निकलते जा रहे थे | उनके गलत निकलने का कारण यदि भविष्य में झाँकने के लिए किसी विज्ञान का न होना था,तो लगाए जा रहे पूर्वानुमानों का आधार क्या था और कितना विश्वसनीय था | महामारी हों या प्राकृतिक आपदाएँ इन्हें रोका जाना संभव
भले न हो किंतु प्रयत्न पूर्वक अपना बचाव कुछ तो किया ही जा सकता था | इनके विषय में जो अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं | उनके शतप्रतिशत सही निकलने की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए ,फिर भी उनके सही या
गलत निकलने की कोई तो लक्ष्मण रेखा होनी ही चाहिए कि ये इससे अधिक गलत नहीं निकलेंगे | यदि ऐसा नहीं किया जाता है तो ऐसे पूर्वानुमान विश्वसनीय कैसे हो सकते हैं | पूर्वानुमानों के नाम पर कोई कुछ भी बोल देगा वो गलत निकल जाएगा तो कुछ और दूसरा बोल देगा | ऐसे संदिग्ध पूर्वानुमान जनसुरक्षा की दृष्टि से सहायक कैसे हो सकते हैं |
ऐसी स्थिति में ये बिचार किया जाना आवश्यक है कि इतना उन्नत विज्ञान होते हुए भी महामारी में जनधन का इतना अधिक नुक्सान कैसे हो गया | बताया जाता है कि वर्तमान समय विज्ञान बहुत बड़े बड़े कीर्तिमान स्थापित कर चुका है, किंतु प्राकृतिक आपदाओं एवं महामारियों से जनता के जीवन की सुरक्षा यदि सुनिश्चित नहीं की जा सकी तो वे वैज्ञानिक कीर्तिमान मान जनता के किस काम के !जनता के लिए उसके जीवन को सुरक्षित बचाया जाना पहले आवश्यक है बाक़ी सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों का आनंद लेने के लिए सारा जीवन ही पड़ा है |
गंभीर अनुसंधानों से ही संभव है महामारी से सुरक्षा !
वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ होता रहा वह महामारी समझने एवं बचाव के लिए प्रभावी उपाय करने के लिए पर्याप्त इसलिए नहीं है ,क्योंकि के विषय में जितने अनुसंधान किए गए उनके द्वारा जो जो अनुमान पूर्वानुमान लगाए गए, बचाव के लिए जिन जिन उपायों औषधियों या आचार व्यवहार आदि को महामारी से सुरक्षा के लिए उपयोगी बताया जाता रहा वो सबकुछ उन अनुमानों के विरुद्ध निकलता रहा जिसे वैज्ञानिकों ने बड़े परिश्रम से अनुसंधान पूर्वक खोजा था | ऐसी स्थिति में महामारी के विषय में उनके द्वारा कही गई बाक़ी बातों पर विश्वास किस आधार पर किया जाना उचित होगा ,आखिर वे भी तो उन्हीं अनुसंधानों के द्वारा उन्हें पता लगी होंगी | महामारी के विषय में अनुसंधानपूर्वक जो जो कुछ कहा जाए वो गलत निकलता चला जाए| इतने छिछले अनुसंधानों के सहारे कोरोना जैसी भयंकर हिंसक महामारी का सामना कैसे किया जा सकता है और बचाव की उम्मींद कैसे रखी जा सकती है | महामारी को समझने एवं इससे बचाव हेतु उपाय खोजने के लिए जितने गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है |वर्तमान अनुसंधान पद्धति में ऐसी गंभीरता दूर दूर तक नहीं दिखाई दे रही है | इसे अनुसंधानों की कमजोरी कहा जाए या फिर विज्ञान का अभाव कहें या फिर इसके लिए महामारी की भयंकरता को जिम्मेदार माना जा सकता है | जहाँ तक महामारी संबंधी अनुसंधानों में गंभीरता के अभाव की बात है तो इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि महामारी संबंधी अनुसंधानों में जितने भी अनुमान पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | उनके गलत निकलते ही गलत निकलने का कारण बताए बिना कुछ दूसरे अनुमान पूर्वानुमान बोल दिए जाते हैं |उनके भी गलत निकलने पर कुछ तीसरे बोल दिए जाते हैं | कोरोना महामारी में ऐसा होते बार बार देखा जाता रहा है |
कुल मिलाकर विज्ञान का अभाव एवं अनुसंधानों की कमजोरी इसलिए भी खटकती है | महामारी से सुरक्षा के लिए जितने गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता थी | वह गंभीरता न दिखाई पड़ने का कारण क्या है ?
महामारी के समय एक दूसरे को छूने से बचना आवश्यक था या कि ये पता ही नहीं था कि महामारी जनित संक्रमण के बढ़ने घटने पर एक दूसरे के छूने का कोई प्रभाव पड़ता भी है या नहीं |
फलों और सब्जियों को इसलिए धुलकर खाने के लिए कहा जा रहा था ताकि कोरोना के विषाणु मर जाएँ या अलग हो जाएँ | ये पता ही नहीं था कि फलों के अंदर भी कोरोना के विषाणु प्रवेश कर सकते हैं | तंजानियाँ जैसे कुछ देशों में फलों के अंदर भी ऐसे बिषाणु पाए गए थे | कहाँ कहाँ कौन कौन फल इससे संक्रमित थे ! उन्हें बाहर से धुलकर उनके संक्रमण मुक्त होने की परिकल्पना कैसे की जा सकती थी |
महामारी के विषय में जो भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा रहे थे वे गलत निकलते जा रहे थे | वस्तुतः वे गलत निकलते नहीं जा रहे थे प्रत्युत वे लगाए ही गलत जा रहे थे क्योंकि सही लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं था|
महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है ! ये तो बार बार कहा जा रहा था किंतु ये नहीं बताया जा रहा था कि महामारी का स्वरूप पहले कैसा था और अब कैसा हो गया है | बाद में पता लगा कि महामारी का वास्तविक स्वरूप क्या है ये पता ही नहीं था |
पहले कहा गया तापमान बढ़ने से कोरोना कम होगा किंतु तापमान बढ़ा तो कोरोना कम नहीं हुआ प्रत्युत बढ़ गया | यहाँ तक कि तीनों बड़ी लहरें बढे तापमान पर ही आई थीं | अनुमान के विरुद्ध घटना घटित होने का कारण क्या है ?पता लगा कि तापमान बढ़ने से कोरोना घटता है या नहीं | यह पता लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं था |
वायुप्रदूषण बढ़ने से कोरोना बढ़ेगा ऐसा कहा गया था किंतु 2020 के अक्टूबर नवंबर में वायुप्रदूषण बढ़ा किंतु कोरोना घटता चला जा रहा था |अप्रैल 2021 में कोरोना वायु प्रदुषण बिल्कुल नहीं था किंतु भारत में भयंकर कोरोना लहर इसी समय आई थी | प्रश्न उठता है कि वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमान गलत क्यों निकल गए | पता लगा कि सही अनुमान लगाने के लिए कोई विज्ञान ही नहीं था |
ऐसे और भी कईप्रकार के अनुमान व्यक्त किए गए जब वे गलत निकले तो बाद में पता लगा कि इन अनुमानों के लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था | ये तो यूँ ही बोल दिए गए थे | इसलिए इनके गलत होने में विज्ञान का कोई दोष नहीं है |
जिस समय समाज इतनी भयंकर महामारी से जूझ रहा रहा था |उस समय इतनी छिछली बातें बोली ही नहीं जानी चाहिए थीं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार न रहा हो और जिनके सच होने की संभावना इतनी कम रही हो !वैज्ञानिकों की बातों पर जनता बहुत विश्वास करती है | इसलिए उनके वक्तव्यों में गंभीरता बरती जानी चाहिए थी |
भारतवर्ष
को पड़ोसी देशों के साथ तीन बड़े युद्ध लड़ने पड़े | उन तीनों युद्धों में
मिलाकर जितने लोगों की मृत्यु हुई थी |कई गुणा अधिक लोग केवल कोरोना महामारी में मृत्यु को प्राप्त हुए हैं | ये सामान्य घटना नहीं हैं |बहुसंख्य लोगों ने अपनों को खोया है |अस्पतालों से लेकर श्मशान तक भरे हुए थे | वैश्विक दृष्टि से देखा जाए तो संपूर्ण विश्व में हाहाकार मचा हुआ था | ऐसे समय वैज्ञानिकों के विरोधावासी वक्तव्य बहुत पीड़ादायक सिद्ध हो रहे थे |
विशेष बात ये है कि पड़ोसी देशों के साथ लड़े गए तीनों युद्धों में भारत को जो जनधन हानि उठानी पड़ी थी | उससे सबक सीखते हुए शत्रु
देशों से निपटने के लिए बहुत अच्छी अच्छी अग्रिम तैयारियाँ करके जब से रखी गई हैं तब से कोई दुश्मन देश भारत की ओर आँखें उठाने का साहस नहीं कर पा रहा है |उन्हीं तैयारियों के बल पर शत्रुकृत ऐसी कोई आहट
मिलते ही सैनिक तुरंत मोर्चा सँभालकर उन्हें मुखतोड़ जवाब देकर अपने देश की सीमाएँ एवं देशवासियों को
सुरक्षित बचा लेते हैं |
इसके लिए शत्रुओं की गतिविधियों को समझने के लिए पहले से गुप्त सूचनाएँ एकत्रित की जाती हैं | उसी के आधार पर आगे की रणनीति बनाई जाती है | कोरोना महामारी आकर बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित करने एवं मारने लगी तब तक वैज्ञानिक अनुसंधानों को इस बात की भनक तक नहीं लगी कि महामारी जैसा इतना बड़ा संकट इतने पास आ चुका है |
पड़ोसी देशों के साथ लड़े गए तीनों युद्धों में भारत को भी जनधन हानि उठानी पड़ी थी | जितना ये सच है उतनी ही सच्चाई इस बात में भी है कि भारत ने उन युद्धों का भी अत्यंत वीरता पूर्वक न केवल मुखतोड़ जवाब दिया था प्रत्युत अपने देश की सीमाओं एवं नागरिकों की सुरक्षा करने में सफल हुआ था |
महामारी जैसे शत्रु के द्वारा आक्रमण किया जाने वाला है | इसका पूर्वानुमान लगाने में असफल रहे | महामारी रूपी शत्रु के स्वभाव को समझने में असफल रहे | विशेष बात ये है कि महामारी का सामना करने लायक तो कुछ था ही नहीं | उससे अपने जनधन की सुरक्षा करने में भी सफल नहीं हुए | जिसे संक्रमित होना था वो संक्रमित हुआ जिनकी मृत्यु होनी थी उनकी मृत्यु हुई | जिन्हें बचना था वे बच गए | इसमें मनुष्यकृत प्रयत्नों का क्या योगदान रहा ये पता नहीं है |
महामारियाँ या प्राकृतिक आपदाएँ या ऐसा कोई भी संकट आता है तो समाज बड़ी आशा से अपने वैज्ञानिकों की ओर देखने लगता है |लोगों को भरोसा रहता है कि सभी संकटों से वैज्ञानिक हमें बचा लेंगे| वैज्ञानिकों
ने ही यदि यह कहना शुरू कर दिया कि महामारी को हम इसलिए नहीं समझ पाए क्योंकि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो गया था या प्राकृतिकआपदाओं को हम इसलिए नहीं
समझ सके क्योंकि जलवायुपरिवर्तन हो गया था | यदि ऐसा कुछ हुआ भी होगा तो उसे समझकर उसके आधार पर अनुमान या पूर्वानुमान लगाने
की जिम्मेदारी उन वैज्ञानिकों की है| जिन्होंने ऐसे विषयों में विशेषज्ञता
हासिल की है|ऐसी बातें जनता को बताने से लाभ क्या है !ऐसी घटनाओं को यदि वैज्ञानिक नहीं समझ पाएँगे तो जनता कैसे समझ लेगी | जनता ऐसी घटनाओं की विशेषज्ञ नहीं है | विशेषज्ञता का मतलब ही यही होता है कि अपने अपने क्षेत्र से संबंधित घटनाओं से हर हाल में सुरक्षा सुनिश्चित की जाए |
देश
की सीमाओं की सुरक्षा की जिम्मेदारी यदि देश के सैनिक निभा रहे होते हैं तो शत्रु चाहें जितना स्वरूप
परिवर्तन करे या मायावी युद्ध करे किंतु सेना हर हाल में उसे पराजित करती है | वो जनता को बताए बिना शत्रु की हर हरकत से स्वयं जूझकर देश एवं देश वासियों
को सुरक्षित रखती है | यही उसका कर्तव्य है जिसका वो ईमानदारी से पालन करती
है |
महामारी भूकंप आँधी तूफ़ान बज्रपात चक्रवात जैसी प्राकृतिक घटनाओं से समाज की सुरक्षा की जिम्मेदारी सँभाल रहे
वैज्ञानिकों से भी ऐसे ही समर्पण की अपेक्षा होती है | महामारी का स्वरूपपरिवर्तन हो या जलवायुपरिवर्तन जनता की सुरक्षा सुनिश्चित होनी चाहिए |महामारी के स्वरूपपरिवर्तन या जलवायुपरिवर्तन
जैसी घटनाओं को जनता से बताने का औचित्य ही क्या है ?जनता को ऐसी
घटनाओं के विषय में केवल सही अनुमान पूर्वानुमान ही बताए जाने चाहिए |
उन्नत विज्ञान से महामारी पीड़ितों को क्या मदद मिली !
कोरोना काल में महामारी
पीड़ितों को इस उन्नत विज्ञान से ऐसी क्या
मदद मिल पाई है जो इन अनुसंधानों के बिना संभव न थी | यदि विज्ञान न होता या विज्ञान ने यदि इतनी अधिक तरक्की न की होती तो महामारी
में क्या
जनधन का इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था !आखिर महामारी पीड़ितों को
उन्नतविज्ञान से कितनी मदद मिली इसे कैसे समझा जाए |
कोरोना काल में महामारी के विषय में कुछ वैज्ञानिकों के द्वारा जो बातें एक बार बोली गईं
!कुछ दूसरे वैज्ञानिकों के द्वारा उसी विषय में उनसे कुछ अलग मत व्यक्त कर
दिए गए | कुछ तीसरे वैज्ञानिकों के द्वारा दोनों प्रकार के मतों का समर्थन कर दिया गया और कुछ तीसरे वैज्ञानिकों के द्वारा उन्हीं बातों का खंडन कर दिया जाता रहा | कई बार तो उस प्रकार की बातें बोलने वाले वैज्ञानिकों को अपनी कही हुई बातों का ही खंडन करते देखा जाता रहा था |
ऐसा ही चिकित्सा में देखा गया | प्लाज्मा थैरेपी जैसी जिस चिकित्सा
प्रक्रिया का रोगियों पर प्रयोगपूर्वक परीक्षण किया गया जिससे प्राप्त
परिणामों के आधार पर यह स्वीकार किया गया कि इससे संक्रमितों में सुधार हो
रहा है | बाद में उसे चिकित्सा प्रक्रिया से इसलिए अलग कर दिया गया क्योंकि
उससे कोई लाभ होते नहीं दिखाई दिया | ऐसे ही रेमडिसिविर जैसे इंजेक्शन एक बार
लाभप्रद माने गए बाद में उन बातों का खंडन कर दिया गया | ऐसा ही कुछ
अन्य औषधियों के विषय में भी हुआ है |
वैक्सीन जो लगाई गई हैं ,उनके प्रभाव पर तो शुरू से ही प्रश्न उठते देखे जा रहे हैं | वैक्सीन बनने से लेकर उसके अच्छे या बुरे प्रभावों के विषय में अनेकों प्रकार के संशय व्याप्त हैं |जिनका कोई सटीक समाधान
नहीं मिल पा रहा है |
जिस मौसम को समझने एवं उसके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने लायक
प्रभावी विज्ञान ही नहीं है | महामारी पैदा होने के लिए उस मौसम को जिम्मेदार बताया जा रहा है | यदि ऐसा हो भी तो जिन अनुसंधानों के आधार पर मौसम संबंधी घटनाओं को समझकर उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि नहीं लगाया जा सकता है उन्हीं के आधार पर मौसम को समझकर उन्हीं के आधार पर महामारी को कैसे समझ लिया जाएगा |
बादलों या आँधी तूफानों को उपग्रहों रडारों की
मदद से कुछ पहले देख लेने से कुछ चक्रवातों से होने वाले जनधन के नुक्सान
को कुछ कम भले कर लिया जाए ,किंतु इसे न तो मौसम विज्ञान कहा जा सकता है और न ही इसके आधार पर महामारी के विषय में
अनुमान पूर्वानुमान आदि ही लगाया जा सकता है |
ऐसे ही वायु प्रदूषण
बढ़ने का निश्चित कारण पता न होने पर भी संक्रमण बढ़ने का कारण वायुप्रदूषण बढ़ने को जिम्मेदार बताया जाता रहा है | यदि ऐसा होगा भी तो उसके आधार पर वायु
प्रदूषण बढ़ने के विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिया जाना चाहिए था किंतु ऐसा किया जाना संभव नहीं हो
पाया है | इसके बिना महामारी पर पड़ने वाले वायु प्रदूषण के प्रभाव के विषय में अनुसंधान कैसे किया जा सकता है |
महामारी के स्वरूप परिवर्तन को भी कोरोना संक्रमण बढ़ने के लिए जिम्मेदार बताया जाता रहा है |ऐसी स्थिति में स्वरूप परिवर्तन समझने के लिए भी पहले महामारी
के वास्तविक स्वरूप के विषय में पता लगाया जाना चाहिए कि महामारी का
वास्तविकस्वरूप पहले कैसा था और उसमें किस प्रकार के परिवर्तन होकर अब कैसा
हो गया है |इसके आधार पर ही यह पता लगाया जा सकता है कि महामारी का स्वरूप परिवर्तन हुआ है या नहीं |
ऐसे ही कोरोना संक्रमण बढ़ने के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार बताया जाता रहा है | इसके विषय में भी स्पष्ट किया जाना चाहिए कि जल और वायु का
स्वरूप पहले कैसा था | उनमें किस प्रकार का परिवर्तन होकर अब कितना और किस
प्रकार का अंतर आ गया है |उनके गुणों ,स्वभाव, रंग, रूप में पहले की
अपेक्षा परिवर्ततित होने के बाद कैसे कैसे बदलाव आए हैं | यह भी पता लगना चाहिए कि ऐसा जलवायु परिवर्तन महामारी को कैसे प्रभावित कर रहा है|
कुल मिलाकर ऐसी महत्त्वपूर्ण
घटनाओं को समझे बिना महामारी या प्राकृतिक आपदाओं को कैसे समझा जा सकता है
और इनके विषय में सही अनुमान या पूर्वानुमान कैसे लगाया जा सकता है |महामारी संबंधित अनुसंधान यदि स्वयं में ही भ्रमित बने
रहेंगे तो ऐसे अनुसंधानों से समाज को मदद कैसे मिल सकेगी | महामारी जैसी
आपदाएँ मनुष्यों को यदि ऐसे ही निगलती रहीं तो ये सारी वैज्ञानिक उपलब्धियाँ मनुष्यों के किस काम आएँगी | कुल मिलाकर महामारी पीड़ितों को इस उन्नत विज्ञान से ऐसी क्या
मदद मिल पाई है जो इसके बिना संभव न थी | ये बिचार किया जाना बहुत आवश्यक
है कि विज्ञान न होता या विज्ञान ने इतनी तरक्की न की होती तो क्या महामारी
में इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था |वो तरक्की क्या है जिससे महामारी पीड़ितों को कुछ मदद मिली हो |
अच्छे और बुरे समय का ज्ञान कैसे हो ?
प्राचीन विज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो समय को समझे बिना महामारी को
समझना संभव नहीं है समय को कैसे समझा जाए | इसके विषय में ऋषियों ने कहा है
कि कालज्ञानं ग्रहाधीनं
महामारियों को समझना या महामारियों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान
लगाना तब तक संभव नहीं होगा जब तक समय के अच्छे या बुरे संचार को समझने के
लिए कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया खोजी नहीं जाएगी |
जनता की अपेक्षाओं पर कितना खरा उतरा महामारी विज्ञान !
कोरोना महामारी बहुत भयंकर थी तो विज्ञान भी कम नहीं है |वर्तमान
समय में विज्ञान भी बहुत उन्नत है | आकाश से लेकर पाताल तक कई बड़ी सफलताएँ
विज्ञान ने अपने नाम कर रखी हैं|मनुष्य जीवन की कठिनाइयाँ भी विज्ञान के द्वारा काफी
कम
की गई हैं और सुख सविधाएँ काफी अधिक बढ़ा दी गई हैं | ये सारी उपलब्धियाँ
जिन मनुष्यों के लिए परिश्रम पूर्वक हासिल की गई हैं | विज्ञान पर उनको
ये भरोसा था कि महामारी जैसे कठिन संकट से विज्ञान हमें बचा लेगा |
उन्हीं मनुष्यों को महामारी जैसी आपदाएँ यदि ऐसे ही निगलती रहीं तो इन सारी वैज्ञानिक उपलब्धियों से मनुष्य को कैसे लाभान्वित किया जा
सकेगा |
महामारी पीड़ितों को इस उन्नत विज्ञान से ऐसी क्या
मदद मिल पाई है जो इसके बिना संभव न थी | ये बिचार किया जाना बहुत आवश्यक
है कि विज्ञान न होता या विज्ञान ने इतनी तरक्की न की होती तो क्या महामारी
में इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था | इस प्रश्न का उत्तर खोजना आसान
नहीं होगा|वैसे भी महामारी को समझने में विज्ञान यदि सक्षम ही होता तो
संभव है कि महामारी में जनधन का इतना अधिक नुक्सान न हुआ होता | इसलिए सुख
सविधाएँ कुछ कम भी हों तो बनी रहें | उसमें भी कुछ कठिनाई पूर्वक जीवन जी
लिया जाएगा | महामारी एवं प्राकृतिक आपदाओं से मनुष्य जीवन को सुरक्षित
बचाया जाना बहुत आवश्यक है |
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